YOG with RAHUL shadhak

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31/05/2024
मौन चुप्पी की शक्ति का महत्व :--         अक्सर लोग मौन की शक्ति से अनभिज्ञ रहते हैं , जबकि यह शक्ति सफलता की ओर ले जा सक...
18/03/2024

मौन चुप्पी की शक्ति का महत्व :--
अक्सर लोग मौन की शक्ति से अनभिज्ञ रहते हैं , जबकि यह शक्ति सफलता की ओर ले जा सकती है ! इस शक्ति का उपयोग करके आप बाहरी शोर को अनसुना करके अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं ! चुप्पी एक ऐसी शक्ति है जिसकी सहायता से हम किसी भी बात को गहरे से समझते हैं , गहराई से समझकर समस्या का निदान पा सकते हैं ,भविष्य के अच्छे निर्णय ले सकते हैं ! लोगों को आजकल के इस तनाव भरे माहौल में अपनी आंतरिक शक्ति का उपयोग करने में दिक्कत आ रही हैं ! यदि आप आंतरिक शक्ति का उपयोग करना चाहते हैं तो सबसे बड़ी शक्ति "चुप्पी" है इसका उपयोग करना सीखें !
अक्सर आपने देखा होगा कि महान हस्तियां , धनवान दार्शनिक , बोलते कम कार्य अधिक करते हैं ! इसका मुख्य कारण वे अपने आसपास शांति बनाए रखते है , जिसकी वजह से अपने लक्ष्य पर ध्यान फोकस कर पाते हैं, सफल होते जाते हैं ! जो लोग अक्सर नकारात्मक विचार रखते हैं वे छोटी छोटी बातों से परेशान हो जाते हैं जबकि जो लोग सकारात्मक विचार रखते हैं ,जब भी उनके सामने कोई दिक्कत आती है तो वे चुप्पी साध लेते हैं , अपनी परेशानी का निदान पा लेते हैं !
चुप्पी की शक्ति से आप दूसरों के मन की बात भी जान सकते हैं एवम अपना रिश्ता परमात्मा से भी जोड़ सकते हैं ! मौन का अर्थ यह नहीं कि आप चुप शांत ही रहेंगे , इसका अर्थ है कि कब , किस समय , कितना बोलना व्यक्त करना सार्थक है ! इसके विपरीत जिस व्यक्ति को यह ज्ञात नही होता कि कब किस समय कितना बोलना है वह समस्या में घिरता जाता है !
मौन में रहने से आप लोगों को विचारों में उलझा सकते हो
आपने देखा ही होगा जो लोग मौन रहते हैं लोग उसकी बात को ध्यान से सुनते हैं ,जबकि जो हमेशा बकबक करता रहता है लोग उसकी बातों को भाव नही देते ! खरीदारी करते समय , मोल भाव करते समय , मौन का सहारा लेना चाहिए , जब आप खरीदारी कर रहे हों और मोलभाव भी नही करना चाहते तो मौन हो जाएं ! ऐसा करने पर विक्रेता हड़बड़ाहट में वस्तु का मूल्य कम कर देता है क्योंकि उसको लगता है कि कहीं आप वस्तु खरीदने से मना ही न कर दें ( यह तो आपने आजमाया या देखा ही होगा ) !! इस मौन के कारण ही आप वस्तु को कम दाम पर खरीद पाते हैं और आपका धन भी बचता है !
बोले कम सुने ज्यादा :- अधिकतर झगडे या पारिवारिक संबंध में कटुतता तब आती है जब लोग एक दूसरे की बात ही नही सुनते , यदि एक दूसरे की बात को ध्यान से सुनेंगे और मौन की शक्ति का सहारा लेंगे तो झगड़ा और दरार दूर होगा !
मानसिक शांति :- मानसिक शांति के लिए चुप्पी की शक्ति को पहचानना होगा ! जब भी कभी व्यक्ति मौन का अनुभव करता है तो उसके वो सारे विचार जो उसे परेशान करते हैं वो विचार दूर होने लगते हैं जिससे मन शांत होता जाता है क्योंकि आप मौका देते हैं खुद को खुद से जुड़ने के लिए !!
आत्म प्रतिष्ठा :- अपनी आत्म प्रतिष्ठा बनाएं ! जब आपको चुप्पी की शक्ति का ज्ञान हो जायेगा तो आप इसे अपनी दिनचर्या में शामिल कर लेंगे , जिससे आपकी आत्म प्रतिष्ठा बढ़ेगी ! आप अपनी पॉवर ऑफ साइलेंस से सेल्फ रिस्पेक्ट बढ़ा सकते हैं !

