14/07/2025
✦ आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य रक्षा के सरल उपाय ✦
⟴ बारिश का सीजन , जिसे आयुर्वेद में "वर्षा ऋतु" कहा गया है, आषाढ़ व श्रावण (जुलाई-अगस्त) मास में आती है। यह काल दोषों के विशेष संचय और प्रकुप्त होने का समय होता है। चरक संहिता के अनुसार —
> "वर्षास्वाम्लं लवणं स्निग्धं अल्पं चानिलशोधनम् |
दोषप्रकोपकालश्च वर्षासंक्रान्तिरुच्यते ||"
(चरक संहिता, सूत्रस्थान 6/24)
अर्थ: वर्षा ऋतु में वात दोष का प्रकोप, पित्त का संचय और कफ का शमन होता है। यह समय पाचन शक्ति के न्यूनतम स्तर पर होने के कारण रोग उत्पन्न करने वाला होता है।
❁ वर्षा ऋतु में शरीर की स्थिति – (आयुर्वेदिक दृष्टि से)
✦ जठराग्नि मंद हो जाती है (भोजन के पाचन की शक्ति कम)
✦ वात दोष विशेष रूप से बढ़ता है
✦ पित्त का संचय होता है जो शरद ऋतु में प्रकोप करेगा
✦ जल के प्रदूषण से आमव्रुद्धि, ज्वर, डायरिया, हेपेटाइटिस, त्वचा रोग बढ़ते हैं
✦ जीवाणु-विषाणु संक्रमण (viral-bacterial infection) का खतरा बढ़ता है
⇏ आयुर्वेद के अनुसार वर्षा ऋतु की विशेष दिनचर्या (ऋतुचर्या):
➤ आहार संबंधी निर्देश:
✪ पचने में हल्का, गर्म, ताजा बना हुआ भोजन लें
✪ खट्टा (aml), नमकीन (lavana), स्निग्ध (ghee-oiled) भोजन उपयुक्त है
✪ पानी को उबालकर पीना चाहिए, चाहे बारिश का हो या नल का
✪ भूख अनुसार भोजन करना चाहिए, अति-भोजन से बचें
❌ क्या न खाएं:
✤ कच्चा सलाद (क्योंकि इनमें कृमि, वायरस रह सकते हैं)
✤ सड़क किनारे का खाना, पकोड़े, चाट आदि
✤ दही (बिना हींग या सोंठ के), क्योंकि यह कफ व आम बढ़ाता है
✤ ठंडा पानी, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक
✤ अरबी, पालक, भिंडी, बैंगन – ये भारी, कफवर्धक व वातकारक हैं
√ क्या खाएं:
✪ पुराने जौ, गेहूं, चावल का बना हल्का भोजन
✪ मूंग की दाल, अदरक के साथ
✪ ताजा बना गर्म सूप, सब्ज़ी जैसे लौकी, तोरई, टिंडा
✪ सोंठ, जीरा, हींग, काली मिर्च जैसे दीपक-पाचन द्रव्य
✪ गाय का घी (थोड़ी मात्रा में), जो अग्नि को बल देता है
✪ त्रिकटु चूर्ण (सोंठ, मरीच, पिप्पली) – भूख कम हो तो चुटकी भर शहद से
⤇ क्या सावधानी रखें (प्रतिदिन की आदतों में)
✦ सुबह तांबे के पात्र का उबला हुआ पानी पिएं
✦ स्नान के लिए हल्का गर्म पानी जरुरत अनुसार प्रयोग करें
✦ पैरों में गीले मोज़े या गीली चप्पल पहनने से बचें
✦ शरीर में ठंडा पानी न लगे – इससे वातजन्य रोग हो सकते हैं
✦ समय पर मल त्याग करें – मलावरोध से आमव्रृद्धि और डायरिया का कारण बन सकता है
✦ गीले कपड़े तुरंत बदलें, अन्यथा त्वचा रोग, फंगल इन्फेक्शन संभव
✦ बाहर के गंदे जल से बचें – जलजन्य रोगों का मुख्य कारण है
★ डायरिया, पीलिया, लीवर विकार से बचाव हेतु आयुर्वेदिक सुझाव:
① गिलोय (Tinospora cordifolia):
⇒ 10 ml गिलोय स्वरस + 2-3 तुलसी पत्ते का रस रोज़ सुबह
⇒ इम्यूनिटी बढ़ाता है, पाचन सुधारता है, वायरल इंफेक्शन में रामबाण
② कुटकी चूर्ण (Picrorhiza kurroa):
⇒ 1 ग्राम गुनगुने पानी के साथ – लीवर विकार, उल्टी, पीलिया में
⇒ रसतंत्र सार में इसे तीव्र पित्तनाशक कहा गया है
③ अर्क पंचांग (गिलोय, कलमेघ, तुलसी, नीम, भूमि आमला):
⇒ 10-20 ml रोज सुबह खाली पेट
⇒ Mod. Science: Clinical studies prove hepatoprotective & anti-viral effects
④ हरीतकी चूर्ण + सोंठ:
⇒ 1-1 ग्राम रात में गर्म जल से – कब्ज, गैस, विषहर
⇒ चरक संहिता में कहा गया है –
> "हरीतकी वायुनाशिनी, दीपनि, मलशोधिनी"
⑤ हल्दी दूध या हल्दी चूर्ण + शहद:
⇒ सूजन, पीलिया, इम्यून सिस्टम की रक्षा करता है
⇒ Modern Studies: Curcumin acts as liver protector & gut modulator (DOI: 10.1016/j.phymed.2016.11.009)
✪ वैज्ञानिक प्रमाण :
✤ World Health Organization (WHO) द्वारा बताया गया कि वर्षा ऋतु में 70% बीमारियाँ जलजनित होती हैं – डायरिया, हेपेटाइटिस A & E, टाइफाइड प्रमुख हैं।
✤ Journal of Ayurveda and Integrative Medicine (2022) के एक अध्ययन के अनुसार वर्षा ऋतु में नियमित गिलोय सेवन से IgA व IgG स्तर में सुधार होता है।
✤ PubMed Clinical Trial (2020): कुटकी (Picrorhiza kurroa) showed strong hepatoprotective effects in patients with viral hepatitis and fatty liver.
≛ वर्षा ऋतु के लिए सरल घरेलू प्रयोग:
➫ प्रयोग 1:
10 तुलसी पत्ते + 5 नीम पत्ते + 5 काली मिर्च + 1 छोटा टुकड़ा अदरक
⇒ उबालें, छानकर सुबह-शाम पिएं – वायरस से रक्षा करता है
➫ प्रयोग 2:
भू निम्ब पंचांग + त्रिफला + सोंठ – बराबर मात्रा में मिलाकर
⇒ 1 चम्मच गर्म जल से सुबह-शाम – लीवर और आंतों के लिए श्रेष्ठ
✰ वर्षा ऋतु में वमन, दस्त, पीलिया के संकेत मिले तो तुरंत करें:
✢ गिलोय सत्व 500 mg + त्रिभुवन कीर्ति रस 1 गोली + भृंगराज चूर्ण 2g
⇒ दिन में 2 बार शहद के साथ दें
✢ यदि उल्टी बार-बार हो तो एलादी वटी या वसंत मालती रस भी उपयोगी
あ याद रहे ↣
⇏ वर्षा ऋतु में रोगों की आशंका अधिक होती है क्योंकि शरीर की अग्नि मंद हो जाती है।
⇏ वात दोष का प्रकोप, जल का दूषण और भोजन में सावधानी न रखना ही रोगों का मुख्य कारण है।
⇏ आयुर्वेद में दिये गए ऋतुचर्या का पालन करने से लीवर, पेट व प्रतिरोधक शक्ति ठीक बनी रहती है।
⇏ कफ-वात और आम को नियंत्रित रखना ही वर्षा ऋतु की चिकित्सा का मूल आधार है।
⇏ गिलोय, सोंठ, त्रिफला, हल्दी, नीम, भृंगराज आदि प्रमुख औषधियाँ इस ऋतु में शरीर को रोगमुक्त रखने में सहायक हैं।
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