Dr Pranav Shastri

Dr Pranav Shastri PhD in Astrology Jyotish Acharaya & Vastu Acharaya

17 अक्टूबर २०२३ को तुला संक्रांति इस दिन धान्य (जैसे गेंहू, जौं, चना, तिल, साबुत मूंग, चावल आदि) का दान किसी जरूरत मंद क...
16/10/2023

17 अक्टूबर २०२३ को तुला संक्रांति

इस दिन धान्य (जैसे गेंहू, जौं, चना, तिल, साबुत मूंग, चावल आदि) का दान किसी जरूरत मंद को जरूर करें। मात्रा इतनी हो कि सामने वाला उसका उपगयोग कर सके।

ऐसा करने से दानदाता के धन में वृद्धि होगी। उसके रोग संकट आदि दूर होंगे।
अगर रोग से ज्यादा परेशान हैं तो इस दिन अपने वजन के बराबर सात प्रकार के धान्य जरूरतमंद को अथवा किसी मंदिर में जहां उसका सदुपयोग हो वहां दान करें।

इस दिन अन्‍न, गौ, तिल, भूमि, घर, विश्राम स्‍थान, धान्‍य, शय्या आदि कुछ भी दान कर सकते हैं सभी का अनंत गुना फल मिलेगा। धान्य का दान अतिविशेष है।

यह दान स्त्री पुरुष बच्चा आदि सभी समान रूप से कर सकते हैं।

भानुसप्तमी-रविवार-9 जुलाई अमावास्या तु सोमेन सप्तमी भानुना सह।चतुर्थी भूमिपुत्रेण सोमपुत्रेण चाष्टमी।।चतस्रस्तिथयो स्त्व...
08/07/2023

भानुसप्तमी-रविवार-9 जुलाई

अमावास्या तु सोमेन सप्तमी भानुना सह।
चतुर्थी भूमिपुत्रेण सोमपुत्रेण चाष्टमी।।
चतस्रस्तिथयो स्त्वेताः सूर्यग्रहण सन्निभाः।
स्नानं दानं तथा श्राद्धं सर्वं तत्राक्षयं भवेत्।।’

सोमवारी अमावस्या, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी एवं बुधवारी अष्टमी ये चारो तिथीयां सूर्यग्रहण के समान कही गईं हैं, इनमे जो स्नान, दान, श्राद्ध किया जाता है वह सब अक्षय होता है ।

रविवार को पड़ने वाली सप्तमी को भानु सप्तमी कहते हैं ।

इस दिन यथासंभव स्नान, दान, जप, पूजन, हवन करें, सूर्यग्रहण के समान फल मिलेगा ।

अगर संभव हो तो गंगाजी में स्नान करें या घर पर नहाने के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें ।

प्रयत्नपूर्वक आज के दिन गौसेवा जरूर कीजिये ।

भगवान सूर्य के निम्न 21 नामों का पाठ करने से मनुष्य को सहस्त्र नाम के पाठ का फल प्राप्त होता है:

सूर्य भगवान के 21 नाम इस प्रकार हैं:

1. विकर्तन- विपत्तियों को नष्ट करने वाले
2. विवस्वान- प्रकाश रूप
3. मार्तंड- (जिन्होंने अण्ड में बहुत दिन निवास किया)
4. भास्कर
5. रवि
6. लोकप्रकाशक
7. श्रीमान
8. लोक चक्षु
9. ग्रहेश्वर
10. लोकसाक्षी
11. त्रिलोकेश
12. कर्ता
13. हर्ता
14. तमिस्त्रहा- अंधकार को नष्ट करने वाले
15. तपन
16. तापन
17. शुचि- पवित्रतम
18. सप्ताश्ववाहन
19. गभस्तिहस्त- किरणें ही जिनके हाथ स्वरूप हैं
20. ब्रह्मा
21. सर्वदेवनमस्कृत

भविष्यपुराण के अनुसार-

सूर्य भगवान कहते हैं-
सभी पुष्पों में करवीर अर्थात कनेर का पुष्प और समस्त विलेपनों में रक्तचंदन अर्थात लालचंदन का विलेपन मुझे अधिक प्रिय है ।
करवीर(कनेर) के पुष्पों से जो मेरी पूजा करता है वह संसार के सभी सुखों को भोगकर अंत में स्वर्गलोक में निवास करता है ।

यहाँ कनेर से तात्पर्य लाल कनेर से है लेकिन लाल कनेर ना मिलने पर आप सभी पीले या सफेद कनेर भी अर्पित कर सकते हैं।

कैसे अर्पित करें..??

