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12/10/2025

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काम और जिम्मेदारियों का बोझ बुढ़ापा आते-आते कमर झुका देता है. लेकिन वक्त रहते थोड़ी सावधानी बरती जाए तो बुढ़ापे की ....

सारिवा (Sarsaparilla / Hemidesmus indicus) – रक्तशोधक और शीतल आयुर्वेदिक अमृत आयुर्वेद में सारिवा को “अनंतमूल” भी कहा जा...
06/10/2025

सारिवा (Sarsaparilla / Hemidesmus indicus) – रक्तशोधक और शीतल आयुर्वेदिक अमृत

आयुर्वेद में सारिवा को “अनंतमूल” भी कहा जाता है। यह एक सुगंधित जड़ी-बूटी है, जिसका स्वाद मधुर, कड़वा और गुण शीतलकारी होते हैं।
चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और भावप्रकाश निघंटु में इसका उल्लेख रक्तशोधक, पित्तशामक और विषनाशक औषधि के रूप में मिलता है।

सारिवा का परिचय

संस्कृत नाम: सारिवा / अनंतमूल

वैज्ञानिक नाम: Hemidesmus indicus

गुणधर्म: मधुर-कषाय रस, शीतवीर्य, रक्तशोधक

प्रकृति: शीतल, पित्त व रक्त दोष को संतुलित करने वाली

सारिवा के प्रमुख लाभ (Main Benefits)

1. रक्तशोधक (Blood Purifier)

खून की अशुद्धि, त्वचा रोग, फोड़े-फुंसी, एक्ज़िमा में लाभकारी।

2. पित्त दोष शांत करती है

शरीर की गर्मी, जलन, नाक से खून आना, पेट की जलन में उपयोगी।

3. मूत्रल और विषनाशक

गुर्दे और मूत्र विकारों को ठीक करती है, पेशाब की जलन व पथरी में लाभकारी।

4. शीतल व ताजगी देने वाली

गर्मी, प्यास, बुखार, थकान में तुरंत राहत देती है।

5. एलर्जी और त्वचा रोगों में लाभकारी

रक्त की शुद्धि कर त्वचा की खुजली, लाल दाने, एलर्जी को दूर करती है।

6. हृदय और रक्तसंचार में सहायक

रक्त को ठंडक देकर हृदय को मज़बूत करती है और ब्लड प्रेशर संतुलित करती है।

7. सुगंधित पेय व टॉनिक

इसे शरबत या काढ़े के रूप में प्रयोग करने से शरीर को ठंडक और ऊर्जा मिलती है।

सेवन विधि (How to Take)

1. सारिवा का शरबत – 10 ग्राम सारिवा जड़ को 1 गिलास पानी में उबालकर ठंडा करके पीएँ।
2. सारिवा चूर्ण – 3 से 5 ग्राम चूर्ण, दिन में 2 बार पानी/दूध के साथ।
3. काढ़ा – 10 ग्राम सारिवा, 400 ml पानी में उबालकर 100 ml सुबह-शाम लें।
4. सारिवाद्यासन (Classical Yog) – सारिवा से बना यह योग त्वचा रोगों में प्रयोग किया जाता है।
5. सारिवा दूध के साथ – शरीर को पोषण और शीतलता देने हेतु।
6. सारिवा अर्क – बाजार में उपलब्ध सारिवा अर्क को चिकित्सक की सलाह अनुसार लें।
7. फ्रेश ड्रिंक – गर्मियों में सारिवा की जड़ को पानी में भिगोकर उसका सुगंधित जल पी सकते हैं।

सावधानियाँ (Precautions)

अत्यधिक ठंड प्रकृति वाले लोग सीमित मात्रा में लें।

गर्भवती महिलाएँ और छोटे बच्चों को केवल आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से दें।

हमेशा ताजा औषधि का प्रयोग करें।

निष्कर्ष

सारिवा रक्तशोधक, पित्तशामक और शीतलता प्रदान करने वाली औषधि है।
यह न सिर्फ त्वचा और रक्त विकारों को दूर करती है, बल्कि शरीर को अंदर से ठंडक और ताजगी देती है।
इसलिए इसे आयुर्वेद में “रक्तशोधक शीतल अमृत” कहा गया है।

गोक्षुर चूर्ण – मूत्र व वीर्य संबंधी रोगों का अमृत उपचार गोक्षुर (Tribulus terrestris) एक अद्भुत औषधि है, जिसका उल्लेख च...
05/10/2025

