Sai Health Center & Organique Healing Center

Sai Health Center & Organique Healing Center Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from Sai Health Center & Organique Healing Center, Alternative & holistic health service, A 11, SPRING FIELD BUILDING 4th FLOOR KHARADI, Pune.

We are Successful competed our 25yrs of Non invasive treatment module in Sai health centre and Panchakarma,Mind Healing ,Marma Therapy,Nutritional Regimes ,Antioxidant Therapy ,Yoga ,Exercises and Holistic Approaches Towards Healing Body ,Mind And Soul.(

30/10/2024

मस्तिष्क की कमजोरी
Brain weakness

एक कप अमरस, चौथाई कप दूध, एक चम्मच अदरक का रस, स्वादानुसार चीनी सब मिलाकर एक बार रोज पीए। इससे मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है। मस्तिष्क की कमजोरी के कारण पुराना सिर दर्द, आंखों के आगे अंधेरा आना दूर होता है। यह हृदय और यकृत को भी शक्ति देता है।

आधा भोजन करने के बाद हरे आंवले का रस 35 ग्राम पानी में मिलाकर पी लें, फिर आधा भोजन करें। इस प्रकार 21 दिन सेवन करने से हृदय तथा मस्तिष्क संबंधित दुर्बलता दूर होकर स्वास्थ्य सुधर जाता है।

स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए रोज सुबह आंवले का मुरब्बा खाएं।

लीची उत्तम स्वास्थ्यवर्धक फल है। यह प्यास कम करता है तथा हृदय, मस्तिष्क और यकृत को शक्ति देता है।

सिर में चक्कर आते हो तो धनिया उबालकर, मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।

125 ग्राम धनिया पीसकर 500 ग्राम पानी में उबालें। जब पानी चौथाई भाग रह जाए तो छानकर 125 ग्राम मिश्री मिलाकर फिर गर्म करें।थ जब गाढ़ा हो जाए तो उतार लें। यह प्रतिदिन खाएं

दिमाग की कमजोरी का खास अनुभूत प्रयोग.........

✅इस्तेमाल कीजिए और लाभ उठाइए...

✅वैसे यह रोग बहुत से रोगियों पर आजमाया हुआ है ...

✅सब कहीं ना कहीं ऐसी चीजों का इस्तेमाल भी करते हैं जो इसमें इस्तेमाल होंगी...

✅मैंने सोचा क्यों ना इसकी पोस्ट बनाकर आपके साथ इस खूबसूरत बेहतरीन योग को शेयर किया जाए...

1️⃣बादाम गिरी - 5 नग

2️⃣पिस्ता - 5 नग

3️⃣अखरोट - 1 नग

4️⃣इलायची - 3 -4 दाने

5️⃣छुआरा - 1 नग

6️⃣गाय का मक्खन या देसी घी 40- 50 ग्राम

7️⃣30 ग्राम धागे वाली मिश्री

🛑

बनाने की विधि.....

✅बादाम पिस्ता छुहारे अखरोट इलायची सब को रात में भिगोकर रखें। फिर सुबह उठकर बादाम , पिस्ट का छिलका उतारना है, छुआरे का बीज निकलना है ,ओर अखरोट सबको पीस लेना है..

✅इसके बाद (मक्खन ) घी में ओर मिश्री को मिलाकर अच्छे से सुबह खाली पेट खाए..

✅यह एक मात्रा है .

✅2-3 महीने प्रयोग करें।

✅परिणाम आपके सामने होंगे अपने शारिरिक बलानुसार घी , मिश्री की मात्रा कम भी कर सकते हो..

✅दिमाग की कमजोरी को दूर करता है।

✅आंखों की रोशनी बढ़ाता है।

✅याददाश्त बढाता है।

✅दिमाग को मजबूत बनाता है।

✅माइग्रेन , सर दर्द , मानसिक रोग को दूर करता है।

✅दिमाग को शांत करता है।

✅दिमाग को एकाग्र ओर मन को खुश रखकर मानसिक व शारिरिक शक्ति देता है।

✅फायदे तो बहुत है मुख्य आपके सामने है..बाकी अनुभव करें फिर बताये।...

📦अगर आपको किसी बीमारी का इलाज करवाना हो तो आप बीमारी के बारे में बताकर या परेशानी के बारे मे बता कर आयुर्वेदिक औषधियां मंगवा सकते हैं।..

🏝️ किसी भी जानकारी के लिए या ट्रीटमेंट के लिए आप पहले हमें अपनी प्रॉब्लम व्हाट्सप्प कर दीजिये समय मिलते ही आपको जवाब दिया जायेगा...