अगर सूर्य मंदिर/नवग्रह मंदिर है तो विग्रह पर चढायें।

और विग्रह ना होने की स्थिति में अर्घ्य के जल में कनेर का पुष्प डालकर अर्घ्य दें ।

शुभमस्तु

जय हो सूर्य भगवान की

07/02/2023

Vastu Visit for new construction site and home visit in udhampur (j&k)




Energy
Devta energy
# Remove Negative energy


specialist

Dr Pranav shastri Professional Astrology & Vastu Consultant
For Contact call on 9419244434, 9906302737

वसन्त पञ्चमी : माँ सरस्वती आराधना तथा वसन्तोत्सव “यथा तु देवि भगवान ब्रह्मा लोकपितामह:।त्वां परित्यज्य नो तिष्ठेत तथा भव...
25/01/2023

वसन्त पञ्चमी : माँ सरस्वती आराधना तथा वसन्तोत्सव

“यथा तु देवि भगवान ब्रह्मा लोकपितामह:।
त्वां परित्यज्य नो तिष्ठेत तथा भव वरप्रदा ॥
वेदशास्त्राणि सर्वाणि नृत्यगीतादिकं च यत ।
वाहितं यत त्वया देवि तथा में सन्तु सिद्धय: ॥
लक्ष्मीमेंधा वरा रिष्टिगौरी तुष्टि: प्रभा मति : ।
एताभि: पाहि तनुभिरष्टभिमाँ सरस्वति ॥”

‘देवि ! जिस प्रकार लोकपितामह ब्रह्मा आपका परित्याग कर कभी अलग नहीं रहते, उसी प्रकार आप हमे भी वर दीजिये कि हमारा भी कभी अपने परिवार के लोगों से वियोग न हो | हे देवि ! वेदादि सम्पूर्ण शास्त्र तथा नृत्य-गीतादि जो भी विद्याएँ हैं, वे सभी आपके अधिष्ठान में ही रहती है, वे सभी मुझे प्राप्त हों | हे भगवती सरस्वती देवि ! आप अपनी-लक्ष्मी, मेधा, वरा, रिष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा तथा मति – इन आठ मूर्तियों के द्वारा मेरी रक्षा करें |’

माघ शुक्ल पञ्चमी (पूर्वाह्नव्यापिनी, चतुर्थीविद्धा) को वसन्त पञ्चमी पर्व मनाया जाता है। शुद्ध शब्द वसन्त है जिसको कुछ लोग बसंत पुकारते हैं और बसंत पंचमी कहते हैं। इस वर्ष 26 जनवरी 2023 को यह पर्व मनाया जाता है। वसन्त पञ्चमी पर सरस्वती पूजा और वसन्त ऋतु का आगमन सर्वविदित है “माघशुक्लपंचमी वसंतपंचमी तस्यां वसंतोत्सवारंभः”। बाल्यकाल से ही माताजी ने इस दिन माँ सरस्वती की आराधना करना, गुरुजनों की सेवा करना, पीले वस्त्र पहनना, पीली खाद्य सामग्री ग्रहण करना सिखा दिया था। वसन्त ऋतु आगमन और वाग्देवी सरस्वती की आराधना में एक अनुपम सम्बन्ध है।.

