Usha Medical Hall

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22/02/2025
सुबह पाँच बजते ही उसकी नींद अनायास ही खुल गई। अब आदत सी हो गई थी सुबह जल्दी उठने की तो अब एसे ही आँखें खुल जाया करती थी।...
22/02/2025

सुबह पाँच बजते ही उसकी नींद अनायास ही खुल गई। अब आदत सी हो गई थी सुबह जल्दी उठने की तो अब एसे ही आँखें खुल जाया करती थी। हाँ, एक वक्त था जब ये नींद उसे सबसे प्यारी हुआ करती थी। दस बजे उठना भी उसके लिए जल्दी उठने में शुमार हुआ करता था! मगर अब.......!! खैर, शादी के बाद हर किसी की ज़िंदगी मे बदलाव आते है और वो तो फिर भी औरत थी। बदलाव आना लाज़मी सा था!

भगवान का नाम लेकर वो अपनी अस्त-व्यस्त हुई साड़ी को संभाल खड़ी हुई। ये सुबह भी कुछ अलग नहीं थी....और उसकी ज़िंदगी में कुछ अलग होगा, उसका ख़्वाब वो बहुत पहले ही छोड़ चुकी थी। उसने अपनी अलमारी से अपने लिए एक साड़ी निकाली और बाथरूम में चली गई। बाहर निकलते ही उसने खुद को आईने में देखा और फ़ीखी सी मुस्कान उसके होंठो पर चली आई। उसने टेबल पर रखी सिंदूरदानी उठाई और उसमें से सिंदूर निकाल अपनी मांग में हल्का सा भर दिया।

कमरे से बाहर निकल वो सीधा हॉल में गई जहां इस वक्त कोई नहीं था। उसने बिना आवाज़ किये साफ़ सफ़ाई शुरू कि। उसकी सास विमला जी का कहना था कि सुबह उठते ही घर साफ़ होना चाहिए। पूरे घर में झाडू, पोछा मारते हुए करीब साढ़े ६ बज गए। वक्त देखा तो वो अपने कमरे में चली आई, देखा तो उसका पति उठ चुका था। अजीब.....वैसे तो रोज़ उसे उठाना पड़ता पर...आज! ख़ैर, उसने गहरी सांस भरी और रसोई कि तरफ़ बढ़ गई। रसोई में आते ही एक तरफ नाश्ते कि तैयारी करने लगी और दूसरी तरफ़ उसने सबके लिए चाय चढ़ाई। जब तक नाश्ता तैयार हुआ तब तक घर के सभी लोग हॉल में आ चुके थे।

घर में कुल ६ लोग थे। वो, उसका पति आकाश उम्र २९ साल, सास विमला जी,आकाश के पिता प्रकाश जी, आकाश की बड़ी बहन नेहा जो की उनही के साथ रहती थी और आकाश की छोटी बहन माही।

उसने चाय और नाश्ते को टेबल पर सबके लिए सजाया की इतने में माही,"गुड मॉर्निंग भाभी!" जिसके जवाब में उसने भी मुस्कुराकर गुड मॉर्निंग कहा। सबके टेबल पर बैठते ही उसने सबकी प्लेट में नाश्ता परोसा। आकाश के लिए उसने प्लेट में खाना परोसा की अपनी प्लेट में उप्मा देखकर वो उसपर चिलाया,"कितनी बार कहा है की मेरे लिए अलग से नाश्ता बनाया करो! मुझे टोस्ट चाहिए होते है, समझ नहीं आता क्या एक बार??" उसके चिल्लाने पर उसने डर से आँखें बंद कर दी। विमला जी के चेहरे पर कुछ इस तरह की मुस्कान आई की उनके मन की बात उनके बेटे ने कर दी।

"जुबान नाम की चीज़ है?? जवाब दो मेरे बेटे को..." विमला जी ने उसे घूरते हुए कहा की उसके होंठ कांपे जरूर पर आवाज नहीं आई। "चुप क्यूँ है?? जवाब दे चल..."

"वो...वो...प...पता नहीं कैसे भूल गई।" जिसपर आकाश,"बहाने बनवा लो खाली...." इतना कहकर उसने प्लेट को खिसकाया और उठ खड़ा हुआ।

विमला जी," अरे बेटा!खाना तो खाता जा...."

आकाश घर से बाहर निकलते हुए," मर गई भूख मेरी...."

उसके जाने के बाद विमला जी,"तुझे चैन नहीं मिलता न मेरे बेटे को तकलीफ़ पहुंचाए बग़ैर? तेरे वजह से वो आज फिर भूखा गया घर से...."

