Krishna medicose & jiyyo mitra E Clinic Satna

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नागपुर के कैंसर रोग विशेषज्ञ चिकित्सक जियो मित्र ई क्लिनिक पर ऑनलाइन परामर्श के लिए उपलब्ध संपर्क करें 096303 88303
25/06/2025

नागपुर के कैंसर रोग विशेषज्ञ चिकित्सक जियो मित्र ई क्लिनिक पर ऑनलाइन परामर्श के लिए उपलब्ध संपर्क करें 096303 88303

15/06/2025

आयुर्वेद, भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली, सदियों से लोगों को प्रकृति के करीब लाकर जीवन जीने की कला सिखाता आया है। इसी परंपरा में एक अनमोल औषधि है — आरोग्यवर्धिनी वटी। यह केवल एक गोली नहीं, बल्कि सम्पूर्ण स्वास्थ्य को पुनः सजीव करने वाला सूत्र है।

✅ आरोग्यवर्धिनी वटी क्या है?

आरोग्यवर्धिनी वटी एक बहु-घटक आयुर्वेदिक औषधि है, जिसका उपयोग विशेष रूप से लीवर विकार, त्वचा रोग, पाचन तंत्र की गड़बड़ियाँ, मोटापा, और रक्त विकारों के लिए किया जाता है।

यह वटी (टैबलेट) स्वरूप में होती है और इसे शास्त्रीय ग्रंथों में 'आरोग्य को वर्धित करने वाली' संज्ञा दी गई है — अर्थात् यह शरीर को रोगमुक्त कर आरोग्य की प्राप्ति कराती है।

🔬 मुख्य घटक क्या हैं?

आरोग्यवर्धिनी वटी के प्रमुख घटक इस प्रकार हैं:

त्रिफला (हरड़, बेहड़ा, आंवला)

शुद्ध शिलाजीत

शुद्ध गंधक

लोहत भस्म

अभ्रक भस्म

तम्र भस्म

चित्रक मूल

कुटकी

इन सभी औषधीय घटकों का मिश्रण इसे एक शक्तिशाली डिटॉक्सिफायर और त्रिदोषहर औषधि बनाता है।

🩺 आरोग्यवर्धिनी वटी किन-किन रोगों में फायदेमंद है?

1. लीवर विकार:

आरोग्यवर्धिनी वटी विशेष रूप से फैटी लिवर, हेपेटाइटिस, लीवर एंजाइम्स का असंतुलन जैसी समस्याओं में अत्यधिक उपयोगी है। यह लीवर की सफाई कर उसे पुनः क्रियाशील बनाती है।

2. त्वचा रोग:

फोड़े-फुंसी, पिम्पल्स, खुजली, एक्जिमा और सोरायसिस जैसी त्वचा समस्याओं में इसका सेवन लाभकारी माना गया है।

3. मोटापा और हाई कोलेस्ट्रॉल:

यह चयापचय क्रिया को सक्रिय कर शरीर में जमा अनावश्यक चर्बी को कम करने में मदद करती है।

4. कब्ज और पाचन दोष:

त्रिफला और चित्रक जैसे घटक पाचन तंत्र को मज़बूत बनाते हैं, जिससे गैस, एसिडिटी और कब्ज जैसी समस्याएं दूर होती हैं।

5. हृदय स्वास्थ्य:

लोहत भस्म और तम्र भस्म रक्त को शुद्ध कर हृदय की धमनियों की सफाई में सहायक होते हैं।

6. हॉर्मोनल असंतुलन:

महिलाओं में PCOS जैसी समस्याओं और पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन से संबंधित अवरोधों में यह सहायता कर सकती है।

🌿 यह कैसे काम करती है?

