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आत्मकारक ग्रह से होता है इष्ट देव या देवी का चुनावभारतीय संस्कृति ज्ञान, कर्म और भक्ति का संगम है। इनकी अपनी-अपनी महत्ता...
02/10/2024

आत्मकारक ग्रह से होता है इष्ट देव या देवी का चुनाव

भारतीय संस्कृति ज्ञान, कर्म और भक्ति का संगम है। इनकी अपनी-अपनी महत्ता है। कोई ज्ञान के आधार पर खुद की मुक्ति का मार्ग ढूंढता है, तो कोई कर्म को अपना माध्यम बनाता है। लेकिन भक्ति भाव को आधार बनाना सबसे अनुकूल होता है। वैसे भी ज्ञान, कर्म और भक्ति में भक्ति को सरल व सहज प्राप्ति वाला मार्ग बताया गया है। गीता में भी भगवान श्री कृष्ण जब अर्जुन को समझाते-समझाते थक गए, तब कहते हैं-

"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज,
अहं तवां सर्वेपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः"

(सब धर्मो को त्याग कर एकमात्र मेरी ही शरण में आ जाओ। मैं तुम्हे समस्त पापो से मुक्त कर दूंगा। तुम डरो मत।)

कैसे करें ? इष्टदेव की पहचान

भक्ति व अध्यात्म से जुड़े अधिकांश लोगों के मन में अक्सर यह सवाल उठते रहता है। मेरे इष्ट कौन हैं, हमें किस देवता की पूजा करनी चाहिए? जान लीजिए कि हर जातक का एक आत्मकारक ग्रह होता है। इसी से उसके इष्ट का चुनाव होता है। किसी के प्रिय शिव जी हैं तो किसी के विष्णु, तो कोई राधा कृष्ण का भक्त है, तो कोई हनुमानजी का। और कोई-कोई तो सभी का एक-एक कर स्मरण करता है। लेकिन कहा जाता है न, “एक साधै सब सधै, सब साधै सब जाय।"

इष्टदेव कैसे दिलाते हैं सफलता

अब प्रश्न उठता है कि देवी-देवता हमें कैसे लाभ या सफलता दिलाते हैं। दरअसल जब हम किसी भी देवी-देवता की पूजा करते है। तो हम मंत्र के माध्यम से अपने पास बुलाते हैं। और आह्वाहन करने पर देवी-देवता उस स्थान विशेष व हमारे शरीर में आकर विराजमान होते हैं। वास्तव में सभी दैवीय शक्तियां अलग-अलग निश्चित चक्र में हमारे शरीर में पहले से ही विराजमान होती हैं।

आप या हम पूजा अर्चना के माध्यम से ब्रह्माण्ड में उपस्थित दैवीय शक्ति को अपने शरीर में धारण कर, शरीर में पहले से विद्यमान शक्तियों को सक्रिय कर देते हैं। और इस प्रकार से शरीर में पहले से स्थित ऊर्जा जाग्रत होकर अधिक क्रियाशील हो जाती है। ज्योतिष के माध्यम से हम पूर्व जन्म की दैवीय शक्ति या ईष्टदेव को जानकर तथा मंत्र साधना से मनोकामना पूरी करते हैं।

इष्टदेव निर्धारण के अलग-अलग आधार

ईष्टदेव को जानने की विधियों में भी विद्वानों में एक मत नही है। कुछ लोग नवम भाव, उस भाव से संबंधित राशि और राशि के स्वामी के आधार पर ईष्टदेव का निर्धारण करते हैं। वहीं कुछ लोग पंचम भाव व उस भाव से संबंधित राशि या राशि के स्वामी के आधार पर ईष्ट का निर्धारण करते हैं। जबकि कुछ विद्वान लग्न लग्नेश व लग्न राशि के आधार पर इष्ट का निर्धारण करते हैं। त्रिकोण भाव में सबसे बलि ग्रह के अनुसार भी इष्ट का चयन किया जाता है।

इष्ट के निर्धारण में सवसे सटीक विधि बताने वाले महर्षि जैमिनी जैसे विद्वान के अनुसार, कुंडली में आत्मकारक ग्रह के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करना चाहिए। अब फिर से सवाल उठता है कि कुंडली में आत्मकारक ग्रह का निर्धारण कैसे होता है? महर्षि जेमिनी के अनुसार जन्मकुंडली में स्थित नौ ग्रहों में जो ग्रह सबसे अधिक अंश पर होता है। चाहे वह किसी भी राशि में क्यों न हो, वह आत्मकारक ग्रह होता है। कारकांश कुंडली में 12वें भाव से इसका पता लगाया जाता है।

इष्टदेव का निर्धारण पंचम भाव से

इष्टदेव या देवी का निर्धारण हमारे जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों से होता है। ज्योतिष में जन्म कुंडली के पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित धर्म, कर्म, ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, भक्ति और इष्टदेव का बोध होता है। यही कारण है अधिकांश विद्वान इस भाव के आधार पर इष्ट का निर्धारण करते हैं। जबकि नवम भाव से उपासना के स्तर का ज्ञान होता है ।

यदि जन्म का सही ब्यौरा नहीं रहने के कारण कुंडली का ज्ञान नहीं है। और आप अपने इष्ट निर्धारण नहीं कर पा रहे हैं। तो आपका सहज झुकाव ईश्वर के जिस स्वरुप की ओर हो, वही आपके ईष्ट हैं। आपको उनकी ही पूजा-उपासना करनी चाहिए।

पंचम भाव में स्थित ग्रह के आधार पर इष्ट का चयन

सूर्य- विष्णु, राम
चन्द्र- शिव, पार्वती, कृष्ण
मंगल- हनुमान, कार्तिकेय, स्कन्द,
बुध- दुर्गा, गणेश,
वृहस्पति- ब्रह्मा, विष्णु, वामन
शुक्र- लक्ष्मी, मां गौरी
शनि- भैरव, यम, हनुमान, कुर्म,
राहु- सरस्वती, शेषनाग, भैरव
केतु- गणेश, मत्स्य

पंचम भाव में स्थित राशि के आधार इष्ट का निर्धारण

मेष: सूर्य, विष्णुजी
वृष: गणेशजी
मिथुन: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी
कर्क: हनुमानजी
सिह: शिवजी
कन्या: भैरव, हनुमानजी, काली
तुला: भैरव, हनुमानजी, काली
वृश्चिक: शिवजी
धनु: हनुमानजी
मकर: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी
कुंभ: गणेशजी
मीन: दुर्गा, सीता या कोई देवी

(नोट- इष्ट देव के चयन के लिए कुंडली विश्लेषण सहायक भूमिका निभाता है। इसके लिए किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श लें)

ज्योतिष शास्त्र में भाई-बहन या सन्तान की जानकारी के लिए नवमांश, द्रेष्कोण और सप्तमांश चार्ट का सहारा लिया जाता है। प्रसि...
20/09/2024

ज्योतिष शास्त्र में भाई-बहन या सन्तान की जानकारी के लिए नवमांश, द्रेष्कोण और सप्तमांश चार्ट का सहारा लिया जाता है। प्रसिद्ध पुस्तक 'सवार्थ चिंतामणि' लिंग निर्धारण के संकेत दिए गए हैं।

पुरुष ग्रह हैं - सूर्य, मंगल, गुरु, राहु, और कोई भी उच्च के ग्रह।

स्त्री ग्रह हैं - चन्द्रमा, शुक्र, केतु और कोई भी नीच के ग्रह।

यहां ध्यान देंगे, बुध या शनि पुरुष या स्त्री हो सकते हैं। यह राशि और ग्रहों की युति/दृष्टि पर निर्भर करता है।

जब कोई ग्रह वक्री हो जाता है तो अपना लिंग बदल लेता है। यानी पुरुष ग्रह स्त्री और स्त्री ग्रह पुरुष में बदल जाता है।

पुरुष राशियां हैं - मेष (1), सिंह (5), तुला (7), धनु (9), कर्क (4), वृश्चिक (8)

स्त्री राशियां हैं - वृषभ (2), कन्या (6), मकर (10), मीन (12), मिथुन (3), कुम्भ (11)

जब एक ग्रह किसी राशि में अकेला स्थित है। इसमें राशि व ग्रह अलग-अलग हैं। तो राशि का लिंग महत्वपूर्ण होता है। यहां ग्रह पर किसकी दृष्टि है ये भी देखते हैं। हालांकि यह नियम प्रायः नहीं लागू नहीं होता।

एक नया तरीका है जिसके अनुसार अपने से निकटतम बड़े या छोटे सहोदर (भाई) का लिंग निर्धारण किया जाता है।

1. ज्येष्ठ सहोदर - द्रेष्कोण कुंडली में इसके लिए एकादश स्थान को देखेंगे। इसके स्वामी और गुरु नवांशेश भी निर्धारित करेंगे। द्रेष्कोण चार्ट में नवांश स्वामी की स्थिति भी लिंग निर्धारण करेगी।

2. कनिष्ठ सहोदर - इसके लिए द्रेष्कोण कुंडली मे तृतीय स्थान के स्वामी को देखेंगे। मंगल नवांशेश का भी निर्धारण करेंगे। यानी ज्येष्ठ सहोदर के किए गुरु और कनिष्ठ सहोदर के लिए मंगल देखे जाते हैं। स्थानों के स्वामी अधिक महत्व रखते हैं।

श्रीकांत सौरभ

श श श... शनि देव को जान लें, भाग जाएंगे दुखशनि देव को लेकर आम जनमानस में इतना डर फैला दिया गया है कि हर जगह अब इनके मंदि...
19/09/2024

श श श... शनि देव को जान लें, भाग जाएंगे दुख

शनि देव को लेकर आम जनमानस में इतना डर फैला दिया गया है कि हर जगह अब इनके मंदिर बनने लगे हैं। लोग इन मंदिरों में जाकर पूजा करने लगे हैं कि वे रहम बरसाएं और रातोंरात उनके सारे पाप कट जाएं। लेकिन क्या आपको लगता है, बिना कर्म या नीयत में सुधार किए, वे आपकी गुहार इतनी आसानी सुन लेंगे। बिल्कुल नहीं। अरे भाई, जीवन में आप कुछ नियम बनाइए, अनुशासन में रहकर ईमानदारी से मेहनत करिए, वो सबसे महत्वपूर्ण है।

चूंकि शनि देव का रंग काला है, लंगड़ाकर चलते हैं। सूर्य के पुत्र हैं लेकिन पिता-पुत्र में छतीस का आंकड़ा रहता है। सूर्य तो फिर भी पुत्र होने के कारण उनसे स्नेह रखते हैं। लेकिन शनि उन्हें देखना तक पसंद नहीं करते। उनसे बहुत दूर निवास करते हैं। मंदगामी हैं, इसलिए उनका रिजल्ट भी देरी से मिलता है। इनके प्रभाव वाला जातक शीत, वायु प्रधान, घने-मोटे बाल, सामान्य से बड़े, अटपटे दांत वाला होता है। खड़े होने पर दोनों घुटने सटते हैं।

जब इनकी महादशा आती है तो लोग इतना डर जाते हैं कि पूछिए मत। पंडितों व ज्योतिषियों के पास चक्कर पर चक्कर लगाएंगे। लेकिन समस्या है कि जाने का नाम ही नहीं लेती। या ऐसे कहें कि बढ़ ही जाती है। जबकि सबको पता है शनि देव दण्डाधिकारी हैं। जब बुरे कर्म किए होंगे तो कठोरता से उसका फल भी भुगतना होगा। इस मामले वे कोई भी ढिलाई नहीं करते।

इनको बिल्कुल से शांत तो नहीं किया जा सकता। लेकिन कुछ उपायों से स्थिति को नियंत्रित जरूर किया जा सकता है। उपाय ये है कि सबसे पहले तो आप किसी के साथ गलत मत करिए। क्योंकि चाहे 20 वर्ष ही क्यों न लग जाए। ये एक-एक करके आपके किए का फल देंगे। तभी तो आपको दूसरों के साथ किया गया गलत याद आएगा।

फिर मन में सवाल उठता है कि क्या करें? इनके लिए सबसे उत्तम हनुमान जी की पूजा है। इनकी जितनी पूजा कर सकते हैं कीजिए। मजदूर, सफाई कर्मचारी, सिक्योरिटी गार्ड या वैसे लोग जो समाज मे छोटी-मोटी नौकरी या मेहनत करते हैं। उनसे अभद्रता से पेश नहीं आएं।

किसी ऐसे व्यक्ति को दान दें जो मैले-कुचले कपड़े पहनते हों या दिव्यांग हों। दीन-हीनों की सेवा करें। मांस मदिरा का सेवन न करें। मंगलवार और शनिवार को तो बिल्कुल भी नहीं। जानवरो को न सताएं। काले कुत्ते को बिस्कुट दें। भोजन कराएं। काली गाय की सेवा करें। शनिवार को सुबह में पीपल पेड़ को जल दें, पेड़ के नीचे सुबह या शान दीपक भी जलाएं।

यदि शनि देव कुंडली के खराब भाव में बैठकर कोप भजन का शिकार बना रहे तो जूते, चप्पल, लोहा व शनि से जुड़ी वस्तुओं की खरीदारी शनिवार व मंगलवार को न करें। इस दिन सुंदरकांड का पाठ जड़ें। शनि से जुड़ी वस्तुओं का दान न लें। जीवन में कुछ नियम कायदे बनाये उनका पालन करें। आलस नहीं कर कोई भी काम कल पर न टालें। गंदगी को आसपास न रखें। अपना काम जितना हो स्वयं करे।

बस इतना ही तो करना है। सभी उपाय नहीं कर पाएंगे, तो कुछ कम भी चलेगा, लेकिन करने ही होंगे। और हां इनकी चाल बहुत धीमी है तो एकदम से सब कुछ बदल जाएगा, इसकी आशा न करें। ये कहते हैं, आप बदलो, हम भी आपके लिए बदल जाएंगे। बाकी ना तो कोई बहुत बड़ी पूजा, ना ही कोई कर्म फल ही टाल सकता हैं। ये बात भी गांठ बांध कर रख लीजिए, शनि देव गिराके, सिखाके एक दिन आदमी को शिखर पर भी पहुंचा देते हैं।

श्रीकांत सौरभ

ज्योतिषी के चक्कर से कैसे मिलेगा छुटकारा?कुंडली विश्लेषण के बाद मैं जातकों की समस्या का पता लगा, उन्हें सरल, सहज व प्रकृ...
18/09/2024

ज्योतिषी के चक्कर से कैसे मिलेगा छुटकारा?

कुंडली विश्लेषण के बाद मैं जातकों की समस्या का पता लगा, उन्हें सरल, सहज व प्रकृति से जुड़े उपाय बताने का भरसक प्रयास भी करता हूं। इसमें ज्यादातर विधियां ग्रहों से जुड़े उपाय, मन्त्रोच्चारण, सूर्य और हर-भरे पौधे को जल देने, कुत्ते या गऊ माता को रोटी खिलाने, कौवे या चिड़ियों को दाना देने और इष्ट की आराधना आदि से होती हैं। विधि सम्मत पालन करने पर जातक को इसका लाभ मिलते भी देखा गया है।

आश्चर्य तब होता है जब कोई कहता है कि उनके टू या थ्री बीएचके वाले फ्लैट में वैसी जगह ही नहीं, जहां से खड़े होकर सूर्य देव को जल दे सकें। हरे-भरे पौधे या तो हैं ही नहीं या उन्हें लगाने की सुविधा नहीं कि उस पर जल दे सकें। यहां तक पार्क की भी सुविधा नहीं, जिसकी हरी घास पर सुबह में टहल सकें। कमरे में एसी है, एयर व वाटर प्यूरीफाई मशीन है। फ्रिज, वाशिंग मशीन, मिक्सर ग्राइंडर, एक्वागार्ड का वैक्यूम क्लीनर है। फिर प्राकृतिक चीजों से क्या लेना-देना भला।

अधिकांश लोग इसी भ्रम में रहते हैं कि बाहर की कोई भी चीज शुद्ध नहीं। इसलिए कृत्रिम संसाधनों को अधिक से अधिक जुटाया जाए। तो इतना जान लीजिए पंच महाभूतों से बना यह शरीर, बिना पांचों तत्वों का सहारा लिए ज्यादा दिनों तक टिक भी नहीं सकता। और कृत्रिम चीजें कभी भी प्राकृतिक संसाधनों की जगह नहीं ले सकतीं।

मैं नहीं कहता कि महज सूर्य को जल देने के लिए, सभी कोई ग्राउंड फ्लोर या सबसे उपरी मंजिल पर ही रहे। या शहर में रहना ही छोड़ दें। लेकिन हमें आवास लेते समय क्या इन पहलुओं पर विचार नहीं करना चाहिए। या अपार्टमेंट के मालिक को बनवाते समय क्या इस पर विचार नहीं करना चाहिए। समस्या महज यहीं नहीं हैं। थोड़ा ध्यान दीजिए, अपार्टमेंट संस्कृति और ईएमआई पर टिकी शहरी ठाट ने हमें अपनी जड़ों से काटकर भले ही बहुत कुछ दिया है। बैंक बैलेंस, गाड़ी, मॉल, पब, मल्टीप्लेक्स, रेस्टोरेंट, मल्लब हाई टेक, सुविधाभोगी ज़िंदगी और जाने क्या-क्या।

लेकिन इस सबके बीच पिता (सूर्य), माता (चन्द्रमा), भाई-बहन (मंगल, बुध), दादा-दादी (राहु), पंडित, शिक्षक (गुरु), गाय, कुत्ते, कौए, जानवरों (केतु) के लिए दिल या घर के किसी कोने में कोई जगह बची है क्या। यदि नहीं तो शुक्रदेव (भोग-विलास) व तकनीकी की गुलामी कीजिए। अपनी परंपराओं, सनातन संस्कारों को तिलांजलि देकर, रिश्ते-मर्यादाओं को तार-तार कर, नीच कामों में संलिप्त होकर, भरपूर भौतिक संसाधन जुटाइए। और पाप व क्रूर ग्रह, केतु, राहु, सूर्य, मंगल के साथ न्याय के देवता (शनिदेव) के कोपभाजन का शिकार बनिए। दंड भोगिए।

कभी सोचा है, इतनी कम उम्र में डिप्रेशन, सुसाइड, एंग्जायटी, फैटी लिवर, अस्थमा, आईबीएस, हर्ट अटैक, सुगर, बीपी, व्यभिचार, तलाक आदि के बढ़े केसेज दंड नहीं तो और क्या हैं। यदि हम मर्यादाओं का पालन नहीं करेंगे तो इतना याद रखिए। इन लाइलाज समस्याओं के उपचार में किसी पंडित/ज्योतिषी के सुझाए गए उपायों का प्लेसिबो या चमत्कारिक असर कभी भी काम नहीं कर पाएगा।

श्रीकांत सौरभ

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