Nakshatra Astrology Services - Vishal Baviskar

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22/09/2025

●● NAS : RITUAL ASTROLOGY✨
●● शारदीय नवरात्रि 2025

मां दुर्गा की भक्ति और आस्था का पर्व, शारदीय नवरात्रि, इस वर्ष विशेष उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाएगा।

हालाँकि साल में चार नवरात्रि होती हैं, लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। इस बार शारदीय नवरात्रि 22 सितम्बर से 2 अक्टूबर 2025 तक मनाई जाएगी। इस वर्ष पितृ पक्ष एक दिन कम होने के कारण नवरात्रि के दिन 10 हो गए हैं।

🌼 नवरात्रि तिथियाँ और देवी पूजन -

दिन 1 – 22 सितम्बर : शैलपुत्री पूजा

दिन 2 – 23 सितम्बर : ब्रह्मचारिणी पूजा

दिन 3 – 24 सितम्बर : चंद्रघंटा पूजा

दिन 4 – 25 सितम्बर : विनायक चतुर्थी

दिन 5 – 26 सितम्बर : कूष्मांडा पूजा

दिन 6 – 27 सितम्बर : स्कंदमाता पूजा

दिन 7 – 28 सितम्बर : कात्यायनी पूजा

दिन 8 – 29 सितम्बर : कालरात्रि पूजा

दिन 9 – 30 सितम्बर : महागौरी पूजा

दिन 10 – 1 अक्टूबर : महानवमी / अयुध पूजा

2 अक्टूबर : विजयादशमी (दशहरा)

🌼 नवरात्रि का महत्व और उत्सव
● नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है।

● प्रतिदिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।

● दुर्गा सप्तशती पाठ, उपवास, भजन-कीर्तन और आरती से वातावरण भक्तिमय हो उठता है।

● अष्टमी पर विशेष संधि पूजा होती है।

ग● रबा और डांडिया की रातें भक्ति और उल्लास को और बढ़ा देती हैं।

● महानवमी और विजयादशमी पर मां की आराधना का समापन होता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

इस नवरात्रि मां दुर्गा की कृपा से आपके जीवन में शक्ति, समृद्धि और मंगल का प्रकाश फैले।

22/09/2025

●● NAS : Mytho Astrology ..
*❤❤ HaPpY नवरात्रि @ 2025:*

●● नवरात्रि मनाने के कारण और महत्व

● अच्छाई की बुराई पर विजय

महिषासुर के आतंक से देवताओं और मनुष्यों को मुक्ति मिली।
माँ दुर्गा ने 9 रातों तक युद्ध कर महिषासुर का वध किया।
यह पर्व शक्ति और साहस की जीत का प्रतीक है।

● नौ स्वरूपों की पूजा

नवरात्रि में माँ दुर्गा के 9 रूपों की आराधना होती है।
प्रत्येक दिन एक स्वरूप की पूजा – जैसे शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा आदि।
पूजा से शांति, साहस, भक्ति, शक्ति, करुणा और विवेक जैसे गुण मिलते हैं।

● आध्यात्मिक साधना का समय

आत्मशुद्धि और आत्मबल बढ़ाने का श्रेष्ठ अवसर।
उपवास, मंत्र-जप, ध्यान और साधना से मन-शरीर की शुद्धि होती है।

● ऋतु परिवर्तन का संकेत

नवरात्रि का समय मौसम बदलने का संकेत देता है।
सात्विक भोजन और व्रत रोग-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं।

● सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

गरबा, डांडिया, कथा, भजन-कीर्तन से वातावरण में उत्साह।
यह पर्व समाज में मेल-जोल और एकता का संदेश देता है।

❤ नवरात्रि का मूल संदेश
भीतर की नकारात्मकता, आलस्य और भय पर विजय पाकर ही जीवन में सफलता, शांति और समृद्धि पाई जा सकती है।

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●● NAS : RITUAL ASTROLOGY✨●● पितृ पक्ष के अंतिम दिन (सर्वपितृ अमावस्या) पर तर्पण करने की विधि-●● प्रारम्भ से पहलेशरीर शु...
19/09/2025

●● NAS : RITUAL ASTROLOGY✨
●● पितृ पक्ष के अंतिम दिन (सर्वपितृ अमावस्या) पर तर्पण करने की विधि-