आरोग्यवर्धिनी वटी शरीर के तीनों दोषों — वात, पित्त और कफ — को संतुलित करती है। यह यकृत की कार्यक्षमता को बढ़ाकर टॉक्सिन्स को बाहर निकालती है और कोशिकाओं का पुनर्निर्माण करती है।

📆 सेवन विधि और मात्रा:

आयुर्वेदाचार्य की सलाह से ही लें।

सामान्यतः 1-2 गोली दिन में दो बार गुनगुने पानी या शहद के साथ ली जाती है।

लीवर रोगों में कुटकी या पुनर्नवाष्टक क्वाथ के साथ लेना ज्यादा असरकारी होता है।

⚠️ सावधानियां:

गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाएं इसे डॉक्टर से पूछकर ही लें।

अत्यधिक मात्रा में सेवन से डायरिया या पेट में जलन हो सकती है।

बच्चों को बिना विशेषज्ञ सलाह के न दें।

🧪 आधुनिक अनुसंधान क्या कहते हैं?

कुछ शोधों के अनुसार आरोग्यवर्धिनी वटी में hepatoprotective, antioxidant, और lipid-lowering गुण पाए गए हैं। इसका मतलब यह न केवल लीवर की रक्षा करता है, बल्कि कोलेस्ट्रॉल को भी नियंत्रित कर सकता है।

🌟 क्यों है यह स्वास्थ्य के लिए रामबाण?

✔️ शुद्धिकरण में सहायक

✔️ ऊर्जा बढ़ाने वाला

✔️ त्वचा को निखारने वाला

✔️ पाचन शक्ति को मजबूत बनाने वाला

✔️ आयुर्वेदिक दृष्टि से 'सर्वरोग निवारक' औषधि

✍️ निष्कर्ष:

आरोग्यवर्धिनी वटी सिर्फ एक आयुर्वेदिक गोली नहीं, बल्कि यह आयुर्वेदिक जीवनशैली की कुंजी है। यदि आप शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलन में लाना चाहते हैं, तो इसे अपने दिनचर्यात्मक जीवन में आयुर्वेदाचार्य की सलाह के साथ शामिल करें। यह सही मायनों में “आरोग्य को वर्धित” करती है।

10/06/2025

हृदय रोग आज के समय की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक बन चुका है। हर वर्ष लाखों लोग हार्ट अटैक, ब्लॉकेज, हाई बीपी और अन्य हृदय संबंधी समस्याओं से ग्रसित हो रहे हैं। ऐसे में एक ऐसा आयुर्वेदिक उपाय है जो सैकड़ों वर्षों से भारतीय चिकित्सा पद्धति में ‘हृदय रक्षक’ के रूप में स्थापित है — अर्जुन वृक्ष ।

इस लेख में जानिए कि अर्जुन वृक्ष क्या है, यह दिल के लिए कैसे फायदेमंद है, इसके इस्तेमाल के तरीके, सावधानियां, और इसे वैज्ञानिक रूप से कैसे प्रमाणित किया गया है।

🌿 अर्जुन वृक्ष क्या है?
अर्जुन वृक्ष (Terminalia Arjuna) भारत में उगने वाला एक बड़ा और शक्तिशाली पेड़ है, जो खासतौर पर नदियों के किनारे पाया जाता है। इसकी छाल ( ) का औषधीय उपयोग हृदय रोग, रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण और रक्त परिसंचरण में किया जाता है।

संस्कृत नाम: ककुभ, धवल, इन्द्रद्रु
प्राकृतिक गुणधर्म: कसैला, ठंडा, तिक्त और बलवर्धक
धातुओं पर कार्य: रक्त, मांस और हृदय

❤️ दिल के लिए क्यों वरदान है #अर्जुन?
1. हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करता है
अर्जुन की छाल में मौजूद कोएंजाइम Q-10 जैसे प्राकृतिक तत्व हृदय की मांसपेशियों को मज़बूती देते हैं।

2. कोलेस्ट्रॉल घटाता है
यह LDL (खराब कोलेस्ट्रॉल) को कम कर HDL (अच्छे कोलेस्ट्रॉल) को बढ़ाता है।
✔️ ब्लॉकेज, एथेरोस्क्लेरोसिस जैसी स्थितियों में मददगार।

3. ब्लड प्रेशर को संतुलित करता है
इसके नियमित सेवन से उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।
✔️ बीटा-ब्लॉकर जैसी दवाओं के विकल्प के रूप में उभर रहा है।

