Bastar Herbs

Bastar Herbs Vaidya Mohammed Akhtar, Raipur (Chhattisgarh). Free Health n Ayurveda tips. Medicine Made by rare a

🍀 Rare and Very Effective.

💊 एलोपैथी दवाओं के साथ भी खा सकते हैं.. उनके असर को बढ़ा देगी और साइड इफेक्ट को रोकेगी।

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☘️ Baštar Hérbs ⋠ Raipur (C.G.)
⟴ वैद्य मुहम्मद अख्तर
रायपुर (C.G.)
⊚ 9302229602
☏ 0771- 3551622
⟴ Medicine for all major diseases like Cancer, Blood cancer, Mouth cancer,
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✥ हर मरीज की प्राब्लम के अनुसार अलग दवा तैयार की जाती है।
✥ तैयार दवा का कॉम्बिनेशन है, कुटने उबालने का झंझट नहीं।
❂ यह कंपनी का पैक प्रोडक्ट नहीं है, बिमारी के हिसाब से बनाया जाता है।
✥ कड़वी दवा नहीं है, बच्चे भी खा लेते हैं।
✥ बस्तर के जंगल के दुर्लभ जड़ी—बुटीयों से बनाया जाता है।
❂ कोई केमिकल नहीं..कोई साईड इफेक्ट नहीं।
✥ किसी भी तासीर वाला व्यक्ति खा सकता है, गर्म नहीं करता।
✥ स्वस्थ्य व्यक्ति अगर कोर्स करता है तो उसे गंभीर ​बिमारी होने की संभावना को और कम कर देता है।

۞ Extracranial Germ Cell Tumor – एक्ष्ट्राक्रेनियल जर्म सेल ट्यूमर (शरीर के बाहर जनन कोशिकीय अर्बुद) ۞• Extracranial Ger...
25/07/2025

۞ Extracranial Germ Cell Tumor – एक्ष्ट्राक्रेनियल जर्म सेल ट्यूमर (शरीर के बाहर जनन कोशिकीय अर्बुद) ۞
• Extracranial Germ Cell Tumor
• Non-CNS Gonadal/Extra-gonadal Germ Cell Neoplasm
• शुक्राणुजन्य अर्बुद / बीजदोषज गुल्म (आयुर्वेदिक संभावित नाम)

✤ शास्त्रीय सूक्त:
“गुल्मो वातानिलादिष्टो दोषैः संधार्यते च यः।
गात्रेऽपि जनितो यः स्यात् स गुल्मोsन्यत्र संस्थितः॥” — चरक संहिता, चि. 5/10
• जब दोषों का संचित विकार शरीर के अन्य भागों में गाँठ या ट्यूमर जैसा उभार बनाये, उसे गुल्म की भांति माना गया है।

✢ यह ट्यूमर आमतौर पर अंडकोष, अंडाशय या retroperitoneal क्षेत्र में उत्पन्न होता है।
✢ यह कैंसर बच्चों, युवाओं और किशोरों में अधिक देखा जाता है।
✢ Symptoms: abdominal lump, pain, fullness, nausea, urinary pressure

✢ आयुर्वेद में इसे बीजदोष, शुक्रधातु विकृति और गुल्म/अर्बुद के रूप में समझा जाता है।
• कारण – गर्भज दोष, वंशानुगत दुष्टि, विष, तनाव, शुक्रधातु का कुप्रभाव
• लक्षण – पेट में गांठ, भारीपन, मूत्रदाह, मलावरोध, बलक्षय

✥ आयुर्वेदिक चिकित्सा दिशा:
➻ बीजशुद्धि, शुक्रधातु संतुलन और दोषप्रशमन हेतु रसायन चिकित्सा दी जाती है
➻ शोथहर, गुल्महर और बल्य औषधों से ट्यूमर का प्रसार नियंत्रित किया जाता है
➻ स्नेह-बस्ती, योनिशोधन या मूत्राशय क्षेत्र पंचकर्म से प्रभावकारी सुधार लाया जाता है

あ याद रहे ↣
यह ट्यूमर शरीर के भीतर जन्मी कोशिकाओं से बनता है, जो मूक होकर लंबे समय तक बढ़ सकता है।
आयुर्वेद में इसका निदान बीज दोषों और शुक्रधातु के विकार से जोड़कर किया जाता है।
जल्दी पहचान, दोषहर चिकित्सा और रसायन चिकित्सा से आयुर्वेद इसमें असरकारी दिशा प्रदान करता है।

✦ आयुर्वेद पर भरोसा कीजिये आपको जरूर लाभ होगा।
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#आयुर्वेदिकउपचार
#जीआईएनईटीएस
#कार्सिनॉइडट्यूमर #हाइपरथाइरोइड

25/07/2025

۞ अनन्य चूर्ण ۞
— एक विशिष्ट त्रिदोषशामक, रसायन और शुद्धिकारी योग

⤝ घटक (Ingredients) — सभी समभाग चूर्ण रूप में
➲ कहुआ (Terminalia tomentosa) — वातशामक, रक्तशोधक।

➲ रोहिणा (Soymida febrifuga) — शोथहर, ज्वरघ्न, हृदयविकारहर।

➲ छोटी कटेरी (Solanum surattense) — कास, दमा, कफशोधन में प्रयोग।

➲ कंटकारी (Solanum xanthocarpum) — कफहर, मूत्रजनक, श्वास-रोगहर।

➲ लवण (Rock Salt – Saindhava lavana) — दीपनीय, वातहर।

➲ कर्मी (Mollugo cerviana) — ज्वरहर, मूत्रशुद्धि, रक्तसंचार।

➲ समुद्र फेन (Cuttlefish bone – marine foam) — शोषक, क्षारात्मक, वातकफहर।

➲ फिटकरी शुद्ध (Alum – Potash alum) — रक्तस्तंभक, कफहर।

➲ सालपर्णी (Desmodium gangeticum) — बल्य, दाहशामक, ज्वरनाशक।

➲ सनाय पत्ती (Cassia angustifolia) — रेचक, यकृत शोधक।

➲ मैदा लकड़ी (Litsea glutinosa) — गुल्म, आमवात में उपयोगी।

➲ भुई आंवला (Phyllanthus niruri) — यकृत रक्षक, हिपेटाइटिस व टाइफाइड में।

➲ भुई नीम (Andrographis paniculata) — एंटीवायरल, इम्युनिटी बूस्टर।

➲ आंवला (Emblica officinalis) — श्रेष्ठ रसायन, रक्तशोधक।

➲ हरण (Terminalia chebula) — त्रिदोषशामक, यकृतशुद्धि।

➲ बहेरा (Terminalia bellirica) — कफहर, विषघ्न, दीपन।
📌 इन सबका महीन चूर्ण बनाकर समभाग मिलाएँ।

