Board of Naturopathy and Yoga Systems of Medicine-BNYSM नेचुरोपैथी एंड योगा

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Board of Naturopathy and Yoga Systems of Medicine-BNYSM नेचुरोपैथी एंड योगा नमस्कार अब आप भी नेचुरोपैथी योग के मान It does not substitute proper treatment under expert medical guidance.

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हमें यह ज्ञात हो चुका है कि रोगों का इलाज हमारे चारों ओर उपस्थिति प्राकृतिक तत्वों की सहायता से किया जा सकता है। इन्हीं तत्वों के कारण ही हमारा जीवन चलता रहता है। यदि किसी कारणवश यह अंसतुलित हो जाता है तो हमारा स्वास्थ्य खराब हो जाता है। एक ऐसी प्राचीन चिकित्सा प्रणाली जो बिना दवाओं के ही, व्यायाम, विश्राम, स्वच्छता, उपवास, आहार, पानी, हव

ा, प्रकाश, मिट्टी आदि के संतुलित उपयोग से ही शरीर को रोगों से मुक्त कर देती है तथा व्यक्ति को स्वस्थ और दीर्घ जीवन का रास्ता दिखाती है वह ``प्राकृतिक चिकित्सा`` पद्धति कहलाती है....कई रोगों की प्राकृतिक चिकित्सा - Yoga and Naturopathy:
योग और नेचुरोपैथी – बेहतर स्वास्थ्य पाने का प्राकृतिक तरीका
आज के समय में औद्योगीकरण का विकास और टेक्नोलॉजी ने मानव जीवन के सामने ऐसी स्थितिया पैदा करदी है जिसके चलते लोगो ने अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना बिलकुल छोड़ दिया है| यदि हम स्वास्थ्य की बात करे तो अच्छा स्वास्थ्य पाना कोई एक दिन का खेल नही है, इसके लिए आपका सालो का प्रयास, आत्म नियंत्रण और इच्छा शक्ति चाहिए होती है|
स्वस्थ शरीर का बहुत अधिक महत्व है| यह खुशी का एक स्त्रोत है जो हमें अपने प्रियजनों के साथ मिलनसार बातचीत का माहौल बनाने में मदद करता है। एक अच्छा स्वास्थ्य मनुष्य को प्रकृति द्वारा दिया गया सबसे अच्छा उपहार है| लेकिन आज के वक्त में व्यक्ति अपनी यांत्रिक जीवन शैली में इतना अधिक व्यस्त होता जा रहा है की उसने खुद को प्रकृति से बिलकुल विमुख कर दिया है|
एक अच्छे स्वास्थ्य से धनि होने के लिए व्यक्ति प्रकृति द्वारा दिए गए रिसोर्सेज को इस्तेमाल करने के बजाय उल्टा उससे दूर जा रहा है| अच्छे स्वास्थ्य से उन्मुख होने के कारण आज कम उम्र के लोगो में ही मोटापा व अन्य बीमारिया देखने को मिल रही है| इस निराशाजनक स्थिति में यदि फिर भी कोई उम्मीद की किरण है तो वो है प्राकृतिक चिकित्सा और योग| इसलिए आज हम बात करेंगे Yoga and Naturopathy के बारे में|