●● प्रारम्भ से पहले

शरीर शुद्ध करें: प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें।

सामग्री एकत्र करें: तांबे या पीतल का पात्र, काले तिल, कुश (दर्भा घास), और स्वच्छ जल रखें।

स्थान चुनें: घर पर या किसी पवित्र नदी के तट पर तर्पण करें।

स्थान की तैयारी: दक्षिण दिशा की ओर आसन बिछाकर बैठें। सामने पात्र और अन्य सामग्री रखें।

●● तर्पण करने की विधि

संकल्प करें: मन ही मन संकल्प लें कि आप अपने सभी पितरों की शांति और कल्याण हेतु तर्पण कर रहे हैं।

देवता और ऋषियों को जल अर्पण: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके जल, चावल या जौ मिलाकर अर्पण करें। यह अर्पण उँगलियों की नोक से करें।

●● पितरों को जल अर्पण:

दक्षिण दिशा की ओर मुख करें और यदि जनेऊ पहनते हैं तो उसे अपसव्य (दाएँ कंधे पर) करें।

बाएँ हाथ की अँगूठे और तर्जनी के बीच कुश रखें।

दाएँ हाथ में काले तिल मिले जल को अंजलि में लें।

ज्ञात पितरों के नाम स्मरण करें। अज्ञात पितरों के लिए मंत्र बोलें: “ॐ सर्व पितृदेवाय नमः”।

धीरे-धीरे यह जल कुश पर अर्पित करें ताकि जल अँगूठे और तर्जनी के बीच से बहकर धरती या पात्र पर गिरे।

यह प्रक्रिया प्रत्येक पितर के लिए तीन बार या कम से कम तीन बार अवश्य करें।

●● तर्पण के बाद

पिंडदान (वैकल्पिक): यदि पूर्ण श्राद्ध कर रहे हों तो पके हुए चावल के गोले (पिंड) बनाकर पितरों को अर्पित करें।

अन्य जीवों को भोजन: कौवे, गाय, कुत्ते और चींटियों के लिए भोजन या पिंड अलग-अलग पत्तों पर रखें। माना जाता है कि पितर इन जीवों के माध्यम से अन्न ग्रहण करते हैं।

जरूरतमंदों को भोजन कराएँ: ब्राह्मणों या गरीब लोगों को भोजन कराएँ।

शांति प्रार्थना: पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए प्रार्थना करें।

दान करें: अंत में अन्न, वस्त्र या धन जरूरतमंदों को दान करें।

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●● NAS : RITUAL ASTROLOGY✨●● जीवित्पुत्रिका व्रत 2025जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया व्रत भी कहा जाता है, आश्विन कृष्ण ...
12/09/2025

●● NAS : RITUAL ASTROLOGY✨
●● जीवित्पुत्रिका व्रत 2025

जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया व्रत भी कहा जाता है, आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी जीवन की कामना से करती हैं। इस दिन पूरे दिन निर्जला उपवास रखा जाता है। परंपरा है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियों की संतान निरोगी, दीर्घायु और तेजस्वी होती है।

यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में लोकप्रिय है।

●● जितिया व्रत 2025 की तिथि

इस वर्ष व्रत 14 सितंबर 2025 (रविवार) को रखा जाएगा।

अष्टमी तिथि प्रारंभ: 14 सितंबर सुबह 05:04 बजे

अष्टमी तिथि समाप्त: 15 सितंबर सुबह 03:06 बजे

●● पूजा मुहूर्त 2025

ब्रह्म मुहूर्त: 04:33 AM – 05:19 AM

प्रातः सन्ध्या: 04:56 AM – 06:05 AM

अभिजित मुहूर्त: 11:52 AM – 12:41 PM

विजय मुहूर्त: 02:20 PM – 03:09 PM

गोधूलि मुहूर्त: 06:27 PM – 06:51 PM

सायाह्न सन्ध्या: 06:27 PM – 07:37 PM

अमृत काल: 11:09 PM – 12:40 AM (15 सितंबर)

निषीथ मुहूर्त: 11:53 PM – 12:40 AM (15 सितंबर)

