NEGI EYE CARE Rishikesh

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27/05/2024
27/05/2024
27/05/2024

" #हम #उत्तराखण्ड के #पहाड़ और #मैदान दोनों ही क्षेत्र में पले बढ़े #बच्चे है।"
#पांचवी तक घर से #पाटी बुल्ख्या लेकर #स्कूल गए थे।
पाटी को हमने #तवे की #राख घोट घोट कर #पिलायी थी।
#कांच की #दवात से #पाटी घिसघिस कर #चमकाई थी।
#सुबह सूर्य #किरणों में #पाटी को हमने #दगड़्यों के #मुंह पर चम चम #चमकाई थी।
#पाटी को #जीभ से #चाटकर अक्षर #मिटाने की #आदत हमारी #स्थाई थी।
#पहाड़े #याद न होने पर #बांस की कलम चबाकर हमने टेन्शन मिटायी थी।
स्कूल में चटाई न होने पर बैठने के लिए बोरी बगल में दबायी थी।
छठी कक्षा में पहली दफा हमने अंग्रेजी के अक्षर देखे, लेकिन बढ़िया अंग्रेजी हमें बारहवीं तक भी नहीं आयी थी।
हम पहाड़ के बच्चों की अपनी एक अलग दुनिया थी।
कपड़े के बस्ते में किताब, कापियां ढंग से लगाने की हममें एक कौशलता थी।
पाटी घोटने की तन्मयता हमारी एक किस्म की साधना ही थी।
हर साल नई कक्षा की कापी किताबें मिलने पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का एक उत्सव जैंसे होता था।
कभी सूखी रोटी, कभी दाल़ गैथ भट्ट की भरी रोटी मां की धोती के टुकड़े में लपेटकर हमारा लंच बाक्स होता था,
तो कभी आड़ू, नासपाती, संतरे, माल्टा, मुंगरी कखड़ी ही लंच बाक्स होता था।
नीली कमीज और खाकी पैंट पहनकर जब हम इंटरमीडिएट कालेज पहूँचे,
तो पहली दफा खुद के कुछ बड़े होने का अहसास हुआ।
सुबह धै लगा लगाकर दगड़्यों को स्कूल के लिए बुलाते, टोली बनाकर 5-7 किलोमीटर की उकाल उंदार सरपट दौड़कर स्कूल चले जाते।
कभी जंगल में छुपकर गुच्छी, कंच्चे खेलकर स्कूल से कट मारा था।
गांव में सामुहिक भोज होने पर दाल भात खाने के लिए कभी हाफटाइम से कट मारा था।
स्कूल में गुरुजी से पिटते, मुर्गा बनते, मगर हमारा ईगो हमें कभी परेशान न करता था,
क्योंकि हम पहाड़ के बच्चों को नहीं पता था इगो क्या होता था।
गुरू जी की पिटाई व सजा का रंज कुछ देर में भूल जाते, फिर दगड़्यों के संग पूरी तन्मयता से खेलकर हुल्लड़बाजी करते।
रोज़ सुबह प्रार्थना के समय पीटी के दौरान एक हाथ का फासला लेना,
लेकिन अपनी आदत से मजबूर जानबूझ कर धक्का मुक्की में अड़ना भिड़ना, सावधान विश्राम होना।
हम पहाड़ के निकले बच्चे सपने देखने का सलीका नही सीख पाते,
अपने माँ बाप से कितना प्यार करते हैं कभी ये नहीं बता पाते।
हम पहाड़ से निकले बच्चे गिरते सम्भलते लड़ते भिड़ते दुनिया का हिस्सा बन जाते हैं।
कुछ मंजिल पा जाते हैं, कुछ जिंदगी के थपेड़े खाकर
यूं ही खो जाते हैं।
पहाड़ से निकले सभी बच्चे अपनी दुनिया उतनी रंगीन नहीं बना पाते हैं,
पर वो ब्लैक एंड व्हाइट में रंग भरने की कोशिश जरूर करतें हैं।
रोजगार के लिए लाख शहर में रहें,
लेकिन पहाड़ के बच्चों के अपने संकोच, घर गांव की अनमोल यादें जीवनपर्यन्त पीछा करती हैं।
सुड़क सुड़क की ध्वनि के साथ चाय पीना,
अनजान जगह जाकर रास्ता कई कई दफा पूछना।
कपड़ो को सिलवट से बचाए रखना और रिश्तों को अनौपचारिकता से बचाए रखना हमें नहीं आता।
अपने अपने हिस्से का निर्वासन झेलते हम बुनते हैं कुछ आधे अधूरे से ख़्वाब,
और फिर जिद की हद तक उन्हें पूरा करने का जुटा लाते हैं आत्मविश्वास।
कितने भी बड़े क्यूं न हो जाएं हम आज भी दोहरा चरित्र नही जी पाते हैं,
जैसे बाहर दिखते हैं, वैसे ही अन्दर से होते हैं।
हम पहाड़ से निकले बच्चे थोड़े अलग से होते हैं,
पहाड़ से बाहर शहरों में रहकर भी अपना अस्तित्व बचाकर रखते हैं।
🇮🇳बचपन की यादें ताजा करते इस लेख को अपने साथियों तक अवश्य पहुँचाये। ड़ॉ राजे नेगी,ऋषिकेश। जय उत्तराखण्ड।।