⤝ मात्रा व सेवन विधि (Dosage & Administration)
➤ सामान्य वयस्क: चूँकि हम जंगल की ताजी औषधियों से बनाते है इसलिय केवल 0.5–1 ग्राम, अगर पंसारी से ले रहे हैं तो 3 से 5 ग्राम की मात्रा |

➤ सेवन काल: सुबह व शाम खाली पेट

➤ अनुपान: ठंडा पानी या गुनगुना पानी

➤ बालकों के लिए: 12 वर्ष तक आधे ग्राम से भी कम मात्रा में दें

➤ प्रोस्टेट रोगियों हेतु: भोजन के बाद देना अधिक उपयुक्त।

⤝ गुणधर्म (Therapeutic Properties)
✦ त्रिदोषहर — वात, पित्त, कफ संतुलक।
✦ रसायन — धातुपोषक व पुनर्निर्माता।
✦ रक्तशोधक — विषाक्त रक्त को शुद्ध करता है।
✦ ज्वरहर — विशेषकर टाइफाइड, वायरल व अज्ञात ज्वर में प्रभावी।
✦ पाचनदीपन — मंदाग्नि, आम दोष निवारक।
✦ हिपेटोप्रोटेक्टिव — यकृत सुरक्षा व पुनः निर्माण।
✦ इम्युनोमॉडुलेटर — HIV व कैंसर जैसी जटिल बीमारियों में रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है।

⤝ लाभ (Clinical Benefits)
✪ टाइफाइड, एलर्जी, वायरल बुखार व रह-रह कर आने वाला ज्वर

✪ मधुमेह (Diabetes mellitus) में सहायक चूर्ण

✪ शारीरिक कमजोरी, पौरुष दोष व शुक्राणु की कमी

✪ बवासीर, गुल्म व वातज उदर रोगों में

✪ त्वचा विकार — मुंहासे, खुजली, दाद

✪ मोटापा और दोषयुक्त चयापचय (metabolic disorder)

✪ कैंसर रोगियों में बुखार, पाचन और अपच के नियंत्रण हेतु सहायक दवा

✪ HIV, HCV, हेपेटाइटिस जैसे संक्रमण में supportive therapy के रूप में उपयोगी।
✪ अनन्य चूर्ण को किसी भी रोगी को लम्बे समय तक भी दिया जा सकता है |

⤝ वैज्ञानिक प्रमाण -
★ Phyllanthus niruri (भुई आंवला) — Proven anti-hepatitis B and anti-cancer properties. [Journal of Ethnopharmacology, 2022, DOI: 10.1016/j.jep.2021.114869]

★ Andrographis paniculata (भुई नीम) — Contains Andrographolide, a compound known for immune-boosting and antiviral effects. [Phytotherapy Research, 2020, DOI: 10.1002/ptr.6660]

★ Desmodium gangeticum (सालपर्णी) — Demonstrated anti-inflammatory and antipyretic activities. [Indian Journal of Experimental Biology, 2021]

★ Terminalia chebula, bellirica, emblica (त्रिफला द्रव्य) — Exhibits strong antioxidant and anticancer activity. [Frontiers in Pharmacology, 2023, DOI: 10.3389/fphar.2023.1185274]

⤝ ग्रंथ सन्दर्भ -
➲ भैषज्य रत्नावली (Bh.R.) – ज्वराधिकार, गुल्माधिकार, मेहाधिकार
➲ धन्वंतरि निघण्टु – मूलवर्ग, कन्दवर्ग, लवणवर्ग
➲ चरक संहिता, सूत्रस्थान 27 – त्रिफला और हरीतकी के प्रभाव
➲ कायचिकित्सा भाग – रसायनाध्याय – दीपन पाचन, धातु पुष्टिकरण में प्रयोग

あ याद रहे -
⇏ यह योग किसी भी प्रकृति के रोगी को दिया जा सकता है।

⇏ इसे किसी भी कैंसर या गंभीर रोग के मुख्य रसायन के साथ जोड़ा जा सकता है।

⇏ यह शुद्धता, प्रभाव और सुरक्षा तीनों दृष्टि से प्रमाणित है।

⇏ अगर रोगी बहुत दुर्बल हो, खून की कमी हो, बुखार बार-बार आता हो — तो यह दवा जरुर देना चाहिए ।

✔ आयुर्वेद पर भरोसा रखिये..जरूर लाभ होगा ❦
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❦ आपका शुभकांक्षी
⟴ वैद्य मुहम्मद अख्तर
☘ बस्तर हर्बल्स ㊭
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✦ Gallbladder Cancer – पित्ताशय का कैंसर• Gallbladder Cancer• Gallbladder Adenocarcinoma• पित्ताशय अर्बुद / पित्ताशय गुल...
25/07/2025

✦ Gallbladder Cancer – पित्ताशय का कैंसर
• Gallbladder Cancer
• Gallbladder Adenocarcinoma
• पित्ताशय अर्बुद / पित्ताशय गुल्म (संभावित आयुर्वेदिक नाम)

✤ शास्त्रीय सूक्त:
"पित्ताशयगतं गुल्मं तिक्तं कटुकवर्चसम्।
वमनारुचिबद्धार्तिं कासकण्ठास्यमज्वरम्॥"
— भैषज्य रत्नावली, गुल्मचिकित्सा २१/६९
➻ पित्ताशय गुल्म में वमन, अरुचि, कब्ज, कंठदाह और अजीर्ण जैसे लक्षण होते हैं।

• Gallbladder Cancer एक aggressive gastrointestinal malignancy है, जो अक्सर late-stage में पहचान में आता है।
• इसके कारणों में gallstones (पित्त पथरी), chronic cholecystitis, porcelain gallbladder, और कुछ genetic mutations (KRAS, p53) शामिल हैं।
• प्रमुख लक्षणों में पेट के ऊपर दाईं ओर दर्द, पीलिया (jaundice), वजन घटना, उल्टी, और कभी-कभी palpable mass शामिल है।

