Dr. Som Shekhar Dixit - Shekhar

  • Home
  • Dr. Som Shekhar Dixit - Shekhar

Dr. Som Shekhar Dixit - Shekhar डॉ सोमशेखर दीक्षित एक ईमानदार एवं परिश्रमी व्यक्ति हैं।

एम्स के प्रोफेसर द्वारा दिया जाएगा फालिज (लकवा) की बीमारी पर लेक्चर आजकल डायबिटीज और बीपी की बीमारियों के कारण फालिज या ...
02/05/2025

एम्स के प्रोफेसर द्वारा दिया जाएगा फालिज (लकवा) की बीमारी पर लेक्चर

आजकल डायबिटीज और बीपी की बीमारियों के कारण फालिज या पक्षाघात या स्ट्रोक के रोगी बढ़ रहे हैं। यह एक गंभीर बीमारी है। जिसमें रोगियों की जान जाने का खतरा भी रहता है । इससे भी ज्यादा गंभीर बात यह है कि जिन रोगियों का जीवन बच जाता है लेकिन फालिज बनी रहती है। वह हमेशा के लिए विकलांग हो जाते हैं। एक तो वृद्धावस्था ऊपर से पैरालिसिस ।

उनके लिए अपना जीवन दुखमय और भार स्वरूप हो जाता है। क्योंकि आजकल लोगों के पुत्र और परिवार के लोग भी जीविका के लिए प्रायः घर से दूर रहते हैं। ऐसे में वह लोग भी उनकी सेवा और सहायता पर्याप्त रूप से नहीं कर पाते।

इस परेशानी का मुख्य कारण यह नहीं है कि इलाज उपलब्ध नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि इलाज के विषय में और बीमारी के लक्षणों के विषय में लोगों को या तो जानकारी नहीं है। या अधूरी जानकारी है। या गलत जानकारी है अब ,चिकित्सा क्षेत्र में इतना ज्यादा विकास हो जाने के बाद, हार्ट अटैक के लिए लोग काफी सजग हो चुके हैं। सीने में किसी भी प्रकार के दर्द के लिए हार्ट की जांच कराते हैं। लेकिन इसके उलट ब्रेन अटैक या पैरालिसिस जो कि हार्ट अटैक के तरीके से ही होती है। इसके बारे में लोगों को जानकारी बहुत कम है। इस कारण से मरीज या तो दिखाने आते ही नहीं है,या बहुत देर में आते हैं, या झाड़ फूंक कराते हैं। नतीजा यह होता है जहां 100 में कम से कम 90 मरीज ठीक हो सकते हैं वहां 100में 10 का भी ठीक होना मुश्किल हो जाता है। नतीजा यह होता है। कि जीवन भर के लिए पैरालिसिस को भुगतना पड़ता है ।

लोगों की इस समस्या को ध्यान में रखते हुए शेखर अस्पताल ने इस विषय पर जनता को जागरूक करने के लिए एक सेमिनार या लेक्चर , पैरालिसिस के विषय पर कराने का निर्णय लिया है। इसके लिए ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट दिल्ली से न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर डॉ सुमित सिंह 3 मई शनिवार को शाम को 5:00 से 7:00 बजे तक अटल सभागार में पैरालिसिस के बारे में उपयोगी जानकारी हिंदी में देंगे। ताकि समाज के सभी वर्गों के लोग इस जानकारी का लाभ उठा सकें।



गौरतलब है कि इस कार्य में शाहजहांपुर के जिलाधिकारी श्री धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने विशेष सहयोग किया है ताकि यह कार्य अच्छी तरह से संपन्न हो सके,जनता तक जानकारी पहुंच सके।

रोगियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण जानकारी (केवल तीन मिनट में)डाक्टरों की नजर में x-ray का भूलता महत्व अनावश्यक जांचों का बढ...
08/01/2025

रोगियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण जानकारी
(केवल तीन मिनट में)

डाक्टरों की नजर में x-ray का भूलता महत्व
अनावश्यक जांचों का बढ़ता महत्व

आजकल जब सब कुछ टेक्नोलॉजी पर आधारित है तो मेडिकल या चिकित्सा में भी इसका महत्व बढ़ गया है। पहले जमाने की तुलना में बहुत सी नई जांचें आ गई है। जिसमें अल्ट्रासाउंड , सीटी स्कैन, एम आर आई स्कैन और पैथोलॉजी में बहुत सारी जांच
हो रही है।

सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण जांच एक्स रे है। जिसने चिकित्सा विज्ञान में एक क्रांति पैदा कर दी थी। जिसके द्वारा शरीर के अंदर देखा जा सकता था। वैसे तो शरीर के सभी अंगों का तरह-तरह से एक्स-रे किया जाता है. लेकिन नई जांचों के कारण शरीर के कई भागों की जांच जैसे कि पेट और सर की जांच सीटी स्कैन और एम आर आई द्वाराअच्छी हो जाती है।
लेकिन एक्स-रे चेस्ट( छाती का एक्स रे )अभी भी एक बहुत महत्वपूर्ण जांच है। क्योंकि इसमें शरीर के दो सबसे महत्वपूर्ण अंग हृदय और फेफड़े दिखाई पड़ते हैं। जिसको कि शरीर का इंजन भी कह सकते हैं।
कोई भी बीमारी हो ,बुखार हो पेट की बीमारी हो, दिमाग की बीमारी हो ,गुर्दे की बीमारी हो, कोई इंफेक्शन हो, दिल की और फेफड़ों की बीमारी हो सभी में एक्स रे जरूरी जांच है क्योंकि दिल और फेफड़े सही काम कर रहे हैं कि नहीं यह जानना जरूरी है , इन पर दूसरे अंगों की बीमारियों का भी असर पड़ता है। ऐसे में एक्स रे चेस्ट न होने से इलाज में बड़ी चूक हो सकती है।
कई बार मरीजों के पास जांचों का गट्ठर होता है लेकिन उसमें एक्स रे चेस्ट नहीं होता।