4. हार्ट अटैक के बाद रिकवरी में सहायक
अर्जुन ट्री की छाल हार्ट अटैक के बाद दिल को फिर से मज़बूत करने में सहायक होती है।
✔️ कार्डियक टॉनिक के रूप में प्रयोग।

5. एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर
यह फ्री रेडिकल्स से हृदय की रक्षा करता है और उम्रजनित हृदय क्षति को धीमा करता है।

🔬 वैज्ञानिक प्रमाण और शोध
AIIMS दिल्ली और Banaras Hindu University (BHU) जैसे संस्थानों में अर्जुन की हृदय संबंधी प्रभावशीलता पर शोध किए गए हैं।

एक रिसर्च में पाया गया कि अर्जुन छाल का सेवन ईकोकार्डियोग्राफी में हृदय की क्षमता बढ़ाने में प्रभावशाली रहा।

अर्जुन छाल cardioprotective, hypolipidemic, antioxidant, and anti-inflammatory गुणों से भरपूर होती है।

🧪 अर्जुन छाल में मौजूद शक्तिशाली तत्व
टैनिन्स- कसैला और हृदय संरक्षक
सैपोनिन्स- कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक
फ्लावोनॉयड्स- एंटीऑक्सीडेंट
Co-Q10 समकक्ष यौगिक- दिल की मांसपेशियों की कार्यक्षमता बढ़ाए
एल्कलॉयड्स- दर्द व सूजन में राहत

🍵 अर्जुन छाल के सेवन के तरीके
1. अर्जुन की छाल का काढ़ा (Decoction)
विधि:

1 चम्मच सूखी अर्जुन की छाल

2 कप पानी में उबालें जब तक 1 कप न रह जाए

छानकर खाली पेट सुबह पिएं
✔️ दिल मज़बूत, BP नियंत्रित

2. अर्जुन छाल का चूर्ण (Powder Form)
रोजाना 1 से 3 ग्राम चूर्ण गुनगुने पानी या शहद के साथ
✔️ सुबह और शाम भोजन के बाद

3. अर्जुन चाय (Herbal Tea)
बाजार में उपलब्ध हर्बल अर्जुन टी बैग्स
✔️ दिल के लिए टॉनिक और तनाव घटाने में सहायक

4. अर्जुन अर्क या कैप्सूल्स
आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह पर उपलब्ध
✔️ डोज़ नियंत्रित और सुविधाजनक विकल्प

🧘‍♂️ अर्जुन + योग = संपूर्ण हृदय सुरक्षा
यदि अर्जुन का सेवन नियमित प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, और ब्रिस्क वॉक के साथ किया जाए, तो हृदय की समग्र सेहत में अद्भुत सुधार देखा गया है।

❌ सावधानियां
अधिक मात्रा में अर्जुन छाल न लें- रक्तचाप अत्यधिक गिर सकता है
गर्भवती महिलाओं को बिना परामर्श न दें- हॉर्मोनल प्रभाव हो सकते हैं
अन्य दवाओं के साथ बिना सलाह अर्जुन न लें- दवा का असर कम हो सकता है
हर बार नया काढ़ा बनाएं- ताजगी और असर के लिए जरूरी

🩺 किन लोगों को चाहिए अर्जुन?
✅ 35 की उम्र के बाद सभी को
✅ जिनके परिवार में हृदय रोग का इतिहास है
✅ हाई बीपी, हाई कोलेस्ट्रॉल, मोटापा या तनाव वाले व्यक्तियों को
✅ हार्ट अटैक रिकवरी वाले मरीजों को
✅ वे लोग जो दवाओं से हटकर प्राकृतिक उपाय चाहते हैं

📖 अर्जुन वृक्ष – आयुर्वेद में क्या स्थान है?
आयुर्वेद के महान ग्रंथ चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में अर्जुन को हृदय रोगों में प्रथम औषध माना गया है।
उसे "हृदयबलवर्धक" और "धमनियों के शुद्धिकरण" में उपयोगी बताया गया है।

🌱 अर्जुन वृक्ष – एक पर्यावरण योद्धा भी
यह वृक्ष अधिक ऑक्सीजन देता है

भूमि को ठंडा करता है

शहरों में प्रदूषण रोकने में सहायक

नदियों के किनारे कटाव रोकता है

📣 निष्कर्ष:
“अर्जुन वृक्ष न केवल आयुर्वेद का चमत्कार है, बल्कि दिल की सेहत का सबसे सस्ता और सुरक्षित समाधान भी है।”