किस त्योहार का आपको है बेसब्री से इंतज़ार ?  त्योहारों का सीज़न करीब है, ज़ाहिर है आप में से ज़्यादातर लोग किसी न किसी त...
12/10/2023

किस त्योहार का आपको है बेसब्री से इंतज़ार ?

त्योहारों का सीज़न करीब है, ज़ाहिर है आप में से ज़्यादातर लोग किसी न किसी त्योहार को लेकर उत्साहित ज़रूर होंगे, ऐसे में आज बताइए वो कौन सा त्योहार है..जिसका आप बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं?

 #बचपन  #वाला 15  #अगस्त।रैली, पीटी-परेड, इनाम, मिठाई और प्रेस की हुई नई चमकती ड्रेस और फोटो खिंचवाने वाला 15 अगस्त। हाथ...
15/08/2023

#बचपन #वाला 15 #अगस्त।
रैली, पीटी-परेड, इनाम, मिठाई और प्रेस की हुई नई चमकती ड्रेस और फोटो खिंचवाने वाला 15 अगस्त। हाथों में केसरिया मिठाई लिए, हाथ सहित ड्रेस पर रंग बिरंगे रिबन बांधे हुए सफेद बादलों के साए में, हरी जमीन पर फहराते थे अपना प्यारा तिरंगा।

हल्की-हल्की बूंदाबादी, हवा में खुनक, बच्चे के सिर में कंघी फिरा रही मां, बच्चा कहता है, मां जल्दी कपड़े पहनाओ। देखो सब चले गए प्रभात फेरी निकल जाएगी फिर मैं अकेला पीछे-पीछे भागता रहूंगा, इतनी जोर से गांव का स्कूल कभी याद नहीं आता, जितना 15 अगस्त को आता था कुछ ही तो ऐसे दिन होते थे जब खुद से मन करता था, स्कूल जाने का खुशी इसलिए भी ज्यादा होती थी कि आज स्कूल जा तो रहे हैं मगर न होमवर्क चेक होगा न हीं मैथ्स वाले सर से डाँट खानी पड़ेगी। मिठाई खाने को मिलेगी वो अलग खुशी।
खैर,स्कूल पहुँच कर लाइन में लग जाते थे और पूरे ताकत के साथ जोर-जोर से 'जन-गण-मन' गाना शुरू करते फिर वन्दे-मातरम्' और उसके बाद चार-पाँच देश-भक्ति वाले गीत। हाँ ये और बात थी कि उन गीतों का मतलब समझ में बिलकुल भी नहीं आता।।

सुबह जल्दी से स्कूल पहुंचकर गुरुजी को माइक, स्पीकर और गाने लगाने और ध्वज में फूल बांधने मालाएं बनवाने में हेल्प करते थे। फिर शुरू हो जाते थे सुबह-सुबह, ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ ऐ मेरे वतन के लोगो जैसे देशभक्ति गाने।

मिठाई के पैकेट बनाने के लिए सारे लड़के तैयार रहते थे वो भी जो हर काम में इधर-उधर बहाना बनाकर गायब हो जाते थे।पर ये काम मिलता गुरुजी के कुछ लाडले बच्चों को, जिनको अंदर नहीं घुसने दिया गया उनको लगता था कि ये अंदर सारी मिठाई खा जाएंगे। वो बाहर से बार-बार झांककर देख जाते थे या फिर गुरुजी से बार-बार बोलते, हम भी पैकेट बनवाने में हेल्प करें क्या।

स्कूल के गेट से शुरू होती थी प्रभात फेरी नारे लगाते हुए पूरे गांव का चक्कर लगा आते थे,अपने घर के आगे से गुजरते समय एक दम तनकर चलते थे और थोड़ा जोर से नारे लगाने लगते भारत माता की जय हो, दूध मांगोगे तो खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे टाइप के।