चूंकि एक्स रे चेस्ट के लिए एक बड़ी मशीन चाहिए होती है। एक्स रे चेस्ट की रिपोर्ट भी आसान नहीं होती। इसलिए एक्स-रे चेस्ट की सुविधा भी कम उपलब्ध होती है। जहां है भी कई बार डिजिटल नहीं होता जो कि जरूरी है।दूसरे जिस चीज का प्रचार बंद हो जाता है। उस पर से लोगों का ध्यान हट जाता है इसीलिए एक्स रे पर से डाक्टरों का और मरीजों का ध्यान हट गया है।

अल्ट्रासाउंड का इतना ज्यादा प्रचार हो गया है। कि मरीज को लगता है कि इसी से सभी बीमारियां पता चल जाएगी। जबकि अल्ट्रासाउंड से 95% मरीजों में केवल गुर्दे और पित्त की पथरी का ही पता चलता है। कभी-कभी पेट में पानी होने का या लीवर में फोड़ा होने का पता चलता है। बाकी बीमारी के दृष्टिकोण से बहुत कुछ पता नहीं चलता।
असलियत में , सेक्स डिटरमिनेशन (गर्भावस्था में लड़का या लड़की) का पता करने के लिए बहुत तेजी से इसका प्रचार किया गया। शुरू में इसको रोकने के लिए कोई कानून भी नहीं था। इसी कारण से अल्ट्रासाउंड का प्रचार बहुत बढ़ गया और मरीज अब इसी को सबसे जरूरी जांच समझने लगे हैं। कभी कभी डॉक्टर लोग जिनके पास अल्ट्रासाउंड होता है। सांस फूलने वाले मरीज का भी अल्ट्रासाउंड करते हैं। एक्स रे नहीं करते।
अल्ट्रासाउंड का प्रचार बढ़ाने के साथ ही , एक्स रे का प्रचार अपने आप कम हो गया। अब तो डिजिटल एक्सरे आ गया है पहले एक्स रे करना भी बहुत झंझट का काम था। पुराने जमाने के फोटो की तरह फिल्म को डेवलप करना पड़ता था। इसलिए डॉक्टर लोग भी अक्सर एक्स रे नहीं लगाते हैं।

मरीजों को स्वयं जागरूक होकर अपनी बीमारियों में एक्स रे चेस्ट की मांग करनी चाहिए अगर एक्स रे नॉर्मल भी है। तो भी बहुत कम खर्चे में मोटे तौर से दिल और फेफड़ों का हाल पता चल जाता है। जो कि शरीर के जीवन का मुख्य आधार है।

किसान मेला / उत्सव(पढ़ने में लगने वाला समय 5 से 6 मिनट) खर्च करके देखेंमेलों का भारत में बहुत पुराना इतिहास और परंपरा है...
29/10/2024

किसान मेला / उत्सव

(पढ़ने में लगने वाला समय 5 से 6 मिनट) खर्च करके देखें

मेलों का भारत में बहुत पुराना इतिहास और परंपरा है सबसे प्रसिद्ध मेला रामलीला होता है इसके अलावा हर क्षेत्र में अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग मेले लगाए जाते हैं कुछ मेले धार्मिक स्थलों पर होते है कुछ मेले व्यापार के लिए होते हैं।

आजकल एक नया प्रचलन है कि हर जिला अपने जिले के नाम पर एक उत्सव का आयोजन करता है। इसके बजाय हर जिले में साल में कम से कम हर फसल के पहले हर ब्लॉक पर किसान मेला होना चाहिए। जिसका स्वरूप भी कुछ नए प्रकार का हो जिससे किसानों को लाभ हो सके और अंतत देश भी सशक्त हो सके इसी विषय पर हम अभी चर्चा करेंगे।

अगर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश के किसी भी जिले मे अधिकांश जनसंख्या किसानों की होती है उसमें भी छोटे और मध्य वर्गी और मध्यम श्रेणी के किसानों की संख्या अधिक होती है। अगर किसी जिले का आर्थिक जागरण करना है या किसी जिले की आर्थिक समृद्धि करनी है तो उसके लिए किसानों का सशक्तिकरण आवश्यक और अनिवार्य है। अपने देश को हम परंपराओं का देश भी कह सकते हैं क्योंकि इस देश का इतिहास और संस्कृति बहुत पुरानी है इसलिए किसी भी नई चीज को, किसी भी नई परंपरा को, किसी भी नए कार्य को समाज में जगह दिलाना बहुत मुश्किल साबित होता है। इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव किसानों पर होता है। हम में से अधिकांश लोग किसी न किसी रूप में गांव से जुड़े हुए हैं अगर हम अपने खेतों की ओर दृष्टि डालें तो हम देखेंगे कि पिछले 20 या अधिक साल से 90% से अधिक किसान वही पुरानी परंपरागत फसले और उसी पुराने तरीके से पैदा करते जा रहे हैं।

अगर हम विकसित देशों की ओर नजर डालें तो देखेंगे कि खेती कितनी तकनीकी विकास पर आधारित है।

आधुनिकतम मशीनों के द्वारा एक से एक कठिन कार्य किए जाते हैं और बड़ी कुशलता से किए जाते हैं। चाहे अफ्रीका के देशों में और चीन के देशों में टमाटर की खेती से लेकर सास बनाने तक का कार्य हो या इजराइल में सभी तरह के फल सब्जियां और अनाज की खेती हो। जिसमें जैविक स्तर पर Genes का प्रबंधन भी किया जाता है और उगाने के स्तर से सिंचाई से लेकर फसल के तैयार होने पर उसको घर लाने तक का कार्य बहुत तरह की एडवांस मशीनों से किया जाता है। सिंचाई में न्यूनतम जल की आवश्यकता होती है।

अगर जापान में देखें वहां भी अधिकांश खेती का कार्य मशीनों के द्वारा किया जाता है। अगर चीन के ग्रामीण हिस्सों में देखें तो वहां बहुत सारे छोटे-छोटे उपयोगी यंत्रों का उपयोग होता है जिससे खेती के बहुत सारे कार्यों में श्रम या मजदूरी का कम उपयोग होता है। हमारे यहां कृषि में नाम मात्र की मशीनों का उपयोग होता है जैसे ट्रैक्टर, डीजल इंजन पानी के लिए, और कंपाइन जैसी मशीन फसल काटने के लिए। कुछ छोटे-छोटे और यंत्र भी उपयोग में लिए जाते हैं। वास्तव में किसानों को सशक्त करने के लिए जरूरी है किसानों को जागरूक करना, उनके लिए तकनीक का उपयोग आसन बनाना, अच्छे बीजों का उपयोग, भूमि की उपजाऊ परत का संरक्षण करना, जल के उपयोग की ऐसी विधियों का प्रचार करना जिससे जल कम खर्च हो और श्रम भी कम खर्च हो ।