काल का निर्धारण सूर्य, पृथ्वी और चंद्र की गतियों से होता है जिसमें ऋतु परिवर्तन का मुख्य कारण है पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर परिक्रमण और पृथ्वी का अक्षीय झुकाव। आध्यात्म में सूर्य, पृथ्वी और चंद्र का रूपान्तर क्रमशः प्राण, वाक् और मन के रूप में किया जा सकता है। वाक् में प्राण और मन की प्रतिष्ठा करना, उनका विकास करना ही ऋतुओं का कार्य है । जैसा कि सर्वविदित है, वसन्त ऋतु में प्रकृति में पुष्प खिलते हैं । अध्यात्म में इसका तात्पर्य यह लिया गया है कि वसन्त के माध्यम से जड प्रकृति में, जिसे वाक् कहा जा सकता है, प्राणों का, सूर्य का प्रवेश कराना है, वाक् में प्राणों की प्रतिष्ठा करनी है ।

उत्तरायण होने के बाद वेदाङ्ग ज्योतिष प्रथम माह माघ में पञ्चमी पर वाग्देवी सरस्वती की आराधना की जाती है और माघ सप्तमी पर प्राण रुपी सूर्य की आराधना। वाक् वह मूल स्रोत है जहाँ से पदार्थों का गुप्त, श्रेष्ठ और परिपूर्ण भाव प्रकट होता है : 'यदेषां श्रेष्ठं यदरिप्रभासीत प्रेणा तदेषं निहितं गुहावि:।' (ऋग्वेद, 10-71-1) वाक् के अभाव में सृष्टि के किसी भी पदार्थ का आख्यान नहीं हो सकता है, अत: वाक् के बिना सभी कुछ अस्तित्वहीन है। इस दृष्टि से वाक् को विश्व की जननी कहा गया है: 'वागेव विश्वा भुवनानि जज्ञे।' यही कारण हो सकता है की वसन्त पञ्चमी को वाग्देवी माँ सरस्वती का जन्म दिवस माना जाता है जो ज्ञान, बुद्धि, संगीत की अधिष्ठात्री हैं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सृष्टिकाल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने स्वयं को पाँच भागों में विभक्त किया था। वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा एवं सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से उत्पन्न हुईं थीं। "सा च शक्तिः सृष्टिकाले पञ्चधा चेश्वरेच्छया। राधा पद्मा च सावित्री दुर्गा देवी सरस्वती॥”
उस समय श्रीकृष्ण के मुख (कण्ठ) से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ “कृष्णकण्ठीद्भवा या च सा च देवी सरस्वती॥”
सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती की पूजा की है, जिनके प्रसाद से मूर्ख भी पण्डित बन जाता है। “आदौ सरस्वतीपूजा श्रीकृष्णेन विनिर्मिता । यत्प्रसादान्मुनिश्रेष्ठ मूर्खो भवति पण्डितः ।।”

ब्रह्मवैवर्त पुराण तथा देवीभागवत पुराण के अनुसार जो मानव माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन संयमपूर्वक उत्तम भक्ति के साथ षोडशोपचार से भगवती सरस्वती की अर्चना करता है, वह वैकुण्ठ धाम में स्थान पाता है। माघ शुक्ल पंचमी विद्यारम्भ की मुख्य तिथि है। “माघस्य शुक्लपञ्चम्यां विद्यारम्भदिनेऽपि च।”

श्रीकृष्ण ने सरस्वती से कहा था
प्रतिविश्वेषु ते पूजां महतीं ते मुदाऽन्विताः । माघस्य शुक्लपञ्चम्यां विद्यारम्भेषु सुन्दरि ।।
मानवा मनवो देवा मुनीन्द्राश्च मुमुक्षवः । सन्तश्च योगिनः सिद्धा नागगन्धर्वकिंनराः ।।
मद्वरेण करिष्यन्ति कल्पे कल्पे यथाविधि । भक्तियुक्ताश्च दत्त्वा वै चोपचारांश्च षोडश ।।
काण्वशाखोक्तविधिना ध्यानेन स्तवनेन च । जितेन्द्रियाः संयताश्च पुस्तकेषु घटेऽपि च ।।
कृत्वा सुवर्णगुटिकां गन्धचन्दन चर्च्चिताम् । कवचं ते ग्रहीष्यन्ति कण्ठे वा दक्षिणे भुजे ।।
पठिष्यन्ति च विद्वांसः पूजाकाले च पूजिते । इत्युक्त्वा पूजयामास तां देवीं सर्वपूजितः ।।
ततस्तत्पूजनं चक्रुर्ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः । अनन्तश्चापि धर्मश्च मुनीन्द्राः सनकादयः ।।
सर्वे देवाश्च मनवो नृपा वा मानवादयः । बभूव पूजिता नित्या सर्वलोकैः सरस्वती ।।

