26/08/2025
दामाद और ससुर – चरण स्पर्श वर्जित 🧵
शिवपुराण की कथा याद कीजिए
जब दक्ष प्रजापति ने महादेव का अपमान किया, और बाद में यज्ञ में शिवजी ने उनका शीश काट दिया।
👉 तब से लोक परंपरा में ये नियम बना कि दामाद और ससुर आपस में पैर नहीं छूते।
🔸 क्यों?
ये रिश्ता समानता और सम्मान पर आधारित है।
अगर चरण-स्पर्श किया जाए तो यह असंतुलन लाता है कभी अहं, कभी अपमान।
इस रिश्ते में सम्मान वाणी और व्यवहार से होता है, चरण-स्पर्श से नहीं।
भांजा और मामा – चरण स्पर्श वर्जित 🧵
भागवत पुराण में कथा आती है
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का उद्धार किया।
👉 तभी से मान्यता है कि भांजा अपने मामा के पैर नहीं छूता।
🔸 क्यों?
मामा-भांजा का रिश्ता स्नेह और सखा-भाव का है।
यहाँ आशीर्वाद की जगह मार्गदर्शन और ममता होती है।
आशीर्वाद रिश्ते को ऊपर-नीचे करता है, जबकि यह रिश्ता बराबरी का है।
कुँवारी कन्या चरण स्पर्श ना कराए 🧵
सनातन मान्यता कहती है—कन्या देवी का रूप है।
👉 इसलिए किसी भी कुँवारी कन्या को किसी के पैर नहीं छुआए जाते।
🔸 क्यों?
क्योंकि कन्या आशीर्वाद देने वाली है, लेने वाली नहीं।
इसी कारण कन्या-पूजन (नवरात्रि आदि में) होता है, जहाँ हम उनके चरण स्पर्श/पाद-प्रक्षालन करते हैं।
यहाँ कन्या को माता का स्वरूप मानकर हम उनसे आशीर्वाद लेते हैं।
✅ रोजमर्रा में कन्या चरण-स्पर्श नहीं करती।
✅ लेकिन पूजन में हम उसके चरण छूते हैं। यही शास्त्र की मर्यादा है।
सोए हुए या लेटे हुए व्यक्ति चरण स्पर्श वर्जित 🧵
धर्मशास्त्रों में कहा गया है
मृत व्यक्ति के केवल पैर ही छुए जाते हैं।
👉 सोए या लेटे हुए व्यक्ति को मृतक की अवस्था से जोड़ा जाता है।
इसलिए ऐसे समय में चरण-स्पर्श करना अशुभ और अनुचित माना गया है।
🔸 सही तरीका:
आशीर्वाद तभी लें जब बुजुर्ग सजग, बैठे या खड़े हों और संकल्पपूर्वक आशीर्वाद देने की स्थिति में हों।
मंदिर में किसी के पैर – चरण स्पर्श वर्जित 🧵
मंदिर = ईश्वर का स्थान।
👉 वहाँ यदि आप किसी मनुष्य के चरण छूते हैं तो ये माना जाता है कि आपने ईश्वर की महिमा को छोटे स्तर पर ला दिया।
🔸 क्यों?
मंदिर में ध्यान केवल भगवान पर होना चाहिए।
मंदिर में अगर प्रणाम करना है तो केवल ईश्वर को।
बाहर आकर गुरु, माता-पिता, बुजुर्गों का चरण-स्पर्श करें।
असली गहराई – चरण स्पर्श क्या है? 🧵
सनातन धर्म कहता है
“चरण स्पर्श सिर्फ़ शिष्टाचार नहीं, बल्कि ऊर्जा का आदान-प्रदान है।”
👉 जब आप किसी योग्य, सजग और आशीर्वाद देने वाले व्यक्ति के चरण स्पर्श करते हैं—तो उनके भीतर की सकारात्मक ऊर्जा, अनुभव और कृपा आपके जीवन में उतरती है।
लेकिन जब गलत जगह किया जाए, तो वह ऊर्जा नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकती है।
इसीलिए ये पाँच मर्यादाएँ बनाई गईं।
दामाद–ससुर → बराबरी और सम्मान का रिश्ता है।
भांजा–मामा → स्नेह का रिश्ता है, आशीर्वाद से ऊपर।
कुँवारी कन्या → देवी का रूप है; उसे चरण छुआना नहीं, बल्कि उसका चरण हम छूते हैं (पूजन में)।
सोए/लेटे व्यक्ति → अशुभ है; मृतक की स्थिति से जुड़ा।
मंदिर में मनुष्य → ईश्वर से ध्यान हटाना अपमान है।
आध्यात्मिक सीख
सनातन धर्म का हर नियम गहरे अर्थ से जुड़ा है।
ये सिर्फ़ अंधविश्वास या “करना है तो करो” नहीं है।
हर नियम हमें सिखाता है
👉 कब नम्रता दिखानी है, कब समानता रखनी है, कब मर्यादा निभानी है।
✨ अब सवाल आपसे:
आपके घर या समाज में इनमें से कौन-सी परंपरा सबसे सख़्ती से निभाई जाती है?
और क्या आपको लगता है कि ये नियम आज भी उतने ही ज़रूरी हैं जितने पहले थे?
👇 अपनी राय कमेंट में ज़रूर लिखिए।
🚩 सनातन की ये अमूल्य बातें हर किसी तक पहुँचानी हैं।