Diabetic Clinic Raipur

Diabetic Clinic Raipur Diabetologist and family physician

“मैं शिवाजी हूं, जो जब तक धर्म पर संकट न आए, तलवार नहीं उठाता ।” “श्रीमान योगी” — शक्ति, धैर्य और नियति के बीच शिवाजी मह...
21/07/2025

“मैं शिवाजी हूं, जो जब तक धर्म पर संकट न आए, तलवार नहीं उठाता ।”

“श्रीमान योगी” — शक्ति, धैर्य और नियति के बीच शिवाजी महाराज की कथा; रणजीत देसाई की कृति जो मराठी में must-read classic मानी जाती है।


सत्ता अनायास नहीं आती। वह अर्जित होती है — एकांत में, अपमानों के बीच, और अपने ही अपनों की अनिश्चितताओं के साये में। श्रीमान योगी कोई काल्पनिक नायक नहीं, वह एक ऐतिहासिक सच्चाई का नाम है ,शिवाजी महाराज, जिन्होंने अकेले अपने युग के सबसे शक्तिशाली सत्ता केंद्रों -बीजापुर और मुग़ल सल्तनत को चुनौती दी।

पर इस चुनौती की शुरुआत एक तलवार से नहीं हुई। शुरुआत हुई एक माँ की आँखों में बसे एक स्वप्न से।
—-
जीजाबाई ,सत्ता का बीज माँ की गोद में बोया जाता है

जब पुणे के लाल महल में जीजाबाई ने एक बालक को जन्म दिया, किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह बालक मुग़ल साम्राज्य के हृदय में भय भर देगा। लेकिन जीजाबाई जानती थीं। हर शाम जीजाबाई उन्हें रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनातीं , लेकिन केवल युद्ध की नहीं, धर्म, न्याय, सेवा और सच्चाई की कहानियाँ। वो कहतीं “एक दिन तू भी ऐसा राजा बनेगा, जो किसी को डराएगा नहीं, बल्कि जिसकी छाया में लोग सुरक्षित महसूस करेंगे।”

“स्वराज्य कोई कल्पना नहीं है, यह एक ऋण है ,और तुझे इसे चुकाना है।”

ग्रेट हिस्टोरियन रॉबर्ट कैरो बताते हैं “Power doesn’t always corrupt. Power reveals.”
यहाँ, जीजाबाई सत्ता का बीज बोती हैं ,लेकिन यह बीज संस्कृति को उजागर करने के लिए है, भ्रष्ट करने के लिए नहीं।

—-

अफ़ज़लखान , बादशाहत से पहली टक्कर

जब शिवाजी प्रत्यक्ष शक्ति से पहली बार भिड़े, वह सिर्फ शारीरिक टकराव नहीं था ,यह राजनैतिक मानसिकता की टक्कर थी। अफ़ज़लखान केवल एक सेनापति नहीं था । वह एक यंत्र था उस व्यवस्था का जो छोटे राजाओं को समूल नष्ट करने में विश्वास रखती थी।

शिवाजी वहाँ अकेले गए। सिर्फ दो अंगरक्षकों के साथ। वह जानते थे , यह कूटनीति नहीं, जान का सौदा है। लेकिन उन्होंने यह सौदा किया, क्योंकि उन्हें पता था कि एक राजा को कभी कभी अपनी ही शहादत की तैयारी करके सत्ता को चुनौती देनी होती है।

“जब सत्ता छल में बदलती है, तब विवेक ही तलवार होता है।”

यह कैरो की भाषा में कहा जाए तो — This was the moment when a man ceased to be a rebel, and became the axis of power.

—-

आगरा ,जेल नहीं, आत्मबल की प्रयोगशाला

शिवाजी को औरंगज़ेब ने आगरा बुलाया। यह एक शतरंज की चाल थी। एक चाल जिसमें खिलाड़ी को बंदी बनाकर मोहरा बना दिया जाए। और शिवाजी !वे उस चाल में मोहरे की तरह चले, लेकिन राजा की तरह लौटे।

उनका भागना किसी तिलस्म से कम नहीं था। लेकिन देखा जाए तो यह भागना नहीं, पुनर्जन्म था। वहाँ एक सैनिक गया था, लेकिन जब वह महाराष्ट्र लौटा, वह सत्ता का पर्याय बन चुका था।

“एक राजा कैद नहीं होता ,केवल शरीर रोका जा सकता है, संकल्प नहीं।”

यहाँ शिवाजी की सबसे बड़ी जीत तलवार से नहीं, मन के संकल्प से हुई थी। यह वह क्षण था जिसे “the hour of proving” कहते हैं ,जब मनुष्य अपने भीतर की सत्ता से साक्षात्कार करता है।



राज्याभिषेक ,सत्ता को वैधता देना

शिवाजी ने खुद को राज्याभिषेक से कभी बड़ा नहीं माना। लेकिन उन्होंने जाना ,जनता केवल युद्ध से राजा नहीं मानती। सत्ता को प्रतीकों की आवश्यकता होती है।

शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का दृश्य, कोई भव्य आयोजन मात्र नहीं, बल्कि हज़ारों वर्षों की गुलामी के पश्चात जन्मे राष्ट्र गौरव का उद्घोष है।

तो उन्होंने वैदिक रीति से अपना तिलक कराया। यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक घोषणा थी ,कि अब यह सत्ता राजनैतिक नहीं, धर्म और सेवा से जुड़ी है। उन्होंने ताम्रपट्ट और मुद्राएं जारी कीं। मंत्रीमंडल बनाया। कर-संविधान बनाए। यह एक प्रबुद्ध सत्ता-निर्माण था।

“अब यह राज्य मेरा नहीं, प्रजा का है, मैं केवल उसका उत्तरदायी हूँ।”

यह वही क्षण था जो सत्ता को अराजकता से अलग करता है ,वह जहाँ अनुशासन, विधि और न्याय की नींव रखी जाती है।

__

जीवन के अंतिम दिनों में जब शिवाजी महाराज युद्धों से मुक्त होकर अंतर्मुखी हो जाते हैं, तब उनके भीतर एक प्रबुद्ध योगी प्रकट होता है।

वे कर्म के शिखर पर पहुँचकर वैराग्य के सौंदर्य में विलीन हो जाते हैं। वे अपने पुत्र, मंत्रियों और सेनापतियों को बुलाकर धर्म, न्याय और प्रजा के कल्याण का उपदेश देते हैं।

यह परिवर्तन अचानक नहीं था ,यह सत्ता की स्वाभाविक थकान नहीं, उसकी ऊँचाई का बोध था।

एक क्षत्रिय जिसने जीवन भर तलवार चलाई, अब योग में लीन था। और यही कारण था कि रणजीत देसाई ने उन्हें “श्रीमान योगी” कहा ,सत्ता का वह शिखर जो अब आत्म-सत्ता की खोज में था।

“जिसने सब कुछ जीत लिया, अब केवल स्वयं को जीतना शेष है।”

रॉबर्ट कैरो की सबसे प्रसिद्ध पंक्तियों में एक है

“Power doesn’t always corrupt. What it does is that it reveals. It reveals the true character.”

