Shiv Shakti Healing Center

Shiv Shakti Healing Center Astro-Vastu Consultant. Mahavastu Expert. Geopathic Stress Analyst. Reiki Grandmaster. Karuna Reiki Master. Sound Therapist.

25/06/2025

शुक्र ः-
कुडली में शुभ शुक्र धन , संपत्ति और वैभव देता हैं किन्तु कुंडली में शुक्र यदि अशुभ हो तो ?

13/02/2021

वास्तु में कही बार परिणाम क्यों नहीं मिलते ?

29/05/2020

नमस्ते ,

ध्यान क्या है ? ध्यान कैसे करें ?

ज़्यादातर लोगों को जैसे ही ध्यान शब्द सुनने में आया कि तुरंत उन लोगों के दिमाग़ मे एक तस्वीर बन जाती हैं कोई साधु , संन्यासी या संत की .....
जी हा , आप में से कही लोगों को लगता है कि ध्यान इन सभी लोगों के लिए है , हालाँकि पहले के मुक़ाबले आज कल कहीं अधिक लोग ध्यान करते हैं और ये अच्छी बात है । किन्तु में यदि ये कहूँ कि आप सभी लोग रोज़ ध्यान करते हो तो ? !!!!!
मेरी बात सुन कर हेरानीं हो रही है ? !! लेकिन यह बात सच है , क्या आप ने कभी अपने बच्चों को
यह कहा है ... ध्यान से पढ़ना , ध्यान से जाना ,
ये काम ध्यान से करना इत्यादि , आप लोगों ने या तो ऐसा किसी को कहा होगा या आप ने किसी से
सुना होगा , इस का अथँ ये है कि आप सभी ने जब जब ओर जो जो कायँ में सफलता पाई वो सभी कार्य ध्यान से किया यानि पुरी एकाग्रता से किया ।
आप खो गये उस समय उस काम को करने में , आप खाना बना रहे हो , आप प्रश्नों के उत्तर दे रहे हो या फिर अन्य कोई भी कार्य कर रहे हो , आप जो कायँ कर रहे हो उस के अलावा कुच ओर पता ही नहीं न समय का पता है ना भोजन किया या नहीं , कहा हो वो भी ख़बर नहीं , बस पुरी एकाग्रता से जो कुच भी कर रहे हो वो कर रहे हो । किन्तु यह ध्यान जो तक़रीबन आप सभी लोग हर कार्य करते वक़्त करते हैं वो भौतिक चीज़ों को पाने के लिए करते हो , परंतु जब आप आत्मिक उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हो तब एकांत में शांत स्थान में बेठे कर अपने स्वयं के भीतर बेठे आत्म रुपी परमात्मा से प़ेम करना यानि परमात्मा हमारे भीतर बिराजमान है ऐसे शुद्ध भाव के साथ स्वयं के भीतर ध्यान केंद्रित करना चाहिए , यह सरल सी विधि नये साधकों के लिए है । नियमित ध्यान में बेठने का अभ्यास करते रहेना यह अति आवश्यक है ध्यान हो ना हो कोई बात नहीं बस केवल अपना नित्य अभ्यास करते रहे , हो सकता है कि कुच दिनों बाद , कुच महीने बाद या शायद कुच सालों बाद आप ध्यान में प़वेश कर जाओगे .....
जी हा, आप शुरू में जो प्रयत्नपूवँक कुच कर रहे थे वो अब बिलकुल बंध हो गया , अब आप बैठते हो और ध्यान में सहज ही प़वेश कर जाते हो अब कुच भी करना नहीं होता क्योंकि जब तक आप कुच कर रहे थे तब तक आपका जागृत मन सक़िय था और तब आप भूत या भविष्य में बार बार चक्कर लगाते रहते हो किन्तु जैसे ही आपका यह मन शांत हो गया कोई विचार नहीं रहा तब आपका मन वतँमान में आ जाता है , उस के बाद आपको ध्यान करना नहीं पड़ता अपितु ध्यान लग जाता है ।
( Effortlessly )

