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कबाबचीनी (शीतलचीनी) क्या है?कबाबचीनी, जिसे शीतलचीनी, क्यूबेब पेपर (Piper cubeba) भी कहा जाता है, पाइपरसी परिवार का एक औष...
28/09/2025

कबाबचीनी (शीतलचीनी) क्या है?
कबाबचीनी, जिसे शीतलचीनी, क्यूबेब पेपर (Piper cubeba) भी कहा जाता है, पाइपरसी परिवार का एक औषधीय पौधा है। यह काली मिर्च की तरह दिखता है लेकिन इसमें एक लंबी पूंछ होती है और इसका स्वाद चरपरा, कड़वा और सुगंधित होता है। यह मुख्य रूप से इंडोनेशिया, जावा और दक्षिण-पूर्व एशिया में उगता है। आयुर्वेद, यूनानी और पारंपरिक चिकित्सा में सदियों से इसका उपयोग हो रहा है। इसके फल (बेरी) को सुखाकर चूर्ण, तेल या मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

आयुर्वेदिक और यूनानी गुण —

🔹रस (स्वाद): कटु (तीखा), तिक्त (कड़वा)।
🔹गुण (प्रकृति): लघु (हल्का), रूक्ष (शुष्क)।
🔹वीर्य (तापमान): उष्ण (गर्म)।
🔹विपाक (पाचन के बाद): कटु (तीखा)।
🔹दोष प्रभाव: वात और कफ नाशक, पित्त को संतुलित करता है।

अन्य गुण—
दीपन (पाचन बढ़ाने वाला), मूत्रल (मूत्रवर्धक), वृष्य (कामोत्तेजक), कफघ्न (बलगम नाशक), हृदयरोग नाशक।
रासायनिक रूप से इसमें क्यूबेबिन, क्यूबेबाल, क्यूबेबिक अम्ल, उड़नशील तेल (5-20%), लिग्नान (जैसे हिनोकिनिन), फेनोलिक यौगिक (रुटिन, कैटेचिन) और वसा अम्ल मौजूद होते हैं।

औषधीय उपयोग और फायदे —
कबाबचीनी के उपयोग पारंपरिक और वैज्ञानिक दोनों स्तरों पर प्रमाणित हैं। नीचे विस्तार से वर्णन किया गया है:

1. पाचन संबंधी विकार (Digestive Disorders)
अपच, ब्लोटिंग, गैस, कब्ज और पेट दर्द में राहत देता है। यह पाचन अग्नि को प्रज्वलित करता है और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाता है।
उपयोग: 1/2 चम्मच चूर्ण को पानी या दूध के साथ लें। गरम मसाले में मिलाकर भोजन में डालें।
वैज्ञानिक प्रमाण: इसके अर्क α-एमाइलेज और α-ग्लूकोसिडेज को रोकते हैं, जो डायबिटीज में पाचन को नियंत्रित करते हैं।

2. श्वसन तंत्र (Respiratory Health)
खांसी, ब्रोंकाइटिस, जुकाम और अस्थमा में उपयोगी। बलगम को ढीला करता है और ब्रोंकाई को फैलाता है।
उपयोग: पुरानी खांसी में 1 ग्राम चूर्ण शहद के साथ चाटें। जुकाम में नस्य के रूप में सूंघें।
वैज्ञानिक प्रमाण: इसके आवश्यक तेल में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो नाइट्रिक ऑक्साइड और साइटोकाइन्स को कम करते हैं।

3. मूत्र संबंधी समस्याएं (Urinary Issues)
मूत्र संक्रमण (UTI), मूत्रदाह, गोनोरिया, मूत्र असंयम और किडनी स्टोन में लाभकारी। मूत्र प्रवाह बढ़ाता है और संक्रमण रोकता है।
उपयोग: 1/2 चम्मच चूर्ण मिश्री के साथ ठंडे पानी में मिलाकर पिएं। पुराने सुजाक में चूर्ण को लस्सी के साथ लें।
वैज्ञानिक प्रमाण: हाइड्रोअल्कोहोलिक अर्क किडनी क्षति को कम करते हैं और HCV प्रोटीज को रोकते हैं।

4. महिलाओं के स्वास्थ्य में (Women's Health)
मासिक धर्म दर्द (डिस्मेनोरिया), योनि स्राव (वजाइनल डिस्चार्ज) और बवासीर में राहत।
उपयोग: चूर्ण को पानी में मिलाकर स्प्रे करें या दूध के साथ लें।
वैज्ञानिक प्रमाण: एंटी-एस्ट्रोजेनिक गुण होते हैं, जो हार्मोनल असंतुलन को संतुलित करते हैं।

5. पुरुषों के स्वास्थ्य और यौन स्वास्थ्य (Men's and Sexual Health)
नपुंसकता, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष और थकान दूर करता है। वीर्य को गाढ़ा बनाता है।
उपयोग: इलायची, वंशलोचन के साथ चूर्ण बनाकर दूध के साथ लें।
वैज्ञानिक प्रमाण: कामोत्तेजक गुण प्राचीन ग्रंथों में वर्णित; आधुनिक अध्ययन में एंटीडिप्रेसेंट प्रभाव दिखा।