इसके अलावा एक ही जिले में अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग तरह की भूमि पाई जाती है। कहीं जल भराव वाली भूमि कहीं सूखा वाली भूमि है कहीं बिल्कुल बलुई है , कहीं अच्छी दोमट और तो कहीं मटियार, कहीं करीली पथरीली मिट्टी भी है । इन सब में किस तरह से अलग-अलग फासले उगाई जाए जिनमे खर्च कम आए और आमदनी ज्यादा हो। किस तरह से फसल चक्र को बदलना है। किस तरह से सह फसली खेती करनी है। किस तरह से अनाज के साथ सब्जियों और फलों की खेती की जा सकती है। ऐसे बहुत सारे विषय हैं जिनकी जानकारी और प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है ।

छोटे किसानों के लिए कम लागत वाली छोटी-छोटी मशीनों के निर्माण की आवश्यकता है। जिससे काम आसान हो सके और लेबर कॉस्ट कम हो सके। ऐसी मशीनों के निर्माण की, उपलब्धता की और उनको कैसे प्रयोग किया जाए इस सब के प्रशिक्षण की आवश्यकता भी है।

वैसे तो सरकार अपने स्तर से बहुत से कार्य कर रही है जिनमें अधिकांश खाद बीज और कुछ मशीनो में सरकारी आर्थिक छूट की व्यवस्था की गई है। कृषि विभाग में इतनी सारी योजनाएं जानकारी में आई हैं कि उससे पूरे क्षेत्र के किसानों का कायाकल्प हो ही जाना चाहिए।

वन विभाग भी किसानों के लिए बहुत सारी योजनाएं लेकर आता है। जिससे कृषि वानिकी कहते हैं इसका मतलब है कि खेती के साथ बड़े वृक्षों को किस प्रकार से समायोजित किया जाए। इसके लिए हर जिले में वन विभाग होता है जिसमें विभाग का मुखिया एक आईएएस ऑफिसर भी होता है वन विभाग सरकारी भूमि पर वन का क्षेत्रफल बढ़ाने के अलावा किसानों के लिए जानकारी भी देता है पौधे भी देता है सहयोग भी देता है की किस प्रकार से खेती के साथ विभिन्न प्रकार की लकड़ी के पेड़ लगाये जा सकते हैं और उनसे लाभ कमाया जा सकता है।

फल सब्जी के लिए एक अलग विभाग, हॉर्टिकल्चर विभाग भी हर जिले में कार्यरत है । जितनी योजनाएं कागजों पर हैं अगर उतनी भी अधिकांश किसानों की जानकारी में आए और आसानी से उनके लाभ उनको मिल सके तो किसानों का काफी हद तक सशक्तिकरण हो सकता है।

लेकिन जैसे कि पहले ही कहा गया है कि हमारा देश और समाज परंपरावादी है इसमें परिवर्तन लाना बहुत कठिन काम है । लोगों के मन को इसके लिए तैयार करना एक कड़ी चुनौती है तो किसानों के लिए जो भी योजनाएं लाई गई है वह है तो बहुत सारी। लेकिन इसमें भी बहुत नई तरकीबों को लाने की आवश्यकता है। जिससे किसान जानकार बने और इसको खेती में प्रयोग में लाएं।

इसके लिए बहुत बड़े स्तर पर लगातार बार-बार प्रयास करने की आवश्यकता है। कई स्तरों पर कार्य करने पर आने वाले 10 वर्षों में काफी सकारात्मक परिवर्तन हो सकते हैं।

पहली बात तो यह है कि साल में फसल चक्र के अनुसार हर फसल के प्रारंभ होने के कम से कम 20 दिन पहले तीन से सात दिन का किसान मेला हर ब्लॉक में लगाया जाना चाहिए। और उसमें किसानों को सक्रिय रूप से आमंत्रित किया जाना चाहिए । कोई ऐसी व्यवस्था हो कि आने वाला हर किसान किसी न किसी तरह से लाभान्वित होकर ही जाए तभी किसानों की रुचि मेलों में बढ़ेगी। और वहां पर जैसे डॉक्टरों की कॉन्फ्रेंस में इंजीनियरों की कॉन्फ्रेंस में वर्कशॉप आयोजित की जाती है। इसी तरह से किसानों के लिए वर्कशॉप का आयोजन किसान मेलों में होना चाहिए। वर्कशॉप में कैसे काम करना है उसका उसी रूप में प्रयोग कराया जाता है। इसके अलावा हर मेले में किसानों की हर तरह की फसल को ,चाहे वह सब्जियां हो चाहे वह फल हो चाहे वह अनाज हो उनको खरीदने की व्यवस्था हर ब्लॉक स्तर पर की जानी चाहिए।

फल और सब्जियों के संरक्षण और प्रसंस्करण के लिए हर ब्लॉक स्तर पर ऐसी इकाइयों को स्थापित किया जाना चाहिए जिससे फल और सब्जियां संरक्षित हो सके । प्रसंस्करण का कार्य भी किया जा सके।

अक्सर किसान फसल पैदा तो बहुत करते हैं। लेकिन जब ज्यादा पैदा करते हैं तो कच्ची फसल जैसे कि फल और सब्जियां मिट्टी के मोल बिक जाती हैं और व्यापारी उनको अपने साधनों से देश के दूर-दूर हिस्सों में पहुंचा देते हैं और अधिकांश लाभ वही कमाते हैं।

मेलों के अलावा प्राथमिक शिक्षा से ही कृषि का विषय जरूर होना चाहिए जो लोग शहर में रहते हैं वह भी अपने घरों में फल और सब्जियां उगा सकते हैं जिससे शहर की हवा की ऑक्सीजन भी बढ़ सकती है। प्रदूषण भी कम हो सकता है और ग्रामीण बच्चों के लिए तो कृषि का महत्व बहुत ज्यादा है।कृषि में परिवर्तन किस प्रकार किया जाए कृषि के द्वारा आमदनी कैसे बढ़ाई जाए इन विषयों को छोटे क्लास से ही कम से कम कक्षा 10 तक या कक्षा 8 तक काफी हद तक बच्चों के दिमाग में बैठा दिया जाना चाहिए क्योंकि परिवर्तन की व्यवस्थाएं उपलब्ध होने पर भी परंपरावादी समाज परिवर्तन करता नहीं है लेकिन अगर बच्चों के दिमाग में इसका बीज डाल दिया जाए तो परिवर्तन आसान हो जाएगा।