धन्यवाद । 🌹🙏🏻🌹

परेश शाह ( मुंबई )
वास्तु- ज्योतिष विशेषज्ञ
98205 75508

29/03/2018
30/12/2017

नमस्ते ,
दक्षिण पश्चिम कोण (यानि SW)
का मुख्य प़वेशद़ार के घर मे रहेनेवाले लोगों को जीवन मे हंमेशा ज़्यादातर किसी ना किसी समस्या का समना बार बार करना पड़ता है , यह मेने मेरे १८ वषोँ के अध्ययन मे पाया ।
क्यों होती है यह समस्या बार बार ? ऐसा क्या करण है ?
वास्तु के चारों कोण पर अलग - अलग तत्व का प़भाव रहेता है ।
NE - जल तत्व
SE - अग्नि तत्व
SW- पृथ्वी तत्व
NW- वायु तत्व

दक्षिण पश्चिम कोण (यानि SW) मे पृथ्वी तत्व का पूणँ प़भाव रहेता है और पृथ्वी तत्व ही केवल एक ऐसा तत्व है जिस मे स्पर्श , रुप , रंग , गंध और शब्द यह पाँचो है बाक़ी किसी तत्व मे ये पाँचो नहीं है , किसी रुप है तो गंध नहीं और किसी मे रंग हे तो गंध नहीं ...
इस कारण पृथ्वी तत्व का अधिक महत्व है और एक महत्व की बात यह भी है की सभी अन्य तत्व को कम या अधिक मात्रा मे पृथ्वी तत्व से ही आधार मिलता है , यही कारण है की वास्तु मे सदा पृथ्वी तत्व संतुलित होनी चाहिए।
वास्तु मे पूवँ उत्तर - ईशान कोण (यानि NE) जहा से सकारात्मक ऊजा प़वेश करती है तब उसका प़वाह सीधे सामने १८० अंश पर यानि SW मे सब से पहेलेपोहचता है और यदि ऊजा के प़वाह को रोका ना जाये तब वो ऊजा सीधे बहार निकल जाती है , इस दिशा के मुख्य प़वेशद़ार के होने पर होता यह है की सकारात्मक ऊजा प़वाह सीधे बहार चला जाता है , जिस के कारण भवन मे ऊजा का मंडलाकार भ़मण नहीं हो पाता और जब ऐसा होता है तब वास्तु पुरुष मंडल के सभी देवों को जो ऊजा सशक्त बनाती है वो मिलती ही नहीं , इस वजह अन्य सभी दिशाऐं भी निबँल होती है और जब ऐसा होता है तब वहाँ रहेने या कारोबार करनेवाले को वो फल मिलता है शास्त्र मे कहा गया है -
विपदा - विकार - विलय - विद्रोह और विनाश
इसी कारण नैरुतय मे पृथ्वी तत्व का श्रेष्ठ संस्करण अपेक्षित है , वास्तु मे पृथ्वी तत्व का उचित आविष्कार यानि भागयोदय और इस से विपरीत यानि भागयहानि यह सभी को समज लेना अति आवश्यक है ।
धन्यवाद ।

🌹आपका जीवन मंगलमय हो।🌹

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Paresh V Shah ( M E )
Space Vastu
Mumbai

