Bhatt astro and pooja path

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आचार्य जयदीप जी
जय श्री रुद्रेश🙏 नमस्ते दोस्तो आज एक नई शुरूवात के साथ जो कई विगत ५ वर्ष पूर्व ऑफलाइन माध्यम से कर रहा था आप से जुडने के लिए आज इस पेज को बना रहा हू ताकी आप भी इस पेज के माध्यम से मुझ तक जुडे ओर अपनी जीवन की समस्या को दूर कर सकते है।

जैसे - विवाह की समस्याएं, संपत्ति, स्वास्थ्य के मुद्दे, कानूनी मामले, विदेश यात्रा, मंगनी, शिक्षा, करियर आदी।

आपको यदी कोई भी पूजा पाठ जैसे-सत्यानारायण कथा नवरात्री पाठ जाप हवन इत्यादी कोई भी धार्मिक कार्य हेतु आप संम्पर्क कर सकते है

अतः पूजा संम्बन्धित कोईं भी प्रश्न
जैसे- सूतक प्रारम्भ विचार गण मूल दोष इत्यादि ज्योतिष सम्बन्धित प्रश्न भी आप ग्रुप मे चर्चा कर सकते हे।
हर हर महादेव 🙏😊

💥 जो सदस्य कभी भी कुंडली पोस्ट करके प्रश्न पूछना चाहते हैं  इस पोस्ट को अपने प्रोफाइल में सेव करके रखें ताकि जब उपाय बता...
01/12/2025

💥 जो सदस्य कभी भी कुंडली पोस्ट करके प्रश्न पूछना चाहते हैं इस पोस्ट को अपने प्रोफाइल में सेव करके रखें ताकि जब उपाय बताया जाए तो आपको ढूंढना ना पड़े।
कुछ समय बाद यह मत पूछना किस ग्रह का क्या मंत्र है ? प्रबल कैसे करें ? दान उपाय क्या करना है ?
♦️ज्योतिष में सिर्फ दो ही उपाय होते हैं । जो ग्रह आपको फलादेश के हिसाब से लाभ दे रहे हैं यदि वह कमजोर है तो उन्हें प्रबल करें ।
जो ग्रह आपको फलादेश के हिसाब से परेशान कर रहे हैं उनका दान एवं उपाय उन ग्रहों से संबंधित जीव-जंतुओं के लिए करें ।
👉 प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में विधि विधान से साधना अवश्य करना चाहिए । कुछ महत्वपूर्ण मंत्र है जिनका जाप प्रत्येक व्यक्ति को बचपन से करना चाहिए । जिसके माध्यम से आप कई सारे कष्टों से छुटकारा पा सकते हैं ।
👉 किसी भी ग्रह का मंत्र जाप तभी लाभ देगा जब आप विधि विधान से साधना करेंगे और उसके बाद ज्यादा से ज्यादा संख्या में मंत्र जाप करें । एक दो माला मंत्र जाप करने से कुछ होने वाला नहीं है । परंतु आप एक दो माला से प्रारंभ करें और और धीरे-धीरे बढ़ाएं एवं अनुष्ठान करें ।
🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸

👉 सूर्य –
प्रबल – यदि किसी की कुंडली में सूर्य कारक है एवं फलादेश के हिसाब से लाभ पहुंचा रहे हैं और कमजोर हैं तो ऐसी स्थिति में माणिक्य सोने या तांबे में रविवार को धारण करना चाहिए । जब तक आपके पास माणिक्य धारण करने की स्थिति नहीं है तब तक आप बेल का जड़ या लाल चंदन की माला धारण कर सकते हैं । लाल चंदन का तिलक लगा सकते हैं । लाल चंदन की माला से सूर्य मंत्र का जाप कर सकते हैं । ( पूर्ण लाभ माणिक्य से ही होगा )
मंत्र – ।। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ।।
♦️यदि सूर्य जन्म कुंडली में आकारक है या फलादेश के हिसाब से किसी प्रकार की परेशानी उत्पन्न कर रहे हैं तब सूर्य से संबंधित दान एवं उपाय रविवार को करना चाहिए ।

सूर्य से संबंधित दान – गेहूं , तांबा , गुड़ , लाल चंदन , लाल वस्त्र किसी 50 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को रविवार को दान करना चाहिए ।

उपाय – प्रातः तांबे के लोटे में जल , कुंकुम, अक्षत एवं लाल पुष्प डालकर सूर्य को अर्पित करें । भूरे गाय को गेहूं एवं गुड़ अपने हाथों से खिलाए । बंदरों को गुड़ एवं चने खिलाए । पिता के पैर छूकर आशीर्वाद लें एवं पिता की सेवा करें ।

👉 चन्द्र –
प्रबल – यदि कुंडली में चंद्रमा पीड़ित या कमजोर है तो सोमवार को मोती चांदी में धारण करना चाहिए । जब तक आपके पास मोती धारण करने की व्यवस्था नहीं है तब तक आप चंद्रमा का मंत्र जाप कर सकते हैं । सफेद चंदन का तिलक लगा सकते हैं । खिरनी का जड़ धारण कर सकते हैं ।
मंत्र – ।। ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः ।।
पूर्णिमा की रात्रि को खीर बनाकर छत पर चंद्रमा की रोशनी में रखें ( चलनी से ढक देना चाहिए ताकि कोई कीड़ा उसमें ना पड़े ) दूसरे दिन प्रातः उसको प्रसाद के रूप में ग्रहण करें ।

चंद्रमा किसी भी ग्रह को शत्रु दृष्टि से नहीं देखता है । बहुत कम ही देखा गया है कि चंद्रमा प्रबल होकर किसी प्रकार की परेशानी करे । परंतु फिर भी यदि ऐसा होता है तो चंद्रमा से संबंधित दान एवं उपाय करना चाहिए । दान – सफेद वस्त्र , दूध , चावल , शंख , मोती , सफेद चंदन , मिस्त्री ( सोमवार को माता के समान स्त्री को )

👉 मंगल –
प्रबल – यदि मंगल कुंडली में कारक हो और फलादेश के हिसाब से लाभ दे रहा हो परंतु कमजोर हो तो इसको प्रबल करने के लिए मूंगा सोने या तांबे में मंगलवार को धारण करना चाहिए ।
जब तक मूंगा धारण करने की व्यवस्था ना हो तब तक मंगल का मंत्र जाप करें । तांबे की अंगूठी या कड़ा धारण करें । अनंतमूल का जड़ धारण करें । मंत्र – ॥ ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः ॥
♦️यदि जन्म कुंडली में मंगल किसी प्रकार की परेशानी दे रहा हो तो मंगल से संबंधित दान एवं उपाय ( मंगलवार को ) करना चाहिए । ( किसी युवा सन्यासी या व्यक्ति को या हनुमान मंदिर में )