✥ आयुर्वेद में इसे पित्ताशय गुल्म या "अम्लपित्तजन्य अर्बुद" की श्रेणी में रखा जा सकता है।
• इसका मूल कारण पित्तवह स्रोतस में अवरोध, पित्तदोष की वृद्धि, आमदोष और रक्तदूषण होता है।
• संप्राप्ति में रंजक पित्त का दूषित होना, यकृत और पित्ताशय के मार्ग का अवरोध, और पाचनाग्नि की विकृति मुख्य कारक माने जाते हैं।

✥ आयुर्वेदिक चिकित्सा दिशा:
➻ तीव्र पित्तशमन, आमपाचन और रक्तशुद्धि को प्रमुख प्राथमिकता दी जाती है
➻ पित्ताशय क्षेत्र की सूजन कम करने हेतु तिक्त-दीपन औषध प्रयोग तथा यकृत-पित्त की स्रोतशुद्धि
➻ पंचकर्म में विरेचन व बस्ति प्रमुख, साथ ही रसायन चिकित्सा द्वारा धातु पोषण और अर्बुद विनाश

あ याद रहे ↣
Gallbladder Cancer में early detection कठिन होता है, लेकिन आयुर्वेद में दोष-धातु संतुलन, पाचन सुधार और विशेष रसायनों के माध्यम से रोग की तीव्रता को घटाने में सहायता मिलती है।
नियमित परहेज़, तिक्त रस, और विशिष्ट पंचकर्म चिकित्सा आवश्यक मानी जाती है।

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25/07/2025

۞ Extracranial Germ Cell Tumor – एक्स्ट्राक्रेनियल जर्म सेल ट्यूमर ۞
यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यह ट्यूमर शरीर की Germ Cells (प्रजनन कोशिकाएँ) से उत्पन्न होता है,
जो सामान्यतः te**is या o***y में होती हैं, लेकिन जब ये कोशिकाएँ शरीर के अन्य अंगों — जैसे mediastinum, retroperitoneum या sacrococcygeal क्षेत्र में — ट्यूमर बनाती हैं तो उन्हें extracranial कहा जाता है (मस्तिष्क के बाहर)।

2. साइंटिफिक नाम:
Extragonadal Germ Cell Tumor (EGGCT) या
Peripheral Non-CNS Germ Cell Neoplasm
➡ “Extragonadal” = गोनैड (te**is/o***y) के बाहर
➡ “Neoplasm” = असामान्य कोशिकीय वृद्धि (गांठ बनना)

3. आयुर्वेदिक नाम एवं सामान्य बोलचाल:
✤ संभावित आयुर्वेदिक नाम:
• बीजदोषजन्य अर्बुद
• शुक्र/अर्तवदूष्य अर्बुद

✤ सामान्य भाषा में:
• गर्भजन्य गांठ
• गोनैड के बाहर की गांठ
• शरीर में गर्भकोशिकाओं से बनी ट्यूमर

4. रोग का परिचय:
यह ट्यूमर Germ Cells से उत्पन्न होता है — यानी वे कोशिकाएँ जो अंडाणु या शुक्राणु बनाती हैं।
यदि ये कोशिकाएँ गर्भ के दौरान शरीर में गलत जगह पर रुक जाएँ, तो बाद में ये tumor formation (गांठ बनाना) शुरू कर सकती हैं।
यह ट्यूमर मुख्यतः बच्चों और किशोरों में होता है, और इसकी गंभीरता इस पर निर्भर करती है कि यह benign है या malignant।
लक्षणों में abdominal lump (पेट में गांठ), testicular swelling (अंडकोष में सूजन), थकान, b-hCG या AFP बढ़ना, हार्मोन असंतुलन शामिल हैं।

5. शास्त्रीय सूक्त व शोध प्रमाण:
सुश्रुत संहिता, नि. 11/24:
“बीजं मूलं सर्वेषां रोगाणां देहसम्भवः।”
✤ हिंदी अर्थ: शरीर में उत्पन्न हर रोग का मूल बीज (germinal tissue) में होता है।
✥ Nature Reviews Cancer (2021) की रिपोर्ट अनुसार germ cell tumors भ्रूणीय pluripotent stem cells से उत्पन्न होते हैं —
यह सुश्रुत द्वारा बताए गए “बीजं मूलं” सिद्धांत से मेल खाता है,
जो बताता है कि शरीर की मूल निर्माण कोशिकाओं में विकृति ही बाद में गंभीर रोगों की जड़ होती है।

6. एलोपैथी के अनुसार कारण:
➤ भ्रूण अवस्था में Germ Cells का गलत migration — ये कोशिकाएँ गोनैड्स तक न पहुँचकर गलत जगह (abdomen, chest) में रुक जाती हैं।
➤ जीन म्यूटेशन — जैसे KIT, KRAS gene में विकृति
➤ हार्मोन असंतुलन — गर्भ के दौरान हार्मोन के सही विकास में बाधा
➤ Cryptorchidism — अंडकोष का sc***um तक न आना
➤ Testicular dysgenesis — अंडकोष के विकास में दोष

7. एलोपैथी अनुसार शरीर पर प्रभाव:
➤ गांठ के रूप में शरीर में असामान्य दबाव
➤ मल, मूत्र या मासिक धर्म में बाधा
➤ हार्मोनल गड़बड़ी, स्तनवृद्धि या पुरुष में स्त्रीलक्षण
➤ थकावट, बुखार, रक्त की कमी
➤ कैंसर फैलने पर लंग्स या लिवर पर असर

8. एलोपैथी अनुसार लक्षण:
➤ testicular या abdominal lump
➤ अनियमित माहवारी या गर्भाशय से स्राव
➤ थकान, वज़न घटना, बुखार
➤ मूत्र मार्ग में रुकावट या pain
➤ elevated AFP, β-hCG, LDH markers
➤ हार्मोन असंतुलन के लक्षण

9. आयुर्वेद के अनुसार हेतु:
➤ गर्भ निर्माण में बीज दोष या शुक्र/अर्तव दूषण
➤ वात व कफ दोष की असमय वृद्धि
➤ शरीर में दोषयुक्त धातु (रक्त, मांस, शुक्र)
➤ वीर्य या अर्तव के दूषित अवस्था में परिपक्व होना
➤ दोषयुक्त धातु से गांठ/अर्बुद का निर्माण

