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09/02/2025
जय मां 🙏
09/02/2025

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अशरीरी आत्मा सदा ही शरीर में प्रवेश करने को आतुर होती है। उसके कारण होते हैं। बड़ा कारण तो यह होता है कि अशरीरी आत्मा—जिस...
08/02/2025

अशरीरी आत्मा सदा ही शरीर में प्रवेश करने को आतुर होती है। उसके कारण होते हैं। बड़ा कारण तो यह होता है कि अशरीरी आत्मा—जिसको हम प्रेत कहें—अशरीरी आत्मा की इच्छाएं तो वही होती हैं जो शरीरधारी की होती हैं, लेकिन शरीर उसके पास नहीं होता। इच्छाएं वही होती हैं, वासनाएं वही होती हैं, जो शरीरधारी की हैं, लेकिन शरीर नहीं होता। और अशरीरधारी की कोई भी वासना बिना शरीर के पूरी नहीं होती।

अगर समझ लें कि एक प्रेतात्मा को किसी से प्रेम करना है, तो उसके लिए शरीर चाहिए। प्रेम की वासना तो भीतर रह जाती है, लेकिन शरीर उसके पास नहीं है। अगर वह किसी शरीर के पास आए, तो आर—पार निकल जाता है। वह कहीं रुकता नहीं।
हमारा शरीर उसके शरीर को व्यवधान नहीं बनता, वह हमारे शरीर से निकल जाता है इस तरफ से उस तरफ। शरीर चाहिए उसको। तो वह तो आकांक्षा से भरा हुआ है शरीर मिलने की। कभी कोई भयभीत व्यक्ति अगर अपने भीतर सिकुड़ जाए, तो वह प्रवेश कर जाता है।

भय में आदमी सिकुड़ जाता है। आपका अपना शरीर जितना आपको घेरना चाहिए उतना आप भय में नहीं घेरते, सिकुड़ कर छोटे हो जाते हैं। शरीर में बहुत—सी जगह खाली रह जाती है। वैक्यूम बन जाता है। उस वैक्यूम में, भय 'में वह घुस जाता है। लोग समझते हैं कि भय की वजह से भूत पैदा हो जाते हैं, वह पैदा नहीं हो जाते। लोग समझते हैं कि भय ही भूत है, वह भी ठीक बात नहीं है। भूत का अपना अस्तित्व है। भय में सिर्फ उसे प्रकट होने की सुविधा मिल जाती है। तो भय में तो कोई भी आदमी मीडियम बन सकता है, लेकिन उस मीडियम में प्रेतात्मा ही प्रवेश कर रही है, इसलिए परेशानी ही खड़ी होगी।

जिस मीडियम की आप बात कर रहे हैं, यह स्वेच्छा से निमंत्रण दी गई आत्मा है। स्वेच्छा से किसी ने अपने भीतर की जगह खाली की है और निमंत्रण दिया है। तो मीडियम की कला कुल इतनी ही है कि आप अपने भीतर की जगह खाली कर सकें और आसपास कोई आत्मा हो, तो उसको निमंत्रण दे सकें कि तुम आ जाओ। लेकिन चूंकि यह जान—बूझ कर किया जाता है, इसलिए कोई भय नहीं है। और चूंकि यह स्वेच्छा से किया जाता है, इसलिए इसमें उतना खतरा नहीं है। और चूंकि यह जान—बूझ कर किया जाता है, इसके आने का रास्ता पता है और इसके वापस भेजने के रास्ते का भी पता है। लेकिन यह रिसेप्टीविटी से होगा। और सिर्फ साधारण अशरीरी आत्माओं पर ही हो पाएगा।

अगर शरीरधारी आत्मा को बुलाना हो, तो खतरे बढ़ जाते हैं। क्योंकि अगर मैं किसी शरीरधारी आत्मा को किसी माध्यम पर बुलाऊं, तो उस आदमी का शरीर वहां मूर्च्छित होकर गिर जाएगा। बहुत बार जब लोग मूर्च्छित होकर गिरते हैं, तो हम समझते हैं वह साधारण मूर्च्छा है। कई बार वह साधारण मूर्च्छा नहीं होती और उस व्यक्ति की आत्मा कहीं बुला ली गई होती है। और इसलिए उस वक्त उसका इलाज करना खतरे से खाली नहीं है। उस वक्त उसके साथ कुछ न किया जाये, यही हितकर है। मगर उसका हमें कोई पता नहीं होता। अभी तक साइंस उसके लिए साफ पता नहीं कर पाई कि कब मूर्च्छा साधारण मूर्च्छा है और कब उसकी मूर्च्छा आत्मा का बाहर चला जाना है। घटना वही है, लेकिन बहुत दूसरे प्रकार की है। यहां हम बुलाते हैं, वहां हम जाते हैं।

हमारा मन क्यों भटकता है ?हमारा मन भटकता है क्योंकि उसकी प्रकृति चंचल और अस्थिर होती है। मन हमेशा किसी न किसी चीज़ में व्...
07/02/2025

हमारा मन क्यों भटकता है ?