दान – गुड़ , मसूर की दाल , शहद , लाल वस्त्र , लाल चंदन , तांबा , सिंदूर ।

उपाय – हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ करें । कार्तिकेय भगवान की आराधना करें । गाय को रोटी में गुड रखकर खिलाए । हनुमान मंदिर में चोला चढ़ाएं । भाई से अच्छा संबंध रखें । स्वास्थ्य ठीक हो तो रक्त दान करें । ( यदि कोई कन्या मांगलिक हो तो मंगला गौरी की आराधना करें तथा मंगल चंडिका स्तोत्र का पाठ करें । )

👉 बुध –
प्रबल- यदि जन्म कुंडली में बुध फलादेश के हिसाब से लाभ पहुंचा रहा हो और कमजोर हो तो पन्ना सोने या पीतल में बुधवार को धारण करना चाहिए ।
जब तक आपके पास पन्ना धारण करने की व्यवस्था ना हो तब तक विधारा की जड़ धारण कर सकते हैं या बुध का मंत्र जाप कर सकते हैं ।
मंत्र – ।। ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः ।।
♦️यदि जन्म कुंडली में बुध फलादेश के हिसाब से किसी प्रकार की परेशानी दे रहा हो तो उससे संबंधित दान एवं उपाय करना चाहिए

दान – हरा वस्त्र , मूंग की दाल , फल , हरि सब्जी , हरि कांच की चूड़ी , किन्नर या किसी कन्या को ।

उपाय – मूंग की दाल मंगलवार की रात को जल में भीगा दें एवं बुधवार को दिन में पंछियों को खिलाएं । बुधवार को गाय को हरा चारा घास या हरी शब्जी खिलाएं ।
बहन या बुआ को वस्त्र एवं मिठाई दान कर सकते हैं ।

👉 गुरु –
प्रबल – यदि जन्म कुंडली में फलादेश के हिसाब से गुरु ग्रह लाभ दे रहा हो एवं कमजोर हो तो पुखराज सोने या पीतल में गुरुवार को धारण करना चाहिए । जब तक आपके पास पुखराज धारण करने की सामर्थ्य नहीं है तब तक आप केले की जड़ या हल्दी की गांठ धारण कर सकते हैं । हल्दि या केसर का तिलक लगाएं । हल्दी की माला से मंत्र जाप करें ।
मंत्र – ।। ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः ।।
♦️यदि फलादेश के हिसाब से गुरु ग्रह किसी प्रकार की परेशानी दे रहा हो तो इससे संबंधित दान किसी ब्राह्मण , पुरोहित या गुरु को करना चाहिए एवं उपाय करना चाहिए ।

दान – पीला वस्त्र , हल्दी , चने की दाल , धार्मिक पुस्तक , पिला फल

उपाय – बुधवार को रात को चने की दाल भिगोकर रखें गुरुवार को प्रातः रोटी में चने दाल हल्दी एवं नमक भर के गाय को खिलाएं । पीपल के पेड़ पर जल अर्पित करें । किसी सच्चे साधु , महात्मा या गुरु का अपमान नहीं करना चाहिए ।

👉 शुक्र –
प्रबल – फलादेश के हिसाब से शुक्र लाभ दे रहा हो एवं कमजोर हो तो हीरा या ओपल चांदी में शुक्रवार को धारण करना चाहिए । जब तक रत्न धारण करने की सामर्थ्य नहीं है तब तक सरपुंखा या गूलर की जड़ धारण कर सकते हैं । मंत्र जाप कर सकते हैं ।
मंत्र- ।। ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः ।।
♦️यदि फलादेश के हिसाब से शुक्र परेशानी दे रहा हो तो शुक्र से संबंधित दान किसी युवती या काने व्यक्ति को करना चाहिए एवं उपाय करना चाहिए ।
दान – चांदी , दूध , दही , घी , इत्र , चावल , मिश्री , सफेद मिठाई , सफेद चंदन , रेशमी रंगीन वस्त्र , ( शुक्रवार को )

उपाय – गाय को रोटी खिलाएं एवं गाय की सेवा करें । आटा एवं शक्कर चीटियों को डालें ।

👉 शनि –
प्रबल – यदि कुंडली में फलादेश के हिसाब से शनि लाभ दे रहा हो और कमजोर हो तो इसको प्रबल करने के लिए नीलम चांदी या पंच धातु में शनिवार को धारण करना चाहिए। जब तक नीलम धारण करने की सामर्थय नहीं है तब तक शमी का जड़ धारण कर सकते हैं । लोहे का छल्ला धारण कर सकते हैं या मंत्र जाप कर सकते हैं।
मंत्र – ।। ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः ।।
♦️यदि शनि फलादेश के हिसाब से किसी प्रकार की परेशानी दे रहा हो तो शनि का दान किसी वृद्ध मजदूर को शनिवार को करना चाहिए ।
दान – काले वस्त्र , उरद , कला तिल , लोहे की सामग्री , जूते , सरसो का तेल , बादाम , काला छाता ।
उपाय – शनिवार को लोहे की कटोरी में सरसों तेल डालकर उसमें अपनी परछाई देखकर दान करें । शनिवार को संध्याकाल में पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं , काला तिल एवं मीठा जल चढ़ाएं तथा 7 बार परिक्रमा करें । मोर पंख पूजा स्थान में रखें । शनिवार को रोटी में हल्का सरसों तेल और नमक लगाकर काले कुत्ते या काली गाय या भैसा या कौए को खिलाएं । शराब का सेवन ना करें । बूढ़े गरीब मजदूर को भोजन कराएं ।

👉 राहु –
राहु से होने वाले परेशानी से बचने के लिए राहु का दान एवं उपाय शनिवार या बुधवार को करना चाहिए । ( कुष्ठ रोगी या सफाई कर्मी को ) । मंत्र – ॥ ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः ॥
♦️दान – नीले काले वस्त्र , ( यव ) जौ , काली उड़द , जटा वाला नारियल , चाय पत्ती , तंबाकू , मूली , कोयला इत्यादि।
उपाय – कुष्ठ रोगी को भोजन कराएं जिसमें काले उड़द की एक सामग्री अवश्य होनी चाहिए । जौ कच्चे दूध से धोकर नदी में विसर्जित करें या पंछियों को खिलाएं । घर में या छत पर किसी भी प्रकार का बंद बिजली का सामान या कबाड़ ना रखें । ( उड़द की दाल , जौ , बाजरा , काला तिल , सफेद तिल एक साथ मिलाकर पंछियों को प्रतिदिन खिलाएं । ) पारद शिवलिंग स्थापित करके रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का स्वयं जाप करें । रुद्राष्टाध्यायी ( पांचवें अध्याय के 16 मंत्र ) का पाठ करते हुए पारद शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करें ।