योग और नेचुरोपैथी एक अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने में मदद करते है साथ ही जीवन की गुणवत्ता भी बढाते है| कई सारी बीमारिया जो की आधुनिक युग ने दी है जैसे की स्ट्रोक, कैंसर, मधुमेह, गठिया आदि नियंत्रित होती है और अन्य रोंग भी नहीं होते है|
नेचुरोपैथी एक प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली है जिसमे दवाओ का उपयोग किये बिना रोगों को ठीक किया जाता है| यह एक प्राचीन और पारंपरिक विज्ञान है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं को एकीकृत करता है। नेचुरोपैथी में कई रोगों को रोकने की क्षमता है और जो रोंग हो चुके है उसका इलाज आप कर सकते है|
Naturopathy Treatment का मुख्य उद्देश्य लोगो को अपनी दिनचर्या बदलकर स्वस्थ रहने की कला सिखाना है| इससे ना केवल आपके रोंग ठीक होते है बल्कि आपका शरीर भी मजबूत बनता है और आपके चेहरे पर चमक आती है|
नेचुरोपैथी में क्या तकनीक शामिल होती है?
इसका चार भागो में वर्गीकरण किया गया है:-
• भोजन
• मिट्टी
• पानी
• और मालिश थेरेपी
आप यह भी पढ़ सकते है:- जानिए योग क्या है और इसके समस्त प्रकारों का वर्णन
खाद्य थेरेपी: खाद्य थेरेपी की बात की जाये तो हम इसमें कोशिश करते है की जितना संभव हो किसी भी आहार को उसके प्राकृतिक रूप में ही खाया जाये| प्राकृतिक रूप में सेवन करने पर कई खाद्य पदार्थ अपने आप में एक दवा है| आपको इसमें मुख्य रूप से लेना है ताजे फल, ताजा हरी पत्तेदार सब्जियां और अंकुरित अनाज|
आहार को लेना ही काफी नहीं है आपको इस बात पर गौर करना होगा की किस चीज़ को कितने अनुपात में लेना है| साथ ही आपको अपने पेट का कुछ हिस्सा खाली भी छोड़ना जरुरी है|
मिट्टी थेरेपी: शरीर से मादक द्रव्यों निकालने के लिए, मिट्टी का स्नान और मिट्टी का लैप दोनों का इस्तेमाल किया जाता है| यह विशेष रूप से उच्च रक्तचाप, तनाव, सिर दर्द, चिंता, कब्ज, गैस्ट्रिक और त्वचा विकार आदि बीमारियों के लिए किया जाता है| Mud Therapy in Naturopathy बहुत ही प्रभावी है|
जल चिकित्सा: नेचुरोपैथी में जल चिकित्सा भी अपनाई जाती है जिसमे स्वच्छ, ताजे और ठंडे पानी का उपयोग किया जाता है| इस उपचार के बाद, शरीर ताजा और सक्रिय महसूस करता है। इस चिकित्सा के अलग अलग बीमारियों के लिए अलग अलग परिणाम है|
1. हिप बाथ आपके जिगर, बड़ी आंत, पेट, और गुर्दे की दक्षता में सुधार करता है|
2. फुल स्टीम बाथ आपकी त्वचा के पोर्स को खोलता है और मादक द्रव्यों को बाहर निकालता है|
3. एक हॉट फूट बाथ आपको अस्थमा, घुटने के दर्द, सिर दर्द, अनिद्रा, और मासिक धर्म जैसी अनियमितताओं के साथ मदद करता है|
4. इसके अलावा पुरे शरीर की पानी से मालिश की जाती है जिससे विषाक्त पदार्थो को शरीर से दूर किया जाता है|
नेचुरोपैथी कई बीमारियों को दूर करने और रोगों से राहत दिलाने में मदद करती है| जो भी व्यक्ति रिलैक्स होना चाहते है वो इसका इस्तेमाल कर सकते है| इस बात में कोई संदेह नहीं है की यह अपने आप में चिकित्सीय पद्धति है|
ऊपर आपने जाना Yoga and Naturopathy उपरोक्त बताई गयी बातो से आप जान गए होंगे की नेचुरोपैथी आपके लिए कितनी फायदेमंद है और योग के बारे में तो हम शुरुवात से ही बात करते आ रहे है| योग भी एक प्राकृतिक पद्धति है जो हमें कई बीमारियों से निजात दिलाने में मदद करती है|
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हम यह जानकारी देना चाहते है कि आप घरेलू दवाओ का उपयोग करके भी स्वस्थ रह सकते हैं ।यहाँ पर दी जानकारी की सत्यता को प्रमाणित नहीं किया गया है | और न ही किसी लीगल या सरकारी संस्था द्वारा इसे प्रमाणित किया गया है | यहाँ पर दी गयी सलाह या जानकारी आपके ज्ञानवर्धन के लिए है और इसे इस्तेमाल करने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह के बाद ही इस्तेमाल करे | किसी भी नुक्सान के लिए वेबसाइट या इससे जुड़े हुए लोग जिम्मेदार नहीं हैं |यहाँ पर कई लेखकों द्वारा जानकारी प्रकाशित की गयी है जिसकी सत्यता और कॉपीराइट के बारे में हमें जानकारी नहीं हैं

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पेट में मरोड़ के कारण और इलाज - Pet Mein Marod Ke Karan Aur Ilaj in Hindi  पेट में मरोड़ का तात्पर्य पेट के किसी भी हिस्स...
27/02/2024

पेट में मरोड़ के कारण और इलाज - Pet Mein Marod Ke Karan Aur Ilaj in Hindi



पेट में मरोड़ का तात्पर्य पेट के किसी भी हिस्से में हो रहे दर्द या ऐंठन या अन्य प्रकार के पेट की सनसनी से है. पेट के मरोड़ में मध्यम, तीव्र या बार-बार आने-जाने वाला दर्द हो सकता है. पेट में मरोड़ के ज्यादातर लक्षण चिंताजनक नहीं होते हैं व इसका आसानी से पता चल जाता है और इलाज हो जाता है. पर कभी-कभी पेट दर्द या पेट में मरोड़ किसी गंभीर बीमारी का संकेत भी हो सकते हैं. पेट में मरोड़ के कई कारण हो सकते हैं. यह अपच, कब्ज या पेट में वायरस के कारण हो सकते हैं. महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान भी पेट में दर्द या मरोड़ हो सकते हैं. पेट में मरोड़ का इलाज इस समस्या के कारण के आधार पर किया जाता है. आगे हम पेट में मरोड़ के कारण व उसके इलाज के बारे में जानेंगे.
पेट में मरोड़ के कारण- Pet Mein Marod Ke Karan
• गैस्ट्रोएंटराइटिस (पेट का फ्लू) के कारण: - पेट के फ्लू (गैस्ट्रोएंटराइटिस) के कारण भी पेट में दर्द या मरोड़ हो सकता है. पेट के फ्लू का ज्यादातर मामला बैक्टीरिया या वायरस के कारण होते हैं, जिसमें इनके लक्षण समान्यतः कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं. पर लक्षण यदि 2 दिन से अधिक समय तक रहे तो यह एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या, जैसे संक्रमण,अन्य सूजन या जलन का संकेत हो सकता है.

• गैस: - जिस खाद्य पदार्थ को शरीर पचा नहीं सकता है उसे जब छोटी आंत के बैक्टीरिया तोड़ते हैं तो आंत में गैस का दबाव बनता है. गैस के इस दबाव के बढ़ने से पेट में दर्द या मरोड़ हो सकता है. इस गैस के कारण पेट फूलना या डकार जैसी भी समस्याएँ हो सकती हैं.

• इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS): - जो लोग आईबीएस यानि इरिटेबल बाउल सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं, वे कुछ प्रकार के खाद्य पदार्थों को पचाने में असमर्थ होते हैं. इस रोग से पीड़ित लोगों को मुख्य रूप से पेट में दर्द के लक्षण होते हैं, जो सामान्यतः मल त्याग के बाद ठीक हो जाता है. इस रोग में अन्य लक्षण गैस, मतली या पेट में फुलाव भी हो सकते हैं.

• एसिड रिफ्लक्स: - कभी-कभी पेट के एसिड पीछे की तरफ चले जाते हैं और गले तक पहुँच जाते हैं. जिस कारण से पेट में जलन और दर्द होता है. एसिड रिफ्लक्स में पेट संबंधी अन्य लक्षण जैसे फुलाव या मरोड़ भी होते सकते हैं.

• उल्टी: - किसी भी कारण से यदि उल्टी हो तो इससे पेट में दर्द या मरोड़ की समस्या हो सकती है. उल्टी से पेट में जलन भी हो सकती है.

• कब्ज: - कब्ज में आंतों में मल जमा हो जाते हैं व शरीर से बाहर नहीं निकलते हैं तब इस कारण से कॉलन में दबाव बढ़ जाता है. इस दबाव के वजह से कब्ज पीड़ित व्यक्ति के पेट में दर्द होने लगता है.

• गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफ्लक्स डीजीज (GERD): - जिन्हें GERD यानि गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफ्लक्स डीजीज रहता है उन्हें पेट में दर्द हो सकता है. इस बीमारी में पेट में दर्द के साथ ही छाती में जान और मतली भी हो सकती है.

• पेट या पेप्टिक अल्सर: - पेट का अल्सर या घाव यदि ठीक नहीं होते हैं तो वे पेट में गंभीर व अस्थिर दर्द पैदा कर सकते हैं. पेट या पेप्टिक अल्सर का सबसे सामान्य कारण बैक्टीरियल संक्रमण होता है. नॉन स्टेरॉयड एंटी इन्फ्लेमेटरी दवाओं (NSAIDS) का अधिक प्रयोग से भी पेप्टिक अल्सर हो सकता है.

• क्रोहन रोग: - क्रोहन रोग पाचन तंत्र के परतों में सूजन व जलन पैदा करता है, जिससे पेट में दर्द होता है. इस रोग में पेट में गैस का बनना, दस्त, उल्टी या पेट में फुलाव भी हो सकता है.

• सीलिएक रोग: - सीलिएक रोग में पेट में दर्द हो सकता है. सीलिएक रोग में ग्लूटेन से एलर्जी होने लगती है. ग्लूटेन एक प्रकार का प्रोटीन है जो कई प्रकार के अनाज जैसे गेहूँ, जौ इत्यादि में पाया जाता है. ग्लूटेन से एलर्जी होने पर छोटी आंत में सूजन व जलन होने लगती है, जिससे दर्द भी होता है. इस कारण से इस रोग में पेट में दर्द होती है.

• मांसपेशियों में खिंचाव या तनाव: - रोज के कामकाज के दौरान किसी भी कारण से यदि पेट की मांसपेशियों में चोट या खिंचाव आ जाता है तो इस कारण से पेट में मरोड़ की शिकायत हो सकती है. पेट की एकसरसाइज के कारण भी पेट की मांसपेशियों में खिंचाव हो सकता है.

• मासिक धर्म के दौरान: - मासिक धर्म के दौरान पेट में दर्द या मरोड़ की शिकायत हो सकती है. मासिक धर्म के दौरान पेट में जलन व सूजन या कब्ज जैसे समस्याएँ भी हो सकती है.

• मूत्र मार्ग या मूत्राशय में संक्रमण: - मूत्र मार्ग या मूत्राशय में बैक्टीरिया द्वारा संक्रमण के फैल जाने से भी पेट में मरोड़ की समस्या होती है. इस प्रकार संक्रमण होने से पेट के निचले हिस्से में फुलाव के अलावा दर्द व दबाव का अनुभव हो सकता है.
पेट में मरोड़ के इलाज- Pet Me Marod Ka Ilaj in Hindi
वैसे तो पेट में मरोड़ के इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि यह समस्या किस कारण से है. जिस कारण से भी पेट में मरोड़ हो उस आधार पर ही इसका सही इलाज किया जा सकता है. पर फिर भी कुछ घरेलू नुस्खे हैं जिससे पेट में मरोड़ के समस्या में आराम मिलता है. आगे ऐसे ही कुछ घरेलू नुस्खे की चर्चा करते हैं:
1. मेथी: - एक कटोरी में दही लेकर उसमें मेथी के कुछ दाने को पीसकर अच्छी तरह मिला लेना चाहिए. स्वाद के लिए इसमें थोड़ा सा काला नमक भी मिला सकते हैं. मेथी मिला इस दही के सेवन पेट की मरोड़ में लाभ पहुंचाता है.
2. ईसबगोल: - कई बार पेट में मरोड़ का कारण अपच हो सकता है. ऐसी स्थिति में दो चम्मच ईसबगोल एक कटोरी दही में मिलाकर खाना चाहिए. इससे आंतों की सफाई भी होती है व पेट की मरोड़ भी ठीक होती है.
3. आजवाइन: - पेट में मरोड़ होने पर तीन ग्राम आजवाइन को तवा पर भून कर इसमें सेंधा नमक या काला नमक मिलाकर पानी के साथ सेवन करना चाहिए. भुना हुआ आजवाइन को इस तरह दिन में दो बार सेवन करने से पेट की मरोड़ ठीक हो जाती है.
4. मूली: - पेट में मरोड़ होने पर मूली को अच्छी तरह धोकर व छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े में काट लेना चाहिए. फिर इन टुकड़ों पर काला नमक या सेंधा नमक और काली मिर्च छिड़क कर खा लेना चाहिए. इससे पेट के मरोड़ व दर्द में आराम मिलता है.