🏝️सभी सुखी और निरोगी रहे

🏝️Dr.Anurita Sakat
Ayurvedic Critical Consultant
Sai Health Centre
Organique Healing Centre
Organique Grooming Studio
8483806305,9881396304

🟣🟣🟣🟣संग्रहणी IBSसंग्रहणी रोग के कारण लक्षण और घरेलू उपचार.... संग्रहणी रोग को श्वेतातिसार रोग या स्प्रू रोग भी कहते हैं,...
30/10/2024

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संग्रहणी
IBS

संग्रहणी रोग के कारण लक्षण और घरेलू उपचार....

संग्रहणी रोग को श्वेतातिसार रोग या स्प्रू रोग भी कहते हैं, अंग्रेजी में इस रोग का नाम Collectible disease है । संग्रहणी रोग में मरीज को सुबह बिना किसी दर्द के हल्का और फेन दार खडि़या (मिट्टी के) रंग का पानी के समान पतला दस्त आता है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है वैसे-वैसे सायंकाल भी भोजन के बाद तुरंत दस्त भी आने लगता है। लेकिन इससे रोगी को तुरंत कोई कष्ट महसूस नही होता है, इसके बाद पेट फूलना और बद हजमी आदि जैसे लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं। इससे मरीज बहुत कमजोर भी हो जाता है । आज हम जानते हैं कि संग्रहणी रोग के कारण लक्षण और घरेलू उपचार

संग्रहणी रोग (Collectible disease) के कारण

हम लोगों का जीवन इतना व्यस्त हो गया है कि हमारे पास स्वयं के लिए भी समय नहीं रह गया है। इसी वजह से लोग पोषण रहित फास्टफूड का सेवन कर पेट तो भर लेते हैं, किंतु यह नहीं समझते कि इससे स्वास्थ्य की कितनी हानि हो रही है। ऐसे पदार्थों के नियमित सेवन से धीरे-धीरे पाचक अग्नि विकृत हो जाती है, जो अधिकांश रोगों का मूल कारण बनती है । संग्रहणी रोग पाचन संस्थानगत रोगों में प्रमुख रोग है । पाचन संस्थान के अन्य रोगों के समान इस रोग का प्रधान कारण भी मंदाग्नि है । मुख से लेकर गुदा तक पाचन प्रणाली के सारे अवयव इस रोग में विकृत हो जाते हैं, किंतु प्रधान रूप से ग्रहणी की विकृति से ही यह रोग होता है ।

संग्रहणी पाचक अग्नि का प्रधान केंद्र है। संग्रहणी शब्द से छोटी आंत का प्रारंभिक भाग या केवल छोटी आंत का ही अर्थ लेना चाहिए। आंत के इस भाग में ही मुख्य रूप से आहार का पाचन होता है। इसी स्थान पर लिवर द्वारा स्रवित पित्त एवं आन्याशय द्वारा स्त्रवित अग्न्यायिक रस आहार के साथ मिलकर उसका पाचन करते हैं। वसा के पाचन का भी यही प्रधान केंद्र है। संग्रहणी का सामान्य कार्य पाचन के लिए अनपचे अन्न का धारण करना एवं पाचन के बाद बचे हुए अंश को आंत में आगे की ओर सरका देना है। (संग्रहणी रोग के कारण लक्षण और घरेलू उपचार)

संग्रहणी का यह कार्य अग्नि के बल पर निर्भर है । प्रारंभ से ही जिनकी अग्नि मंद हो या अतिसार के कारण जिनकी अग्नि मंद हो गई हो, ऐसे व्यक्ति यदि अपथ्य का सेवन करते हैं, तो उनकी अग्नि पुनः अधिक मंद एवं विकृत होकर संग्रहणी को भी दूषित कर आहार को कभी अर्धपक्वावस्था में, कभी पक्वावस्था में अनेक बार त्यागती है। इससे मल दुर्गन्धित, कभी बंधा, कभी तरल, अनेक बार पीड़ा के साथ निकलता है । यह ग्लूकोज वसा तथा विटामिन के अवशोषण में अवरोध उत्पन्न हो जाने से होने वाला रोग है ।

संग्रहणी रोग में आंत की श्लेष्मिक कला में सूजन आ जाने से अधिक स्राव होने लगता है, जिससे पाचक रस आहार पर सम्यक क्रिया नहीं कर पाते और आहार बिना पचे ही आंत में आगे की ओर सरकते हुए आंव के रूप में बाहर निकल जाता है। आहार का उचित पाचन नहीं होने से विटामिन, कैल्शियम, ग्लूकोज, वसा आदि का भी सम्यक पाचन एवं शोषण नहीं हो पाता । पोषण अभाव से व्यक्ति कालान्तर में अति दुर्बल हो जाता है, वजन घटने लगता है, उसे अपच हो जाता है, वसायुक्त दस्त आने लगते हैं। संग्रहणी रोग को उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारण आहार-विहार होता है, इस रोग के प्रमुख कारण निम्न लिखित हैं