6. मुंह और दांतों की समस्याएं (Oral Health)
मुंह के छाले, दुर्गंध, मसूड़ों की सूजन और दांत दर्द में उपयोगी। एंटीसेप्टिक गुण।
उपयोग: 2-3 दाने चबाएं या पान में मिलाकर खाएं।
वैज्ञानिक प्रमाण: एंटीमाइक्रोबियल प्रभाव स्टेफिलोकोकस और ई. कोलाई के खिलाफ।

7. एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट (Anti-inflammatory and Antioxidant)
सूजन, जोड़ों का दर्द, माइग्रेन और लीवर क्षति में राहत। कैंसर कोशिकाओं (जैसे ब्रेस्ट, कोलन) को रोकता है।
वैज्ञानिक प्रमाण: DPPH और FRAP परीक्षणों में उच्च एंटीऑक्सीडेंट क्षमता; क्यूबेबिन अपोप्टोसिस प्रेरित करता है।

8. अन्य उपयोग (Other Uses)
परजीवी संक्रमण (जैसे अमीबिक डिसेंट्री), ज्वर, हड्डियों को मजबूत करना, घाव भरना और एलर्जी प्रबंधन।
भोजन में मसाले के रूप में स्वाद बढ़ाता है, विशेषकर नॉन-वेज डिश में।
वैज्ञानिक प्रमाण: एंटीपैरासाइटिक प्रभाव शिस्टोसोमा और लेशमेनिया के खिलाफ; कीट नाशक गुण।

वैज्ञानिक प्रमाण (Scientific Evidence)
PMC की समीक्षा के अनुसार, कबाबचीनी में 100+ फाइटोकेमिकल्स हैं जो एंटीमाइक्रोबियल, एंटीडायबिटिक, एंटीकैंसर और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी प्रभाव दिखाते हैं। हालांकि, अधिक क्लिनिकल ट्रायल्स की आवश्यकता है।

सावधानियां और दुष्प्रभाव (Precautions and Side Effects)
सुरक्षित मात्रा: 1-3 ग्राम प्रतिदिन; अधिक मात्रा से पेट खराब, सिरदर्द या त्वचा पर खुजली हो सकती है।
परहेज: गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिलाएं, पेट के अल्सर/GERD वाले या मिर्च से एलर्जी वाले न लें।
इंटरैक्शन: एंटासिड्स, H2-ब्लॉकर्स या प्रोटॉन पंप इन्हिबिटर्स के साथ सावधानी; पेट एसिड बढ़ा सकता है।
चिकित्सक से परामर्श लें, विशेषकर यदि कोई दवा ले रहे हों।

कबाबचीनी एक बहुमुखी औषधि है, लेकिन संतुलित उपयोग ही लाभदायक है। अधिक जानकारी के लिए आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से संपर्क करे Panchgavya wellness & research centre

🇮🇳 मंजिष्ठा – रक्तशोधक और सौंदर्य बढ़ाने वाली औषधि आयुर्वेद में मंजिष्ठा (Rubia cordifolia) को "रक्तशोधनी" यानी खून को श...
27/09/2025

🇮🇳 मंजिष्ठा – रक्तशोधक और सौंदर्य बढ़ाने वाली औषधि

आयुर्वेद में मंजिष्ठा (Rubia cordifolia) को "रक्तशोधनी" यानी खून को शुद्ध करने वाली प्रमुख औषधि कहा गया है। यह जड़ अपने लाल रंग की तरह ही रक्त से जुड़ी बीमारियों को मिटाने और त्वचा को निखारने में बेहद असरदार है।

✅ मंजिष्ठा के प्रमुख लाभ (Benefits)

1. रक्त शुद्धिकरण – खून में मौजूद अशुद्धियों और विषैले तत्वों को निकालकर शरीर को स्वस्थ बनाती है।

2. त्वचा रोग नाशक – मुंहासे, दाग-धब्बे, खुजली, एलर्जी और सोरायसिस जैसी समस्याओं में कारगर।

3. कैंसररोधी गुण – इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो कोशिकाओं को नुकसान से बचाते हैं।

4. जोड़ों की सूजन और दर्द – गठिया और सूजन में राहत देती है।

5. मासिक धर्म संबंधी विकार – महिलाओं में पीरियड्स की अनियमितता और दर्द को कम करती है।

6. लीवर की सुरक्षा – लीवर को डिटॉक्स कर उसकी कार्यक्षमता बढ़ाती है।

7. इम्युनिटी बूस्टर – रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती है।

🩺 मंजिष्ठा से उपचार (Treatment Uses)

त्वचा रोग – मंजिष्ठा चूर्ण को शहद या गुनगुने पानी के साथ लेने से त्वचा चमकदार बनती है।

मुंहासे और दाग – मंजिष्ठा का लेप चेहरे पर लगाने से मुंहासे और काले दाग कम होते हैं।

खून की अशुद्धि – 1–2 ग्राम मंजिष्ठा चूर्ण रोजाना लेने से खून साफ होता है।

संधिवात (गठिया) – मंजिष्ठा का काढ़ा पीने से जोड़ों की सूजन कम होती है।

स्त्री रोग – मंजिष्ठा और अशोक की छाल का संयोजन मासिक धर्म विकारों में लाभकारी है।

🌟 सेवन विधि (Dosage)