“सुन्दरि! प्रत्येक ब्रह्माण्ड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्यारम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ तुम्हारी विशाल पूजा होगी। मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलयपर्यन्त प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी प्रसिद्ध मुनिगण, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस– सभी बड़ी भक्ति के साथ सोलह प्रकार के उपचारों के द्वारा तुम्हारी पूजा करेंगे। उन संयमशील जितेन्द्रिय पुरुषों के द्वारा कण्वशाखा में कही हुई विधि के अनुसार तुम्हारा ध्यान और पूजन होगा। वे कलश अथवा पुस्तक में तुम्हें आवाहित करेंगे। तुम्हारे कवच को भोजपत्र पर लिखकर उसे सोने की डिब्बी में रख गन्ध एवं चन्दन आदि से सुपूजित करके लोग अपने गले अथवा दाहिनी भुजा में धारण करेंगे। पूजा के पवित्र अवसर पर विद्वान पुरुषों के द्वारा तुम्हारा सम्यक प्रकार से स्तुति-पाठ होगा। इस प्रकार कहकर सर्वपूजित भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती की पूजा की। तत्पश्चात, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अनन्त, धर्म, मुनीश्वर, सनकगण, देवता, मुनि, राजा और मनुगण– इन सब ने भगवती सरस्वती की आराधना की। तब से ये सरस्वती सम्पूर्ण प्राणियों द्वारा सदा पूजित होने लगीं।

सरस्वती ध्यान
सरस्वतीं शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम् । कोटिचन्द्रप्रभाजुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम् ।।
वह्निशुद्धांशुकाधानां सस्मितां सुमनोहराम् । रत्नसारेन्द्र खचितवरभूषणभूषिताम् ।।
सुपूजितां सुरगणैर्ब्रह्मविष्णुशिवादिभिः । वन्दे भक्त्या वन्दिता तां मुनीन्द्रमनुमानवैः ।।
‘सरस्वती का श्रीविग्रह शुक्लवर्ण है। ये परम सुन्दरी देवी सदा मुस्कराती रहती हैं। इनके परिपुष्ट विग्रह के सामने करोड़ों चन्द्रमा की प्रभा भी तुच्छ है। ये विशुद्ध चिन्मय वस्त्र पहने हैं। इनके एक हाथ में वीणा है और दूसरे में पुस्तक। सर्वोत्तम रत्नों से बने हुए आभूषण इन्हें सुशोभित कर रहे हैं। ब्रह्मा, विष्णु और शिव प्रभृति प्रधान देवताओं तथा सुरगणों से ये सुपूजित हैं। श्रेष्ठ मुनि, मनु तथा मानव इनके चरणों में मस्तक झुकाते हैं। ऐसे भगवती सरस्वती को मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ।’

वसन्त पञ्चमी पर सरस्वती मूल मंत्र की कम से कम 1 माला जप जरूर करना चाहिए।

मूल मंत्र : “श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा”
सरस्वती जी का वैदिक अष्टाक्षर मूल मंत्र जिसे भगवान शिव ने कणादमुनि तथा गौतम को, श्रीनारायण ने वाल्मीकि को, ब्रह्मा जी ने भृगु को, भृगुमुनि ने शुक्राचार्य को, कश्यप ने बृहस्पति को दिया था जिसको सिद्ध करने से मनुष्य बृहस्पति के समान हो जाता है

सरस्वती पूजा के लिए नैवैद्य (ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार)

नवनीतं दधि क्षीरं लाजांश्च तिललड्डुकान् । इक्षुमिक्षुरसं शुक्लवर्णं पक्वगुडं मधु ।।
स्वस्तिकं शर्करां शुक्लधान्यस्याक्षतमक्षतम्। अस्विन्नशुक्लधान्यस्य पृथुकं शुक्लमोदकम् ।।
घृतसैन्धवसंस्कारैर्हविष्यैर्व्यञ्जनैस्तथा । यवगोधूमचूर्णानां पिष्टकं घृतसंस्कृ तम् ।।
पिष्टकं स्वस्तिकस्यापि पक्वरम्भाफलस्य च । परमान्नं च सघृतं मिष्टान्नं च सुधोपमम् ।।
नारिकेलं तदुदकं केशरं मूलमार्द्रकम् । पक्वरम्भाफलं चारु श्रीफलं बदरीफलम् ।।
कालदेशोद्भवं पक्वफलं शुक्लं सुसंस्कृतम् ।।