शिवाजी की सत्ता ने यही किया ,उनके भीतर छिपे योगी को उजागर किया।
—-
सत्ता का निर्माण, अपने व्यक्तित्व को समाज में समाहित करके

कैरो कहते हैं - सत्ता का निर्माण केवल बाहरी संघर्ष से नहीं, आंतरिक निर्णयों से होता है।”
“श्रीमान योगी” उसी विचार को भारत की मिट्टी में बोता है।

यह उपन्यास हमें बताता है कि राजा होना आसान है, पर योगी राजा होना ,वह साधना है।
और वह साधना तब पूरी होती है जब सत्ता, सेवा बन जाती है।

“यदि साधक हो तो ऐसा
और
यदि राजा हो तो ऐसा!”

“The Marshmallow Test”स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुए मनोविज्ञान के  मशहूर एक्सपेरिमेंट की कहानी —- मार्शमेलो प्रयोग (Sta...
17/07/2025

“The Marshmallow Test”स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुए मनोविज्ञान के मशहूर एक्सपेरिमेंट की कहानी

—-

मार्शमेलो प्रयोग (Stanford Preschool Experiment)

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्री-स्कूल में 4-5 साल के बच्चों को एक कमरे में बैठाकर उनके सामने मार्शमेलो (मिठाई ) रखी गई।उन्हें बताया गया:

“अगर तुम इसे अभी नहीं खाते और इंतजार करते हो, तो तुम्हें दूसरा मिलेगा।”

फिर मिशेल ने बच्चों के हावभाव देखे -
कुछ बच्चों ने मार्शमेलो को घूरा, कुछ ने खुद को गाना गाकर या आँखें बंद करके रोकने की कोशिश की।
कुछ ने तुरंत खा लिया, कुछ ने जीत हासिल की।

यही प्रयोग बाद में “Delayed Gratification” और “Self-Control” के अध्ययन की नींव बन गया।

—-
20 साल बाद की फॉलो-अप स्टडी (Longitudinal Study)

वाल्टर मिशेल ने सालों बाद उन्हीं बच्चों को ट्रैक किया , और पाया कि जिन बच्चों ने मार्शमेलो खाने में देरी की थी,उनके बाद में स्कूल में बेहतर ग्रेड आये , जीवन में कम तनाव और कम ड्रग्स से जुड़े ,अधिक आत्म-विश्वास और सामाजिक सफलता पाई।

ये वास्तविक जीवन में आत्मनियंत्रण की ताकत का प्रमाण बना।

—-
गोल्डमैन सैक्स के टॉप लीडर की कहानी

मिशेल ने एक बार गोल्डमैन सैक्स के एक वरिष्ठ अधिकारी से पूछा:

“आप कैसे इतने तनाव और तेज़ निर्णयों के बीच आत्म-नियंत्रण बनाए रखते हैं?”
उन्होंने जवाब दिया —
“मैं अपने ‘ट्रिगर’ पहचानता हूँ — और उनसे पहले ही दूरी बना लेता हूँ।”

मिशेल इस प्रसंग से बताते हैं कि आत्मनियंत्रण सिर्फ ‘ना’ कहने की क्षमता नहीं, बल्कि ‘ट्रिगर’ को मैनेज करने की समझ है।

—-
अभिनेत्री Whoopi Goldberg का उदाहरण

मिशेल बताते हैं कि Whoopi Goldberg अपने कठिन बचपन और पढ़ाई में संघर्षों के बावजूद एक सफल कलाकार बनीं।उसका आत्मनियंत्रण, कठिनाइयों को सहने की क्षमता, और देर से मिलने वाले पुरस्कारों के लिए संघर्ष करते रहने की वृत्ति उसे दूसरों से अलग बनाती है।

मिशेल कहते हैं कि ये सब “Cool System” के सक्रिय होने के उदाहरण हैं।

—-
बच्चों की तकनीकें (Children’s Coping Tricks)

बच्चों ने मार्शमेलो से ध्यान हटाने के लिए अजीबो-गरीब तरकीबें अपनाईं। कोई कुर्सी से नीचे झुक गया, किसी ने आँखें बंद कर लीं , एक बच्चे ने खुद से कहा: “ये तो बस बादल जैसा है, असली नहीं”, किसी ने टेबल पीटना शुरू कर दिया।
मिशेल ने इन्हें “Self-distraction” और “Cognitive Reframing” के स्वाभाविक रूप कहा।

—-
आधुनिक डिजिटल युग और Self-Control

मिशेल किताब में कहते हैं कि आज का बच्चा TikTok और YouTube के ज़माने में बड़ा हो रहा है ,
जहाँ हर चीज़ immediate gratification देती है।
इसलिए अब मार्शमेलो टेस्ट सिर्फ एक मीठे व्यंजन का मामला नहीं रहा ,
बल्कि यह एक डिजिटल युद्ध है आत्मनियंत्रण बनाम ध्यान भटकाव का।

उन्होंने माता-पिता और शिक्षकों के लिए सुझाव भी दिए कि बच्चों में कैसे Cool System को विकसित किया जाए।

—-

“Hot-Cool” Model का विस्तार एक CEO के केस से

एक CEO का उदाहरण जो भावनात्मक रूप से बार-बार गुस्से में आ जाता था।
मिशेल ने उन्हें सिखाया —

“अपने Hot buttons को पहचानो, और अपने अंदर से एक ‘Cool Self’ को प्रशिक्षित करो।”

कुछ महीनों के अभ्यास से वह CEO शांत, केंद्रित और अधिक प्रभावशाली लीडर बन गया।

—-
मिशेल के अपने बच्चों का उदाहरण

मिशेल अपने दो बेटियों के पालन-पोषण के उदाहरण भी देते हैं,
जहाँ उन्होंने अपनी रिसर्च को प्रैक्टिकल जीवन में लागू किया —
जैसे TV देखने की चाह को कैसे नियंत्रित किया । उसने कहा होमवर्क पहले करें फिर खेल।

मिशेल कहते हैं:

“Self-control कोई जन्मजात प्रतिभा नहीं, बल्कि सिखाई जाने वाली कला है।”

—-
“Hot vs Cool” — मन का द्वंद्व

वाल्टर मिशेल ने इसे समझाया अपने प्रसिद्ध सिद्धांत से:

Hot System:तात्कालिक लालच, भावना, अस्थिरता,“अभी चाहिए!,मार्शमेलो को देखकर मुँह में पानी आना

Cool System: सोच-समझ, नियंत्रण, कल्पना, “थोड़ा रुक जाऊं, तो ज़्यादा मिलेगा”मार्शमेलो को “सिर्फ एक तकिया” की तरह देखना

जो बच्चे अपने Cool System को सक्रिय कर पाए,
वही आगे चलकर ज़िंदगी की कठिनाइयों में संयम रख सके।