👉 चूर्ण – 1 से 3 ग्राम, दिन में 2 बार गुनगुने पानी या शहद के साथ।
👉 काढ़ा – 20–30 ml, दिन में 2 बार।
👉 लेप – त्वचा पर सीधे पेस्ट बनाकर लगाया जा सकता है।

⚠️ सावधानी

अधिक मात्रा में सेवन करने पर दस्त या कमजोरी हो सकती है।

गर्भवती महिलाओं को बिना वैद्य की सलाह के इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।

संक्षेप में – मंजिष्ठा आयुर्वेद की वो जादुई औषधि है जो खून को साफ कर शरीर और चेहरे की चमक लौटाती है। इसे सही मायनों में "प्राकृतिक ब्यूटी टॉनिक" कहा जा सकता है। 🙏

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चोबचीनी (चोपचिनी) के औषधीय उपयोग: चोबचीनी (Smilax china), जिसे आयुर्वेद में मधुस्नुही या द्वीपान्तर वचा भी कहा जाता है, ...
27/09/2025

चोबचीनी (चोपचिनी) के औषधीय उपयोग:
चोबचीनी (Smilax china), जिसे आयुर्वेद में मधुस्नुही या द्वीपान्तर वचा भी कहा जाता है, एक शक्तिशाली जड़ी-बूटी है। यह मुख्य रूप से इसकी जड़ों का उपयोग किया जाता है, जो तिक्त रस (कड़वी स्वाद), लघु और रूक्ष गुण, कटु विपाक, उष्ण वीर्य वाली होती है। यह त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करने वाली, पाचक, दीपन (भूख बढ़ाने वाली), मलावरोधनाशक (कब्ज नाशक), मूत्रवर्धक, रक्तशोधक, रसायन (यौवन बढ़ाने वाली) और वेदनाहार (दर्द निवारक) गुणों से भरपूर है। यह हृदय टॉनिक, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-माइक्रोबियल और एंटी-ऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करती है।

प्रमुख औषधीय उपयोग और लाभ
चोबचीनी का उपयोग विभिन्न रोगों में किया जाता है। नीचे विस्तृत लाभ दिए गए हैं:

♦️पाचन संबंधी विकार: यह पाचनाग्नि को प्रज्वलित करती है, भूख बढ़ाती है, अपच, गैस, पेट फूलना, पेट दर्द और कब्ज को दूर करती है। गुनगुने पानी के साथ 1-3 ग्राम चूर्ण लेने से पाचन सुधरता है। यह हल्का रेचक (लैक्सेटिव) भी है।

♦️जोड़ों और मांसपेशियों के दर्द: रूमेटाइड आर्थराइटिस, ऑस्टियोआर्थराइटिस, गाउट और न्यूराल्जिया में सूजन और दर्द कम करती है। वात दोष को संतुलित कर अम (विषाक्त पदार्थ) को बाहर निकालती है। जोड़ों पर लेप लगाने या क्वाथ (काढ़ा) पीने से लाभ होता है।

♦️त्वचा रोग: सिफलिस (दूसरी-तीसरी अवस्था), सोरायसिस, एक्जिमा, फोड़े-फुंसी, खुजली और एलर्जिक रिएक्शन में प्रभावी। यह रक्त शुद्ध करती है, हिस्टामाइन रिलीज रोकती है और माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को नष्ट करती है। दूध के साथ चूर्ण पीने से त्वचा स्वस्थ होती है।

♦️मूत्र और गुर्दे संबंधी: मूत्र प्रतिधारण (शोथु) और फ्लूइड रिटेंशन को कम करती है। मूत्र उत्पादन बढ़ाती है, गोनोरिया और यौन संक्रमणों में उपयोगी।

♦️मधुमेह प्रबंधन: इंसुलिन स्राव बढ़ाती है, एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों से ब्लड शुगर कंट्रोल करती है।

♦️मानसिक और तंत्रिका संबंधी: मिर्गी, स्किजोफ्रेनिया, पागलपन, हेमिप्लेजिया और नींद न आने में लाभदायक। नर्व टॉनिक के रूप में कार्य करती है।

♦️यौन स्वास्थ्य: आयुर्वेद में चोबचीनी को पुरुषों और महिलाओं के यौन स्वास्थ्य के लिए उपयोगी माना जाता है। यह पुरुषों में शुक्राणु की गुणवत्ता और संख्या में सुधार कर सकती है और महिलाओं में हार्मोनल संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है।
नपुंसकता, वीर्य विकार, गोनोरिया और सिफलिस में सहायक। वाजीकरण (वीर्यवर्धक) गुणों से यौन शक्ति बढ़ाती है।

♦️एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव
इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो फ्री रैडिकल्स से होने वाले नुकसान को कम करते हैं। यह कोशिकाओं को स्वस्थ रखने और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने में मदद करता है।

♦️एंटी-माइक्रोबियल गुण
इसके रोगाणुरोधी गुण बैक्टीरिया और फंगल इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं, जिससे यह त्वचा और आंतरिक संक्रमणों के इलाज में उपयोगी है।

♦️अन्य लाभ: बुखार, पीलिया, बवासीर, मस्से, कैंसर, सामान्य दुर्बलता, हृदय रोग, लीवर विकार और कीड़े-पतंगे के काटने में उपयोगी। यह पसीना लाती है, विषाक्त पदार्थ निकालती है और शरीर को ताकत देती है।

