02/12/2017
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नमस्ते ,
आज के दौर में वास्तुशास्त्र को बहोत से लोग मानने लगे है , यह अच्छी बात है क्यों की यह शास्त्र हमारे मनीषी की धरोहर है । इस शास्त्र की रचना किस ने की और कितना प़भाव़ाली है ये शास्त्र आज मे इस के बारे में बताने की कोशिश करुगा ।
मयमतम , मानसार , विश्वकमाँ प्रकाश , समरांगण सूत्र , अग्नि पुराण ,मत्स्य पुराण , कामिका अगम इत्यादि ग़थो में इस पर लिखा गया है ।
अत्रि , गगँ , विश्वकमाँ ,बृहस्पति , नारद , कश्यप , वासुदेव , मनु जैसे और कही विद्वान रिषी-मुनी द़ारा इस शास्त्र की रचना की गइ है । यह बात मैंने इस लिए लिखी के कही बार मुझ से लोग पुछते है की यह पहेले तो नहीं था अब अचानक ये कहा से आ गया ।
इस शास्त्र को ५००० साल से भी पहेले लिखा गया और वास्तव में इस शास्त्र के पिता योगशास्त्र है ।
योग से मनकल्प
आयुर्वेद से कायाकल्प
वास्तु से भाग्यकल्प
होता है ।
मूल:ता तीन आयामों पर यह शास्त्र काम करता है ।
आधि भौतिक
( Physical phenomenal)
आधि दैविक
( Psychological )
आध्यात्मिक
( Spiritual)
योग शास्त्र मे प़ाण और
अपान , वास्तुशास्त्र मे सोम - यम , ज्योतिषशास्त्र मे योग - वियोग , संगीत शास्त्र मे स्वर - ताल और आयुर्वेद मे शीत - उष्ण ऐसे सभी जगह द़िऊजाँ पद्धति का खेल है , जैसे शिव शक्ति के विविधांग रुप और नामो के प़तिकातमक आविष्कार मे भिन्न भिन्न दिखते है , पर ऐसा है नहीं ।
जब यह सब मेने मेरे वास्तु गुरु सहस्त्रबुद्धे जी १९ साल पहेले जाना तब में दंग रहे गया , बारीकी से देखने पर ही यह पता चलता है की हर शास्त्र का एक दूसरे से गहेरा संबंध है ।
पंचमहाभूत और देवतावृंद के बारे मे सोचने पर ऊजाँ के आविष्कार के अलग अलग नियम इस शास्त्र मे दिये गये है ।
मेरी समज से एक अच्छे वास्तु शास्त्री को वास्तु के साथ साथ ज्योतिष का ज्ञान होना जरुरी है क्यों की वास्तु मे हर दिशा के एक विशेष आधिपति ग़ह है, जिस के बारे मे में फिर कभी बताउँगा ।
हमारा यह शरीर पंचमहाभूत से बना है जिसमें 70 % जल है ,बाक़ी के तत्व पृथ्वी , अग्नि , वायु और आकाश है , इस धरती पर काफ़ी हद तक यह तत्व संतुलित है तभी यहाँ जीवन संभव है , अन्यथा नासा इस खोज मे लगा है की धरती के अलावा कही और भी जीवन संभव है क्या ? पर अब तक सफलता नहीं मिली क्यों की कही पर अग्नि ज़्यादा है तो कोई ग़ह पर वायु कम है , शरीर मे पाँच तत्व का संतुलन बिगड़ता है तब रोग आता है ये बात आयुर्वेद मे कही है ( वात , पित , कफ ) उसी तरह जब वास्तु मे कोई एक तत्व असंतुलित होता है तब वास्तु ऊजाँ प़वाह मे बाधा आती है जिससे पुरे वास्तु का ऊजाँ समीकरण बिगड़ जाता है और उसका सीधा प़भाव हमारे मनोमस्तिष्क पर होता है यह बिलकुल वैसा है जैसा बाहर मोसम (वातावरण ) बदलता है हम पर असर होता है , जैसे गरमी के रुितु मे ज़्यादातर लोंग परेशान हो जाते है ( अग्नि तत्व की वृद्धि ) और ठंड मे ज़्यादातर लोंगो को अच्छा लगता है
( वायु तत्व की वृद्धि ) इस पर हर व्यक्ति की प़कृति के अनुसार हर व्यक्ति पर अलग अलग प़भाव होता है वैसे एक ही वास्तु मे रहेनेवाले हर व्यक्ति पर वास्तु का कम या ज़्यादा , शुभ या अशुभ प़भाव होता है , किसको कैसा ? कितना ? और कब क्या प़भाव होगा उस काल की गणना ( यानि उस समय की गणना ) हम ज्योतिष शास्त्र के आधार पर करते है ।
अंत मे में मेरे पारंपरिक वास्तु गुरु सहस्त्रबुद्धे जी को प़णाम करते हुए यहाँ मे विराम लेता हू , उम्मीद करता हूँ आपको मेरी यह पोस्ट पंसद आयेगी ।
धन्यवाद ..... 😊
Paresh V Shah
Mumbai
98205 75508
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