12/04/2023
• आयुर्वेद के पाँच चमत्कारी चूर्ण •
यहाँ कुछ ऐसे योग दिये जा रहे है जो शास्त्रोक्त है , यानि प्राचीन शास्त्रों में इनका वर्णन है। अनेक आयुर्वेद औष्धि निर्माता इनका इसी नाम से निर्माण करते है।अत: मार्किट में उपलब्ध रहते है । अगर आप खुद भी बनाना चाहे तो किसी अच्छे पंसारी से सही सामान लेकर घर पर भी बना सकते है।
1.पंचसकार चूर्ण
सौंठ ,
सौंफ ,
सनाय ,
सेंधा नमक ,
और छोट़ी हरड़
50-50ग्राम या जरूरत अनुसार जितना आप चाहें बना सकते है।
सबको कूटकर चूर्ण बना लें ।
मात्रा -3-6 ग्राम तक रात को सोने से पहले जल से।
उपयोग - यह चूरण सोम्य विरेचक है। कब्ज , आमवृद्धि , सिरदर्द, अजीर्ण , उदरवात , अफारा , उदरशूल , गुदाशूल आदि दोषों को दूर कर पाचन क्रिया सुधारता है।
पंचसकार चूर्ण अर्शरोग , आमप्रकोप , जीर्ण आमवात में संधि स्थानों की पीड़ा , मलावरोध तथा नये अम्लपित्त के रोगियों के लिए अमृत है।
2.प्रदरांतक चूर्ण
चिकनी सुपारी ,
माजुफल ,
चौलाई जड़ ,
धाय के फूल ,
स्वर्ण गैरिक,
मोचरस ,
पठानी लोध
और राल
सबको बारीक चूर्ण कर लें फिर सबके बराबर मिश्री डाल लें | नोट . स्वर्ण गैरिक बहुत सस्ती है। इसको गेरू , गैरिक भी कहते है। लाल रंग में होती है।
मात्रा - 5-10 ग्राम तक । चावलों के धावन से दिन में दो- तीन बार ।
उपयोग - यह चूर्ण गर्भाशय आदि प्रजनन संस्थान पर शामक प्रभाव डालता है | इसके सेवन से श्वेत और रक्त प्रदर दूर होते है तथा गर्भाशय और बीजाशय सुदृढ़ होते है ।
विशेष - गर्भाशय में शोथ होने से यदि प्रदर के स्राव से मुर्दे जैसी दुर्गन्ध आती है तब इस चूरण का उपयोग नही करना चाहिए |
3. रज: प्रवर्तक चूर्ण
भारंगी ,
काली मिर्च ,
पीपल ,
सौठ -
ये सब 80-80 ग्राम और भुनी हींग 30 ग्राम
सबको कूटपीसकर चूर्ण करें ।
मात्रा - 2-3 ग्राम ब्राह्मी 10 ग्राम , काले तिल 50 ग्राम के क्वाथ के साथ दें । माशिक धर्म आने के समय से 5 दिन पहले दें ।
उपयोग - इसके उपयोग से माशिक धर्म बिना कष्ट बिना दर्द आने लगता है ।
विशेष - सामान्यत : इस चूर्ण का सेवन 15-35 वर्ष तक की आयु वाली स्रियों को ही करना चाहिए ।
पेट में कब्ज न रहने दें।
4. वीर्य शोधन चूर्ण
बबूल की बिना बीज वाली कच्ची फली ,
बबूल की कोपल ,
बबूल गोंद - सबको समभाग लेकर चूर्ण करें ।
मात्रा - 4-6 ग्राम तक मिश्री मिलाकर लें । ऊपर से दूध पिएं ।
उपयोग - वीर्य सोधन चूर्ण के सेवन से वीर्य का पतलापन , शुक्रमेह , धातु दोष दूर होकर वीर्य गाढ़ा होता है |
5. मूत्र विरेचक चूर्ण
शीतलचीनी ,
रेवन्दचीनी ,
छोटी एलायची बीज ,
और जीरा
प्रत्येक 10-10 ग्राम ,
कलमी शोरा 20 ग्राम ,
मिश्री 40 ग्राम ।
सबको कपड़छान चूर्ण कर लें ।
मात्रा - 3 ग्राम दवा दूध + जल की लस्सी के साथ । दिन में 3-4 बार लें।
उपयोग - यह चूर्ण मुत्रोत्पति बढ़ाता है । सुजाक में पूव दूर करने में और मूत्र साफ लाने में बहुत उपयोगी है । भोजन में केवल दूध भात खाना चाहिए ।
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