👉 केतु –
फलादेश के हिसाब से केतु यदि समस्या उत्पन्न कर रहा हो तो दान एवं उपाय करना चाहिए ।( मंगलवार या शनिवार को कुष्ठ रोगी या सफाईकर्मी को )
मंत्र – ।। ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः ।।
♦️दान – चितकबरा कंबल , भूरा वस्त्र , सतनाजा , नारियल , काला – सफेद तिल , तिल का तेल , बकरा इत्यादि ।
उपाय – असगंध की जड़ धारण करें । काले एवं सफेद तिल के लड्डू गणेश जी को चढ़ा कर बांटें । कुत्ते को दूध एवं ब्रेड खिलाएं , प्रतिदिन कुत्ते को बिस्किट या रोटी खिलाएं । सतनाजे की रोटी कुत्ते को खिलाएं । ( उड़द की दाल , जौ , बाजरा , काला तिल , सफेद तिल एक साथ मिलाकर पंछियों को प्रतिदिन खिलाएं । )

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💥 जो सदस्य विधिवत गुरु दीक्षा लेकर नियम से प्रतिदिन साधना करते हैं उनके जीवन की परेशानी धीरे-धीरे कम होने लगते है ।

🔶 महामृत्युंजय मंत्र – जीवन में होने वाले रोग बीमारी , कष्ट , अकाल मृत्यु से रक्षा के लिए सोमवार से प्रारंभ करके प्रतिदिन पारद या स्फटिक का शिवलिंग तथा महामृत्युंजय यंत्र स्थापित करके रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें ।
( ॥ ॐ हौं जुं सः त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् सः जुं हौं ॐ ॥ )

🔶 नवार्ण मंत्र – ( अमोध सुरक्षा प्रदान करने वाला मंत्र ) समस्त प्रकार की व्याधियों , बाहरी आक्रमणों और घाट प्रतिघात से बचाने वाला यह एक मात्र मंत्र है , जिसे सिद्ध करने पर मानव को न शत्रुओं से भय रहता है और न किसी प्रकार की आधि – व्याधि , कष्ट – पीड़ा का डर रहता है । यह मंत्र मानव को सभी दृष्टियों से सुरक्षा प्रदान करता है । ऐसे व्यक्ति पर किसी भी प्रकार का कोई तान्त्रिक प्रभाव व्याप्त नहीं रहता है । ( ॥ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ )

🔶 लक्ष्मी मंत्र – जीवन में दरिद्रता को समाप्त करके धन – धान्य एवं समृद्धि प्राप्त करने के लिए शुक्रवार से प्रारंभ करके प्रतिदिन कमलगट्टे की माला से लक्ष्मी मंत्र का जाप करें एवं कनकधार स्तोत्र या श्री सूक्त का पाठ करें ।
( ॥ ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः ॥ )

🔶 कर्ज मुक्ति के लिए बुधवार से प्रारंभ करें - गणेश जी की छोटी सी प्रतिमा स्थापित करके हल्दी की माला से कर्ज मुक्ति गणेश मंत्र का जाप करें ।
।। ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट् ॥
🔹🔹🔹🔹🔹

Mo - 074670 62534

27/11/2025

सीखे रुद्राष्टाध्याय का पाठ करना 1 अध्याय

26/11/2025

*|।ॐ।| जय गोपीनाथ की|।ॐ।|*
*आज का पंचांग*

*तिथि.........................षष्ठी*
*गते.........................ग्यारह*
*वार.......................बुधवार*
*पक्ष.........................शुक्ल*
*नक्षत्र.......................श्रवण*
*योग............................गंड*
*राहुकाल.....१२.१०--१३.४९*
*मास....................मार्गशीर्ष*
*ऋतु.........................हेमंत*
*युगाब्द ..................५१२७*
*विक्रम संवत्.............२०८२*
*26 नवम्बर ई.स. -2025*
*आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो*
🕉️🚩🔔🪔🚩🔔🌻🕉️
*_ऊॅं श्री जम्भेश्वराय नमः_*
*Jaydeep i*

24/11/2025

"चतुर्थ-भाव: मूलाधार, मातृ-भाव, सुख-क्षेम एवं स्थावर-संपत्ति का केन्द्र"

✓•वैदिक ज्योतिष में चतुर्थ-भाव को ‘सुख-स्थान’ कहा गया है। पाराशर मुनि इसे मातृ-भाव, गृह-स्थैर्य, भूमि-वाहन, अचल-संपत्ति तथा हृदय-स्थिति का कारक मानते हैं।
(बृहत्पाराशर होरा शास्त्र अध्याय-१२):
“सुखस्थं मातृ-स्थानं गृह-भूमि-वहनादिकम्।”
अर्थात् चतुर्थ-भाव सुख, माता, भवन, भूमि, वाहन और आन्तरिक शांति से सम्बद्ध है।
अतः इस भाव का विश्लेषण दो मुख्य दिशाओं में किया जाता है:
१. सुख-मानसिकता: मानसिक शांति, हृदयस्थिरता, घरेलू वातावरण।
२. संपत्ति-स्थैर्य: भूमि, भवन, वाहन, स्थावर-अचल संपत्ति।
ग्रहों के स्वभाव एवं चतुर्थ-भाव की शक्ति इन दोनों को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं।

✓•चतुर्थ-भाव के ग्रह-फल: ग्रहानुसार विश्लेषण: नीचे प्रत्येक ग्रह के चतुर्थ-भावगत फल का शास्त्रीय संदर्भों सहित निरूपण प्रस्तुत है:

✓•१. सूर्य चतुर्थ-भाव में: सूर्य अग्नितत्त्व, अधिकार, पितृत्व और तेज का कारक है। चतुर्थ-भाव में यह ‘मातृ-भाव’ में स्थित होने से माता के स्वास्थ्य और सुख में कुछ संघर्ष देता है।

फलदीपिका (अध्याय-७, श्लोक-११):
“चतुर्थस्थो रविर्दुःखं मातृ-क्षयं गृहक्लेशम्।”

✓•मुख्य फल:
• माता के स्वास्थ्य-कष्ट।
• गृह-शांति में बाधा; घर बार-बार बदलने की प्रवृत्ति।
• यदि सूर्य बलवान हो (उच्च, स्वामि, मित्र-राशि), तो राजकीय भवन, अधिकारयुक्त संपत्ति, सरकारी वाहन, बड़े घर का योग।
• सुख की अनुभूति में कमी, परंतु प्रॉपर्टी प्राप्ति संभव।

