02/09/2025
भोजन: आदत या ज़रूरत?
हम सब जानते हैं – बिना खाए इंसान जी नहीं सकता। पर आज का बड़ा सवाल है: क्या खाना सिर्फ़ जीने की मजबूरी है या फिर यह एक गहरी आदत बन चुकी है?
हमारे पूर्वजों की कहानी
हज़ारों साल पहले इंसान को रोज़ भोजन की गारंटी नहीं होती थी। कभी शिकार मिला, कभी नहीं। इसलिए दिमाग़ ने सीख लिया –
“जब भी खाना मिले, पेट भरकर खाओ।”
यही वजह है कि हमें मीठा, तला-भुना और स्वादिष्ट खाना हमेशा अच्छा लगता है।
विज्ञान क्या कहता है?
आजकल भूख दो तरह की होती है:
सच्ची भूख (ज़रूरत): जब शरीर को ऊर्जा और पोषण चाहिए।
आदत वाली भूख: टीवी देखते हुए, मोबाइल चलाते हुए, तनाव में या खाली बैठकर – हमें खाने का मन होता है, भले ही पेट भरा हो।
रिसर्च बताती है कि पैकेट वाले अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड (चिप्स, कोल्ड ड्रिंक, बिस्किट) हमें ज़्यादा खाने पर मजबूर कर देते हैं। इनसे पेट जल्दी भरता नहीं और वज़न बढ़ता है।
शरीर को सच में चाहिए क्या?
हर खाने में प्रोटीन (दाल, पनीर, दही, अंडा, सोया)
फाइबर (सब्ज़ियाँ, फल, सलाद, साबुत अनाज)
सही फैट (मेवे, बीज, सरसों/ऑलिव ऑयल)
और खाना ज़्यादातर दिन में ही – रात देर से खाने से शुगर और वज़न दोनों बिगड़ते हैं।
आदतें कैसे बदलें?
नज़र के सामने फल रखिए, पैकेट वाले स्नैक्स छुपाइए।
छोटी प्लेट लीजिए, खाना धीरे-धीरे खाइए।
नींद पूरी कीजिए – नींद कम होगी तो भूख ज़्यादा लगेगी।
हर हफ़्ते एक आदत बदलें – जैसे रात 9 बजे चिप्स की जगह फल या मूँगफली।
याद रखने लायक बातें
1. खाना ज़रूरी है, पर कैसे और कब खाते हैं यह आदत है।
2. मीठा-नमकीन पैकेट फूड हमें धोखा देता है।
3. सच्चा भोजन वही है जिसमें प्रोटीन और फाइबर भरपूर हो।
4. नींद और तनाव का सीधा असर भूख पर पड़ता है।
5. छोटे-छोटे बदलाव बड़ी सेहत लाते हैं।
भोजन जीवन की ज़रूरत है, लेकिन हमारी आदतें तय करती हैं कि यह हमें स्वस्थ रखेगा या बीमार करेगा। सही चुनाव और छोटी-छोटी सुधार से ही हम भोजन को मज़बूरी से स्वास्थ्य का साधन बना सकते हैं।
Dr S K Mishra MBBS MD Family physician Purnea