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28/10/2024

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Bihar Uday is a movement to bring together Biharis globally for the resurgence of Bihar as a prosperous, united state, leading the world in health, education, agriculture, and innovation. Join us to contribute to a brighter future.

28/10/2024

बिहार उदय: एक लघु नाटिका.... इन संबाद को सुनें....

बिहार उदय: मंच पर संवाद – महानायकों की पुकार
(मंच पर बारी-बारी से आते हैं: माँ गंगा, चाणक्य, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, गौतम बुद्ध, महावीर, आर्यभट्ट, मंगल पांडे, विक्रमादित्य, नालंदा और विक्रमशिला। वे आपस में बात करते हैं और बिहारियों को जागने, गर्व से ऊपर उठकर काम करने और नई ऊँचाईयों को छूने के लिए प्रेरित करते हैं।)
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माँ गंगा:
"हे बिहार के वीरों, मेरी धाराएँ तुम्हारे भीतर बहती हैं। तुममें वही शक्ति है जो सम्राटों ने दिखाई, जिसने धर्म और ज्ञान की अलख जगाई। पर आज तुम्हारी यही शक्ति सोई हुई है। केवल अपने अतीत पर गर्व करने से कुछ नहीं होगा। तुम्हें कर्म से वर्तमान बदलना होगा। अब समय है उठने का!"
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चाणक्य:
"नियति उन्हीं की होती है जो अपनी शक्ति को पहचानते हैं। तुम्हारा क्रोध इस बात का प्रमाण है कि तुम्हारे भीतर अद्भुत सामर्थ्य है, लेकिन जब वह कर्म में नहीं बदलेगा, तो वही शक्ति तुम्हें नष्ट करेगी। धर्म और जाति के भेद से ऊपर उठो। केवल एक दिन में तुम इसे बदल सकते हो। तुम्हारे पास योजना, साहस और परिश्रम की ताकत है, अब समय है उसे सिद्ध करने का।"
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सम्राट अशोक:
"मैंने रक्तपात से बोधि तक की यात्रा की और जाना कि सच्चा साम्राज्य प्रेम और सेवा से स्थापित होता है। पर सेवा केवल विचार में नहीं, कर्म में होनी चाहिए। बिहार की धरती से विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता आज भी है। क्या तुम इस अवसर को पहचान पाओगे?"
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चंद्रगुप्त मौर्य:
"मैंने साधारण परिवार से उठकर महान साम्राज्य की नींव रखी। तुम्हारे पास भी वही जज़्बा और ताकत है। पर तुम्हारा रोष और निराशा तुम्हारी संभावनाओं का गला घोंट रही है। आज अवसर है अपने भाग्य को बदलने का। मत रुकना, मत झुकना, तुम्हारा समय अब आया है!"
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गौतम बुद्ध:
"क्रोध और दुख को बाहर निकालने का एक ही उपाय है – ध्यान और कर्म। केवल ज्ञान से नहीं, कर्म से परिवर्तन होगा। अपने भीतर के मार्ग को पहचानो और इस धरती पर प्रेम और करुणा का विस्तार करो। बिहार को पुनः विश्वगुरु बनाने का मार्ग तुम्हारे कर्म से ही निकलेगा।"
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महावीर:
"अहिंसा और सत्य की शक्ति से मैंने संपूर्ण विश्व को राह दिखाई। तुम्हारे पास भी वही शक्ति है। पर केवल वाणी से नहीं, कर्म से सत्य की स्थापना करनी होगी। मत भूलो कि तुम्हारा कर्तव्य ही तुम्हारी शक्ति है। उठो और बिहार को उसकी खोई हुई पहचान दिलाओ।"
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आर्यभट्ट:
"मैंने विश्व को गणित और खगोल का ज्ञान दिया, क्योंकि मैंने समय का महत्व समझा। समय की प्रतीक्षा मत करो, तुम्हारे पास हर साधन है। उठो, सीखो और अपने कौशल से संपूर्ण विश्व को दिशा दो। बिहार को पुनः विज्ञान और प्रगति का केंद्र बनाओ।"
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मंगल पांडे:
"मैंने स्वतंत्रता की चिंगारी से अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी थी। तुम्हारा खून भी आज उबल रहा है – अवसरों की कमी, जातिवाद और भ्रष्टाचार से। लेकिन अब समय है इस क्रोध को सही दिशा में कर्म में बदलने का। बिहार का भविष्य तुम्हारे कर्मों पर निर्भर है। उठो, आगे बढ़ो और बिहार का नव-निर्माण करो।"
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विक्रमादित्य:
"न्याय, साहस और शौर्य मेरे गुण थे। तुम्हारे भीतर भी वही गुण हैं, बस उन्हें पहचानो। मत झुको, किसी भी कठिनाई के आगे। तुम बिहार को फिर से समृद्धि की ओर ले जा सकते हो। यह तुम्हारा समय है समाज को न्याय और सेवा से बदलने का।"
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नालंदा और विक्रमशिला:
"हमने ज्ञान और शिक्षा से पूरे विश्व को आलोकित किया। बिहार की धरती पर विज्ञान और बुद्धि का उजाला फिर फैल सकता है। पर इसके लिए तुम्हें आलस्य और निराशा को त्यागना होगा। हर घर से एक नया शिक्षक, एक नया नेता निकलेगा, अगर तुम कर्मशील बनो।"
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सभी महानायक एक साथ:
"अब समय आ गया है, बिहार के हर बेटे और बेटी को जागने का। अपनी मिट्टी का कर्ज उतारने का। केवल अतीत पर गर्व नहीं, वर्तमान में कर्म से भविष्य गढ़ने का। तुम ही हो जो बिहार को फिर से विश्वगुरु बना सकते हो। तुममें वही शक्ति है, बस उसे पहचानो और अभी से कार्य में जुट जाओ!"
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(मंच पर सभी महानायक एक-दूसरे की ओर देखते हैं, और एक साथ बिहार की जनता को अंतिम प्रेरणा देते हैं।)
"उठो! जागो! बिहार को उसके शिखर पर पहुँचाओ! यह तुम्हारा समय है!"
(मंच पर गर्जना होती है, और बिहार की जनता अपनी नई यात्रा के लिए संकल्प के साथ खड़ी होती है।)
बिहार उदय नामक इस मुहिम में भाग लेने के लिए..
बिहार उदय डॉट इन पर जाएं.. लिंक कमेंट बॉक्स में.

22/10/2024

1. चालीस साल की अवस्था में "उच्च शिक्षित" और "अल्प शिक्षित" एक जैसे ही होते हैं। (ब्लकि अल्प शिक्षित अधिक कमा लेते हैं)
2. पचास साल की अवस्था में "रूप" और "कुरूप" एक जैसे ही होते हैं। (आप कितने ही सुन्दर क्यों न हों झुर्रियां, आँखों के नीचे के डार्क सर्कल छुपाये नहीं छुपते)
3. साठ साल की अवस्था में "उच्च पद" और "निम्न पद" एक जैसे ही होते हैं।(चपरासी भी अधिकारी के सेवा निवृत्त होने के बाद उनकी तरफ़ देखने से कतराता है)
4. सत्तर साल की अवस्था में "बड़ा घर" और "छोटा घर" एक जैसे ही होते हैं। (घुटनों का दर्द और हड्डियों का गलना आपको बैठे रहने पर मजबूर कर देता है, आप छोटी जगह में भी गुज़ारा कर सकते हैं)
5. अस्सी साल की अवस्था में आपके पास धन का "होना" या "ना होना" एक जैसे ही होते हैं। ( अगर आप खर्च करना भी चाहें, तो आपको नहीं पता कि कहाँ खर्च करना है)
6. नब्बे साल की अवस्था में "सोना" और "जागना" एक जैसे ही होते हैं। (जागने के बावजूद भी आपको नहीं पता कि क्या करना है).
जीवन को सामान्य रुप में ही लें क्योंकि जीवन में रहस्य नहीं हैं जिन्हें आप सुलझाते फिरें।
आगे चल कर एक दिन हम सब की यही स्थिति होनी है इसलिए चिंता, टेंशन छोड़ कर मस्त रहें स्वस्थ रहें।
यही जीवन है और इसकी सच्चाई भी।

22/10/2024

दिल और दिमाग़: तर्क, अंतर्ज्ञान और संतुलन की शक्ति

हम अक्सर सुनते हैं – "दिल की सुनो, दिमाग़ की नहीं।" लेकिन क्या वाकई दिल और दिमाग की अलग-अलग इंटेलिजेंस होती है, या यह केवल एक तकिया कलाम है? इस प्रश्न का उत्तर हमें विज्ञान, अनुभव, भावनाओं और आत्मचिंतन में मिलता है। दिल और दिमाग़ दोनों जीवन के अलग-अलग पहलुओं को संभालते हैं, और सही समय पर सही तरीके से दोनों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है।

दिमाग की सीमाएँ और तर्क की भूमिका:
दिमाग तर्क, विश्लेषण और अनुभवों से सीखता है। यह हमें किताबों और शिक्षा से मिले तथ्यों के आधार पर सही-गलत का आकलन करना सिखाता है।
हालांकि दिमाग़ की शक्ति का उपयोग समस्या समाधान, योजना, और निर्णय लेने में होता है, लेकिन कई बार यह भावनाओं और आंतरिक आवाज़ को नज़रअंदाज कर देता है।

दिमाग़ हर चीज़ को तर्कसंगत और व्यवस्थित देखना चाहता है, लेकिन जीवन की जटिलताओं में केवल तर्क ही काफी नहीं होते।

दिल और अंतर्ज्ञान की शक्ति:
"दिल जो नहीं है, उसे भी देख और जान लेता है"—दिल सिर्फ़ रक्त पंप करने का काम नहीं करता, बल्कि यह हमारी भावनाओं, अंतर्ज्ञान और ऊर्जा से गहरा संबंध रखता है।

दिल से आने वाली अंतर्ज्ञान (intuition) एक ऐसी शक्ति है जो बिना तर्क के भी सही दिशा में मार्गदर्शन करती है। यह कई बार अनपढ़ या साधारण व्यक्ति के पास भी मौजूद होती है और बेहद प्रभावी होती है।

दिल हमें यह एहसास कराता है कि किसी व्यक्ति या स्थिति के बारे में सही और गलत क्या है, भले ही उस पर कोई तार्किक आधार न हो।

क्यों दिल की सुनना महत्वपूर्ण है?
अंतर्ज्ञान हमें वह मार्ग दिखा सकता है, जिसे दिमाग़ की सोच नहीं पकड़ पाती। उदाहरण के लिए, हम किसी नई नौकरी या रिश्ते में कदम रखते समय सिर्फ़ तर्क से नहीं, बल्कि दिल की आवाज़ से भी प्रेरित होते हैं।

अक्सर ऐसा देखा गया है कि जिन लोगों के पास ज़्यादा शिक्षा नहीं होती, वे भी दिल की अंतर्ज्ञान से सटीक निर्णय ले पाते हैं, जबकि शिक्षित व्यक्ति कई बार तर्क-वितर्क में उलझ जाते हैं।

दिल की समझ और अनुभव गहरे स्तर पर हमें मार्गदर्शन करते हैं, जिससे हम बेहतर और सुखी जीवन जी पाते हैं।

दिल और दिमाग़ का संतुलन:
सही निर्णय लेने के लिए दिल और दिमाग दोनों की ज़रूरत होती है। केवल दिल से लिया गया निर्णय हमें भावनाओं में बहा सकता है, जबकि केवल दिमाग़ का निर्णय हमें भावनात्मक रूप से असंतुष्ट कर सकता है।

इसलिए, जीवन के हर महत्वपूर्ण मोड़ पर हमें तर्क और भावना दोनों का संतुलन बनाकर चलना चाहिए। दिल से हम जीवन का आनंद लेना सीखते हैं, जबकि दिमाग़ हमें व्यावहारिकता सिखाता है।

अंतर्ज्ञान से जीवन में बदलाव लाना:
कई बार, किसी प्रियजन की बीमारी या आपदा हमारी ज़िंदगी को रुख मोड़ने का संदेश देती है। जैसे, यदि किसी व्यक्ति ने अपने भाई को ब्रेन हेमरेज और लकवे की स्थिति में देखा है, तो वह स्वाभाविक रूप से डर, चिंता और भविष्य के लिए असुरक्षा महसूस कर सकता है। यह डर दिल में गहरी छाप छोड़ देता है और अक्सर हमारी मानसिक शांति छीन लेता है।

लेकिन यह भी संभव है कि यह अनुभव हमें जीवन को नए नज़रिए से देखने का अवसर दे। डर को पकड़कर रखने के बजाय, हम इसे एक नया अध्याय शुरू करने की प्रेरणा बना सकते हैं।

20/10/2024

परिवर्तन की शक्ति: स्वीकारें, अनुकूल बनें, और रूपांतरित हों

डॉ पी के झा
न्यूरोसर्जन व लाइफ कोच

परिवर्तन ही जीवन का नियम है। दुनिया हर पल बदल रही है, चाहे वह तकनीक हो, रिश्ते हों या हमारा वातावरण। लेकिन कई लोग परिवर्तन का विरोध करते हैं, पुरानी आदतों और परिचित तरीकों से चिपके रहते हैं। इस विरोध का कारण अक्सर अज्ञात का डर होता है। लेकिन सच यह है कि परिवर्तन सबसे बड़ा अवसर लेकर आता है—विकास और सफलता का।

परिवर्तन के प्रति लोगों के चार प्रकार होते हैं:
1. जो परिवर्तन से पहले बदल जाते हैं—वे नेता बनते हैं और दूसरों को मार्ग दिखाते हैं।
2. जो परिवर्तन के साथ बदलते हैं—वे अनुकूल बनते हैं और जीवित रहते हैं।
3. जो परिवर्तन के बाद बदलते हैं—वे संघर्ष करते हुए पीछे-पीछे चलते हैं।
4. जो कभी नहीं बदलते—वे पीछे छूट जाते हैं और अंततः समाप्त हो जाते हैं।
अब चुनाव आपका है—क्या आप नेतृत्व करेंगे, अनुकूल बनेंगे, पीछे छूटेंगे या समाप्त हो जाएंगे?
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परिवर्तन के दौरान ही मिलती है असली शक्ति
हर कठिन समय और परिवर्तन आपके लिए नए कौशल और ताकत हासिल करने का अवसर होता है। जितना आप अनुकूल बनते हैं, सीखते हैं और आगे बढ़ते हैं, उतने ही आप मजबूत बनते हैं। विकास कभी भी आरामदायक ज़ोन में नहीं होता। असल में, मुश्किल समय ही हमें मानसिक और आंतरिक ताकत विकसित करने के लिए प्रेरित करता है।

जब आप परिवर्तन को अपनाते हैं, तो आप नए अवसरों के द्वार खोलते हैं और उन क्षमताओं को खोजते हैं, जो शायद आपको पहले पता भी नहीं थीं। आप एक बेहतर और मजबूत व्यक्ति बन जाते हैं।
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परिवर्तन का डर और रूपांतरण का इनाम
परिवर्तन का डर स्वाभाविक है, लेकिन यह आपको अवसरों से वंचित भी कर सकता है। लेकिन जिस क्षण आप अपने डर का सामना कर परिवर्तन को स्वीकार करते हैं, आप रूपांतरण के मार्ग पर चल पड़ते हैं।
"आज का दर्द कल की सबसे बड़ी उपलब्धि बन सकता है।" कठिनाइयाँ हमें तोड़ने के लिए नहीं आतीं—वे हमें गढ़ने और मजबूत बनाने के लिए आती हैं।
"मुश्किल समय ज्यादा दिन नहीं रहता, लेकिन मुश्किल समय को सहने वाले लोग जरूर रहते हैं।"

जितनी चुनौतियों का आप सामना करते हैं, आप उतने ही मजबूत बनते हैं। और जब आप मजबूत हो जाते हैं, तो आप सिर्फ जीवित नहीं रहते—आप प्रगति करते हैं।
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जो बदलते हैं, वे अंत में खुश रहते हैं
जो लोग जीवन में परिवर्तन को अपनाते हैं और आगे बढ़ते हैं, वे जीवन के अंत में खुशी और संतोष महसूस करते हैं। वे पीछे मुड़कर देखते हैं और गर्व महसूस करते हैं कि उन्होंने अपने समय का पूरा उपयोग किया। वे जीवन के अंत में मुस्कुराते हैं, जबकि जिन्होंने बदलाव का विरोध किया, वे अक्सर जीवन में ही अफसोस करते हैं।
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युवाओं और सभी के लिए संदेश
यह संदेश छात्रों, कर्मचारियों, उद्यमियों और पेशेवरों के लिए है—परिवर्तन आपका दुश्मन नहीं है, यह आपका सबसे बड़ा साथी है।
• परिवर्तन से पहले बदलें—अग्रणी बनें और नेतृत्व करें।
• परिवर्तन के साथ बदलें—लचीले रहें और जीवित रहें।
• बहुत देर न करें—बाद में बदलना आपको ज़िंदा रखेगा, लेकिन आप विकसित होने का अवसर चूक सकते हैं।
• परिवर्तन का विरोध न करें—जो नहीं बदलते, वे पीछे छूट जाते हैं और भुला दिए जाते हैं।

जीवन चुनौतियों से बचने के बारे में नहीं है—यह उन्हें अपनाकर बढ़ने के बारे में है। हर परिवर्तन एक अवसर है खुद को बेहतर बनाने का। उसे स्वीकारें, गले लगाएँ, और रूपांतरित हो जाएँ।
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निष्कर्ष: दर्द को अपनी ताकत में बदलें और नेतृत्व करें
हर कठिन समय एक अवसर है। हर चुनौती आपको आकार देती है। और हर परिवर्तन आपको मजबूत, समझदार और अधिक सक्षम बनने का मौका देता है।
आज का दर्द कल की सबसे बड़ी सफलता में बदलेगा।
जीवन के अंत में, आप मुस्कुराएँगे, यह जानते हुए कि आपने पूरी और निडर जिंदगी जी। आप रूपांतरित हुए, जबकि अन्य संघर्ष करते रहे। कठिन समय ने आपको मजबूत बनाया और मजबूत व्यक्ति हमेशा आगे बढ़ते हैं।
इसलिए, परिवर्तन से डरें नहीं—उसे अपनाएँ।
सीखें, अनुकूल बनें, बढ़ें और नेतृत्व करें।
दुनिया उन्हीं की है जो बदलते हैं और आगे बढ़ते हैं।
आपका समय अब है। क्या आप इसे अपनाने के लिए तैयार हैं?

20/10/2024

The Power of Change: Embrace, Adapt, and Transform

Dr P K Jha
Neurosurgeon | Life Coach

Change is the only constant in life. The world is always in motion, evolving every moment. Whether it’s technology, relationships, or our environment—change is inevitable. Yet, many people resist change, clinging to old habits and familiar patterns. This resistance often comes from fear of the unknown, but the truth is, change offers the greatest opportunity for growth.

There are four kinds of people when it comes to change:
1. Those who change before change happens—they lead the way and guide the rest.
2. Those who change with change—they adapt and survive.
3. Those who change after change—they struggle to catch up but manage to carry on.
4. Those who never change—they are left behind and eventually perish.

The choice is yours—will you lead, adapt, catch up, or be left behind?
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Strength Lies in the Process of Change
Every moment of change, no matter how difficult, brings with it the potential for immense strength and skill development. The more we adapt, learn, and grow, the stronger we become. Growth never comes from comfort zones. It is the tough times that force us to develop resilience, mental toughness, and inner strength.
When you embrace change, you open yourself to new opportunities. You discover talents you never knew you had. You become a better version of yourself.
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The Fear of Change vs. The Reward of Transformation
Fear of change is natural, but it often keeps us stuck. However, the moment you decide to face your fears and embrace change, you step onto the path of transformation. What feels like pain today becomes your greatest gain tomorrow. Challenges are not meant to break you—they are meant to shape and strengthen you.
“Tough times don’t last, but tough people do.”
The more challenges you face, the tougher you become. And once you are tough, **you don’t just survive—**you thrive.
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Those Who Change, Rejoice at Life’s End
At the end of life, it is those who embraced change and evolved who feel joy and fulfillment. They look back at life with pride and satisfaction, knowing they made the most of their time on earth. They rejoice while others regret.

Many people cry through life because they resist change and miss opportunities for growth. But those who adapt and lead become masters of their destiny, creating a life filled with meaning, purpose, and joy.
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The Message for the Youth and Everyone Else
This message is for all youth, employees, entrepreneurs, and professionals—change is not your enemy. It is your greatest ally.
• Anticipate change—stay ahead and lead the way.
• Adapt with change—be flexible and survive in any situation.
• Don’t wait too long—change after the fact may keep you afloat, but you risk missing the chance to thrive.
• Never resist change—those who refuse to change will be left behind and forgotten.

Life is not about avoiding challenges—it’s about embracing them and growing through them. Every change is an invitation to transform into something better. Accept it, embrace it, and you will get transformed beyond your own imagination.
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Conclusion: Transform Pain into Gain and Lead the Way
Every tough time is an opportunity. Every challenge shapes you. And every change offers a chance to become stronger, wiser, and more capable. The pain you feel today will become the gain you celebrate tomorrow.

At the end of life, you will smile, knowing that you lived fully and fearlessly. You will rejoice because you transformed through life, while others cried and resisted. The tough times will have made you tough, and the tough ones always get going.

So, don’t fear change—embrace it. Learn, adapt, grow, and lead. The world belongs to those who evolve.
Your time is now. Will you seize it or resist it?

20/10/2024

आत्मविश्वास और दृढ़ता: हाँ-ना कहने की शक्ति और जीवन पर नियंत्रण

डॉ पी के झा

आज के समय में आत्मविश्वास और दृढ़ता की कमी कई लोगों की समस्या बन गई है। बहुत से लोग ‘ना’ कहने में डर महसूस करते हैं और ऐसे वादे कर देते हैं जिन्हें पूरा करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। ये लोग अक्सर इस भय से दबे रहते हैं कि अगर उन्होंने अपनी भावनाएँ और ज़रूरतें व्यक्त कीं, तो प्यार या स्वीकृति खो देंगे। परिणामस्वरूप, कम आत्म-सम्मान, तनाव, अनिद्रा, और कई बार बीमारियाँ तक उनकी जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं।

लेकिन इस स्थिति से बाहर निकलना संभव है। इसके लिए सबसे पहले
जागरूकता, आत्म-स्वीकृति और छोटे-छोटे कदमों की ज़रूरत होती है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन का नियंत्रण वापस पा सके।

दृढ़ता की कमी क्यों होती है?
प्रेम या स्वीकृति खोने का डर:
कई लोग यह मानते हैं कि अगर वे ना कहेंगे या अपनी ज़रूरतों को व्यक्त करेंगे, तो लोग उनसे नाराज़ हो जाएंगे और प्यार या दोस्ती खत्म हो जाएगी। इस डर से वे अपनी सच्ची इच्छाओं को दबा देते हैं।

वादों का बोझ:
लोग अक्सर ऐसे वादे कर बैठते हैं जिन्हें निभाना मुश्किल होता है। दबाव में किए गए ये वादे धीरे-धीरे मानसिक बोझ बन जाते हैं और तनाव का कारण बनते हैं।

आज्ञाकारी स्वभाव:
कई लोग दूसरों को खुश रखने के लिए समर्पणकारी व्यवहार अपनाते हैं और अपनी ज़रूरतों को पीछे छोड़ देते हैं। यह अंततः भावनात्मक थकान और आक्रोश का कारण बन सकता है।

कम आत्म-सम्मान:
आत्मविश्वास की कमी का सीधा संबंध आत्म-सम्मान से होता है। जब लोग यह मान लेते हैं कि उनकी ज़रूरतें दूसरों से कम महत्वपूर्ण हैं, तो वे खुद से जुड़े निर्णय लेने में हिचकते हैं।

शारीरिक और मानसिक असर:
अपनी इच्छाओं को दबाने और अनमिट ज़रूरतों के बोझ के कारण तनाव और अनिद्रा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जो समय के साथ गंभीर बीमारियों में बदल सकती हैं।

जागरूकता और एक्शन: पहला कदम

जागरूकता ही परिवर्तन की पहली सीढ़ी है। आपको यह समझना होगा कि आपने अपनी इच्छाओं और भावनाओं को कब और क्यों दबाया है। यही वह क्षण है जब हीलिंग की प्रक्रिया शुरू होती है। याद रखें, आप अनोखे हैं और अलग हैं—आपकी भावनाएँ और इच्छाएँ महत्वपूर्ण हैं।

अपने आत्मविश्वास को पुनः प्राप्त करने के उपाय

स्वयं को पूरी तरह स्वीकारें
सबसे पहले अपने आप को स्वीकारें। आप जैसे हैं, वैसे ही पूर्ण और पर्याप्त हैं। बाहरी मान्यता के लिए जीवन जीना बंद करें। जब आप अपने मूल्य को पहचानते हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से सशक्त महसूस करते हैं।

अपना भविष्य स्पष्ट रूप से देखें
सोचें कि आप वास्तव में क्या चाहते हैं। आप क्या बनना, करना या पाना चाहते हैं? एक दृष्टि (vision) तैयार करें और महसूस करें कि उस जीवन को जीना कैसा होगा।

ना कहना सीखें
‘ना’ कहना स्वार्थी नहीं है, बल्कि यह स्वयं के प्रति सम्मान दिखाने का तरीका है। जब आप उन चीजों के लिए ना कहते हैं जो आपको थका देती हैं, तो आप उन चीजों के लिए जगह बनाते हैं जो आपको ख़ुशी देती हैं।

कार्रवाई करें
अपने लक्ष्यों के प्रति छोटे-छोटे कदम उठाना शुरू करें। हर छोटा कदम आपको आपके सपनों के जीवन के करीब ले जाएगा। निरंतरता और ध्यान से आप सफल हो सकते हैं।

जीवन से माँगें
जीवन आपको वही देने के लिए तैयार है जो आप उससे माँगते हैं। आपको केवल विश्वास और आत्म-सम्मान के साथ अपने सपनों की माँग करनी है।

स्वस्थ सीमाएँ बनाएं
सीमाएँ बनाना आपके रिश्तों को मजबूत बनाता है। अपनी ज़रूरतों को ईमानदारी से व्यक्त करें और दूसरों की सीमाओं का भी सम्मान करें।

शांति, शक्ति और स्वास्थ्य वापस पाना
जब आप अनचाहे वादों के बोझ से खुद को मुक्त करते हैं और अपने सपनों के अनुरूप कार्य करते हैं, तो जीवन स्वाभाविक रूप से बदलने लगता है। तनाव कम होता है, अनिद्रा दूर होती है और स्वास्थ्य में सुधार होता है। आप सशक्त, उत्पादक और संतुलित महसूस करने लगते हैं।

निष्कर्ष: जीवन आपसे माँगने के लिए तैयार है
आपके सपनों का जीवन आपका इंतजार कर रहा है। आपको केवल स्वयं को स्वीकारना, अपनी दृष्टि स्पष्ट करना, कर्म करना और जीवन से माँगना है। जीवन आपके लिए तैयार है—आपको बस विश्वास और साहस के साथ आगे बढ़ना है।

तो, पुराने डर और सीमाओं से बाहर निकलें। अपनी विशिष्टता को अपनाएँ और वह जीवन जीएँ जो आप सच में चाहते हैं। आप सक्षम हैं। आप पर्याप्त हैं। अभी कार्य करने का समय है।

20/10/2024

Assertiveness: Breaking Free from the Fear of Saying No

Dr P K Jha

In today’s world, many people struggle with the inability to assert themselves. They fear saying ‘no,’ make promises they find hard to keep, and live under the constant burden of these unfulfilled obligations. This fear often arises from the belief that asserting oneself may lead to rejection, loss of love, or disapproval. Over time, low self-esteem, stress, insomnia, and even chronic diseases begin to take root in their lives.

But it’s possible to break free. The key lies in awareness, self-acceptance, and taking the steps needed to reclaim your personal power.

Why We Struggle with Assertiveness?
Fear of Rejection and Loss of Love: Many people are afraid that saying ‘no’ or expressing their needs will disappoint others. This fear of losing acceptance and love leads them to suppress their true desires.

Living Under Promises:
Making commitments out of pressure rather than choice creates a burden of unfulfilled obligations. Over time, these promises become mental chains that cause stress, anxiety, and frustration.

Submissive Behavior:
People often resort to being submissive to maintain peace in relationships or avoid conflict. They sacrifice their own needs for the sake of others, leading to emotional burnout and resentment.

Low Self-Esteem:
A lack of assertiveness is often rooted in low self-worth. When individuals believe that their needs are less important than others, they hesitate to demand what they truly want from life.

Physical and Mental Impact:
Stress from suppressing emotions and unmet needs can lead to insomnia, chronic fatigue, and disease. The body begins to reflect the emotional strain, causing long-term health issues.

The Path to Healing: Awareness and Action
The first step to change is becoming aware of these behaviors. Healing begins when you recognize that you have been suppressing your needs and living under the weight of expectations. You are unique. You are different. And you have every right to express your desires, set boundaries, and create the life you want.

How to Reclaim Your Power and Heal

Accept Yourself Fully
Embrace yourself as you are. You are enough. Stop seeking external validation to feel worthy. Realizing your own value is the first step toward living authentically.

Envision the Life You Want
Spend time thinking about what you truly want. Who do you want to be? What do you want to do? What do you want to have? Create a vision of the life you desire and feel how it would be to live that way.

Learn to Say No
Saying no is not selfish—it is a necessary act of self-respect. When you say no to things that drain you, you create space for things that uplift and align with your values. Practice saying no kindly but firmly.

Act on Your Desires
Once you are clear about what you want, start taking small steps toward your goals. Every action, no matter how small, moves you closer to your dream life. Be consistent and focused.

Demand from Life
Life is ready to give you everything you desire—you just need to ask for it with faith and confidence. Nothing is out of reach if you believe in your worth and are willing to act toward it.

Create Healthy Boundaries
Healthy relationships thrive on mutual respect. Setting boundaries does not mean losing love—it strengthens it. Communicate your needs honestly and respect others' boundaries in return.

Reclaim Your Peace, Power, and Health
When you stop living under the burden of unkept promises and start aligning your actions with your desires, life begins to flow naturally. Stress reduces, insomnia fades, and health improves. You feel empowered, productive, and connected to your true self.

Conclusion: Life Is Ready to Give You What You Want
The power to create the life you want lies within you. All you need to do is accept yourself, envision your dream life, act toward it, and demand it from the universe. Life will respond—it is already waiting to give you everything you imagine.

So, stop settling for what feels safe and familiar. Step into your uniqueness, express your desires, and claim the life you truly deserve. You are capable. You are enough. The time to act is now.

परिवर्तन का विरोध: चाहना सब कुछ, करना कुछ नहींडॉ पी के झान्यूरोसर्जन | लाइफ कोच www.neurocareindia.in (यह लेख आपको अपने ...
19/10/2024

परिवर्तन का विरोध: चाहना सब कुछ, करना कुछ नहीं
डॉ पी के झा
न्यूरोसर्जन | लाइफ कोच
www.neurocareindia.in

(यह लेख आपको अपने डर से उबरने, अपने जीवन में बदलाव लाने और उसे शांति, समृद्धि और सफलता से भरने के लिए प्रेरित करेगा।)

परिवर्तन जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है, लेकिन यह सबसे अधिक प्रतिरोध का सामना करता है। बहुत से लोग परिवर्तन का विचार तो पसंद करते हैं, लेकिन उसके साथ आने वाले असुविधा, डर और अनिश्चितता से बचना चाहते हैं। अक्सर लोग उन चीज़ों से चिपके रहते हैं जो उन्हें तकलीफ देती हैं, क्योंकि कम से कम वह तकलीफ पहचानी हुई होती है। इस लेख में हम यह समझेंगे कि परिवर्तन के लिए मानसिक अवरोध क्यों उत्पन्न होते हैं, और कैसे दृष्टि, विश्वास, कर्म, और आभार हमें वह जीवन दे सकते हैं जो हम सच में चाहते हैं।
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परिवर्तन का विरोध: दर्द से पहचान और निश्चितता में आराम
कई लोग अनजाने में यह मानते हैं कि "पुराने और कठिन को ही बनाए रखना सुरक्षित है"। नई चुनौतियों और अज्ञात की ओर बढ़ना डरावना लगता है, क्योंकि वह पहचानी हुई निश्चितता को खतरे में डालता है—चाहे वह निश्चितता दर्द से भरी हो। हम अपने संघर्षों से पहचान बना लेते हैं और कभी-कभी उसे साझा करके मान्यता की तलाश करते हैं।
"अगर मैं संघर्ष कर रहा हूँ, तो दूसरों को भी करना चाहिए।" यह सोच भीतर छुपी रहती है, जिससे लोग न केवल खुद के बदलाव से डरते हैं, बल्कि दूसरों के बेहतर होने से भी। "अगर मेरे दोस्त बदल गए और मुझसे आगे बढ़ गए, तो क्या होगा?" इस तरह की असुरक्षा लोगों को मध्यम स्थिति में ही रुकने को प्रेरित करती है, जहाँ वे न तो खुश होते हैं, न पूरी तरह संघर्ष से बाहर।
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परिवर्तन का लाभ: वृद्धि, स्वतंत्रता और नए अवसर
हालाँकि परिवर्तन मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह असीम संभावनाएँ भी लाता है। हर सकारात्मक परिवर्तन हमें:
• आत्मविश्वास और सीमाओं से परे बढ़ने का अवसर देता है।
• हमारे भीतर नई संभावनाओं को खोजने का रास्ता खोलता है।
• ऐसे संबंधों को विकसित करने में मदद करता है जो हमारे विकास के अनुरूप हों।
• शांति और संतोष प्रदान करता है, क्योंकि हम अपने सच्चे उद्देश्य के करीब पहुँचते हैं।
परिवर्तन के लिए अधिक एक्शन, ज़िम्मेदारी और जवाबदेही की आवश्यकता होती है। लेकिन इसके साथ ही हमें शक्ति, स्वतंत्रता और आंतरिक संतुलन भी मिलता है। जब हम अपने उद्देश्य के अनुसार कार्य करते हैं, तो जीवन खुद-ब-खुद बदलने लगता है।
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परिवर्तन की कठिनाइयाँ: डर और उम्मीदों का बोझ
परिवर्तन का एक नकारात्मक पक्ष यह है कि यह नई चुनौतियाँ और जिम्मेदारियाँ लेकर आता है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, जीवन हमसे अधिक अपेक्षाएँ करने लगता है। यही डर हमें किस्मत पर छोड़ने के लिए मजबूर करता है, जहाँ हम सोचते हैं:
"अगर मुझे यह नहीं मिल सकता, तो शायद मैं इसके लायक नहीं हूँ। यहाँ रहना ही बेहतर है।"
यह डर हमें जड़ता में फँसा देता है। लोग अक्सर बदलाव का सपना देखते हैं लेकिन उसके लिए कुछ करने से बचते हैं।
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आध्यात्मिक सिद्धांत: दृष्टि, विश्वास, कर्म और आभार
सच्चाई यह है कि जीवन हमें वही देता है जो हम उससे माँगते हैं। यह एक यूनिवर्सल मेन्यू की तरह है—जो कुछ भी हम कल्पना कर सकते हैं, वह आध्यात्मिक जगत में पहले से ही मौजूद है। जीवन के हर अवसर और सफलता को प्राप्त करने के लिए हमें बस उसे माँगना और स्वीकार करना होता है। लेकिन इसके लिए चार महत्वपूर्ण तत्वों की ज़रूरत होती है:
1. दृष्टि (Vision): सबसे पहले आपको उस जीवन की कल्पना करनी होगी जिसे आप जीना चाहते हैं। यदि आप उसे देख नहीं सकते, तो आप उसे बना नहीं सकते।
2. विश्वास (Faith): आपको विश्वास रखना होगा कि जो आप चाहते हैं, वह संभव है और पहले से ही अस्तित्व में है।
3. कर्म (Action): बिना कर्म के न तो दृष्टि पूरी हो सकती है और न ही विश्वास साकार हो सकता है। कर्म वह सेतु है जो आध्यात्मिक और भौतिक संसार को जोड़ता है।
4. आभार (Gratitude): जो आपके पास पहले से है, उसके लिए आभार व्यक्त करना उन आशीर्वादों को बढ़ाता है और और अधिक अच्छे को आकर्षित करता है।
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आप कितना बदलाव चाहते हैं?
प्रश्न यह नहीं है कि बदलाव संभव है या नहीं, बल्कि यह है कि आप कितना बदलाव चाहते हैं।
• आपके भीतर कितना संकल्प है?
• आप वास्तव में क्या बनना, करना या पाना चाहते हैं?
• क्या आप वाकई अपने पुराने सीमित विश्वासों से बाहर आना चाहते हैं?
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निष्कर्ष: जीवन आपको वह देने के लिए तैयार है जो आप माँगते हैं
वह जीवन जो आप चाहते हैं, पहले से ही आपका इंतज़ार कर रहा है। यह आध्यात्मिक रूप से पहले ही अस्तित्व में है—आपको केवल इसे माँगना और उसे भौतिक रूप में लाने के लिए काम करना है।
जीवन आपसे कुछ भी नहीं रोकता है; यह आपको वही देता है जो आप माँगने, विश्वास करने और कार्य करने के लिए तैयार हैं।
खुद से पूछें:
• मुझे वास्तव में क्या चाहिए?
• क्या मैं बदलाव के लिए तैयार हूँ?
• क्या मैं इतना तैयार हूँ कि पुरानी तकलीफों को छोड़कर नए जीवन का स्वागत कर सकूँ?
बदलाव का समय अब है। जीवन आपको वह सब देने के लिए तैयार है जो आप माँगेंगे—क्या आप तैयार हैं इसे स्वीकार करने के लिए?

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13/10/2024

आत्म-सम्मान और अहंकार: एक पतली रेखा, जो बनाती या बिगाड़ती है

आत्म-सम्मान और अहंकार के बीच एक बहुत पतली रेखा होती है। आत्म-सम्मान जहाँ हमारे आत्मविश्वास और आत्म-मूल्य को बढ़ाता है, वहीं अहंकार हमें अहंकारी बना देता है, जो न केवल हमारे लिए, बल्कि हमारे आसपास के लोगों के लिए भी हानिकारक हो सकता है। कई बार लोग अनजाने में इस रेखा को पार कर जाते हैं और यह उनके लिए और दूसरों के लिए नुकसानदेह साबित होता है। आइए समझते हैं कि यह कैसे होता है और कैसे हम इसे पहचानकर सही रास्ते पर लौट सकते हैं।

कैसे आत्म-सम्मान अहंकार में बदल जाता है:
बाहरी मान्यता की आवश्यकता:

आत्म-सम्मान: स्वस्थ आत्म-सम्मान आंतरिक मान्यता से आता है। हमें अपनी काबिलियत और मूल्यों पर विश्वास होता है, चाहे लोग उसकी सराहना करें या नहीं।
अहंकार: जब लोग अपनी कीमत को बाहरी मान्यता या प्रशंसा पर निर्भर करने लगते हैं, तो आत्म-सम्मान अहंकार में बदलने लगता है। उन्हें हर समय तारीफ या ध्यान चाहिए, और वे अपनी कीमत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं, जिससे वे दूसरों को छोटा समझने लगते हैं।

अतिविश्वास और श्रेष्ठता की भावना:

आत्म-सम्मान: आत्म-सम्मान हमें अपने कौशल और क्षमताओं पर विश्वास दिलाता है, बिना दूसरों से तुलना किए।
अहंकार: लेकिन जब यह विश्वास अतिविश्वास में बदल जाता है, तो व्यक्ति खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है। वे दूसरों की राय को कम करके आंकते हैं और खुद को हमेशा सही मानते हैं, जिससे वे कम सहानुभूतिपूर्ण और जिद्दी बन जाते हैं।

आलोचना स्वीकार न करना:

आत्म-सम्मान: आत्म-सम्मान वाला व्यक्ति आलोचना को विकास के अवसर के रूप में देखता है।
अहंकार: जबकि अहंकारी व्यक्ति आलोचना को अपने खिलाफ हमले के रूप में देखता है। वे अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करते और आलोचना को नकारात्मक रूप से लेते हैं, जिससे वे अपनी गलतियों को सुधार नहीं पाते।

सहयोग के बजाय अकेले श्रेय लेना:

आत्म-सम्मान: स्वस्थ आत्म-सम्मान वाला व्यक्ति टीमवर्क और सहयोग का मूल्य समझता है और साझा सफलता में यकीन रखता है।
अहंकार: जबकि अहंकारी व्यक्ति सफलता का सारा श्रेय खुद लेना चाहता है और दूसरों के योगदान को नजरअंदाज करता है। इससे टीम की भावना और एकजुटता को नुकसान पहुँचता है।

कैसे पहचानें कि आप अहंकार की ओर बढ़ रहे हैं:
रक्षात्मक प्रतिक्रिया की पहचान करें:

यदि आपको बार-बार रक्षात्मक महसूस होता है, खासकर जब कोई आपकी आलोचना करता है या आपकी राय को चुनौती देता है, तो यह संकेत हो सकता है कि आपका अहंकार सक्रिय हो रहा है। आत्म-सम्मान का आधार आत्म-आलोचना और विकास में होता है, जबकि अहंकार आत्मरक्षा में।

सहानुभूति की कमी पर ध्यान दें:

जब आपका अहंकार हावी होता है, तो आप दूसरों की भावनाओं को समझने और उनसे जुड़ने में असमर्थ हो जाते हैं। इससे रिश्तों में दूरी पैदा होती है और आपके व्यक्तिगत और व्यावसायिक संबंधों पर बुरा असर पड़ता है।

लगातार प्रशंसा या अनुमोदन की आवश्यकता:

यदि आप महसूस करते हैं कि आपकी आत्म-मूल्य प्रशंसा या ध्यान पर निर्भर है, तो यह संकेत हो सकता है कि आपका अहंकार काम कर रहा है। स्वस्थ आत्म-सम्मान को बाहरी मान्यता की आवश्यकता नहीं होती।

अपनी क्षमताओं का अतिरंजन करना:

यदि आप बार-बार यह मानते हैं कि आप दूसरों से अधिक सक्षम या योग्य हैं और उनके विचारों को कम आंकते हैं, तो यह संकेत है कि आप अहंकार के जाल में फँस रहे हैं।

कैसे सुधारें और सही रास्ते पर लौटें:
स्व-जागरूकता का अभ्यास करें:

नियमित रूप से खुद से पूछें: "क्या मैं आत्मविश्वास से बोल रहा हूँ या श्रेष्ठता के भाव से?" अपनी भावनाओं, प्रतिक्रियाओं और व्यवहार पर ध्यान दें। स्व-जागरूकता अहंकार को नियंत्रित करने की पहली कुंजी है।

विनम्रता का विकास करें:

याद रखें कि हर किसी से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। कोई भी पूर्ण नहीं होता। विनम्रता का मतलब है दूसरों की काबिलियत को भी मान्यता देना और यह समझना कि हम सबके पास सुधार की गुंजाइश है।

आलोचना और प्रतिक्रिया को गले लगाएँ:

आलोचना को आत्म-विकास का साधन मानें। इसे अपने ऊपर हमला न समझें, बल्कि इसे अपने प्रदर्शन को सुधारने के अवसर के रूप में देखें। यह आपको आत्म-सम्मान बनाए रखने में मदद करेगा।

आभार और योगदान पर ध्यान दें:

"मुझे क्या मिल सकता है?" की बजाय "मैं क्या दे सकता हूँ?" पर ध्यान केंद्रित करें। जब आप दूसरों की मदद करने और सकारात्मक योगदान देने पर ध्यान देते हैं, तो आपका आत्म-सम्मान मजबूत होता है, बिना अहंकार के हावी हुए।

आत्म-सम्मान और दूसरों के प्रति सम्मान का संतुलन बनाए रखें:

असली आत्म-सम्मान खुद का सम्मान करने के साथ-साथ दूसरों का भी सम्मान करता है। यह सुनिश्चित करें कि आप अपनी क्षमताओं का मूल्य पहचानते हुए दूसरों को भी महत्व दें।

निष्कर्ष:
आत्म-सम्मान हमें सशक्त बनाता है; यह हमें आत्म-विश्वास और सकारात्मक संबंध बनाने में मदद करता है। जबकि अहंकार हमें दूसरों से अलग करता है और हमें रक्षात्मक और अड़ियल बनाता है। यदि हम स्व-जागरूकता, विनम्रता और आभार का अभ्यास करें, तो हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारा आत्मविश्वास आत्म-सम्मान पर आधारित हो, न कि अहंकार पर। इससे हमारे रिश्ते स्वस्थ रहेंगे और हम जीवन में अधिक सफल और संतुलित रहेंगे।

Dr P K Jha

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Noida
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