✓•२. चन्द्रमा चतुर्थ-भाव में: चन्द्रमा स्वयं चतुर्थ-भाव का सामान्य कारक है; अतः यह यहाँ अत्यन्त शुभफल देता है।

बृहत्पाराशर होरा शास्त्र:
“चन्द्रे सुख-वृद्धिः, मातृ-सौख्यं, गृह-सौंदर्यम्।”

✓•मुख्य फल:
• उत्कृष्ट मानसिक शांति, भावनात्मक स्थिरता।
• माता दीर्घायु, मातृ-सुख।
• सुंदर घर, सुशोभित वाहन, जल-कन्या भूमि (पानी के पास संपत्ति)।
• अनेक वस्तुओं का संग्रह तथा घरेलू अनुभव में प्रसन्नता।

✓•३. मंगल चतुर्थ-भाव में: मंगल अग्नि-स्वभाव, भूमि और भाई-कारक है। यह चतुर्थ-भाव में ‘भूमि-संपत्ति’ में उन्नति देता है परंतु शांति में कुछ कमी लाता है।

सारावली (अध्याय-११):
“चतुर्थस्थो कुजो भूमि-वृद्धिं कलहो गृहक्लेशम्।”

✓•मुख्य फल:
• भूमि, भवन खरीदने का प्रबल योग।
• वाहन लाभ लेकिन दुर्घटना-जोखिम भी बढ़ेगा।
• गृह-कलह; पड़ोसियों या भाई-सम्बन्धियों से विसंवाद।
• माँ की ऊर्जा-शक्ति मजबूत पर स्वास्थ्य में रक्त-दोष की सम्भावना।

✓•४. बुध चतुर्थ-भाव में: बुध बुद्धि, व्यापार, लेखन, भूमि-व्यवहार और दस्तावेज-कारक है। चतुर्थ-भाव में यह अत्यन्त शुभफलों में गिना जाता है।

फलदीपिका:
“बुधो गृह-संपत्ति-वृद्धिकरः।”

✓•मुख्य फल:
• बौद्धिक सुख एवं शिक्षा की उन्नति।
• संपत्ति के दस्तावेज, रजिस्ट्री, लीज, एग्रीमेंट द्वारा लाभ।
• घर में व्यापार या कोचिंग-सेंटर आदि से लाभ।
• माता बुद्धिमती, शांत-स्वभाव, कलात्मक।

✓•५. गुरु चतुर्थ-भाव में: गुरु चतुर्थ-भाव में अत्यधिक शुभ है। इसे ‘सर्वोत्तम स्थान’ में से एक माना जाता है।

बृहत्जातक:
“चतुर्थे बृहस्पतिः सुखसमृद्धिः।”

✓•मुख्य फल:
• अत्यन्त विशाल घर, कई भूमि-संपत्तियाँ।
• माता धर्मात्मा, दानी, कल्याणकारी।
• जीवन में प्रचुर ‘मानसिक-सुख’; तनाव-प्रतिरोधक क्षमता अधिक।
• शिक्षा, गुरुकुल, आश्रम, धार्मिक भवन, होटेल, स्कूल आदि संपत्ति में योग।

✓• ६. शुक्र चतुर्थ-भाव में: शुक्र सौंदर्य, विलास, वाहन, गृह-सज्जा, रत्न, कला का कारक है। चतुर्थ-भाव में इसकी स्थिति विलासिता और आराम बढ़ाती है।

फलदीपिका:
“चतुर्थस्थः शुक्रः सुख-समृद्धिकारकः।”

✓•मुख्य फल:
• सुंदर, आरामदायक, सुसज्जित घर; अच्छे वाहन।
• उत्कृष्ट सुख-अनुभूति एवं मानसिक संतोष।
• माता सुशोभित, कलात्मक, प्रेमपूर्ण।
• घर में कला, संगीत, रसमयता, महंगे शौक।

✓• ७. शनि चतुर्थ-भाव में: शनि स्थिरता का प्रतीक है परंतु ठंडक तथा विलम्ब देता है। चतुर्थ-भाव में इसका प्रभाव मिश्रित कहलाता है।

सारावली:
“स्थावर-संपत्तौ वृद्धिः, गृहसुखे विलम्बः।”

✓•मुख्य फल:
• जीवन में विलम्ब से संपत्ति; परंतु अंततः बहुत स्थिर संपत्ति प्राप्त।
• बचपन में गृह-कष्ट; वयस्क अवस्था में सुख-वृद्धि।
• माता कठोर-स्वभाव, मेहनती, कुछ रोगबाधित।
• पुराने घर, पुरानी गाड़ियाँ, फैक्ट्री/वेयरहाउस संपत्ति से लाभ।

✓√८. राहु चतुर्थ-भाव में: राहु मायावी, विदेशी तत्व, तकनीकी, इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी का कारक है।

✓•फलित सिद्धांतानुसार:
• अत्याहारिक सुखाकांक्षा, परंतु मानसिक बेचैनी।
• विदेशी भूमि, विदेशी वाहन, तकनीकी उपकरणों द्वारा लाभ।
• अचानक भूमि-लाभ या भूमि-विवाद दोनों सम्भव।
• माँ के स्वास्थ्य में गैस, वायु, एलर्जी या मानसिक तनाव।

✓•९. केतु चतुर्थ-भाव में: केतु मोक्षकारक, त्याग, शोध, नकारात्मक कृत्यों से दूरी का कारक है।

✓•प्राचीन मत:
• घर-परिवार से वैराग्य।
• अचानक भूमि-हानि या गृह-परिवर्तन।
• वैदिक-विद्या, ध्यान-योग में मन।
• वाहन-हानि का संकेत।
• यदि शुभ राशियों में हो, तो आध्यात्मिक सुख मिलता है।

✓•सुख और संपत्ति पर ग्रहों के संयुक्त प्रभाव:
चतुर्थ-भाव केवल अकेले ग्रहों से प्रभावित नहीं होता, बल्कि कुल चार शक्तियों से फल उत्पन्न करता है:
१. ग्रह-स्थितिः (उच्च, नीच, मित्र-राशि, शत्रु-राशि)
२. चतुर्थेश का बल: चतुर्थ-भाव का स्वामी किस भाव और ग्रह से सम्बद्ध है।
३. सुख-कारक ग्रह: चन्द्र, शुक्र, गुरु – इनका बल इस भाव में सुख बढ़ाता है।
४. दृष्टियाँ: चतुर्थ-भाव पर गुरु-दृष्टि अत्यन्त शुभ; शनिदृष्टि स्थिरता देती है पर प्रारम्भिक कष्ट।