जब आप मौन रहते हैं तब आप अपने विचारों को अच्छे से समझ पाते हैं आपकी विचार शक्ति बढ़ती है , मन शांत होने पर भीतर की उथल पुथल पर अंकुश लगता है जिसके कारण आप समस्याओं से बाहर आते हैं ! आपने अक्सर देखा होगा कि आप अपनी किसी समस्या का समाधान के लिए बुद्धिमान व्यक्ति से मार्गदर्शन लेते हैं ! वह बुद्धिमान अपनी मौन शक्ति के कारण ही आपको उचित निर्णय लेने में सहायक होता है !
अतः मौन की शक्ति को पहचाने !! ॐ जय गुरुदेव 🙏

14/02/2024



प्रारब्ध तीन तरह के होते है मन्द तीव्र तथा तीव्रतमभगवान् कहते है मन्द प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते है तीव्र प्रारब्...
14/12/2023

प्रारब्ध तीन तरह के होते है मन्द तीव्र तथा तीव्रतम

भगवान् कहते है मन्द प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते है तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते है
पर तीव्रतम प्रारब्ध भुगतने ही पड़ते है

लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ प्रारब्ध पहले रचा पीछे रचा शरीर तुलसी चिन्ता क्यों करे भज ले श्री रघुबीर

एक गुरूजी थे हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करते थे काफी बुजुर्ग हो गये थे उनके कुछ शिष्य साथ मे ही पास के कमरे मे रहते थे

जब भी गुरूजी को शौच स्नान आदि के लिये जाना होता था वे अपने शिष्यो को आवाज लगाते थे और शिष्य ले जाते थे धीरे धीरे कुछ दिन बाद शिष्य दो तीन बार आवाज लगाने के बाद भी कभी आते कभी और भी देर से आते

एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही गुरूजी आवाज लगाते है तुरन्त एक बालक आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ गुरूजी को निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है अब ये रोज का नियम हो गया

एक दिन गुरूजी को शक हो जाता है कि पहले तो शिष्यों को तीन चार बार आवाज लगाने पर भी देर से आते थे लेकिन ये बालक तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है

एक दिन गुरूजी उस बालक का हाथ पकड लेते है और पूछते कि सच बता तू कौन है मेरे शिष्य तो ऐसे नही हैं वो बालक के रूप में स्वयं ईश्वर थे उन्होंने गुरूजी को स्वयं का वास्तविक रूप दिखाया

गुरूजी रोते हुये कहते है हे प्रभु आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे है यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना

प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध है आप मेरे सच्चे साधक है हर समय मेरा नाम जप करते है इसलिये मै आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ

गुरूजी कहते है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है क्या आपकी कृपा मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है

प्रभु कहते है कि मेरी कृपा सर्वोपरि है ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा यही कर्म नियम है इसलिए आपके प्रारब्ध स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हू

ॐ नमः शिवाय

[[[नमःशिवाय]]]            श्री गुरूवे नम:                                                                  #वीरभद्र_मंत्...
24/11/2023

[[[नमःशिवाय]]]
श्री गुरूवे नम:

#वीरभद्र_मंत्र_प्रयोग

शत्रुनाश हेतु विशेष प्रयोग विधि भैरव प्रपंचसार तंत्र व आकाशभैरव कल्पादि तंत्रो में देखें।

#विनियोग:- अस्य श्री वीरभद्र मंत्रस्य ब्रह्माऋषिः, अनुष्टुप्छंदः, वीरभद्रोदेवता सर्वशत्रुक्षयार्थे जपे विनियोगः ।

#मंत्र: – (३२ अक्षरात्मक) “ॐ वीरभद्राय अतिक्रूराय रुद्रकोपं सम्भवाय सर्वदुष्ट निवर्हणाय हुं फट् स्वाहा ।

#षडङ्गन्यासः – ॐ वीरभद्राय हृदयाय नमः । अतिक्रूराय शिरसे स्वाहा । रुद्रकोपं सम्भवाय शिखायै वौषट् । सर्वदुष्ट कवचाय हुं । निवर्हणाय नेत्रत्रयाय वौषट् । हुं फट् स्वाहा अस्त्राय फट् ।