रवि योग: 06:05 AM – 08:41 AM

●● पूजन विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

घर के मंदिर में धूप, दीप और आरती करें, भोग लगाएं।

मिट्टी और गोबर से चील और सियारिन की प्रतिमा तैयार करें।

कुशा से बने जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप, दीप, चावल और पुष्प अर्पित करें।

विधि-विधान से पूजा करें और जितिया व्रत कथा का श्रवण करें।

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06/09/2025

●● NAS : RITUAL ASTROLOGY✨
●● पूर्ण चंद्र ग्रहण 7 सितंबर 2025✨

इस वर्ष का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण 7 सितंबर 2025 को होगा और यह पूरे भारत में दिखाई देगा। हिंदू परंपरा में चंद्र ग्रहण का गहरा आध्यात्मिक महत्व है, खासकर जब यह पितृ पक्ष जैसे पवित्र समय में आता है। चंद्रमा पूरी तरह धरती की छाया में डूब जाएगा, जिसे आम भाषा में ‘ब्लड मून’ कहा जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चंद्रमा उस समय हल्के लाल रंग का दिखता है। यह पूरा ग्रहण लगभग 3 घंटे 28 मिनट तक चलेगा और भारत के सभी हिस्सों में आसानी से दिखाई देगा।

●● समय (भारतीय समयानुसार)

आरंभ: 7 सितंबर, रात 9:58 बजे

चरम: रात 11:42 बजे

समाप्ति: 8 सितंबर, सुबह 1:26 बजे

कुल अवधि: लगभग 3 घंटे 28 मिनट

यह ग्रहण नंगी आँखों से देखना सुरक्षित है। धीरे-धीरे चंद्रमा का आंशिक अंधकार में ढलना एक अद्भुत दृश्य होगा।

पंचांग के अनुसार सूतक काल ग्रहण से 9 घंटे पहले शुरू हो जाता है, यानी 7 सितंबर दोपहर 12:57 बजे से। इस दौरान मंदिरों के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। पूजा-पाठ, भोजन बनाना, या खाना खाना मना होता है। गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए, जैसे कि नुकीली चीजों से दूर रहना और बाहर न निकलना। इस समय केवल भगवान का नाम जपना, मंत्र जाप करना और ध्यान लगाना ही शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दौरान मंत्रों की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।

●● राशियों पर असर
ज्योतिष के मुताबिक, यह चंद्र ग्रहण भी बेहद खास है क्योंकि यह शनि की राशि कुंभ और गुरु के नक्षत्र पूर्वाभाद्रपद में लग रहा है। साथ ही राहु चंद्रमा के साथ युति बना रहा है, जिससे ग्रहण योग बनता है। यह योग कुछ राशियों के लिए थोड़ी मुश्किलें लेकर आ सकता है। वृषभ, तुला और कुंभ राशि वाले लोगों को खास सतर्क रहने की जरूरत है। वृषभ राशि वालों को स्वास्थ्य और व्यापार में परेशानी हो सकती है, तुला राशि के लोगों को मानसिक तनाव और धन के मामलों में नुकसान झेलना पड़ सकता है, जबकि कुंभ राशि में तो ग्रहण लग ही रहा है, इसलिए उनके लिए यह समय काफी संवेदनशील माना जा रहा है।

●● ग्रहण के समय क्या करें

मंत्र जाप और ध्यान करें

धार्मिक ग्रंथ का पाठ करें

तुलसी, कुश या तुलसीदल जल में डालकर रखें

ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान कर शुद्धि करें

ज़रूरतमंदों को दान करें

यह ग्रहण पितृ पक्ष के दौरान पड़ रहा है, जो पूर्वजों को याद करने और श्राद्ध करने का विशेष समय है। परिवारजन अपने पितरों की शांति और आशीर्वाद के लिए पूजा-पाठ करते हैं।

●● NAS : RITUAL ASTROLOGY✨●● पितृ पक्ष 2025 – तिथि और महत्व ✨हिंदू परंपरा में पितृ पक्ष का विशेष स्थान है। यह 16 दिनों क...
06/09/2025

