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Congratulations To all of You Guys... I Proud to be an Indian...Jai Hind
23/08/2023

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Jai Hind

Jai Shri Krishna
23/08/2023

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17/03/2023

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Very Happy Makar Sankranti!!!www.bskworld.com
15/01/2023

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(श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय 10, श्लोक 07) - (Shri Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 07)श्लोक:-विभूति योग एतां विभूतिं योगं...
15/01/2023

(श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय 10, श्लोक 07) - (Shri Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 07)

श्लोक:-
विभूति योग एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः।
सोऽविकल्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ॥ BG 10: 07॥

एताम्-इन; विभूतिम्-वैभवों; योगम्-दिव्य शक्ति; च-भी; मम–मेरा; यः-जो कोई; वेत्ति–जानता है; तत्त्वतः-वास्तव में; सः-वे; अविकम्पेन निश्चित रूप से; योगेन-भक्ति से; युज्यते-एक हो जाता है; न कभी नहीं; अत्र-यहाँ; संशयः-शंका।

भावार्थ:-
जो मेरी महिमा और दिव्य शक्तियों को वास्तविक रूप से जान लेता है वह अविचल भक्तियोग के माध्यम से मुझमें एकीकृत हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है। (BG 10: 07)

Meaning In English:-
Those who know in truth My glories and divine powers become united with Me through unwavering Bhakti Yog. Of this there is no doubt. (BG 10: 07)

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(श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय 10, श्लोक 04-05) - (Shri Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 04-05)श्लोक:-बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोह: ...
13/01/2023

(श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय 10, श्लोक 04-05) - (Shri Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 04-05)

श्लोक:-
बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोह: क्षमा सत्यं दम: शम: |
सुखं दु:खं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥ BG 10: 04॥
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयश: |
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधा: ॥ BG 10: 05॥

Shloka in English:-
buddhir jñānam asammohaḥ kṣhamā satyaṁ damaḥ śhamaḥ
sukhaṁ duḥkhaṁ bhavo ’bhāvo bhayaṁ chābhayameva cha ॥ BG 10: 04॥
ahinsā samatā tuṣhṭis tapo dānaṁ yaśho ’yaśhaḥ
bhavanti bhāvā bhūtānāṁ matta eva pṛithag-vidhāḥ ॥ BG 10: 05॥

बुद्धिः-बुद्धि; ज्ञानम्-ज्ञान; असम्मोहः-विचारों की स्पष्टता; क्षमा क्षमाः सत्यम्-सत्यता; दमः-इन्द्रियों पर संयम; शमः-मन का निग्रह; सुखम्-आनन्द; दु:खम्-दुख; भवः-जन्म; अभावः-मृत्यु; भयम्-भय; च-और; अभयम्-निर्भीकता; एव-भी; च-और; अहिंसा-अहिंसा; समता-समभाव; तुष्टि:-सन्तोष; तपः-तपस्या; दानम्-दान; यश:-कीर्ति; अयश:-अपकीर्ति; भवन्ति होना; भावाः-गुण; भूतानाम्-जीवों की; मत्तः-मुझसे; एव-निश्चय ही; पृथक्-विधा:-भिन्न-भिन्न गुण।

भावार्थ:-
जीवों में विविध प्रकार के गुण जैसे-बुद्धि, ज्ञान, विचारों की स्पष्टता, क्षमा, सत्यता, इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण, सुख और दुख, जन्म-मृत्यु, भय, निडरता, अहिंसा, समता, तुष्टि, तप, दान, यश और अपयश केवल मुझसे ही उत्पन्न होते हैं।
(BG 10: 04-05)

Meaning In English:-
From Me alone arise the varieties of qualities in humans, such as intellect, knowledge, clarity of thought, forgiveness, truthfulness, control over the senses and mind, joy and sorrow, birth and death, fear and courage, non-violence, equanimity, contentment, austerity, charity, fame, and infamy. (BG 10: 04-05)

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(श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय 9, श्लोक 24) - (Shri Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 24)श्लोक:-अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प...
27/12/2022

(श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय 9, श्लोक 24) - (Shri Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 24)

श्लोक:-
अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च ।
न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥ BG 9: 24॥

अहम्-मैं; हि-वास्तव में; सर्व-सब का; यज्ञानाम्-यज्ञ; भोक्ता–भोग करने वाला; च-और; प्रभुः-भगवान; एव-भी; च-तथा; न-नहीं; तु-लेकिन; माम्-मुझको; अभिजानन्ति–अनुभव करना; तत्त्वेन-दिव्य प्रकृति; अतः इसलिए; च्यवन्ति-पुनर्जन्म लेना (संसार में भटकना); तेवे।

भावार्थ:-
मैं ही समस्त यज्ञों का एक मात्र भोक्ता और स्वामी हूँ लेकिन जो मेरी दिव्य प्रकृति को पहचान नहीं पाते, वे पुनर्जन्म लेते हैं। (BG 9: 24)

Meaning In English:-
I am the enjoyer and the only Lord of all sacrifices. But those who fail to realize My divine nature must be reborn. (BG 9:24)

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(श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय 9, श्लोक 15) - (Shri Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 15) श्लोक:- ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो...
19/12/2022

(श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय 9, श्लोक 15) - (Shri Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 15)

श्लोक:-
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते ।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥ BG 9: 15॥

ज्ञान-यज्ञेन–ज्ञान पोषित करने के लिए यज्ञ करना; च-और; अपि-भी; अन्ये-अन्य लोग; यजन्तः-यज्ञ करते हुए; माम्-मुझको; उपासते-पूजते हैं; एकत्वेन एकान्त भाव से; पृथक्त्वेन–अलग से; बहुधा अनेक प्रकार से; विश्वतः-मुखम् ब्रह्माण्डीय रूप में।

भावार्थ:-
अन्य लोग जो ज्ञान के संवर्धन हेतु यज्ञ करने में लगे रहते हैं, वे विविध प्रकार से मेरी आराधना में लीन रहते हैं। कुछ लोग मुझे अभिन्न रूप में देखते हैं जोकि उनसे भिन्न नहीं हैं जबकि अन्य मुझे अपने से भिन्न रूप में देखते हैं। कुछ लोग मेरे ब्रह्माण्डीय रूप की अनन्त अभिव्यक्तियों में मेरी पूजा करते हैं।
(BG 9: 15)

Meaning In English:-
Others, engaging in the yajña of cultivating knowledge, worship Me by many methods. Some see Me as undifferentiated oneness that is non-different from them, while others see Me as separate from them. Still others worship Me in the infinite manifestations of My cosmic form. (BG 9: 15)

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(श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय 9, श्लोक 12) - (Shri Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 12) श्लोक:- मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना ...
15/12/2022

(श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय 9, श्लोक 12) - (Shri Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 12)

श्लोक:-
मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ॥ BG 9: 12॥

मोघ-आशा:-निरर्थक आशा; मोघ-कर्माण:-निष्फल कर्म; मोघ-ज्ञानाः-व्यर्थ ज्ञान; विचेतसः-मोहग्रस्त; राक्षसीम्-आसुरी; आसुरीम् नास्तिक; च-तथा; निश्चय ही; प्रकृतिम्-प्राकृत शक्ति को; मोहिनीम्-मोहने वाली; श्रिताः-शरण ग्रहण करना।

भावार्थ:-
प्राकृत शक्ति से मोहित होने के कारण ऐसे लोग आसुरी और नास्तिक विचारों को ग्रहण करते हैं। इस मोहित अवस्था में उनके आत्मकल्याण की आशा निरर्थक हो जाती है और उनके कर्मफल व्यर्थ हो जाते हैं और उनके ज्ञान की प्रकृति निष्फल हो जाती है। (BG 9: 12)

Meaning In English:-
Bewildered by the material energy, such persons embrace demoniac and atheistic views. In that deluded state, their hopes for welfare are in vain, their fruitive actions are wasted, and their culture of knowledge is baffled. (BG 9: 12)

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