
11/04/2024
# #कुशाम्बस्तु महातेजाः कौशाम्बीमकरोत् पुरीम् # #
{पुस्तक- संस्कृत ग्रंथों में कौशाम्बी: अतीत एवं वर्तमान}
लेखक- डॉ राजेन्द्र त्रिपाठी 'रसराज'
Rajendra Tripathi Rasraj
हिंदी भाषा संस्कृत की उत्तराधिकारिणी कही जाती है। संस्कृत भाषा से प्राप्त दाय को हिंदी ने आत्मसात् करते हुए अपना स्वत्व जोड़़कर उसे आगे बढ़ाया है; साथ ही संस्कृत के आचार्यों ने भी हिंदी को सारस्वत समृद्धि प्रदान की है। हिंदी साहित्य के एक हजार वर्षों का इतिहास इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। आचार्य विद्यानिवास मिश्र, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, अंबिकादत्त व्यास, सीताराम चतुर्वेदी, जानकी वल्लभ शास्त्री, अष्टभुजा शुक्ल और मोहन राकेश इत्यादि संस्कृत से जुड़े हुए आचार्यों, कवियों एवं प्राध्यापकों ने हिंदी की विभिन्न विधाओं में लिखकर हिंदी भाषा व साहित्य में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। इसी कड़ी में संस्कृत के आचार्य डॉक्टर राजेंद्र त्रिपाठी ‘रसराज’ जी ने भी हिंदी साहित्य में गीत-ग़ज़ल के क्षेत्र में रचनात्मक उपस्थिति दर्ज़ की है। कौशांबी जनपद में जन्मे अध्यापक श्री राम निहोर त्रिपाठी जी के पुत्र डॉ.'रसराज' जी के हिंदी में ‘रसराज तरंगिणी’ के अतिरिक्त तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं। इन कविता संग्रहों में एक तरफ तो जीवन के अनुकूल और प्रतिकूल क्षणों में निकले हुए भावोच्छवास हैं, तो वहीं दूसरी तरफ व्यष्टि-सह-समष्टि और प्रकृति-सह-संस्कृति की चिंता भी मौज़ूद है। इस प्रकार डॉ.'रसराज' जी ने जहाँ एक तरफ कविता संग्रहों के माध्यम से साहित्य में रचनात्मक हस्तक्षेप किया है, वहीं दूसरी तरफ ‘संस्कृत ग्रंथों में कौशांबी : अतीत एवं वर्तमान’ नामक पुस्तक लिखकर कौशांबी की साहित्यिक,सांस्कृतिक व ऐतिहासिक भूमिका का उद्घाटन भी किया है। यानी डॉ.'रसराज' जी ने एक साहित्यकार के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहासकार की भूमिका का भी कुशलतापूर्वक निर्वहन किया है। यह पुस्तक इस मायने में भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें कुछ अप्रकाशित तथ्य भी सप्रमाण प्रकाश में आए हैं। कौशांबी में हुए प्राचीन कवियों, आचार्यों के संबंध में बहुत ही रोचक तथ्यों के साथ संस्कृत ग्रंथों का प्रमाण देते हुए लिखा गया है। कौशांबी के गांवों, कस्बों और उनसे जुड़ी कहानियों के हवाले से नए तथ्य खोज निकालने का सार्थक और सफल प्रयास भी किया गया है।
‘कौशाम्बी महिमा’ नामक