वाल्टर मिशेल ने बताया कि हम सभी अपने Cool System को ट्रेन कर सकते हैं जैसे ध्यान डायवर्ट करके , Reframe करके और “अगर – तब” रणनीति (If–Then Planning) करके । ये तकनीकें बच्चों के साथ-साथ बड़ों के लिए भी बेहद कारगर हैं।

—-

Walter Mischel की “The Marshmallow Test” सिर्फ मनोविज्ञान नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में लागू होने वाली एक शानदार सीख है।

“अगर आप अपने आज के लालच को थोड़ी देर टाल सकते हैं,
तो भविष्य आपको दुगना इनाम देता है।”

Netflix शुरूआत में एक पागलपन भरा विचार था पर आज वो एक पूरी पीढ़ी की आदत बन चुकी है।—-1997 में, जब सभी लोग DVD किराये पर ...
17/07/2025

Netflix शुरूआत में एक पागलपन भरा विचार था पर आज वो एक पूरी पीढ़ी की आदत बन चुकी है।
—-

1997 में, जब सभी लोग DVD किराये पर देने की दुकानों की लंबी कतारों में खड़े थे, दो युवकों ने सोचा -“क्या होगा अगर लोग पोस्ट से DVD मंगवाएँ?”

लोग हँसे: “किराया दुकान से नहीं तो और कहां से लोगे?”
Netflix शुरू हुआ। धीरे-धीरे चला। पर 2007 में उन्होंने एक और “पागल” बात कही“अब DVD नहीं , इंटरनेट से फिल्में देखो।”
Blockbuster जैसी कंपनियाँ हँसी , “ये इंटरनेट….स्लो है, असंभव है, लोग DVD ही चाहते हैं।”पर Netflix ने अपना loonshot जिंदा रखा।
धीरे-धीरे सब बदल गया। आज Blockbuster इतिहास है और Netflix एक पूरी पीढ़ी की आदत बन चुकी है।
—-
साल 1937।
यूरोप में युद्ध की आहट तेज़ हो रही थी। हिटलर के टैंक, जर्मन वायुसेना और बर्फ से ढंके पोलैंड की गलियों में तानाशाही की परछाइयाँ फैलने लगी थीं।
अमेरिका अब भी चुप था , और पुरानी टेक्नॉलॉजी के भरोसे।

वाशिंगटन के एक सरकारी कमरे में, कुछ वैज्ञानिक बैठकर एक अजीबो-गरीब यंत्र पर काम कर रहे थे , एक “रेडार” जिसे न कोई फौजी समझता था, न कोई जनरल।
उसे सबने “पागलपन” कहा -एक Loonshot।

इस पागलपन की अगुवाई कर रहा था एक शांत-चित्त वैज्ञानिक , नाम था Vannevar Bush।वह न कोई राजनेता था, न फौजी, न अरबपति। पर उसमें एक गहरी समझ थी। “जो आज बेवकूफी लगे, वही कल ज़रूरी बन सकता है।” Bush ने वैज्ञानिकों की एक स्वतंत्र टीम बनाई। उन्हें किसी अधिकारी के अधीन नहीं किया गया। उन्हें कहा गया,
“तुम सोचो, हम रक्षा करेंगे।”और जल्द ही, उन्होंने एक ऐसा रडार विकसित किया, जो दुश्मन के विमानों को अंधेरे में भी देख सकता था।उस Loonshot ने WW2 का रुख बदल दिया।
—-
Apple vs Nokia

Nokia ने 2007 तक मोबाइल की दुनिया पर राज किया।
फिर आया Steve Jobs का iPhone ।
एक “touch screen only” डिवाइस जिसे सबने “बेवकूफी” कहा।
पर वह Loonshot था।

Apple ने उस पागलपन को पनपने दिया।
Nokia ने अपने Soldiers को सब सौंप रखा था।
पर Soldiers बदलाव से डरते हैं।

नतीजा हुआ कि Nokia ढह गयाApple राजा बन गया।

—-
Loonshot की परिभाषा में Bahcall कहते हैं-

“Loonshots are not ideas that are merely new. They are ideas that are dismissed, mocked, and rejected — until they win.”

वे विचार जो दिखते बेवकूफाना हैं
पर असल में होते हैं क्रांतिकारी।

—-
पर क्या हर पागलपन ज़रूरी है?नहीं।
Safi कहते हैं — हर पागलपन को तुरंत अपनाना भी मूर्खता है।
ज़रूरत है एक संरचना (structure) की, जहाँ हम test कर सकें कि क्या यह आइडिया सच में काबिल है, या फिर यह सिर्फ सनक है।

इसलिए Bahcall विज्ञान से एक रूपक लाते हैं:
पानी से बर्फ बनने की प्रक्रिया (phase transition)।टीमें भी ऐसे ही बदलती हैं ।सही तापमान पर, विचार जमते नहीं ,फूलते हैं।

—-

1990 के दशक की शुरुआत में, एक युवा वैज्ञानिक Dr. Brian Druker ने एक पागल सा सुझाव दिया:
“क्या हम कैंसर का इलाज बम गिराने की तरह नहीं, बल्कि स्नाइपर की तरह कर सकते हैं?”
यानी, सिर्फ कैंसर कोशिकाओं पर हमला , बाकी शरीर को बिना नुकसान पहुँचाये ।

उद्योग जगत ने कहा: “नामुमकिन है!”
डॉक्टरों ने कहा: “अच्छा सपना है, पर बहुत महंगा।”
फार्मा कंपनियों ने कहा: “कोई खरीदेगा नहीं।”

पर Druker ने हार नहीं मानी।
कई सालों की मेहनत के बाद, Gleevec नाम की दवा बनी ,जो सिर्फ कैंसर की जड़ पर वार करती थी, बिना पूरे शरीर को तोड़े।

Gleevec को FDA ने 2001 में अप्रूव किया , और यह आज भी ल्यूकीमिया (ब्लड कैंसर) के इलाज की सबसे सुरक्षित और प्रभावी दवा मानी जाती है।

पागलपन भरे विचार ने लाखों जिंदगियाँ बचाईं।
—-

कलाकार और सिपाही की लड़ाई Loonshot किताब का एक कांसेप्ट है।

Safi Bahcall कहते हैं कि हर संस्था में दो तरह के लोग होते हैं।

एक हैं Artist (कलाकार) ,जो पागलपन के विचार लाता है।
दूसरे हैं Soldier (सिपाही) , जो सिस्टम को सुरक्षित और टिकाऊ रखता है।

जब भी कोई कलाकार कुछ नया करता है, सिपाही डरता है , “ये सिस्टम बिगाड़ देगा।”और जब सिपाही कड़ी नज़र रखता है, तो कलाकार घबरा जाता है , “मुझे रोका जा रहा है।”

Bahcall की बेशक़ीमती सीख है,
इन्हें अलग करो, पर इज्जत बराबर दो।ये दोनों मिलकर ही संस्था को जिंदा रखते हैं।


जब अगली बार कोई तुम्हारे विचार पर हँसे
तो मुस्कुरा देना, और Safi Bahcall की ये पंक्तियाँ याद कर लेना:

“Big ideas are born small. And they sound crazy… until they don’t.”