ताजा मक्खन, दही, दूध, धान का लावा, तिल के लड्डू, सफेद गन्ना और उसका रस, उसे पकाकर बनाया हुआ गुड़, स्वास्तिक (एक प्रकार का पकवान), शक्कर या मिश्री, सफेद धान का चावल जो टूटा न हो (अक्षत), बिना उबाले हुए धान का चिउड़ा, सफेद लड्डू, घी और सेंधा नमक डालकर तैयार किये गये व्यंजन के साथ शास्त्रोक्त हविष्यान्न, जौ अथवा गेहूँ के आटे से घृत में तले हुए पदार्थ, पके हुए स्वच्छ केले का पिष्टक, उत्तम अन्न को घृत में पकाकर उससे बना हुआ अमृत के समान मधुर मिष्टान्न, नारियल, उसका पानी, कसेरू, मूली, अदरख, पका हुआ केला, बढ़िया बेल, बेर का फल, देश और काल के अनुसार उपलब्ध ऋतुफल तथा अन्य भी पवित्र स्वच्छ वर्ण के फल – ये सब नैवेद्य के समान हैं।

सुगन्धि शुक्लपुष्पं च गन्धाढ्यं शुक्लचन्दनम् । नवीनं शुक्लवस्त्रं च शङ्खं च सुमनोहरम् ।।
माल्यं च शुक्लपुष्पाणां मुक्ताहीरादिभूषणम् ।।

सुगन्धित सफेद पुष्प, सफेद स्वच्छ चन्दन तथा नवीन श्वेत वस्त्र और सुन्दर शंख देवी सरस्वती को अर्पण करना चाहिये। श्वेत पुष्पों की माला और श्वेत भूषण भी भगवती को चढ़ावे।

स्मरण शक्ति प्राप्त करने के लिए वसंत पञ्चमी से शुरू करके प्रतिदिन याज्ञवल्क्य द्वारा रचित भगवती सरस्वती की स्तुति करनी चाहिए।

आज के दिन क्या करें :
आज के दिन बच्चे/जवान/बूढ़े सभी लोग पीले रंग के वस्त्र पहने।
आज माँ शारदा को पीले चावल (ताहरी), पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का भोग लगाएं और घर के सभी लोग खाएं।
बच्चों को आज से 11 तुलसी के पत्तों का रस मिश्री के साथ देना शुरू करें। स्मरण शक्ति में वृद्धि होगी।
अगर आपके बच्चे को वाणी दोष है अर्थात बोलने/हकलाने/लड़खड़ाकर बोलने की समस्या है तो बच्चे की जीभ पर केसर से चांदी की सलाई द्वारा ‘ऐं’ बीज मंत्र लिखें।

बसंत पंचमी के दिन वास्तु उपाय:
बच्चाा जिस तरफ मुंह करके पढता हो, उस दीवार पर आज के दिन मां सरस्वती का चित्र लगाएं। पढाई में रूचि जागृत होगी। कोशिश करें पढ़ते समय बच्चे का मुहँ उत्तर, पूर्व अथवा उत्तर-पूर्व में रहे।
सोते समय बच्चों को सिर पूर्व की ओर रखना चाहिए। इससे स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
जो बच्चे पढ़ते समय शीघ्र सोने लगते हैं अथवा मन भटकने के कारण अध्ययन नहीं कर पाते, उनके अध्ययन कक्ष में आज ही हरे रंग के परदे लगाएं।
एक क्रिस्टल बॉल अथवा क्रिस्टल का श्रीयंत्र लाकर अपने अध्ययन कक्ष में रख लें। यह नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेता है।

सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥

स्मरण शक्ति प्राप्त करने के लिए याज्ञवल्क्य द्वारा रचित भगवती सरस्वती की स्तुति

याज्ञवल्क्य उवाच ।
कृपां कुरु जगन्मातर्मामेवं हततेजसम् ।
गुरुशापात्स्मृतिभ्रष्टं विद्याहीनं च दुःखितम् ॥ ६॥