♦️खुराक: चूर्ण - 1-3 ग्राम दिन में 1-2 बार (शहद या दूध के साथ); क्वाथ - 20-40 मिली; टैबलेट - 1 गोली दिन में 2 बार। हमेशा चिकित्सक की सलाह से लें, क्योंकि अधिक मात्रा में यह गर्मी पैदा कर सकती है।

💠💠💠अन्य जड़ी-बूटियों के साथ नुस्खे (फॉर्मूलेशन और घरेलू उपाय)💠💠💠

चोबचीनी का अकेले उपयोग के अलावा अन्य जड़ी-बूटियों के साथ संयोजन से बेहतर परिणाम मिलते हैं। कुछ प्रमुख नुस्खे:

♦️गठिया और सिफलिस के लिए दूध का क्वाथ: चोबचीनी की जड़ (2-3 ग्राम) को मस्तगी (पिस्टेशिया लेंटिस्कस), इलायची (कार्डमम) और दालचीनी (सिनेमन) के साथ 1 कप पानी और 1 कप दूध में उबालें। आधा रहने पर छानकर चीनी मिलाकर रोज 1 बार पिएं। यह रूमेटाइड आर्थराइटिस, गाउट, मिर्गी, पुरानी वात विकृति, दुबलापन और सिफलिस के तीसरे चरण में लाभदायक।

♦️आर्थराइटिस के लिए अश्वगंधा संयोजन: चोबचीनी चूर्ण (1-2 ग्राम) को अश्वगंधा चूर्ण के साथ शहद मिलाकर लें। जोड़ों के दर्द और सूजन में राहत देता है।

♦️त्वचा रोगों के लिए सरसपरिल्ला क्वाथ: चोबचीनी और सरसपरिल्ला (सर्सा रूट) की समान मात्रा का क्वाथ बनाएं (4-5 ग्राम पाउडर को 200 मिली पानी में उबालकर 50-60 मिली रहने दें)। दिन में 2 बार पिएं। पेम्फिगस और पुरानी त्वचा रोगों में उपयोगी।

♦️चोपचिन्यादि चूर्ण (आर्थराइटिस और गाउट के लिए): यह एक बहुऔषधीय चूर्ण है जिसमें चोबचीनी (मधुस्नुही), विदंग (एम्बेलिया रिबेस), त्रिफला, चीनी, दालचीनी (सिनेमनम जेलानिकम), त्वक पिप्पली (पाइपर लॉन्गम), लवंग (क्लोव), अकरकरभ (एनासाइक्लस पाइरेथ्रम), कोकिलाक्ष (एस्टराकैंथा लॉन्गिफोलिया), मरिच (पाइपर नाइग्रम) और सोंठ (जिंजिबर ऑफिसिनेल) शामिल हैं। इसे चूर्ण रूप में लें। यह एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से जोड़ों की सूजन, दर्द, कीड़े के काटने और गाउट में प्रभावी। खुराक: 1-3 ग्राम दिन में 2 बार।

♦️नपुंसकता के लिए मधुस्नुही रसायन: चोबचीनी चूर्ण को दूध में उबालकर शहद के साथ लें। यह वीर्य विकार और यौन दुर्बलता में सहायक। अन्य फॉर्मूलेशन जैसे मूलकाद्यारिष्ट (त्वचा रोगों के लिए) और बूस्टेक्स कैप्सूल (यौन स्वास्थ्य के लिए) में भी चोबचीनी का उपयोग होता है।

♦️✍️सावधानी: गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माताएं या गर्मी बढ़ाने वाले रोगों वाले व्यक्ति अधिक मात्रा न लें। हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें। Panchgavya wellness & research centre

पंचतिक्त – पाँच कड़वी औषधियों का अनमोल खज़ाना आयुर्वेद में पंचतिक्त पाँच प्रमुख कड़वी औषधियों का विशेष संयोजन है –👉 निंब...
27/09/2025

पंचतिक्त – पाँच कड़वी औषधियों का अनमोल खज़ाना

आयुर्वेद में पंचतिक्त पाँच प्रमुख कड़वी औषधियों का विशेष संयोजन है –
👉 निंब (Neem)
👉 गुडूची (Giloy)
👉 वासा (Adhatoda vasica)
👉 पाटोल (Trichosanthes dioica)
👉 कंथकारी (Solanum xanthocarpum)

इन पाँचों को मिलाकर तैयार किया गया पंचतिक्त रक्तशुद्धि, त्वचा रोग, बुखार, पाचन और प्रतिरक्षा के लिए बेहद असरदार माना गया है।

✅ पंचतिक्त के लाभ (Benefits)

1. रक्तशुद्धि – खून को साफ करता है और त्वचा रोगों को दूर करता है।

2. त्वचा रोगों में उपयोगी – खुजली, एक्जिमा, सोरायसिस और दाद में लाभकारी।

3. ज्वरनाशक (Fever reducer) – बार-बार होने वाले बुखार, मलेरिया और वायरल फीवर में उपयोगी।

4. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए – शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति देता है।

5. यकृत व पाचन तंत्र के लिए लाभकारी – भूख बढ़ाता है, कब्ज व पित्त दोष को दूर करता है।

6. संधि रोग (Arthritis) – जोड़ो के दर्द और सूजन में उपयोगी।

7. कफ-श्वास रोगों में लाभकारी – दमा, खाँसी और कफ को कम करता है।

पंचतिक्त से उपचार (Treatment Uses)

