Dr Ranveer Navjeevan Hospital Nagaur

Dr Ranveer Navjeevan Hospital Nagaur An ethical surgical, urology & medical centre

05/01/2025
04/05/2024

Best of luck to all NEET 2024 aspirants! Here are a few suggestions to keep in mind during the exam:

1.Begin by solving the easy questions in the first round. Mark questions you need more attention as 'R' and the difficult ones as 'D'.
2.In the second round, focus on solving the 'R' marked questions, then move on to the 'D' marked questions.
3.Reserve the third round for tackling the difficult questions.
4.Remember to fill out the OMR sheet simultaneously with each round, avoiding waiting until the last minute.
5.Don't panic if one paper takes longer than expected; it may indicate that another subject's paper will be easier.
Wishing you all the best for a successful exam!
Dr Prabhu Dayal
Jayant K, MBBS

10/04/2024

देशभक्ति क्या है - अपना काम इमानदारी से करना. आप खुद ही फैसला कर ले कि आप देशभक्त है या देशद्रोही?

Good morning

https://youtu.be/KV9cROXbNjY?si=imDda7zf-DEVEwuW
17/12/2023

https://youtu.be/KV9cROXbNjY?si=imDda7zf-DEVEwuW

एक अच्छी हंसी खुशी जिंदगी जीने का आपका हक है. अगर ऐसा नहीं है तो डॉक्टर को दिखाएं

जिस ओर जवानी चलती है, बुढापा वहीं पहुंचता है। दूसरा विश्वयुद्ध, घ्वस्त देश, बरबाद अर्थव्यवस्था ... जापान की नई पीढी को य...
15/12/2023

जिस ओर जवानी चलती है,
बुढापा वहीं पहुंचता है।

दूसरा विश्वयुद्ध, घ्वस्त देश, बरबाद अर्थव्यवस्था ... जापान की नई पीढी को यही सौगात मिली थी।

देश को राख से खड़ा़ करना था। शुरूआती कनफ्यूजन के बाद जापान की सरकार और केन्द्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था को खड़ा करना शुरू किया।

केन्द्रीय बैंक ने एक क्रेडिट सिस्टम शुरू किया - विण्डो गाइडेंस।
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असल मे यह युद्ध के दौर की फंडिंग का ही एक प्रतिरूप था। तब टैंक के लिए, प्लेन के लिए, बंदूको, हथियारों , विमान वाहक पोत के लिए कोटा लक्ष्य तय होता था।

बैंक सिर्फ ऋण नही देता था, बल्कि उत्पादन मे कोई बाधा न आए, ये भी देखता। यह व्यवस्था युद्ध के बाद नए तरीके से लागू हुई।

स्टील मे, बिजली मे, हाउसिंग मे, आटोमोबाइल .... इस तरह हर सेक्टर मेे लोन देने का एक कोटा शुरू किया। छोटे छोटे व्यवसाइयों को खोजकर उन्हे काम के लिए लोन दिये।

सरकार ने जमीनें दी, सस्ते मे अच्छी शिक्षा दी, कालेज और शिक्षा संस्थानों से छात्र निकलकर सीधे इन फैक्ट्रियों मे पहुंचे।

छोटे छोटी कंपनियां - सान्यो, माजदा, होंडा, टोयोटा, कैनन, सोनी, पैनासोनिक, लैक्सस बनकर दुनिया पर छा गई।

दुनिया मे जापानी सामान बिकता, और दुनिया का पैसा जापान आ जाता। और इन्वेस्टमेण्ट, इससे और समृद्धि....।
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कभी यह काम ब्रिटेन दुनिया कारखाना बनकर कर रहा था। पर जापान ने बगैर साम्राज्यवाद के यह कर दिखाया।

अगली पीढी को भी यही कर्मठता, इनोवेशन, एजुकेशन घुट्टी मे मिली। और विश्व का कारखाना, जापान हो गया। महज दो पीढी मे जापानी लोगों का जीवन स्तर दुनिया मे सबसे उंचा हो गया।
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जापान यूं तो पिछले बीस सालों से मंदी और स्थिरता मे फंसा है। गिरती हुई आबादी, घटता कन्ज्मप्शन और खर्च इसका कारण है।

शानदार हेल्थकेयर के कारण इंसान 100 साल जीता है। आबादी मे अब बूढे ज्यादा है, जवान कम, वर्कफोर्स कम।

पर इससे जीवन स्तर मे कोई गिरावट नही आई। क्योकि इन बूढों के पास सेविंग है। घर है, पेंशन है .... जिंदगी के मजे है।
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चीन ने इसी माडल को अपनाया। अपनी जवान आबादी को काम पर लगा दिया। पिछले बीस सालों से दुनिया का कारखाना, चीन है।

उसने 1980 के बाद से 80 करोड लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। दुनिया का ट्रेड किंग चीन है, उस पैसे से वह सुपरपावर बन चुका है।

अब चीन की आबादी भी बढना भी रूक चुकी है। जन्म दर कम है, मृत्यु दर और भी कम, तो 20 साल बाद चीन भी बूढों का देश होगा।

लेकिन समृद्ध, आत्मनिर्भर बूढों का ...
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यही माडल हम भी अपनाने चले थे। 65 प्रतिशत जवान आबादी का ऐतिहासिक अवसर हमे भी मिला।

सफलता भी कदम चूम रही थी, भारत इमर्जिंग इकानमी था। कि अचानक हमारा धर्म खतरे मे आ गया।

हमारे युवा नेहरू का गरियाने, चीन का कटियाने, पाकिस्तान को लतियाने का मौका खोजने लगा। शिक्षा महंगी होती गई, इन्टरनेट सस्ता हुआ।

रैलियों मे भीड़ बढ़ी, पार्टी के कार्यकर्ता भी, मंदिर बना, सेन्ट्रल विस्टा बना, 370 हट गई और तीन तलाक बैन हो गया।

गर्व की सप्लाई हुई, बार बार देशभक्त सरकारे बनी और पप्पू मूत्र पीवक, वामी, और जेएनयू धूल चाटने लगे।

अरे हां, मुल्ले टाइट भी जबरजस्त टाइट हूए।
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भारत की जवानी अब मुल्ले टाइट करने मे गुजर रही है। लैपटाप पर काम करते युवा को देखकर बाप गौरवान्वित है। लेकिन बेटा तो बुल्ली बाई एप बना रहा है। ट्रोल कर रहा है, गालियां बक रहा हैं।

डेमोग्राफिक डिवीडेंट का जो मौका चार हजार साल के इतिहास मे पहली बार आया था, बस यूं ही निकल गया।

इस युवा के पास न स्किल्स है, न जाब है, न सेविंग ...30 साल बाद कोई पेंशन भी नही होगी।

नेहरू की पेंशन खाने वाले 10 साल मे साफ हो जाऐगे। अटल की नाममात्र की पेंशन वाले, भी अपने बच्चों पर निर्भर होंगे।
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और वो बच्चे ....खुद ही, मिडिल एज, थकी, चीट करी गई, हताश, बेकार आबादी होगी।

जिसने यह सब जवानी मे अपनी हाथ मे लकीरों मे जबरन खोदा था। क्योकि जिस ओर जवानी चलती है,

बुढापा वहीं पहुंचता है।

Manish Singh

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