#ध्यानम्

गोक्षीराभं दधानं परशुडमरुको खङ्गखेटौ कपालम् । शूलञ्चाभीतिदाने त्रिनयनमसितं व्याघ्र चर्माम्बराढ्यम् । वेतालारूढमुग्रं कपिशतर जटाबद्ध शीतांशुखण्डम् । ध्यायेद्भोगीन्द्रभूषं निजगणसहितं सन्ततं वीरभद्रम् ॥ प्रयोगान्तरे विशेष ध्यानम्-(स्तेभनार्थे) अमुं वीरभद्रं हरिद्राभमुग्रं गदामुष्टि हस्तं करालाह हासम् ॥ (रिपुक्षयार्थे) – भुजङ्गगणभूषणं भुजगत त्रिशूलाहत स्वशत्रु-रूधिरोक्षितं भजद्भाल नेत्रानलं दिगम्बरम् ॥

रक्त वीकर पुष्प (अभावे रक्तकनेर ) कमल एवं त्रिमधु से होम करें । २ लक्ष का पुरश्चरण है । यह रक्षा प्रधान देवता है । यंत्र पूजनम् – पंचकोण के बाद अष्टदल बनाये उसके बाहर भूपूर बनायें ।

#प्रथमावरणम् – पंचकोण में – पूर्वे तत्पुरूषाय नमः । दक्षिणे अघोराय नमः । उत्तरे सद्योजाताय नमः । पश्चिमे वामदेवाय नमः । ईशाने-ईशानाय नमः ।

#द्वितीयावरणम् – इनकी शक्तियों का अग्निकोणदि में पूजन करें । निवृत्यै नमः पूर्वे । प्रतिष्ठायै नमः आग्नेये। विद्यायै नमः निऋते ।शान्त्यै नमः वायव्ये । शान्त्यतीतायै नमः ईशाने ।

#तृतीयावरणम्- (अष्टदले) परशवे नमः । डमरुकाय नमः ।खड्गाय नमः । खेटाय नमः । कपालाय नमः । शूलाय नमः । अभयाय नमः । वरदाय नमः ।

#चतुर्थावरणं – भूपूरे इन्द्रादि देवेश्च पंचमावरणे वज्राद्ये: अग्युधानि पूजयेत् । स्तंभन हेतु हरिद्रा से होम करे । शत्रुविनाश हेतु कटुत्रयादि से होम करें । सभी प्रयोगों में तिल सर्षप तथा पंचगव्य (दुर्वा, वट, दुग्धान्न, मयूरकाक्षतैश्च ये 5 द्रव्य है । मयूर-अपामार्ग, एवं खरमंजरी को भी अपामार्ग कहते है।) प्रतिद्रव्य से ८-८ घृताक्त आहुति देवें । यंत्र मध्य में (रक्त वस्त्र वेष्टित) कुंभ स्थापित कर वीरभंद्र का आवाहन करे । जप हवनादि कर्म करे । बलि प्रदान करें ।

#चतुर्दशाक्षर_मन्त्र – “क्लीं प्रीं वीरभद्र जय जय नमः स्वाहा ।” ऋषि भैरव, देवता वीरभद्ररुपी महाकाल भैरव । जगती छन्द, खं बीज, स्वाहा शक्ति तथा फट् कीलक पक्षिराज शरभ के समान ।

'*' जप कृत्य होता है। चेष्टा करनी पड़ती है, स्मरण रखना पड़ता है, तो होता है।फिर धीरे-धीरे जब भीतर के तार मिल जाते हैं, तो ...
24/08/2023

'*' जप कृत्य होता है। चेष्टा करनी पड़ती है, स्मरण रखना पड़ता है, तो होता है।
फिर धीरे-धीरे जब भीतर के तार मिल जाते हैं, तो साधक को जप करना नहीं पड़ता। नानक ने उस अवस्था का अजपा-जाप कहा है। फिर जाप अपने से होता है। साधक तब साक्षी हो जाता है--सिर्फ देखता है। मस्त होता है, डोलता है। बीन अब खुद नहीं बजाता है। बीन अब बजती है। इसलिए उस नाद को अनाहत-नाद कहा है। अपने से होता है। न कोई वीणा है वहां, न कोई मृदंग है वहां, न कोई बजाने वाला है वहां, लेकिन नाद है। अपरंपार नाद है। जिसका पारावर नहीं--ऐसा नाद है।

समझोः सदियों की खोज से यह अनुभव में आया है कि वह नाद कुछ-कुछ ऐसा होता है, जैसा--ओम्। लेकिन यह तो हमारी व्याख्या है कि ऐसा होता है। यह ऐसे ही है, जैसे कोई सूरज को उगते देखे, और कागज पर एक तस्वीर बना ले। सूरज उग रहा है कागज पर, और लाकर कागज तुम्हें दे दे और कहे कि सुबह बड़ी सुंदर थी और मैंने सोचा कि तस्वीर बना दंू, ताकि तुम्हें भी समझ में आ जाए--कैसी थी।