प्राकृतिक हृदय सुरक्षा की खोज में यदि कोई पेड़ सहायक बन सकता है, तो वह अर्जुन ही है। ये एक ऐसा रक्षक है जो न केवल दिल के धड़कनों को सहेजता है, बल्कि आपकी पूरी जीवनशैली को संतुलन देता है।
यदि आप अपने दिल का ख्याल प्राकृतिक रूप से रखना चाहते हैं, तो अर्जुन को अपनी दिनचर्या में शामिल करना आज ही शुरू करें।

डॉ अनुराग पयासी
बी एस सी, सी यह डब्लू , बी ए एम एस @ कृष्णा मेडिकोज एवं जियो मित्र ई क्लिनिक 9630388303

ऑनलाइन परामर्श के लिए संपर्क करे 9630388303 या Qr कोड scan कर ऐप डाउनलोड कर घर बैठे परामर्श प्राप्त करे।
04/06/2025

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https://youtube.com/?feature=shared
16/05/2025

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Telemedicine center (Remote OPD ) ऑनलाइन एम्स,पीजीआई,और अन्य महानगरों के विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा ऑनलाइन परामर्श केंद्र

शैल्बी हॉस्पिटल जबलपुर द्वारा आयोजित विशेष परामर्श ओ. पी. डी. डॉ. अमन अग्रहरि गुप्ता आर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट ...
29/04/2025

शैल्बी हॉस्पिटल जबलपुर द्वारा आयोजित विशेष परामर्श ओ. पी. डी.
डॉ. अमन अग्रहरि गुप्ता आर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन द्वारा

आपके शहर सतना में विशेष परामर्श ओ. पी. डी.

दिनांक 21-05-2025 को 2:00 बजे से 4:00 बजे तक आयोजित है।

अधिक जानकारी एवं रजिस्ट्रेशन के लिए संपर्क करें :

9575801022 , 9630388303

22/04/2025
16 अप्रैल 25 को दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक कृष्णा मेडिकोज एवं जियो मित्र ई क्लिनिक में जबलपुर के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ...
10/04/2025

16 अप्रैल 25 को दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक कृष्णा मेडिकोज एवं जियो मित्र ई क्लिनिक में जबलपुर के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अमन अग्रहरि सर उपलब्ध रहेंगे जोड़ो के दर्द बात रोगी या हड्डी से संबंधित समस्याओं से परेशान मरीज परामर्श ले रजिस्ट्रेशन। के लिए कॉल करे 9630388303
शुल्क 300 /

03/04/2025

#नेबुलाइजर में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं की सूची, उनकी मात्रा और संभावित साइड इफेक्ट्स दिए गए हैं। इनका उपयोग डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही करें।

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✅ 1. ब्रोंकोडाइलेटर (सांस की नलियों को चौड़ा करने वाली दवाएं)

🔹 Salbutamol (Ventolin, Asthalin)

🔹 मात्रा:
➡️ वयस्क: 2.5 mg (0.5 ml ampule को 2-3 ml normal saline में मिलाकर)
➡️ बच्चे: 1.25 mg – 2.5 mg (डॉक्टर की सलाह अनुसार)
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ दिल की धड़कन तेज होना, कंपकंपी, सिरदर्द

🔹 Levosalbutamol (Levolin)

🔹 मात्रा:
➡️ वयस्क: 0.63 mg – 1.25 mg
➡️ बच्चे: 0.31 mg – 0.63 mg
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ हल्की कंपकंपी, सिरदर्द, गले में सूखापन

🔹 Ipratropium Bromide (Atrovent)

🔹 मात्रा:
➡️ वयस्क: 500 mcg (2 ml)
➡️ बच्चे: 250 mcg (1 ml)
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ सूखा मुंह, सिरदर्द, आंखों में धुंधलापन

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✅ 2. स्टेरॉयड (सूजन और एलर्जी कम करने के लिए)

🔹 Budesonide (Pulmicort)

🔹 मात्रा:
➡️ वयस्क: 0.5 mg – 1 mg
➡️ बच्चे: 0.25 mg – 0.5 mg
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ गले में खराश, फंगल इंफेक्शन, आवाज बैठना

🔹 Fluticasone (Flixotide)

🔹 मात्रा:
➡️ वयस्क: 0.5 mg – 1 mg
➡️ बच्चे: 0.25 mg – 0.5 mg
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ मुंह और गले में संक्रमण, सांस लेने में हल्की तकलीफ

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✅ 3. म्यूकोलाईटिक (बलगम को पतला करने वाली दवाएं)

🔹 N-acetylcysteine (Mucinac)

🔹 मात्रा:
➡️ 3 ml (10% सॉल्यूशन)
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ गले में जलन, मतली

🔹 Hypertonic Saline (3% या 7%)

🔹 मात्रा:
➡️ 3 ml (डॉक्टर की सलाह अनुसार)
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ हल्की खांसी, गले में जलन

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✅ 4. एंटीबायोटिक्स (फेफड़ों के संक्रमण के लिए)

🔹 Tobramycin

🔹 मात्रा:
➡️ 300 mg (2 बार/दिन, 28 दिन तक)
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ कान में सुनाई देना कम होना, किडनी को नुकसान

🔹 Colistin

🔹 मात्रा:
➡️ डॉक्टर की सलाह पर निर्भर करता है
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ फेफड़ों में जलन, सांस लेने में दिक्कत

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✅ 5. अन्य महत्वपूर्ण दवाएं

🔹 Adrenaline (Epinephrine)

🔹 मात्रा:
➡️ 1:1000 सॉल्यूशन का 0.5 ml – 1 ml
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ तेज़ दिल धड़कन, ब्लड प्रेशर बढ़ना

🔹 Magnesium Sulfate

🔹 मात्रा:
➡️ 3 ml (डॉक्टर की सलाह अनुसार)
🔹 साइड इफेक्ट्स:
⚠️ कमजोरी, ब्लड प्रेशर गिरना

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⚠️ महत्वपूर्ण सावधानियां:

✔️ किसी भी दवा का उपयोग डॉक्टर की सलाह के बिना न करें।
✔️ स्टेरॉयड लेने के बाद कुल्ला करना जरूरी है ताकि मुंह में संक्रमण न हो।
✔️ नेबुलाइजर और मास्क को साफ और सूखा रखें।
✔️ साइड इफेक्ट्स होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें...
महत्वपूर्ण सूचनाः यहां दी गई जानकारी केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। यह चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं है। यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है या किसी जानकारी को लेकर संदेह है, तो कृपया योग्य चिकित्सक से परामर्श करें।

31/03/2025

एंटीबायोटिक दवाइयाँ - क्या हैं, उपयोग, प्रकार और सावधानियाँ

एंटीबायोटिक दवाइयाँ (Antibiotic Medications) वह दवाइयाँ होती हैं जो बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न होने वाले संक्रमणों का इलाज करने के लिए उपयोग की जाती हैं। ये दवाइयाँ बैक्टीरिया को मारने, उनके विकास को रोकने या उन्हें नष्ट करने का काम करती हैं। एंटीबायोटिक्स ने चिकित्सा विज्ञान में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है, क्योंकि इन दवाइयों के आने से पहले, बैक्टीरिया जनित संक्रमणों के कारण लोग जल्दी मृत्यु का शिकार हो जाते थे। इस लेख में हम एंटीबायोटिक दवाइयों के बारे में विस्तार से जानेंगे, जैसे कि ये कैसे काम करती हैं, उनके प्रकार, उपयोग, और सावधानियाँ।

1. एंटीबायोटिक दवाइयाँ क्या होती हैं?

एंटीबायोटिक दवाइयाँ जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के खिलाफ प्रभावी होती हैं। ये दवाइयाँ केवल बैक्टीरिया जनित संक्रमणों का इलाज करती हैं, और वायरस जैसे फ्लू, सर्दी, या कोविड-19 के लिए प्रभावी नहीं होती हैं। जब किसी व्यक्ति के शरीर में बैक्टीरिया द्वारा संक्रमण होता है, तो एंटीबायोटिक दवाइयाँ उस संक्रमण को ठीक करने में मदद करती हैं।

2. एंटीबायोटिक दवाइयाँ कैसे काम करती हैं?

एंटीबायोटिक दवाइयाँ बैक्टीरिया के विभिन्न हिस्सों को निशाना बनाती हैं। इनमें से कुछ मुख्य कार्य इस प्रकार हैं:

बैक्टीरिया की दीवार को तोड़ना: कुछ एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया की कोशिका दीवार को तोड़ देती हैं, जिससे बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। जैसे पेनिसिलिन।

प्रोटीन संश्लेषण को रोकना: कुछ एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया में प्रोटीन के निर्माण को रोकती हैं, जिससे बैक्टीरिया का विकास रुक जाता है। जैसे टेट्रासाइक्लिन और एरिथ्रोमाइसिन।

डीएनए और आरएनए की क्रियावली को बाधित करना: कुछ एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया के डीएनए और आरएनए के निर्माण और कार्य को प्रभावित करती हैं, जिससे बैक्टीरिया का पुनः निर्माण नहीं हो पाता है। जैसे कि फ्लोरोक्विनोलोन।

3. एंटीबायोटिक दवाइयों के प्रकार

एंटीबायोटिक दवाइयाँ कई प्रकार की होती हैं, जो बैक्टीरिया के प्रकार और संक्रमण की गंभीरता के अनुसार उपयोग की जाती हैं। इनका वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है:

a. चौड़ी स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स (Broad-Spectrum Antibiotics)

चौड़ी स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स वह दवाइयाँ होती हैं जो कई प्रकार के बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी होती हैं। ये बैक्टीरिया की बड़ी श्रेणियों के खिलाफ काम करती हैं। उदाहरण के लिए, टेट्रासाइक्लिन और स्मोक्सीसीलिन।

b. संकीर्ण स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स (Narrow-Spectrum Antibiotics)

संकीर्ण स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स का असर केवल कुछ खास प्रकार के बैक्टीरिया पर होता है। ये आमतौर पर तब उपयोग की जाती हैं जब यह स्पष्ट हो कि कौन से बैक्टीरिया संक्रमण का कारण बन रहे हैं। उदाहरण के रूप में, पेनिसिलिन और वैनकोमायसिन।

c. बैक्टीरियास्टेटिक एंटीबायोटिक्स (Bacteriostatic Antibiotics)

ये दवाइयाँ बैक्टीरिया के वृद्धि और विभाजन को रोकती हैं, जिससे शरीर की इम्यून सिस्टम बैक्टीरिया को नष्ट कर देती है। जैसे टेट्रासाइक्लिन और एरिथ्रोमाइसिन।

d. बैक्टीरियासाइडल एंटीबायोटिक्स (Bactericidal Antibiotics)

यह बैक्टीरिया को मारने वाली दवाइयाँ होती हैं। ये बैक्टीरिया को नष्ट करने के लिए बैक्टीरिया की कोशिका दीवार को तोड़ देती हैं या अन्य तरीके से बैक्टीरिया को मारे देती हैं। उदाहरण के रूप में पेनिसिलिन और सेफालोस्पोरिन।

4. एंटीबायोटिक दवाइयाँ कब उपयोग की जाती हैं?

एंटीबायोटिक दवाइयाँ तब दी जाती हैं जब शरीर में बैक्टीरियल संक्रमण का संदेह होता है। कुछ सामान्य संक्रमण, जिनमें एंटीबायोटिक दवाइयाँ दी जा सकती हैं, उनमें शामिल हैं:

सामान्य श्वसन संक्रमण: जैसे कि निमोनिया, ब्रोंकाइटिस, और गले का संक्रमण (टॉन्सिलाइटिस)।

मूत्र संक्रमण (UTI): जब मूत्र मार्ग में बैक्टीरिया द्वारा संक्रमण होता है।

त्वचा संक्रमण: जैसे कि पुस या फोड़े-फुंसी।

आंतों का संक्रमण: जैसे कि बैक्टीरियल डायरिया।

साइनस संक्रमण: साइनस में बैक्टीरिया का संक्रमण।

टीबी (Tuberculosis): यह एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण है, जिसे विशेष एंटीबायोटिक दवाइयों से इलाज किया जाता है।

5. एंटीबायोटिक दवाइयों के दुष्प्रभाव

हालांकि एंटीबायोटिक दवाइयाँ संक्रमणों को ठीक करने में बहुत प्रभावी हैं, लेकिन इनका अत्यधिक या गलत उपयोग कुछ समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। कुछ संभावित दुष्प्रभाव इस प्रकार हो सकते हैं:

एंटीबायोटिक प्रतिरोध: जब एंटीबायोटिक दवाइयों का अधिक उपयोग किया जाता है, तो बैक्टीरिया उनमें प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं, जिससे वे दवाइयाँ प्रभावी नहीं रहतीं। इसे "एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस" कहा जाता है, जो एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है।

आंतों की समस्याएँ: एंटीबायोटिक दवाइयाँ आंतों में बैक्टीरिया के संतुलन को बिगाड़ सकती हैं, जिसके कारण दस्त, उलटी या आंतों में सूजन हो सकती है। इसके साथ ही, कैंडिडा जैसे फंगस का भी संक्रमण हो सकता है।

एलर्जी: कुछ व्यक्तियों को एंटीबायोटिक दवाइयाँ लेने से एलर्जी की प्रतिक्रिया हो सकती है, जैसे त्वचा पर चकत्ते, सूजन या सांस की समस्या।

लिवर और किडनी की समस्याएँ: कुछ एंटीबायोटिक्स का अत्यधिक सेवन लिवर या किडनी पर दबाव डाल सकता है, जिससे कार्य में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।

6. एंटीबायोटिक दवाइयाँ लेने में सावधानियाँ

डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें: एंटीबायोटिक दवाइयाँ हमेशा डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार लें। निर्धारित खुराक और समय के अनुसार दवा लें, ताकि बैक्टीरिया पूरी तरह से नष्ट हो जाएं।

एंटीबायोटिक को खत्म करें: भले ही आपको बेहतर महसूस हो, लेकिन एंटीबायोटिक को पूरे निर्धारित समय तक लें। अगर दवा छोड़ दी जाती है, तो बैक्टीरिया पूरी तरह से नष्ट नहीं होते और संक्रमण वापस लौट सकता है।

सावधानीपूर्वक उपयोग: एंटीबायोटिक दवाइयाँ केवल बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न संक्रमणों के लिए ही प्रयोग करें। वायरल संक्रमणों जैसे कि सर्दी, फ्लू, या कोविड-19 में इनका कोई प्रभाव नहीं होता।

प्रोबायोटिक्स का सेवन: आंतों में बैक्टीरिया के संतुलन को बनाए रखने के लिए, एंटीबायोटिक के साथ प्रोबायोटिक्स का सेवन किया जा सकता है। यह दस्त और अन्य आंतों की समस्याओं को रोकने में मदद करता है।

एंटीबायोटिक दवाइयाँ बैक्टीरिया जनित संक्रमणों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन इनका अत्यधिक या अनुशासनहीन उपयोग एंटीबायोटिक प्रतिरोध जैसी समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। इनका सही उपयोग और डॉक्टर के निर्देशों का पालन करना बेहद आवश्यक है। अगर आपको संक्रमण के लक्षण महसूस हों, तो सही निदान और इलाज के लिए हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें।

30/03/2025

**आजकल काफी चल रहा है टॉइफाइड फीवर (आंत्रिक ज्वर ) या मोतीझारा **
इस रोग का गलत प्रबंधन आपको जीवनभर के लिए बीमार और कमजोर बना सकता है
टाइफॉइड एक गैस्ट्रोइंटेस्टिनल इंफेक्शन है, जो साल्मोनेला टाइफी (S.typhi) के कारण होता है। टाइफॉइड होने पर तेज बुखार, डायरिया और उल्टी मुख्य रूप से होता है। दूषित पानी या भोजन के जरिए इस बैक्टीरियल इंफेक्शन के होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। एस. टाइफी मुंह के जरिए आपकी आंतों में प्रवेश करके वहां लगभग एक से तीन सप्ताह तक रहता है। उसके बाद आंतों की दीवार के जरिए आपके रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाता है। खूने से ये टाइफॉइड बैक्टीरिया अन्य ऊतकों और अंगों में फैलकर कोशिकाओं के अंदर छिप जाता है, जिसका पता आपकी प्रतिरक्षा कोशिकाएं भी नहीं लगा पाती हैं। टाइफॉइड इलाज ना कराने से आपके लिए घातक हो सकता है। टाइफॉइड की संभावित जटिलताओं में किडनी फेलियर, गंभीर जीआई रक्तस्राव आदि शामिल हैं।
टाइफाइड बुखार छोटी आंत या बड़ी आंत की दीवारों में कोशिकाओं के मरने का कारण बन सकता है जिससे आंतों को स्थाई क्षति पहुंच सकती है

बुखार या ज्वर टाइफाईड का प्रमुख लक्षण है।
जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता जाता है वैसे-वैसे ही भूख कम हो जाती है।
टाइफाइड से ग्रसित को सिर दर्द होता है।
शरीर में वेदना होना। पैरों पिंडलियों जोड़ों में दर्द
ठण्ड की अनुभूति होना।
सुस्ती एवं आलस्य का अनुभव होना सर भारी रहना सिरदर्द।
कमजोरी का अनुभव होना खराब पाचन पेट भरा भरा सूजा हुआ रहना खाने में अरूचि होना

परहेज
कोई भी जटिल भोजन न करें मसालेदार तला हुआ मैदा से बनी हुई वस्तुएं ज्यादा मिर्च मसाले वाली वस्तुएं भूलकर भी न खाएं
भूख से थोड़ा कम और खूब चबा-चबाकर खाएं
सफाई और शुद्ध पानी का ध्यान रखें
थोड़े पानी में पुदीना लौंग सौंफ उबालकर रख लें पीते रहें

टाइफाइड जैसे रोग अक्सर डिहाइड्रेशन का कारण बनते हैं, इसलिए रोगी को कुछ-कुछ समय बाद तरल पदार्थ जैसे पानी, ताजे फल के रस, हर्बल चाय आदि का सेवन करें। उबला और उचित तरीके से उबला हुआ पानी पीएं। केवल उबला आहार लें और बाहरी खाने से परहेज करें।

उपचार :- ये हज़ारों लोगों को स्वास्थ्य प्रदान कर चुका उपाय है जो आंतों को स्वस्थ रखकर उपचार करता है जो सालों साल इस रोग से ग्रस्त थे

सुबह खाली पेट गिलोय गेहुं ज्वारा और तुलसी का स्वरस 30 मिलीलीटर लें एक घंटा कुछ भी खाएं पिएं नहीं

खाने के बाद 10/10/10 मिलीलीटर कालमेघ चिरायता तथा एक एक आरोग्य वर्धिनी बटी ले सुबह दोपहर शाम

4 अंजीर 8 मुनक्का और चने के दाने बराबर खूबकलां पाउडर कूटकर चटनी बना लें सुबह निराहार पांच दिन तक खिलाएं जिससे खाने से अरूची भरा हुआ पेट कलेजा पहले दिन से ही सुधार होगा

दिन में तीन बार एक चम्मच सौंफ छोटा टुकड़ा अदरक सात पत्ते पुदीना एक लौंग एक कप पानी में उबालकर पिलाएं

रोग ठीक होने के उपरांत भी सात दिन कच्चे पपीते या अनानास का जूस अवश्य लें ।
अनुराग पयासी

16 अप्रैल 25 को दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक शैल्बी हॉस्पिटल जबलपुर के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अमन अग्रहरि गुप्ता सर कृष्णा...
30/03/2025

16 अप्रैल 25 को दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक शैल्बी हॉस्पिटल जबलपुर के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अमन अग्रहरि गुप्ता सर कृष्णा मेडिकोज धवारी में उपलब्ध रहेंगे रजिस्ट्रेशन के लिए संपर्क करे 096303 88303

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