Shambhavi yog and prakritik chikitsha kendra

Shambhavi yog and prakritik chikitsha kendra diploma certificate provide and health awareness

30/04/2023

India's Air Quality highlights from 2022!

1) Bhiwadi topped as India's most polluted city in 2022.
2) Delhi was the second most polluted capital city worldwide.
3) 12 out of 15 of the most polluted Central and South Asian cities were in India.
4) Tarakeswar and Digboi were two of the least polluted Indian cities.
5) Roughly 60% of Indian cities showed air pollution levels 7x more than WHO's recommended limits.

18/01/2023

Yoga for thyroid.
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 #बिहार_में_योग_शिक्षक_की_भर्ती_शुरू।महर्षि पतंजलि योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा परिषद, छपराबिना समय गवाए बिना,आज ही जॉइन क...
03/02/2022

#बिहार_में_योग_शिक्षक_की_भर्ती_शुरू।
महर्षि पतंजलि योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा परिषद, छपरा

बिना समय गवाए बिना,आज ही जॉइन करे
No-01 Yoga Teacher training institute in India....
#योगा_कोर्स_करने_लिए_सम्पर्क_करें।
मो- 9097530515
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24/01/2022

       #योगा_करने_लिए_सम्पर्क_करें   #योग_और_नेचरोपैथी_जीवन_अपनाये_बीमारी_को_दूर_भगाए   Ke liye sampark kare.
21/01/2022


#योगा_करने_लिए_सम्पर्क_करें #योग_और_नेचरोपैथी_जीवन_अपनाये_बीमारी_को_दूर_भगाए
Ke liye sampark kare.

20/01/2022

#योग_और_नेचरोपैथी_जीवन_अपनाये_बीमारी_को_दूर_भगाए।।।

इस वीडियो में अक्षय कुमार की अपनी जुबानी सलाह सुने।

योग हैं तो सब कुछ मुमकिन है।
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महर्षि पतंजलि योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा परिषद,patna ।
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 #राष्ट्रीय_युवा_दिवस_की_हार्दिक_शुभकामनाएं।*जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी*-स्वामी विवेकानंद-MPYPCP INDI...
12/01/2022

#राष्ट्रीय_युवा_दिवस_की_हार्दिक_शुभकामनाएं।

*जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी*-स्वामी विवेकानंद

-MPYPCP INDIA (No.1 Yoga Teacher Training Institute)
Mob-9097530515




12/01/2022

* #अजीनोमोटो*
* #दिमाग़_को_पागल_करने_का_मसाला*
*शादी-ब्याह* *दावतों* में भूल कर भी हलवाई को ना देवें !

आजकल व्यंजनों में, खासकर चायनीज वैरायटी में,
एक सफेद पाउडर या क्रिस्टल के रूप में
*मोनो सोडियम ग्लुटामेट* (M.S.G.) नामक रसायन
जिसे दुनिया *अजीनोमोटो* के नाम से जानती है,
का प्रयोग बहुत बढ़ गया है,
बिना यह जाने कि यह वास्तव में क्या है?
*अजीनोमोटो* नाम तो असल में इसे बनाने वाली मूल चायनीज कम्पनी का है !
यह एक ऐसा रसायन है, जिसके जीभ पर स्पर्श के बाद जीभ भ्रमित हो जाती है और मस्तिष्क को झूठे संदेश भेजने लगती है।
जिस सें *सड़ा-गला* या *बेस्वाद* खाना भी अच्छा महसूस होता है।
इस रसायन के प्रयोग से शरीर के अंगों-उपांगों और मस्तिष्क के बीच *न्यूरोंस* का नैटवर्क बाधित हो जाता है, जिसके दूरगामी दुष्परिणाम होते हैं।

चिकित्सकों के अनुसार *अजीनोमोटो* के प्रयोग से
1-एलर्जी,
2-पेट में अफारा,
3-सिरदर्द,
4-सीने में जलन,
5-बाॅडीे टिश्यूज में सूजन,
6-माइग्रेन आदि हो सकते है।
*अजीनोमोटो* से होने वाले रोग इतने व्यापक हो गये हैं कि अब इन्हें ‘*चाइनीज रेस्टोरेंट सिंड्रोम* कहा जाता है। दीर्घकाल में *मस्तिष्काघात* (Brain Hemorrhage)
हो सकता है जिसकी वजह से *लकवा* होता है।
अमेरिका आदि बहुत से देशों में *अजीनोमोटो* पर प्रतिबंध है।
न जाने
*फूड सेफ्टी एण्ड स्टैन्डर्ड अथाॅरिटी आॅफ इंडिया’* ने भारत में *अजीनोमोटो* को प्रतिबंधित क्यों नहीं किया है?

