Ashok Bhaiya

Ashok Bhaiya अपनी किसी भी परसनल समस्याओं के निश्चि?

23/06/2025
23/06/2025

मुझे आपसे यही उम्मीद है कि,

आप लोग मुझे पढ़ते रहें और अपनी निस्पक्ष सुझाव

देकर हमें आप सुधारते रहें. क्योंकि मेरा सुधरना बहुत जरुरी है,

ताकि आपकी कायाकल्प हो। समाज में आपका मान-समान्न हो, और आपकी

हर मुरादें पूरी हो. टेंसन इस बात का नहीं है कि, मैं कब क्या और कितना लिखता हूँ।

बल्कि टेंसन इस बात का है कि, हमारे लिखने और आपके पढने से आपमें फर्क और

बदलाव क्या-क्या आ रहा है. क्योंकि हमारे नियमित संपर्क में तो हजारों भाई बहनें और शुभ चिंतक हैं।

यह फेसबुक की सुविधा और व्यवस्था का ही कमाल है।वरना कहाँ आप, कहाँ हम.

आप दुआ करिए, मेरी कलम चलती रहे और मैं आपके लिए लिखता रहूँ.

ताकि आपकी मुश्किलों का राम नाम सत्य होता रहे.

- अशोक भैया 9565120423

23/06/2025

जिन दिनों मैं ऋषिकेश में था तो

वहां से मुझे पटियाला (पंजाब) किसी मज़बूरी में जाना पड़ा था.

मैं हरिद्वार आकर शाम की गाड़ी, श्री गंगानगर एक्सप्रेस पकड़ लिया

और रात करीब 10 बजे पटियाला पहुँच गया. मैं उतरा स्टेशन पर उतरा.

सर्दी का तेज मौसम था. कुहांसा इतना अधिक की 10 कदम दूर के बाद

कुछ नहीं दिख रहा था. पहली बार देखा पटियाला का रेलवे स्टेशन,

लगा ये अंग्रेजों का किला है. मैं स्टेशन में एक ब्रेंच पर बैठ गया,

क्योंकि मुझे कोई लेने आ रहा था. इधर पूरे हाल में कुल 10-12 ही यात्री

दुबके हुए पड़े थे. मुझे उन लोगों की भाषा समझ में नहीं आ रही थी.

मुझे भी कोई नहीं समझ रहा था. मैं काफी टेंशन में टिकट खिड़की के पास

आकर टाइम पास करने लगा, तभी मेरे फोन की घंटी बजी. मैंने हेलो बोला-

तो उधर पूछा गया. - अशोक भाई, कहाँ हो तुम ? मैंने कहा, - यही टिकट

खिड़की के पास. उधर से, - ठीक है, वही रहना मैं पहुँच रहा हूँ 5 मिनट में.

मैंने ठीक है बोलकर, फोन काट दिया. लेकिन खुद मेरी समझ में नहीं आ रहा था,

कौन है ये आदमी ? क्योंकि ऋषिकेश में ही, किसी जान पहचान वाले ने

कहा था, अशोक भाई, वो आदमी आपको जानता है. जाओ वहां, तुम्हारे

लिए वो जगह सही है. मैं सोंच ही रहा था कि, तभी फोन फिर बजा........... -

अशोक भाई आ जाओ. मैंने पूछा - कहा आ जाऊं ? आवाज - अरे इधर

बाहर स्कूटर पर देखो. मैंने बाहर देखा तो स्कूटर पर कोई साधू-संत

जैसा हठा-कठा आदमी मुझे अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था.

अब तो साढ़े ग्यारह बज गए थे और ठण्ड भी बढ़ती जा रही थी और भूख

भी लग रही थी, किन्तु उलझन की वजह से ठण्ड और भूख पर कंट्रोल हो

गया था. स्कूटर के पास गया, वो मुझे बैठने को बोले. मैं बैठ गया. और

स्कूटर कुहरे को चीरते हुए मंजिल की ओर फटफटाता चला जा रहा था.

शायद 8-10 मिनट बाद, हम लोग एक शिव मंदिर पर रुक गए और साधु

जी हमें लेकर अंदर अपनी पर्सनल कुटिया में पहुँचते ही बोले,

- और सुनाओ अशोक भाई, कैसे हो. मैंने कहा, ठीक हूँ. मैं ऋषिकेश में था

तो वो......... अभी मैं बात पूरी ही कर रहा था तो देखा, संत जी अपने सीर

पे बालों का जटा-जुटा टोपी की तरह उतारकर बगल में रख दिए. और जब

मैंने गौर से उन्हें देखा तो हैरान होकर बोल ही दिया. - अरे भाई शिवानंद
..... यहाँ मंदिर में क्या कर रहे हो ? और ये सब क्या है ? ये बालों की टोपी ?

वो बोले - भाई, कोई क्या करे. भूख मिटाना है, पैसे बनाने है, तो भेष

बदलना ही पड़ता है. मैं तो कहूंगा. छोडो अपना यू पी, और बन जाओ यहाँ सूफी.

मैं सारा इंतजाम कर दूंगा. मैं कैसे बताऊँ कि, वो पल मेरे लिए कितनी

हैरानियत भरी थी. क्योंकि वो संत मेरे साथ स्कूल के क्लासमेट

थे. तभी उनके चेले, भोजन पानी का इंतजाम करने में लग गए. हम लोग

भोजन करने लगे. खैर.....खाना खाते में ही बोले- खाना खाकर सो जाना,

सुबह बात करते हैं. मैं भोजन करके चेलो द्वारा बताये हुए स्थान पर सो

गया. और सुबह ........... सुबह उजाला होते ही मैं सीधे पटियाला रेलवे

स्टेशन पर पहुँच गया, ताकि हरिद्वार के लिए कोई ट्रेन मिल सके.

(तो ये है जिंदगी की अनेक घटनाओं में एक दिलचस्प घटना).

- अशोक भैया 9565120423

आज भी पारले जी, पसंद करने औऱ खाने वालों भी धन्यवाद औऱ नमन. - अशोक भैया 9565120423
02/06/2025

आज भी पारले जी, पसंद करने औऱ खाने वालों भी धन्यवाद औऱ नमन. - अशोक भैया 9565120423

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