13/09/2024
कुंडली मे कारक अकारक ग्रह जो कुंडली आंकलन करने में सहायता प्राप्त करते है.:-
कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम भावों के अतिरिक्त कहीं भी उच्च राशि, स्वराशि, मूलत्रिकोण राशि, मित्रक्षेत्री राशि ग्रह हों या इन्हीं नवांशों में स्थित हों तो वह कारक माने जाते हैं.
जन्म कुण्डली में प्रथम,चतुर्थ, सप्तम और दसम भावों में ग्रह स्वराशि, मूलत्रिकोण या उच्चस्थ हो तो उन्हें परस्पर कारक ग्रह माना जाता है
इन परस्पर कारक ग्रहों से तात्पर्य होता है कि एक दूसरे के लिए यह अनुकूल होकर ग्रहों के फलों में शुभता देने वाले बनते हैं., तथा जातक को शुभता एवं जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी प्राप्त होती है.
कारक ग्रहों के मजबूत व बली होने पर जातक को हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है. कारक ग्रहों के उच्चता पूर्ण होने से व्यक्ति अग्रीण स्थिति को पाता है. यदि जातक साधारण घर में भी जन्मा हो परंतु उसके ग्रहों में बलता है तो वह उच्च स्थिति को अवश्य पा लेगा.
योगकारक: प्रत्येक ग्रह केंद्र (1, 4, 7, 10 भाव) का स्वामी होकर निष्फल होता है, परंतु त्रिकोण (1,5,9 भाव) का स्वामी सदैव शुभ फल देता है।
एक ही ग्रह केंद्र और त्रिकोण का एक साथ स्वामी होने पर ‘योगकारक’ (अति शुभ फलदायी) बन जाता है। जैसे सिंह राशि के लिए मंगल, और तुला लग्न के लिए शनि ग्रह।
प्रथम भाव- सूर्य, द्वितीय भाव-बृहस्पति, तृतीय भाव- मंगल, चतुर्थ भाव - चंद्रमा व बुध, पंचम भाव- बृहस्पति, षष्ठ भाव- मंगल व शनि, सप्तम भाव - शुक्र, अष्टम भाव- शनि, नवम भाव - बृहस्पति व सूर्य, दशम भाव- सूर्य, बुध, बृहस्पति व शनि, एकादश भाव- बृहस्पति और द्वादश भाव- शनि।
कुंडली मे अकारक ग्रहः- दशा में जीवन में अनेक उतार-चढाव उत्पन्न होते हैं.
चिंता बढ़ाते हैं, पीड़ा पहुंचते हैं, कष्टों में वृद्धिकारक होते हैं ।
घर में कलह रहता है ।
राज्य, प्रशासन से भय बना रहता है ।
मानसिक परेशानी बढ़ती है
ऋण के कारण परेशानी होती है ।
स्थान परिवर्तन होता है ।
पत्नी को कष्ट होता है ।
मान हानि होती है, प्रतिष्ठा में कमी आती है ।
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