*सुरक्षित खाद्य अभियान* ("Safe Food Abhiyan")
की पाठकों से जोरदार अपील है कि दावतों में हलवाई द्वारा मंगाये जाने पर उसे *अजीनोमोटो* लाकर ना देवें। हलवाई कहेगा कि चाट में मजा नहीं आयेगा,
फिर भी इसका पूर्ण बहिष्कार करें।
कुछ भी हो (AFTER ALL) दावत खाने वाले आपके *प्रियजन* हैं, आपके यहां दावत खाकर वे बीमार नही पड़ने चाहिए !
जब आपने बाकि सारा बढ़िया सामान लाकर दिया है तो लोगों को *अजीनोमोटो* के बिना भी खाने में, चाट में पूरा मजा आयेगा, आप निश्चिंत रहें।
*अजीनोमोटो* तो *हलवाई की अयोग्यता* को छिपाने व होटलों, ढाबों, कैटरर्स, स्ट्रीट फूड वैंडर्स द्वारा सड़े-गले सामान को आपके *दिमाग* को पागल बनाकर स्वादिष्ट महसूस कराने के लिए डाला जाता है।
क्या *हलवाई की अयोग्यता* का दंड अपने *प्रियजनों*
को देंगे ????
*सुरक्षित खाद्य अभियान*(Safe Food Abhiyan)द्वारा
"विज्ञान प्रगति’ मई-2017"

बिहार में योग का बहाली शुरू हो गया है इसलिए आप योग कोर्स कर योग के क्षेत्र में नौकरी पाय l योग कोर्स करने हेतु संपर्क कर...
13/12/2021

बिहार में योग का बहाली शुरू हो गया है इसलिए आप योग कोर्स कर योग के क्षेत्र में नौकरी पाय l योग कोर्स करने हेतु संपर्क करें-- महर्षि पतंजलि योग संस्थान, बिहार. सेंटर कोड - 1124 मोबाइल नंबर 9097530515

27/10/2021

#अंतर..👇

ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में अंतर :------

#भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का बहुत महत्त्व रहा है। ऋषि मुनि समाज के पथ प्रदर्शक माने जाते थे और वे अपने ज्ञान और साधना से हमेशा ही लोगों और समाज का कल्याण करते आये हैं। आज भी वनों में या किसी तीर्थ स्थल पर हमें कई साधु देखने को मिल जाते हैं। धर्म कर्म में हमेशा लीन रहने वाले इस समाज के लोगों को ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी आदि नामों से पुकारते हैं। ये हमेशा तपस्या, साधना, मनन के द्वारा अपने ज्ञान को परिमार्जित करते हैं। ये प्रायः भौतिक सुखों का त्याग करते हैं हालाँकि कुछ ऋषियों ने गृहस्थ जीवन भी बिताया है। आईये आज के इस पोस्ट में देखते हैं ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में कौन होते हैं और इनमे क्या अंतर है ?

#ऋषि कौन होते हैं

भारत हमेशा से ही ऋषियों का देश रहा है। हमारे समाज में ऋषि परंपरा का विशेष महत्त्व रहा है। आज भी हमारे समाज और परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज माने जाते हैं।

ऋषि #वैदिक परंपरा से लिया गया शब्द है जिसे श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने वाले लोगों के लिए प्रयोग किया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है वैसे व्यक्ति जो अपने विशिष्ट और विलक्षण एकाग्रता के बल पर वैदिक परंपरा का अध्ययन किये और विलक्षण शब्दों के दर्शन किये और उनके गूढ़ अर्थों को जाना और प्राणी मात्र के कल्याण हेतु उस ज्ञान को लिखकर प्रकट किये ऋषि कहलाये। ऋषियों के लिए इसी लिए कहा गया है "ऋषि: तु मन्त्र द्रष्टारा : न तु कर्तार : अर्थात ऋषि मंत्र को देखने वाले हैं न कि उस मन्त्र की रचना करने वाले। हालाँकि कुछ स्थानों पर ऋषियों को वैदिक ऋचाओं की रचना करने वाले के रूप में भी व्यक्त किया गया है।