अहमदाबाद प्लेन क्रैश से बड़ा हादसा 1986 में अमेरिका में हुआ था (चैलेंजर त्रासदी और रिचर्ड फेनमैन) जिसकी सच्चाई बर्फ़ से ...
17/07/2025

अहमदाबाद प्लेन क्रैश से बड़ा हादसा 1986 में अमेरिका में हुआ था (चैलेंजर त्रासदी और रिचर्ड फेनमैन) जिसकी सच्चाई बर्फ़ से भरे पानी से उभरकर सामने आई

—-
एक स्वप्निल उड़ान की त्रासद परिणति

28 जनवरी 1986 की सुबह अमेरिका के लिए एक गर्व और उत्साह का क्षण था।
NASA का अंतरिक्ष यान चैलेंजर (Challenger) इतिहास रचने जा रहा था ,पहली बार कोई स्कूल शिक्षिका, क्रिस्टा मैकऑलिफ़, अंतरिक्ष में जा रही थीं।लाखों लोग टीवी स्क्रीन पर टकटकी लगाए बैठे थे।लेकिन उड़ान के मात्र 73 सेकंड बाद, सब कुछ अचानक बदल गया।
आकाश में एक विस्फोट हुआ। चैलेंजर यान हवा में ही बिखर गया।सातों यात्री मौत की आग में समा गए। पुरा देश शोक में डूब गया , और सवाल उठने लगे।

—-
एक अदृश्य फाल्ट , जिसकी आहट पहले से थी

इस भयावह दुर्घटना के पीछे जो तकनीकी कारण था, वह बहुत बड़ा नहीं था ,बल्कि कुछ मिलीमीटर चौड़ी रबर की एक O‑ring थी।यह O‑ring Solid Rocket Booster के दो हिस्सों के जोड़ को सील करने का काम करती थी ताकि ईंधन का दाब सुरक्षित रहे।NASA के लिए SRB (Solid Rocket Boosters) सप्लाई करने वाली कंपनी Morton Thiokol के इंजीनियर, विशेषतः रॉजर बॉइसजॉली (Roger Boisjoly), महीनों से यह चेतावनी दे रहे थे कि O‑ring बेहद ठंड के मौसम में लचीलापन खो देती है और ठीक से सील नहीं करती।

लॉन्च से एक दिन पहले, 27 जनवरी 1986 को, Thiokol और NASA अधिकारियों के बीच एक कांफ्रेंस कॉल हुई।
Boisjoly और अन्य इंजीनियरों ने स्पष्ट रूप से कहा:

“तापमान बहुत कम है। हम इसकी गारंटी नहीं दे सकते कि O‑rings सही से काम करेंगे। यह seal failure का सीधा खतरा है।”

NASA के कुछ अधिकारियों ने इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया।Thiokol के प्रबंधन पर भारी दबाव पड़ा , और अंततः इंजीनियरों की राय को दरकिनार करते हुए लॉन्च को हरी झंडी दे दी गई।

—-

दुर्घटना के बादसरकार ने एक उच्च स्तरीय आयोग गठित किया: Rogers Commission।इसमें राजनेता, इंजीनियर, सेना प्रमुख, और एक वैज्ञानिक भी शामिल थे ,रिचर्ड फेनमैन, नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी।
फेनमैन का नाम इस आयोग में “सामान्य विज्ञान प्रतिनिधि” के रूप में जोड़ा गया था,लेकिन वे जांच में सिर्फ प्रतिनिधि नहीं बने ,बल्कि सच की आवाज़ बन गए।

फेनमैन ने आयोग के भीतर रहते हुए पूरी स्वतंत्रता से तथ्यों की जांच की।
उन्हें Thiokol के कुछ इंजीनियरों से निजी रूप से O‑ring की खामी की जानकारी मिली।लेकिन आयोग की आधिकारिक सुनवाई में यह बात खुलकर सामने नहीं आ रही थी।

फिर एक दिन,NASA की सुनवाई में, सैकड़ों कैमरों और अफसरों के सामने,
एक अत्यंत साधारण लेकिन प्रभावशाली प्रयोग हुआ।

फेनमैन ने NASA की सुनवाई के दौरान एक O‑ring मंगवाया।उसके सामने ही एक गिलास बर्फ़ का पानी रखा गया।
उन्होंने O‑ring को उस ठंडे पानी में डुबो दिया।कुछ मिनटों बाद उसे बाहर निकाला , रबर अब कठोर हो चुका था, अपनी लचीलापन खो बैठा था।

पूरा हाल स्तब्ध रह गया।

फेनमैन बोले:

“यह वही हुआ होगा चैलेंजर में।
रबर की सील ने काम करना बंद कर दिया।
ईंधन ने रास्ता खोज लिया। और चैलेंजर बिखर गया।”

“Gentlemen, I believe this is the root of the problem.”
– Richard Feynman, hearing room

पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया।
NASA के अधिकारियों को अहसास हुआ कि उनकी प्रबंधन त्रुटि और टेक्नोलॉजी की लापरवाही ने 7 जानें ले लीं।

—-

जब एक वैज्ञानिक नैतिकता को आवाज़ देता है

आयोग की अंतिम रिपोर्ट में NASA की तकनीकी खामियों और निर्णय प्रक्रियाओं की आलोचना की गई।लेकिन फेनमैन ने इससे एक क़दम आगे जाकर अपना व्यक्तिगत परिशिष्ट (appendix) जोड़ा।

इसमें उन्होंने लिखा:

“For a successful technology, reality must take precedence over public relations, for nature cannot be fooled.”
(सफल तकनीक के लिए वास्तविकता को प्रचार से ऊपर रखना होगा , क्योंकि प्रकृति को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।)

यह वाक्य विज्ञान के इतिहास में एक नैतिक घोषवाक्य बन गया।

—-
यह त्रासदी तकनीकी से अधिक प्रबंधन की विफलता थी।
Boisjoly की चेतावनी सही थी, लेकिन उसे समय पर सुना नहीं गया।
फेनमैन ने वैज्ञानिक ईमानदारी का उदाहरण बनकर दिखाया ,कि विज्ञान केवल ज्ञान नहीं, साहस भी है।

NASA ने चुप्पी ओढ़ी, सिस्टम ने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा,लेकिन एक वैज्ञानिक ने अपने ठंडे पानी के प्रयोग से सबको सच्चाई का आईना दिखाया ।

—-
चैलेंजर त्रासदी एक दुखद घटना भर नहीं, बल्कि एक अनसुनी चेतावनी की कीमत है।
यह कहानी हमें याद दिलाती है कि ,
जब विज्ञान को प्रचार से छोटा बना दिया जाता है, तब सच्चाई खुद को विस्फोट से प्रकट करती है।