अधिक व दूषित आहार
आहार मात्रा (भूख) से अधिक, अत्यंत रूखे, दूषित, गरिष्ठ, तीखे, गर्म, ठंडे या बासी भोजन का सेवन, अपनी प्रकृति विरुद्ध आहार का सेवन, दूषित जल या अन्य रासायनिक पेय तथा चरस, गांजा, अफीम आदि नशीले पदार्थों के सेवन से अग्नि मंद होकर ग्रहणी रोग को उत्पन्न करती है।

विहार

रात्रि जागरण, दिन में सोना, भोजन के तुरंत बाद स्नान या मैथुन करना , मल-मूत्र आदि वेगों को जबरदस्ती से रोक कर रखना, पंचकर्म का मिथ्या योग या अति योग आदि संग्रहणी रोग को उत्पन्न करते हैं।

संग्रहणी रोग (Collectible disease) के लक्षण

संग्रहणी रोग में निम्न लक्षण होते हैं

भोजन से अरुचि होना ।
स्वाद की अनुभूति नहीं होना।
लार अधिक आना।
प्यास अधिक लगना।
हाथ-पैरों में सूजन आना ।
संधियों में दर्द होना।
सिरदर्द होना ।
खट्टी डकारें आना।
उल्टी होना।
बुखार आना ।
मूर्छा होना ।
आंखों के सामने अंधेरा छा जाना ।
शरीर दुबला होना ।
आलस्य आना ।
बल का नाश होना ।
आहार का देर से पचना।
प्यास अधिक लगना।
शरीर में भारीपन होना ।
संग्रहणी रोग के प्रकार

संग्रहणी रोग मुख्यता 5 प्रकार की होती है

1- वातज संग्रहणी

वातज संग्रहणी रोगी बहुत देर में कष्ट पूर्वक कभी रूखा, कभी द्रव, आम एवं फेन युक्त मल का त्याग करता है। इसमें पाचक रसों के स्राव एवं आंत की गति को नियमित करने वाली वातनाडियों की क्रिया में विकृति आ जाने से मल अपक्व या अर्धपक्व अवस्था में ही निकल जाता है। सभी धातुओं में व्याप्त आमदोष, रक्ताल्पता और वात विकृति से हदय प्रदेश, गर्दन, कंधे, पीठ, पिंडलियों आदि में दर्द होता है । गुदा में कैंची से काटने के समान पीड़ा होती है। रोगी को मीठे, खट्टे, नमकीन, कड़वे, तीखे, कसैले के सेवन की प्रबल इच्छा होती है। भोजन के तुरंत बाद रोगी स्वस्थता का अनुभव करता है, किंतु भोजन पचते समय एवं भोजन पच जाने पर वायु की वृद्धि होने से पेट फूल जाता है। (संग्रहणी रोग के कारण लक्षण और घरेलू उपचार)

2- पित्तज संग्रहणी

इसमें रोगी नीले या पीले रंग के पतले मल का जलन के साथ त्याग करता है। साथ ही हृदय प्रदेश, गुदा, पार्श्व, पेट एवं सिर में भी दाह होता है । दूषित पित्त की अतिवृद्धि से खट्टी एवं दुर्गंधयुक्त डकारें आती हैं तथा भोजन में अरुचि, प्यास अधिक लगना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

3- कफज संग्रहणी

कफज संग्रहणी में रोगी आम एवं श्लेष्मा मिश्रित ढीले एवं गुरु मल का बारंबार त्याग करता है। रोगी को हृदय प्रदेश, गुदा, पार्श्व, पेट एवं सिर में भारीपन महसूस होता है । इसके अतिरिक्त उल्टी, अरुचि, मुंह मीठा रहना, लार अधिक आना, मीठी डकारें आना, सर्दी-खांसी होना, बार-बार थूकने की प्रवृत्ति आदि लक्षण भी प्रकट होते हैं।

4- कफज संग्रहणी

कफज संग्रहणी में जीवनीय अंश की कमी एवं जलीय अंश की अधिकता होने से हाथ-पैरों में सूजन आ जाती है तथा धातुओं का सम्यक पोषण न होने से रोगी दुर्बलता का अनुभव करता है।

5-त्रिदोषज संग्रहणी

त्रिदोषज संग्रहणी में उक्त चारों दोषों के मिले-जुले लक्षण प्रकट होते हैं।

संग्रहणी रोग के घरेलू उपचार
संग्रहणी रोग के घरेलू उपचार निम्न प्रकार से कर सकते हैं