ऋषि शब्द का अर्थ

ऋषि शब्द "ऋष" मूल से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ देखना होता है। इसके अतिरिक्त ऋषियों के प्रकाशित कृत्य को आर्ष कहा जाता है जो इसी मूल शब्द की उत्पत्ति है। दृष्टि यानि नज़र भी ऋष से ही उत्पन्न हुआ है। प्राचीन ऋषियों को युग द्रष्टा माना जाता था और माना जाता था कि वे अपने आत्मज्ञान का दर्शन कर लिए हैं। ऋषियों के सम्बन्ध में मान्यता थी कि वे अपने योग से परमात्मा को उपलब्ध हो जाते थे और जड़ के साथ साथ चैतन्य को भी देखने में समर्थ होते थे। वे भौतिक पदार्थ के साथ साथ उसके पीछे छिपी ऊर्जा को भी देखने में सक्षम होते थे।

#ऋषियों के प्रकार

ऋषि वैदिक संस्कृत भाषा से उत्पन्न शब्द माना जाता है। अतः यह शब्द वैदिक परंपरा का बोध कराता है जिसमे एक ऋषि को सर्वोच्च माना जाता है अर्थात ऋषि का स्थान तपस्वी और योगी से श्रेष्ठ होता है। अमरसिंहा द्वारा संकलित प्रसिद्ध संस्कृत समानार्थी शब्दकोष के अनुसार ऋषि सात प्रकार के होते हैं ब्रह्मऋषि, देवर्षि, महर्षि, परमऋषि, काण्डर्षि, श्रुतर्षि और राजर्षि।

#सप्त ऋषि

पुराणों में सप्त ऋषियों का केतु, पुलह, पुलत्स्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ठ और भृगु का वर्णन है। इसी तरह अन्य स्थान पर सप्त ऋषियों की एक अन्य सूचि मिलती है जिसमे अत्रि, भृगु, कौत्स, वशिष्ठ, गौतम, कश्यप और अंगिरस तथा दूसरी में कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, भरद्वाज को सप्त ऋषि कहा गया है।

#मुनि किसे कहते हैं

मुनि भी एक तरह के ऋषि ही होते थे किन्तु उनमें राग द्वेष का आभाव होता था। भगवत गीता में मुनियों के बारे में कहा गया है जिनका चित्त दुःख से उद्विग्न नहीं होता, जो सुख की इच्छा नहीं करते और जो राग, भय और क्रोध से रहित हैं, ऐसे निस्चल बुद्धि वाले संत मुनि कहलाते हैं।

मुनि शब्द मौनी यानि शांत या न बोलने वाले से निकला है। ऐसे ऋषि जो एक विशेष अवधि के लिए मौन या बहुत कम बोलने का शपथ लेते थे उन्हीं मुनि कहा जाता था। प्राचीन काल में मौन को एक साधना या तपस्या के रूप में माना गया है। बहुत से ऋषि इस साधना को करते थे और मौन रहते थे। ऐसे ऋषियों के लिए ही मुनि शब्द का प्रयोग होता है। कई बार बहुत कम बोलने वाले ऋषियों के लिए भी मुनि शब्द का प्रयोग होता था। कुछ ऐसे ऋषियों के लिए भी मुनि शब्द का प्रयोग हुआ है जो हमेशा ईश्वर का जाप करते थे और नारायण का ध्यान करते थे जैसे नारद मुनि।

मुनि शब्द का चित्र,मन और तन से गहरा नाता है। ये तीनों ही शब्द मंत्र और तंत्र से सम्बन्ध रखते हैं। ऋग्वेद में चित्र शब्द आश्चर्य से देखने के लिए प्रयोग में लाया गया है। वे सभी चीज़ें जो उज्जवल है, आकर्षक है और आश्चर्यजनक है वे चित्र हैं। अर्थात संसार की लगभग सभी चीज़ें चित्र शब्द के अंतर्गत आती हैं। मन कई अर्थों के साथ साथ बौद्धिक चिंतन और मनन से भी सम्बन्ध रखता है। अर्थात मनन करने वाले ही मुनि हैं। मन्त्र शब्द मन से ही निकला माना जाता है और इसलिए मन्त्रों के रचयिता और मनन करने वाले मनीषी या मुनि कहलाये। इसी तरह तंत्र शब्द तन से सम्बंधित है। तन को सक्रीय या जागृत रखने वाले योगियों को मुनि कहा जाता था।

