Coral Clab

Coral Clab पीने का पानी स्वास्थ्य का एक स्रोत है

31/07/2019

पानी ही पानी, लेकिन पीने को बूंद भी नहीं
नयी दिल्ली 18 अप्रैल (आईपीएस)/ भारत में प्रदूषित पानी की आपूर्ति के कारण 3.37 करोड़ से अधिक लोग पानी से होने वाली बीमारियों के शिकार हैं। नए आंकड़ों के मुताबिक हर साल लगभग 15 लाख से अधिक बच्चों की डायरिया के कारण मौत हो जाती है।
अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन वाटर एड और सरकार के बीच सहयोग से जो आंकड़े सामने आएं हैं वे उन सरकारी दावों के उलट हैं जिनमें कहा गया था कि 94 फीसदी शहरी और 91 फीसदी ग्रामीण आबादी को अब पीने का साफ़ पानी मिल रहा है।
वाटर एड के मुताबिक अंतर यह भी है कि अभी तक आधिकारिक आंकड़ों में आपूर्ति किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता का कोई ज़िक्र नहीं है। यह भी नहीं बताया गया कि क्या पानी की आपूर्ति साल भर होती है?
यूनिसेफ के जल, पर्यावरण और सफाई के प्रमुख लिजेट बर्जर का कहना है कि लाखों लोगों तक पानी पहुंचाने की भारत की कोशिश के बावजूद, “बढ़ती आबादी, जीवाणु संक्रमण, और दूसरी समस्याओं के कारण पानी की प्रभावी पहुंच में काफी अंतर है।”
लिजेट बर्जर
लिजेट बर्जर
यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक बिना साफ़-सफ़ाई की सुविधाओं के बीच जीने वाली दुनिया की कुल आबादी का एक तिहाई केवल भारत में रहती है। बर्जर कहते हैं, “भारत में इंसानों और पशुओं को पानी की गुणवत्ता के साथ समझौता करना पड़ता है।“ उनका कहना है “दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं कि वह इस क्षेत्र में सहस्राब्दि लक्ष्य, एमडीजी के लिए क्या करता है।“

भारत एमडीजी के तहत पानी के क्षेत्र में 2015 तक साफ़ पानी से वंचित आबादी की संख्या आधी करने के लिए प्रतिबद्ध है।

वाटर एड इंडिया के दिपिंदर कपूर कहते हैं कि उनके संगठन को पूरे भारत में विभिन्न समुदायों से अपने सघन अभियान के दौरान प्रदूषित पानी के बारे में गहरी हिदायत मिली। कपूर कहते हैं कि वाटर एड का अनुभव है कि भारत में प्रदूषित पानी की आपूर्ति का कारण खुले में मलत्याग, सफ़ाई की कमी, भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन और जल स्रोतों में रसायनों का इस्तेमाल है।
इस प्रदूषण का सबसे अधिक शिकार भारत के गांव हैं जहां देश की करीब 70% आबादी रहती है।
ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अत्यधिक दोहन किए गए भूमिगत जल में आर्सेनिक और फ्लोराइड के प्रदूषण के कारण कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इन इलाकों में पानी की मात्रा काफी कम भी हो गई है। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं और बच्चों में खून की कमी यानी एनीमिया का कारण फ्लोराइड प्रदूषण माना जा रहा है।