त्वचा रोग – पंचतिक्त घृत या क्वाथ का प्रयोग।

ज्वर/बुखार – क्वाथ के रूप में सेवन।

संधि रोग – पंचतिक्त घृत या तेल से मालिश।

रक्तविकार – क्वाथ या घृत के रूप में सेवन।

🍵 सेवन विधि (How to Take)

1. पंचतिक्त क्वाथ – 10–20 ml, गुनगुना करके सुबह-शाम।

2. पंचतिक्त घृत – 5–10 ग्राम दूध के साथ।

3. पंचतिक्त चूर्ण – 3–5 ग्राम गुनगुने पानी के साथ।

4. पंचतिक्त घृत गुग्गुलु – वैद्य की सलाह अनुसार।

👉 विशेष ध्यान – यह औषधि कड़वी है, इसलिए अक्सर इसे घृत (घी), शहद या दूध के साथ सेवन कराया जाता है।
👉 हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही इसका सेवन करें।

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बलादि गण – शरीर को बल और स्थिरता देने वाला आयुर्वेदिक समूह आयुर्वेद में बलादि गण को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। जैसा ...
27/09/2025

बलादि गण – शरीर को बल और स्थिरता देने वाला आयुर्वेदिक समूह

आयुर्वेद में बलादि गण को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। जैसा नाम बताता है – यह समूह बल (ताकत) प्रदान करने वाला है। इसमें बल, अतिबला, नागबला जैसी शक्तिवर्धक और वातनाशक औषधियाँ सम्मिलित हैं। यह शरीर को बल, स्थिरता और रोगों से रक्षा प्रदान करती हैं।

मुख्य लाभ (Benefits)

1. बल और ऊर्जा वर्धक – शरीर की ताकत और सहनशक्ति बढ़ाता है।

2. वातनाशक – गठिया, जकड़न और जोड़ों के दर्द में सहायक।

3. स्नायु और मांसपेशियों की मजबूती – स्नायु तंत्र को पोषण देता है।

4. पुनर्नवा शक्ति – कमजोरी और थकान को दूर कर शरीर को नया उत्साह देता है।

5. हड्डियों और जोड़ों का बल – हड्डियों को मजबूत कर चोटों के बाद जल्दी ठीक होने में मदद करता है।

6. संतानोत्पत्ति में सहायक – प्रजनन शक्ति को बढ़ाने में उपयोगी।

7. प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि – रोगों से बचाव की शक्ति बढ़ाता है।

🩺 आयुर्वेदिक उपयोग (Treatment Uses)

वात रोग – गठिया, जोड़ दर्द, सूजन

शारीरिक दुर्बलता – अत्यधिक कमजोरी, थकान

स्नायु व मांसपेशी रोग

चोट या फ्रैक्चर के बाद रिकवरी

प्रजनन शक्ति वृद्धि

सर्दी-खाँसी और वातजन्य ज्वर

🍵 सेवन विधि (How to Take)

👉 काढ़ा (क्वाथ) – बलादि गण की जड़ों और औषधियों से बना काढ़ा, 40–50 ml दिन में 1–2 बार।
👉 चूर्ण – 3–5 ग्राम सुबह-शाम, शहद या गुनगुने दूध के साथ।
👉 घृत / अवलेह – बलादि गण से बने घृत या अवलेह, 1–2 चम्मच दिन में।
👉 टेबल्ट/कैप्सूल – आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह अनुसार।

⚠️ सावधानी

चिकित्सक की देखरेख में ही सेवन करें।

अधिक मात्रा में सेवन से पाचन में भारीपन हो सकता है।

गर्भवती महिलाएँ व बच्चों को देने से पहले परामर्श लें।

संक्षेप में – बलादि गण एक ऐसा आयुर्वेदिक समूह है जो शरीर को भीतर से बलवान, स्नायु-मजबूत, वातनाशक और दीर्घायु बनाता है।

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पंचकोल – पाचन और रोग प्रतिरोधक शक्ति का आयुर्वेदिक सूत्र आयुर्वेद में पंचकोल एक विशेष औषधि समूह है जिसमें पाँच औषधियाँ श...
27/09/2025

पंचकोल – पाचन और रोग प्रतिरोधक शक्ति का आयुर्वेदिक सूत्र
आयुर्वेद में पंचकोल एक विशेष औषधि समूह है जिसमें पाँच औषधियाँ शामिल होती हैं –

👉 पिप्पली (लंबी काली मिर्च), पिप्पली मूल (पिप्पली की जड़), चाव्य (लंबी पिप्पली जैसी जड़ी), चित्रक (चित्रक मूल) और नागरमोथा।

इन पाँचों का संयोजन शरीर की जठराग्नि (Digestive Fire) को प्रज्वलित करता है, पाचन सुधारता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत करता है।

✅ पंचकोल के प्रमुख लाभ (Benefits)

1. अग्निदीपन – भूख बढ़ाता है और जठराग्नि को प्रज्वलित करता है।

2. अपच व गैस नाशक – पेट दर्द, गैस और अपच में लाभकारी।

3. अमृत समान औषधि – रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर संक्रमण से बचाता है।