स्कूलों में भी निबंध और भाषण प्रतियोगिताएं वाद विवाद प्रतियोगिताएं एक सरकारी कार्यक्रम के तहत, हर साल होनी चाहिए जिन चीजों से देश की अधिकांश आबादी प्रभावित है उन विषयों की चर्चा हर स्तर पर ज्यादा होनी चाहिए । कृषि उत्पाद एक ऐसी चीज है जो सबके लिए आवश्यक है और जिसका जीवन और स्वास्थ्य से सीधा संबंध है इसलिए ऐसी चर्चाएं करना कोई एहसान करना नहीं होगा बल्कि समाज के एक बड़े हिस्से को जरूरी बातों से अवगत कराना होगा इसी में पौष्टिक आहार के विषय में भी चर्चा अति आवश्यक है आजकल अधिकांश लोगों का स्वास्थ्य हानिकारक आहार लेने की वजह से है जिसकी जानकारी लोगों को हो ही नहीं पाती है।

जिस तरह से हरित क्रांति के द्वारा अन्न उत्पादन को बहुत बड़ी हद तक बढ़ाया गया जिससे देश अनाज के बारे में आत्मनिर्भर हो गया।

इसी तरह से किसानों को सशक्त करने के लिए ,परंपरागत खेती को बदलने के लिए ,उनके लिए जल और श्रम की आवश्यकताओं को तकनीक के माध्यम से कम करने के लिए और इस सबके परिणाम स्वरूप देश को सशक्त करने के लिए इस तरह के कार्यकलापों की बहुत बड़े स्तर पर आवश्यकता है।



अक्सर हम देखते हैं की 10 - 15 बीघा खेती होने के बावजूद लोग दिल्ली और हरियाणा में 8- 10- 12000 रुपए की मासिक नौकरी करते हैं जिसमें 10 से 12-12 घंटे तक काम करना होता है। वहां पर रहन-सहन और भोजन की स्थितियां भी बहुत खराब होती हैं। जिससे लगभग आधे श्रमिक कुछ वर्षों में ही बीमार होकर बेकार हो जाते हैं। अगर उनकी कृषि की ट्रेनिंग सही हो उनके अंदर आत्मविश्वास हो तो इतनी जमीन में इससे कई गुना ज्यादा पैदा किया जा सकता है।

और गांव से शहरों की ओर पलायन भी कम किया जा सकता है जिससे गांव और शहर दोनों को लाभ हो सकता है।

वास्तव में किसानों के जीवन को आमूल चूल बदलने में उन सबका भी बहुत लाभ है जो किसान नहीं है क्योंकि उनको शुद्ध ताजी और अच्छी खाने-पीने की चीज उपलब्ध होगी जो कि स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है साथ ही इससे देश का जीडीपी बढ़ेगा इससे अर्थव्यवस्था मजबूत होगी इसका लाभ सभी को होगा इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सरकार और समाज को एक आंदोलन के स्तर पर इस तरह के कार्यकलापों को लगातार किया जाना चाहिए उसी से किसानों का सभी देशवासियों का और आने वाली पीढ़ियां का भविष्य अच्छा होगा।

आशा है कुछ लोग इसको अवश्य ही पूरा पढ़ेंगे और इस विषय में कार्य को आगे बढ़ाने के विषय में भी विचार करेंगे या इसी विषय पर संबंधित इससे बेहतर योजनाएं अगर किसी के मन में है तो उनको साझा करेंगे।

जय विज्ञान

तभी

जय किसान

तभी

जय हिंद

🙏🙏

मनुष्य का सबसे बड़ा हत्याराकौन ?2.5 मिलीग्राम का कीट     मच्छरजी हां! मच्छर ही है मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन। हर साल ...
29/08/2024

मनुष्य का सबसे बड़ा हत्यारा

कौन ?

2.5 मिलीग्राम का कीट
मच्छर
जी हां! मच्छर ही है मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन। हर साल सबसे ज्यादा मौतें इसी कीट से होती हैं। 7000000(7लाख) मौत प्रतिवर्ष

मच्छरों से कई प्रकार की बीमारियां होती हैं। जिनमे मलेरिया और डेंगू सभी को पता हैं। इसके अलावा चिकनगुनिया, फाइलेरिया और एन्सेफेलाइटिस या दिमागी बुखार भी मच्छर से होती है।

सबसे ज्यादा मौतें मलेरिया और डेंगू से होती है। उसमें भी सबसे ज्यादा मलेरिया से। चूंकि मलेरिया बहुत पुराने समय से पता है। दूसरे डेंगू की तरह बहुत तेजी से नहीं फैलता। इसलिए मलेरिया की गंभीरता के बारे में ज्यादातर लोगों को ठीक से जानकारी नहीं रहती है। ऐसा शायद ही कोई हो जिसे कभी मलेरिया ना हुआ हो।

लक्षण

मलेरिया से ठंड देकर बुखार आता है। और एक दिन छोड़कर आता है। ऐसा माना जाता है । लेकिन समय के साथ सभी बीमारियों के लक्षण बदलते रहते हैं। आजकल मलेरिया बहुत सारे रूपों में मौजूद है और किसी भी अस्पताल में सबसे ज्यादा मरीज मलेरिया के ही है। जब से कार्ड टेस्ट आ गया है तब से मलेरिया की जानकारी जल्दी हो जाती है। आजकल मलेरिया के मरीजों में हल्का बुखार या तेज बुखार ठंड के साथ या बिना ठंड के साथ लगातार या छोड़ छोड़ कर आता है।

इसके अलावा मरीज का बीपी कम हो सकता है।
कमजोरी हो सकती है
पेशाब कम हो सकती है या बंद हो सकती है।
बेहोशी आ सकती है ।