●● NAS : RITUAL ASTROLOGY✨
●● पितृ पक्ष 2025 – तिथि और महत्व ✨

हिंदू परंपरा में पितृ पक्ष का विशेष स्थान है। यह 16 दिनों का समय हमारे पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का होता है। इस अवधि में तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध अनुष्ठानों के माध्यम से पितरों को सम्मान दिया जाता है। मान्यता है कि इससे पितृ दोष दूर होता है और घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

इस वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 (रविवार) से होगी और इसका समापन 21 सितंबर 2025 (रविवार) को सर्वपितृ अमावस्या के दिन होगा।

●● पितृ पक्ष 2025 की प्रमुख तिथियां

● पूर्णिमा श्राद्ध – 07 सितम्बर (रविवार)

● प्रतिपदा – 08 सितम्बर (सोमवार)

● द्वितीया – 09 सितम्बर (मंगलवार)

● तृतीया एवं चतुर्थी – 10 सितम्बर (बुधवार)

● पंचमी एवं महा भरणी – 11 सितम्बर (गुरुवार)

● षष्ठी – 12 सितम्बर (शुक्रवार)

● सप्तमी – 13 सितम्बर (शनिवार)

● अष्टमी – 14 सितम्बर (रविवार)

● नवमी – 15 सितम्बर (सोमवार)

● दशमी – 16 सितम्बर (मंगलवार)

● एकादशी – 17 सितम्बर (बुधवार)

● द्वादशी – 18 सितम्बर (गुरुवार)

● त्रयोदशी एवं मघा – 19 सितम्बर (शुक्रवार)

● चतुर्दशी – 20 सितम्बर (शनिवार)

● सर्वपितृ अमावस्या – 21 सितम्बर (रविवार)

●● श्राद्ध करने की विधि
श्राद्ध के समय योग्य ब्राह्मण को बुलाकर तर्पण व पिंडदान करना शुभ माना जाता है। भोजन व दक्षिणा अर्पित करने के साथ ही जरूरतमंदों को भोजन कराना भी पुण्यदायी होता है। परंपरा के अनुसार गाय, कुत्ते और कौवे के लिए अन्न अवश्य निकालना चाहिए।

श्राद्ध का सबसे उपयुक्त समय दोपहर का माना जाता है। इस समय मंत्रोच्चारण और विधिपूर्वक पूजा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

●● पितृ पक्ष में ध्यान रखने योग्य बातें

केवल सात्विक भोजन ग्रहण करें

बाल व नाखून न कटवाएँ

लहसुन, प्याज जैसे तामसिक भोजन से परहेज़ करें

घर-गाड़ी खरीदने, नया काम शुरू करने जैसे मांगलिक कार्य टालें

पितृ पक्ष हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है और जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि का मार्ग खोलता है।

*●● NAS : RITUAL ASTROLOGY**❤❤ HaPpY Teachers' Day @ 2025*🌸 शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌸शिक्षक सिर्फ पढ़ाते ही नह...
05/09/2025

*●● NAS : RITUAL ASTROLOGY*
*❤❤ HaPpY Teachers' Day @ 2025*

🌸 शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌸

शिक्षक सिर्फ पढ़ाते ही नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाले मार्गदर्शक होते हैं।
उनकी दी हुई सीख और संस्कार ही हमें आगे बढ़ने की शक्ति देते हैं। 🙏📚

आज के दिन हम उन सभी गुरुओं को नमन करते हैं,
जो हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाते हैं और
हर कदम पर प्रेरणा बनते हैं। 💐

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30/08/2025

●● NAS : RITUAL ASTROLOGY
●● राधा अष्टमी

राधा अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य प्रिय एवं दिव्य शक्ति श्री राधारानी का प्राकट्य दिवस माना जाता है। यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व प्रायः अगस्त या सितंबर माह में पड़ता है।

इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और मध्याह्न काल (दोपहर के समय) में राधारानी का पूजन किया जाता है।

विशेष रूप से ब्रजभूमि (बरसाना) में इस उत्सव का अत्यधिक महत्व है। श्री लाड़ली जी महाराज मंदिर, बरसाना में भव्य उत्सव, अभिषेक और विशेष पूजन आयोजित किया जाता है।

इसे राधाष्टमी या राधा जयंती भी कहा जाता है।

●● राधा अष्टमी व्रत विधि (व्रत विधान)

बृहन्नारदीय पुराण में राधा अष्टमी व्रत का उल्लेख मिलता है। व्रत इस प्रकार करें:

प्रातः स्नानादि के पश्चात शुद्ध वस्त्र धारण करें।

मंडप में पवित्र मंडल बनाकर केंद्र में मिट्टी अथवा ताम्र कलश स्थापित करें।

कलश पर ताम्र पात्र रखकर उस पर स्वर्णमूर्ति रूपी श्री राधारानी का प्रतिष्ठापन करें।

मूर्ति को दो नवीन वस्त्रों से आवृत करें।

मध्याह्न काल में षोडशोपचार पूजन करें।

दिनभर उपवास करें। असमर्थ होने पर एकभुक्त व्रत (एक समय भोजन) रखें।

अगले दिन विवाहित स्त्रियों को प्रेमपूर्वक भोजन कराएँ।

पूजित मूर्ति आचार्य को दान देकर परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें।

●● राधा अष्टमी मंत्र:
राधा अष्टमी के पावन अवसर पर जपने योग्य गायत्री मंत्र इस प्रकार है:

ॐ वृशभानुजायै विद्महे।
कृष्णप्रियायै धीमहि।
तन्नो राधा प्रचोदयात्॥

यह मंत्र साधक को राधारानी की दिव्य शक्ति से जोड़ता है और जीवन में प्रेम, भक्ति तथा आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है।

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30/08/2025

●● NAS : RITUAL ASTROLOGY ❤❤ गणपति बप्पा मोरया ..

🙏 गणपति बप्पा का स्वरूप (Look)

सिर और सूंड 🐘

हाथी जैसा बड़ा सिर – बुद्धि, विवेक और सोचने की शक्ति का प्रतीक।

लंबी सूंड – लचीलापन, हर परिस्थिति में ढलने और छोटी-बड़ी बातों को समझने की क्षमता।

आँखें 👀

छोटी-छोटी गहरी आँखें – एकाग्रता और गहराई से देखने की शक्ति।

कान 👂

बड़े कान – अच्छी बातें सुनने और बुरी बातों को छाँट देने का संदेश।

उदर (बड़ा पेट) 🍃

धैर्य और सहनशीलता का प्रतीक – जीवन के सुख-दुख को पचाने की शक्ति।

उदर पर बंधा सर्प (साँप) – इच्छाओं और ऊर्जा पर नियंत्रण।

चार भुजाएँ (हाथ) ✋

एक हाथ में अंकुश (नियंत्रण का प्रतीक)।

दूसरे हाथ में पाश (बंधन और मोह पर जीत)।

तीसरे हाथ में मोदक (ज्ञान और भक्ति का मीठा फल)।

चौथा हाथ आशीर्वाद मुद्रा (सुरक्षा और कृपा का संकेत)।

वाहन – मूषक (चूहा) 🐭

उनके पैरों के पास छोटा सा चूहा बैठा रहता है, जो इच्छाओं पर काबू और विनम्रता का प्रतीक है।

आभूषण और मुकुट 👑

सोने के गहने और चमकता मुकुट – समृद्धि, शक्ति और दिव्यता का प्रतीक।

मोदक की थाली 🍬

सामने रखी हुई मिठास भरी थाली, जो जीवन में खुशियों और फल की प्राप्ति को दर्शाती है।

यानी गणपति बप्पा का रूप हमें यह सिखाता है

बुद्धि से सोचो, धैर्य से जियो, इच्छाओं पर काबू रखो और भक्ति से जीवन में मिठास पाओ।

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26/08/2025

●● NAS : RITUAL ASTROLOGY
●● गणेश चतुर्थी 2025

गणेश चतुर्थी 2025 इस वर्ष बुधवार, 27 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। यह दिन विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता और बुद्धि-सिद्धि दाता भगवान गणेश का जन्मोत्सव है। पर्व का समापन अनंत चतुर्दशी पर गणेश विसर्जन के साथ होगा।

●● पूजा मुहूर्त एवं तिथि

चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 26 अगस्त 2025, दोपहर 01:54 बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त: 27 अगस्त 2025, दोपहर 03:44 बजे