हमारा मन भटकता है क्योंकि उसकी प्रकृति चंचल और अस्थिर होती है। मन हमेशा किसी न किसी चीज़ में व्यस्त रहना चाहता है, और जब उसे कोई ठोस लक्ष्य या दिशा नहीं मिलती, तो वह विभिन्न विचारों, इच्छाओं और कल्पनाओं में भटकने लगता है। मन के भटकने के कारण और उनसे निपटने के उपाय को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।

मन के भटकने के कारण

1. अनियंत्रित विचारधारा

• हमारा मन लगातार विचारों की एक श्रृंखला उत्पन्न करता रहता है।

• यदि इन विचारों को नियंत्रित या केंद्रित न किया जाए, तो मन एक विचार से दूसरे पर कूदता रहता है।

2. लक्ष्य की कमी

• जब हमारे जीवन में कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं होता, तो मन के पास केंद्रित होने के लिए कोई कारण नहीं होता।

• यह लक्ष्यहीनता मन को भटकाव की ओर ले जाती है।

3. भय और चिंता

• यदि व्यक्ति चिंता, भय, या अनिश्चितता से घिरा हो, तो मन इन्हीं विचारों में उलझा रहता है।

• यह उसे वर्तमान में केंद्रित होने से रोकता है।

4. आकर्षण और विकर्षण

• मन स्वाभाविक रूप से बाहरी वस्तुओं और परिस्थितियों से आकर्षित होता है।

• आधुनिक जीवनशैली में मोबाइल, इंटरनेट और अन्य डिजिटल माध्यम मन को भटकाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

5. आत्म-अनुशासन की कमी

• जब हम अपने विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रखते, तो मन स्वतः ही इधर-उधर भटकने लगता है।

6. इच्छाएँ और अपेक्षाएँ

• मन अनगिनत इच्छाओं और अपेक्षाओं से भरा रहता है।

• जब कोई इच्छा पूरी नहीं होती, तो वह दूसरी इच्छा की ओर भागने लगता है।

मन को भटकने से रोकने के उपाय

1. ध्यान और योग

• ध्यान और योग मन को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी तरीका है।

• नियमित ध्यान अभ्यास से मन शांत और स्थिर रहता है।

2. लक्ष्य निर्धारित करें

• जीवन में स्पष्ट और व्यावहारिक लक्ष्य बनाएं।

• लक्ष्य मन को एक दिशा में केंद्रित रखते हैं और भटकाव से बचाते हैं।

3. वर्तमान में रहें

• अतीत की चिंताओं और भविष्य की अनिश्चितताओं से बचें।

• वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करना सीखें।

4. सकारात्मक आदतें विकसित करें

• मन को व्यस्त और रचनात्मक बनाए रखने के लिए अच्छी आदतें अपनाएं, जैसे पुस्तक पढ़ना, लिखना, या कोई नई कला सीखना।

5. मन को समझें और स्वीकारें

• मन के भटकने को रोकने के लिए इसे समझना और स्वीकार करना ज़रूरी है।

• इसे जबरदस्ती रोकने के बजाय धीरे-धीरे सही दिशा में प्रेरित करें।

6. संगति का ध्यान रखें

• अपने आस-पास सकारात्मक और प्रेरणादायक लोगों को रखें।

• गलत संगति भी मन को भटकाव की ओर ले जाती है।

7. आध्यात्मिक अभ्यास

• धार्मिक या आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ें और अपने जीवन में उनके सिद्धांतों को लागू करें।

• ईश्वर का स्मरण और भक्ति मन को स्थिर करने में सहायक होती है।

मन का भटकना स्वाभाविक है, लेकिन इसे नियंत्रित करना हमारे जीवन को अधिक संतुलित और सफल बनाता है। मन को भटकने से रोकने के लिए ध्यान, आत्म-अनुशासन, और लक्ष्य निर्धारण का अभ्यास करना ज़रूरी है। जब हम अपने मन को समझते हैं और इसे सही दिशा में केंद्रित करते हैं, तो यह हमारी सबसे बड़ी ताकत बन सकता है।