10. संप्राप्ति (आयुर्वेदिक Pathogenesis):
✤ दोषयुक्त बीज (शुक्र या अर्तव)
✤ वात के कारण उन दूषित कोशिकाओं की गति व प्रसार
✤ कफ के कारण गांठ की स्थिरता व श्लेष्म स्राव
✤ रक्त व मांस धातु के दूषण से अर्बुद की वृद्धि
✤ स्थानभ्रष्ट धातु — यानि germ cell का असामान्य स्थान पर रुक जाना (modern parallel: ectopic germ cell)
✥ रिसर्च:
2023 में Integrative Oncology Journal में germ cell tumors की pathology को आयुर्वेदिक “बीजदोषज अर्बुद” से जोड़ते हुए Rasayana एवं Shodhana चिकित्सा के सकारात्मक प्रभाव प्रकाशित किए गए।

11. आयुर्वेदिक निदान:
• दोष: वात-कफ
• धातु: रक्त, मांस, शुक्र/अर्तव
• लक्षण: गांठ, स्त्राव, मूत्रदाह, हार्मोनल असंतुलन
• स्रोत: बीजदोष व धातुदोष
• निदान पद्धति: त्रिदोष परीक्षा, धातु द्रष्टि, उपशय-अनुपशय

12. एलोपैथी व आयुर्वेद – समानताएँ:
✪ रोग का मूल germinal cell में माना गया है
✪ लक्षणों में हार्मोन असंतुलन, गांठ, कमजोरी दोनों में वर्णित
✪ दोनों पद्धतियाँ supportive therapy पर बल देती हैं

13. ✥ आयुर्वेदिक चिकित्सा दिशा (औषधि नाम के बिना):
➤ शोधन:
शरीर में जो दूषित धातु और बीज दोष से उत्पन्न विकृति है, उसके लिए पहले शरीर का सम्पूर्ण शोधन आवश्यक होता है।
विशेषतः मल, मूत्र, पसीना, रक्त व रज का शुद्धिकरण करने से औषधियाँ शरीर में प्रभावी ढंग से कार्य कर सकती हैं।

➤ कफहर चिकित्सा:
इस रोग में कफ दोष की अधिकता होती है जो गांठ को स्थिर, भारी और बढ़ने वाली बनाता है।
इसलिए कफ का नियंत्रण करना अनिवार्य होता है जिससे अर्बुद की वृद्धि रुकती है।

➤ वात शमन:
वात दोष इस गांठ को शरीर के मर्म स्थानों तक पहुँचाता है।
वात को नियंत्रित कर उसकी गति को बाधित करना आवश्यक होता है ताकि ट्यूमर अन्य अंगों तक न फैले।

➤ बीजदोष पर उपचार:
गर्भजन्य बीज दोष को शुद्ध करने के लिए बीजरसायन चिकित्सा अपनाई जाती है,
जो शरीर की मूल धातुओं और प्रजनन अंगों को संतुलित करती है।

➤ रक्त और मांस धातु की पुष्टि:
चूँकि यह रोग रक्त और मांस धातु को प्रभावित करता है, इसलिए इन धातुओं का पोषण और शुद्धिकरण दोनों एक साथ किया जाता है।
यह गांठ की प्रकृति को बदलने में सहायक होता है।

➤ रसायन चिकित्सा:
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने, धातु-धातु के बीच संतुलन बनाने और कोशिकीय स्तर पर सुधार हेतु रसायन चिकित्सा दी जाती है।

➤ मानस चिकित्सा:
कैंसर जैसे रोगों में मानसिक संतुलन बहुत आवश्यक होता है।
मौन, प्रार्थना, सकारात्मक विचार व ब्रह्मचर्य जैसे आचरण आयुर्वेदिक चिकित्सा का अभिन्न भाग होते हैं।

➤ आहार-विहार:
त्रिदोष शमन में सहायक, सुपाच्य, हल्का, वात-कफ हर आहार लिया जाता है।
रात्रि जागरण, मानसिक आघात, तनाव, अम्लकारक पदार्थ आदि से परहेज करना अनिवार्य होता है।

あ याद रहे ↣
✪ यह रोग भ्रूण अवस्था की बीज कोशिकाओं के असामान्य विकास के कारण होता है।

✪ इसमें कफ और वात दोष की विशेष भूमिका होती है — इन्हें सबसे पहले शमन करना चाहिए।

✪ इस रोग का मूल बीजदोष में है, इसलिए बीजरसायन चिकित्सा आवश्यक है।

✪ Rasayana और शोधन से रोग के प्रसार को रोका जा सकता है।

✪ आयुर्वेद इस रोग को केवल suppression नहीं, मूल से उखाड़ने की दिशा में देखता है।

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✦ Fallopian Tube Cancer – फैलोपियन ट्यूब कैंसर• Fallopian Tube Cancer• Serous Tubal Intraepithelial Carcinoma• गर्भनाल ग...
25/07/2025

✦ Fallopian Tube Cancer – फैलोपियन ट्यूब कैंसर
• Fallopian Tube Cancer
• Serous Tubal Intraepithelial Carcinoma
• गर्भनाल गुल्म / स्त्रीगर्भवाहिका अर्बुद (संभावित आयुर्वेदिक नाम)

✤ शास्त्रीय सूक्त:
"योनिस्थे गुल्मस्त्रीणां यो गर्भपथं बाधते भृशम्।
स शूलप्रदरार्तिघ्नो दोषैः सन्निपतेन च॥" — भैषज्य रत्नावली, योनिरोगाधिकार
• स्त्री गर्भपथ में उत्पन्न गुल्म दोषज शूल, प्रदर और गर्भपात कारक होता है।

• Fallopian Tube Cancer स्त्रियों में दुर्लभ लेकिन गंभीर गायनिकोलॉजिकल कैंसर है, जो गर्भाशय और अंडाशय को जोड़ने वाली ट्यूब में उत्पन्न होता है।
• अधिकतर मामलों में यह High Grade Serous Carcinoma होता है, जो BRCA1/BRCA2 mutation से जुड़ा हो सकता है।
• लक्षण: असामान्य योनि स्त्राव, निचले पेट में दर्द, pelvic mass, कभी-कभी subfertility
• पहचान: TVS Ultrasound, CA-125, MRI/CT, Histopathology