वह जो कागज पर तस्वीर है, उसमें न तो सूरज की गरमी है; न सूरज की किरणें हैं; न सूरज का सौंदर्य है। प्रतीकमात्र है। या ऐसे समझो कि जैसे तुम्हें कोई हिमालय का नक्शा दे दे। उसमें न तो हिमालय की शांति है, न हिमालय का सन्नाटा है, न हिमालय के उत्तुंग शिखर हैं, न उत्तुंग शिखरों पर जमी हुई कुंवारी बरफ है। कुछ भी नहीं है। नक्शा है। लेकिन नक्शा प्रतीक है।
ऐसे ही ओम प्रतीकमात्र है। कागज पर बनाया गया नक्शा है, उस अजपा-जाप का, जो भीतर कभी प्रगट होता है। वह ध्वनि जो भीतर अपने आप फूटती है। जिसको कबीर ‘शब्द’ कहते हैं।

तुम जब शुरू करोगे, तब तो तुम ओम्, ओम्, ओम् के जाप से शुरू करोगे। यह जाप तुम्हारा होगा। इस जाप को अगर करते गए और गहरा होता गया यह जाप...। गहरे का मतलब हैः पहले होंठ से होगा; फिर वाणी में होगा, लेेकिन होंठ पर नहीं आएगा; कंठ में ही रहेगा; मन में ही गूंजेगा। फिर घड़ी आएगी, जब मन में भी नहीं गूंजेगा, कंठ में भी नहीं होगा। तुम अपने भीतर ही उसे किसी गहन तल से उठता हुआ पाओगे।
तो एक तो जाप था, जो तुमने किया और एक जाप है, जिसे एक दिन तुम साक्षी की तरह देखोगे।....'*ॐ जय गुरुदेव🙏

साँसों का चलना परमात्मा के होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।केवल साँसों पर ध्यान 🧘लगाने मात्र से विचार नियंत्रित होने लगते है।...
24/08/2023

साँसों का चलना परमात्मा के होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।

केवल साँसों पर ध्यान 🧘लगाने मात्र से विचार नियंत्रित होने लगते है। ॐ 🙏

जितनी मात्रा में हम प्राण ऊर्जा जलाएंगे, उतना ही हमारा जीवन गतिमान होगा, हमारा शरीर स्वस्थ और निरोगी होगा। एक वर्ष में ज...
16/07/2023

जितनी मात्रा में हम प्राण ऊर्जा जलाएंगे, उतना ही हमारा जीवन गतिमान होगा, हमारा शरीर स्वस्थ और निरोगी होगा। एक वर्ष में जितना हम साँस लेते हैं, उतना साँस हम एक महीने में लेने लगेंगे ,तो हमारी यात्रा आत्मा की ओर होने लगेगी ..देह-बोध कम होने लग जायेगा ..आत्मा का बोध अधिक-से-अधिक होने लगेगा। श्वास-प्रश्वास पर जितना हमारा ध्यान प्रगाढ़ होगा, उतनी ही जल्दी हमें इस दिशा में सफलता मिलेगी। सबसे पहले ऑकसीजन की आवश्यकता कम होती जाएगी। हम श्वास-प्रश्वास कम लेने लगेंगे। अन्त में एक ऐसी अवस्था आ जायेगी कि देह-बोध बिलकुल समाप्त हो जायेगा। आत्मा के अस्तित्व का पूर्णरूप से अनुभव होने लगेगा और साँस लेने की आवश्यकता भी समाप्त हो जाएगी। .....इसी अवस्था का नाम है--समाधि ।

वास्तव में, ऑकसीजन की आवश्यकता हमारे शरीर को है, हमारी आत्मा को नहीं ! जहाँ श्वास-प्रश्वास की आवश्यकता समाप्त हुई, उसी क्षण हम आत्मबोध को पूर्णतया उपलब्ध हो जायेंगे। श्वास-प्रश्वास की आवश्यकता समाप्त होने पर क्या शरीर
मृत नहीं हो जायेगा ?

नहीं, शरीर में जीवन- तत्व सक्रिय रहता है। मस्तिष्क भी सक्रिय रहता है। ऐसी स्थिति में शरीर के मृत होने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। जय गुरुदेव ॐ 🙏

🚩ॐ नमः शिवाय 🚩

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