हर हर महादेव

07/02/2025

अवैध संबंध पर पूज्य प्रेमानंद जी महराज क्या कहते हैं 🙄
#मंगल-राहु, मंगल-शुक्र, मंगल- #चन्द्रमा की युति अथवा सप्तम भाव में #बुध अथवा #शुक्र का अकेला होना एकनिष्ठा के पालन में बाधक होते हैं।
अष्टम भाव में #राहु, #सूर्य तथा #शनि की युति अत्यंत घातक सिद्ध होती हैं,ऐसे लोग #गुप्तरोग से ग्रसित होते हैं, जो कि उनके पाप कर्म के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं।
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#रिश्ते #पति #पत्नी #अवैधसंबंध

हमारी सभी बहनों के लिए यह जनकारी अवश्यक् है :-पिछले 3 साल का डाटा, 43 लाख लड़कियों में बाझपन और 30 लाख में कैंसर पाया गय...
07/02/2025

हमारी सभी बहनों के लिए यह जनकारी अवश्यक् है :-

पिछले 3 साल का डाटा, 43 लाख लड़कियों में बाझपन और 30 लाख में कैंसर पाया गया... वैलेंटाइन के बाद मुश्किल से 10 दिन के अंदर गायनेकोलोजिस्टो के पास लड़कियों की भीड़ लग जाती है...

टीवी पे ऐड आता है सिर्फ एक कैप्सूल से 72 घंटो के अंदर अनचाही प्रेगनेंसी से छुटकारा...

बिना दिमाग की लडकिया, ऐसी गोलियां जिसका न कम्पोजीशन पता होता है न कांसेप्ट…

बस निगल जाती हैं…

इन फेक गोलियों में आर्सेनिक भरा होता है यह 72 घंटो के अंदर सिर्फ बनने वाले भ्रूण को खत्म नही करता बल्कि पूरा का पूरा प्रजनन तंत्र ही खत्म कर देता है…

शुरू में तो गोलिया खाकर सती सावित्री बन जाती हैं लेकिन शादी के बाद पता चलता है ये अब माँ नही बन सकती…

तो सबको पता चल जाता है इनका भूतकाल कैसा रहा है, पर कोई बोलता नही जिन्दगी खुद अभिशाप बन जाती है…

सरकार हर साल मातृत्व सुरक्षा, जननी सुरक्षा, बेटी बचाओ जैसी योजनाओ के नाम पर करोड़ो रुपयेफुक देती है।

आज हालत ये हैं 13-14 साल की बच्चिया बैग में i-pill लेकर घूम रही है ये मरेंगी नही तो क्या होगा…

और ऐसी जहरीली चीजे वैलेंटाइन पर मेडिकल माफिया भारतीय बाजारों में जानबुझकर उतारता है...

क्युकी सबको पता है, भारत में बुद्धिजीवी वर्ग का कोई मान नही होता... पहले ये लड़कियों को जहर खिलाकर बीमारी देते हैं... फिर उसकी दवाई बेचकर अरबो रूपये कमाते हैं... जिसमे नेता भी कमाई करते हैं... क्युकी ऐसे जहर को बेचने का परमिट और उनकी चेकिंग न करवाने का काम नेता ही कर सकते हैं...

बेटी आपकी, तो उसकी जिम्मेदारी भी आपकी... इस वैलेंटाइन उसके पीछे संत महापुरुष का ही नही बल्कि आप खुद सजग रहोगे, देखने पर विरोध करोगे।

समय है वेलेंटाइन जैसे कुकर्म को बढ़ावा देने वाले घटिया मानसिकता की जगह जगह अपने माता पिता का पूजन कर देश की युवा पीढी को सुदृढ़ बनाने का...

या फिर अगर चाहते हो आपकी बेटे बेटी जमके अय्याशी करे, और बाद में कैंसर, बाझपन, STD की वजह से मर जाए और आपका बोझ हल्का हो... तो एक ही बार में सल्फास दे दो...

समस्या आपके बेटी की अय्याशी और उसके मरने से नही, समस्या होती है, जो दवाईया बेचकर विदेशी कम्पनिया हर साल हमारे देश का अरबो रुपया लुट लेती हैं उससे है... आज कल की सच्चाई।

सभी बहनों के हित मे, यह जनकारी समर्पित किया है ।

सतर्क रहो, भूलकर भी यह गलती मत करना वरना जीवन भर पछताना पड़ेगा.... ।

जनकारी स्रोत : गूगल कोरा..

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