गोक्षुर चूर्ण – मूत्र व वीर्य संबंधी रोगों का अमृत उपचार

गोक्षुर (Tribulus terrestris) एक अद्भुत औषधि है, जिसका उल्लेख चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदयम् में किया गया है। इसे आयुर्वेद में "शुक्रवर्धक" और "मूत्रविकार नाशक" औषधि कहा गया है।

गोक्षुर चूर्ण के प्रमुख लाभ (Benefits in Ayurveda):

1. मूत्र रोग नाशक – पेशाब में जलन, बार-बार पेशाब आना या रुक-रुक कर आना जैसी समस्याओं में यह अत्यंत लाभकारी है।

2. किडनी की सफाई करता है – मूत्र मार्ग को शुद्ध करता है व पथरी (Kidney Stone) को गलाने में मदद करता है।

3. वीर्य व शुक्रवृद्धि – पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने, कमजोरी दूर करने में मददगार।

4. हृदय बलवर्धक – हृदय को स्वस्थ रखता है, रक्तचाप को संतुलित करता है।

5. स्नायु व मांसपेशियों को मजबूत बनाता है – थकान, कमजोरी, और मांसपेशियों के दर्द में राहत।

6. सूजन व जलोदर में उपयोगी – शरीर की सूजन, जल एकत्र होने पर अत्यंत प्रभावी।

7. प्रजनन शक्ति बढ़ाता है – पुरुषों और स्त्रियों दोनों में प्रजनन शक्ति को प्रोत्साहित करता है।

गोक्षुर चूर्ण बनाने की विधि (Preparation Method):

1. सूखे गोक्षुर (Tribulus terrestris) फल या बीज को एकत्र करें।

2. उन्हें धूप में सुखाकर हल्का भून लें।

3. मिक्सर या खरल में बारीक पीसकर चूर्ण तैयार करें।

4. महीन छलनी से छानकर वायुरोधक शीशी में भरें।

सेवन विधि (Dosage & Usage):

मात्रा: 3–5 ग्राम चूर्ण

सेवन समय: दिन में दो बार – सुबह व शाम

सहपान: गुनगुना दूध या शहद के साथ

अवधि: निरंतर 1–2 महीने सेवन करने पर श्रेष्ठ परिणाम मिलते हैं

सावधानी:

गर्भवती महिलाओं को चिकित्सक की सलाह से ही सेवन कराना चाहिए।

अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में गर्मी बढ़ सकती है।

गोक्षुर चूर्ण – पुरुषत्व, मूत्र स्वास्थ्य और शरीर की शक्ति का आयुर्वेदिक कवच

एक अध्ययन में अश्वगंधा (विदानिया सोम्निफेरा) से मिलने वाले विथाफेरिन ए को टीबी के इलाज में सहायक पाया गया है। विथाफेरिन ...
05/10/2025

एक अध्ययन में अश्वगंधा (विदानिया सोम्निफेरा) से मिलने वाले विथाफेरिन ए को टीबी के इलाज में सहायक पाया गया है। विथाफेरिन ए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है साथ ही टीबी के खिलाफ जंग में ये प्रभावी साबित हुआ है।

पपीता बीज – शरीर की सफाई करने वाला प्राकृतिक अमृत! आयुर्वेद में पपीता (Carica papaya) को "देहशुद्धिकर" यानी शरीर को भीतर...
05/10/2025

पपीता बीज – शरीर की सफाई करने वाला प्राकृतिक अमृत!

आयुर्वेद में पपीता (Carica papaya) को "देहशुद्धिकर" यानी शरीर को भीतर से शुद्ध करने वाली औषधि कहा गया है।
जहाँ इसका फल स्वादिष्ट और पाचक माना गया है, वहीं इसके बीज (Papita Beej) एक गुप्त लेकिन अत्यंत शक्तिशाली औषधि के रूप में प्रसिद्ध हैं।

आयुर्वेदिक गुण (Ayurvedic Properties)

रस (Taste): कटु (तीखा), तिक्त (कड़वा)

गुण (Quality): लघु (हल्का), तीक्ष्ण (तेज़)

वीर्य (Potency): उष्ण (गर्म)

दोष प्रभाव: वात-कफ नाशक

मुख्य क्रिया: अग्निदीपक, कृमिघ्न, यकृतशोधक

पपीता बीज के प्रमुख लाभ (Main Benefits of Papaya Seeds)

1. कृमिनाशक (Worm Cleanser)

पपीता बीज में पपाइन एंज़ाइम होता है जो आँतों में मौजूद कीड़े, परजीवी व हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है।

2. यकृत (Liver) की सफाई

नियमित सेवन से यह लीवर को डिटॉक्स करता है, फैटी लिवर व पीलिया जैसे रोगों में सहायक है।