4. कफ नाशक – कफ, खाँसी और जुकाम में उपयोगी।

5. श्वसन स्वास्थ्य – दमा और सांस लेने की समस्या में राहत।

6. मोटापा कम करने में सहायक – मेटाबॉलिज़्म तेज करता है।

7. वात-कफ संतुलक – वात व कफ दोष से उत्पन्न रोगों में लाभकारी।

पंचकोल से आयुर्वेदिक उपचार (Treatment Uses)

अपच व गैस – पंचकोल चूर्ण गुनगुने पानी के साथ।

खाँसी व कफ – शहद के साथ सेवन करने से बलगम निकलता है।

अजीर्ण – त्रिकटु की तरह पेट के भारीपन और अजीर्ण में लाभकारी।

दमा और श्वसन रोग – पंचकोल काढ़ा पीने से सांस की तकलीफ़ कम होती है।

पेट दर्द – तेल या घी के साथ लेने पर पेट दर्द में आराम।

🍵 सेवन की विधि (How to Take)

1. चूर्ण – 2–3 ग्राम, दिन में 2 बार, गुनगुने पानी के साथ।

2. काढ़ा – पंचकोल को पानी में उबालकर 30–50 ml पीना।

3. शहद के साथ – खाँसी और बलगम में 1–2 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर।

4. दूध के साथ – पाचन शक्ति और बल के लिए।

5. भोजन के बाद – आधा चम्मच चूर्ण गर्म पानी के साथ।

6. तेल या घी में मिलाकर – वात रोग और पेट दर्द में।

7. हर्बल टॉनिक – अन्य द्रव्यों के साथ मिलाकर रोग प्रतिरोधक शक्ति हेतु।

⚠️ सावधानी (Precautions)

अधिक मात्रा में सेवन से पेट में जलन हो सकती है।

गर्भवती और छोटे बच्चों को चिकित्सक की सलाह अनुसार ही दें।

अल्सर और अति-पित्त वाले रोगियों को सावधानी से सेवन करना चाहिए।

🌸 निष्कर्ष – पंचकोल पाँच औषधियों का अद्भुत संयोजन है जो पाचन को मज़बूत करता है, शरीर से रोगों को दूर रखता है और जीवन में शक्ति व स्फूर्ति भरता है। 🌸

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त्रिवृत – प्राकृतिक शुद्धिकारक औषधि आयुर्वेद में त्रिवृत (Trivrit / Operculina turpethum) को द्रव्यगुण विज्ञान में एक मह...
27/09/2025

त्रिवृत – प्राकृतिक शुद्धिकारक औषधि

आयुर्वेद में त्रिवृत (Trivrit / Operculina turpethum) को द्रव्यगुण विज्ञान में एक महत्वपूर्ण औषधि माना गया है। इसे संस्कृत में निशोत्र, त्रिवृत, और आम बोलचाल में निशोत या तरपथा भी कहते हैं।

यह एक अद्भुत शुद्धिकारक (Purgative) औषधि है, जो शरीर के दोषों को बाहर निकालकर स्वास्थ्य लाभ देती है।

✅ त्रिवृत के प्रमुख लाभ (Benefits)

1. शरीर शुद्धि (Detoxification) – पेट की गंदगी और आंतों की अशुद्धि दूर करता है।

2. कब्ज नाशक – प्राकृतिक रेचक (Natural Laxative) है, कब्ज को तुरंत राहत देता है।

3. पाचन सुधारक – जठराग्नि को संतुलित कर पाचन मजबूत करता है।

4. त्वचा रोग नाशक – रक्त को शुद्ध कर फोड़े-फुंसी और त्वचा रोगों में लाभ।

5. ज्वरहर (Fever Reducing) – बुखार में दोषहर औषधियों के साथ उपयोगी।

6. कफ और पित्त संतुलक – कफ-पित्त के कारण होने वाली बीमारियों में लाभ।

7. मोटापा और विषहर (Anti-toxin) – शरीर में जमा वसा और विषाक्त पदार्थ बाहर निकालने में सहायक।

💊 आयुर्वेदिक उपचार (Treatment Uses)

कब्ज व पेट की गंदगी – त्रिवृत चूर्ण रेचक के रूप में लिया जाता है।

त्वचा रोग – रक्तशुद्धि के लिए अन्य द्रव्यों के साथ सेवन।

ज्वर (Fever) – त्रिवृत क्वाथ ज्वरहर योग में प्रयुक्त।

जलोदर (Ascites) – पेट में पानी जमने की समस्या में उपयोगी।

आमवात (Rheumatism) – दोषहर औषधियों के साथ त्रिवृत चूर्ण दिया जाता है।

🍵 सेवन विधि (How to Take)

1. चूर्ण रूप में – 1–3 ग्राम, गुनगुने पानी या दूध के साथ।

2. क्वाथ (काढ़ा) – 30–40 ml, चिकित्सक की सलाह अनुसार।

3. घी के साथ – कब्ज और पाचन सुधार के लिए।

4. शहद के साथ – त्वचा रोग और रक्तशुद्धि में।

5. अन्य योगों में – त्रिवृत लवण, अभयादि चूर्ण आदि में प्रयोग।

⚠️ सावधानियाँ (Precautions)

