08/02/2025
अशरीरी आत्मा सदा ही शरीर में प्रवेश करने को आतुर होती है। उसके कारण होते हैं। बड़ा कारण तो यह होता है कि अशरीरी आत्मा—जिसको हम प्रेत कहें—अशरीरी आत्मा की इच्छाएं तो वही होती हैं जो शरीरधारी की होती हैं, लेकिन शरीर उसके पास नहीं होता। इच्छाएं वही होती हैं, वासनाएं वही होती हैं, जो शरीरधारी की हैं, लेकिन शरीर नहीं होता। और अशरीरधारी की कोई भी वासना बिना शरीर के पूरी नहीं होती।
अगर समझ लें कि एक प्रेतात्मा को किसी से प्रेम करना है, तो उसके लिए शरीर चाहिए। प्रेम की वासना तो भीतर रह जाती है, लेकिन शरीर उसके पास नहीं है। अगर वह किसी शरीर के पास आए, तो आर—पार निकल जाता है। वह कहीं रुकता नहीं।
हमारा शरीर उसके शरीर को व्यवधान नहीं बनता, वह हमारे शरीर से निकल जाता है इस तरफ से उस तरफ। शरीर चाहिए उसको। तो वह तो आकांक्षा से भरा हुआ है शरीर मिलने की। कभी कोई भयभीत व्यक्ति अगर अपने भीतर सिकुड़ जाए, तो वह प्रवेश कर जाता है।
भय में आदमी सिकुड़ जाता है। आपका अपना शरीर जितना आपको घेरना चाहिए उतना आप भय में नहीं घेरते, सिकुड़ कर छोटे हो जाते हैं। शरीर में बहुत—सी जगह खाली रह जाती है। वैक्यूम बन जाता है। उस वैक्यूम में, भय 'में वह घुस जाता है। लोग समझते हैं कि भय की वजह से भूत पैदा हो जाते हैं, वह पैदा नहीं हो जाते। लोग समझते हैं कि भय ही भूत है, वह भी ठीक बात नहीं है। भूत का अपना अस्तित्व है। भय में सिर्फ उसे प्रकट होने की सुविधा मिल जाती है। तो भय में तो कोई भी आदमी मीडियम बन सकता है, लेकिन उस मीडियम में प्रेतात्मा ही प्रवेश कर रही है, इसलिए परेशानी ही खड़ी होगी।
जिस मीडियम की आप बात कर रहे हैं, यह स्वेच्छा से निमंत्रण दी गई आत्मा है। स्वेच्छा से किसी ने अपने भीतर की जगह खाली की है और निमंत्रण दिया है। तो मीडियम की कला कुल इतनी ही है कि आप अपने भीतर की जगह खाली कर सकें और आसपास कोई आत्मा हो, तो उसको निमंत्रण दे सकें कि तुम आ जाओ। लेकिन चूंकि यह जान—बूझ कर किया जाता है, इसलिए कोई भय नहीं है। और चूंकि यह स्वेच्छा से किया जाता है, इसलिए इसमें उतना खतरा नहीं है। और चूंकि यह जान—बूझ कर किया जाता है, इसके आने का रास्ता पता है और इसके वापस भेजने के रास्ते का भी पता है। लेकिन यह रिसेप्टीविटी से होगा। और सिर्फ साधारण अशरीरी आत्माओं पर ही हो पाएगा।
अगर शरीरधारी आत्मा को बुलाना हो, तो खतरे बढ़ जाते हैं। क्योंकि अगर मैं किसी शरीरधारी आत्मा को किसी माध्यम पर बुलाऊं, तो उस आदमी का शरीर वहां मूर्च्छित होकर गिर जाएगा। बहुत बार जब लोग मूर्च्छित होकर गिरते हैं, तो हम समझते हैं वह साधारण मूर्च्छा है। कई बार वह साधारण मूर्च्छा नहीं होती और उस व्यक्ति की आत्मा कहीं बुला ली गई होती है। और इसलिए उस वक्त उसका इलाज करना खतरे से खाली नहीं है। उस वक्त उसके साथ कुछ न किया जाये, यही हितकर है। मगर उसका हमें कोई पता नहीं होता। अभी तक साइंस उसके लिए साफ पता नहीं कर पाई कि कब मूर्च्छा साधारण मूर्च्छा है और कब उसकी मूर्च्छा आत्मा का बाहर चला जाना है। घटना वही है, लेकिन बहुत दूसरे प्रकार की है। यहां हम बुलाते हैं, वहां हम जाते हैं।