ज्ञानं देहि स्मृतिं देहि विद्यां देहि देवते ।
प्रतिष्ठां कवितां देहि शाक्तं शिष्यप्रबोधिकाम् ॥ ७॥

ग्रन्थनिर्मितिशक्तिं च सच्छिष्यं सुप्रतिष्ठितम् ।
प्रतिभां सत्सभायां च विचारक्षमतां शुभाम् ॥ ८॥

लुप्तां सर्वां दैववशान्नवं कुरु पुनः पुनः ।
यथाऽङ्कुरं जनयति भगवान्योगमायया ॥ ९॥

ब्रह्मस्वरूपा परमा ज्योतिरूपा सनातनी ।
सर्वविद्याधिदेवी या तस्यै वाण्यै नमो नमः ॥ १०॥

यया विना जगत्सर्वं शश्वज्जीवन्मृतं सदा ।
ज्ञानाधिदेवी या तस्यै सरस्वत्यै नमो नमः ॥ ११॥

यया विना जगत्सर्वं मूकमुन्मत्तवत्सदा ।
वागधिष्ठातृदेवी या तस्यै वाण्यै नमो नमः ॥ १२॥

हिमचन्दनकुन्देन्दुकुमुदाम्भोजसंनिभा ।
वर्णाधिदेवी या तस्यै चाक्षरायै नमो नमः ॥ १३॥

विसर्ग बिन्दुमात्राणां यदधिष्ठानमेव च ।
इत्थं त्वं गीयसे सद्भिर्भारत्यै ते नमो नमः ॥ १४॥

यया विनाऽत्र सङ्ख्याकृत्सङ्ख्यां कर्तुं न शक्नुते ।
काल सङ्ख्यास्वरूपा या तस्यै देव्यै नमो नमः ॥ १५॥

व्याख्यास्वरूपा या देवी व्याख्याधिष्ठातृदेवता ।
भ्रमसिद्धान्तरूपा या तस्यै देव्यै नमो नमः ॥ १६॥

स्मृतिशक्तिर्ज्ञानशक्तिर्बुद्धिशक्तिस्वरूपिणी ।
प्रतिभा कल्पना शक्तिर्या च तस्यै नमो नमः ॥ १७॥

सनत्कुमारो ब्रह्माणं ज्ञानं पप्रच्छ यत्र वै ।
बभूव जडवत्सोऽपि सिद्धान्तं कर्तुमक्षमः ॥ १८॥

तदाऽऽजगाम भगवानात्मा श्रीकृष्ण ईश्वरः ।
उवाच स च तं स्तौहि वाणीमिति प्रजापते ॥ १९॥

स च तुष्टाव तां ब्रह्मा चाऽऽज्ञया परमात्मनः ।
चकार तत्प्रसादेन तदा सिद्धान्तमुत्तमम् ॥ २०॥

यदाप्यनन्तं पप्रच्छ ज्ञानमेकं वसुन्धरा ।
बभूव मूकवत्सोऽपि सिद्धान्तं कर्तुमक्षमः ॥ २१॥

तदा त्वां च स तुष्टाव सन्त्रस्तः कश्यपाज्ञया ।
ततश्चकार सिद्धान्तं निर्मलं भ्रमभञ्जनम् ॥ २२॥

व्यासः पुराणसूत्रं समपृच्छद्वाल्मिकिं यदा ।
मौनीभूतः स सस्मार त्वामेव जगदम्बिकाम् ॥ २३॥

तदा चकार सिद्धान्तं त्वद्वरेण मुनीश्वरः ।
स प्राप निर्मलं ज्ञानं प्रमादध्वंसकारणम् ॥ २४॥

पुराण सूत्रं श्रुत्वा स व्यासः कृष्णकलोद्भवः ।
त्वां सिषेवे च दध्यौ तं शतवर्षं च पुष्क्करे ॥ २५॥

तदा त्वत्तो वरं प्राप्य स कवीन्द्रो बभूव ह ।
तदा वेदविभागं च पुराणानि चकार ह ॥ २६॥

यदा महेन्द्रे पप्रच्छ तत्वज्ञानं शिवा शिवम् ।
क्षणं त्वामेव सञ्चिन्त्य तस्यै ज्ञानं दधौ विभुः ॥ २७॥