गर्भवती और बच्चों को बिना चिकित्सक सलाह न दें।

अधिक मात्रा लेने पर दस्त और कमजोरी हो सकती है।

अति-पित्त और अल्सर रोगियों को सावधानी से सेवन कराना चाहिए।

निष्कर्ष –
त्रिवृत एक शरीर शुद्धिकारक और रोग नाशक औषधि है जो पेट की सफाई, रक्तशुद्धि और दोषहर गुणों के कारण आयुर्वेद में अत्यंत उपयोगी मानी जाती है। इसे उचित मात्रा और चिकित्सक की देखरेख में लेने से यह कई रोगों की जड़ को मिटाकर शरीर को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाती है। 🙏

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त्रिवंग भस्म – मधुमेह और मूत्ररोग की आयुर्वेदिक अमृत औषधि आयुर्वेद में त्रिवंग भस्म एक महत्वपूर्ण धातु-भस्म है, जो टिन (...
27/09/2025

त्रिवंग भस्म – मधुमेह और मूत्ररोग की आयुर्वेदिक अमृत औषधि

आयुर्वेद में त्रिवंग भस्म एक महत्वपूर्ण धातु-भस्म है, जो टिन (वंग), जिंक (यशद) और सीसा (नाग) – इन तीन धातुओं से बनाई जाती है। इसे शुद्धिकरण और विशेष संस्कार विधियों से तैयार किया जाता है। त्रिवंग भस्म मुख्यतः मधुमेह (Diabetes), मूत्र विकार, पुरुष एवं स्त्री जननांग विकारों में उपयोगी मानी जाती है।

✅ त्रिवंग भस्म के प्रमुख लाभ (Benefits)

1. मधुमेह नाशक – रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है।

2. मूत्र रोग निवारक – बार-बार पेशाब आना, मूत्र रुकना या मूत्र की जलन में लाभकारी।

3. शुक्र वर्धक – पुरुषों में वीर्य की मात्रा और गुणवत्ता सुधारता है।

4. स्त्री रोग नाशक – श्वेत प्रदर (Leucorrhoea), मासिक धर्म विकारों और बांझपन में सहायक।

5. बलवर्धक – शारीरिक कमजोरी, थकान और दुर्बलता दूर करता है।

6. प्रजनन शक्ति वर्धक – पुरुष और स्त्रियों दोनों में गर्भधारण क्षमता बढ़ाता है।

7. कृमिनाशक – शरीर से कीड़े और हानिकारक जीवाणुओं का नाश करता है।

त्रिवंग भस्म से आयुर्वेदिक उपचार (Treatment Uses)

मधुमेह (Diabetes): 125–250 mg त्रिवंग भस्म शहद या गिलोय रस के साथ।

मूत्र विकार (Urinary Disorders): 125 mg त्रिवंग भस्म गोखरू या गिलोय काढ़े के साथ।

श्वेत प्रदर (Leucorrhoea): 125 mg त्रिवंग भस्म मक्खन या दूध के साथ।

पुरुष वंध्यता (Male Infertility): त्रिवंग भस्म अश्वगंधा चूर्ण के साथ सेवन।

स्त्री वंध्यता (Female Infertility): 125 mg त्रिवंग भस्म शतावरी कल्प के साथ।

बलवर्धन (Strength & Stamina): त्रिवंग भस्म च्यवनप्राश के साथ।

कृमि रोग (Worms/Parasites): गिलोय रस के साथ सेवन।

🍯 सेवन की सात विधियाँ (Seven Vidhi)

1. शहद के साथ – मधुमेह व मूत्र रोगों में।

2. दूध के साथ – स्त्री रोग और बलवर्धन हेतु।

3. घृत (गाय का घी) के साथ – शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए।

4. अश्वगंधा चूर्ण के साथ – पुरुष वंध्यता व वीर्य वृद्धि में।

5. शतावरी चूर्ण के साथ – स्त्री वंध्यता और गर्भधारण क्षमता बढ़ाने हेतु।

6. गोखरू काढ़े के साथ – मूत्र रोग और पथरी में।

7. गिलोय रस के साथ – मधुमेह और कृमि रोगों में।

⚠️ सावधानी (Precautions)

यह भस्म औषधि है, इसे केवल आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में लेना चाहिए।

ओवरडोज़ से उल्टी, सिरदर्द या धातु विषाक्तता हो सकती है।

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएँ बिना सलाह उपयोग न करें।

👉 आयुर्वेद में त्रिवंग भस्म को “मधुमेहहर व प्रजनन शक्ति वर्धक रसायन” माना गया है। यह छोटी मात्रा में दीर्घकालिक लाभ देने वाली शक्तिशाली औषधि है। 🙏

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27/09/2025

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Vaidya Pariksh*t Singh Chauhan, Akanksha Singh, Prachi Sarvapriya, सुमित रणदिवे, Mukesh Kumar, Anil Kumar Anil, Prince Kumar, Biswajit Mallick, Prakasan Gurukulam, Kundan Shah, Dnyanesh Salgude, Jagnarayan Choudhary, कमल टावरी

नीलगिरी या सफेदा या लिप्टिस  (Eucalyptus) – श्वसन रोगों का प्राकृतिक रक्षक 🙏आयुर्वेद में नीलगिरी के पत्ते और तेल को विशे...
25/09/2025