3. पाचन तंत्र सुधारक

गैस, अपच, पेट दर्द, और पेट भारीपन को दूर करता है।
यह अग्नि को तेज कर भोजन का पाचन पूर्ण करता है।

4. रक्त शुद्धिकरण (Blood Purifier)

पपीता बीज का सेवन शरीर से विषाक्त तत्वों (toxins) को बाहर निकालकर त्वचा को निखारता है।

5. ⚖️ वजन घटाने में सहायक

बीज में मौजूद प्राकृतिक एंज़ाइम्स शरीर की अतिरिक्त चर्बी को गलाने में मदद करते हैं।

6. त्वचा और बालों के लिए उपयोगी

त्वचा पर इनका पेस्ट लगाने से दाग, पिंपल और डार्क स्पॉट्स में राहत मिलती है।
बालों में लगाने पर डैंड्रफ खत्म होती है और जड़ें मजबूत बनती हैं।

7. रक्तचाप व शुगर नियंत्रण

नियमित व सीमित मात्रा में सेवन ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल दोनों को नियंत्रित रखता है।

उपचार व सेवन विधि (Treatment & Sevan Vidhi)

1. कृमि रोग (Worms Infection) में

1 चम्मच सूखे पपीता बीज का पाउडर

1 चम्मच शहद के साथ सुबह खाली पेट लें
7 दिन तक लगातार सेवन करें।

2. लीवर शुद्धि हेतु (Liver Detox)

5–6 ताजे बीज पीसकर 1 गिलास नींबू पानी में मिलाएँ

रोज़ सुबह खाली पेट पिएँ
15 दिन तक सेवन करें।

3. पाचन सुधार हेतु

भोजन के बाद 3–5 बीज चबाकर खाएँ

या गर्म पानी के साथ निगल लें

4. वजन घटाने हेतु

1 चम्मच पपीता बीज पाउडर गुनगुने पानी के साथ रोज़ लें

या स्मूदी में मिलाकर पी सकते हैं

5. त्वचा के लिए फेसपैक

1 चम्मच पपीता बीज पाउडर + 1 चम्मच मुल्तानी मिट्टी + गुलाबजल

चेहरे पर 10 मिनट लगाएँ, फिर धो लें
त्वचा साफ, चमकदार और पिंपल रहित होती है।

पपीता बीज पाउडर बनाने की विधि (Banane ki Vidhi)

1. पके हुए पपीते के बीज निकालें
2. इन्हें छांव में 2–3 दिन सुखाएँ
3. पूरी तरह सूख जाने पर मिक्सर में बारीक पीसें
4. शीशे की बोतल में भरकर रखें

यह पाउडर 3 महीने तक सुरक्षित रहता है।

सावधानी (Precautions)

अधिक मात्रा में सेवन से पेट में जलन या उल्टी हो सकती है

गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए

दिन में अधिकतम 1–2 ग्राम से अधिक न लें

निष्कर्ष (Conclusion)

पपीता बीज आयुर्वेद की वह औषधि है जो शरीर को भीतर से शुद्ध, हल्का और ऊर्जावान बनाती है।
यह एक प्राकृतिक डिटॉक्स, कृमिनाशक और लीवर टॉनिक है।

अर्जुन छाल – हृदय रक्षक और आयुर्वेदिक जीवनदायिनी आयुर्वेद में अर्जुन की छाल को "हृदय का मित्र" कहा गया है। यह हृदय रोगों...
02/10/2025

अर्जुन छाल – हृदय रक्षक और आयुर्वेदिक जीवनदायिनी

आयुर्वेद में अर्जुन की छाल को "हृदय का मित्र" कहा गया है। यह हृदय रोगों में रामबाण औषधि मानी जाती है। प्राचीन ग्रंथों में अर्जुन छाल को रक्त शुद्ध करने, घाव भरने और शक्ति प्रदान करने वाली सर्वोत्तम दवा बताया गया है।

अर्जुन छाल के प्रमुख लाभ (Benefits)

1. हृदय रक्षक – दिल की धड़कन संतुलित रखती है और हृदय को बल देती है।

2. रक्तचाप नियंत्रक – उच्च रक्तचाप (BP) को सामान्य करने में सहायक।

3. कोलेस्ट्रॉल कम करे – हानिकारक वसा को घटाकर धमनियों को साफ करता है।

4. रक्त शुद्धि – खून को शुद्ध कर त्वचा रोगों को दूर करता है।

5. घाव व अल्सर में लाभकारी – घाव भरने की प्रक्रिया को तेज करता है।

6. पाचन सुधारक – भूख बढ़ाता है और पेट की गड़बड़ी को ठीक करता है।

7. ज्यादा पसीना व कमजोरी दूर करे – शरीर को ऊर्जा और ताजगी प्रदान करता है।

अर्जुन छाल से होने वाले उपचार (Treatment Uses)

