Divyabhavishyavani

Divyabhavishyavani Pandit Puran Mishra Ji is a well-known Indian astrologer, philosopher, and life coach. Would you like to know more about his work परामर्शसेवा

He is renowned for his expertise in Vedic astrology, spirituality, and the ancient Indian scriptures, the Vedas. दिव्य संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा,
संगीतमयी अखंड रामचरित मानस पाठ,
संगीतमयी सुंदरकांड,
माता की चौकी-जागरण,
जन्मकुंडली,
रत्न परामर्ष,
दिव्य पूजन सामग्री,
रत्न-यंत्र-कवच,
नवग्रह शांति,
महामृत्युंजय अनुष्ठान,
कालसर्प योग,
मंगल पूजा
आदि के लिए संपर्क करे:

माँ दुर्गा की हाजिरी नहीं लगाई जय बोलिए
24/09/2025

माँ दुर्गा की हाजिरी नहीं लगाई जय बोलिए

पृथ्वी जल स्त्री वनस्पति ने कैसे हरण किया इंद्र का दोष उसके बदले उनको या वरदान मिला रोचक ज्ञान देखें देखें ये वीडियो अच्...
15/09/2025

पृथ्वी जल स्त्री वनस्पति ने कैसे हरण किया इंद्र का दोष उसके बदले उनको या वरदान मिला रोचक ज्ञान देखें देखें ये वीडियो अच्छा लगे जुड़िये

Enjoy the videos and music you love, upload original content, and share it all with friends, family, and the world on YouTube.

नित्य नए सतसंग पुराण की रोचक कथा प्रवचन हेतु चैनल को सब्स्क्राइब करिये अपने मित्रो को भी जोड़िये
14/09/2025

नित्य नए सतसंग पुराण की रोचक कथा प्रवचन हेतु चैनल को सब्स्क्राइब करिये अपने मित्रो को भी जोड़िये

पंडित पूरन मिश्रा जी एक प्रसिद्ध भारतीय ज्योतिषी, दार्शनिक और जीवन कोच हैं। वे वैदिक ज्योतिष, अध्यात्म और प्राचीन ...

नित्य नए सतसंग पुराण की रोचक कथा प्रवचन हेतु चैनल को सब्स्क्राइब करिये अपने मित्रो को भी जोड़िये https://www.youtube.com/
14/09/2025

नित्य नए सतसंग पुराण की रोचक कथा प्रवचन हेतु चैनल को सब्स्क्राइब करिये अपने मित्रो को भी जोड़िये https://www.youtube.com/

04/09/2025

प्राण क्या है ? उसका स्वरूप क्या है ?
हमने बहोत बार अपने जीवन में व्यवहारिक रूपसे “प्राण” शब्द का उपयोग किया है , परंतु हमे प्राण के वास्तविकता के बारमे शायद ही पता हो , अथवा तो हम भ्रांति से यह मानते है की प्राण का अर्थ जीव या जीवात्मा होता है , परंतु यह सत्य नही है , प्राण वायु का एक रूप है , जब हवा आकाश में चलती है तो उसे वायु कहते है , जब यही वायु हमारे शरीर में 10 भागों में काम करती है तो इसे “प्राण” कहेते है , वायु का पर्यायवाचि नाम ही प्राण है ।

मूल प्रकृति के स्पर्श गुण-वाले वायु में रज गुण प्रदान होने से वह चंचल , गतिशील और अद्रश्य है । पंच महाभूतों में प्रमुख तत्व वायु है । वात् , पित्त कफ में वायु बलिष्ठ है , शरीर में हाथ-पाँव आदि कर्मेन्द्रियाँ , नेत्र - श्रोत्र आदि ज्ञानेन्द्रियाँ तथा अन्य सब अवयव -अंग इस प्राण से ही शक्ति पाकर समस्त कार्यों का संपादन करते है . वह अति सूक्ष्म होने से सूक्ष्म छिद्रों में प्रविष्टित हो जाता है । प्राण को रुद्र और ब्रह्म भी कहते है ।