13/12/2017

*🌺🥀शयन के नियम🥀🌺*

🌺सूने घर में अकेला नहीं सोना चाहिए। देवमन्दिर और श्मशान में भी नहीं सोना चाहिए। *(मनुस्मृति)*
🌺किसी सोए हुए मनुष्य को अचानक नहीं जगाना चाहिए। *(विष्णुस्मृति)*
🌺विद्यार्थी, नौकर औऱ द्वारपाल, ये ज्यादा देर तक सोए हुए हों तो, इन्हें जगा देना चाहिए। *(चाणक्यनीति)*
🌺स्वस्थ मनुष्य को आयुरक्षा हेतु ब्रह्ममुहुर्त में उठना चाहिए। *(देवीभागवत)*
🌺बिल्कुल अंधेरे कमरे में नहीं सोना चाहिए। *(पद्मपुराण)*
🌺भीगे पैर नहीं सोना चाहिए। सूखे पैर सोने से लक्ष्मी (धन) की प्राप्ति होती है। *(अत्रिस्मृति)*
🌺टूटी खाट पर तथा जूठे मुंह सोना वर्जित है। *(महाभारत)*
🌺नग्न होकर नहीं सोना चाहिए। *(गौतमधर्मसूत्र)*
🌺पूर्व की तरफ सिर करके सोने से विद्या, पश्चिम की ओर सिर करके सोने से प्रबल चिन्ता, उत्तर की ओर सिर करके सोने से हानि व मृत्यु, तथा दक्षिण की तरफ सिर करके सोने से धन व आयु की प्राप्ति होती है। *(आचारमय़ूख)*
🌺दिन में कभी नही सोना चाहिए। परन्तु जेष्ठ मास मे दोपहर के समय एक मुहूर्त (48 मिनट) के लिए सोया जा सकता है। *(जो दिन मे सोता है उसका नसीब फुटा है)*
🌺दिन में तथा सुर्योदय एवं सुर्यास्त के समय सोने वाला रोगी और दरिद्र हो जाता है। *(ब्रह्मवैवर्तपुराण)*
🌺सूर्यास्त के एक प्रहर (लगभग 3 घंटे) के बाद ही शयन करना चाहिए।
🌺बायीं करवट सोना स्वास्थ्य के लिये हितकर हैं।
🌺दक्षिण दिशा (South) में पाँव रखकर कभी नही सोना चाहिए। यम और दुष्टदेवों का निवास रहता है। कान में हवा भरती है। मस्तिष्क में रक्त का संचार कम को जाता है स्मृति- भ्रंश, मौत व असंख्य बीमारियाँ होती है।
🌺ह्रदय पर हाथ रखकर, छत के पाट या बीम के नीचें और पाँव पर पाँव चढ़ाकर निद्रा न लें।
🌺शय्या पर बैठकर खाना-पीना अशुभ है।
🌺सोने के एक प़हर (यानि तीन घंटे )पहेले भोजन कर लेना चाहिए।
🌺सोते सोते पढना नही चाहिए।
🌺ललाट पर तिलक लगाकर सोना अशुभ है। इसलिये सोते वक्त तिलक हटा दें।
🌺सोने से पहेले पाँच मिनिट प़भु स्मरण करना चाहिए या ध्यान करना चाहिए ।
🌺सोते समय दिनभर मे हुई कोई भी अशुभ घटना को याद नहीं करना चाहिए।
🌺जिस जगह पर चमकाधर या उल्लुओं का वास हो उस स्थान पर नहीं सोना चाहिए ।

🌹आपका जीवन मंगलमय हो।🌹

धन्यवाद। 😊

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Paresh V Shah ( ME )
SPACE VASTU
Mumbai
98205 75508
90221 16418

06/12/2017

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नमस्ते ,

‘वास्तुतंत्रे महातंत्रे शीव शक्ति समोदये ‘

आज हम इस का अथँ जानेंगे ।

शीव = आध्यात्म से जूड़े लोंग
शक्ति = तांत्रिक कायँ से जूड़े लोंग

शीव = तत्व ; शक्ति = ऊजा

शीव तत्व है , शक्ति ऊजा है । जहाँ ऊजा और तत्व का उचित तालमेल किया जाता है उसे ‘ शीव शक्ति समोदये ‘ कहा जाता है , यानि जहाँ वास्तु के नियम अनुसार चला जाता है या रहा जाता है , उस जगह तान्त्रिक शक्ति , शाप या करनी यादि का प़भाव रहेता नहीं ।

महापुरुष शीव (यानि तत्व ) की उपासना करते है और तान्त्रिक शक्ति (यानि ऊजा ) की उपासना करते है , किन्तु वास्तु शास्त्र को अच्छे से जाननेवाले ‘ महातन्त्रे ‘ यानि दोनों ( तत्व और ऊजा ) को जाननेवाले होते है । इस तरह वास्तु के ज्ञाता के पास शीव व शक्ति हंमेशा साथ रहेती है ।

धन्यवाद । 😊

आपका जीवन मंगलमय हो ।

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Paresh V Shah ( M E )
SPACE VASTU
Mumbai