✓•चतुर्थ-भाव एवं संपत्ति की विशेष योग-विधान नीचे प्रामाणिक योग दिए जा रहे हैं:
१. गजकेतु योग: चतुर्थ-भाव में गुरु-केतु का शुभ योग होने पर अप्रत्याशित संपत्ति-गैन।
२. वासुमति योग: चन्द्र चतुर्थ, सप्तम या दशम में हो और अन्य शुभग्रह द्विदृष्ट हों तो अत्यधिक सुख-समृद्धि।
३. भूमि-सम्मर्द योग: मंगल चतुर्थ में हो और चतुर्थेश बलवान हो तो भूमि-संपत्ति अत्यधिक।
४. राजसमृद्धि योग: चौथे में गुरु + शुक्र; घर राजसी, किले सदृश भवन।
५. विपरीत-राजयोग: चतुर्थेश षष्ठ/अष्टम/द्वादश में हो और दुष्टान्तर स्वामी चतुर्थ में आए – जीवन में संघर्ष के बाद भारी संपत्ति।

✓•चतुर्थ-भाव व सुख-संपत्ति के शास्त्रीय सार-निष्कर्ष:
१. चन्द्र, शुक्र, गुरु चतुर्थ-भाव में अत्यन्त शुभफलदायी।
२. मंगल, सूर्य – संपत्ति देते हैं पर गृह-शांति कम करते हैं।
३. शनि – स्थिर संपत्ति देता है पर विलम्ब और प्रारम्भिक कष्ट।
४. राहु-केतु – मानसिक अस्थिरता देते हैं परतकनीकी या आध्यात्मिक लाभ।
५. चतुर्थेश का बल ग्रहों से अधिक निर्णायक है।
६. गुरु-दृष्टि चतुर्थ-भाव के दोषों का पूर्ण शमन करती है।

✓•उपसंहार: चतुर्थ-भाव सुख, घर, माता, स्थावर-संपत्ति तथा मानसिक संतुलन का मूलाधार है। ग्रहों की स्थिति, चतुर्थेश का बल, दृष्टियाँ तथा योग-नियमन – ये सभी घटक मिलकर जातक के जीवन-सुख, गृह-स्थैर्य और संपत्ति को नियन्त्रित करते हैं। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित श्लोकों के आधार पर स्पष्ट सिद्ध होता है कि चतुर्थ-भाव की शुभता व्यक्ति को आन्तरिक संतोष, विशाल संपत्ति, मातृ-सुख, वाहन-संपन्नता तथा निवास-सौख्य प्रदान करती है, जबकि इसकी दोषयुक्त अवस्था जीवन के मूल सुखों में कमी लाती है।
#जयदीपभट्ट

21/11/2025

ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों

रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है। ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 3 से 5 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।

“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।

अर्थात - ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।

सिख धर्म में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है--"अमृत वेला", जिसके द्वारा इस समय का महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।

ब्रह्म मुहूर्त में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।

पौराणिक महत्व

वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।

शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है--

वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।

ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥

अर्थात- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।

ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति

ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।

इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि

आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।

प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।

तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ - ऋग्वेद-1/125/1

अर्थात- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।

यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा।

सुवाति सविता भग:॥ - सामवेद-35

अर्थात- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।

उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।

अथर्ववेद- 7/16/2

अर्थात- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।

व्यावहारिक महत्व

व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।

जैविक घड़ी .......

पर आधारित शरीर की दिनचर्या

प्रातः 3 से 5 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना। इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है।

प्रातः 5 से 7 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आंत में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान का लेना चाहिए। सुबह 7 के बाद जो मल-त्याग करते है उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।

प्रातः 7 से 9 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आमाशय में होती है। यह समय भोजन के लिए उपर्युक्त है। इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार) घूँट-घूँट पिये।

प्रातः 11 से 1 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से हृदय में होती है।

दोपहर 12 बजे के आस–पास मध्याह्न – संध्या (आराम) करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसी लिए भोजन वर्जित है। इस समय तरल पदार्थ ले सकते है। जैसे मट्ठा पी सकते है। दही खा सकते है।

दोपहर 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से छोटी आंत में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए। इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है।

दोपहर 3 से 5 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मूत्राशय में होती है। 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।

शाम 5 से 7 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से गुर्दे में होती है। इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए। शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन न करे। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते है। देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।

रात्री 7 से 9 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क में होती है। इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है। अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है। आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टी हुई है।

रात्री 9 से 11 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है।

रात्री 11 से 1 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से पित्ताशय में होती है। इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा, नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है। इस समय नई कोशिकाएं बनती है।

रात्री 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से लीवर में होती है। अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है। इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।🙏🌺🚩🕉️

16/11/2025

सुपुत्र योग —
1. पंचमेश और गुरुग्रह का सामर्थ्य
जब पंचम भाव का स्वामी बृहस्पति हो या बृहस्पति पंचम भाव को सुदृढ़ दृष्टि से देख रहा हो तथा सूर्य उच्च, बलवान या शुभ स्थिति में हो, तब श्रेष्ठ संतान-योग उत्पन्न होता है।
2. पंचम भाव दुष्प्रभाव से मुक्त हो
यदि पंचम भाव पर षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव के स्वामियों का अधिकार, दृष्टि या कोई पापदृष्टि न हो, तो संतान-सुख में बाधाएँ नहीं आतीं।
3. पंचम भाव शुभग्रहों से सुसंपन्न
पंचम भाव में चंद्र, बृहस्पति, शुक्र या बुध जैसे प्राकृतिक शुभ ग्रह उपस्थित हों या उन ग्रहों की दृष्टि पड़े — इससे संतान बुद्धिमान, आज्ञाकारी और शुभ गुणों से युक्त होती है।
4. सुपुत्र की प्राप्ति का संकेत
सुपुत्र योग का मुख्य फल यह है कि जातक को ऐसा पुत्र प्राप्त हो जो कुल का गौरव बढ़ाने वाला, स्नेही, संस्कारी और उदार हृदय वाला हो।
5. पंचमेश की उत्तम स्थिति
जब पंचम भाव का स्वामी केंद्र (1, 4, 7, 10) या त्रिकोण (1, 5, 9) में स्थित हो, तब वह ग्रह अत्यंत बलवान होकर संतान की वृद्धि और सुख को सुनिश्चित करता है।
6. शुभ वर्गों में पंचम भाव/पंचमेश
यदि पंचम भाव या उसका स्वामी नवांश, दशांश या अन्य वर्ग कुंडलियों में शुभ स्थान प्राप्त करे, तो संतान न केवल कुलदीपक होती है बल्कि जीवन में विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त करती है।
7. पंचम भाव में अस्त या निष्ठ ग्रह न हों
यदि पंचम भाव में स्थित ग्रह जला हुआ, नीच, अस्त या पापग्रहों से पीड़ित न हों, तो संतान-संबंधी सभी विषय सरलता से फलित होते हैं।
#ज्योतिष #बृहस्पति

