व्यायाम के जरिए मांसपेशियों को सक्रिय बनाकर किए जाने वाले इलाज की विधा भौतिक चिकित्सा या फिजियोथेरेपी या 'फिजिकल थेरेपी' (Physical therapy कहलाती है। चूंकि इसमें दवाइयां नहीं लेना पडतीं इसलिए इनके दुष्प्रभावों का प्रश्न ही नहीं उठता। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि फिजियोथेरेपी तब ही अपना असर दिखाती है जब इसे समस्या दूर होते तक नियमित किया जाए।
अगर शरीर के किसी हिस्से में दर्द है और आप दवाइयां नहीं
लेना चाहते तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। फिजियोथेरेपी की सहायता लेने पर आप दवा का सेवन किए बिना अपनी तकलीफ दूर कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह अत्यंत आवश्यक है।
फिजिकल थेरपी या फिसिओथेरपी को पी. टी. के नाम से भी जाना जाता हैं। फिसिओथेरपी का मतलब जीवन को पहचानना और उसकी गुणवत्ता को बढना है, साथ ही साथ लोगों को उनकी शरीरिक कमियों से बाहर निकालना, निवारण, इलाज बताना और पूर्ण रूप से आत्म-निर्भर बनाना हैं। यह शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक क्षेत्र मे अच्छी तरह से काम करने मे मदद देता हैं। फिसिओथेरपी मे डाक्टर, शारीरिक चिकित्सक, मरीज, पारिवारिक लोग और दूसरे चिकित्सको का बहुत योगदान होता हैं।
शारीरिक चिकित्सा के ज्ञान का क्षेत्र बहुत विस्तृत होने के कारण कुछ शारीरिक चिकित्सक विशिष्ट रोग-विषयक क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल करते हैं। हालांकि शारीरिक चिकित्सक कई प्रकार के हो सकते हैं, किन्तु अमेरिकन बोर्ड ऑफ़ फिजिकल थेरेपी स्पेसिएलिटीज की सूची के अनुसार 7 विशेषज्ञता क्षेत्र हैं, जिनमे खेल शारीरिक चिकित्सा और विद्युत फिजियोलॉजी (ELECTROPHYSIOLOGY) सम्मिलित हैं। शारीरिक चिकित्सा में विश्व स्तर पर 6 सर्वाधिक प्रचलित विशेषज्ञता क्षेत्र हैं;
ह्रदय फुस्फुसीय (कार्डियोपल्मोनरी)
ह्रदय संवहनी (कार्डियोवैस्कुलर) और पल्मोनरी स्वास्थ्य लाभ शारीरिक चिकित्सक, कार्डियोपल्मोनरी विकार से ग्रस्त या ह्रदय अथवा पल्मोनरी (pulmonary) शल्य क्रिया करवा चुके अनेकों व्यक्तियों का उपचार करते हैं। इस विशेषता का प्राथमिक लक्ष्य सहनशक्ति और क्रियात्मक स्वतंत्रता को बढाना है। इस क्षेत्र में कृमिकोषीय तन्तुशोथ (सिस्टिक फाइब्रोसिस) के दौरान फेफड़े के स्त्रावों को हाथ द्वारा ही साफ़ किया जाता है। हृदयाघात, पोस्ट कोरोनरी बाइपास सर्जरी (post coronary bypass surgery), क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज़ेस (chronic obstructive pulmonary diseases) और पल्मोनरी फाइब्रोसिस (pulmonary fibrosis) उपचारों में कार्डियोवैस्कुलर (cardiovascular) और पल्मोनरी विशेषज्ञ शारीरिक चिकित्सकों से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
जराचिकित्सा
वृद्धावस्था सम्बन्धित शारीरिक चिकित्सा उन लोगों से सम्बन्धित अनेक समस्याओं को समाहित करती है जो साधारणतया वयस्क अवस्था से वृद्धावस्था की और बढ रहे हैं किन्तु यह प्रमुख रूप से अधिक आयु के वयस्कों पर ही केन्द्रित है। आयु बढने के साथ ही कई लोग कई प्रकार की समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं जिसके अन्तर्गत निम्न समस्यायें सम्मिलित हैं: गठिया, ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis), कैंसर, कम्पवात (अल्जाइमर), कूल्हा एवं संधि प्रतिस्थापन, संतुलन विकार, असंयम आदि, किन्तु समस्याओं की यह श्रंखला यही तक सीमित नहीं है। जरा चिकित्सा विशेषज्ञ अधिक आयु के वयस्कों के उपचार में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं।
स्नायु संबन्धी
