08/10/2025
यज्ञ – एक विज्ञान
लेखक : योगाचार्य राजीव कुमार
भारतीय संस्कृति में यज्ञ का स्थान अत्यंत ऊँचा और वैज्ञानिक दृष्टि से गूढ़ है। यज्ञ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है — जो पर्यावरण, शरीर, मन और समाज - चारों स्तरों पर शुद्धि और संतुलन स्थापित करती है।
यज्ञ का वास्तविक अर्थ:-
संस्कृत शब्द “यज्ञ” का अर्थ है - सामूहिक कल्याण हेतु किए गए श्रेष्ठ कर्म। ‘यज्’ धातु से उत्पन्न यह शब्द देवपूजन, संगतिकरण और दान— इन तीन भावनाओं का संगम है। अतः यज्ञ केवल अग्नि में आहुति देना नहीं, बल्कि सद्भाव, समर्पण और विज्ञान का संगठित प्रयोग है।
यज्ञ का वैज्ञानिक पक्ष:-
1. वातावरण शुद्धि:-
जब घी, हवन सामग्री, जड़ी-बूटियाँ और औषधियाँ अग्नि में आहुति के रूप में डाली जाती हैं, तब दहन प्रक्रिया में सुगंधित एवं औषधीय वाष्प बनते हैं जो वायु में फैलकर वातावरण को जीवाणु-मुक्त करते हैं। वैज्ञानिक परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि यज्ञ से वायु में उपस्थित बैक्टीरिया, वायरस और हानिकारक गैसों की मात्रा कम होती है।
2. ऊर्जा परिवर्तन:-
यज्ञ एक ऊर्जा-परिवर्तन तंत्र है। पदार्थ जब अग्नि के संपर्क में आता है तो वह ऊष्मा, प्रकाश और वाष्पीय ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होकर वातावरण में प्रसारित होता है। यह ऊर्जा हमारे प्राण-तत्व को जाग्रत करती है।
3. ध्वनि तरंगों का प्रभाव:-
मंत्रोच्चारण के समय निकलने वाली ध्वनि तरंगें विशेष कंपन उत्पन्न करती हैं। यह कंपन हमारे मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को शुद्ध करते हैं। आधुनिक विज्ञान में इसे सोनिक थेरेपी के समान माना जा सकता है।
4. मानसिक संतुलन और ध्यान:-
यज्ञ में बैठने वाला व्यक्ति जब ध्यानपूर्वक मंत्रोच्चारण और आहुति करता है, तब उसकी चिंता, क्रोध और तनाव का नाश होता है। उसका मन शांत, एकाग्र और सकारात्मक बनता है। यह प्रक्रिया एक प्रकार की मेडिटेशन प्रैक्टिस है।
5. पर्यावरणीय योगदान:-
आज जब प्रदूषण और मानसिक अशांति का युग है, यज्ञ एक इको-फ्रेंडली समाधान के रूप में हमारे सामने है। यज्ञ से उत्पन्न धुआँ कार्बन डाइऑक्साइड को स्थायी रूप में बाँधने में मदद करता है और पौधों की वृद्धि में सहायक होता है।
निष्कर्ष:-
यज्ञ केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि विज्ञान, दर्शन और जीवनशैली का अद्भुत संगम है। यह हमें सिखाता है कि आहुति केवल अग्नि में नहीं, बल्कि अपने अहंकार, नकारात्मकता और स्वार्थ में भी देनी चाहिए।
यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में नित्य एक छोटा-सा यज्ञ करे - चाहे वह अग्निहोत्र के रूप में हो या अच्छे कर्म के रूप में - तो निश्चित ही पर्यावरण शुद्ध, समाज स्वस्थ और जीवन समृद्ध बनेगा।
🕉️ “यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म” - वेदों का यह वाक्य हमें याद दिलाता है कि यज्ञ केवल आग नहीं, बल्कि आत्मा की अग्नि से जीवन को प्रकाशित करने का विज्ञान है।
✍️ योगाचार्य राजीव कुमार
योग एवं वैदिक जीवनशैली विशेषज्ञ
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