sabhar : lybrate.com

हिलते दाँतोँ को स्थिर करेगा और पायरिया जैसी व्याधियोँ से दूर रखेगा।इसे लटजीरा, अपामार्ग और चिरचिटा भी कहते हैँ और राजमार...
23/01/2024

हिलते दाँतोँ को स्थिर करेगा और पायरिया जैसी व्याधियोँ से दूर रखेगा।
इसे लटजीरा, अपामार्ग और चिरचिटा भी कहते हैँ और राजमार्गोँ व रेलवे लाइनोँ के किनारे बहुतायत मेँ पाया जाता है।
आप लटजीरा का पौधा उगा लेँ। साथ मेँ दो-चार बार इसका एक २-३ इञ्च का डण्ठल लेकर मुंह मेँ डाल लेँ और कम से कम ४-५ मिनट चबाने के पश्चात चबाया हुआ डण्ठल थूँक देँ। यह एक दातून के समान है पर इसके पश्चात कुल्ला न करेँ और निकले हुए रस को मुँह मॅ` ही रहने देँ। यह हिलते दाँतोँ को स्थिर करेगा और पायरिया जैसी व्याधियोँ से दूर रखेगा।

जानिए कुछ ऐसी बातें जो खाना खाते समय ध्यान रखनी चाहिए…खाना खाते समय यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो स्वास्थ्य लाभ के स...
05/01/2024

जानिए कुछ ऐसी बातें जो खाना खाते समय ध्यान रखनी चाहिए…

खाना खाते समय यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो स्वास्थ्य लाभ के साथ ही देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त की जा सकती है। यहां जानिए कुछ ऐसी बातें जो खाना खाते समय ध्यान रखनी चाहिए…

1. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंह करके भोजन करना चाहिए। इस उपाय से हमारे शरीर को भोजन से अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
2. दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके भोजन करना अशुभ माना गया है। पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके भोजन करने से रोगों की वृद्धि होती है।
3. कभी भी बिस्तर पर बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए। खाने की थाली को हाथ में लेकर भोजन नहीं करना चाहिए।
4. भोजन खड़े होकर नहीं, बल्कि बैठकर ही करना चाहिए। थाली को किसी बाजोट या लकड़ी की पाटे पर रखकर भोजन करना चाहिए।
5. टूटे-फूटे बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को स्नान करके और पूरी तरह से पवित्र होकर ही खाना बनाना चाहिए।
6. खाना बनाते समय मन शांत रखना चाहिए। साथ ही, इस दौरान किसी की बुराई भी ना करें।
7. भोजन बनाना शुरू करने से पहले इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए। किसी देवी-देवता के मंत्र का जाप भी किया जा सकता है।
8. भोजन करने से पहले अन्न देवता, अन्नपूर्णा माता का स्मरण करना चाहिए।
9. कभी-भी परोसे हुए खाने की बुराई नहीं करना चाहिए। इससे अन्न का अपमान होता है।
10. खाना खाने से पहले पांच अंगों (दोनों हाथ, दोनों पैर और मुंह) को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। मान्यता है कि भीगे हुए पैरों के साथ भोजन करना बहुत शुभ होता है। इससे स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होते हैं और उम्र बढ़ती है।

18/12/2023
नमस्कार दोस्तों ,ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी को सब तक पहुंचना चाहिए धन्लायवाद
14/12/2023

नमस्कार दोस्तों ,
ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी को सब तक पहुंचना चाहिए
धन्लायवाद

दही में नमक डालकर खाने की, आयुर्वेद के विशेषज्ञ कहते है यह आदत खतरनाक हो जाती है क्योंकि नमक डालने से दही जहर बन जाता है...
14/12/2023