रिचर्ड फेनमैन का वह गिलास
जिसमें उन्होंने O‑ring डुबोई थी ,वह किसी प्रयोगशाला से ज़्यादा, एक अदालत था,जहाँ सच्चाई ने अपना गवाही दी।

Intelligence – क्या केवल सोचने की क्षमता है?  Max Bennett की  “The History of Intelligence” बुद्धिमत्ता को एक क्रमिक जैव...
16/07/2025

Intelligence – क्या केवल सोचने की क्षमता है? Max Bennett की “The History of Intelligence” बुद्धिमत्ता को एक क्रमिक जैविक और तकनीकी विकास यात्रा के रूप में देखती है , जहाँ बुद्धि की उत्पत्ति कोशिकाओं से शुरू होकर AI जैसे आधुनिक सिस्टम तक पहुँचती है।

जबकि भारतीय दर्शन, विशेष रूप से योग, वेदांत, बौद्ध और सांख्य परंपराएँ, बुद्धिमत्ता को मात्र तर्क या समस्या समाधान की क्षमता नहीं मानतीं,
बल्कि एक आंतरिक चेतना की परिपक्वता, विवेक और आत्मबोध की ओर अग्रसर शक्ति मानती हैं।
—-
Max Bennett की दृष्टि: बुद्धिमत्ता एक जैविक से कृत्रिम विकास की यात्रा

Max Bennett बुद्धिमत्ता को पाँच युगों में विभाजित करते हैं ।
1. Biological 2. Brain 3. Cultural 4. Technological
5. Artificial Intelligence

जैविक बुद्धिमत्ता, मस्तिष्कीय बुद्धिमत्ता, सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता, तकनीकी बुद्धिमत्ता और अंततः कृत्रिम बुद्धिमत्ता।
पहले चरण में, सरल जीवों ने बाहरी संकेतों को पढ़ने और प्रतिक्रिया देने की क्षमता विकसित की।
मस्तिष्क के विकास के साथ यह क्षमता और परिष्कृत हुई, जहाँ स्मृति, भाषा, योजना और कल्पना जैसे गुण उत्पन्न हुए। सांस्कृतिक युग में मनुष्य ने ज्ञान को भाषा, शिलालेख, ग्रंथ और परंपरा के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी संचित करना सीखा।

फिर तकनीकी युग आया, जिसमें कम्प्यूटर, एल्गोरिद्म, और इंटरनेट जैसे माध्यमों से बुद्धिमत्ता को शरीर से बाहर स्थानांतरित किया गया।
और अंततः, हम उस युग में हैं जहाँ कृत्रिम प्रणालियाँ ,जैसे GPT या autonomous systems ,अब स्वयं सीखने और निर्णय लेने में सक्षम हो रही हैं।

बेनेट के अनुसार, बुद्धिमत्ता कोई एक गुण नहीं है, बल्कि प्रक्रियाओं का समूह है याने सीखने की क्षमता, अनुभवों से संशोधन, और भविष्य का पूर्वानुमान। यह एक मापी जा सकने वाली प्रक्रिया है, जो जैविक सीमाओं को पार कर अब कृत्रिम संरचनाओं में प्रवेश कर रही है।उनके अनुसार, बुद्धि वह है, जो पर्यावरण के प्रति प्रतिक्रिया देती है। सीखती है, याद रखती है, अनुकूलन करती है और अब जैविक सीमाओं से परे मशीनों तक पहुँच रही है।



बुद्धि = समस्या सुलझाने की क्षमता + अनुकूलनशील स्मृति + भविष्यवाणी
(Problem-solving + learning + prediction)

—-
भारतीय दर्शन परंपरा में बुद्धि एक आंतरिक सूक्ष्म तत्व है।

भारतीय दर्शन में बुद्धि एक तत्व (tattva) है ,ना कि केवल मानसिक क्रिया।

सांख्य दर्शन कहता है:

“बुद्धिर्निश्चयात्मिका”
बुद्धि वह है जो निश्चय करती है — पर उससे ऊपर अहंकार और उससे ऊपर पुरुष (चेतना) है।

भगवद्गीता (अध्याय 2, श्लोक 50):

“योगः कर्मसु कौशलम्”
— बुद्धिमत्ता केवल तर्क नहीं, सही कर्म का कौशल है।

बुद्धि = विवेक + आंतरिक शुद्धता + साधना से प्रकाशित चेतना

यहाँ बुद्धिमत्ता का स्वरूप केवल विश्लेषण नहीं, विवेकपूर्ण समझ है। वह जो हमें सही निर्णय की ओर ले जाए, जो इंद्रिय-भोग से ऊपर उठकर चित्त की शुद्धि और आत्म-प्रकाश की दिशा में चले। आत्मबोध की ओर बढ़ने वाली विवेकयुक्त चेतना ही भारतीय संदर्भ में “बुद्धि” है।

—-
भारत की सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता के ऐतिहासिक उदाहरण

भारतीय परंपरा में बुद्धिमत्ता केवल विश्वविद्यालयों या ग्रंथों में नहीं, जनजीवन में भी बसी थी।
जैसे ,एक किसान जो नक्षत्र देखकर फसलें बोता था, वह प्रकृति और गणना की सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता का वाहक था।
गांधीजी का चरखा एक प्रतीक था , एक ऐसा लूनशॉट जो राजनैतिक स्वतंत्रता को सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता से जोड़ता था।
नाट्यशास्त्र में “रसबुद्धि” दर्शकों की भावनाओं को जाग्रत करती थी , यह भी एक गहराई से अनुभव की गई बुद्धि थी।

यह सब इस बात को सिद्ध करता है कि भारत में बुद्धि का तात्पर्य भावना, करुणा, स्मृति और विवेक का संयोजन था , केवल संज्ञानात्मक प्रक्रिया नहीं।

—-

AI के संदर्भ में Bennett और भारतीय दृष्टि

Bennett का मानना है कि Artificial Intelligence अब हमारी बुद्धि का प्रतिबिंब नहीं, बल्कि एक “Alien Intelligence” बन रही है , जो अपने निर्णय और समाधान में मानवीय सीमाओं से परे जा सकती है। यह मशीनें हमारी तरह नहीं सोचतीं , परंतु प्रभावी निर्णय लेती हैं।

भारतीय दृष्टिकोण, हालांकि, इसे चेतना नहीं मानता। बुद्धि, चाहे कितनी भी प्रौद्योगिक रूप से विकसित क्यों न हो ,यदि उसमें “स्व” की अनुभूति नहीं है, तो वह केवल “निष्प्राण कुशलता” है। आत्मा, मन और बुद्धि के पार जाने वाला अनुभव ही चेतना कहलाता है , जो किसी मशीन में न संभव है, न इच्छित।