98205 75508
90221 16418

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02/12/2017

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नमस्ते ,
आज के दौर में वास्तुशास्त्र को बहोत से लोग मानने लगे है , यह अच्छी बात है क्यों की यह शास्त्र हमारे मनीषी की धरोहर है । इस शास्त्र की रचना किस ने की और कितना प़भाव़ाली है ये शास्त्र आज मे इस के बारे में बताने की कोशिश करुगा ।

मयमतम , मानसार , विश्वकमाँ प्रकाश , समरांगण सूत्र , अग्नि पुराण ,मत्स्य पुराण , कामिका अगम इत्यादि ग़थो में इस पर लिखा गया है ।

अत्रि , गगँ , विश्वकमाँ ,बृहस्पति , नारद , कश्यप , वासुदेव , मनु जैसे और कही विद्वान रिषी-मुनी द़ारा इस शास्त्र की रचना की गइ है । यह बात मैंने इस लिए लिखी के कही बार मुझ से लोग पुछते है की यह पहेले तो नहीं था अब अचानक ये कहा से आ गया ।

इस शास्त्र को ५००० साल से भी पहेले लिखा गया और वास्तव में इस शास्त्र के पिता योगशास्त्र है ।

योग से मनकल्प

आयुर्वेद से कायाकल्प

वास्तु से भाग्यकल्प

होता है ।


मूल:ता तीन आयामों पर यह शास्त्र काम करता है ।

आधि भौतिक
( Physical phenomenal)

आधि दैविक
( Psychological )

आध्यात्मिक
( Spiritual)


योग शास्त्र मे प़ाण और
अपान , वास्तुशास्त्र मे सोम - यम , ज्योतिषशास्त्र मे योग - वियोग , संगीत शास्त्र मे स्वर - ताल और आयुर्वेद मे शीत - उष्ण ऐसे सभी जगह द़िऊजाँ पद्धति का खेल है , जैसे शिव शक्ति के विविधांग रुप और नामो के प़तिकातमक आविष्कार मे भिन्न भिन्न दिखते है , पर ऐसा है नहीं ।
जब यह सब मेने मेरे वास्तु गुरु सहस्त्रबुद्धे जी १९ साल पहेले जाना तब में दंग रहे गया , बारीकी से देखने पर ही यह पता चलता है की हर शास्त्र का एक दूसरे से गहेरा संबंध है ।

पंचमहाभूत और देवतावृंद के बारे मे सोचने पर ऊजाँ के आविष्कार के अलग अलग नियम इस शास्त्र मे दिये गये है ।
मेरी समज से एक अच्छे वास्तु शास्त्री को वास्तु के साथ साथ ज्योतिष का ज्ञान होना जरुरी है क्यों की वास्तु मे हर दिशा के एक विशेष आधिपति ग़ह है, जिस के बारे मे में फिर कभी बताउँगा ।
हमारा यह शरीर पंचमहाभूत से बना है जिसमें 70 % जल है ,बाक़ी के तत्व पृथ्वी , अग्नि , वायु और आकाश है , इस धरती पर काफ़ी हद तक यह तत्व संतुलित है तभी यहाँ जीवन संभव है , अन्यथा नासा इस खोज मे लगा है की धरती के अलावा कही और भी जीवन संभव है क्या ? पर अब तक सफलता नहीं मिली क्यों की कही पर अग्नि ज़्यादा है तो कोई ग़ह पर वायु कम है , शरीर मे पाँच तत्व का संतुलन बिगड़ता है तब रोग आता है ये बात आयुर्वेद मे कही है ( वात , पित , कफ ) उसी तरह जब वास्तु मे कोई एक तत्व असंतुलित होता है तब वास्तु ऊजाँ प़वाह मे बाधा आती है जिससे पुरे वास्तु का ऊजाँ समीकरण बिगड़ जाता है और उसका सीधा प़भाव हमारे मनोमस्तिष्क पर होता है यह बिलकुल वैसा है जैसा बाहर मोसम (वातावरण ) बदलता है हम पर असर होता है , जैसे गरमी के रुितु मे ज़्यादातर लोंग परेशान हो जाते है ( अग्नि तत्व की वृद्धि ) और ठंड मे ज़्यादातर लोंगो को अच्छा लगता है
( वायु तत्व की वृद्धि ) इस पर हर व्यक्ति की प़कृति के अनुसार हर व्यक्ति पर अलग अलग प़भाव होता है वैसे एक ही वास्तु मे रहेनेवाले हर व्यक्ति पर वास्तु का कम या ज़्यादा , शुभ या अशुभ प़भाव होता है , किसको कैसा ? कितना ? और कब क्या प़भाव होगा उस काल की गणना ( यानि उस समय की गणना ) हम ज्योतिष शास्त्र के आधार पर करते है ।
अंत मे में मेरे पारंपरिक वास्तु गुरु सहस्त्रबुद्धे जी को प़णाम करते हुए यहाँ मे विराम लेता हू , उम्मीद करता हूँ आपको मेरी यह पोस्ट पंसद आयेगी ।

