
14/08/2025
आयुर्वेदिक दवाओं से क्रॉनिक पैन्क्रियाटाइटिस का सफल इलाज: एक केस स्टडी की रिपोर्ट
नई दिल्ली, 15 अगस्त 2025: आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में जहां क्रॉनिक पैन्क्रियाटाइटिस (पुरानी अग्नाशयशोथ) को एक असाध्य और प्रगतिशील बीमारी माना जाता है, वहीं आयुर्वेद ने इस क्षेत्र में एक नई उम्मीद जगाई है। हाल ही में प्रकाशित एक केस स्टडी में, रसौषधियों (धातु-आधारित आयुर्वेदिक दवाओं) के माध्यम से एक बहु-रिलैप्स वाले क्रॉनिक पैन्क्रियाटाइटिस के मरीज का सफल प्रबंधन किया गया है। यह स्टडी ‘जर्नल ऑफ आयुर्वेदा केस रिपोर्ट्स’ में अक्टूबर 2020 में प्रकाशित हुई थी, लेकिन इसके परिणाम आज भी प्रासंगिक हैं और वैकल्पिक चिकित्सा की क्षमता को उजागर करते हैं।
स्टडी के अनुसार, दिल्ली के एक 24 वर्षीय युवक को जनवरी 2005 में पहली बार तीव्र अग्नाशयशोथ का दौरा पड़ा। वह शाकाहारी, गैर-मद्यपान करने वाला और धूम्रपान न करने वाला था, और उसके परिवार में इस बीमारी का कोई इतिहास नहीं था। एम्स और अन्य प्रमुख अस्पतालों में इलाज के बावजूद, 2006 से 2010 तक उसे कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इस दौरान उसके सीरम एमाइलेज और लाइपेज स्तर बढ़े हुए थे, और इमेजिंग टेस्ट में अग्नाशय में सूजन और कैल्सिफिकेशन दिखाई दिया। मरीज ने 26 किलोग्राम वजन खो दिया और हर महीने दर्द, उल्टी और मतली के दौरे झेलने पड़े।
नवंबर 2010 में, मरीज ने उत्तर भारत की एक आयुर्वेदिक क्लिनिक में धातु-आधारित आयुर्वेदिक उपचार (एमबीएटी) शुरू किया। उपचार में मुख्य दवा ‘अमर’ (125 मिलीग्राम तीन बार दैनिक) शामिल थी, जो संसाधित तांबे, पारा और गंधक से बनी एक जटिल रसौषधि है। इसके साथ हिंगवष्टक चूर्ण और कामदुधा रस जैसी सहायक दवाएं दी गईं। मरीज को 1800-2400 कैलोरी वाली प्रोटीन-युक्त डाइट दी गई, जिसमें दूध, पनीर, दालें, फल और सब्जियां शामिल थीं। चाय, कॉफी, टमाटर, लहसुन और पैकेज्ड फूड से परहेज की सलाह दी गई।
18 महीनों के उपचार के बाद, मरीज पूरी तरह से लक्षण-मुक्त हो गया। उसने 6 किलोग्राम वजन बढ़ाया, और ब्लड रिपोर्ट सामान्य हो गईं। 2018 में किए गए एमआरसीपी स्कैन में बीमारी में कोई प्रगति नहीं दिखी। अब नौ साल से अधिक समय बीत चुका है, और मरीज सामान्य जीवन जी रहा है, बिना किसी नए दौरे के। स्टडी के लेखक वैद्य बालेंदु प्रकाश और उनकी टीम ने बताया कि यह उपचार अग्नाशय की सूजन को नियंत्रित करने और मेटाबॉलिज्म को संतुलित करने में प्रभावी साबित हुआ।
क्रॉनिक पैन्क्रियाटाइटिस की वार्षिक घटना दर 5-12 प्रति लाख है, और यह मुख्य रूप से उत्पादक आयु वर्ग के पुरुषों को प्रभावित करती है। आधुनिक उपचार में एंजाइम सप्लीमेंट्स, दर्दनिवारक और कभी-कभी सर्जरी शामिल होती है, लेकिन बीमारी की प्रगति को रोकना मुश्किल होता है। स्टडी में उल्लेख किया गया है कि 20 वर्षों में 55% मरीजों की मृत्यु हो जाती है, और 40% में पैन्क्रियाटिक कैंसर विकसित हो सकता है। ऐसे में, आयुर्वेदिक रसौषधियां एक संभावित विकल्प के रूप में उभर रही हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के केस स्टडीज को बड़े पैमाने पर क्लिनिकल ट्रायल्स की जरूरत है। वैद्य बालेंदु प्रकाश ने कहा, “रस शास्त्र पर आधारित ये दवाएं शरीर के धातु संतुलन को बहाल करती हैं, जो सूजन को कम करने में मदद करती हैं।” हालांकि, किसी भी उपचार से पहले चिकित्सकीय सलाह जरूरी है।
यह रिपोर्ट आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा के एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो मरीजों को नई आशा प्रदान कर सकती है। अधिक जानकारी के लिए जर्नल की वेबसाइट www.ayucare.org पर संपर्क करें।
Ayurveda-specific case reporting guidelines - Need of the hour Kadam, Sujata D. Kadam, Sujata D. Less Journal of Ayurveda Case Reports. 8(2):67-69, Apr-Jun 2025. Favorite PDF Permissions Open