—-

Max Bennett की किताब हमें आधुनिक बुद्धिमत्ता के विकास और उपकरणों को समझने में मदद देती है।
भारतीय दर्शन हमें सिखाता है कि बुद्धि का उपयोग कैसे किया जाए , और किसके लिए किया जाए।
—-
एक हमें सोचना सिखाता है,दूसरा हमें सोचने के पार जाना सिखाता है।

जैसे ही तलवार उठी, शत्रु वार करने ही वाला था।पर सामने कोई नहीं था , ना वह योद्धा, ना उसकी मुद्रा, ना उसकी चाल।शत्रु की त...
16/07/2025

जैसे ही तलवार उठी, शत्रु वार करने ही वाला था।
पर सामने कोई नहीं था , ना वह योद्धा, ना उसकी मुद्रा, ना उसकी चाल।
शत्रु की तलवार हवा में गिरी, और वह खुद असंतुलित होकर गिर पड़ा।
रूपहीन योद्धा ने युद्ध जीत लिया ,बिना एक भी वार किए।
यह कोई रहस्य कथा नहीं, बल्कि पावर ला है , “Assume Formlessness”, रूपहीन बनो। (Robert Greene की Law 48 ,Assume Formlessness पर की दिलचस्प story )
—-
Assume Formlessness ,रूपहीन बनो

“By taking a shape, by having a visible plan, you open yourself to attack. Instead, be fluid, adaptable, and elusive.”
– Robert Greene

जब तुम कोई तय “रूप” लेते हो ,आदत, सिद्धांत, पहचान, या तरीका ,
तुम प्रिडिक्टेबल बन जाते हो।
और पावर की दुनिया में जो पढ़ा जा सकता है, वो मिटाया जा सकता है।

—-

“Water is formless… and that’s its power”

रॉबर्ट ग्रीन इस सिद्धांत में ताओवाद, सुन त्ज़ु, और ब्रूस ली के विचारों को मिलाते हैं।
ब्रूस ली ने कहा था - “Be like water, my friend.”
पानी कभी भी एक ही आकार में नहीं रहता। वह बर्तन के अनुसार ढल जाता है ,पर अपना सार नहीं छोड़ता।

—-
नेपोलियन बोनापार्ट

नेपोलियन ने अपने युद्ध कौशल में कभी एक रणनीति पर अडिग नहीं रहा।
वह हर युद्ध को नए तरह से लड़ता था।
जहाँ दूसरे सेनापति “शैली” से बंधे रहते थे, वहाँ नेपोलियन शैलीहीन था , रूपहीन।

नतीजा ये था कि वह हमेशा अप्रत्याशित और खतरनाक बना रहा ,जब तक कि वह खुद अपनी ही “महत्वाकांक्षा” का रूप नहीं ले बैठा।

—-

माइकल कोरलेओने (The Godfather)

डॉन विटो कोरलेओने की मृत्यु के बाद, सभी दुश्मन सोचने लगे कि अब माइकल कमजोर होगा।
पर माइकल ने न कोई रोष दिखाया, न बदला लेने की जल्दी।
वह शांत रहा, मंद मुस्कुराता रहा,
और फिर अचानक, एक ही रात में अपने सभी दुश्मनों को ख़त्म कर दिया।

यही पावर सीक्रेट है , ध्यान भटकाओ, प्रिडिक्टेबल मत बनो , और समय आने पर वार करो।



यह पावर ला इसलिए सबसे ज्यादा पावरफुल है क्योंकि पैटर्न सीमाएं बनाता है, फल्युडिटी संभावनाएं।जो देखा जा सकता है, उसकी भविष्यवाणी की जा सकती है। जो बदलता रहता है, उसे पकड़ना मुश्किल होता है।और जो स्पष्ट नहीं, वही सबसे डरावना है।

—-

पालिटिक्स , बिज़नेस , और निजी जीवन में उपयोग में फार्मलेसनेस कैसे मदद करती है?
पालिटिक्स में विरोधियों को अनुमान न लगाने देना, बिज़नेस में एक ही मॉडल पर निर्भर न रहना (Netflix → DVD से Streaming) , निजी संबंधो में अत्यधिक predictable होना अक्सर बोरियत या धोखा लाता है, व्यक्तिगत विकास में खुद को किसी एक विचारधारा में सीमित न रखना।
—-

Assume Formlessness के मायने

रूपहीनता ( Formlessness) का अर्थ “शून्यता” नहीं है , बल्कि यह “सजग लचीलापन” है।

यह वैसा ही है जैसे योगी ध्यानस्थ है, वह शांत है, लेकिन अगर तूफान भी आए तो
वह अपना संतुलन नहीं खोता , क्योंकि वह किसी “स्थिति” से चिपका नहीं है।
—-

यह रॉबर्ट ग्रीन के पावर ला का सबसे लास्ट ला है।
“ऐसा बनो जिसे जाओ वह जिसे डिफाईन न किया जा सके।”
अपने को पर तय मत होने दो ।ठहरो नहीं। बनो ,रूपहीन।
—-
“Fixation is death. Fluidity is life.”
— Robert Greene, The 48 Laws of Power

तुलसीदास: जन-मानस के पुनर्निर्माताबनारस की संकरी गलियों में एक वृद्ध ब्राह्मण, आंखें मूँदे, रामनाम का जाप करता हुआ गंगा ...
16/07/2025

तुलसीदास: जन-मानस के पुनर्निर्माता

बनारस की संकरी गलियों में एक वृद्ध ब्राह्मण, आंखें मूँदे, रामनाम का जाप करता हुआ गंगा की ओर बढ़ रहा था। वह न तो दरबार का कवि था, न ही उसे शाही इनामों की चाह थी। पर उस साधारण सी देह में एक असाधारण प्रतिभा का प्रकाश था —जिसका नाम था तुलसीदास।

और ठीक इसी आत्मा को समझने का बीड़ा उठाया हिंदी के पहले आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने। उनकी प्रसिद्ध रचना “गोस्वामी तुलसीदास” केवल एक जीवनी नहीं, बल्कि हिंदी साहित्य के सौंदर्य की पुनर्खोज है।

—-
तुलसीदास और उनका समय

रामचंद्र शुक्ल इस बात को लेकर सजग थे कि तुलसीदास को समझने के लिए हमें उनके युग को समझना होगा। 16वीं शताब्दी — एक समय जब भारत बार-बार की लूट, आक्रांताओं के शासन और सांस्कृतिक विघटन से जूझ रहा था। ब्राह्मण और शूद्र के बीच खाई थी, स्त्रियों की स्थिति दयनीय थी, और धर्म केवल कर्मकांड में सिमट कर रह गया था।

ऐसे में, शुक्ल जी तुलसीदास को उस दीपशिखा के रूप में देखते हैं, जिन्होंने जनता की गहन छाया में प्रेम, भक्ति, नीति और आत्मबल की ज्योति जलाई। उन्होंने तुलसी को “भारत की भीतरी एकता का पुनरुद्धारक” कहा।