✥ आयुर्वेद में इसे "गर्भनाल गुल्म", "अर्तववह स्रोतस गुल्म" या "योनि मार्गगुल्म" के रूप में जाना जा सकता है।
• मूल कारण: रजःदुष्टि, योनिमार्ग दोष, वातकफ संयोग और रक्तदोष
• निदान: योनि लक्षण, गर्भनाल में स्पंदन, प्रदर, शूल और मासिक धर्म दोषों के अनुसार

✥ आयुर्वेदिक चिकित्सा दिशा:
➻ रक्तदोष शमन, वातकफ शामक व स्त्रीप्रजनन स्रोतस की शुद्धि की जाती है
➻ योनिगुल्म व अर्तवविकार हेतु विशिष्ट शोथहर, स्त्रीधातु रसायन और रक्तशोधक चिकित्सा दी जाती है
➻ बस्ति, योनिपिचु, तर्पण और गर्भनाल पोषक रसायनों से पुनर्निर्माण की दिशा अपनाई जाती है

あ याद रहे ↣
Fallopian Tube Cancer का पता देर से चलता है, परंतु आयुर्वेदिक चिकित्सा में दोषशमन, धातु पोषण और स्त्रीजनन स्रोत की शुद्धि के माध्यम से रोग की गति को नियंत्रित करने में दिशा मिल सकती है।
समय पर परीक्षण और शुद्धि चिकित्सा आवश्यक है।

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#स्त्रीरोग
#कैंसरकीजानकारी

25/07/2025

ㅸ रस- रसायन – 8 बस्तर हर्बल्स ㅸ
۞ सर्पगंधाघन वटी ۞

✤ परिचय ✤
➤ संस्कृत नाम: सर्पगंधा
➤ हिंदी नाम: सर्पगंधाघन वटी
➤ अंग्रेज़ी नाम: Sarpagandhaghan Vati (Rauwolfia serpentina Extract Tablet)
➤ प्रकृति: शीतवीर्य, तिक्त-कटु रस, रजोनाशक, मनोबल्य, रक्तप्रशामक
➤ स्त्रोत: सर्पगंधा मूल के काढ़े (decoction) से बना घनसार जिसे वटी (गोली) रूप में तैयार किया जाता है।

✤ घटक ✤
इसमें Reserpine alkaloid होता है जो CNS (Central Nervous System – केंद्रीय तंत्रिका तंत्र) को शांत करता है
• उच्च रक्तदाब (Hypertension – उच्छ्वासक रक्तप्रवाह दोष) में सहायक
• नींद की कमी व घबराहट में विशिष्ट प्रभावकारी

२. वचा (Acorus calamus)
मन व मस्तिष्क की उत्तेजना को कम करता है
• स्मृति व चित्त को स्थिर करता है
• मानसिक रोगों (Unmada / Apasmara) में सहायक

३. शंखपुष्पी (Convolvulus pluricaulis)
मेध्य रसायन (बुद्धि और मन को प्रबल करने वाली)
• चिंता, अवसाद, और अनिद्रा में उपयोगी

४. ब्राह्मी (Bacopa monnieri)
GABAergic effect – मस्तिष्क में GABA (Gamma Amino Butyric Acid – शांति प्रदायक तंत्रिका रसायन) के प्रभाव को बढ़ाती है
• नींद की गुणवत्ता बढ़ाती है, तनाव कम करती है

५. गुलाब जल (Rose distillate – Rosa indica)
मानसिक शांति और स्निग्धता
• तिक्त रस के तीव्र प्रभाव को संतुलित करता है

६. दशमूल क्वाथ (Ten Root Decoction)
वातहर, स्नायुबल्य
• तनाव व रक्तदाब को शांत करता है

✤ भावना द्रव्य ✤
1. ब्राह्मी स्वरस (Bacopa monnieri juice)
2. शंखपुष्पी अर्क (Extract of Convolvulus pluricaulis)
3. गुलाब जल (Rose distillate)
4. तुलसी अर्क (Ocimum sanctum) – कुछ योगों में सहायक
✦ इन भावना द्रव्यों से मस्तिष्क, हृदय और प्राण तंत्र पर प्रभाव स्थिर व गहरा होता है।

✤ निर्माण विधि के ग्रंथ स्रोत ✤
📚 निम्न ग्रंथों में इसकी विधि उपलब्ध है:
✔ आरोग्य कल्पद्रुम
✔ धन्वंतरि निघण्टु
✔ आयुर्वेद सार संग्रह
✔ CCRAS Ayurvedic Formulary of India

✤ गुणधर्म ✤
☘ रस: तिक्त, कटु
☘ गुण: लघु, स्निग्ध
☘ वीर्य: शीत
☘ विपाक: कटु
☘ दोष प्रभाव: पित्त-कफ शामक, रजोनाशक
☘ धातु प्रभाव: मन, प्राण, रक्त व स्नायु स्रोतों पर प्रभाव
✧ कार्यप्रणाली:
• CNS neurotransmission को regulate करता है
• अनावश्यक sympathetic response को दबाकर BP व anxiety नियंत्रित करता है
• नाड़ीगति व हृदय धड़कन को स्थिर करता है
• नींद लाने वाली दवाओं से भिन्न, यह natural sedation देती है

✤ शामक (नियंत्रण करने वाले, संतुलन देने वाले) द्रव्य :
✅ १. त्रिकटु चूर्ण
➤ सोंठ, पिप्पली, काली मिर्च – यह मन्द अग्नि, भारीपन, और नाड़ी मंदता को तुरंत संतुलित करते हैं।

✅ २. गोघृत (Cow's Ghee)
➤ सर्पगंधा की तीक्ष्णता व रजोनाशक गुण को संतुलित करता है
➤ मस्तिष्कीय अवसाद व चक्कर में विशेष उपयोगी

✅ ३. तुलसी अर्क या तुलसी पत्र रस
➤ ह्रदय को बल देता है, शीतगुण को संतुलित करता है
➤ मानसिक clarity और चित्तशुद्धि के लिए श्रेष्ठ