दिल्ली स्थित फ्लोरोसिस शोध एवं ग्रामीण विकास फाउंडेशन की डॉ. ए के सुशीला कहती हैं, “इसका एक सीधा प्रभाव यह पड़ रहा है कि महिलाएं कम वज़न वाले बच्चों को जन्म देती हैं। इसकी वजह से बच्चों को कम शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ-साथ कई अन्य तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।”
2008 में यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के 43 फीसदी कम वज़न के बच्चे भारत में पैदा होते हैं।
अपने तर्क के समर्थन में सुशीला कहती हैं कि कमज़ोर बच्चों के जन्म को रोकने के लिए भारत सरकार 1970 से ही गर्भवती महिलाओं को फोलिक एसिड दे रही है लेकिन इसका कोई ठोस नतीजा अभी तक सामने नहीं आया है। उनका मानना है कि फ्लोराइड प्रदूषण के कारण पेट की आंतरिक दीवार पर बुरा असर पड़ता है जिससे वे पोषक तत्वों को सोख नहीं पाती।
सुशीला कहती हैं 'हम बिना कारण की ओर ध्यान दिए भारत में विक्लांग बच्चों की आबादी बढ़ा रहे हैं।''
देश के विभिन्न हिस्सों के करीब हजारों लोग पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक के प्रदूषण से प्रभावित हैं। दोनों तरह के प्रदूषण का स्रोत खनिज हैं जिसका कारण भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन है।
कई प्रमाणित अध्ययनों के मुताबिक उत्तरी और पूर्वी भारत में गंगा नदी के किनारे की आबादी आर्सेनिक विषाक्तता से पीड़ित है।
कोलकाता स्थित जादवपुर विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान संस्थान के दीपांकर चक्रवर्ती प्रशासन पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति कोताही बरतने का आरोप लगाते हैं। चक्रवर्ती ने ही २० साल पहले इस मसले को उठाया था।
च्रकवर्ती कहते हैं कि मुख्य समस्या, प्रशासन के पानी की आपूर्ति के ख़राब प्रबंधन में है। आपूर्ति के लिए भूमिगत जल के बजाए नदियों का इस्तेमाल करके इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
सरकार के राजीव गांधी राष्ट्रीय पेय जल मिशन और पेय जल आपूर्ति विभाग के निदेशक भारत लाल स्वीकार करते हैं कि पानी की गुणवत्ता का मसला दूसरे दर्जे का है। “एक बार पानी की पहुंच सुनिश्चित हो जाने के बाद हम पानी के प्रभाव की निगरानी नहीं करते''
लाल कहते हैं कि जिला स्तर पर आर्सेनिक और फ्लोराइड परीक्षण के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की भारी कमी है। वह विभिन्न राज्य स्तरीय संस्थाओं को पानी की गुणवत्ता जांचने के लिए दिये गए धन का उपयोग नहीं हो सकने का मुद्दा भी उठाते हैं।
लाल कहते हैं 'पानी की आपूर्ति के लिए ज़िम्मेदार सरकार, नगर पालिका ओर ग्रामीण निकाय आपूर्ति किए की गई की गुणवत्ता की ज़िम्मेदारी लेने से बचते हैं।'
केया आचार्य

पीने का पानी या पीने योग्य पानी, समुचित रूप से उच्च गुणवत्ता वाला पानी होता है जिसका तत्काल या दीर्घकालिक नुकसान के न्यू...
31/07/2019

पीने का पानी या पीने योग्य पानी, समुचित रूप से उच्च गुणवत्ता वाला पानी होता है जिसका तत्काल या दीर्घकालिक नुकसान के न्यूनतम खतरे के साथ सेवन या उपयोग किया जा सकता है। अधिकांश विकसित देशों में घरों, व्यवसायों और उद्योगों में जिस पानी की आपूर्ति की जाती है वह पूरी तरह से पीने के पानी के स्तर का होता है, लेकिन वास्तविकता में इसके एक बहुत ही छोटे अनुपात का उपयोग सेवन या खाद्य सामग्री तैयार करने में किया जाता है।

दुनिया के ज्यादातर बड़े हिस्सों में पीने योग्य पानी तक लोगों की पहुंच अपर्याप्त होती है और वे बीमारी के कारकों, रोगाणुओं या विषैले तत्वों के अस्वीकार्य स्तर या मिले हुए ठोस पदार्थों से संदूषित स्रोतों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह का पानी पीने योग्य नहीं होता है और पीने या भोजन तैयार करने में इस तरह के पानी का उपयोग बड़े पैमाने पर त्वरित और दीर्घकालिक बीमारियों का कारण बनता है, साथ ही कई देशों में यह मौत और विपत्ति का एक प्रमुख कारण है। विकासशील देशों में जलजनित रोगों को कम करना सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक प्रमुख लक्ष्य है।

सामान्य जल आपूर्ति नेटवर्क पीने योग्य पानी नल से उपलब्ध कराते हैं, चाहे इसका उपयोग पीने के लिए या कपड़े धोने के लिए या जमीन की सिंचाई के लिए किया जाना हो. इसके बिल्कुल विपरित चीन के शहरों में पीने का पानी वैकल्पिक रूप से एक अलग नल के द्वारा (अक्सर आसुत जल के रूप में), या अन्यथा नियमित नल के पानी के रूप में उपलब्ध कराया जाता है जिसे उबालने की जरूरत होती है।

