27/05/2025
जब आर्यावर्त की सीमाओं पर,धर्म के मूल स्तंभ हिलने लगें, तो समझो कि,कोई म्लेच्छ तूफ़ान,द्वार पर,आ खड़ा हुआ है। आज उत्तरप्रदेश के पीलीभीत,जो नेपाल की सीमा से सटा है,वहां की पवित्र भूमि पर ऐसा ही तूफ़ान दस्तक दे चुका है।
लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अनुसार,वहां के लगभग 3000 सिख और हिन्दू परिवार,मिशनरी माफियाओं द्वारा, योजनाबद्ध तरीक़े से,धर्मांतरित किए जा चुके हैं।
चंगाई सभा,चमत्कार,प्रलोभन,यही उनके शस्त्र हैं।
भूख,बीमारी और अज्ञानता के क्षणों में,
जब कोई कमजोर होता है,तब ये,उसके द्वार पर,
"यीशु की माया" लेकर आ जाते हैं।
ध्यान रहे!
ये धर्म परिवर्तन नहीं,ये 'धर्म अपहरण' है।
जैसे महाभारत में,शकुनि ने,पांडवों के राज्य को,दाँव पर लगवाया था,वैसे ही आज ये मिशनरी माफिया चालाकी से,धर्म की जड़ों को खोखला करने के षड्यंत्र में लगे हुए हैं। गुरु नानक से लेकर गुरु गोविंद सिंह तक,जिनकी वाणी और तलवार ने धर्म की रक्षा की,उन्हीं की संतति को बहकाया जा रहा है,और सब मौन हैं?क्या ये बेअदबी नहीं हो रही?
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इसपर जांच बैठाई है, पर क्या केवल जांच से,धर्म की रक्षा होगी?
केवल सिख ही नहीं,अपितु हिंदुओं का भी इन्हीं मिशनरी माफियाओं ने धर्म परिवर्तन करवाया है।
सनातन के विभिन्न पंथों को ये समझना होगा कि,यह युद्ध तलवारों का नहीं,अपितु,चेतना का है।
हर गांव,हर सीमा क्षेत्र को 'धर्म-रक्षा-चक्र' की तरह सजग करना होगा।हमें अपने लोगों तक वह चेतना,वह शिक्षा,और वह संस्कार पहुंचाने होंगे,जो उन्हें किसी भी प्रलोभन,किसी भी चमत्कार से डिगने न दें,और ये कार्य सबसे अधिक,मंदिरों,आश्रमों,संगठन से जुड़े हुए हिंदुओं को करना होगा,जो अब तक,बाहर निकलने से कतराते हैं,और उसका फायदा,शत्रु खेमा,अपने पादरियों और पैस्टर को भेज कर लेते हैं,पादरी,नन,पैस्टर तीनों मिलकर,दूरस्थ क्षेत्रों में जा कर,हिंदुओं और सिखों का स्लो ब्रेन वॉश करते हैं,और धीरे–धीरे उन्हें अपने धर्म से विमुख कर,ईसाइयत की ओर झुकाते हैं,और वो हर बार,सफ़ल होते हैं,इसलिए छोड़िए वो कमरे,वो आश्रम का क्षेत्र,वो मंदिर का प्रांगण,और प्रचार– प्रसार,एवं सहायता करने निकलिए,नहीं तो जैसे कई मंदिरों में चांद मियां बैठा दिए गए हैं,उसी प्रकार,आपके मंदिरों और गुरुद्वारों में येशु बैठा दिए जाएंगे,और हालेलुइया–हालेलुइया गया जाएगा,दिन रात।
जिस देश में 'एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति' कहा गया हो,वहां 'एक ही मार्ग' की हठधर्मी सत्ता,नहीं टिक सकती।
धर्मरक्षकों को तय करना होगा कि,वो अपनी नीति में परिवर्तन करते हैं,समय की मांग देखते हुए,या पुराने ढर्रे पर चलते रहेंगे और अपनी पतन के लिए स्वयं ज़िम्मेदार बन जाएंगे.!
✒️ @तत्वज्ञ देवस्य की कलम से
🌚 ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या
विक्रम संवत् २०८२
शनि जयंती
तृतीय बूढ़ा मंगल
ज्येष्ठ अमावस्या
🔆 मंगलवार,२७ मई २०२५