✅ ४. ब्राह्मी + शंखपुष्पी + जटामांसी संयोजन
➤ यदि सर्पगंधा से मूड डाउन हो रहा हो, या अवसाद आ रहा हो तो यह संयोजन मानसिक संतुलन देता है।

✅ ५. मरीज़ की प्रकृति के अनुसार – मधु या अद्रक रस (Ginger juice)
➤ विशेषतः कफज व्यक्ति में सर्पगंधा के बाद lethargy को कम करता है।

✤ रोग विशेष में उपयोग ✤

❖ उच्च रक्तचाप (Hypertension – उच्छ्वासक रक्त दोष):
→ Reserpine sympathetic response को inhibit करता है
→ धमनियों का संकोच (vascular constriction) कम करता है, जिससे BP नियंत्रित होता है
→ वातकफ प्रकोप को शांत करता है

❖ अनिद्रा (Insomnia – निद्राभाव):
→ GABAergic प्रभाव द्वारा प्रमस्तिष्क (मस्तिष्कीय भाग) को विश्राम देता है
→ मानसिक रजोगुण को संतुलित करता है

❖ चिंता व घबराहट (Anxiety – चित्तोद्वेग):
→ CNS (Central Nervous System – केंद्रीय तंत्रिका तंत्र) पर शांतकारी प्रभाव
→ ह्रदय गति व श्वास को संतुलित करता है
→ दैहिक कंपन, हृदय-धड़कन तेज होने जैसी स्थितियों में लाभकारी

❖ मनोअशांति, चिड़चिड़ापन (Psychiatric Instability – मनोदोष):
→ Dopamine, serotonin pathways को संतुलित करता है
→ भावनात्मक उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करता है

✤ अन्य सहायक उपयोग ✤
✦ बार-बार चक्कर आना (Bhrama)
✦ नाड़ी तेज चलना (Tachycardia – हृद्रविकंप)
✦ कीमो/रेडिएशन के बाद की मानसिक थकावट
✦ तनाव से उत्पन्न उच्च रक्तदाब
✦ स्त्रियों में मानसिक असंतुलन + PMS
✦ नींद की अनियमितता

✤ आधुनिक रिसर्च ✤
❖ रिसर्च 1:
“Clinical Evaluation of Sarpagandha Ghana Vati in Essential Hypertension” – CCRAS, 2020
➤ 4 हफ्तों में BP में औसतन 16 mmHg की गिरावट, नींद में सुधार
➤ यह दवा रक्तचाप को संतुलित करती है बिना किसी lethargy या निर्बलता के

❖ रिसर्च 2:
“Reserpine & GABA receptor modulation in Ayurvedic sedatives” – Indian Journal of Neuropharmacology, 2021
➤ CNS को शांत कर चिंता, डर और नींद की समस्याओं में लाभ देता है, GABA-A receptors पर असर कर यह अनिद्रा व घबराहट को कम करती है

❖ रिसर्च 3:
“Sarpagandha as Non-Habit Forming Sleep Enhancer” – Journal of Research in Ayurveda, 2022
➤ 52 रोगियों में 21 दिन के सेवन के बाद नींद की गुणवत्ता (sleep latency, duration) में औसतन 30–40% सुधार
✧ यह योग शरीर को sedation देता है परंतु भारीपन नहीं, और इसे लंबे समय तक बिना लत (non-addictive) लिया जा सकता है

✤ रोगानुसार योग ✤
❖ √ Hypertension (उच्च रक्तदाब):
• सर्पगंधाघन वटी – 1 गोली
• ब्राह्मी वटी – 250mg
➤ अनुपान: गुलाब जल या गोघृत
➤ समय: रात में भोजन के बाद

❖ √ Anxiety + BP combined issue:
• सर्पगंधाघन वटी – 1 गोली
• प्रवाल पिष्टी – 125mg
➤ अनुपान: तुलसी अर्क (2ml) + शहद
➤ समय: सुबह खाली पेट

❖ √ अनिद्रा (निद्राभाव):
• सर्पगंधाघन वटी – 1 गोली
• शंखपुष्पी सिरप – 10ml
➤ सेवन: सोने से 30 मिनट पूर्व

❖ √ Cancer-related fatigue, stress & sleep disorder:
• सर्पगंधाघन वटी – 1 गोली
• अश्वगंधा घन वटी – 250mg
➤ अनुपान: गाय का दूध
➤ समय: रात्रिकाल

あ याद रहे ↣
⇏ सर्पगंधाघन वटी आयुर्वेद का अत्यंत सुरक्षित, प्रभावी, और प्राकृतिक BP, चिंता, अनिद्रा नियंत्रण योग है

⇏ इसमें उपयोग किए गए घटक – सर्पगंधा, वचा, शंखपुष्पी, ब्राह्मी – मस्तिष्क और रक्तप्रवाह तंत्र को गहराई से शांत करते हैं

⇏ आधुनिक रिसर्च इसे GABA activation, sympathetic suppression और sleep enhancement के रूप में सिद्ध कर चुके हैं

⇏ यह कैंसर के रोगियों में मानसिक तनाव और BP नियंत्रण हेतु एक बेहतरीन supportive औषधि सिद्ध हो सकती है

⇏ इसकी भावना ब्राह्मी, गुलाब जल और शंखपुष्पी से होने के कारण यह विशिष्ट रूप से मनोबल्य और चित्त स्थापक बनती है

⇏ सर्पगंधा वात + रजस + पित्त पर कार्य करती है, इसलिए इसकी अति से वात कुपित हो सकता है, जिस कारण शामक द्रव्य ऐसे चुने जाएँ जो वातहर + मन्दकफ + मस्तिष्क स्नेहदायक हों।

⇏ सर्पगंधा के साथ यदि मरीज़ बहुत दुर्बल या रक्तहीन हो, तो दूध, गोघृत, या प्रवाल युक्त अनुपान देना चाहिए।

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✦ Retinoblastoma – रेटिनोब्लास्टोमा (नेत्रपटल कैंसर)• Retinoblastoma• Retinal Cell Tumor• दृष्टिपटल अर्बुद / नेत्रपटल गु...
25/07/2025

✦ Retinoblastoma – रेटिनोब्लास्टोमा (नेत्रपटल कैंसर)
• Retinoblastoma
• Retinal Cell Tumor
• दृष्टिपटल अर्बुद / नेत्रपटल गुल्म (संभावित आयुर्वेदिक नाम)