पप्रच्छ शब्दशास्त्रं च महेन्द्रस्च बृहस्पतिम् ।
दिव्यं वर्षसहस्रं च स त्वां दध्यौ च पुष्करे ॥ २८॥

तदा त्वत्तो वरं प्राप्य दिव्यं वर्षसहस्रकम् ।
उवाच शब्दशास्त्रं च तदर्थं च सुरेश्वरम् ॥ २९॥

अध्यापिताश्च यैः शिष्याः यैरधीतं मुनीश्वरैः ।
ते च त्वां परिसञ्चिन्त्य प्रवर्तन्ते सुरेश्वरि ॥ ३०॥

त्वं संस्तुता पूजिता च मुनीन्द्रमनुमानवैः ।
दैत्यैश्च सुरैश्चापि ब्रह्मविष्णुशिवादिभिः ॥ ३१॥

जडीभूतः सहस्रास्यः पञ्चवक्त्रश्चतुर्मुखः ।
यां स्तोतुं किमहं स्तौमि तामेकास्येन मानवः ॥ ३२॥

इत्युक्त्वा याज्ञवल्क्यश्च भक्तिनम्रात्मकन्धरः ।
प्रणनाम निराहारो रुरोद च मुहुर्मुहुः ॥ ३३॥

तदा ज्योतिः स्वरूपा सा तेनाऽदृष्टाऽप्युवाच तम् ।
सुकवीन्द्रो भवेत्युक्त्वा वैकुण्ठं च जगाम ह ॥ ३४॥

महामूर्खश्च दुर्मेधा वर्षमेकं च यः पठेत् ।
स पण्डितश्च मेधावी सुकविश्च भवेद्ध्रुवम् ॥ ३५॥

इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसंवादे
याज्ञवल्क्योक्त वाणीस्तवनं नाम पञ्चमोऽध्यायः ॥

जो पुरुष याज्ञवल्क्यरचित इस सरस्वती स्तोत्र को पढ़ता है, उसे कवीन्द्रपद की प्राप्ति हो जाती है। भाषण करने में वह बृहस्पति की तुलना कर सकता है। कोई महान् मूर्ख अथवा दुर्बुद्धि ही क्यों न हो, यदि वह एक वर्ष तक नियमपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करता है तो वह निश्चय ही पण्डित परम बुद्धिमान् एवं सुकवि हो जाता है।

द्रुमाः सपुष्पाः सलिलं सपद्मं स्त्रियः सकामाः पवनः सुगन्धिः ।
सुखाः प्रदोषा दिवसाश्च रम्याः सर्वं प्रिये चारुतरं वसन्ते ।।

लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखते हैं...???षटतिला एकादशी-बुधवार- 18 जनवरी को आँवले से स्नान करें एवं लक्ष्मी नारायण को आँवल...
16/01/2023

लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखते हैं...???

षटतिला एकादशी-
बुधवार- 18 जनवरी को आँवले से स्नान करें एवं लक्ष्मी नारायण को आँवला अर्पित करें ।

आँवले से स्नान का तात्पर्य आँवले के रस से है ।
अगर आपको हरा आँवला ना मिले तो आँवले का मुरब्बा भी अर्पित कर सकते हैं ।

आँवला अर्पित करने के बाद उसको प्रसाद के रूप में घर के सभी व्यक्ति खायें ।

अगर आपको आँवले का मुरब्बा भी ना मिले तो आँवले की कैंडी या सूखा आँवला ले सकते हैं ।

आँवले के स्मरणमात्र से मनुष्य को गोदान का फल, स्पर्श से दुगना और फल खाने से तिगुना पुण्य प्राप्त होता है ।

पद्मपुराण के अनुसार:
एकादशी के दिन यदि एक ही आँवला मिल जाये तो उसके सामने गंगा, गया, काशी और पुष्कर आदि तीर्थ कोई विशेष महत्व नहीं रखते ।

शुभमस्तु

Address

Jammu
Ramnagar
182122

Telephone

+919419244434

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Dr Pranav Shastri posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Practice

Send a message to Dr Pranav Shastri:

Share