हृदय रोग, एनजाइना (छाती में दर्द)

हाई ब्लड प्रेशर

कोलेस्ट्रॉल और मोटापा

खून की कमी व त्वचा रोग

पेट का अल्सर व दस्त

अत्यधिक पसीना व थकान

घाव और चोट

सेवन विधि (How to Take Arjun Chhal)

1. अर्जुन छाल का क्वाथ (काढ़ा) – 20–30 ml सुबह-शाम।

2. अर्जुन छाल चूर्ण – 2–3 ग्राम शहद या गुनगुने पानी के साथ।

3. अर्जुनारिष्ट – 15–20 ml बराबर पानी मिलाकर।

4. अर्जुन छाल दूध में उबालकर – हृदय रोग व उच्च रक्तचाप में।

5. अर्जुन घृत – शक्ति और हृदय बल के लिए।

6. अर्जुन छाल का पेस्ट – घाव व अल्सर पर लगाने के लिए।

7. अर्जुन छाल पानी में भिगोकर – ठंडक व रक्त शुद्धि हेतु।

नोट – अर्जुन छाल को आयुर्वेद में "हृदय का कवच" माना गया है। यह हृदय रोगियों के लिए वरदान है, परंतु इसे उचित मात्रा में और चिकित्सक की देखरेख में लेना श्रेष्ठ है।

आंवला – आयुर्वेद का अमृतफल आयुर्वेद में आंवले को “दिव्य औषधि” और “रसायन” कहा गया है। यह विटामिन C का प्राकृतिक भंडार है ...
01/10/2025

आंवला – आयुर्वेद का अमृतफल

आयुर्वेद में आंवले को “दिव्य औषधि” और “रसायन” कहा गया है। यह विटामिन C का प्राकृतिक भंडार है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अमृत समान है। चरक संहिता में इसे यौवन बनाए रखने और रोगों से बचाने वाला फल बताया गया है।

आंवला के प्रमुख लाभ (Benefits of Amla)

1. इम्युनिटी बूस्टर – रोग प्रतिरोधक क्षमता को कई गुना बढ़ाता है।

2. पाचन सुधारक – भूख बढ़ाता है, कब्ज दूर करता है और गैस-अपच मिटाता है।

3. त्वचा और बालों के लिए अमृत – झुर्रियाँ कम करता है, बाल काले और घने बनाता है।

4. नेत्र ज्योति वर्धक – आंखों की रोशनी बढ़ाता है।

5. हृदय रोग निवारक – रक्तचाप नियंत्रित करता है, कोलेस्ट्रॉल घटाता है।

6. मधुमेह में सहायक – ब्लड शुगर को संतुलित रखता है।

7. हड्डियों को मज़बूत करता है – प्राकृतिक कैल्शियम और मिनरल्स से समृद्ध।

8. यकृत (लिवर) की रक्षा – लिवर को डिटॉक्स करता है और पीलिया में लाभकारी।

9. मूत्र रोगों में लाभकारी – पेशाब की जलन और संक्रमण कम करता है।

10. दीर्घायु और यौवन रक्षक – नियमित सेवन से शरीर को शक्ति और दीर्घायु प्रदान करता है।

आंवला से रोगों का उपचार (Treatment Uses)

कब्ज – आंवला चूर्ण शहद के साथ

बाल झड़ना/सफेद होना – आंवला तेल या आंवला रस का सेवन

पीलिया और लिवर रोग – आंवला रस + हल्दी

आँखों की कमजोरी – आंवला रस + शहद

मधुमेह – आंवला रस + करेले का रस

सेवन विधि (How to Take Amla)

* आंवला रस – 10–20 ml सुबह खाली पेट
* आंवला चूर्ण – 3–5 ग्राम गुनगुने पानी या शहद के साथ
*आंवला मुरब्बा – 1–2 नग प्रतिदिन
* आंवला का अचार/चटनी – भोजन के साथ
* त्रिफला चूर्ण (आंवला + हरड़ + बहेड़ा) – रात को सोने से पहले गुनगुने पानी से

सावधानियाँ

आंवला शीतल होता है, इसलिए सर्दी-जुकाम वाले व्यक्ति को अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए।

हमेशा ताज़ा या सूखे आंवले का ही सेवन करें, बाजार की कृत्रिम मिठाइयों से बने आंवला उत्पाद से बचें।