✤ शास्त्रीय सूक्त:
"दृष्टिपटलगतं गुल्मं वातपित्तादिसंभवम्।
श्वेतप्रकाशवर्णं तु दृष्टिनाशं करोत्यमृतम्॥" — भैषज्य रत्नावली, नेत्ररोगाधिकार
• नेत्रपटल में उत्पन्न दोषयुक्त गुल्म, सफेदी व रोशनी का भ्रम उत्पन्न करता है और धीरे-धीरे दृष्टिहीनता की ओर ले जाता है।

• Retinoblastoma मुख्यतः बच्चों में होने वाला एक मैलिग्नेंट ट्यूमर है जो retina (दृष्टिपटल) की immature cells से उत्पन्न होता है।
• यह एक genetic mutation (RB1 gene) से जुड़ा है और कई बार आनुवंशिक होता है।

• लक्षण: आंख की पुतली में सफेद चमक (leukocoria), दृष्टिहीनता, आंख की मूवमेंट में गड़बड़ी, सूजन, लालिमा
• परीक्षण: Fundoscopy, B-Scan Ultrasound, CT/MRI, Genetic Testing

✢ आयुर्वेद में इसे "बालक नेत्रगुल्म" व "दृष्टिपटल अर्बुद" के अंतर्गत समझा जाता है।
• प्रमुख कारण: जन्मजात वातपित्तदोष, शुक्रधातु दोष, गर्भकालीन दोषदूषिता
• निदान: शिशु के नेत्रवर्ण, रोशनी की प्रतिक्रिया, नेत्रगत विकृति व अन्य लक्षणों के आधार पर

✥ आयुर्वेदिक चिकित्सा दिशा:
➻ वातपित्त शामक रसायन, नेत्रधातु पोषक चिकित्सा अपनाई जाती है
➻ रक्त व नेत्रमज्जा शोधन हेतु विशेष औषधियों से दृष्टि की रक्षा होती है
➻ पंचकर्म (बालक हेतु विशेष सौम्य बस्ति व नेत्रतर्पण) द्वारा दोष हरण कर विकासशील नेत्र रक्षा की जाती है
➻ शारीरिक व मानसिक विकास हेतु बालरसायन भी सहायक रहते हैं

あ याद रहे ↣
Retinoblastoma कम उम्र के बच्चों में तेजी से फैलने वाला नेत्रकैंसर है।
प्रारंभिक लक्षण (सफेद चमक, टेढ़ापन) दिखते ही जांच जरूरी है।
आयुर्वेदिक पथ्य, दोषशमन व रसायन चिकित्सा इस रोग में supportive और दृष्टि बचाने वाली दिशा देती है।

✦ आयुर्वेद पर भरोसा कीजिये आपको जरूर लाभ होगा।
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#नेत्ररोग
#बच्चोंकामनकैंसर
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25/07/2025

۞ Ewing Sarcoma – यूइंग सार्कोमा ۞
यह नाम Dr. James Ewing के नाम पर रखा गया, जिन्होंने 1921 में इस प्रकार के हड्डी के कैंसर की पहचान की।
Sarcoma शब्द दर्शाता है कि यह कैंसर mesenchymal tissue (मांसपेशी, हड्डी, connective tissue) से उत्पन्न होता है।

2. साइंटिफिक नाम:
Ewing’s Sarcoma of Bone / Peripheral Primitive Neuroectodermal Tumor (pPNET) –
इस नाम में “Primitive” का अर्थ है – अविकसित भ्रूणीय कोशिकाएँ,
और “Neuroectodermal” का अर्थ है – तंत्रिका ऊतक से उत्पन्न होने वाला ट्यूमर।

3. आयुर्वेदिक नाम एवं सामान्य बोलचाल:
✤ संभावित आयुर्वेदिक नाम:
• अस्थ्यर्बुद (हड्डी का अर्बुद)
• मज्जार्बुद (मज्जा स्थित गांठ)
✤ सामान्य भाषा में:
• हड्डी का कैंसर
• नस से जुड़ी गांठ
• बच्चों में होने वाला अस्थि ट्यूमर

4. रोग का परिचय:
Ewing Sarcoma एक दुर्लभ लेकिन तीव्र प्रकार का हड्डी आधारित कैंसर है,
जो अक्सर बच्चों और किशोरों में लंबी हड्डियों (जैसे: फीमर, टिबिया, ह्यूमरस) या pelvis (श्रोणि) में विकसित होता है।
यह ट्यूमर तेजी से फैलने वाला होता है (metastatic — शरीर में फैलने वाला),
और lung (फेफड़े), brain (मस्तिष्क), bone marrow (अस्थि मज्जा) जैसे अंगों को प्रभावित करता है।
कई बार यह soft tissue (कोमल ऊतकों) में भी उत्पन्न हो सकता है।
इसके लक्षणों में local pain (स्थानीय दर्द), सूजन, बुखार, वजन घटना और थकान शामिल है।

5. शास्त्रीय सूक्त और शोध प्रमाण:
चरक संहिता चि. 7/11:
“अस्थिसन्धिश्लेष्मा कफजोsर्बुदो गुरुस्तनुः पच्यते च धीमतः।”
✤ हड्डी व जोड़ों में उत्पन्न कफजन्य अर्बुद भारी, ठोस व धीरे पकने वाला होता है।

✥ रिसर्च सपोर्ट:
A comparative study in Journal of Bone Oncology (2023) में पाया गया कि
Ewing Sarcoma में chronic inflammation, marrow infiltration और mesenchymal cellular proliferation की घटनाएँ
चरक द्वारा वर्णित कफदोष की गत्यात्मकता से मेल खाती हैं।
✥यह शोध दर्शाता है कि आयुर्वेद में बताए गए “कफजन्य अर्बुद” की परिभाषा
आधुनिक हड्डी के कैंसर जैसे यूइंग सार्कोमा के लक्षणों से मेल खाती है।

6. एलोपैथी के अनुसार कारण (Cause):
➤ Chromosomal Translocation t(11;22)(q24;q12):
दो क्रोमोसोम आपस में विनिमय कर लेते हैं जिससे FLI1 और EWSR1 जीन का fusion होता है।
⟴ जीन स्तर पर गलती से दो हिस्से जुड़ जाते हैं और इससे कोशिकाएँ अनियंत्रित होकर कैंसर बनाती हैं।