उसने कुछ नहीं कह। जानती थी वो की कुछ कहने से कोई फाइदा नहीं था! इतने में नेहा," माँ,उप्मा में भी नमक नहीं डाला..."

विमला जी,"यही होना था...एक काम ढंग से आता नहीं है!! पता नहीं कौनसा मनहूस दिन था जब ये मनहूस हमारे गले पड़ गई!" आँखें धुंधला गई उसकी...आँसू बहाकर कोई फाइदा नहीं था यहाँ!! इसीलिए वो बस खड़ी थी शांत सी...!

माही,"माँ, क्या कह रही हो आप?! नाश्ता बिलकुल पर्फेक्ट बना है। और दी अगर आपको ये नहीं खाना हो तो किच्चन सामने ही है!जाकर बना सकती है!!"

नेहा,"देखा माँ, इसकी वजह से अब माही भी बोलने लगी है...पता नहीं अब ये घर तोड़कर रहेगी!" इतना कहकर नेहा भी वहाँ से खड़ी हो गई। उसकी देखा देखि में विमला जी भी खड़ी होकर चली गई। उनके जाने के बाद माही ने उसकी तरफ देखा जो बिना भाव के बस ज़मीन में घूर रही थी। प्रकाश जी ने अफ़सूस में सर हिलाया और अपना नाश्ता करने लगे। थक चुके थे वो अपनी पत्नी को समझाकर! अब वो भी समझ गए थे की चाहे कुछ भी हो विमला जी को समझाना उनके बस में न था।

उसने सबके जाने के बाद टेबल पर से प्लेट उठाई और उन्हें धोने के लिए किचन सिंक में रखी। वो अभी रसोई को साफ़ कर ही रही थी की पीछे से आकर माही ने उसे गले से लगाया। चेहरे पर मुस्कान लिए उसने माही के तरफ़ देखा तो माही,"थक नहीं जाती इतना सुनकर आप..."

"थक गई तो मर जाऊंगी....और इतनी कमज़ोर नहीं हूं मैं!"

माही,"जानती हूं मेरे कहने से कुछ नहीं होगा...पर आई एम सॉरी!!"

"तुम क्यों माफ़ी मांग रही हो?? और उतना भी कुछ नहीं हुआ...गलती मेरी ही थी सो सुनना तो मुझे था ही..." उसने कहा तो माही उससे लिपट गई।

"जाओ...कॉलेज के लिए देर हो जाएगी..." उसके कहने पर माही ने हां में सर हिलाया और अलविदा कह कर चली गई।

एक बार फिर उसने खुद को कामों में उलझा दिया। सारा काम खत्म कर वो बस चाय का कप लिए अभी बैठी ही थी की विमला जी," बैठ गई महारानी, कुछ काम धंधा तो हैं नहीं?! मेरे बेटे को भूखा भेज कर खुद चाय की चुस्की ले रही हैं... हुंह!"

होंठो तक पहुंचा कप उसने वापस रख दिया। मन सा नहीं हुआ कुछ कहने का और नाही उस चाय को पीने को! ना उसने कुछ कहा और नाही कोई प्रतिक्रिया दिखाई और उसकी इसी हरकत से विमला जी तिलमिला गई और जाने क्या क्या बोलते हुए वो वहां से चली गई।

खुद के चाय के कप को देख उसने उठाकर सिंक में फैंक दी। वो उठकर रूम में आई और शांत सी बिस्तर पर बैठ गई। ये सब उसके लिए कुछ नया नहीं था। ताने सुनना, भूखा रहना अब ये सब उसकी दिनचर्या में शामिल हो चुका था। नज़र सामने पड़े अख़बार पर गई। उसने अख़बार के पन्ने पलटे की नज़र जॉब कॉलम पर गई। कुछ मार्क किया हुआ था उसपर। वो मुस्कुराई!! माही भी न.... रोज़ अख़बार में आते अलग अलग जॉब के एड में से कुछ राउंड मार्क करके उसके कमरे में अखबार रख दिया करती थी, पर ये बात वो अच्छे से जानती थी की जॉब करने की इजाज़त उसे मिलने से रही तो वो भी माही के रखे अख़बार को खाली एक नज़र देखती ही, की अब पढ़कर या जानकर कोई फायदा नहीं की कहां जॉब की वेकेंसी हैं और कौन कितनी सैलरी दे रहा!

ख़ैर उसने वो अख़बार को फोल्ड कर अच्छे से अपनी ही अलमारी में रख दिया...जहां ऐसे ही कई अखबार थे!

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