प्रभात फेरी के बाद होता था झंडारोहण। उस वक्त जब राष्ट्रगान बजता था तो लगता था कि जो सबसे बड़ी तोप है, वो यही है रोंगटे खड़े हो जाते थे उसके बाद होती पीटी परेड गुरुजी की बहुत डांट पड़ती थी आज किसी ने गड़बड़ कर दी ना तो मिठाई का पैकेट नहीं मिलेगा पर फिर भी गड़बड़ तो हो ही जाती थी ना हाथ मिलते थे, ना पैर पीटी में आधे लड़कों के सिर ऊपर होते तो आधों के नीचे आधे दाएं घूमते आधे बाएं गांव के लोग देखकर खूब हंसते ।

बहुत सारी प्रतियोगिताएं भी होती थी दौड़, चम्मच दौड़, बोरा दौड़, जलेबी खाने वाली, सुई डोरा, आटे में से सिक्का खाने वाली दौड़ बोरा दौड़ में आधे बच्चे बीच में ही गिर जाते थे चम्मच वाली में सबके कंचे गिर जाते थे आटे में से सिक्का खाने वाली दौड़ में सब आटे में मुंह डालकर भागते थे तो उनका आटे से सना मुुंह देखकर हंस-हंस कर पेट दर्द हो जाता था सुई डोरा में जीतने के लिए कुछ लड़कियां कई दिन पहले से प्रैक्टिस शुरू कर देती थी।

इस दिन का सबसे रंगीन हिस्सा थे सांस्कृतिक प्रोग्राम अलग-अलग वेशभूषा, डांस, नाटक, गीत कई बार इतने लोग देखकर दिमाग खाली हो जाता था गीत गाने मंच पर चढ़ते थे और एक लाइन बोल के चुप हो जाते थे। कुछ याद ही नहीं आता फिर गुरुजी बोलते कोई बात नहीं बेटा शाबास, बैठ जाओ दूसरे दिन क्लास में खूब डांट पड़ती थी सबसे अच्छा सीन होता था जब कुछ बच्चे तुतलाती आवाज में लोक-गीत सुनाते थे।
फिर शुरू हो जाते भाषण दस दिन पहले ही अच्छे से लिखवा लिया जाता बड़े भाई या चाचा से पहले अंग्रेजी में होता और फिर हिंदी में कई दिन पहले से रटना शुरू करते थे, फिर भी भूल जाते थे उसके बाद प्रोग्राम के चीफ गेस्ट भाषण देते बच्चों देश का भविष्य हो, देश का नाम रोशन करोगे टाइप के डायलाॅग वाले भाषण पर बच्चों को इससे क्या मतलब, उन्हें तो इंतजार रहता कब इनके भाषण खत्म हों और मिठाई के पैकेट मिलें कुछ बच्चे पीटी वाले गुरुजी से छिपकर गांव के दूसरे लड़कों के साथ बीच में तालियां बजाते थे। चीफ गेस्ट 1100 रुपए स्कूल को देने की घोषणा के साथ भाषण खत्म करते।

फिर शुरू होता था इनाम वितरण सारी प्रतियोगिताओं में जीतने वालों को सम्मानित किया जाता कुछ को तीन-तीन, चार-चार इनाम मिल जाते थे उनके भाई-बहन हाथों में उनके साथ इनाम पकड़े घूमते रहते सबसे मजे लेते हुए पूछते तुम्हें भी कुछ मिला कि नहीं इनाम में मिलते थे प्लेट, पेन, कापी और गिलास।

और आखिर में आता था वो मौका जिसका सुबह से इंतजार रहता था मिठाई बंटनी शुरू होती थी मम्मी की, छोटे भाई की, बुआ की ना जाने किस-किस की मिठाई मांगते थे बच्चे फिर पैकेट लेकर भागते हरे-भरे खेत की ओर जल्दी से फोटो खिंचवाने जल्दी से इसलिए कि घर भी तो पहुंचना होता था।12 बजे डीडी नेशनल पर कर्मा, बॉर्डर, तिरंगा, क्रांतिवीर जेसी देशभक्ति फिल्म आती थी ना. क्यों याद आया न बचपन वाला 15 अगस्त?😊🇮🇳डॉ राजे नेगी,निदेशक नेगी आई केयर ऋषिकेश🙏

29/07/2023

आभार एवं धन्यवाद इंडिया न्यूज इंडेक्स।।

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