धन्यवाद ..... 😊

Paresh V Shah
Mumbai
98205 75508
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31/10/2017

नमस्ते ,
आज बताऊँगा मुख्य प़वेशद़ार के नियम व द़ार वेध के बारे मे और जानेंगे कुच महत्वपूर्ण बातें ।🔱
मुख्य प़वेशद़ार के बारे मे अक्सर कही लोंग मुझ से पूछते है की कोन सी दिशा के लेना चाहिए ? वैसे तो केवल मुख्य प़वेश द़ार देख लेना पर्याप्त नहीं , जब वास्तु करना है तो कही और बातों का भी ध्यान रखना जरुरी होता है , पर यहाँ मे वो सब नहीं लिखूँगा क्यों की आज विषय मुख्य प़वेश द़ार का है ।
आम तौर पर लोंगो मे ऐसी धारण है की मुख्य प़वेशद़ार पूरब या पश्चिम का हो तो शुभ और दक्षिण का अशुभ होता है , पर ऐसा है नहीं।
वास्तुशास्त्र के नियम अनुसार सभी प्रमुख दिशा के द़ार शुभ फलदायक है , किंतु यहाँ ये ज्ञात होना जरुरी है की वह प्रमुख दिशाऐं यानि पूवँ , पश्चिम , उत्तर और दक्षिण दिशा मे कोन से पद मे द़ार है , केवल पूरब या पश्चिम होने शुभ है ये माननेवाले भी जब कष्ट पाते है या समस्या से जूझते है तब वे सोचते है की प़वेश द़ार तो पूवँ का है फिर भी इतनी तकलीफ़ क्यों है ? पर उन्हें यह पता नहीं की मुख्य प़वेश पूवँ दिशा के यदि पांचवे या छेहवे पद यानि रवि या सत्य ( जो इस पद के देव है ) का होने से वहाँ निवास करने वाले को कही समस्या देता है , जैसे की बहोत अधिक तेजमिजाज ( ग़ुस्सा ) , जल्दबाज़ी या किया हुआ वायदा निभा न पना या फिर जैसा जीवन वहाँ रहेने वाले का होता है उस से अलग दिखाना ( यानि दिखावा या फिर यु कहो की छलावा )
चार वणँ के अनुसार भी कोनसा मुख्य प़वेश द़ार किस के लिए शुभ होगा वह बताया है ।
ख़ुद का कारोबार है वह लोगों के लिए उत्तर दिशा ( वैश्य / बुध )

कमँ कांड व पूजा पाठ करने वालों के लिए पूँव दिशा ( ब़ामहण/सूयँ )

युद्ध मे लड़ने वाले योद्धा के लिए दक्षिण दिशा ( क्षत्रीय / मंगल )

मेहनत - मज़दूरी करने वालों के लिए पश्चिम दिशा ( क्षुद्र / शनि )

इस के अलावा बारह राशि मे से हर दिशा मे तीन राशि बाटी गई है ।

पूवँ दिशा का द़ार

१ ( मेष ) - ५ ( सिंह ) - ९ ( धनु )

दक्षिण दिशा का द़ार

२ (वृष ) - ६ ( कन्या ) - १० (मकर )

पश्चिम दिशा का द़ार

३ (मिथुन )- ७ ( तुला ) - ११ ( कुं भ )