प्राण से ही भोजन का पाचन , रस , रक्त , माँस , मेद , अस्थि , मज्जा , वीर्य , रज , ओज , आदि धातुओं का निर्माण, फल्गु ( व्यर्थ ) पदार्थो का शरीर से बाहर निकलना , उठना , बैठना , चलना , बोलना , चिंतन-मनन-स्मरण-ध्यान आदि समस्त स्थूल व् सूक्ष्म क्रियाएँ होती है . प्राण की न्यूनता-निर्बलता होने पर शरीर के अवयव ( अंग-प्रत्यंग-इन्द्रियाँ आदि ) शिथिल व रुग्ण हो जाते है . प्राण के बलवान् होने पर समस्त शरीर के अवयवों में बल , पराक्रम
आते है और पुरुषार्थ, साहस , उत्साह , धैर्य ,आशा , प्रसन्नता , तप , क्षमा आदि की प्रवृति होती है .
शरीर के बलवान् , पुष्ट , सुगठित , सुन्दर , लावण्ययुक्त , निरोग व दीर्घायु होने पर ही लौकिक व आध्यात्मिक लक्ष्यों की पूर्ति हो सकती है . इसलिए हमें प्राणों
की रक्षा करनी चाहिए अर्थात शुद्ध आहार , प्रगाढ़ निंद्रा , ब्रह्मचर्य , प्राणायाम आदि के माध्यम से शरीर को प्राणवान् बनाना चाहिए . परमपिता परमात्मा
द्वारा निर्मित १६ कलाओं में एक कला प्राण भी है . ईश्वर इस प्राण को जीवात्मा के उपयोग
के लिए प्रदान करता है . ज्यों ही जीवात्मा किसी शरीर में प्रवेश करता है , प्राण भी उसके साथ
शरीर में प्रवेश कर जाता है तथा ज्यों ही जीवात्मा
किसी शरीर से निकलता है , प्राण भी उसके साथ निकल जाता है . श्रुष्टि की आदि में परमात्मा ने सभी जीवो को सूक्ष्म शरीर और प्राण दिया जिससे जीवात्मा प्रकृति से संयुक्त होकर शरीर धारण करता है । सजीव प्राणी नाक से श्वास लेता है , तब वायु कण्ठ में जाकर विशिष्ठ रचना से वायु का
दश विभाग हो जाता है। शरीर में विशिष्ठ स्थान और कार्य से प्राण के विविध नाम हो जाते है । प्रस्तुत चित्र में प्राणों के विभाग , नाम , स्थान , तथा कार्यों का वर्णन किया गया है .

मुख्य प्राण
〰〰〰
१. प्राण ,

२. अपान,

३. समान,

४. उदान

५. व्यान

और उपप्राण भी
पाँच बताये गए है ,

१. नाग

२. कुर्म

३. कृकल

४. देवदत

५. धनज्जय

५ बताए गए है जिनके नाम इस प्रकार है ,

और उपप्राण पांच बताये गए है ,

१. नाग

२. कुर्म

३. कृ

४. देवदत

५. धनज्जय

मुख्य प्राण और उपप्राण का स्वरूप ?
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
मुख्य प्राण :-

१. प्राण :- इसका स्थान नासिका से ह्रदय तक है . नेत्र , श्रोत्र , मुख आदि अवयव इसी के सहयोग से कार्य करते है . यह सभी प्राणों का राजा है . जैसे राजा अपने अधिकारीयों को विभिन्न स्थानों पर विभिन्न कार्यों के लिये नियुक्त करता है , वैसे ही यह भी अन्य अपान आदि प्राणों को विभिन्न स्थानों पर विभिन्न कार्यों के लिये नियुक्त करता है

२. अपान :- इसका स्थान नाभि से पाँव तक है , यह गुदा इन्द्रिय
द्वारा मल व वायु को उपस्थ ( मुत्रेन्द्रिय) द्वारा मूत्र व वीर्य को योनी द्वारा रज
व गर्भ का कार्य करता है .

३. समान :- इसका स्थान ह्रदय से नाभि तक बताया गया है. यह खाए हुए अन्न को पचाने तथा पचे हुए अन्न से रस , रक्त आदि धातुओं को बनाने का कार्य करता
है .