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सुरक्षित पीने के पानी के संकेतकसहारा रेगिस्तान में इतालवी, जर्मन, पोलिश और अंग्रेजी में चिन्हित पेयजल के स्रोतसुरक्षित प...
31/07/2019

सुरक्षित पीने के पानी के संकेतक

सहारा रेगिस्तान में इतालवी, जर्मन, पोलिश और अंग्रेजी में चिन्हित पेयजल के स्रोत
सुरक्षित पेयजल तक पहुंच का संकेत उचित स्वच्छता स्रोतों का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या से मिलता है। इन संशोधित जल स्रोतों में घरेलू कनेक्शन, सार्वजनिक स्टैंडपाइप, बोरहोल की स्थिति, संरक्षित कुएं, सरंक्षित झरने और वर्षा जल संग्रह शामिल हैं। पूर्व उल्लिखित सीमा तक संशोधित पेय जल को प्रोत्साहन नहीं देने वाले स्रोतों में शामिल हैं: असंरक्षित कुएं, असंरक्षित झरने, नदियां या तालाब, विक्रेता प्रदत्त पानी, बोतलबंद पानी (पाने की गुणवता के नहीं, बल्कि सीमित मात्रा के परिणाम स्वरूप), टैंकर ट्रक का पानी. स्वच्छता संबंधी पानी तक पहुंच मलोत्सर्ग के लिए संशोधित स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच के साथ हाथों-हाथ होता है। इन सुविधाओं में सार्वजनिक सीवर तक संपर्क, सेप्टिक प्रणाली तक कनेक्शन, पोर-फ्लश शौचालय और हवादार संशोधित गड्ढे वाले शौचालय शामिल हैं। असंशोधित स्वच्छता सुविधाएं हैं: सार्वजनिक या साझा शौचालय, खुले गड्ढे वाले शौचालय या बकेट शौचालय.

31/07/2019

बच्चों में एक प्रमुख स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव के रूप में दस्त (डायरिया)
विकासशील दुनिया में दस्त संबंधी बीमारियों से होने वाली 90% से अधिक मौतें आज 5 साल से कम उम्र के बच्चों में होती हैं। कुपोषण, विशेष रूप से प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण जल-संबंधी दस्त वाली बीमारियों के साथ-साथ संक्रमण के प्रति बच्चों की प्रतिरोध क्षमता को कम कर सकती हैं। 2000-2003 में उप-सहाराई अफ्रीका में प्रति वर्ष पांच वर्ष से कम उम्र के 769,000 बच्चों की मौत अतिसारीय रोगों से हुई थी। उप-सहाराई क्षेत्र में जनसंख्या के केवल छत्तीस प्रतिशत लोगों तक स्वच्छता के समुचित साधनों की पहुंच के परिणाम स्वरूप प्रति दिन 2000 से अधिक बच्चों की जिंदगी छिन जाती है। दक्षिण एशिया में 2000-2003 में हर साल पाँच वर्ष से कम उम्र के 683,000 बच्चों की मौत दस्त (अतिसार संबंधी) रोगों से हो गयी थी। इसी अवधि के दौरान विकसित देशों में पांच साल से कम उम्र के 700 बच्चों की मौत दस्त (अतिसार संबंधी) रोगों से हुई थी। बेहतर जल आपूर्ति दस्त संबंधी रोगों को पच्चीस-प्रतिशत तक कम कर देती है और घरों में समुचित भंडारण एवं क्लोरीनीकरण के जरिये पीने के पानी में सुधार से दस्त (डायरिया) के दौरे उनतालीस प्रतिशत तक कम हो जाते हैं।

पीने के पानी की उपलब्धता में सुधारइंडोनेशिया में सौर पानी कीटाणुशोधन का उपयोगसंयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सहस्राब्दि...
31/07/2019