जांच करने पर

मरीजों में खून की कमी
प्लेटलेट की कमी सभी मरीजों में पाई जाती है
आजकल लिवर में और गुर्दे में मलेरिया का प्रभाव बहुत पाया जाता है।
फेफड़ों पर भी इसका असर पड़ता है।

जब मरीज को ठंड लगती है उसी समय मरीज के खून में लाल रक्त कणिकाएं फट जाती हैं क्योंकि उनके अंदर मलेरिया के कीटाणुओं की संख्या बहुत बढ़ जाती हैं ।और एक साथ कम से कम दो यूनिट ब्लड नष्ट हो जाता है। यही ब्लड जाकर गुर्दे की नलियों को ब्लॉक करता है।

जिससे गुर्दे खराब हो जाते हैं।

इस वर्ष गुर्दे की खराबी के मरीज सबसे ज्यादा आ रहे हैं। कई मरीजों में यह जानलेवा साबित होता है ।क्योंकि इसकी जानकारी देर में हो पाती है कई मरीजों में फेफड़े के खराब होने से सांस बिगड़ कर मरीज खत्म होते हैं । क्योंकि एक्स-रे नॉर्मल आता है और फेफड़ों की खराबी का पता ही नही चल पाता। इसीलिए इलाज ठीक से नहीं हो पाता ।

कुछ मरीजों में खून की ज्यादा कमी से भी जान जाती है।

कभी-कभी प्लेटलेट की कमी से दांतों में नाक में या दिमाग के अंदर ब्लीडिंग हो जाती है। दिमाग के अंदर ब्लीडिंग होने से खतरा बढ़ जाता है ।

कहने का तात्पर्य यह है कि मलेरिया एक बहुत खतरनाक बुखार है और इसका रूप इस वर्ष सबसे खराब और खतरनाक है।
एक कारण यह भी है कि मलेरिया की गंभीरता के बारे में लोगों को पता नहीं है।

डेंगू का प्रचार तो अखबारों ने खूब किया लेकिन मलेरिया बहुत पुरानी बीमारी है इस कारण से यह खबर आकर्षक नहीं बनती और प्रचार नहीं हो पाता। प्राय सरकारी सिस्टम आंकड़ों को कम करके ही दिखाता है।

मेरे अस्पताल में पिछले 1 महीने से लगभग 50-60 मरीज भर्ती रहते हैं जिसमें 100 में 60 से 70 मरीज मलेरिया के ही होते हैं और जिसमें कम से कम 20-30 रोगी गंभीर हालत में आते हैं। कभी-कभी रोगी इतनी सीरियस हालत में आते हैं कि आते ही कुछ समय में खत्म हो जाते हैं। या रेफर किए जाते हैं उनका पता नहीं क्या होता है। कभी-कभी घर से अस्पताल तक आते रास्ते में खत्म हो जाते हैं उनके पास मलेरिया पॉजिटिव की रिपोर्ट होती है। यह लगभग रोज की कहानी है।
बहुत सारे मरीजों को ऑक्सीजन की ब्लड ट्रांसफ्यूजन की या एल्बुमिन ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है।

इस समय मलेरिया के अलावा वायरल फीवर फ्लू टाइप ,टाइफाइड और कोई कोई चिकनगुनिया का मरीज तथा कुछ निमोनिया के मरीज आ रहे हैं ।

बचाव

किसी भी बुखार होने पर खतरे से बचने के लिए कुछ जांच तुरंत करानी चाहिए।

मलेरिया
गुर्दे की जांच सीरम क्रिएटिनिन
लीवर की जांच सीरम बिलीरुबिन

इसके अलावा मरीज की सांस तेज चलना
बीपी 100 से कम होना और
नब्ज का 100 से सबसे ज्यादा होना।
पेशाब कम होना,
सांस में तकलीफ होना
किसी भी बुखार के लिए गंभीर लक्षण है

ऐसी हालत में तुरंत ही किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाना चाहिए। जल्दी दिखाए जाने पर लगभग 100% मरीज ठीक हो सकते हैं।

कुछ दूसरे मरीज जिनको ज्यादा खतरा होता है वह है
बच्चे, बूढ़े, गर्भवती महिलाएं, डायबिटीज या ब्लड प्रेशर के मरीज।

डायबिटीज या ब्लड प्रेशर के मरीजों में गुर्दा खराब होने का ज्यादा खतरा होता है और वैसे भी डायबिटीज में कोई भी बीमारी खतरनाक होती है चाहे डेंगू हो चाहे मलेरिया हो चाहे निमोनिया हो चाहे कोरोना हो।
आजकल जांचों की सुविधा सब जगह मौजूद है हालांकि सब जगह जांचें बिल्कुल सही नहीं हो पाती हैं। फिर भी जो लोग सक्षम नहीं है अच्छी पैथोलॉजी तक पहुंचने में। वह वहीं पर जांच करा कर यह पता कर सकते हैं कि क्या बीमारी है।
अगर लगभग सभी जांच ठीक आती हैं और सांस और ब्लड प्रेशर भी ठीक है तो वायरल फीवर होने के चांसेस ज्यादा होते हैं ।

उपरोक्त जानकारी एमडी मेडिसिन की पढ़ाई और पिछले 35 साल के लगातार गंभीर मरीजों के इलाज के अनुभव पर आधारित है और इस साल के मरीज की विशेषता जो गुर्दे की खराबी है वह भी अस्पताल के अनुभव पर आधारित है।

अगर आप सुरक्षित है आपका परिवार सुरक्षित है ।तो भी आपके आसपास जिन लोगों को खास जानकारी नहीं है। या कम पढ़े लिखे हैं। या जो आपके संपर्क में है। उनको यह जानकारी अगर आप देंगे तो एक तरह की समाज सेवा ही होगी क्योंकि बीमारी बिगड़ जाने के बाद फिर बहुत इलाज करने पर भी फायदा होने की संभावना कम होती है। और गरीब आदमियों के लिए इलाज का खर्चा भी आधी मौत के बराबर होता है।

जागरूकता ही बचाव है।

डॉक्टर सोमशेखर दीक्षित एम डी

भारतीय न्याय व्यवस्था "प्रोसेस इस पनिशमेंट" चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया ने कहा मतलब यह कि कोर्ट की कार्य प्रणाली ही सजा है। यह...
03/08/2024

भारतीय न्याय व्यवस्था

"प्रोसेस इस पनिशमेंट"
चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया ने कहा

मतलब यह कि कोर्ट की कार्य प्रणाली ही सजा है। यह बात तो पिछले 50 साल से अखबारों में ,लेखों में ,बड़े-बड़े लेखकों के उपन्यासों में ,और कवियों की कविताओं में, यहां तक कि फिल्मों में भी बार-बार कही गई है।
कोई कहता है कि कोर्ट में तारीख पर तारीख पर तारीख पर तारीख पर तारीख मिलती है। न्याय नहीं मिलता।

मुंशी प्रेमचंद कहते हैं कि अदालत में न्याय सिर्फ पैसे वालों को मिलता है। गरीबों के लिए न्याय की कोई व्यवस्था नहीं है।
कोई कहता है जब अन्याय करना हो तो मुकदमा दर्ज कर दो। बहुत सालों तक फैसला ही नहीं होगा । कहावत है कि कोर्ट मे घसीटेंगे । मतलब कोर्ट धक्के खाने की जगह है।
एक बार एक जज साहब हमारे इलाज में थे उनका कहना था कि डॉक्टर साहब बहुत जल्दी हमें ठीक कीजिए हमने कहा आपके यहां तो सालों बीत जाते हैं कुछ भी परिणाम नहीं निकलता यहां आपको जल्दी पड़ी हुई है जज साहब बोले कि हमारे विभाग का हाल इस कहानी से समझिए
कि एक बार जंगल में सारे जीव जंतु भागे चले जा रहे थे। तो किसी ने चींटी से पूछा तुम क्यों भाग रही हो। चींटी बोली, तुम्हें पता नहीं है कि हाथी पर FIR हो गई है। तो पूछने वाले ने कहा लेकिन तुम क्यों भाग रही हो। चींटी बोली, अगर मुझे पकड़ लिया गया तो यह साबित करने में कि मैं हाथी नहीं हूं। मेरी जिंदगी ही खत्म हो जाएगी।
इसी संदर्भ में
कोई कवि कहता है कि
मेरे बेटे कचहरी न जाना।
भले रूखी सूखी, खाकर निभाना
भले जाके जंगल में मंगल मनाना। मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी न जाना
कचहरी न जाना।

आज से लगभग 60 साल पहले रमई काका ने कहा
"अब तो यही मसल भय सच
9 की लकड़ी 90 खर्च"
किसी सिविल के मुकदमे में₹9 की लकड़ी के लिए कोर्ट में 90 रुपए खर्च हुए होंगे।

मुकदमे में बर्बाद हो गए
ऐसा कहते हुए भी कई लोग पाए जाते हैं।

कोर्ट में अपील स्वीकृत होने का मतलब एक सफलता माना जाता है जबकि इसकी तुलना बीमारी के इलाज से करें तो अपील स्वीकृत होना डॉक्टर या अस्पताल का पर्चा बनने के बराबर है इस बात को साबित करता है की हां! अब आपका इलाज होगा अगर इन दोनों की तुलना की जाए तो जैसे ही मरीज का पर्चा बन जाए उन लोगों में खुशी की एक लहर दौड़ जानी चाहिए जैसे अपील स्वीकृत होने पर होती है।

न्याय ऐसी चीज है कि उसका महत्व भोजन से भी अधिक है। आदमी भूखे रहना पसंद कर लेगा लेकिन अन्याय को बर्दाश्त करना किसी को भी अच्छा नहीं लगता।
राजा का एक ही कर्तव्य होता है कि लोगों को न्याय दिलाए। पुरानी कहानियों में अक्सर कहा जाता था की एक बड़ा न्याय प्रिय राजा था। इसका मतलब है राजा का मतलब या राज्य का मतलब न्याय देने से होता है।
महाभारत में शांति पर्व में न्याय दिलाने के लिए न्याय दंड या राजदंड पर बड़ी लंबी व्याख्या की गई है। इसका अर्थ है की राजा के स्तर से न्याय ही सबसे महत्वपूर्ण है। बाकी सब काम व्यक्ति स्वयं करता है। केवल अन्याय से बचाना राजा का कार्य है।आजकल का राजा (सरकार) न्याय अन्याय से दूर है। न्याय का काम अदालत को सौंप दिया। यह अंग्रेजों की चालाकी और चतुराई थी। कि जनता से टैक्स तो सरकार वसूलेगी। लेकिन जब न्याय की जरूरत आए तो अपना पैसा खर्च करो और अदालत जाओ। पैसा खर्च करके कोर्ट में न्याय हासिल किया जा सकता है। लेकिन कोर्ट का, क्या हाल है यह सब लोग जानते हैं। मतलब यह हुआ कि सरकारों का जो मुख्य काम है। वह बिल्कुल नहीं हो रहा है ।
यह कहना कि सरकार आर्थिक प्रगति करती है या सरकार रोजगार देती है अधिकांश असत्य है। सरकार केवल ऐसी स्थितियों को पैदा कर सकती है जिसमे लोगों को रोजगार ,व्यवसाय और जीवन यापन के बाकी सारे कार्य करने में कोई बाधा न पैदा हो। भय मुक्त और बाधा रहित वातावरण, आर्थिक प्रगति को अपने आप ही रफ्तार दे देगा।

कुल मिलाकर सार यही है कि सरकार का काम न्याय देना है आज के समय में अगर इसी कसौटी पर सरकार को कसा जाए तो एक परसेंट से ज्यादा नंबर सरकार को नहीं मिलेंगे।

मुद्दई तो आदिकाल से परेशान है ही, जैसा कि ऊपर बहुत सारी कहावतों में कविताओं में उपन्यासों में कहा गया है।

कुछ दो-चार प्रतिशत वकीलों को छोड़कर बाकी वकीलों का भी हाल बहुत बुरा है। और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया कह रहे हैं कि
"प्रोसेस इस पनिशमेंट"
इसका मतलब क्या हुआ। इसका मतलब यह है कि जितने भी प्रकार के लोग इस न्याय व्यवस्था से संबंधित है कोई भी खुश नहीं है। सभी परेशान हैं।

हल क्या है
इस समस्या का हल क्या है।

हल है ,इस समस्या को, इस कानून व्यवस्था को, आमूल चूल परिवर्तित करना। सैकड़ो महान जज रिटायर हो चुके हैं ।बहुत सारे कानून मंत्री बन चुके हैं बहुत सारे सोशियोलॉजी के समाजशास्त्र के विद्वान मौजूद हैं। लेकिन इस समस्या पर कोई भी, हल निकालने की दिशा में ,कोई काम हुआ मालूम नहीं पड़ता।
हर समस्या के लिए कोई न कोई आयोग गठित किया जाता है। कोई न कोई कमेटी गठित की जाती है ।लेकिन इस कानूनी अत्याचार को दूर करने के लिए कोई आयोग गठित नहीं किया गया कोई कमेटी गठित नहीं की गई।

वक्त की जरूरत है कि, इस न्याय व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन हो।

बड़े-बड़े महान न्यायविद, बहुत बड़े-बड़े वकील, बहुत बड़े-बड़े समाज शास्त्री बहुत सारे राजनीतिज्ञ, इस विषय पर विचार करें ।एक आयोग गठित करें। पूरे समाज से भी सुझाव मांगे जाएं।
जो मुकदमों के भुक्त भोगी है और जो दूर से देखने वाले हैं। जो इस व्यवस्था में काम कर रहे हैं। सभी के सुझाव आमंत्रित किए जाएं।
संकल्प किया जाए कि इस व्यवस्था को बदलना बहुत जरूरी है। देशवासियों की सुख सुविधा के लिए सबसे जरूरी दो ही बातें हैं ।
एक तो "भ्रष्टाचार" को दूर करना.
इसके बिना कोई भी काम सफल नहीं हो सकता। दूसरा है "न्याय व्यवस्था" को परिवर्तित करना और ऐसी व्यवस्था बनाना जो पीड़ित के हित में शीघ्रता से और निश्चित ही कार्य करें।

पाठकों से निवेदन है इस विषय पर कमेंट अवश्य करें मौन धारण न करें अपना पक्ष अवश्य रखें।

21/01/2024

आश्चर्यजनक किंतु सत्य

भीषण सर्दी में गांव के छोटे बच्चे आकाश के नीचे किताबों के सहारे अपने सपनों को साकार करने की कोशिश में लगे हुए।

हां ! आपने सही पढ़ा।

यह किस्सा आज 21 जनवरी 2024 का है ।
शाहजहांपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर ददरौल ब्लॉक के इंटीरियर गांव में एक पतली सी ग्रामीण सड़क के किनारे लगभग 20 बच्चे (प्राइमरी स्कूल ग्रुप के) एक अध्यापक के मार्गदर्शन में अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश में लगे हुए।

जहां पूरे प्रदेश में सर्दी को देखते हुए स्कूल कॉलेज में छुट्टी कर दी गई है वहीं शाहजहांपुर के ददरौल ब्लॉक के एक गांव कुतुबापुर के बच्चे ,किसी भी स्थान के अभाव में सड़क के किनारे लगभग खेत में ,बोरी बिछाकर अपनी अपनी किताबों में मन लगाए हुए बैठे हैं। अभी से ही उन्होंने अपने सपने बुन रखे हैं और उन्हें साकार करने की पूरी कोशिश जारी है । उनका साथ दे रहे हैं उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं ,अध्यापक प्रदीप कुमार।

आज रविवार का भी दिन है, घोर सर्दी है। हर जगह छुट्टी है ।लेकिन यह बच्चे कुछ बनने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं।

और जहां सुविधाएं हैं जहां अच्छे-अच्छे स्कूल हैं जहां माता-पिता सब साधन जुटा रहे हैं वहां पर बच्चों में पढ़ने की ऐसी ललक देखने को नहीं मिलती।

क्या व्यवसाय में या रोजी-रोटी कमाने के किसी भी कार्य में एक्टिंग या अभिनय का विशेष योगदान हो सकता है?सुनने में अजीब लगता...
20/12/2023

क्या व्यवसाय में या रोजी-रोटी कमाने के किसी भी कार्य में एक्टिंग या अभिनय का विशेष योगदान हो सकता है?

सुनने में अजीब लगता है। आइए चर्चा करते हैं।

हर आदमी अपने जीवन में सफल होना चाहता है लेकिन सफलता सबको नहीं मिलती या अपेक्षित नहीं मिलती। क्यों नहीं मिलती । इसके बारे में बहुत तरह की चर्चाएं चलती हैं। सब अपने कार्य की सफलता या असफलता को अपने-अपने हिसाब से परिभाषित करते हैं।

किसी भी संदेश को कहानी के माध्यम से कहने पर वह रोचक भी होता है और जनसाधारण को आकर्षित भी करता है लेकिन ऐसी क्षमता ईश्वर ने बहुत कम लोगों को दी है कि वह किसी सिद्धांत पर भी बात करें, तार्किक रूप से बात करें और उसको कहानी की शक्ल दे दे फिलहाल साधारण भाषा में ही चर्चा करते हैं।

किसी भी कार्य को सफलता से करने के लिए अभिनय करने का अभ्यास होना चाहिए और स्वयं को हर समय अभिनय के लिए तैयार रखना चाहिए। इस बात का एहसास भी होना चाहिए कि मैं यह अभिनय कर रहा हूं । जो कि इस कार्य की सफलता के लिए आवश्यक है। यह मैं नहीं हूं न तो यह मेरा स्वभाव है। लेकिन कार्य की सफलता के लिए यही आवश्यक है । क्योंकि संसार में जिस जिस कार्य के लिए जहां-जहां पर जैसा-जैसा अभिनय करना होता है वही करना चाहिए उसी से सफलता मिलती है। एक अध्यापक को ,एक डॉक्टर को, एक विद्यार्थी को, एक सेल्समैन को, एक दुकानदार को, एक नेता को, एक अधिकारी को या किसी भी विभाग के अध्यक्ष को या प्रभारी को लोगों से बात करने में और अपने काम को अंजाम देने में अलग-अलग तरह की भूमिका निभानी पड़ती है। उसके लिए अपने आप को अलग-अलग तरह से प्रेजेंट करना पड़ता है। यह अभिनय ही है।