४. उदान :- यह कण्ठ से सिर ( मस्तिष्क ) तक के अवयवों में रहेता है , शब्दों का उच्चारण , वमन ( उल्टी ) को निकालना आदि कार्यों के अतिरिक्त यह अच्छे कर्म करने वाली जीवात्मा को अच्छे लोक ( उत्तम योनि ) में , बुरे कर्म करने वाली जीवात्मा को बुरे लोक ( अर्थात सूअर , कुत्ते आदि की योनि )
में तथा जिस आत्मा ने पाप - पुण्य बराबर किए हों ,
उसे मनुष्य लोक ( मानव योनि ) में ले जाता है ।

५. व्यान :- यह सम्पूर्ण शरीर में रहेता है । ह्रदय से मुख्य १०१ नाड़ीयाँ निकलती है , प्रत्येक नाड़ी की १००-१०० शाखाएँ है तथा प्रत्येक शाखा की भी ७२००० उपशाखाएँ है । इस प्रकार कुल ७२७२१०२०१ नाड़ी
शाखा- उपशाखाओं में यह रहता है। समस्त शरीर में रक्त-संचार , प्राण-संचार का कार्य यही करता है तथा अन्य प्राणों को उनके कार्यों में सहयोग भी देता है ।

उपप्राण :-
〰〰〰
१. नाग :- यह कण्ठ से मुख तक रहता है । उदगार (डकार ) , हिचकी आदि कर्म इसी के द्वारा होते है ।

२. कूर्म :-
इसका स्थान मुख्य रूप से नेत्र गोलक है , यह नेत्रा गोलकों में रहता हुआ उन्हे दाएँ -बाएँ , ऊपर-नीचे घुमाने की तथा पलकों को खोलने बंद करने की किया करता है । आँसू भी इसी के सहयोग से निकलते है ।

३. कूकल :- यह मुख से ह्रदय तक के स्थान में रहता है तथा जृम्भा ( जंभाई =उबासी ) , भूख , प्यास आदि को उत्पन्न करने का कार्य करता है ।

४. देवदत्त :- यह नासिका से कण्ठ तक के स्थान में रहता है । इसका कार्य छिंक , आलस्य , तन्द्रा , निद्रा आदि को लाने का है ।

५. धनज्जय :- यह सम्पूर्ण शरीर में व्यापक रहता है , इसका कार्य शरीर के अवयवों को खिचें रखना
, माँसपेशियों को सुंदर बनाना आदि है । शरीर में से जीवात्मा के निकल जाने पर यह भी बाहर निकल जाता है , फलतः इस प्राण के अभाव में शरीर फूल जाता है ।

जब शरीर विश्राम करता है , ज्ञानेन्द्रियाँ , कर्मेन्द्रियाँ स्थिर हो जाती है , मन शांत हो जाता है । तब प्राण और जीवात्मा जागता है । प्राण के संयोग से जीवन और प्राण के वियोग से मृत्यु होती है ।

जीव का अंन्तिम साथी प्राण है ।
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

04/09/2025

हवाओ के प्रकार
सुंदरकांड पढ़ते हुए 25वें दोहे पर थोड़ा रुक गया। तुलसीदास ने सुन्दर कांड में जब हनुमान जी ने लंका मे आग लगाई थी, उस प्रसंग पर लिखा है -

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।

अर्थात 👉 जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो --
वे उनचासों पवन चलने लगे।
हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और आकार बढ़ाकर आकाश मार्ग से जाने लगे।

मैंने सोचा कि इन उनचास मरुत का क्या अर्थ है ? यह तुलसी दास जी ने भी नहीं लिखा। फिर मैंने सुंदरकांड पूरा करने के बाद समय निकालकर 49 प्रकार की वायु के बारे में जानकारी खोजी और अध्ययन करने पर सनातन धर्म पर अत्यंत गर्व हुआ। तुलसीदासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य हुआ, जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है, लेकिन उसका रूप बदलता रहता है, जैसे कि ठंडी वायु, गर्म वायु और समवायु, लेकिन ऐसा नहीं है।

दरअसल, जल के भीतर जो वायु है उसका वेद-पुराणों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसका नाम अलग है। अंतरिक्ष में जो वायु है उसका नाम अलग और पाताल में स्थित वायु का नाम अलग है। नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है। इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।

ये 7 प्रकार हैं👉

1.प्रवह, 2.आवह, 3.उद्वह, 4. संवह, 5. विवह, 6.परिवह और 7. परावह।

1. प्रवह👉 पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणित हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं।