पीने के पानी की उपलब्धता में सुधार

इंडोनेशिया में सौर पानी कीटाणुशोधन का उपयोग
संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स) (एमडीजीज) में से एक है पर्यावरणीय स्थिरता. 2004 में ग्रामीण क्षेत्रों में केवल बयालीस प्रतिशत लोगों तक स्वच्छ पानी की पहुंच थी।[29]

सौर जल कीटाणुशोधन पानी के परिशोधन का एक किफायती तरीका है जिसका प्रयोग अक्सर स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों से किया जा सकता है।[30][31][32][33] जलाने की लकड़ी पर निर्भर तरीकों के विपरीत पर्यावरण पर इसका प्रभाव कम पड़ता है।

सुरक्षित पेय जल तक पहुंच प्राप्त करने में लोगों की मदद करने के लिए एक कार्यक्रम विकसित किया गया था जिसका नाम है जल सहयोग (वाटर ऐड कार्यक्रम. पानी उपलब्ध कराने में मदद करने के लिए 17 देशों में कार्यरत, वाटर ऐड इंटरनेशनल दुनिया के कुछ सबसे गरीब लोगों को सफाई और स्वच्छता संबंधी शिक्षा प्रदान करने में मदद कर रही है।[34]

ग्लोबल फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (जीएफ4ए) एक ऐसा संगठन है जो प्रबंधनीय लक्ष्यों और समय सीमाओं को परिभाषित करने के लिए हितधारकों, राष्ट्रीय सरकारों, दान देने वालों और गैर-सरकारी संगठनों/एनजीओ (जैसे कि वाटर ऐड) को एक साथ लेकर आता है। 23 देश बेहतर पानी की उपलब्धता के लिए एमडीजी के लक्ष्यों को पूरा करने के लक्ष्य से पीछे चल रहे हैं।

31/07/2019

कुओं का संदूषण
सुरक्षित पेय जल की उपलब्धता बढ़ाने के प्रयासों में से कुछ विनाशकारी साबित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जब 1980 के दशक को "अंतरराष्ट्रीय जल दशक (इंटरनेशनल डिकेड ऑफ वाटर)" घोषित किया गया, यह धारणा बनायी गयी थी कि भूजल स्वाभाविक रूप से नदियों, तालाबों और नहरों के पानी से कहीं अधिक सुरक्षित है। हालांकि हैजा, टाइफाइड और दस्त की घटनाएं कम हुई लेकिन अन्य समस्याएं पैदा हो गयीं. उदाहरण के लिए, भारत में ग्रेनाईट चट्टानों से निकलकर पानी में मिल जाने वाले अत्यधिक फ्लोराइड से संदूषित कुएं के पानी से 60 लाख लोगों को विषाक्त बनाए जाने का अनुमान है। इस तरह के प्रभाव बच्चों की हड्डी के विरूपणों में विशेष रूप से स्पष्ट होते हैं। इसी तरह की या इससे बड़ी समस्याएं चीन, उजबेकिस्तान और इथोपिया सहित अन्य देशों में प्रत्याशित हैं। हालांकि न्यूनतम मात्रा में फ्लोराइड दंत स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है, बड़ी मात्राओं में इसकी खुराक हड्डी की संरचना को प्रभावित करती है।[36]

एक संबंधित समस्या में बांग्लादेश के 12 मिलियन ट्यूब वेलों में से आधे में आर्सेनिक की अस्वीकार्य मात्रा मौजूद होने का अनुमान लगाया गया है क्योंकि इन कुओं की खुदाई अधिक गहरी (100 मीटर से अधिक) नहीं की गयी है। बांग्लादेशी सरकार इस समस्या के समाधान के लिए विश्व बैंक द्वारा 1998 में आवंटित 34 मिलियन डॉलर धनराशि में से 7 मिलियन डॉलर से भी कम खर्च कर पाई थी।[36][37] प्राकृतिक आर्सेनिक की विषाक्तता एक वैश्विक खतरा है, सभी महाद्वीपों के 70 देशों में 140 मिलियन लोग इससे प्रभावित हैं।[38] इन उदाहरणों से प्रत्येक स्थान को अलग-अलग मामले के रूप में जांच करने की आवश्यकता स्पष्ट नजर आती है और ऐसा नहीं माना जा सकता है कि एक क्षेत्र में किया गया काम दूसरे क्षेत्र में प्रभावी होगा.

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