उत्तर दिशा का द़ार

४ ( ककँ ) -८ (वृश्चिक ) - १२ (मीन)

अब ‘ द़ार वेध ‘ के बारे मे बात करते है ।
जब किसी वास्तु के मुख्य प़वेश द़ार के सामने पेड़ , बिजली का या कोई भी बड़ा ख़भा , दीवाल , बिल्डिंग , बिजली का टा्नसफँमर ,कोई गटर या नाला हो तो उसे शास्त्र मे ‘ द़ार वेध ‘ कहा है , जिस के कारण प़वेश द़ार से आने वाली ऊजा प़वाह मे बाधा उत्पन्न होती है जो शास्त्र मे शुभ नहीं माना गया ।
अगर आपके मुख्य प़वेश द़ार के समक्ष मंदिर हो तब या आपके वास्तु पर किसी मंदिर की ध्वजा की परछाईं पड़ती हो तब भी वह अशुभ माना गया है ।
जब भी आप निवासिय या व्यवसाय वास्तु ख़रीदे तब इन बातों का जरुर ध्यान रखें ताकि मुख्य प़वेश द़ार से शुभ ऊजा सदा आपको मिलती रहे और उस से मिलने वाले लाभ भी आपको मिलते रहै ।

धन्यवाद 🙏🏻

🌹आपका जीवन मंगलमय हो।🌹

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Paresh V Shah ( M E )
Astro - Vastu consultant
Mumbai
98205 75508
90221 16418

15/09/2017

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विशेष रूप से श्रद्धा का विरोध करने वालों के लिए और जो इस विधि का मज़ाक़ उड़ाते है उन्हों ने ये जरुर पढना चाहिए ।

कर्नाटक में सभी संतों जैसे माल्हा या म्हालावस, तमिलनाडु आदि के पिता और महिलाओं का सम्मान किया जाता है, कन्याकुमारी, केरल में, करिकदा वावबुली।

· नेपाल में, अगस्त के दूसरे छमाही में - सितंबर में, गायराज का मतलब है एक गांव गाय बारी और गोदामों के माध्यम से पूर्वजों के कर्ज चुकाना।

· लाओस ने थाईलैंड में उहलानान को बुलाया महायान और थिवड़ा बौद्ध इस में हैं।

कंबोडिया में, पौराणिक कटोरा दिन के लिए मनाया जाता है। कैमर को सुलेखन के दसवें महीने में पांचवें महीने चुना गया है। इस दिन, सभी लोग बौद्धों के साथ शाम को मिलते हैं। चावल और मछली उन्हें आने में आते हैं पूर्वजों द्वारा आमंत्रणों ने उन्हें बुलाया और उनके नामों के लिए बुलाया और उन्हें आग में जला दिया हम उस पर चावल डालते हैं, इसमें मछली डालते हैं।

· श्रृंखला में उन्हें एक सेवा लाल कहा जाता है। यह माना जाता है कि चार पीढ़ियों के लिए यह मृतक के परिवार से संबंधित है। यहां केवल पुरुष इस पर काम करते हैं।

· मलेशिया में, मेर्री जनजाति के लोग इस काम को एरी मोयांग नाम से करते हैं

वियतनाम में, देहाती दिनों को याद करने के दिन थान्ह मिन्ह कहलाते हैं।

चीन में पिछले 2500 सालों से, इन दिनों क्यूंग मिन्ह द्वारा मनाया जाता है। ये दिन अप्रैल के पहले पखवाड़े में आते हैं उस समय के दौरान वर्षा होती है, यह शुष्क और सूखी है।

अगस्त के पहले हफ्ते में जुलाई के आखिरी सप्ताह और पश्चिमी भाग में अगस्त के पहले सप्ताह में तीन दिनों के लिए प्रस्ताव। इन दिनों ओबोन ओमत्सुरी कहलाते हैं। पूर्वजों की क्षितिज से छुटकारा पाने के लिए। रोशनी पानी में तीसरे दिन तीर कुंजियां छोड़ती है - विशेष खाद्य उत्पादों।

यह विधि 1536 में इंग्लैंड में शुरू हुई इस अवधि के दौरान, पूर्वजों के पूंजीवाद मारे गए थे। यह आप पर निर्भर है

जर्मनी में अर्नस्ट डनक फेस्ट, कृतज्ञता का उत्सव है।

· रोम में लेम्युलरिया एक ही त्योहार है।

· मेडागास्कर में हर सात साल बाद, उनके शरीर बदल जाते हैं और उनके शरीर में परिवर्तन होता है।

· वुडा के लोगों के दिनों जो हैती में पूर्वजों को याद करते हैं, दिन का नाम है - जोरा आइक उनका मानना ​​है कि हमारे पूर्वजों के मृत शरीर मनुष्यों और भगवान के साथ मिलकर एक साथ काम करते हैं

· मेक्सिको में अक्टूबर के आखिरी हफ्ते - दे दे डे मुराटोस - कृतज्ञता का उत्सव है।

· संयुक्त राज्य अमेरिका में यूरोपीय वंश के लिए, मे मई में आखिरी सोमवार है, जबकि एड्रेनालाईन अमेरिकी पूर्वजों के लिए सितंबर में पिछले रविवार।

· कई देशों ने सभी आत्माओं दिवस के पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की है।

इसके अलावा, कई देशों में, जनसंख्या में 'पेरेंटिंग' की कोई विधि हो सकती है। अधिकांश सभ्यताओं में, पूर्वजों को याद करने की परंपरा है। ऐसा लगता है कि इसमें रिवाज अलग-अलग हैं स्थानीय लोग उन दिनों में उन कार्यों में नहीं करते हैं या अगर वे एक साथ नहीं होते हैं, तो वे उदास होकर कह रहे हैं कि उन्होंने पाप किया है। दुनिया भर में अलग-अलग रीति-रिवाज हैं, इसलिए यदि वे पाप करना चाहते हैं - ऐसा करने के लिए - वे सभी पाप करेंगे, क्योंकि दुनिया के सभी रीति-रिवाजों की कोई परवाह नहीं करता है। रीति-रिवाज समय-समय पर भिन्न-भिन्न होते हैं, लेकिन जो लोग उनके जन्म के साथ पैदा हुए हैं उनके लिए आभारी होने की भावना अभी भी सभी के लिए दृश्यमान है। -

श्रद्धा, आदि, जो लोग इस विचार का आरोप लगाते हैं कि ब्राह्मण ने समाज को लूटने के लिए समाज का निर्माण किया है, ऊपर की जानकारी को ध्यान में रखना चाहिए।

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20/06/2017

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नमस्कार ,
वास्तु के विषयमे जितना गहराई में जाता हू मुझे बड़ी हैरानी होती है की कितना गहन अध्ययन किया होगा हमारे मनिषींओने तब जाकर कही हम सभी आज भी इस ज्ञान का लाभ ले पा रहे है ।
आज जो यह में लिखने जा रहा हू उसमें में ने दिशा और ग़हो के साथ हमारी चार अवस्था को जोड़ ने की कोशिश की है ।
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N NW - N - N NE - NE - E NE (जल तत्व )

बालय अवस्था ( आयु १४ वषँ )
बुधग़ह का प्रभाव अधिक रहेता है।

चहेरे पर मासूमियत , चंचलता पर जल की तरह निँमल एवं तरोताज़ा , Opertunity - कभी भी कही भी और किसी से भी कुछ भी माँग लेते है । (North)
कभी स्वस्थ और कभी बीमार कोई चिंता नहीं । ( N NE )
सरलता और बिलकुल सहजता से वह वो कर या बोल देते है जो उनके मन में होता है । ( NE )
यह वो अवस्था है जिस का मक़सद ही मनोरंजन होता है । ( N NE )

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E - E SE ( वायु तत्व )

युवा अवस्था ( आयु १४ से २८ )
सूयँ ग़ह का प़भाव रहेता है ।

यह जीवन का वह काल है जिस में युवक या युवती ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के संपँक में आना चाहते है , नये लोगों से मिलना एवं नये स्थान पर गुमने जाना , देखना यह सब अच्छा लगता है ,नये दोस्त बनाना इत्यादि ( E - सूयँ ग़ह )

