25/08/2017
फ़िल्म : बाबूमोशाय बन्दूकबाज़
स्टार रेटिंग: 3.5
नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अपनी फिल्म ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ के जरिये ‘डार्क हैंडसम हीरो’ के कॉन्सेप्ट को बखूबी स्थापित किया है. फिल्म का सॉन्ग “पोस्टमैन हैं हम तो भैया, मौत की चिट्टी लाते हैं...” पूरी फिल्म पर सटीक बैठता है. कसी हुई कहानी, मजबूत कैरेक्टराइजेशन, देसी कनेक्ट और सीटीमार डॉयलॉग. कुल मिलाकर यही है ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज.’ फिल्म यह भी बताती है कि गुरु, गुरु होता है और चेला, चेला. फिल्म इश्क, धोखे और कत्ल की कहानी है. कुषाण ने फिल्म को बेहतरीन ढंग से बुना है. यह लगातार तीसरा हफ्ता है जब बॉक्स ऑफिस पर देसी फिल्म ने दस्तक दी है. इससे पहले 'बरेली की बर्फी' और 'टॉयलेटः एक प्रेम कथा' रिलीज हो चुकी हैं.
कहानी बाबू बिहारी (नवाज) की है. जिसके लिए किसी को भी मौत के घाट उतारना चुटकी का काम है. वह जीजी (दिव्या दत्ता) के लिए काम करता है. लेकिन मनमौजी है और किसी की सुनता नहीं है. एक दुबे जी भी हैं जो वॉयरिज्म का शिकार हैं, और वे अपनी पत्नी को किसी और के साथ देखकर ही सुख पाते हैं. एक कॉन्ट्रेक्ट के दौरान बाबू की मुलाकात फुलवा (बिदिता) से होती है और दोनों को इश्क हो जाता है. फिर बाबू को अपना चेला मानने वाला बांके बिहारी (जतिन) उसकी जिंदगी में आता है. एक के बाद एक हादसा और सस्पेंस जो सामने आता है, सीट से उठने का मन नहीं करता है. ढेर सारे धोखेबाज और अकेला बाबू. फिल्म का अंत सनसनीखेज है. फिल्म में गालियों की भरमार है. सेक्स सीन हैं. लेकिन ‘ए’ सर्टिफिकेशन है, इसलिए ज्यादा चिंता की बात नहीं है. फिल्म के पहले हाफ में सीरियस कहानी हल्के-फुल्के अंदाज में चलती है. लेकिन दूसरा हाफ एकदम इंटेंस हो जाता है, और एक के बाद एक रहस्य खुलते हैं. लंबे समय बाद ऐसी फिल्म आई है जिसके दोनों पार्ट मजा देते हैं.