बेल के कच्चे फल को आग में सेंक कर उसका गुदा निकाल कर, दस ग्राम गुदे में थोड़ी सी चीनी मिलाकर सेवन करते रहने से इस रोग से लाभ होता है ।
दो ग्राम भांग को भूनकर तीन ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से इस रोग में शीघ्र लाभ होता है।
छह ग्राम खजूर के फल को गाय के दूध से बनी बीस ग्राम दही के साथ सेवन करने से बच्चों को संग्रहणी रोग से लाभ होता है।
पचास ग्राम मीठे आम के रस में मीठी दही दस बीस ग्राम तथा एक चम्मच अदरक का रस रोज दिन में दो से तीन बार लगातार पिलाने से कुछ दिन के बाद इस लोग में चमत्कारिक रूप से लाभ होता है।

पिप्पली, भांग तथा सोंठ के चूर्ण तथा पुराना गुड़ छह-छह ग्राम एकत्र कर के इन्हे खरल कर तीन ग्राम की मात्रा में दिन में तीन- चार बार लेने से संग्रहणी में लाभ होता है।

बड़ी इलायची के दाने दस ग्राम, सौंफ साठ ग्राम, नौसादर बीस ग्राम सभी को तवे पर भून कर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें तथा इसे एक-एक ग्राम की मात्रा में सेवन करने से इस रोग में लाभ होता है।
खाना बनाते समय उसमें दालचीनी, पिप्पली, पिप्पलीमूल, चव्य, चित्रक, सोंठ, मरिच, कैथ का गूदा, मोचरस, पंचकोल, नागरमोथा आदि का प्रयोग करना लाभ दायक होता है।

♦️संग्रहणी रोग में परहेज♦️

इस रोग में परहेज रखना अति आवश्यक है, क्योंकि जरा सी भी बदपरहेजी इस रोग को लक्षणों को तुरंत पुन: से उभार देती है। इस रोग में निम्न परहेज रखना आवश्यक होता है

चिकनाई युक्त पदार्थ ।
गरिष्ठ पदार्थ।
रिफाइंड तेल ।
पसालेदार भोजन।
अरबी, भिंडी आदि लसदार सब्जियां।
मांसाहार जैसे मीट मछली आदि
सभी मादक एवं उत्तेजक पदार्थों का सेवन ।
किसी भी तरह का भारी परिश्रम आदि ।

संग्रहणी रोग में फायदा करने वाले पदार्थ

संग्रहणी रोग में निम्न पद्रार्थों का सेवन लाभ प्रद रहता है

गेहूं, ज्वार या बाजरे की रोटी।
पुराना चावल।
मूंग, मसूर या कुलथी की दाल।
लौकी, कद्दू, तुरई, परवल की सब्जी।
बकरी का दूध,।
गाय का घी, तिल का तेल, दही, मट्ठा, मक्खन।
शहद का सेवन ।
कैथ, बेल, अनार, संतरा, केला, पपीता का सेवन ।
धान के लावे का मांड।
सिंघाडा का सेवन आदि

अगर आपको किसी बीमारी का इलाज करवाना हो तो आप बीमारी के बारे में बताकर या परेशानी के बारे मे बता कर आयुर्वेदिक औषधियां मंगवा सकते हैं।..

किसी भी जानकारी के लिए या ट्रीटमेंट के लिए आप पहले हमें अपनी प्रॉब्लम व्हाट्सप्प कर दीजिये समय मिलते ही आपको जवाब दिया जायेगा...

सभी सुखी और निरोगी रहे

Dr.Anurita Sakat
Ayurvedic Critical consultant
8483806305
Sai Health Centre
Organique Healing Centre

30/10/2024

Vitamin D increases testosterone production 🥊

Vitamin D deficiency and low testosterone concentrations in men can affect their fertility or lead to osteoporosis and loss of muscle mass. New Danish research shows that these two factors may be more closely related than previously thought, since vitamin D deficiency may reduce testosterone production.

16/10/2024

CA Cholangioma At Gallbladder with Metastasis liver ,Obstructed Jaundice and 12, hours No gaurantee at Belgaum shifted zo Kolhapur

Skin Disease The most promising in skin diseases is not the outermost skin Layer EPIDERMIS  but your affected  deeper La...
11/09/2024

Skin Disease
The most promising in skin diseases is not the outermost skin Layer EPIDERMIS but your affected deeper Layer Dermis and Hypodermis innermost layer and so only external Applications of cream do not give results .Sai Health Centre after detail Case taking screens the root cause of Digestive toxins or Blood impurities and then getting the root cause focus onto getting rid of the root cause of the disease .

Dr.Anurita SaKat Ayurvedic Critical Consultant 098813 96304 Sai Health Centre Organique Healing centre !* 🎊 We hope this...
01/01/2024

Dr.Anurita SaKat
Ayurvedic Critical Consultant
098813 96304
Sai Health Centre
Organique Healing centre !* 🎊

We hope this message finds you in Good Health ,Immunity & Motivating happy Mind and Soul
You are one of our ✌🏻Valued customers,Caring patients and bonded health loving family members ,and well wishers and we 🙏🏻Appreciate your Trust and Loyalty. You have made our year wonderful, and we are thankful 😃for that.

Wishing you ✨*All the Best for the New Year*🌟. May this year be full of healthy life without disease and pain , And 💃🏻Flawless Joys and happiness

Regards,
Sai Health Centre
Organique Healing Centre
Pune

🌟 👩🏻‍⚕️*Dr. Anurita A. Sakat * 🎄🎁

06/12/2023

🍁 *प्रत्येक पालेभाजी आपल्या शरीरावर कसे काम करते आणि आपण त्यांचा वापर कशाप्रकारे करू शकतो ते बघुयात.*

*अळू*
अळू ही पालेभाजी शरीरास अत्यावश्यक असणारे रक्त वाढवणारी, ताकद वाढवणारी व मलप्रवृत्तीस आळा घालणारी आहे. बाळंतिणीस दूध कमी येत असल्यास अळूची भाजी भरपूर खावी. भाजीकरिता पाने व देठ दोन्हींचा उपयोग करावा. अळूच्या पानांचा रस व जिरेपूड असे मिश्रण पित्तावर उत्तम गुण देते. फुरसे किंवा अन्य विषारी प्राणी चावले असताना वेदना कमी करण्याकरिता अळूची पाने वाटून त्यांचा चौथा थापावा व पोटात रस घ्यावा. गळवे किंवा फोड फुटण्याकरिता अळूची देठे वाटून त्या जागी बांधावी. गळू फुटतात.

*अंबाडी*
अंबाडी ही पालेभाजी रुचकर आहे; पण डोळय़ाचे विकार, त्वचारोग, रक्ताचे विकार असणाऱ्यांनी वापरू नये. अंबाडी खूप उष्ण आहे, तशीच ती कफही
वाढवते.
*करडई*
करडई पालेभाजी खूप उष्ण आहे. चरबी वाढू नये म्हणून याच्या तेलाचा उपयोग होतो. तसेच याची पालेभाजी वजन वाढू देत नाही. कफ प्रकृतीच्या लठ्ठ व्यक्तींना करडईची भाजी फार उपयुक्त आहे. या पालेभाज्यांच्या रसाने एक वेळ लघवी साफ होते. मात्र डोळय़ाच्या व त्वचेच्या विकारात करडई वापरू नये. करडईच्या बियांच्या तेलाची प्रसिद्धी सफोला या ब्रॅण्डनावामुळे झाली आहे. त्यात तुलनेने उष्मांक कमी असतात.

*कुरडू*
कुरडूच्या बिया मूतखडा विकारात उपयुक्त आहेत. कुरडूची पालेभाजीसुद्धा लघवी साफ करायला उपयोगी आहे. या पालेभाजीमुळे कफ कमी होतो. जुनाट विकारात कुरडूच्या पालेभाजीचा रस प्यावा. कोवळय़ा पानांचा रस किंवा जून पाने शिजवून त्याची भाजी खावी. दमेकरी जुनाट खोकला, वृद्ध माणसांचा कफविकार यात उपयुक्त आहे.

*कोथिंबीर*
कोथिंबीर जास्त करून वापर खाद्यपदार्थाची चव वाढवायला म्हणून प्रामुख्याने केला जातो. चटणी, कोशिंबीर, खिचडी, पुलाव, भात, विविध भाज्या, आमटी, सूप या सर्वाकरिता कोथिंबीर हवीच. बहुधा सर्व घरी, सदासर्वदा, सकाळ-संध्याकाळ पोळी, भाकरी, भात सोडून सगळय़ा पदार्थात कोथिंबीर वापरली जातेच. कोथिंबीर ताजीच हवी तरच त्याचा स्वाद पदार्थाची खुमारी वाढवतो. भाजीबाजारात काही वेळा कोथिंबीर खूप स्वस्त, तर उन्हाळय़ात सर्वसामान्य माणसाच्या आटोक्याच्या बाहेर असते. कोथिंबीर शीत गुणाची असूनही पाचक व रुची टिकवणारी आहे. जेवणात अधिक तिखट जळजळीत पदार्थ खाणाऱ्यांना उष्णता, पित्त याचा त्रास होऊ नये याची काळजी कोथिंबीर घेते. जेव्हा विविध स्ट्राँग औषधांची रिअ‍ॅक्शन येते, अंगावर पित्त, खाज किंवा गळवांचा त्रास होतो त्या वेळेस कोथिंबीर स्वच्छ धुऊन वाटावी, त्याचा रस पोटात घ्यावा, चोथा त्वचेला बाहेरून लावावा. बिब्बा, गंधकमुक्त औषधे, स्ट्राँग गुग्गुळ कल्प यांच्या वापरामुळे काही उपद्रव उद्भवल्यास कोथिंबिरीचा सहारा घ्यावा. रक्तशुद्धी, रक्तातील उष्णता कमी करणे, तापातील शोष हा उपद्रव कमी करायला ताज्या कोथिंबिरीच्या रसाचा वापर करावा. पथ्यकर भाज्यांत कोथिंबिर अग्रस्थानी आहे.

*घोळ*
घोळाची भाजी बुळबुळीत असली तरी औषधी गुणाची आहे. त्यात एक क्षार आहे. चवीने ओशट असलेली घोळाची भाजी थंड गुणाची असून अन्नपचनास मदत करते, यकृताचे कार्य सुधारते. रक्ती, मूळव्याध, दातातून रक्त येणे, सूज, अंगाचा दाह, मूत्रपिंड व बस्तीच्या विकारात उपयुक्त आहे. विसर्प किंवा धावरे, नागीण विकारात पाने वाटून त्यांचा लेप लावावा.

*चाकवत*
चाकवत ही पालेभाजी देशभर सर्वत्र सदासर्वदा मिळते. पालेभाज्यांत आयुर्वेद संहिताकार जिवंती श्रेष्ठ मानतात; पण ही वनस्पती संदिग्ध व वादग्रस्त आहे. व्यवहार पाहता चाकवताला श्रेष्ठत्व द्यावे. ज्वर, अग्निमांद्य किंवा दीर्घकाळच्या तापामुळे तोंडाला चव नसणे, कावीळ, छातीत जळजळ अशा नाना तक्रारींत ही भाजी वापरावी. शक्यतो किमान मसालेदार पदार्थाबरोबर ही पातळ पालेभाजी तयार करावी. व्यक्तिनुरूप व प्रकृतीप्रमाणे लसूण, आले, जिरे, धने, हिंग, ताक, सैंधव, मिरी, तूप, खडीसाखर, गूळ हे पदार्थ अनुपान म्हणून वापरावे. आंबट नसलेल्या ताकातील चाकवताची पालेभाजी हा उत्तम पदार्थ होय. शक्यतो पालेभाज्यांचे ज्यूस घेऊ नयेत.

*चुका*
बाराही महिने मिळणारी चुक्याची भाजी जास्त करून श्राद्धाकरिता अळूच्या भाजीबरोबरच वापरली जाते. नावाप्रमाणे चुक्याची चव आंबट आहे. पाने छोटी व त्याचे देठ पातळ भाजीकरिता वापरतात. चुका उष्ण, पाचक व वातानुलोमन करणारा आहे. त्याचबरोबर त्याच्या संग्राहक गुणामुळे चुक्रसिद्ध तेलाची पट्टी योनीभ्रंश, अंग बाहेर येणे याकरिता वापरली जाते. पचायला कठीण असणाऱ्या पदार्थाबरोबर चुक्याची पाने वापरावी.

*तांदुळजा*
तांदुळजा लाल, हिरवा कुठेही केव्हाही सहज येतो. ज्यांना शरीरात सी जीवनसत्त्व हवे आहे त्यांनी तांदुळजाची भाजी खावी. ही भाजी मधुर रसाच्या गुणांनी समृद्ध व शीतवीर्य आहे. उष्णतेच्या तापात विशेषत: गोवर, कांजिण्या व तीव्र तापात फार उपयुक्त आहे. विषविकार, नेत्रविकार, पित्तविकार, मूळव्याध, यकृत व पांथरी वाढणे या विकारांत पथ्यकर म्हणून जरूर वापरावी. उपदंश, महारोग, त्वचेचे समस्त विकार यामध्ये दाह, उष्णता कमी करावयास तांदुळजा फार उपयुक्त आहे. नाजूक प्रकृतीच्या व्यक्तीकरिता, बाळंतीण, गरोदर स्त्रिया यांच्यासाठी तांदुळजा वरदान आहे. डोळय़ाच्या विकारात आग होणे, कंड सुटणे, पाणी येणे, डोळे चिकटणे या तक्रारींत तांदुळजाची भाजी खावी. डोळे तेजस्वी होतात. जुनाट मलावरोध विकारात आतडय़ांना चिकटून राहिलेला मळ सुटा व्हायला तांदुळजाची भाजी उपयुक्त आहे. तांदुळजाची पातळ भाजी वृद्ध माणसांच्या आरोग्याकरिता जास्त उपयुक्त आहे. मोठय़ा आतडय़ास जास्त उपयुक्त घटक मिळतात. स्त्रियांच्या धुपणी विकारात तांदुळजाचा रस व तांदुळजाचे धुवण व मध असे मिश्रण फार त्वरित गुण देते. अनेक प्रकारचे विषविकार, चुकीच्या औषधांनी शरीराची आग होत असल्यास तांदुळजाचा रस प्यावा. लघवी स्वच्छ होऊन शरीर निदरेष होते. उंदीर, विंचू, पारा व इतर धातूंच्या विषारात याचा रस प्यावा. शरीराला आवश्यक सर्व घटक तांदुळजा भाजीत आहेत.
*पालक*
पालक ही अतिशय आरोग्यदायी पालेभाजी आहे. कोवळा पालक औषधी गुणांचा आहे. पालक शिजवताना पाणी थोडेच घ्यावे. पालक भाजीत लोह व काही प्रमाणात नैसर्गिक ताम्र असल्याने पांडू विकारावर अत्यंत उपयुक्त आहे. त्याचबरोबर हाडे बळकट करणारे क्षार पालकभाजीत आहेत. त्याकरिता हाडे ठिसूळ झाली असल्यास पालकभाजी खावी. हाडे जुळून यावी, लवकर ताकद यावी याकरिता शस्त्रकर्म झाल्यावर पालक भाजी किंवा त्याचा रस यांचा मुक्त वापर करावा. पालकाच्या हिरव्या पानात जीवनशक्ती आहे. कृश मुलांना अवश्य द्यावी. दुधाचा पर्याय म्हणून पालक भाजी वापरावी. त्यामुळे त्यांची प्रकृती सुधारून रक्त व अस्थी या दोनही धातूंची वाढ व्हायला मदत होते. पालक भाजीमुळे पोटात होणारा मुरडा थांबतो. वारंवार जुलाब होत असल्यास थांबतात. मात्र पालकभाजी स्वच्छ धुऊन घ्यावयास हवी. फुप्फुसातील दूषित वायू हटविण्यास उपयोगी आहे. काहींच्या मते पालकाच्या भाजीमुळे मूतखडा विरघळून जातो.

*पुनर्नवा*
पुनर्नवा, घेटोळी, वसू या नावाने ओळखली जाणारी भाजी दर पावसाळ्यात नव्याने येते. याची पालेभाजी कावीळ, उदर, जलोदर, पोट मोठे होणे, लिव्हर सिरॅसिस, पांथरी वाढणे या विकारात फार उपयुक्त आहे. पोटात पाणी झाले असताना अन्न खाल्ले की पोट फुगते. अशा वेळी पुनर्नव्याच्या पानांच्या भाजीत भात शिजवून द्यावा. पाणी होणे थांबते. पोटाची सूज कमी होते. पुनर्नव्याच्या पानांचा व मुळांचा रस काढून प्यावा. लघवी साफ होऊन शरीराची सूज ओसरते. पुनर्नव्याच्या पाल्याच्या रसाने रक्त वाढते.

*माठ*
माठ ही सदासर्वदा उपलब्ध असणारी पालेभाजी रानोमाळ आपोआपही उगवते व त्याची बागायती शेतीही केली जाते. रानोमाळचा माठ बहुधा काटेरी असतो. एरवी तांबडा व पांढऱ्या रंगाचा माठ मिळतो. माठाची पालेभाजी ही पथ्यकर, वजन वाढवायला व अम्लपित्त विकारांत विशेष उपयोगी आहे. मूतखडय़ाची तक्रार असणाऱ्यांनी माठाचा वापर टाळलेला बरा. तांबडा माठ हा गुणांनी श्रेष्ठ आहे. रक्तवर्धक म्हणून माठाची पालेभाजी जरूर वापरावी.

*मुळा*
कच्चा मुळा, पक्का मुळा, वाळलेला मुळा व डिंगऱ्या किंवा त्याच्या शेंगा असे मुळ्याचे चार प्रकार वापरात आहेत. कच्चा मुळा जास्त औषधी आहे. मलमूत्रप्रवृत्ती साफ करतो. दीपक, पाचक, त्रिदोषहारक आहे. मूतखडा विकारात मुळ्याच्या पाल्याचा रस दीर्घकाळ घ्यावा. मूतखडा विरघळतो किंवा त्याचे बारीक बारीक कण होतात. पांथरी वाढली असता कोवळा मुळा भरपूर खावा. मुळा तापामध्ये पथ्यकर आहे. त्यामुळे अग्निमांद्य दूर होऊन तापाचे कारण नाहीसे होते. कोवळ्या मुळ्यांच्या पानांचा जास्त औषधी उपयोग होतो. पक्व मुळा हा रूक्ष, उष्ण, पचायला जड व शारीरिक कष्ट करण्याकरिता उपयुक्त आहे. मूळव्याध, पोटातील कृमी, पक्वाशयात वायू धरणे, याकरिता पोसलेला मुळा मीठ लावून खावा. अजीर्ण, अपचन दूर होते. सुकलेला मुळा पचावयास हलका व कफ वात विकारात उपयुक्त आहे. वाळलेल्या मुळ्याचे चूर्ण विषावर उत्तम उतारा आहे. डिंगरी किंवा मुळ्याच्या शेंगा वातनाशक, गुणाने उष्ण पण उत्तम पाचक आहेत. मुळ्याचे बी लघवी व शौचास व्यवस्थित होण्याकरिता उपयुक्त आहे. मूतखडा मोडण्याकरिता मुळ्याच्या बियांचे चूर्ण खावे.
*डिंगऱ्या*
जून मुळ्याच्या शेंगा औषधी गुणाच्या आहेत. डिंगऱ्या मलावष्टंभक, तीक्ष्ण व गुरू गुणाच्या आहेत. बियांचा लेप गंडमाळा, दडस गावी, अर्बुद, शिबे या विकारात बाह्येपचारार्थ उपयुक्त आहे. मूतखडा, कष्टसाध्य गाठी, जुनाट सूज या विकारात डिंगऱ्यांची भाजीने फरक पडतो.
*मेथी*
मेथी हे मधुमेहींना वरदान आहेच. चवीच्या दृष्टीने पालेभाज्यांत मेथीचे महत्त्व फार मोठे आहे. मधुमेहाच्या प्राथमिक अवस्थेत मेथीची भाजी नियमित खाल्ली तर मेथीपूड मिसळून गव्हाची पोळी खाण्याची पाळी येत नाही. मेथीची पालेभाजी खाल्ल्यामुळे लघवीचा वर्ण सुधारतो. भूक सुधारते, पाचक स्राव वाढतात. बाह्येपचार म्हणून मेथी पालेभाजीचा लेप दुखणाऱ्या सांध्यावर करावा. दु:ख कमी होते. केस गळणे, कोंडा, केस निर्जीव होणे याकरिता मेथीच्या रसाने केस धुवावे.
*राजगिरा*
राजगिरा बियांचा वापर आहेच. राजगिरा पालेभाजी रक्तशुद्धीकरिता फार उपयुक्त आहे. गंडमाळा, क्षय, लघवीची जळजळ या विकारांत पालेभाजी किंवा त्या पानांचा वाटून लेप करावा. शरीरस्वास्थाकरिता लागणारी द्रव्ये राजगिरा पाने व बिया या दोन्हीही आहेत.
*शतावरी*
शतावरी पाने अगदी बारीक असतात. लहान मुलांच्या जुलाब, पित्त होणे, दातांचा त्रास या विकारांत रस द्यावा. पाने पौष्टिक आहेत. कंदातील स्तन्यजनन हे गुण पानात अल्प प्रमाणात आहेत. कुंडीत शतावरी शोभेकरिता लावतात. त्यातील पानांचा ताजा रस ताकद कमावण्याकरिता उपयुक्त आहे. गोवर, कांजिण्या, जीर्णज्वर, कडकी या विकारांत ही पालेभाजी पथ्यकर आहे.
*शेपू*
उग्र वासामुळे शेपूचा वापर कमी होतो. शेपूची पालेभाजी वात व कफविकारात फार चांगली. पाने स्वच्छ धुऊन घेतली की उग्र वास कमी होतो. अग्निमांद्य, पोटफुगी, गॅस, कुपचन या विकारांत लगेच गुण देणारी ही पालेभाजी आहे. सोबत जिरे, आले किंवा लसूण वापरावा. लहान मुलांच्या पोटदुखी, जंत, कृमी या तक्रारीवर एकवेळी दिलेली भाजी काम करते. ज्या स्त्रियांना मासिक स्राव व्यवस्थित येत नसल्यास त्यांनी काही दिवस शेपूची पालेभाजी खावी. विटाळ नियमित होतो. गळवे पिकण्याकरिता पानांचा लेप करावा. गंडमाळा विकारात पोटात घेण्याकरिता व बाहेरून पानांचा लेप अशा दोन्हीकरिता शेपूच्या पानांचा वापर करावा.
*हादगा*
हादग्याची फुले पांढरी किंवा जांभळ्या रंगाची असतात. चणापीठ पेरून हादग्याच्या फुलांची कोरडी भाजी फार चविष्ट होते. पूर्वी मिळणाऱ्या अनेक भाज्या अलीकडे दिसेनाशा झाल्या आहेत. हादग्याला आगस्ता असे संस्कृत नाव आहे. आयुर्वेदीय औषधीकरणात मनशीळ शुद्धीकरिता हादग्याच्या पानांच्या रसाचा वापर सांगितला आहे. ठेचाळलेल्या भागावर किंवा जखमेवर पाने ठेचून बांधावी. जखम भरून येत.
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*सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया|*
*सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भागभवेत्||*
*------------------------------Dr.Anurita Sakat
Sai Health Centre
Pune,
9881396304

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