अपनी पढ़ाई व केरियर के बारे में , जीवनसाथी के बारे में और फयुचर के बारे में सोचते रहते है । ( E SE )

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SE - S SE - S ( तेज़ तत्व - 🔥)

प़ोढ अवस्था ( आयु २८ से ४२ )
शुक़ ग़ह का प़भाव रहेता है ।

इस आयु में तक़रीबन पढ़ाई , शादी और नौकरी या कारोबार सब कुच हो चुका होता है ।

यहाँ एक बात में किलियर कर दूँ के अवस्था के समाप्त होने ४ साल पहेले और दूसरी अवस्था शुरु होने के ४ साल तक अवस्था का संधि काल होता है ।

जैसे की युवा अवस्था (१४ साल के बाद प्रारंभ होती है ) उस के ४ साल पहेले व ४ साल बाद का समय संधि काल होता है ।

पढ़ाई और शादी २४ साल से २८ साल की आयु में आमतौर पर हो जाती है , अपना वजूद बनाना चाहते है ( सूयँ )
साथ साथ ख़ूब सूरत दिखना भी चाहते है ( शुक़ ) तो यहाँ सूयँ एवं शुक़ का प़भाव एक साथ चलता है । ( SE )

लड़की और लड़का अपने शरीर के सुंदरता व कारोबारी पोज़ीशन के कारण पावर और आत्म विश्वास का अनुभव करते है । ( S SE )

प़ोढ अवस्था के संधि काल के पहेले ४ साल को छोड़ दे ( २८ से ३२ ) तो ३२ वषँ की आयु से ४२ वषँ की आयु में काफ़ी हद तक नौकरी में या कारोबार में नाम कमा लेने के कारण आरामदायक स्थिति में होते है साथ साथ और भी बहोत कुछ करने का होसला बढ़ जाता है ( South ) मंगल ग़ह

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S SW - SW - W SW - W -W NE - NW ( पृथ्वी व आकाश तत्व )

वृद्धा अवस्था ( आयु ४२ से ७० )

गुरु - राहु - शनि - चंद़ ग़ह का प़भाव रहेता है ।

काफ़ी समय,शक्ति ,घन का खँच कर के यह तक की यात्रा तय की होती है , इस अवस्था में पोहचने पश्चात यदि बीनजरुरी बातें , लोग व विचारों को जो निकाल नहीं पाते वह दु:खी रहते है , परेशान व बिमार रहेते है । ( S SW )

अपने हुनर और लोगों के साथ के संबंध से जीवन में आथिँक स्थिरता पाने के लिए और जो मिला है उसे बचाने के लिए जो परिपक्वता चाहिए वह गुरु से मिलती है , और जो भी पाना है उसकी चाहत और उसे हासिल करने का नशा राहु है । ( SW - S SW )

अंतरिक्ष जहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं , जो चाहो , जितना चाहो पा सकते हो , पर वह निती नियम का होना आवश्यक है । आप की क्षमता के आधार पर आप पाते हो , (W) आगे के सभी झोन की जो विशेष शक्तीयां है वह कितनी संतुलित है उस से तय होता है की कितना मिलेगा , जितने के हक़दार हो मिलेगा ही , न्याय और त्याग वृद्घा अवस्था के गुण है ( शनि ) जो सब कुछ पा कर त्याग कर पाता है वह जीवन में तनाव मुक्त रहेता है । (W NW )

सब पाया , त्याग भी किया अब कोई विशेष इच्छा शेष नहीं , है तो केवल प़ेम ( चंद़ ) और जो भी हमारे पास आये उनकी मदद करना और उस में भी यदि बेटा या कोई ज़्यादा क़रीबी व्यक्ति आये तो उसे धन से मदद करनी । ( NW )

संसार में जितनी वस्तु हमें आकषिँत करती है चाहे वह गाड़ी हो,घर हो ,सुवणँ हो, स्त्री या पुरुष हो या फिर अन्य कोई भी चीज़ यह सब वासना ही है , और यह इच्छा - वासना के रहेते हम इस संसार में आते है इसी वजह से सारा संसार निरंतर चलता रहेता है । ( N NW )

Paresh V Shah ( Me )
Mumbai

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06/06/2017

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Mumbai
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