01/03/2025
महाकुंभ 2025 – एक दिव्य संगम, जो यादों में सदा बसेगा
महाकुंभ 2025 बीत चुका है, लेकिन उसकी गूंज आज भी श्रद्धालुओं के हृदय में जीवंत है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि आस्था, संस्कृति, अध्यात्म और सामाजिक समरसता का अनुपम संगम था। लाखों श्रद्धालु, संत, नागा साधु, तपस्वी और आम जन इस पावन पर्व में शामिल हुए और मां गंगा की पवित्र धारा में आस्था की डुबकी लगाकर अपने जीवन को धन्य किया।
जब मेले की रौनक अपने चरम पर थी...
प्रयागराज का संगम क्षेत्र रोशनी और श्रद्धा के रंगों से भर उठा था। दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने इस महाकुंभ को अपनी उपस्थिति से धन्य किया। सुबह होते ही घाटों पर स्नान के लिए उमड़ती भीड़, मंत्रोच्चारण, घंटियों की ध्वनि और शंखनाद से पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया था।
यहां संतों और महात्माओं के प्रवचन होते रहे, विभिन्न अखाड़ों के जुलूस निकले, भक्तों ने साधु-संतों से आशीर्वाद लिया, और अनेक भक्तों ने संगम में पुण्य स्नान कर अपने जीवन को सार्थक किया। कुंभ के दौरान भजन-कीर्तन, सत्संग, यज्ञ और प्रवचन हर दिशा में गूंजते रहे।
कल्पवास – जब संगम किनारे बसा एक अस्थायी संसार
कल्पवासियों के लिए यह समय अद्भुत था। एक महीने तक उन्होंने संयम, ध्यान, जप और साधना में अपना जीवन व्यतीत किया। तंबुओं के अस्थायी नगर में बसने वाले इन श्रद्धालुओं ने गंगा के किनारे तपस्या की, संयमित जीवन जिया और सनातन परंपरा को जीवंत रखा।
गंगा के किनारे हर ओर श्रद्धा और भक्ति का नजारा था—कहीं संत प्रवचन कर रहे थे, तो कहीं गंगा आरती की दिव्य झलक देखने को मिल रही थी। साधुओं के शिविरों में ज्ञान, योग और साधना का आदान-प्रदान हो रहा था।
जब कुंभ अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचा...
एक महीने की इस आध्यात्मिक यात्रा के बाद, धीरे-धीरे तंबू हटने लगे, अखाड़ों के जुलूस विदा होने लगे, और श्रद्धालु अपने-अपने घरों की ओर लौटने लगे। संगम किनारे की वह चहल-पहल, वह उल्लास अब शांति में बदलने लगी।
गंगा के तट, जहां कल्पवासियों ने दिन-रात साधना की थी, अब धीरे-धीरे वीरान होने लगे। लेकिन मां गंगा की धाराएं अभी भी बह रही थीं, जैसे वह भी अपने भक्तों की प्रतीक्षा में हों—अगले महाकुंभ के लिए, जब फिर से यही दृश्य जीवंत होगा।
एक यादगार अनुभव, जो कभी मिट नहीं सकता
महाकुंभ 2025 अब इतिहास बन चुका है, लेकिन इसकी यादें अमर रहेंगी। संगम में डूबकी लगाने वाले श्रद्धालु, साधना करने वाले संत, प्रवचन सुनने वाले भक्त—हर कोई इस दिव्य आयोजन का हिस्सा बनकर स्वयं को धन्य मानता है।
यह कुंभ केवल एक पर्व नहीं था, यह सनातन परंपरा का उत्सव था, यह जीवन की गहराइयों में उतरने का अवसर था, यह वह संगम था जहां भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया एकाकार हुई थी।
अब, यह प्रतीक्षा का समय है—अगले महाकुंभ के आने की, जब फिर से यह धरती आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाएगी, जब फिर से आस्था की यह धारा बहेगी, और जब फिर से मां गंगा अपने भक्तों का स्वागत करेंगी।
जय गंगा मइया! जय महाकुंभ!