—-
एक प्रसंग

रामचरितमानस के आरंभिक प्रसंग को पढ़ते हुए शुक्ल जी लिखते हैं कि तुलसीदास ने अपने राम को “ लोक नायक राजा” के रूप में प्रस्तुत किया—न कि केवल एक युद्धवीर या भगवानी अवतार के रूप में। तुलसी का राम न्यायप्रिय, प्रजावत्सल और त्यागमूर्ति है।
एक बार एक पंडित ने शुक्ल जी से पूछा — “क्या तुलसीदास इतिहास लिख रहे थे?”
शुक्ल जी ने मुस्कराकर उत्तर दिया —

“नहीं, वे इतिहास नहीं लिख रहे थे, वे हृदय की सभ्यता लिख रहे थे। राम उनके लिए एक ऐतिहासिक पात्र नहीं, बल्कि एक संस्कृति का आदर्श केंद्र है।”

—-
शब्दों की सरिता में बहता है तुलसी का मन

शुक्ल जी तुलसीदास की भाषा की सरलता, सूक्ति-गर्भिता और प्रवाह को अद्भुत मानते हैं। वे कहते हैं कि तुलसी ने “मनुष्य के चित्त की सारी अवस्थाओं को चौपाइयों में पिरो दिया”।
विनयपत्रिका में एक दोहा आता है—

“बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।”

शुक्ल जी इसे उद्धृत करते हुए कहते हैं कि यह दोहा हिंदी मानस की वह कुंजी है जिससे भक्ति और बुद्धि के द्वार एक साथ खुलते हैं।

धर्म और समाज के शिल्पकार, तुलसीदास

शुक्ल जी तुलसी को केवल भक्ति के कवि नहीं मानते। वे कहते हैं कि तुलसीदास ने धर्म को लोकधर्म बनाया, और नीति को लोकजीवन में उतारा। उनके राम केवल अयोध्या के राजा नहीं, हर किसान, कुम्हार, लोहार , ग्वालिन के भीतर जीवन के सत्य बनकर उभरते हैं।

“जहाँ-जहाँ तुलसी के चरण पड़े, वहाँ-वहाँ भारतीय आत्मा की पुनर्रचना हुई।”

—-
एक रोचक प्रसंग

एक बार काशी नागरी प्रचारिणी सभा में शुक्ल जी का व्याख्यान चल रहा था। उन्होंने कहा—

“भक्ति यदि केवल विलाप है, तो वह आधा सत्य है। तुलसीदास ने भक्ति को कर्म में, नीति में और समाज सुधार में परिणत किया। वे एक क्रांतिकारी भक्त थे।”

सभा में बैठे एक युवा छात्र ने चौंक कर पूछा —
“क्या भक्ति और क्रांति एक साथ हो सकती है?”
शुक्ल जी ने उत्तर दिया —

“तुलसीदास ने कर के दिखाया।”

—-
काव्य और कर्तव्य का समन्वय

शुक्ल जी की यह कृति एक अर्थ में कविता और कर्तव्य के द्वंद्व को सुलझाने की कोशिश है। वे तुलसीदास को उस सेतु के रूप में स्थापित करते हैं जो आध्यात्मिकता और जनसंघर्ष, दोनों को जोड़ता है।

उनकी लेखनी तुलसी के व्यक्तित्व को एक ऐसी लौ की तरह चित्रित करती है जो युगों तक जलती रहेगी—और जिसकी छाया में जन-मानस को आत्मबल मिलेगा।

—-

“गोस्वामी तुलसीदास” एक आलोचना मात्र नहीं, बल्कि भारतीय चेतना का जीवनवृत्त है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने तुलसी के माध्यम से यह दिखाया कि एक कवि केवल छंद नहीं रचता, वह युग की लोक चेतना को भाषा देता है।

जब एक इंजेक्शन बन गया ग्लैमर वर्ल्ड का फिटनेस कल्ट : Mounjaro (Tirzepatide) सेलिब्रिटी सौंदर्य, बॉडी पॉलिटिक्स और मेडिकल...
15/07/2025

जब एक इंजेक्शन बन गया ग्लैमर वर्ल्ड का फिटनेस कल्ट : Mounjaro (Tirzepatide) सेलिब्रिटी सौंदर्य, बॉडी पॉलिटिक्स और मेडिकल साइंस का फ्यूजन
—-
न्यूयॉर्क फैशन वीक की तैयारियों के बीच, एक मशहूर अभिनेत्री ने शूट से पहले अपने न्यूट्रिशनिस्ट से पूछा —
“Is it time for my Mounjaro shot?”
उसका स्टाइलिस्ट चुपचाप मुस्कराया, मानो किसी रहस्य को साझा किया हो।

अब फिटनेस का मतलब सिर्फ डाइट या जिम नहीं, बल्कि एक इंजेक्शन हो गया है , जो कैमरे के सामने परफेक्ट दिखने के लिए सीक्रेट की तरह प्रयोग हो रहा है। यही है Mounjaro (Tirzepatide)का वो रूप, जिसने मेडिकल साइंस से निकलकर सेलिब्रिटी संस्कृति में कल्ट का रूप ले लिया है।
—-
विज्ञान के गर्भ से निकला ग्लैमर का ब्रह्मास्त्र

Mounjaro असल में एक मेडिकल चमत्कार है। यह Tirzepatide नामक दवा का ब्रांड है, जिसे मूलतः टाइप‑2 मधुमेह के इलाज के लिए विकसित किया गया था।
इसकी खूबी है इसका ड्युअल हार्मोन क्रिया-तंत्र ,यह शरीर में GIP और GLP-1 नामक दो प्राकृतिक हार्मोन को सक्रिय करता है।

इसके प्रभाव में भूख अपने आप कम हो जाती है, भोजन की गति धीमी हो जाती है,शरीर इन्सुलिन को बेहतर ढंग से उपयोग करता है,और वज़न तेज़ी से कम होता है।

क्लिनिकल ट्रायल्स में इस दवा ने 20% तक वजन घटाने के प्रभाव दिखाए , जो इसे आज के युग की सबसे प्रभावी वजन-नियंत्रण औषधियों में बदल देता है।

—-

फैशन, फिल्म और फिटनेस की दुनिया में Mounjaro की लोकप्रियता

हॉलीवुड और बॉलीवुड के फिटनेस एक्सपर्ट्स अब इसे Red Carpet Secret कहने लगे हैं।
फैशन डिज़ाइनर्स और मेकअप आर्टिस्ट्स इसे “last-minute fix” की तरह देख रहे हैं ,एक ऐसा उपाय जो बिना समय गंवाए lean और camera-ready body देता है।

सोशल मीडिया ने इसे और तेज़ी से फैलाया है ।TikTok पर ट्रेंड में है।YouTube व्लॉगर्स “Week 3 Transformation” जैसी वीडियो पोस्ट कर रहे हैं।इंस्टाग्राम पर मॉडल्स “Before-After” पोस्ट डाल रही हैं , जिनमें caption होता है:
“No surgery, no starvation. Just science.”

