21/07/2025
“मैं शिवाजी हूं, जो जब तक धर्म पर संकट न आए, तलवार नहीं उठाता ।”
“श्रीमान योगी” — शक्ति, धैर्य और नियति के बीच शिवाजी महाराज की कथा; रणजीत देसाई की कृति जो मराठी में must-read classic मानी जाती है।
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सत्ता अनायास नहीं आती। वह अर्जित होती है — एकांत में, अपमानों के बीच, और अपने ही अपनों की अनिश्चितताओं के साये में। श्रीमान योगी कोई काल्पनिक नायक नहीं, वह एक ऐतिहासिक सच्चाई का नाम है ,शिवाजी महाराज, जिन्होंने अकेले अपने युग के सबसे शक्तिशाली सत्ता केंद्रों -बीजापुर और मुग़ल सल्तनत को चुनौती दी।
पर इस चुनौती की शुरुआत एक तलवार से नहीं हुई। शुरुआत हुई एक माँ की आँखों में बसे एक स्वप्न से।
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जीजाबाई ,सत्ता का बीज माँ की गोद में बोया जाता है
जब पुणे के लाल महल में जीजाबाई ने एक बालक को जन्म दिया, किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह बालक मुग़ल साम्राज्य के हृदय में भय भर देगा। लेकिन जीजाबाई जानती थीं। हर शाम जीजाबाई उन्हें रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनातीं , लेकिन केवल युद्ध की नहीं, धर्म, न्याय, सेवा और सच्चाई की कहानियाँ। वो कहतीं “एक दिन तू भी ऐसा राजा बनेगा, जो किसी को डराएगा नहीं, बल्कि जिसकी छाया में लोग सुरक्षित महसूस करेंगे।”
“स्वराज्य कोई कल्पना नहीं है, यह एक ऋण है ,और तुझे इसे चुकाना है।”
ग्रेट हिस्टोरियन रॉबर्ट कैरो बताते हैं “Power doesn’t always corrupt. Power reveals.”
यहाँ, जीजाबाई सत्ता का बीज बोती हैं ,लेकिन यह बीज संस्कृति को उजागर करने के लिए है, भ्रष्ट करने के लिए नहीं।
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अफ़ज़लखान , बादशाहत से पहली टक्कर
जब शिवाजी प्रत्यक्ष शक्ति से पहली बार भिड़े, वह सिर्फ शारीरिक टकराव नहीं था ,यह राजनैतिक मानसिकता की टक्कर थी। अफ़ज़लखान केवल एक सेनापति नहीं था । वह एक यंत्र था उस व्यवस्था का जो छोटे राजाओं को समूल नष्ट करने में विश्वास रखती थी।
शिवाजी वहाँ अकेले गए। सिर्फ दो अंगरक्षकों के साथ। वह जानते थे , यह कूटनीति नहीं, जान का सौदा है। लेकिन उन्होंने यह सौदा किया, क्योंकि उन्हें पता था कि एक राजा को कभी कभी अपनी ही शहादत की तैयारी करके सत्ता को चुनौती देनी होती है।
“जब सत्ता छल में बदलती है, तब विवेक ही तलवार होता है।”
यह कैरो की भाषा में कहा जाए तो — This was the moment when a man ceased to be a rebel, and became the axis of power.
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आगरा ,जेल नहीं, आत्मबल की प्रयोगशाला
शिवाजी को औरंगज़ेब ने आगरा बुलाया। यह एक शतरंज की चाल थी। एक चाल जिसमें खिलाड़ी को बंदी बनाकर मोहरा बना दिया जाए। और शिवाजी !वे उस चाल में मोहरे की तरह चले, लेकिन राजा की तरह लौटे।
उनका भागना किसी तिलस्म से कम नहीं था। लेकिन देखा जाए तो यह भागना नहीं, पुनर्जन्म था। वहाँ एक सैनिक गया था, लेकिन जब वह महाराष्ट्र लौटा, वह सत्ता का पर्याय बन चुका था।
“एक राजा कैद नहीं होता ,केवल शरीर रोका जा सकता है, संकल्प नहीं।”
यहाँ शिवाजी की सबसे बड़ी जीत तलवार से नहीं, मन के संकल्प से हुई थी। यह वह क्षण था जिसे “the hour of proving” कहते हैं ,जब मनुष्य अपने भीतर की सत्ता से साक्षात्कार करता है।
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राज्याभिषेक ,सत्ता को वैधता देना
शिवाजी ने खुद को राज्याभिषेक से कभी बड़ा नहीं माना। लेकिन उन्होंने जाना ,जनता केवल युद्ध से राजा नहीं मानती। सत्ता को प्रतीकों की आवश्यकता होती है।
शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का दृश्य, कोई भव्य आयोजन मात्र नहीं, बल्कि हज़ारों वर्षों की गुलामी के पश्चात जन्मे राष्ट्र गौरव का उद्घोष है।
तो उन्होंने वैदिक रीति से अपना तिलक कराया। यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक घोषणा थी ,कि अब यह सत्ता राजनैतिक नहीं, धर्म और सेवा से जुड़ी है। उन्होंने ताम्रपट्ट और मुद्राएं जारी कीं। मंत्रीमंडल बनाया। कर-संविधान बनाए। यह एक प्रबुद्ध सत्ता-निर्माण था।
“अब यह राज्य मेरा नहीं, प्रजा का है, मैं केवल उसका उत्तरदायी हूँ।”
यह वही क्षण था जो सत्ता को अराजकता से अलग करता है ,वह जहाँ अनुशासन, विधि और न्याय की नींव रखी जाती है।
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जीवन के अंतिम दिनों में जब शिवाजी महाराज युद्धों से मुक्त होकर अंतर्मुखी हो जाते हैं, तब उनके भीतर एक प्रबुद्ध योगी प्रकट होता है।
वे कर्म के शिखर पर पहुँचकर वैराग्य के सौंदर्य में विलीन हो जाते हैं। वे अपने पुत्र, मंत्रियों और सेनापतियों को बुलाकर धर्म, न्याय और प्रजा के कल्याण का उपदेश देते हैं।
यह परिवर्तन अचानक नहीं था ,यह सत्ता की स्वाभाविक थकान नहीं, उसकी ऊँचाई का बोध था।
एक क्षत्रिय जिसने जीवन भर तलवार चलाई, अब योग में लीन था। और यही कारण था कि रणजीत देसाई ने उन्हें “श्रीमान योगी” कहा ,सत्ता का वह शिखर जो अब आत्म-सत्ता की खोज में था।
“जिसने सब कुछ जीत लिया, अब केवल स्वयं को जीतना शेष है।”
रॉबर्ट कैरो की सबसे प्रसिद्ध पंक्तियों में एक है
“Power doesn’t always corrupt. What it does is that it reveals. It reveals the true character.”
शिवाजी की सत्ता ने यही किया ,उनके भीतर छिपे योगी को उजागर किया।
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सत्ता का निर्माण, अपने व्यक्तित्व को समाज में समाहित करके
कैरो कहते हैं - सत्ता का निर्माण केवल बाहरी संघर्ष से नहीं, आंतरिक निर्णयों से होता है।”
“श्रीमान योगी” उसी विचार को भारत की मिट्टी में बोता है।
यह उपन्यास हमें बताता है कि राजा होना आसान है, पर योगी राजा होना ,वह साधना है।
और वह साधना तब पूरी होती है जब सत्ता, सेवा बन जाती है।
“यदि साधक हो तो ऐसा
और
यदि राजा हो तो ऐसा!”