मध्याह्न गणेश पूजा मुहूर्त: 27 अगस्त 2025, 11:05 AM से 01:40 PM तक

इस अवधि को गणेश पूजन का सबसे शुभ समय माना जाता है।

●● पूजा विधि एवं अनुष्ठान

प्रतिमा स्थापना: घर या मंडप में मिट्टी की गणेश प्रतिमा स्थापित करें। प्रतिमा को लाल वस्त्र, पुष्प और दूर्वा से सजाएँ।

संकल्प: भक्त मनोकामना सिद्धि और परिवार की मंगलकामना हेतु संकल्प लेते हैं।

प्राण प्रतिष्ठा: वैदिक मंत्रों के उच्चारण से भगवान गणेश का आह्वान कर प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।

षोडशोपचार पूजा: भगवान को 16 उपचरों से पूजित किया जाता है। मोदक, गुड़, नारियल और फल गणेश जी को विशेष प्रिय हैं।

आरती और भजन: दीप प्रज्वलित कर आरती गाई जाती है और भक्त भजनों के माध्यम से विघ्नों के नाश और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।

पूजन के दिनों में प्रतिदिन आरती, भोग और भक्तिगीत किए जाते हैं। अंतिम दिन शोभायात्रा सहित गणेश विसर्जन किया जाता है, जो भगवान गणेश के कैलाश लौटने का प्रतीक है।

●● महत्व

गणेश चतुर्थी नए आरंभ, सफलता और शुभता का प्रतीक है। विश्वास है कि इस दिन श्रीगणेश की पूजा से सभी बाधाएँ दूर होती हैं और जीवन में सौभाग्य, बुद्धि व समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही यह उत्सव सामूहिक भक्ति, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक रंगों का संगम है, जब परिवार और समाज मिलकर विघ्नहर्ता श्री गणेश की आराधना करते हैं।

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*●● NAS : RITUAL ASTROLOGY**❤❤ HaPpY हरतालिका @ 2025**शुभ मुहूर्त*Hartalika Teej  #2025: मंगलवार, 26 अगस्त 2025शुभ मुहूर...
26/08/2025

*●● NAS : RITUAL ASTROLOGY*

*❤❤ HaPpY हरतालिका @ 2025*

*शुभ मुहूर्त*

Hartalika Teej #2025: मंगलवार, 26 अगस्त 2025

शुभ मुहूर्त (पूजा के लिए): सुबह 5:56–8:31 बजे (ज्ञात समय) या 6:01–8:34 बजे (अन्य स्रोत अनुसार)

तिथि अवधि: 25 अगस्त दोपहर से 26 अगस्त दोपहर तक |

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●● NAS : RITUAL ASTROLOGY●● शनि अमावस्या 2025इस वर्ष भाद्रपद अमावस्या शनिवार, 23 अगस्त को पड़ रही है। जब अमावस्या शनिवार...
22/08/2025

●● NAS : RITUAL ASTROLOGY
●● शनि अमावस्या 2025
इस वर्ष भाद्रपद अमावस्या शनिवार, 23 अगस्त को पड़ रही है। जब अमावस्या शनिवार को आती है तो इसे शनिश्चरी अमावस्या कहा जाता है। यह दिन शनि दोष, साढ़ेसाती, ढैय्या और पितृ दोष से मुक्ति पाने का विशेष अवसर माना जाता है। इस दिन की गई पूजा और दान कई गुना फल प्रदान करते हैं।

●● अमावस्या तिथि:

प्रारंभ: 22 अगस्त, सुबह 11:55 बजे

समाप्ति: 23 अगस्त, सुबह 11:35 बजे

●● महत्व:
कहा जाता है कि शनि अमावस्या की साधना जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर स्थिरता, समृद्धि और पितरों का आशीर्वाद दिलाती है। यह दिन आत्म-शुद्धि और नई शुरुआत का भी प्रतीक है।

●● इस दिन क्या करें:

शनि देव को सरसों का तेल अर्पित करें।

काले तिल, उड़द, लोहे की वस्तुएं, काला कपड़ा या तेल दान करें।

तर्पण और पितृ पूजा करें ताकि पितरों का आशीर्वाद मिले।

पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं।

‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करें।

बजरंगबली की पूजा करें ताकि शनि के कष्ट कम हों।

जरूरतमंद, गरीब या मजदूर की मदद करें—इससे शनि देव प्रसन्न होते हैं।

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