#जैन ग्रंथों में भी मुनियों की चर्चा की गयी है। वैसे व्यक्ति जिनकी आत्मा संयम से स्थिर है, सांसारिक वासनाओं से रहित है, जीवों के प्रति रक्षा का भाव रखते हैं, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, ईर्या (यात्रा में सावधानी ), भाषा, एषणा(आहार शुद्धि ) आदणिक्षेप(धार्मिक उपकरणव्यवहार में शुद्धि ) प्रतिष्ठापना(मल मूत्र त्याग में सावधानी )का पालन करने वाले, सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायतसर्ग करने वाले तथा केशलोच करने वाले, नग्न रहने वाले, स्नान और दातुन नहीं करने वाले, पृथ्वी पर सोने वाले, त्रिशुद्ध आहार ग्रहण करने वाले और दिन में केवल एक बार भोजन करने वाले आदि 28 गुणों से युक्त महर्षि ही मुनि कहलाते हैं।

मुनि ऋषि परंपरा से सम्बन्ध रखते हैं किन्तु वे मन्त्रों का मनन करने वाले और अपने चिंतन से ज्ञान के व्यापक भंडार की उत्पति करने वाले होते हैं। मुनि शास्त्रों का लेखन भी करने वाले होते हैं

#साधु कौन होते हैं

किसी विषय की साधना करने वाले व्यक्ति को साधु कहा जाता है। प्राचीन काल में कई व्यक्ति समाज से हट कर या कई बार समाज में ही रहकर किसी विषय की साधना करते थे और उस विषय में विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करते थे। विषय को साधने या उसकी साधना करने के कारण ही उन्हें साधु कहा गया।

कई बार अच्छे और बुरे व्यक्ति में फर्क करने के लिए भी साधु शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका कारण है कि सकारात्मक साधना करने वाला व्यक्ति हमेशा सरल, सीधा और लोगों की भलाई करने वाला होता है। आम बोलचाल में साध का अर्थ सीधा और दुष्टता से हीन होता है। संस्कृत में साधु शब्द से तात्पर्य है सज्जन व्यक्ति। #लघुसिद्धांत कौमुदी में साधु का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि "साध्नोति परकार्यमिति साधु : अर्थात जो दूसरे का कार्य करे वह साधु है। साधु का एक अर्थ उत्तम भी होता है ऐसे व्यक्ति जिसने अपने छह विकार काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह और मत्सर का त्याग कर दिया हो, साधु कहलाता है।

साधु के लिए यह भी कहा गया है "आत्मदशा साधे " अर्थात संसार दशा से मुक्त होकर आत्मदशा को साधने वाले साधु कहलाते हैं। वर्तमान में वैसे व्यक्ति जो संन्यास दीक्षा लेकर गेरुआ वस्त्र धारण करते हैं और जिनका मूल उद्द्येश्य समाज का पथ प्रदर्शन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलते हुए मोक्ष को प्राप्त करते हैं, साधु कहलाते हैं।

#संन्यासी किसे कहते हैं

सन्न्यासी धर्म की परम्परा प्राचीन हिन्दू धर्म से जुडी नहीं है। वैदिक काल में किसी संन्यासी का कोई उल्लेख नहीं मिलता। सन्न्यासी या सन्न्यास की अवधारणा संभवतः जैन और बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद की है जिसमे सन्न्यास की अपनी मान्यता है। हिन्दू धर्म में आदि शंकराचार्य को महान सन्न्यासी माना गया है।

सन्न्यासी शब्द सन्न्यास से निकला हुआ है जिसका अर्थ त्याग करना होता है। अतः त्याग करने वाले को ही सन्न्यासी कहा जाता है। सन्न्यासी संपत्ति का त्याग करता है, गृहस्थ जीवन का त्याग करता है या अविवाहित रहता है, समाज और सांसारिक जीवन का त्याग करता है और योग ध्यान का अभ्यास करते हुए अपने आराध्य की भक्ति में लीन हो जाता है।