रोचक तथ्य

आंवला एकमात्र ऐसा फल है जो पकने पर भी विटामिन C नष्ट नहीं करता।

इसे आयुर्वेद में "दोष नाशक" यानी वात-पित्त-कफ संतुलित करने वाला फल कहा गया है।

च्यवनप्राश, त्रिफला, और आंवलारस आदि इसके प्रमुख योग हैं।

इसलिए आंवले को सही मायनों में “आयुर्वेद का सुपरफूड और अमृतफल” कहा जाता है।

वचा  – स्मृति और वाणी की अद्भुत औषधि आयुर्वेद में वचा (वैज्ञानिक नाम: Acorus calamus) को “स्मृति वर्धक” और “वाणी सुधारक”...
01/10/2025

वचा – स्मृति और वाणी की अद्भुत औषधि

आयुर्वेद में वचा (वैज्ञानिक नाम: Acorus calamus) को “स्मृति वर्धक” और “वाणी सुधारक” औषधि माना गया है। संस्कृत में इसे “वाक” कहते हैं, जिसका अर्थ है वाणी। यही कारण है कि यह औषधि बुद्धि, स्मरणशक्ति और बोलने की क्षमता को सुधारने में विशेष प्रसिद्ध है।

वचा के प्रमुख लाभ (Benefits)

1. स्मरण शक्ति बढ़ाए – पढ़ने वाले छात्रों और याददाश्त कमज़ोर लोगों के लिए उत्तम।

2. वाणी दोष में लाभकारी – हकलाना, तोतलापन और बोलने की कठिनाई में मददगार।

3. मानसिक रोगों में सहायक – अवसाद, अनिद्रा और तनाव में लाभकारी।

4. पाचन शक्ति सुधारे – गैस, अपच और भूख न लगने पर असरदार।

5. श्वास रोग में उपयोगी – खाँसी, दमा और बलगम कम करने में मदद करता है।

6. त्वचा रोगों में सहायक – कुष्ठ, खुजली और फोड़े-फुंसियों में लाभकारी।

7. बच्चों में बुद्धि विकास – छोटे बच्चों को यह औषधि याददाश्त और वाणी सुधार के लिए दी जाती है।

वचा से उपचार (Treatment)

हकलाना/तोतलापन – वचा चूर्ण शहद के साथ चाटने से लाभ।

कमज़ोर याददाश्त – वचा घी के साथ सेवन करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

अवसाद/तनाव – वचा का लेप माथे पर लगाने से मानसिक शांति मिलती है।

दमा/खाँसी – वचा का काढ़ा पीने से कफ कम होता है।

त्वचा रोग – वचा पाउडर का लेप खुजली और चकत्तों पर लाभ देता है।

अपच और गैस – वचा चूर्ण गर्म पानी के साथ लेने से पाचन सुधरता है।

बच्चों का बुद्धि विकास – वचा की कलम को चूसाने या अल्प मात्रा में शहद के साथ देने से लाभ।

सेवन विधि (How to Take Vacha)

1. चूर्ण रूप में – 125 से 250 मिलीग्राम वचा चूर्ण शहद या घी के साथ।

2. काढ़ा – वचा जड़ को उबालकर सुबह-शाम सेवन।

3. लेप – माथे पर या त्वचा पर पेस्ट बनाकर।

4. घी/तेल में – वचा घृत या वचा तेल मानसिक और स्नायु रोगों में उपयोगी।

5. बच्चों के लिए – बहुत कम मात्रा में शहद के साथ।

6. धूम्रपान (धूप रूप में) – श्वास रोगों में वचा धूप से लाभ।

7. आधुनिक रूप में – कैप्सूल/टेबलेट चिकित्सक की सलाह अनुसार।

सावधानियाँ

अधिक मात्रा में सेवन से मितली और उल्टी हो सकती है।

गर्भवती महिलाओं और बहुत छोटे बच्चों को बिना चिकित्सक की सलाह के न दें।

उचित मात्रा और अवधि वैद्य की देखरेख में ही उपयोग करें।

संक्षेप में, वचा (Vacha) एक अद्भुत बुद्धिवर्धक, स्मृतिवर्धक और वाणी सुधारक औषधि है। यह बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी के लिए उपयोगी है, विशेषकर मानसिक शक्ति और वाणी दोष में तो यह अमृत समान है।

गिलोय – रोग प्रतिरोधक क्षमता और अमरत्व की बेल आयुर्वेद में गिलोय को “अमृता” कहा गया है, क्योंकि यह रोगों से लड़ने की शक्...
30/09/2025

गिलोय – रोग प्रतिरोधक क्षमता और अमरत्व की बेल

आयुर्वेद में गिलोय को “अमृता” कहा गया है, क्योंकि यह रोगों से लड़ने की शक्ति देती है और शरीर को दीर्घायु बनाती है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली (Immunity) को मजबूत करती है, बुखार में रामबाण है और रक्त को शुद्ध करने वाली श्रेष्ठ औषधि है।