—-

एक फिटनेस “कल्ट” कैसे बनता है?

Mounjaro की लोकप्रियता सिर्फ असरदार होने से नहीं फैली, बल्कि उसके प्रस्तुतीकरण ने पहले उसे एक संस्कृति और फिर कल्ट बना दिया।

यह इंजेक्शन , त्वरित परिणाम देता है — बिना सर्जरी या crash diets के। सेलिब्रिटी सर्किट में चुपचाप फैलाया गया जिससे सीक्रेट बना। यह Biohacking, Precision Wellness, Smart Slimming जैसे शब्दों के साथ प्रचारित हुआ।
“Modern Yoga in a Vial” जैसी बातों ने इसे एक प्रतीक बना दिया , न सिर्फ स्वास्थ्य का, बल्कि बुद्धिमत्ता और आधुनिकता का भी। धीरे-धीरे यह इंजेक्शन केवल इलाज नहीं, जीवनशैली का बयान बन गया।

—-

पर क्या यह नई दवा वास्तव में उतनी सेफ है जितनी ग्लैमर जगत दिखाता है?

असल में, Mounjaro मूलतः मधुमेह के लिए बनी दवा है, और इसके कुछ संभावित दुष्प्रभाव भी हैं जैसे मतली, उल्टी, कब्ज, पैंक्रियाटाइटिस जैसी जटिलताएँ और थायरॉयड ट्यूमर का संभावित जोखिम

साथ ही, इसका उपयोग अब ग्लैमर प्रेशर से प्रेरित होकर किशोरों, युवाओं और सोशल मीडिया प्रभावित दर्शकों में भी हो रहा है , जहाँ शरीर एक ‘कैलिब्रेटेड वस्तु’ बन चुका है, जिसे एक इंजेक्शन से संवारना आसान लगता है।



Mounjaro आज एक इंजेक्शन नहीं, बल्कि शरीर, सौंदर्य और सफलता के ट्रायंगल में जुड़ा एक Cult idea बन चुका है।
वो विचार कि “स्लिम रहो, तभी चमको” — और अब यह विचार दवा की सुई के ज़रिए हकीकत बन रहा है।

“शरीर जब बाज़ार का प्रोडक्ट बन जाए, तब मेडिकल साइंस भी उसके विज्ञापन का माध्यम बन जाता है।”

( नोट - यह लेख चिकित्सकीय सलाह नहीं है ।)

“नाटक वह स्थान है जहाँ मनुष्य देवता बनता है — और देवता मनुष्य के भीतर उतरता है।”(नाटक की संस्कृति, चारुचंद्रलेख)—-“कालिद...
15/07/2025

“नाटक वह स्थान है जहाँ मनुष्य देवता बनता है — और देवता मनुष्य के भीतर उतरता है।”
(नाटक की संस्कृति, चारुचंद्रलेख)
—-

“कालिदास ने नाटक को पूजा बना दिया — और यह पूजा न रंगमंच पर दीपक की थी, न पात्रों के संवाद की। यह पूजा थी मनुष्य के हृदय की।”

जब अभिज्ञानशाकुंतलम् में शकुंतला की विदाई होती है, तब वह एक दृश्य नहीं, एक सांस्कृतिक विदागीत बन जाता है।
पेड़ झुकते हैं, पक्षी मौन होते हैं, और हवाओं में भीगता हुआ संवाद चलता है —

“यह केवल शकुंतला की विदाई नहीं है, यह भारत की कोमलता, करुणा और विस्मृति के रहस्य का अभिनय है।”
(हिंदी साहित्य की भूमिका)


जब हम भारतीय नाट्य परंपरा की बात करते हैं, तो वह केवल मंच पर चलने वाले संवादों की व्यवस्था नहीं होती, वह एक सभ्यता का सांस्कृतिक प्रतिबिंब होती है।

भारतीय नाटक, केवल दृश्य-रचना नहीं, एक जीवित अनुभूति हैं। भारतीय नाटककार जब किसी पात्र को मंच पर लाता है, तो वह केवल चरित्र नहीं लाता , वह समूची संस्कृति की भावना को सजीव कर देता है।
—-
“भारतीय नाटक में रस की प्रधानता है, घटनाओं की नहीं।”

“यहाँ नायक का उद्देश्य संसार को बदलना नहीं, अपने भीतर के संसार को समझना होता है।”
(संदर्भ: हिंदी साहित्य की भूमिका)



“कालिदास के नाटक केवल अभिनय नहीं, अनुभूति की कलात्मक पुनर्रचना हैं।”

“शाकुंतल का वियोग केवल दुष्यंत का विस्मरण नहीं, यह स्मृति और करुणा के बीच झूलती हुई आत्मा का सौंदर्य है।”
(संदर्भ: कालिदास और भारतीय नाट्य परंपरा, लेख-संग्रह)


“भारतीय नाटक में प्रकृति भी एक पात्र होती है।”

“कालिदास जब उर्वशी को मंच पर लाते हैं, तो उसे आकाश से नहीं लाते — वह ऋतुओं, फूलों और हवाओं की छाया बनकर आती है।”
(संदर्भ: चारु चंद्रलेख)

“नाटक वह स्थान है जहाँ मनुष्य देवता बनता है — और देवता मनुष्य के भीतर उतरता है।”

“संस्कृत नाटक में संघर्ष नहीं, संधान होता है। पात्र टूटते नहीं, वे रस के भीतर विलीन होते हैं।”
(संदर्भ: प्राचीन भारतीय संस्कृति)

“शाकुंतल एक चरित्र नहीं, वह भारतीय नारी की आत्मा की प्रतीक है।”

“उसके मौन में जितनी करुणा है, उतनी शब्दों में नहीं। कालिदास ने मौन को नाटक की भाषा बना दिया।”
(संदर्भ: नारी पर हज़ारीप्रसाद द्विवेदी की दृष्टि)
—-

“भारत के नाटककारों ने दुख को चरम पर ले जाकर भी उसे विनाश नहीं, शांति में बदलना सिखाया।”

“वह पीड़ा को सौंदर्य बना देते हैं — यही उनकी करुणा है, और यही उनकी संस्कृति।”
(संदर्भ: आचार्य शुक्ल)

Address

17. Gurukul Complex, In Front Of Nagar Nigam Bhavan Kalibadi
Raipur
492001

Opening Hours

Monday 11am - 2pm
6:30pm - 8pm
Tuesday 11am - 2pm
6:30pm - 8pm
Wednesday 11am - 2pm
6:30pm - 8pm
Thursday 11am - 2pm
6:30pm - 8pm
Friday 11am - 2pm
6:30pm - 8pm
Saturday 11am - 2pm
6:30pm - 8pm

Telephone

+918319384483

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Diabetic Clinic Raipur posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Practice

Send a message to Diabetic Clinic Raipur:

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram

Category