#हिन्दू धर्म में तीन तरह के सन्न्यासियों का वर्णन है

परिव्राजकः सन्न्यासी : भ्रमण करने वाले सन्न्यासियों को परिव्राजकः की श्रेणी में रखा जाता है। आदि शंकराचार्य और रामनुजनाचार्य परिव्राजकः सन्यासी ही थे।

परमहंस सन्न्यासी : यह सन्न्यासियों की उच्चत्तम श्रेणी है।

यति : सन्यासी : उद्द्येश्य की सहजता के साथ प्रयास करने वाले सन्यासी इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

वास्तव में संन्यासी वैसे व्यक्ति को कह सकते हैं जिसका आतंरिक स्थिति स्थिर है और जो किसी भी परिस्थिति या व्यक्ति से प्रभावित नहीं होता है और हर हाल में स्थिर रहता है। उसे न तो ख़ुशी से प्रसन्नता मिलती है और न ही दुःख से अवसाद। इस प्रकार निरपेक्ष व्यक्ति जो सांसारिक मोह माया से विरक्त अलौकिक और आत्मज्ञान की तलाश करता हो संन्यासी कहलाता है।

#उपसंहार

ऋषि, मुनि, साधु या फिर संन्यासी सभी धर्म के प्रति समर्पित जन होते हैं जो सांसारिक मोह के बंधन से दूर समाज कल्याण हेतु निरंतर अपने ज्ञान को परिमार्जित करते हैं और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हेतु तपस्या, साधना, मनन आदि करते हैं।

24/10/2021

🌱🌱🚩हमरी पारंपरिक जीवन शैली और हमारा स्वास्थ्य🚩 🌱🌱
यदि आपको डायबिटीज और हाइपरटेंशन है ?

और आप यदि *दातून करना भूल चुके* हो...तो

*वापसी कीजिये, तुरंत!*

सन 1990 से पहले कितने लोगों को

*डायबिटीज़ होता था?* कितने लोग *हाइपरटेंशन* से त्रस्त थे? नब्बे के दशक के साथ *हर घर में एक डायबिटीज़* और *हाई ब्लड प्रेशर का रोगी* आ गया, क्यों? बहुत सारी वजहें होंगी, जिनमें हमारे *खानपान में बदलाव* को सबसे *खास माना जा सकता* है। बदलाव के उस दौर में एक *चीज बहुत ख़ास थी* जो *खो गयी*, पता है ना क्या है वो? *दातून* ?...गाँव देहात में आज भी लोग *दातून इस्तमाल* करते दिख जाएंगे लेकिन शहरों में *दातून पिछड़ेपन* का संकेत बन चुका है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि गांव के लोग अशिक्षित हैं जबकि शहरों के लोग काफी शिक्षित हैं एजुकेटेड हैं ।यह उसी का नतीजा है।गाँव देहात में *डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन* के रोगी यदा कदा ही दिखेंगे या ना के बराबर ही होंगे। वजह साफ है, ज्यादातर लोग आज भी *दातून करते* हैं। *डायबिटीज़ और हाइ ब्लड प्रेशर* के साथ *दातून का क्या संबंध, यही सोच* रहे हो ना?..तो आज *आपका दिमाग हिल* जाएगा..और फिर सोचिएगा, हमने क्या खोया, क्या पाया?