दही में नमक डालकर खाने की, आयुर्वेद के विशेषज्ञ कहते है
यह आदत खतरनाक हो जाती है
क्योंकि नमक डालने से दही जहर बन जाता हैं
आइए जाने विस्तार से क्या है इस दावे का सच।
पिछले दिनों एक ही चर्चा सामने आई है की दही को अगर खाना है तो हमेशा मीठी चीजों के साथ खाना चाहिए जैसे चीनी गुड़ के साथ।
आयुर्वेद का कहना है कि दही में एसिडिक पाया जाता है, जिसको खाने से शरीर में पित्त और कफ बढ़ता है. हालांकि दही वात को कम करता है. वहीं, अगर आप दही में अधिक नमक डालकर इसे खाते हैं, तो इससे पित्त और कफ बढ़ता है. नमक एंटी-बैक्टीरियल है, जिससे दही में पाए जाने वाले अच्छे बैक्टीरिया मर जाते हैं.जिन लोगों को हाई ब्लड प्रेशर की प्रॉब्लम है, उन्हें दही में नमक का सेवन करने से बचना चाहिए.
जब दही को आप लेंस के सहारा से देखा जाता हैं तो उसमें असंख्य बैक्टीरिया चलते फिरते नजर आते हैं और यह बैक्टीरिया आपके शरीर में जीवित अवस्था में जाना चाहिए। क्योंकि जवाब दही खाते हैं तो आपके अंदर एंजाइम प्रोसेस सुचारु रुप से चलता है। दही और कोई भी खट्टा फल एक साथ कभी भी नहीं खाना चाहिए. क्योंकि दही मैं भी खट्टापन होता है और संतरा, अनानास,मोसंबी और नींबू जैसे फलों में भी खट्टापन होता है. इन में अलग-अलग तरह के एंजाइम्स पाए जाते हैं. जिसकी वजह से इन दोनों को एक साथ पचाने में आपको परेशानी हो सकती है.
दही में नमक डालकर खाने से क्या नुकसान होता है?
दही और नमक मिलाकर खाने से स्ट्रोक हाइपरटेंशन डिमेंशिया और अन्य हार्ट डिजीज होने की संभावना बढ़ सकती है। दही में कई तरह के लाभकारी बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो नमक मिलने के कारण मर जाते हैं। ऐसे में दही के सारे पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। दही और नमक का एक साथ सेवन करने से डाइजेस्टिव सिस्टम पर इसका असर पड़ता है।
आप दही को केवल इन्हीं बैक्टीरिया के लिए खाते हैं आयुर्वेद की भाषा में दही को जीवाणु का घर माना जाता है 1 कप दही में आपको करोड़ों जीवाणुओं नजर आएंगे।
अगर आप सही में यह जो एक चुटकी नमक मिला दे तो 1 मिनट में सारे बैक्टीरिया मर जाएंगे और मरे हुए व्यक्ति रिया आपके शरीर में जाएंगे जो आपके किसी काम के नहीं आयेंगे अगर 1 किलो दही में एक चुटकी नमक डालेंगे तो दही के सारे बैक्टीरियल गुण खत्म हो जाएंगे क्योंकि नमक में जो केमिकल है वह जीवाणु के दुश्मन है।
दही को गुड़ के साथ खाएंगे तो गुड डालते ही जीवाणुओं की संख्या दोगुनी हो जाती है और वह सेहत के लिए फायदेमंद हो जाता है।
अगर दही में मिश्री को डाला जाए तो सोने पर सुहागा हो जाता है भगवान श्री कृष्ण दही में मिश्री डालकर खाते है।

क्या है क्रैश डाइट Crash Diet Risk: आज के दौर में तेजी से बढ़ता वजन (weight) लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. स्लि...
12/12/2023

क्या है क्रैश डाइट
Crash Diet Risk: आज के दौर में तेजी से बढ़ता वजन (weight) लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. स्लिम ट्रिम दिखने की चाहत में लोग तरह तरह की डाइट लेते हैं. कहा जाता है कि कम समय में तेजी से वजन कम करने के लिए पिछले कुछ सालों में क्रैश डाइट (crash diet)का काफी क्रेज रहा है. बॉलीवुड की महान अदाकारा दिवंगत श्रीदेवी के लिए यही क्रैश डाइट जानलेवा बन गई. जी हां श्रीदेवी की मौत के 5 सालों बाद उनके पति बोनी कपूर ने खुलासा किया है कि श्रीदेवी(sridevi) मौत से पहले क्रैश डाइट से वजन कंट्रोल कर रही थी और क्रैश डाइट की कॉम्प्लिकेशन ही उनकी जान के लिए खतरनाक साबित हुई. बोनी कपूर ने कहा कि शादी के बाद वजन घटाने के लिए श्रीदेवी क्रैश डाइट जैसी मुश्किल डाइट लेती थीं और उसकी वजह से वो कई बार बेहोश भी हो गई थी. चलिए जानते बैं कि आखिर क्रैश डाइट क्या होती है और इसके क्या नुकसान हो सकते हैं.

क्या है क्रैश डाइट
हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि तेजी से वजन घटाने के लिए क्रैश डाइट को आजकल बहुत फॉलो किया जाता है. ये डाइटिंग की ही एक प्रोसेस है जिसमें डाइटिंग करने वाला बेहद कम कैलोरी खाकर वजन कम करता है. जैसे एक स्वस्थ इंसान के लिए एक दिन में करीब 2500 कैलोरी की जरूरत होती है. जबकि क्रैश डाइट करने वाला व्यक्ति एक दिन में केवल 700 से 900 कैलोरी का ही इनटेक करता है. कहा जाता है क्रैश डाइट करके एक हफ्ते में तीन किलो तक वजन कम किया जा सकता है. क्रेश डाइट में कुछ लोग नमक बिलकुल नहीं खाते हैं, इसके अलावा दिन के कैलोरी इनटेक में कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन भी बहुत ही कम मात्रा में लेते हैं, इसी के चलते हफ्ते भर में बहुत ज्यादा वेट लूज होता है.