2. आवह👉 आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल घुमाया जाता है।

3. उद्वह👉 वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है।

4. संवह👉 वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।

5. विवह👉 पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है।

6.परिवह👉 वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तश्रर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।

7.परावह👉 वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।

इन सातों वायु के सात-सात गण (संचालित करने वाले) हैं जो निम्न जगह में विचरण करते हैं।

ब्रह्मलोक, इंद्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक कि दक्षिण दिशा। इस तरह 7x7=49। कुल 49 मरुत हो जाते हैं जो देव रूप में विचरण करते रहते हैं।

है ना अद्भुत ज्ञान। हम अक्सर रामायण, भगवद् गीता पढ़ तो लेते हैं परंतु उनमें लिखी छोटी-छोटी बातों का गहन अध्ययन करने पर अनेक गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक बातें ज्ञात होती हैं।

गर्व करिए अपने सनातनी होने पर और अपने सनातनी पूर्वजों पर जिनका ज्ञान इतना अधिक अथाह था..
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

04/09/2025

किरायेदार से सम्पत्ति मुक्त करवाने के उपाय

आजकल के समाज में यह बहुत बड़ी समस्या बन गई है कि कोई व्यक्ति आवश्यकता होने पर किराये के लिये आपका मकान अथवा दुकान किराये से लेने के लिये जब आपके सामने आता है तो वह आपसे ऐसा व्यवहार करता है जिससे आपको ऐसा अनुभव होता है कि वह व्यक्ति बहुत ही सीधा, सरल और सज्जन है। आप उसके व्यवहार से प्रभावित होकर मकान अथवा दुकान उसे किराये से दे देते हैं। इसके बाद वह समय निकलने के बाद अथवा आपके कहने पर भी मकान अथवा दुकान खाली नहीं करता है। तब उसका असली चेहरा सामने आता है। उससे मकान अथवा दुकान खाली करवाना समस्या बन जाता है। यहां पर मैं आपको कुछ ऐसे सरल उपाय बता रहा हूं जिनके करने से आप अपनी समस्या से मुक्ति पा सकते हैं।

उपाय 1
〰️〰️〰️
प्रथम शनिवार को आप कर्पूर को जला कर काजल बनायें और सरसों का तेल मिला कर काजल की स्याही जैसा बना लें। इस स्याही से केले के हरे पत्ते पर अपनी तर्जनी अंगुली से किरायेदार का नाम लिखें । अब किसी निर्जन स्थान पर आकर अपने दायें पैर से उस पत्ते को रगड़ते हुये किरायेदार का नाम लेकर अपशब्द कह कर मकान खाली करने का आदेश दें जब तक आप को फल प्राप्त न हो तब तक आप यह उपाय करते रहें। बहुत जल्दी किरायेदार मकान खाली करके चला जायेगा।

नोट👉 यदि किरायेदार कोई महिला है तो आप उपरोक्त उपाय में काजल के स्थान पर हल्दी से किरायेदार का नाम लिख कर अपने हाथ से नाम मिटाते हुये मकान खाली करने का आदेश दें।

उपाय 2
〰️〰️〰️
आप मंगलवार को रक्तगुंजा लें। निवास के पूजा स्थल में एक लाल वस्त्र पर तांबे की प्लेट में गुंजा रखें और निवेदन करें कि हे दिव्य औषधि आपसे निवेदन है अपने प्रभाव से अमुक को सद्बुद्धि दें जिससे वह मेरा मकान छोड़कर अन्यत्र चला जाये। अब आप निम्न मंत्र का 21 माला जाप करें। अमुक के स्थान पर किरायेदार का नाम लें।

मंत्र इस प्रकार है👉

क्लीं फट् अमुक बुद्धिविनश्यते क्लेशकरोति फट् स्वाहा।

अब आप गुंजा के दानें किरायेदार के हिस्से वाले मकान में अथवा उसकी दुकान पर डलवा दें। कुछ ही समय में आप देखेंगे कि उसके निवास में कितना क्लेश होता है और उस क्लेश से बचने के लिये वह मकान छोड़कर चला जायेगा।

Address

Bati Bahulavan Vrindavn
Mathura

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Divyabhavishyavani posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Practice

Send a message to Divyabhavishyavani:

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram