09/07/2025
वातव्याधि
१ आक्षेप युक्त वातव्याधियां
२ वेदना प्रधान वातव्याधियां
३ अंगघातक वातव्याधियां
आक्षेप युक्त वातव्याधियां में अपतन्त्रक,अपतानक,
दण्डापतानक, बहिरायाम,अन्तरायाम,
खल्ली, कुचलाविष जन्य,जलसंत्रास
चिकित्सा सिद्धांत
१ लक्षणमूलक चिकित्सा (तात्कालिक) १ मूर्च्छा नाशक वेग के समय,मुख पर शीतल जल के छींटें,पैरों के तलुओं में कायफल या शुण्ठीचूर्ण की मालिश , नस्य में कायफल चूर्ण का प्रयोग या नौसादर और चूनासम भाग लेकर उसमें कपूर मिलाकर सुंघाने,प्याज के रस की दो तीन बूंदें नाक में डालना
२वातनाशक
मूर्च्छा के टूटते ही शक्ति शाली वातनाशक औषधियों मकरध्वज,बृहद्वातचिन्तामणि,वृहदब्राह्मी वटी, कस्तूरी भैरवरस,हृदयेश्वर रस, उन्माद गजकेसरी रस,स्मृतिसागर रस, मात्रा पूर्वक प्रयोग
(ख)हेतुमूलक चिकित्सा
आक्षेप युक्त वातव्याधियां दीर्घकालिक होती हैं,जिस समय आक्षेप नहीं आते उस समय भी शरीर में इस रोग का अनुबन्ध बना रहता है।दौरों के अवकाश काल में दौर्बल्यता, अग्निमांद्य,अरुचि,भय, स्मृति दौर्बल्य आदि लक्षण मिलते हैं।इस हेतुमूलक चिकित्सा को दीर्घकालिक चिकित्सा भी कहा जा सकता है।दो प्रकार से
१ मानसिक
मणि धारण,जप होम, उपहार,बलि,सान्तवना,हर्षण,तर्जन,आदि के साथ रोगी का मानसिक बल बढाना चाहिए।
२ शारीरिक
स्नेहन,स्वेदन, स्नेह युक्त विशोधन,मृदुविरेचन,अग्निसंधुक्षण,स्निग्धाम्लमधुर आहार, इन क्रमों के बाद औषध प्रयोग
प्रातः सायम्
मल्ल सिंदूर १००-१०० मि ग्राम,दूध की मलाई से
ब्राह्मी वटी १-१
दशमूल क्वाथ १० ग्राम
रात को
एरण्ड बीज दस नग दूध से
या
१प्रातः सायम्
योगेन्द्र रस १००-१०० मि ग्राम
प्रवाल पिष्टी २५०-२५० मि ग्रा
मांस्यादि क्वाथ १०-१० ग्राम
२भोजनोपरान्त
अजमोदादि चूर्ण ३-३ ग्राम
अश्वगंधारिष्ट २५-२५ मिली
३ रात को
दशमूलाद्यघृत १० ग्राम दूध से
२ हेतुमूलक चिकित्सा (दीर्घकालिक)
कुछ विशेष योग
रस सिन्दूर २००मिग्रा की मात्रा को दिन मे दो बार शंखपुष्पी, ब्राह्मी,कूठ और इलायची के क्वाथ से
मांस्यादि क्वाथ
जटामांसी १०ग्राम अश्वगंधा ३ ग्राम
खुरासानी अजवायन २ ग्राम
इनका क्वाथ बनाकर दो बार
वेदना प्रधान वातव्याधियां
नाडी सूत्रो की क्षीणता,शोथ,व मांसपेशियों,कण्डरा आदि की विपरीत गति अथवा तनाव से वेदना होती है। वेदना प्रधान वातव्याधियां हैं
ग्रधृसी
क्रोष्टुकशीर्ष
सन्धावात
तूनी प्रतितूनी
आध्मान
प्रत्याध्मान
वातकण्टक
चिकित्सा सिद्धांत
1 वेदना निवारण
2 मूलहेतु निवारण
वेदना निवारण
इन व्याधियों में असहृय वेदना होती है, अतः उसके लिए वेदनाशामक औषधियों का आभ्यन्तरव बाह्य प्रयोग करना आवश्यक है।
वृहद्वात चिन्तामणि
योगेन्द्र रस ,समीरपन्नग रस, कृष्ण चतुर्मुख रस,जैसी औषधियों के साथ शुण्ठि,कुचला, अश्वगंधा,सुरंजान,गुग्गुल और रसोन प्रधान औषधियां वेदनाशामक है।बाह्य उपचार में अभ्यंग,स्वेदन,लेप,परिषेक,उपनाह,प्रदेह की भूमिका महत्वपूर्ण है।
2मूल हेतु निवारण
धातुक्षय या आवरण से कुपित वात के निर्हरण का प्रयत्न करना चाहिए।
अंगघातक वातव्याधियां
संज्ञा व चेष्टा का वहन करनेवाली नाड़ियों की अक्षमता होने पर प्रभावित अंग काम नहीं करता,यह स्थिति अंगघात है।शरीर में होने वाले अंगघात को स्वरुप के अनुसार निम्न प्रकार विभाजित किया जा सकता है।
1पक्षाघात - लम्बाई में शरीर को दो भागों में विभक्त किया जाता है,वामपक्ष और दक्षिण पक्ष,किसी भी एक पक्ष की चेष्टाओं का नाश होने पर पक्षाघात।
2एकांगघात -किसी एक अंग की चेष्टाओं के नाश को एकांगघात जैसे अर्दित,खंजता,विश्वाची,अवबाहुक,वाणी विकृति,जिव्हास्तम्भ,हनुस्तम्भ,मन्यास्तम्भ आदि।
3अधरांगघात -सुषुम्ना से निकलने वाली नाड़ियों जो कटिप्रदेश से निकलती हैं,उन पर आघित,सम्पीडन, संक्रमण या अन्य किसी भी कारण सेवीकृति होने पर नीचे के अंगों का घात ।
4सर्वांगाघात - मस्तिष्क में या सम्पूर्ण शरीर में जाने वाली नाड़ियों की विकृति से सर्वांगघात होता है।
ये अंगघात वातव्याधियां प्रायः कृच्छ्रसाध्य होती है।
स्वेदन, स्नेह युक्त विरेचन,वृहंण व वातशामक औषधियों का प्रयोग,वातघ्न तैलों से अभ्यंग।बस्ति प्रयोग।
एकांगवीर रस, अश्वगंधारिष्ट, दशमूलारिष्ट,माषबलादिक्वाथ, महायोगराज गुग्गुल, सिंहनाद गुग्गुल,एरण्डपाक,भल्लातकावलेह,वृहद्वातचिन्तामणि, वृहद कस्तूरी भैरवरस,कुमारकल्याण रस, ब्राह्म रसायन,रास्नासप्तक क्वाथ,वातकुलान्तक रस ,सारस्वतारिष्ट आदि का प्रयोग लाभकारी है।