क्रैश डाइट के खतरे
क्रेश डाइट अक्सर लाइमलाइट और सेलेब वर्ल्ड में रहने वाले वो लोग फॉलो करते हैं जिनको प्रेजेंटेबल दिखना होता है. क्रैश डाइट में चूंकि बहुत ही कम पोषण शरीर को मिलता है इसलिए इसके शरीर को कई सारे खतरे होते हैं. अगर पहले से कोई बीमारी है तो क्रैश डाइट जानलेवा भी हो सकती है. बीपी की समस्या वाले लोगों के लिए भी क्रैश डाइट काफी खतरनाक होती है.अगर कोई लंबे समय तक क्रैश डाइट कर रहा है तो उसे अवसाद, एंजाइटी, मसल्स लॉस, कमजोर हड्डियों, हेयर लॉस, डायबिटीज के जोखिम, नींद की परेशानी, ईटिंग डिसऑर्डर, कमजोरी, डिहाइड्रेशन और एनीमिया की दिक्कतें हो सकती हैं.

किस ओषधि के सेवन से शरीर की सभी नसो की ब्लॉकेज खुल जाती हैं?शरीर की नसों में रक्त प्रवाह को बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक जड़...
04/12/2023

किस ओषधि के सेवन से शरीर की सभी नसो की ब्लॉकेज खुल जाती हैं?

शरीर की नसों में रक्त प्रवाह को बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां एक प्राकृतिक और सुरक्षित उपाय है। यह जड़ी-बूटियां शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करती है और साथ ही रक्त प्रवाह को सुधारती भी हैं।

शरीर की नसों में रक्त प्रवाह बढ़ाने वाली आयुर्वदिक जड़ी बूटियाँ

अर्जुन छाल (Arjuna Bark):
अर्जुन छाल में हृदय के स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए गुण होते हैं और इससे रक्त प्रवाह में सुधार होता है।
अर्जुन छाल को रोजाना 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम के बीच में सेवन कर सकते हैं।

गोटु कोला (Gotu Kola):
यह जड़ी-बूटी मानसिक तनाव को कम करने, यौन रोगों का इलाज और रक्त प्रवाह में सुधार करने के लिए उपयोग की जाती है।
गोटु कोला पाउडर को आप 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम मात्रा रोजाना सेवन कर सकते हैं।

अश्वगंधा (Ashwagandha):
अश्वगंधा शरीर को स्ट्रेस से निकालने में मदद करती है और रक्त प्रवाह को सुधारती है।
अश्वगंधा पाउडर को 1-3 ग्राम रोजाना सेवन कर सकते हैं।

त्रिफला (Triphala):
त्रिफला एक औषधि है जिसमें तीन फलों का मिश्रण है। यह रक्त प्रवाह को सुधारने में मदद कर सकती है और पाचन को भी सुधार सकती है।
1 चम्मच (1 ग्राम की मात्रा) त्रिफला पाउडर को रात में गरम पानी के साथ ले सकते हैं।

गोखरू (Gokshura): गोखरू का सेवन रक्त प्रवाह को बढ़ाने और मूत्र तंत्र को सुधारने में मदद कर सकता है।
1 चम्मच (1 ग्राम की मात्रा) गोखरू पाउडर की दिन में दो बार ले सकते हैं।

शंखपुष्पी (Shankhpushpi): शंखपुष्पी का सेवन रक्त प्रवाह को सुधारने साथ-साथ यह मानसिक को सुधारता है।
शंखपुष्पी पाउडर को दिन में दो बार 1-2 ग्राम मात्रा (1-2 चम्मच) तक लिया जा सकता है।

खट्टे फलों का सेवन:
खट्टे फलों का सेवन रक्त प्रवाह में सुधार करते हैं. रोजाना एक नींबू का रस पीना आदि। रोजाना एक नींबू का रस पीने से लाभ हो सकता है।
संक्षेप में,

वैसे आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के सेवन का साइड इफ़ेक्ट न बराबर होता है लेकिन, प्रत्येक व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य अलग होता है, इसलिए यदि कोई व्यक्ति इन जड़ी-बूटियों का सेवन करना चाहता है, तो उसे पहले एक वैद्य से सलाह लेनी चाहिए।

साथ ही, स्वस्थ आहार, नियमित योग आसान और प्राणायाम, और अच्छी जीवनशैली का पालन करना भी रक्त प्रवाह में सुधार करने के लिए जरुरी है।

बार बार सर्सदी जुकाम से परेशान सर्दी में सर्दी जुकाम से जुडी अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी नाक और गले का एक आम वायरल संक्रमण...
30/11/2023

बार बार सर्सदी जुकाम से परेशान
सर्दी में सर्दी जुकाम से जुडी अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी

नाक और गले का एक आम वायरल संक्रमण.
फ़्लू के विपरीत, जुकाम अलग-अलग तरह के वायरस के कारण हो सकता है. यह आमतौर पर हानिरहित होता है और दो सप्ताह के भीतर लक्षण आमतौर पर खत्म हो जाते हैं.
लक्षणों में बहती नाक, छींकना और नाक बंद होना शामिल हैं. विशेष रूप सेे बच्‍चों में तेज़ बुखार या गंभीर लक्षण दिखाई देने पर डाॅक्‍टर को दिखाना ज़रूरी है.
अधिकांश लोग दो सप्ताह के भीतर अपने आप ठीक हो जाते हैं. पर्चे के बिना मिलने वाले उत्पादों और घरेलू उपचार लक्षणों के नियंत्रण में मदद कर सकते हैं.

सर्दी किसकी कमी से होती है?
अगर आपको बार-बार जुखाम सर्दी खांसी इत्यादि की समस्या सताती है तो आपके शरीर में विटामिन डी की कमी हो सकती है।

बार बार सर्दी होने का क्या कारण है?
पहला – अगर आपको बार-बार सर्दी-खांसी और जुखाम की समस्या होती रहती हैं, तो इसके पीछे बैक्टीरियल इंफेक्शन कारण होता है, जो साइनस का कारण भी बन सकता है। दूसरा – अगर व्यक्ति किसी खास प्रकार की एलर्जी या धूल-प्रदूषण से होने वाली एलर्जी से ग्रस्त है, तो उसे साइनस होने का खतरा हो सकता है

सर्दी में सर्दी जुकाम क्यों होता है?
जुकाम या फ्लू वैसे वायरस से होता है, जो श्वासनली को प्रभावित करते हैं। ये छूत की तेजी से फैलनेवाली बीमारी है, जो बीमार व्यक्ति के खांसने या छींकने से आसानी से फलती है। जुकाम या फ्लू वैसे वायरस से होता है, जो श्वासनली को प्रभावित करते हैं।

सर्दी में ताकत के लिए क्या खाएं?
आइए जानते हैं उन फूड्स के बारे में...
1. तिल खाएं सर्दियों में तिल का सेवन करना काफी फायदेमंद होता है। ...
2. खजूर का सेवन करें खजूर में विटामिन-ए, विटामिन-बी, कैल्शियम, पोटैशियम और अन्य विटामिन्स भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं। ...
3. हल्दी खाएं ...
4. गुड़ खाएं ...
5. अदरक का सेवन करें

सर्दी दूर करने के लिए क्या खाएं?
सर्दी होने पर लहसुन का सेवन काफी कारगर माना जाता है. सर्दी होने पर लहसुन को सूप या आपने रोज के खाने में मिलाकर सेवन कर सकते हैं. लहसुन का सेवन करने से फ्लू और इंफेक्शन का खतरा भी कम होता है. केल, ब्रोकोली, क्रैनबेरी, ग्रीन टी, लाल प्याज, ब्लूबेरी जैसे सभी फूड्स में एंटीऑक्सिडेंट क्वेरसेटिन होता है.

किस विटामिन की कमी से आपको सर्दी लगती है?
विटामिन बी12 की कमी और आयरन की कमी से एनीमिया हो सकता है और आपको ठंड लग सकती है। बी12 के अच्छे स्रोत चिकन, अंडे और मछली हैं, और आयरन की कमी वाले लोग पोल्ट्री, सूअर का मांस, मछली, मटर, सोयाबीन, छोले और गहरे हरे पत्तेदार सब्जियां लेना चाहेंगे।

सर्दी जुकाम में क्या नहीं खाना चाहिए?
सर्दी-जुकाम में नींबू और संतरे जैसी चीजों को खाने से बचना चाहिए, हालांकि आप सर्दियों के मौसम में पहले से नींबू या संतरे जैसी चीजों को खाकर इम्यून सिस्टम को मजबूत कर सकते हैं. सर्दी-जुकाम या फ्लू में खट्टी चीजें गला खराब भी कर सकती हैं. डेयरी प्रॉडक्ट्स ऐसे हैं जिनके सेवन से सर्दी-जुकाम बढ़ सकता है.

सर्दी के लिए काढ़ा कैसे बनाते हैं?
अदरक का काढ़ा बनाने के लिए पानी उबालें और उसमें अदरक, काली मिर्च, हल्दी, अजवाइन और तुलकी की पत्तियां मिलाकर तब तक उबालें जब तक ये आधा न हो जाए. जब ये उबल जाए तो गैस बंद कर दें और इसमें नींबू का रस और शहद मिलाकर पिएं. सर्दी-जुकाम और खांसी में तुरंत आराम मिलना शुरू हो जाएगा.

सर्दी-खांसी और जुकाम से राहत के लिए घरेलू उपचार | Home Remedies For Common Cold And Cough
1. अदरक की चाय (Ginger Tea)
2. आंवला का सेवन (Amla Consumption)
3. शहद का सेवन (Honey Consumption)
4. खांसी के लिए रामबाण दवा है तुलसी (Tulsi Home Remedy For Cough In Hindi)
5. एलोवेरा (Aloe Vera)
6. अलसी (Flaxseed)
7. हल्दी दूध (Turmeric Milk)

इलाज में जलनरोधी दवाएं और बंद नाक खोलने वाली दवाएं शामिल हैं
अधिकांश लोग दो सप्ताह के भीतर अपने आप ठीक हो जाते हैं. पर्चे के बिना मिलने वाले उत्पादों और घरेलू उपचार लक्षणों के नियंत्रण में मदद कर सकते हैं

चिकित्सक की सलाह अवस्य लें

नेचुरोपैथी मेडिसिन एक सिस्टम नेचुरोपैथी यानी प्राकृतिक चिकित्सा उपचार के लिए पंच तत्वों आकाश, जल, अग्नि, वायु और पृथ्वी ...
12/11/2022

नेचुरोपैथी मेडिसिन एक सिस्टम
नेचुरोपैथी यानी प्राकृतिक चिकित्सा उपचार के लिए पंच तत्वों आकाश, जल, अग्नि, वायु और पृथ्वी को आधार मानकर चिकित्सा सम्पन्न की जाती है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति पंच महाभूतत्वों (मिट्टी, पानी, धूप, हवा व आकाश) पर आधारित है। डॉक्टर से सलाह लेकर घर पर ही इलाज संभव है।

नेचुरोपैथी का इलाज कैसे होता है?

नेचुरोपैथी मेडिसिन एक सिस्टम है जिसमें शरीर को अपने आप हील करने के लिए प्राकृतिक रेमेडीज का प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में अलग-अलग थेरेपी, हर्ब्स, मसाज, एक्यूपंक्चर, एक्सरसाइज और न्यूट्रीशनल काउंसलिंग शामिल है। यह प्रक्रिया कोई नई चिकित्सा पद्धति नहीं है बल्कि सदियों से इसका प्रयोग किया जाता रहा है।

प्राकृतिक चिकित्सा क्या है और इसके फायदे?
प्राकृतिक चिकित्सा, यह एक ऐसी अनूठी प्रणाली है जिसमें जीवन के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक तलों के रचनात्मक सिद्धांतों के साथ व्यक्ति के सद्भाव का निर्माण होता है। इसमें स्वास्थ्य के प्रोत्साहन, रोग निवारक और उपचारात्मक के साथ-साथ फिर से मज़बूती प्रदान करने की भी अपार संभावनाएं हैं।

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोग का कारण क्या है?
प्राकृतिक चिकित्सा में पंच तत्वों को प्रयोग करके ही चिकित्सा की जाती है। पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, आकाष इन तत्वों से ही शरीर का निर्माण हुआ है। इन तत्वों के असंतुलन के कारण ही रोग या विकृति उत्पन्न होती है। प्राकृतिक चिकित्सा में पंच तत्वों का संतुलन बनाकर रोग दूर होते है ।

प्राकृतिक चिकित्सा का क्या असर होता है?
प्राकृतिक चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य और अपने परिवार के स्वास्थ्य की देखभाल करने, किसी भी बीमारी के लक्षणों को कम करने, शरीर की चंगा करने की क्षमता का समर्थन करने और शरीर को संतुलित करने के लिए शिक्षित करना है ताकि भविष्य में बीमारी होने की संभावना कम हो। व्यक्ति का समर्थन करने के लिए कई प्रकार के उपचारों का उपयोग किया जाता है।

इतिहास के पन्नों में सबसे अनजानी जानकारी क्या है?द जंगल बुक की कहानी आंशिक रूप से जंगली बच्चों की सच्ची कहानियों पर आधार...
12/11/2022

इतिहास के पन्नों में सबसे अनजानी जानकारी क्या है?
द जंगल बुक की कहानी आंशिक रूप से जंगली बच्चों की सच्ची कहानियों पर आधारित है। लेकिन यह शायद ही कोई जानता है कि असली मोगली की असली तस्वीर उपलब्ध है। उसका नाम दीना सानिचर था।
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दीना 1867 में भारत में 7 साल की उम्र में मिला था। उसे भेड़ियों ने पाला था। शिकारियों ने उसे भेड़ियों से घिरी एक गुफा में सोते हुए पाया। उसने उसी तरह हरकत की जैसे एक बंदी भेड़िया शावक इंसानों द्वारा उठाए जाने पर प्रतिक्रिया देगा।

दीना माता-पिता या किसी वास्तविक मानवीय संपर्क के बिना बड़ा हुआ और मानवीय भाषण में असमर्थ था। ऐसा पहले भी देखा गया था, जैसे कि जंगली बच्चे जिनी के मामले में, जो अपनी युवावस्था में एक तहखाने में बंद था। एक निश्चित महत्वपूर्ण पड़ाव होता है जिसके बाद बच्चे बोलना नहीं सीख सकते।

दीना उस पड़ाव को पार कर चुका था। जब वह पाया गया, वह गुर्राता रहा और कुत्ते की तरह व्यवहार करता रहा। अनाथालय में उसका एकमात्र दोस्त भी एक वास्तविक कुत्ता था। और बाद में, उसने एक और जंगली बच्चे से मित्रता कर ली जिसे वहां लाया गया था।
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दीना हमेशा चारों हाथों-पैरों पर चलता था और जानवरों के आसपास सहज महसूस करता था, उसे उग्र जुनून के साथ सभ्य बनाने के किसी भी प्रयास के बदले विरोध मिला। उसने नियमित मानव भोजन का विरोध किया। वह विशेष रूप से कच्चा मांस खाने का आदी था। दीना को जो कुछ भी भेंट किया जाता था, वह पहले सूंघता था। और उसे जो भी हड्डियाँ मिलतीं, वह भेड़िये की तरह अपने दाँतों को तेज करने के लिए अंतहीन कुतरता।
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मोगली को असल जिंदगी में देखना अद्भुत है। लोगों के लिए पुस्तक और फिल्म को संशोधित किया गया था, क्योंकि यह वास्तविकता दिखाने के लिए बहुत निराशाजनक होता। दीना ने कभी बात नहीं की लेकिन इंसानों से एक बुरी आदत सीखी: धूम्रपान। 1895 में 35 वर्ष की आयु में फेफड़ों की बीमारी से उसकी मृत्यु हो गई।
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