04/06/2022
4.6.2022
जो लोग गरीब हैं, वे तो जैसे तैसे अपना गुज़ारा करते हैं। परंतु जिनके पास धन बहुत मात्रा में है, वे लोग अधिकतर फ़ज़ूलखर्ची करते हैं। वे सोचते हैं, *"हमारे पास बहुत पैसे हैं। इन पैसों का क्या करें। कहीं तो खर्च करने हैं। वे तो कोई न कोई बहाना ढूंढते हैं, कि हम पैसे कहां खर्च करें?"* कुछ लोग तो 'पैसे खर्चने' को इस नाम से कहते हैं, कि *"पैसे फेंकने हैं!"*
एक व्यक्ति से मैंने पूछा, *"क्या आप शराब पीते हैं" वह बोला, हां जी। मैंने पूछा, "क्या आप सिगरेट पीते हैं?" वह बोला, हां जी। मैंने कहा, "क्या आपको इन कार्यों से कुछ हानि प्रतीत होती है?" वह बोला, हां जी। फिर मैंने कहा, "जब हानि प्रतीत होती है, तो आप यह सब क्यों करते हैं?"* वह बोला, *"क्या करें, हमारे पास पैसे बहुत हैं, कहीं तो फेंकने ही हैं!" अब आप सोचिए, "क्या यह बुद्धिमत्ता है? क्या यह धन का सदुपयोग है? बिल्कुल नहीं।"*
इसी प्रकार से बहुत से और धनवान लोग भी ऐसा ही सोचते हैं। *"वे जब मार्किट में या मॉल में जाते हैं, तो वस्तुएं देखते जाते हैं। और किसी न किसी वस्तु को खरीदने का मन हो जाता है। चाहे आवश्यकता हो, या न हो, फिर भी कोई वस्तु उन्हें देखने पर अच्छी लग गई, पसंद आ गई, तो वे उसे खरीद लेते हैं। क्योंकि उनके पास भी पैसों की कमी नहीं है।"* यह धन का सदुपयोग नहीं है, बल्कि दुरुपयोग है।
जिनके पास इस प्रकार से धन की कमी नहीं है, हमारा उन लोगों से विनम्र निवेदन है, कि *"यदि आपको ईश्वर ने अधिक धन दिया है, तो कृपया उसका दुरुपयोग न करें। कोई भी वस्तु खरीदने से पहले कम से कम दो बार गहराई से विचार करें, कि "क्या इसके बिना मेरा काम चल सकता है?" यदि चल सकता है, तो कृपया उस वस्तु को न खरीदें। जिसको आवश्यकता है, कोई दूसरा व्यक्ति उस वस्तु को खरीद लेगा।"*
इस प्रकार से धन का अपव्यय होने से बचेगा। *"और उस धन को बचाकर यदि आप किसी और अच्छे सामाजिक परोपकार के कार्य में लगाएं, तो इससे देश को भी लाभ होगा, और आपको भी पुण्य मिलेगा, जिसका फल आपको इस जन्म में और अगले जन्मों में भी मिलेगा।"*
----- *स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।*