स्नायु संबन्धी शारीरिक चिकित्सा वह क्षेत्र है जो स्नायु सम्बन्धित विकारों या रोगों से ग्रसित व्यक्तियों पर कार्य करने हेतु केन्द्रित है। इसके अन्तर्गत अल्जाइमर रोग (Alzheimer's disease), चार्कोट-मारी-टूथ रोग (Charcot-Marie-Tooth disease) (CMT), ऐएलएस, मस्तिष्क अभिघात, सेरेब्रल पाल्सी (cerebral palsy), मल्टिपल स्कैलेरौसिस (multiple sclerosis), पार्किन्सन रोग (Parkinson's disease), रीढ की हड्डी सम्बन्धित चोट और आघात सम्मिलित हैं। साधारण दुर्बलताएं जो स्नायु संबन्धी अवस्थाओं से जुड़ी हैं जिसमे दृष्टि, संतुलन, अंग संचालन, रोजमर्रा की क्रियाएँ, गतिशीलता, मांसपेशियों की शक्ति और क्रियात्मक स्वतंत्रता के ह्रास से सम्बन्धित दुर्बलताएं सम्मिलित हैं।
अस्थि-रोग
अस्थि-रोग शारीरिक चिकित्सक गतिज-कंकालीय प्रणाली से सम्बन्धित विकारों का निदान, नियंत्रण एवं उपचार करता है, इसमें अस्थि-शल्य-चिकित्सा के बाद का पुनर्सुधार भी सम्मिलित है। इस विशेषज्ञता के चिकित्सक अधिकतर बाह्य-रोगी क्लिनिक की शैली में कार्य करते हैं। अस्थि-रोग शारीरिक चिकित्सकों को शल्य-क्रिया पश्चात् अस्थि-रोग प्रक्रियाओं, हड्डी टूटना, गंभीर खेल चोटों, गठिया, मोच, तनाव, पीठ और गर्दन दर्द, रीढ़ की स्थिति एवं अंगच्छेदन आदि के उपचार में प्रशिक्षित किया जाता है।
जोड़ व रीढ़ की गतिशीलता एवं उपचार, उपचारात्मक व्यायाम, न्यूरो-मस्कुलर सुधार, ठंडी-गर्म पट्टी एवं विद्युत् द्वारा मांसपेशियों का उद्दीपन (जैसे क्रायोथेरैपी (cryotherapy), आयेंटोफोरैसिस (iontophoresis), इलेक्ट्रोथेरेपी (electrotherapy)) आदि वे तरीके हैं जो अक्सर स्वास्थ्यलाभ की गति बढ़ने के लिए उपयोग किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त, सोनोग्राफी (Sonography) एक उभरती हुई प्रणाली है जो मांसपेशियों के पुनर्प्रशिक्षण जैसे निदान एवं उपचार में प्रयोग की जाने लगी है। वे मरीज जो चोटिल हो चुके हैं या मांसपेशियों को प्रभावित करने वाली किसी बीमारी से पीड़ित रह चुके हैं, उन्हें किसी अस्थि-रोग विशेषज्ञ शारीरिक चिकित्सक से आकलन करवाने से लाभ हो सकता है।
बालरोग चिकित्सा
बालरोगों की शारीरिक चिकित्सा बच्चों की स्वास्थ्य समस्याओं का जल्दी पता लगाने में सहायता करती है और तौर-तरीकों की एक विस्तृत श्रंखला का उपयोग करती है। ये चिकित्सक नवजात शिशुओं, बच्चों एवं किशोरों में रोग-लक्षणों की पहचान, इलाज एवं देखरेख के विशेषज्ञ होने के साथ जन्मजात, विकासात्मक, न्यूरो-मस्क्युलर (Neuromuscular), कंकाल सम्बन्धी एवं किसी कारणवश होने वाले विकारों/बीमारियों के विषय में विशेष ज्ञान रखते हैं। इसमें इलाज की दिशा दीर्घ एवं सूक्ष्म मोटर (motor) कुशलता, संतुलन एवं समन्वय, शक्ति एवं स्थायित्व के साथ ही संज्ञानात्मक एवं संवेदिक क्रियाशीलता और समाकलन बढ़ाने की ओर रहती है। बालरोगों के शारीरिक चिकित्सकों द्वारा बच्चों के साथ विकासात्मक देरी, मस्तिष्क पक्षाघात तथा जन्मजात मेरूदंडीय द्विशाखी (स्पाइना बाइफिडा) आदि का इलाज किया जा सकता है।
अध्यावर्णी (इंटेग्युमेंट्री)
इंटेग्युमेंट्री (Integumentary) (त्वचा एवं सम्बन्धित अंगों की स्थिति का इलाज) साधारणतया इसमें घाव एवं जलने की स्थितियाँ आती हैं। शारीरिक चिकित्सक इसमें शल्य क्रिया के उपकरण, यांत्रिक संसाधन, पट्टी एवं स्थानिक मलहम का प्रयोग कर, क्षतिग्रस्त ऊतकों को हटा कर नए ऊतकों के विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करता है। अन्य उपचार, जैसे, व्यायाम, सूजन नियंत्रण, सहारा देने वाली खपच्ची तथा संपीडन वस्त्र, आदि भी आम तौर से प्रयोग किये जाते हैं