ये जो बाज़ार में *टूथपेस्ट और माउथवॉश* आ रहे हैं ना, *99.9% सूक्ष्मजीवों* का नाश करने का दावा करने वाले, उन्हीं ने *सारा बंटाधार* कर दिया है। ये *माउथवॉश और टूथपेस्ट* बेहद *स्ट्राँग एंटीमाइक्रोबियल* होते हैं और हमारे मुंह के *99% से ज्यदा सूक्ष्मजीवों को वाकई मार गिराते* हैं। इनकी मारक क्षमता इतनी जबर्दस्त होती है कि ये मुंह के उन *बैक्टिरिया का भी खात्मा* कर देते हैं, जो हमारी *लार (सलाइवा)* में होते हैं और ये वही बैक्टिरिया हैं जो हमारे शरीर के *नाइट्रेट (NO3-)* को *नाइट्राइट (NO2-)* और बाद में *नाइट्रिक ऑक्साइड (NO)* में *बदलने में मदद* करते हैं। जैसे ही हमारे शरीर में *नाइट्रिक ऑक्साइड* की कमी होती है, *ब्लड प्रेशर* बढ़ता है। ये दुनियाभर की रिसर्च स्ट्डीज़ बताती हैं कि *नाइट्रिक ऑक्साइड* का कम होना *ब्लड प्रेशर को बढ़ाने* के लिए जिम्मेदार है। जर्नल ऑफ क्लिनिकल हायपरेटेंस (2004) में *'नाइट्रिक ऑक्साइड इन हाइपरटेंशन'* टाइटल के साथ छपे एक रिव्यु *आर्टिकल में सारी जानकारी विस्तार से* छपी है। और, *नाइट्रिक ऑक्साइड* की यही कमी *इंसुलिन रेसिस्टेंस* के लिए भी जिम्मेदार है। समझ आया खेल? *नाइट्रिक ऑक्साइड* कैसे बढ़ेगा जब इसे बनाने वाले *बैक्टिरिया का ही काम तमाम* कर दिया जा रहा है? *ब्रिटिश डेंटल* जर्नल में 2018 में तो बाकायदा एक स्टडी छपी थी जिसका टाइटल ही *’माउथवॉश यूज़ और रिस्क ऑफ डायबिटीज़’* था। इस स्टडी में बाकायदा *तीन साल तक उन लोगों पर अध्धयन* किया गया जो दिन में कम से कम *2 बार माउथवॉश* का इस्तमाल करते थे और पाया गया कि *50% से ज्यादा लोगों को प्री-डायबिटिक या डायबिटीज़ की कंडिशन* का सामना करना पड़ा।

अब *बताओ करना क्या* है? कितना *माउथवॉश यूज़* करेंगे? कितने टूथपेस्ट लाएंगे *सूक्ष्मजीवों को मार* गिराने वाले? दांतों की फिक्र करने के चक्कर में आपके पूरे शरीर की *बैंड बज* रही है सरकार.. गाँव देहातों में तो *दातून का भरपूर इस्तेमाल* हो रहा है, और ये दातून *मुंह की दुर्गंध भी दूर* कर देते हैं और सारे *बैक्टिरिया का खात्मा* भी नहीं करते। अब आप सोचेंगे *टूथपेस्ट और माउथवॉश* को लेकर इतनी पंचायत कर ली तो *दातून के प्रभाव* को लेकर किसी क्लिनिकल स्टडी की बात क्यों नही की? तो भई, अब दातून से *जुड़ी स्टडी की भी बात* हो जाए।

बबूल और नीम की *दातून को लेकर एक क्लिनिकल स्टडी* जर्नल ऑफ क्लिनिकल डायग्नोसिस एंड रिसर्च में छपी और बताया गया कि *स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटेंस की वृद्धि* रोकने में ये दोनों जबर्दस्त तरीके से कारगर हैं। ये वही *बैक्टिरिया है जो दांतों को सड़ाता* है और *कैविटी का कारण* भी बनता है। वो सूक्ष्मजीव जो *नाइट्रिक ऑक्साइड* बनाते हैं जैसे *एक्टिनोमायसिटीज़, निसेरिया, शालिया, वीलोनेला* आदि दातून के शिकार नहीं होते क्योंकि इनमें वो *हार्ड केमिकल कंपाउंड* नहीं होते जो *माउथवॉश और टूथपेस्ट* में डाले जाते हैं।

आदिवासी दांतों पर दातून घुमाने के बाद *एकाध बार थूकते* है, बाद में *दांतों पर दातून की घिसाई* तो करते हैं और *लार को निगलते जाते* हैं? खेल समझ आया? *लार में ही तो असल* खेल है। ये हिंदुस्तान का *ठेठ देसी ज्ञान* है ।


*बासी पानी जे पिये, ते नित हर्रा खाय।*

*मोटी दतुअन जे करे, ते घर वैध ना जाए*🙏🙏

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Mithila Colony Road
Patna
800018

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