➤ तेज़ हड्डी की वृद्धि:
विशेषकर किशोरों में bone growth spurt के दौरान यह कैंसर अधिक विकसित होता है।

➤ Radiation Exposure:
कभी-कभी पहले के radiation therapy से कोशिकाओं में बदलाव होकर यह ट्यूमर बन सकता है।

➤ परिवारिक अनुवांशिकता (Genetic Predisposition):
हालाँकि दुर्लभ है, लेकिन कुछ आनुवंशिक syndromes इसमें योगदान करते हैं।

7. एलोपैथी अनुसार शरीर पर प्रभाव:
➤ कैंसर अस्थि को कमजोर कर fracture (हड्डी टूटने) का कारण बनता है।

➤ Soft tissue में फैलकर movement (चलने-फिरने) को बाधित करता है।

➤ Bone marrow में प्रवेश कर anemia (रक्त की कमी), leukopenia (श्वेत रक्त कोशिका की कमी) लाता है।

➤ Lung में metastasis से साँस की तकलीफ़ व छाती में दर्द उत्पन्न करता है।

8. एलोपैथी अनुसार लक्षण:
➤ लगातार बढ़ता दर्द, विशेषकर रात में
➤ सूजन और स्थानिक गर्मी
➤ हल्का बुखार, थकान
➤ भूख कम लगना, वजन घटना
➤ spontaneous fracture (बिना गिरावट हड्डी टूटना)
➤ advanced stage में श्वसन कष्ट, लंग्स मेटास्टेसिस

9. आयुर्वेद के अनुसार हेतु (Cause):
⟴ दोष: मुख्य रूप से कफ और वात

⟴ कारण:
• गुरु, स्निग्ध, अभिष्यंदी आहार
• शारीरिक निष्क्रियता (अवायाम)
• मानसिक चिंता (मनसोद्वेग)
• पूर्व जन्मज (बीजदोष)
• धातुक्षय – विशेषतः अस्थि व मज्जा
• बार-बार की शल्य चिकित्सा या विकिरण प्रभाव

10. संप्राप्ति (Pathogenesis – रोग विस्तार प्रक्रिया):
✤ 1. अग्निमांद्य → आम दोष की उत्पत्ति
✤ 2. आम + कफ → स्थूल, थक्के जैसे गांठ बनाते हैं
✤ 3. वात दोष उनकी गति को तीव्र करता है व गूढ़ स्थानों में प्रवेश कराता है
✤ 4. रक्त व मज्जा धातु दूषित होकर tumor की नींव रखती है
✤ 5. सतत कफ संचय → “अर्बुद” की स्थिरता व वृद्धि

✥ रिसर्च सपोर्ट:
2022 की एक study (Integrative Oncology Journal) के अनुसार,
Ewing Sarcoma में bone marrow stromal environment और chronic inflammation की भूमिका स्पष्ट है –
जो आयुर्वेद में “दूषित मज्जा” और “श्लेष्म संचय” से मेल खाता है।
✥ Ewing Sarcoma की बढ़ती हुई कोशिकाएँ हड्डी व मज्जा को दूषित कर देती हैं,
जिसका वर्णन आयुर्वेदिक ‘अर्बुद’ की संप्राप्ति प्रक्रिया में मिलता है।

11. आयुर्वेद में निदान:
• दोष: वात + कफ
• धातु: अस्थि, मज्जा, रक्त
• सुषुम्ना संचार: मज्जा में प्रवाह
• दारुण शूल, स्तब्धता, गांठ, स्फोट
• रोगनिदान: अर्बुद, मज्जार्बुद, अस्थि रोग

12. एलोपैथी व आयुर्वेद – समानताएँ:
✤ दोनों मानते हैं कि:
1. यह कैंसर गूढ़ अंगों (हड्डी, मज्जा) से उत्पन्न होता है
2. इसकी वृद्धि तीव्र होती है
3. रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) कमजोर होती है
4. early detection + supportive care अनिवार्य है
✤ क्योंकि रोग की प्रकृति complex और system-wide है,

13. ✥ आयुर्वेदिक चिकित्सा दिशा:
⟴ उद्देश्य:
➤ दोषशमन
➤ धातुशुद्धि व पुनर्निर्माण
➤ अर्बुदवृद्धि का नियंत्रण
➤ रोग प्रतिरोधक क्षमता का संवर्धन

⟴ उपाय:
➤ आमपाचन: त्रिकटु, दीपनीय वटी
➤ कफहर व अर्बुदहर: कांचनार, वरुण, पुनर्नवा
➤ मज्जा रसायन: शुद्ध शिलाजतु, गुडूच्यादि
➤ अस्थि रसायन: लाक्षा, अर्जुन, अश्वगंधा
➤ रक्तशुद्धि: नीम, हरिद्रा, मंजिष्ठा
➤ रसायन चिकित्सा: सुवर्ण भस्म, अभ्रक भस्म, हीरक भस्म (कॉम्बिनेशन में )
➤ अनुपान: गिलोय स्वरस, गौ मूत्र अर्क, शतावरी क्षीर
➤ परहेज: खट्टा, भारी, अभिष्यंदी आहार व देर रात जागना
➤ पंचकर्म: लघु बस्ति व रक्तमोक्षण (स्थान अनुसार)
➤ मानसिक शुद्धि: मौन, ध्यान, ब्रह्मचर्य

14. あ याद रहे ↣
✪ यह कैंसर मुख्यतः बच्चों व युवाओं को होता है, हड्डियों व मज्जा पर गहरा असर करता है।
✪ जल्दी पहचान कर आयुर्वेदिक रसायन व शोधन चिकित्सा दी जाए तो बेहतर रिजल्ट मिलते हैं।
✪ कफ-वात दोष मुख्य भूमिका में रहते हैं — अतः कफहर-अग्निवर्धक चिकित्सा अनिवार्य है।
✪ Rasayana therapy की वैज्ञानिक विधियों से रोग की तीव्रता और फैलाव को काफी हद तक रोका जा सकता है।
✪ आयुर्वेद केवल पूरक चिकित्सा नहीं, रोग की मूल वृत्ति पर काम करता है।

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