नीलगिरी या सफेदा या लिप्टिस (Eucalyptus) – श्वसन रोगों का प्राकृतिक रक्षक 🙏

आयुर्वेद में नीलगिरी के पत्ते और तेल को विशेष औषधीय गुणों वाला माना गया है। इसका स्वाद तिक्त (कड़वा) और गुण उष्ण (गर्म) होते हैं। यह मुख्य रूप से कफ-नाशक, श्वसन रोग हर, जीवाणुनाशक और वेदनाहर (दर्द निवारक) है।

✅ नीलगिरी के प्रमुख लाभ

1. श्वसन तंत्र के लिए अमृत – दमा, खांसी, सर्दी-जुकाम और सांस की तकलीफ में लाभकारी।

2. कफ नाशक – बलगम को पतला कर बाहर निकालता है।

3. दर्द निवारक – जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों के दर्द और गठिया में उपयोगी।

4. जीवाणु व विषाणु नाशक – संक्रमण, फंगल और बैक्टीरिया रोगों में असरदार।

5. मस्तिष्क शुद्धि व ताजगी – इसकी सुगंध मानसिक तनाव और सिरदर्द को कम करती है।

6. त्वचा रोग नाशक – घाव, फोड़े-फुंसी, खुजली और संक्रमण में लाभकारी।

7. कीट निवारक – मच्छर और कीड़े भगाने में प्रभावी।

🩺 नीलगिरी से आयुर्वेदिक उपचार (Treatment Uses)

सर्दी-जुकाम: नीलगिरी तेल की भाप लेने से बंद नाक खुलती है और कफ बाहर आता है।

दमा व खांसी: नीलगिरी पत्तों का काढ़ा पीने से श्वसन मार्ग साफ होता है।

जोड़ों का दर्द: नीलगिरी तेल की मालिश करने से सूजन और दर्द कम होता है।

त्वचा रोग: नीलगिरी तेल को नारियल तेल में मिलाकर लगाने से घाव और फंगल संक्रमण ठीक होते हैं।

सिरदर्द: इसकी भाप या तेल की सुगंध सूंघने से राहत मिलती है।

मच्छर भगाने में: कमरे में नीलगिरी तेल मिलाकर जलाने से मच्छर दूर रहते हैं।

🍃 सेवन और उपयोग की सात विधियाँ (Seven Vidhi)

1. भाप चिकित्सा (Steam Inhalation) – नीलगिरी तेल की कुछ बूंदें गर्म पानी में डालकर भाप लेना।

2. काढ़ा (Decoction) – पत्तों का काढ़ा बनाकर पीना, खासकर खांसी-दमा में।

3. तेल मालिश (Massage Oil) – नीलगिरी तेल को तिल या नारियल तेल में मिलाकर दर्द वाले स्थान पर लगाना।

4. अरोमा थेरेपी – कमरे में नीलगिरी तेल की सुगंध फैलाकर मानसिक ताजगी पाना।

5. लेप (Paste) – पत्तों को पीसकर फोड़े-फुंसी पर लगाना।

6. सिरदर्द निवारण – माथे पर नीलगिरी तेल की हल्की मालिश।

7. कीट प्रतिरोधक – पानी या कपूर में नीलगिरी तेल डालकर कमरे में छिड़काव करना।

⚠️ सावधानी:

नीलगिरी तेल को कभी भी सीधा और अधिक मात्रा में न पिएँ।

बच्चों और गर्भवती महिलाओं में केवल डॉक्टर की सलाह से प्रयोग करें।

अत्यधिक सेवन से उल्टी, चक्कर या सिरभारी हो सकती है।

👉 नीलगिरी को आयुर्वेद में “कफघ्न व श्वसन हितकर” औषधि माना गया है। यह प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और एंटीवायरल गुणों से भरपूर है। Panchgavya wellness & research centre

बलराम जी की मृत्यु कैसे हुई ?बलराम जी की मृत्यु के बारे में दो कहानियाँ प्रचलित हैं।पहली कहानी के अनुसार, बलराम जी ने अप...
25/09/2025

बलराम जी की मृत्यु कैसे हुई ?

बलराम जी की मृत्यु के बारे में दो कहानियाँ प्रचलित हैं।

पहली कहानी के अनुसार, बलराम जी ने अपने जीवन के अंतिम समय में कृष्ण जी से कहा कि उन्हें अपने मूल स्वरूप में लौटना है। कृष्ण जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया, और बलराम जी ने क्षीरसागर में समाधि ले ली।

दूसरी कहानी के अनुसार, बलराम जी ने एक दिन एक तालाब में डुबकी लगाई। जब वे बाहर निकले, तो उन्होंने देखा कि एक विशाल नाग उनके मुख से बाहर निकल रहा है। समुद्र उस नाग की स्तुति कर रहा रहा था। कुछ ही समय में वह नाग सागर में समा गया। इस तरह बलराम जो शेषनाग के अवतार थे शरीर त्यागकर क्षीरसागर में चले गए।

दोनों कहानियों के अनुसार, बलराम जी की मृत्यु एक अद्भुत घटना थी। वे अपने मूल स्वरूप में लौट गए, यानी शेषनाग में।

बलराम जी की मृत्यु के बाद, कृष्ण जी बहुत दुखी हुए। उन्होंने बलराम जी के लिए एक भव्य अंतिम संस्कार किया। इस अंतिम संस्कार में सभी देवता और ऋषि-मुनियों ने भाग लिया।

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