12/11/2025

कालाष्टमी आज
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भारत में 12 नवंबर 2025, बुधवार को कालाष्टमी का पावन पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। यह तिथि अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पड़ती है, जिसे काल भैरव जयंती के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप ‘काल भैरव’ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस बार की कालाष्टमी पर शिववास योग समेत कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन शुभ योगों में पूजा करने से साधक को न केवल मनचाही सफलता मिलती है, बल्कि आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होती है। इस दिन भक्तगण उपवास और रात्रि जागरण कर भगवान भैरव की आराधना करते हैं।

काल भैरव की पूजा का महत्व
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धार्मिक मान्यता के अनुसार, काल भैरव देव की आराधना करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है। यह पूजा व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों, भय, असफलता और आर्थिक संकट से मुक्ति दिलाती है। भगवान भैरव की कृपा से व्यक्ति का जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर जाता है।

कालाष्टमी पर व्रत और पूजन विधि
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कालाष्टमी के दिन श्रद्धालु प्रातः स्नान कर भगवान शिव और काल भैरव की पूजा करते हैं। पूजा में काला तिल, काला वस्त्र, तेल का दीपक और इमरती का भोग विशेष रूप से चढ़ाया जाता है। भक्त पूरे दिन व्रत रखते हैं और रात्रि में भैरव स्तोत्र का पाठ करते हैं।

कालाष्टमी पर जरूर करें इन मंत्रों का जाप
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1. ओम शिवगणाय विद्महे गौरीसुताय धीमहि तन्नो भैरव प्रचोदयात।।
2. ओम कालभैरवाय नम:
3. ओम भ्रां कालभैरवाय फट्
4. धर्मध्वजं शङ्कररूपमेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम्। द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये।।
जयदीप भट्ट ,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 7467062534
नोट- अगर आप अपना भविष्य जानना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉल करके या व्हाट्स एप पर मैसेज भेजकर पहले शर्तें जान लेवें, इसी के बाद अपनी बर्थ डिटेल और हैंडप्रिंट्स भेजें।

ग्रहों के सेनापति मंगल ने बनाया केंद्र त्रिकोण राजयोग, इन राशियों के शुरू हो सकते हैं अच्छे दिन, आकस्मिक धन लाभ के योग1....
02/11/2025

ग्रहों के सेनापति मंगल ने बनाया केंद्र त्रिकोण राजयोग, इन राशियों के शुरू हो सकते हैं अच्छे दिन, आकस्मिक धन लाभ के योग

1.Kendra Trikon Rajyog 2025: ग्रहों के सेनापति मंगल इस समय वृश्चिक राशि में रहकर रूचक के साथ केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण कर रहे हैं, जिससे इन तीन राशि के जातकों को हर क्षेत्र में सफलता, आत्म विश्वास में वृद्धि के साथ सम्मान मिल सकता है।
Written by jaydeep bhatt

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18 महीने बाद भूमिपुत्र मंगल ने बनाया पावरफुल केंद्र त्रिकोण राजयोग, इन राशियों की संवर सकती है किस्मत, होगी तगड़ी कमाई

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ग्रहों के सेनापति मंगल ने बनाया केंद्र त्रिकोण राजयोग, इन राशियों के शुरू हो सकते हैं अच्छे दिन, आकस्मिक धन लाभ के योग
Kendra Trikon Rajyog 2025: ग्रहों के सेनापति मंगल इस समय वृश्चिक राशि में रहकर रूचक के साथ केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण कर रहे हैं, जिससे इन तीन राशि के जातकों को हर क्षेत्र में सफलता, आत्म विश्वास में वृद्धि के साथ सम्मान मिल सकता है।

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Kendra Trikon Rajyog 2025: भूमिपुत्र मंगल ने बनाया केंद्र त्रिकोण राजयोग

Kendra Trikon Rajyog 2025: वैदिक ज्योतिष शास्त्र में मंगल को ग्रहों का सेनापति माना जाता है। इसे काफी महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है। मंगल को युद्ध, शौर्य, पराक्रम, रक्त , भूमि आदि का कारक माना जाता है। वह एक राशि में करीब 45 दिन रहते हैं। ऐसे में एक राशि में आने में करीब 17-18 महीने का वक्त लग जाता है। मंगल की स्थिति में बदलाव का असर 12 राशियों के जीवन में किसी न किसी तरह से अवश्य देखने को मिलता है। बता दें कि हाल में मंगल वृश्चिक राशि में प्रवेश किया है। अपनी स्वराशि में आने से मंगल ने पंचमहापुरुष में से एक रूचक राजयोग का निर्माण कर रहे हैं। इसके अलावा मंगल केंद्र त्रिकोण राजयोग का भी निर्माण कर रहे हैं। मंगल के इस योग का निर्माण करने से कुछ राशि के जातकों को विशेष लाभ मिल सकता है। यह विश्लेषण आपकी चंद्र राशि के आधार पर किया जा रहा है। जानें इन लकी राशियों के बारे में…

⚜️ श्रीगरुड़ पुराण (सारोद्धार) ⚜️ अध्याय–04 ⚜️इस अध्याय में:- (नरक प्रदान कराने वाले पापकर्म)          गरुड़ जी ने कहा–‘ह...
13/09/2025

⚜️ श्रीगरुड़ पुराण (सारोद्धार) ⚜️ अध्याय–04 ⚜️
इस अध्याय में:- (नरक प्रदान कराने वाले पापकर्म)
गरुड़ जी ने कहा–‘हे केशव ! किन पापों के कारण पापी मनुष्य यमलोक के महामार्ग में जाते हैं और किन पापों से वैतरणी में गिरते हैं तथा किन पापों के कारण नरक में जाते हैं? वह मुझे बताइए।’
श्रीभगवान बोले–‘सदा पापकर्मों में लगे हुए, शुभ कर्म से विमुख प्राणी एक नरक से दूसरे नरक को, एक दु:ख के बाद दूसरे दु:ख को तथा एक भय के बाद दूसरे भय को प्राप्त होते हैं। धार्मिक जन धर्मराजपुर में तीन दिशाओं में स्थित द्वारों से जाते हैं और पापी पुरुष दक्षिण-द्वार के मार्ग से ही वहाँ जाते हैं।
इसी महादु:खदायी दक्षिण मार्ग में वैतरणी नदी है, उसमें जो पापी पुरुष जाते हैं, उन्हें मैं तुम्हें बताता हूँ, 'जो ब्राह्मणों की हत्या करने वाले, सुरापान करने वाले, गोघाती, बाल हत्यारे, स्त्री की हत्या करने वाले, गर्भपात करने वाले और गुप्तरूप से पाप करने वाले हैं, जो गुरु के धन को हरण करने वाले, देवता अथवा ब्राह्मण का धन हरण करने वाले, स्त्रीद्रव्यहारी, बालद्रव्यहारी हैं, जो ऋण लेकर उसे न लौटानेवाले, धरोहर का अपहरण करने वाले, विश्वासघात करने वाले, विषान्न देकर मार डालने वाले, दूसरे के दोष को ग्रहण करने वाले, गुणों की प्रशंसा ना करने वाले, गुणवानों के साथ डाह रखने वाले, नीचों के साथ अनुराग रखने वाले, मूढ़, सत्संगति से दूर रहने वाले हैं, जो तीर्थों, सज्जनों, सत्कर्मों, गुरुजनों और देवताओं की निन्दा करने वाले हैं, पुराण, वेद, मीमांसा, न्याय और वेदान्त को दूषित करने वाले हैं।
दु:खी व्यक्ति को देखकर प्रसन्न होने वाले, प्रसन्न को दु:ख देने वाले, दुर्वचन बोलने वाले तथा सदा दूषित चित्तवृत्ति वाले हैं। जो हितकर वाक्य और शास्त्रीय वचनों को कभी न सुनने वाले, अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने वाले, घमण्डी, मूर्ख होते हुए अपने को विद्वान समझने वाले हैं, 'ये तथा अन्य बहुत पापों का अर्जन करने वाले अधर्मी जीव रात-दिन रोते हुए यममार्ग में जाते हैं। यमदूतों के द्वारा पीटे जाते हुए वे पापी वैतरणी की ओर जाते हैं और उसमें गिरते हैं, ऎसे उन पापियों के विषय में मैं तुम्हें बताता हूँ:-
जो माता, पिता, गुरु, आचार्य तथा पूज्यजनों को अपमानित करते हैं, वे मनुष्य वैतरणी में डूबते हैं। जो पुरुष पतिव्रता, सच्चरित्र, उत्तम कुल में उत्पन्न, विनय से युक्त स्त्री को द्वेष के कारण छोड़ देते हैं, वे वैतरणी में पड़ते हैं। जो हजारों गुणों के होने पर भी सत्पुरुषों में दोष का आरोपण करते हैं और उनकी अवहेलना करते हैं, वे वैतरणी में पड़ते हैं।
वचन दे करके जो ब्राह्मण को यथार्थ रूप में दान नहीं देता है और बुला करके जो व्यक्ति “नहीं है” ऎसा कहता है, वे दोनों सदा वैतरणी में निवास करते हैं। स्वयं दी हुई वस्तु का जो अपहरण कर लेता है, दान देकर पश्चात्ताप करता है, जो दूसरे की आजीविका का हरण कर लेता है, दान देने से रोकता है, यज्ञ का विध्वंस करता है, कथा-भंग करता है, क्षेत्र की सीमा का हरण कर लेता है और गोचर भूमि को जोतता है, वह वैतरणी में पड़ता है।
ब्राह्मण होकर रसविक्रय करने वाला, वृषली का पति (शूद्र स्त्री का ब्राह्मण पति), वेद प्रतिपादित यज्ञ के अतिरिक्त अपने लिए पशुओं की हत्या करने वाला, ब्रह्मकर्म से च्युत, मांसभोजी, मद्य पीने वाला, उच्छृंखल स्वभाव वाला, शास्त्र अध्ययन से रहित (ब्राह्मण), वेद पढ़ने वाला शूद्र, कपिला का दूध पीने वाला शूद्र, यज्ञोपवीत धारण करने वाला शूद्र, ब्राह्मणी का पति बनने वाला शूद्र, राजमहिषी के साथ व्यभिचार करने वाला, परायी स्त्री का अपहरण करने वाला, कन्या के साथ कामाचार की इच्छा रखने वाला तथा जो सतीत्व नष्ट करने वाला है।
ये सभी तथा इसी प्रकार और भी बहुत निषिद्धाचरण करने में उत्सुक तथा शास्त्रविहित कर्मों को त्याग वाले वे मूढ़जन वैतरणी में गिरते हैं। सभी मार्गों को पार करके पापी यम के भवन में पहुँचते हैं और पुन: यम की आज्ञा से आकर दूत लोग उन्हें वैतरणी में फेंक देते हैं। 'हे खगराज! यह वैतरणी नदी कष्ट प्रदान करने वाले सभी प्रमुख नरकों में सर्वाधिक कष्टप्रद है। इसलिए यमदूत पापियों को उस वैतरणी में फेंकते हैं।
जिसने अपने जीवनकाल में कृष्णा (काली) गाय का दान नहीं किया अथवा मृत्यु के पश्चात जिसके उद्देश्य से बान्धवों द्वारा कृष्णा गौ नहीं दी गई तथा जिसने अपनी और्ध्वदैहिक क्रिया नहीं कर ली या जिसके उद्देश्य से और्ध्वदैहिक क्रिया नहीं की गई हो, वे वैतरणी में महान दु:ख भोग करके वैतरणी तटस्थित शाल्मली-वृक्ष में जाते हैं। जो झूठी गवाही देने वाले, धर्म पालन का ढोंग करने वाले, छल से धन का अर्जन करने वाले, चोरी द्वारा आजीविका चलाने वाले, अत्यधिक वृक्षों को काटने वाले, वन और वाटिका को नष्ट करने वाले, व्रत तथा तीर्थ का परित्याग करने वाले, विधवा के शील को नष्ट करने वाले हैं।
जो स्त्री अपने पति को दोष लगाकर परपुरुष में आसक्त होने वाली है, 'ये सभी और इस प्रकार के अन्य पापी भी शाल्मली वृक्ष द्वारा बहुत ताड़ना प्राप्त करते हैं। पीटने से नीचे गिरे हुए उन पापियों को यमदूत नरकों में फेंकते हैं। उन नरकों में जो पापी गिरते हैं, उनके विषय में मैं तुम्हें बतलाता हूँ, 'वेद की निन्दा करने वाले नास्तिक, मर्यादा का उल्लंघन करने वाले, कंजूस, विषयों में डूबे रहने वाले, दम्भी तथा कृतघ्न मनुष्य निश्चय ही नरकों में गिरते हैं। जो कुंआ, तालाब, बावली, देवालय तथा सार्वजनिक स्थान, धर्मशाला आदि, 'को नष्ट करते हैं, वे निश्चय ही नरक में जाते हैं।
स्त्रियों, छोटे बच्चों, नौकरों तथा श्रेष्ठजनों को छोड़कर एवं पितरों और देवताओं की पूजा का परित्याग करके जो भोजन करते हैं, वे नरकगामी होते हैं। जो मार्ग को कीलों से, पुलों से, लकड़ियों से तथा पत्थरों एवं काँटों से रोकते हैं, निश्चय ही वे नरकगामी होते हैं।
जो मन्द पुरुष भगवान शिव, भगवती शक्ति, नारायण, सूर्य, गणेश, सद्गुरु और विद्वान, 'इनकी पूजा नहीं करते, वे नरक में जाते हैं। दासी को अपनी शय्या पर आरोपित करने से ब्राह्मण अधोगति को प्राप्त होता है और शूद्रा में संतान उत्पन्न करने से वह ब्राह्मणत्व से ही च्युत हो जाता है। वह ब्राह्मण कभी भी नमस्कार के योग्य नहीं होता। जो मूर्ख ऎसे ब्राह्मण की पूजा करते हैं, वे नरकगामी होते हैं। दूसरों के कलह से प्रसन्न होने वाले जो मनुष्य ब्राह्मणों के कलह तथा गौओं की लड़ाई को नहीं रुकवाते हैं (प्रत्युत ऎसा देखकर प्रसन्न होते हैं) अथवा उसका समर्थन करते हैं, बढ़ावा देते हैं, वे अवश्य ही नरक में जाते हैं।
जिसका कोई दूसरा शरण नहीं है, ऎसी पतिपरायणा स्त्री के ऋतुकाल की द्वेषवश उपेक्षा करने वाले निश्चित ही नरकगामी होते हैं। जो कामान्ध पुरुष रजस्वला स्त्री से गमन करते हैं अथवा पर्व के दिनों (अमावस्या, पूर्णिमा आदि) में, जल में, दिन में तथा श्राद्ध के दिन कामुक होकर स्त्रीसंग करते हैं, वे नरकगामी होते हैं।
जो अपने शरीर के मल को आग, जल, उपवन, मार्ग अथवा गोशाला में फेंकते हैं, वे निश्चित ही नरक में जाते हैं। जो हथियार बनाने वाले, बाण और धनुष का निर्माण करने वाले तथा इनका विक्रय करने वाले हैं, वे नरकगामी होते हैं। चमड़ा बेचने वाले वैश्य, केश (योनि) का विक्रय करने वाली स्त्रियाँ तथा विष का विक्रय करने वाले, 'ये सभी नरक में जाते हैं।
जो अनाथ के ऊपर कृपा नहीं करते हैं, सत्पुरुषों से द्वेष करते हैं और निरपराध को दण्ड देते हैं, वे नरकगामी होते हैं। आशा लगाकर घर पर आये हुए ब्राह्मणों और याचकों को पाकसम्पन्न रहने पर भी जो भोजन नहीं कराते, वे निश्चय ही नरक प्राप्त करने वाले होते हैं। जो सभी प्राणियों में विश्वास नहीं करते और उन पर दया नहीं करते तथा जो सभी प्राणियों के प्रति कुटिलता का व्यवहार करते हैं, वे निश्चय ही नरकगामी होते हैं। जो अजितेन्द्रिय पुरुष नियमों को स्वीकार कर के बाद में उन्हें त्याग देते हैं, वे नरकगामी होते हैं।
जो अध्यात्म विद्या प्रदान करने वाले गुरु को नहीं मानते और जो पुराणवक्ता को नहीं मानते, वे नरक में जाते हैं। विवाह को भंग करने वाला, देव यात्रा में विघ्न करने वाला तथा तीर्थयात्रियों को लूटने वाला घोर नरक में वास करता है और वहाँ से उसका पुनरावर्तन नहीं होता।
जो महापापी घर, गाँव तथा जंगल में आग लगाता है, यमदूत उसे ले जाकर अग्निकुण्डों में पकाते हैं। इस अग्नि में जले हुए अंगवाला वह पापी जब छाया की याचना करता है तो यमदूत उसे असिपत्र नामक वन में ले जाते हैं। जहाँ तलवार के समान तीक्ष्ण पत्तों से उसके अंग जब कट जाते हैं तब यमदूत उससे कहते हैं–‘रे पापी! शीतल छाया में सुख की नींद सो।’
जब वह प्यास से व्याकुल होकर जल पीने की इच्छा से पानी माँगता है तो दूतों के द्वारा उसे खौलता हुआ तेल पीने के लिये दिया जाता है। “पानी पीयो और अन्न खाओ”, 'ऐसा उस समय उनके द्वारा कहा जाता है। उस अति उष्ण तेल के पीते ही उनकी आँतें जल जाती हैं और वे गिर पड़ते हैं। किसी प्रकार पुन: उठकर अत्यन्त दीन की भाँति प्रलाप करते हैं। विवश होकर ऊर्ध्व श्वास लेते हुए वे कुछ कहने में भी समर्थ नहीं होते।
'हे तार्क्ष्य! इस प्रकार की पापियों की बहुत सी यातनाएँ बतायी गई हैं। विस्तारपूर्वक इन्हें कहने की क्या आवश्यकता? इनके संबंध में सभी शास्त्रों में कहा गया है। इस प्रकार हजारों नर-नारी नारकीय यातना को भोगते हुए प्रलयपर्यन्त घोर नरकों में पकते रहते हैं। उस पाप का अक्षय फल भोगकर पुन: वहीं पैदा होते हैं और यम की आज्ञा से पृथ्वी पर आकर स्थावर आदि योनियों को प्राप्त करते हैं।
वृक्ष, गुल्म, लता, वल्ली, गिरि (पर्वत) तथा तृण आदि ये स्थावर योनियाँ कही गई हैं, ये अत्यन्त मोह से आवृत हैं। कीट, पशु-पक्षी, जलचर तथा देव, 'इन योनियों को मिलाकर चौरासी लाख योनियाँ कही गई हैं।
इन सभी योनियों में घूमते हुए जब जीव मनुष्य योनि प्राप्त करते हैं और मनुष्य योनि में भी नरक से आये व्यक्ति चाण्डाल के घर जन्म लेते हैं तथा उसमें भी कुष्ठ आदि पाप चिह्नों से वे बहुत दु:खी रहते हैं। किसी को गलित कुष्ठ हो जाता है, कोई जन्म से अन्धे होते हैं और कोई महारोग से व्यथित होते हैं। इस प्रकार पुरुष और स्त्री में पाप के चिह्न दिखाई पड़ते हैं।
(इस प्रकार गरुड़पुराण के अन्तर्गत सारोद्धार में ‘नरक प्रदान करने वाले पाप कर्म' नामक चौथा अध्याय पूर्ण हुआ)
० ० ०

॥जय जय श्री हरिः॥
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