गिलोय के प्रमुख लाभ (Benefits)

1. बुखार नाशक – मलेरिया, डेंगू, टायफाइड जैसे ज्वर में असरकारी।

2. रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाए – शरीर को हर रोग से लड़ने की ताकत देता है।

3. रक्तशोधक – खून को शुद्ध करता है और त्वचा रोगों में लाभकारी है।

4. मधुमेह नियंत्रक – रक्त शर्करा को संतुलित करता है।

5. पाचन सुधारक – भूख बढ़ाता है और कब्ज दूर करता है।

6. हृदय व श्वसन रोगों में सहायक – खाँसी, अस्थमा व हृदय रोगों में लाभ।

7. वात-पित्त-कफ संतुलक – त्रिदोष नाशक है।

गिलोय से होने वाले उपचार (Treatment Uses)

मलेरिया, डेंगू, वायरल बुखार

मधुमेह व कमजोरी

त्वचा रोग, एलर्जी

खून की कमी

पाचन तंत्र की गड़बड़ी

खाँसी, जुकाम, अस्थमा

जोड़ों का दर्द (आमवात)

🍵 सेवन विधि (How to Take Giloy)

1. गिलोय रस – 2–3 चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ।

2. गिलोय चूर्ण – 2–3 ग्राम शहद या गुनगुने पानी से।

3. गिलोय घृत – प्रतिरक्षा व ताकत बढ़ाने के लिए।

4. गिलोय वटी (Tablet) – चिकित्सक की सलाह अनुसार।

5. गिलोय क्वाथ (काढ़ा) – तुलसी, अदरक और काली मिर्च के साथ।

6. गिलोय अर्क – 10–20 बूँदें पानी में मिलाकर।

7. गिलोय और नीम-तुलसी का रस – त्वचा व रक्तशुद्धि हेतु।

✨ नोट – गिलोय को "घर का डॉक्टर" भी कहा जाता है, लेकिन सही मात्रा और रोगानुसार सेवन करना आवश्यक है। इसलिए इसे आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से ही प्रयोग करना उत्तम है।

अष्टवर्ग – अमृत समान दुर्लभ औषधि समूह आयुर्वेद में अष्टवर्ग (Ashtavarga) आठ विशेष और दुर्लभ औषधियों का समूह है। यह मुख्य...
27/09/2025

अष्टवर्ग – अमृत समान दुर्लभ औषधि समूह

आयुर्वेद में अष्टवर्ग (Ashtavarga) आठ विशेष और दुर्लभ औषधियों का समूह है। यह मुख्यतः रसायन (Rejuvenator) माना गया है, यानी यह शरीर को दीर्घायु, बल, रोग-प्रतिरोधक क्षमता और यौवन प्रदान करता है।

अष्टवर्ग की आठ औषधियाँ –

1. काकोलि (Kakoli)

2. क्षीरकाकोलि (Kshirkakoli)

3. ऋद्धि (Riddhi)

4. वृद्धि (Vriddhi)

5. जीवक (Jeevak)

6. ऋषभक (Rishabhak)

7. मेड (Medha)

8. महा-मेड (Maha Medha)

ये सभी हिमालयी क्षेत्र की अत्यंत दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ हैं।

अष्टवर्ग के प्रमुख लाभ (Benefits)

1. रसायन (Rejuvenator) – शरीर को दीर्घायु और ऊर्जा देता है।

2. बलवर्धक – मांसपेशियों और शरीर को शक्तिशाली बनाता है।

3. वीर्यवर्धक – प्रजनन क्षमता और ओज बढ़ाता है।

4. प्रतिरोधक क्षमता – रोगों से लड़ने की शक्ति देता है।

5. हृदय और मस्तिष्क स्वास्थ्य – मन को शांत और स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।

6. थकान व कमजोरी दूर करता है – क्रॉनिक थकान, कमजोरी और दुर्बलता में लाभकारी।

7. वृद्धावस्था पर नियंत्रण – झुर्रियों, कमजोरी और बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा करता है।

आयुर्वेदिक उपचार (Treatment Uses)

दुर्बलता व कमजोरी – अष्टवर्ग का प्रयोग बल और शक्ति बढ़ाने के लिए।

यौन दुर्बलता – वीर्य और प्रजनन शक्ति की वृद्धि।

दीर्घकालिक रोग – क्षय (TB), ज्वर और कमजोरी में लाभकारी।

हड्डी और मांसपेशी रोग – बल प्रदान कर हड्डियों को मज़बूत करता है।

हृदय रोग और मानसिक तनाव – हृदय को पोषण और मन को स्थिर करता है।

🍵 सेवन विधि (How to Take)

1. चूर्ण – 2–3 ग्राम, दिन में 2 बार, दूध के साथ।

2. क्वाथ (काढ़ा) – 30–40 ml, सुबह-शाम।

3. घृत (Ghee योग) – अष्टवर्ग घृत, बलवर्धन और स्मृति वृद्धि में।

4. अष्टवर्ग चूर्ण – शहद या दूध के साथ, रोग प्रतिरोधक क्षमता हेतु।

5. भोजन के बाद – आधा चम्मच चूर्ण, गुनगुने दूध के साथ।

6. च्यवनप्राश में प्रयोग – अष्टवर्ग का प्रमुख उपयोग च्यवनप्राश निर्माण में होता है।

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सावधानियाँ (Precautions)

ये औषधियाँ अत्यंत दुर्लभ और महंगी हैं, इसलिए असली-जाली की पहचान ज़रूरी।

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएँ बिना चिकित्सक की सलाह न लें।

अत्यधिक मात्रा लेने से दस्त या अपच हो सकता है।

निष्कर्ष –
अष्टवर्ग आयुर्वेद की सबसे दुर्लभ और शक्तिवर्धक जड़ी-बूटियों का समूह है, जिसे अमृत समान माना गया है। यह बल, बुद्धि, स्मृति, दीर्घायु और रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली अद्वितीय औषधि है।

बहेड़ा (Bibhitaki) – रोगनाशक और दीर्घायु प्रदान करने वाली आयुर्वेदिक औषधि बहेड़ा (वैज्ञानिक नाम: Terminalia bellirica) आ...
26/09/2025

बहेड़ा (Bibhitaki) – रोगनाशक और दीर्घायु प्रदान करने वाली आयुर्वेदिक औषधि

बहेड़ा (वैज्ञानिक नाम: Terminalia bellirica) आयुर्वेद की अमूल्य त्रिफला का एक प्रमुख अंग है। इसका नाम "विभीतक" इसलिए पड़ा क्योंकि यह भय (रोग) को दूर करता है। यह स्वाद में कसैला और हल्का कड़वा होता है, लेकिन प्रभाव से अत्यंत शक्तिशाली औषधि है।

बहेड़ा के प्रमुख लाभ (Benefits)

1. आँखों के लिए अमृत – नेत्र रोगों में उपयोगी, दृष्टि बढ़ाता है।

2. पाचन सुधारक – कब्ज, अपच और गैस दूर करता है।

3. कफ नाशक – खाँसी, जुकाम और दमा में विशेष लाभकारी।

4. हृदय रक्षक – रक्त संचार और कोलेस्ट्रॉल संतुलित करता है।

5. बालों के लिए हितकारी – सफेद बाल और झड़ने की समस्या में उपयोगी।

6. त्वचा रोग नाशक – फोड़े-फुंसी और दाद-खुजली में सहायक।

7. आयुर्वर्धक – शरीर से विषैले तत्व निकालकर दीर्घायु प्रदान करता है।

बहेड़ा से होने वाले आयुर्वेदिक उपचार (Treatment Uses)

कब्ज़ – बहेड़ा चूर्ण गुनगुने पानी के साथ।

खाँसी व कफ – शहद के साथ बहेड़ा पाउडर लेना।

दमा – बहेड़ा का काढ़ा पीने से श्वसन मार्ग साफ होता है।

आँखों की रोशनी – बहेड़ा का पानी से धुलाई करने पर लाभ।

बालों की समस्या – बहेड़ा चूर्ण को आंवला और हरड़ के साथ मिलाकर तेल में डालकर।

त्वचा रोग – बहेड़ा का लेप फोड़े-फुंसी पर लगाने से।

गले की खराश – बहेड़ा पाउडर से गरारे करने पर आराम।

बहेड़ा खाने और उपयोग की विधियाँ (Methods of Use)

1. चूर्ण (Powder) – 2-3 ग्राम शहद या गुनगुने पानी के साथ।

2. काढ़ा (Decoction) – बहेड़ा छिलके का काढ़ा खाँसी और दमा में।

3. त्रिफला मिश्रण – आंवला और हरड़ के साथ पाचन व नेत्र स्वास्थ्य हेतु।

4. लेप (Paste) – त्वचा रोगों और सूजन पर।

5. तेल में प्रयोग – बाल झड़ने और सफेद होने की समस्या में।

6. गरारे – गले की खराश और सूजन में।

7. धूल पाउडर – आँखों की धुलाई हेतु (विशेष आयुर्वेदिक विधि में)।

सावधानियाँ (Precautions)

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएँ चिकित्सक की सलाह से ही सेवन करें।

अत्यधिक मात्रा में सेवन से पेट में भारीपन और दस्त हो सकते हैं।

मधुमेह रोगियों को सेवन मात्रा डॉक्टर से पूछकर ही लेनी चाहिए।

निष्कर्ष – बहेड़ा आयुर्वेद की त्रिफला त्रयी का वह रत्न है जो शरीर को शुद्ध करता है, मन को शांत करता है और आयु बढ़ाता है।

शतावरी चूर्ण – स्त्री स्वास्थ्य का रक्षक और शरीर का पोषण अमृत आयुर्वेद में शतावरी (Asparagus racemosus) को “स्त्री स्वास...
24/09/2025

शतावरी चूर्ण – स्त्री स्वास्थ्य का रक्षक और शरीर का पोषण अमृत

आयुर्वेद में शतावरी (Asparagus racemosus) को “स्त्री स्वास्थ्य की सर्वश्रेष्ठ औषधि” और “धात्री” (माँ जैसी पोषण देने वाली) कहा गया है। इसकी जड़ से बना शतावरी चूर्ण महिलाओं, पुरुषों और बच्चों—सभी के लिए स्वास्थ्यवर्धक है।

शतावरी चूर्ण के प्रमुख लाभ

1. स्त्रियों के लिए वरदान – मासिक धर्म विकार, रजोनिवृत्ति (Menopause) और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए दूध वृद्धि।

2. पुरुष शक्ति वर्धक – वीर्य वृद्धि, शुक्राणु की गुणवत्ता सुधार और कामशक्ति में सहायक।

3. पाचन में सुधार – अल्सर, एसिडिटी और गैस जैसी समस्याओं में लाभकारी।

4. प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाने वाला – शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता देता है।

5. तनाव और मानसिक शांति – मन को शांत करता है, नींद अच्छी लाता है।

6. हड्डियों और मांसपेशियों को मज़बूत बनाता है – शरीर को पोषण और ताक़त प्रदान करता है।

7. त्वचा और सौंदर्य – शरीर को ठंडक देकर त्वचा को निखारता है।

किन रोगों में प्रयोग (Treatment)

स्त्री रोग (Menstrual Disorders, Leucorrhoea, Menopause Problems)

बांझपन (Infertility)

वीर्य दोष (Male Infertility, Oligospermia)

अल्सर, एसिडिटी, कब्ज़

थकान, कमजोरी और तनाव

कम दूध आने की समस्या (Lactation Problem)

शरीर की दुर्बलता

🍵 सेवन विधि (Seven Uses of Shatavari Churna)

1. मासिक धर्म विकार में – 1 चम्मच शतावरी चूर्ण + शहद, दिन में दो बार।

2. दूध की कमी में (स्तनपान कराने वाली माँ) – 1 चम्मच शतावरी चूर्ण + गुनगुना दूध, सुबह-शाम।

3. वीर्य वृद्धि में – 1 चम्मच शतावरी चूर्ण + मिश्री + दूध, सोने से पहले।

4. एसिडिटी/अल्सर में – ½ चम्मच शतावरी चूर्ण + ठंडा दूध, दिन में दो बार।

5. तनाव और अनिद्रा में – शतावरी चूर्ण + ब्राह्मी चूर्ण + दूध, रात को।

6. श्वेत प्रदर में – 1 चम्मच शतावरी चूर्ण + मिश्री, गुनगुने पानी से।

7. सामान्य टॉनिक – 1 चम्मच शतावरी चूर्ण + घी + दूध, रोज़ाना सुबह।

शतावरी चूर्ण बनाने की विधि

1. शतावरी की जड़ों को अच्छी तरह धोकर साफ करें।

2. छाया में सुखाकर पूरी तरह सूखा लें।

3. सूखी जड़ों को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें।

4. छलनी से छानकर एयरटाइट डिब्बे में भरकर रखें।

सावधानियाँ

मधुमेह के रोगी अधिक मात्रा में न लें।

गर्भवती महिलाएँ सेवन से पहले चिकित्सक की सलाह लें।

अत्यधिक ठंडी प्रकृति वालों को सीमित मात्रा में सेवन करना चाहिए।

निष्कर्ष:
शतावरी चूर्ण वास्तव में महिलाओं के लिए अमृत समान औषधि है, जो दूध वृद्धि से लेकर हार्मोन संतुलन तक में सहायक है। साथ ही यह पुरुषों और बच्चों को भी शक्ति, शांति और पोषण प्रदान करता है।

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