जिस तरह से अच्छा अभिनेता अच्छे अभिनय को करने के लिए उस विषय की पूरी जानकारी भी हासिल करता है और पूरी कोशिश भी करता है कई बार तो बार बार अभ्यास करता है ताकि अभिनय वास्तविक लगे।

यहां पर यह कहना उपयुक्त होगा कि प्रायः लोग अभिनेताओं की सफलता और प्रसिद्धि से ईर्ष्या करते हैं और कहते हैं कि उन्होंने तो खाली अभिनय किया। क्यों ना हम भी इसी अभिनय को किसी हद तक करके देखें।फिर परिणाम देखें।

इसी तरह से अन्य क्षेत्रों में जहां पर जिस प्रकार का अभिनय करना हो। उसी प्रकार की जानकारी प्राप्त करके बिल्कुल वास्तविक लगने वाला अभिनय करना चाहिए और इसको अभिनय मानने में ही सबसे ज्यादा आसानी है ।
क्योंकि मनुष्य का जो मूल स्वभाव है उससे हटकर उसे बहुत सारे कार्य करने होते हैं। तो ऐसा कार्य करते समय उसको कोफ्त होती है। कष्ट होता है ,मानसिक कष्ट होता है इससे बचने का यही तरीका है। समाज में, बाजार में आगे बढ़ने के लिए अभिनय करना ही पड़ेगा और उसको अभिनय मानना चाहिए यह मानना चाहिए कि मैं इससे अलग हूं मेरा व्यक्तित्व अलग है। लेकिन इस कार्य की ऐसी जरूरत है। कि मुझे यह अभिनय करना जरूरी है और ऐसा अभिनय करना जरूरी है कि वह वास्तविक लगे।

वास्तव में सुबह से शाम तक घर के अंदर भी तरह-तरह की भूमिकाएं निभाने के लिए तरह-तरह के अभिनय करने पड़ते हैं। माता-पिता के साथ दूसरी तरह का अभिनय, पत्नी के साथ अलग, बच्चों के साथ अलग, दोस्तों के साथ अलग तरह का अभिनय अपने कर्मचारियों के साथ अलग अभिनय, अपने बास या अधिकारी या सीनियर के सामने अलग तरह का, रिश्तेदारों के सामने अलग तरह का अभिनय।
कहने का तात्पर्य यह है कि अभिनय तो हमें करना ही है प्राय जो अभिनय हमें अपनी रोजी-रोटी से संबंधित या मुख्य कार्य से संबंधित करने होते हैं। वहीं पर कभी-कभी मन में यह भाव आता है कि मैं मजबूरी में यह सब कर रहा हूं। मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता है।
मेरा स्वभाव ऐसा नहीं है।

सबसे ज्यादा जरूरी भी रोजी-रोटी से संबंधित कार्य ही होता है। जबकि पारिवारिक सामाजिक कार्यों में जो अभिनय करना पड़ता है। प्रायः उसको हम खुशी से करते हैं। इससे साबित होता है। कि अभिनय तो हम करते ही हैं अभिनय करने की क्षमता भी है। सिर्फ मन से करने और मन से न करने का सवाल है। उदाहरण के लिए अपने अतिथि या मित्र के सामने हमारा व्यवहार बहुत अच्छा होता है जबकि अपने ग्राहक या कर्मचारी से रूखा या उदासीन व्यवहार हो सकता है जो कि हानिकारक है। मित्र का फोन आने पर वाणी में उत्साह होता है। जबकि ग्राहक या कर्मचारी का फोन आने पर उतना उत्साह नहीं भी हो सकता है। इसी तरह से हम मित्र या अन्य व्यक्ति के द्वारा कोई मदद मिलने पर भरपूर धन्यवाद देते हैं जबकि घर में माता-पिता पति /पत्नी बच्चों को धन्यवाद देने या उनकी तारीफ करने में कंजूसी करते हैं।

मुख्य कार्य में मन से अभिनय न करने के कारण हम लोग प्राय पीछे रह जाते हैं। अपने काम में पर्याप्त सफलता प्राप्त नहीं करते और प्राय मुख्य कार्य में मानसिक रूप से प्रसन्न नहीं रहते हैं।

(अक्सर लोग बात करते हैं कि इस समय काम की नहीं मनोरंजन की बात करेंगे या यह काम का समय नहीं है मनोरंजन का है अर्थात काम और मनोरंजन अलग-अलग है जबकि दोनों एक में ही होने चाहिए)

मुझे लगता है कि अगर अपना दृष्टिकोण इस प्रकार से बदल लिया जाए कि यह मेरा मुख्य कार्य है इसमें भी अभिनय करना ही है जिसको कि मैं पूरे मन से करूंगा और इसके लिए जो भी सीखना होगा वह भी सीखूंगा करते समय यह भी एहसास रखूंगा कि मेरे मूल स्वभाव से भिन्न है लेकिन जरूरी है और यही मेरी काबिलियत और योग्यता भी है कि मैं अपने मूल स्वभाव से अलग कार्य को खुशी से कर सकता हूं। जैसे कार सड़क पर दौड़ सकती है लेकिन अगर कीचड़ में भी आसानी से निकल जाए तो उसको अच्छी कार माना जाएगा। कार का मूल स्वभाव है सड़क पर दौड़ना लेकिन कभी-कभी ऐसी स्थिति आ सकती है की बारिश के कारण पानी भर जाए या अनजाने रास्ते पर कीचड़ आ जाए ऐसे में अगर कार निकल जाएगी तो लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है और दूसरी तरफ अगर कार ऐसी स्थिति में बिल्कुल नहीं चल पाएगी तो इतनी दूर तक आना भी बेकार हो जाएगा इतना प्रयास भी बेकार हो जाएगा और सफलता भी नहीं मिलेगी।
इसलिए यह स्वीकार करना कि जीवन में हर दिन अभिनय करना जरूरी है। मन लगाकर अभिनय करने से सफलता एवं संतुष्टि में वृद्धि हो सकती है। भारतीय दर्शन भी जीवन को एक नाटक ही मानता है।
हम एक सप्ताह के लिए इस सिद्धांत पर कार्य करके देखें।

कृपया अपनी राय अवश्य व्यक्त करें।

महामारी का रूप लेती बीमारियों डेंगू मलेरिया आदि से   निपटने का तरीका बदलना होगाभारत में अधिकांश बीमारियां जो महामारी का ...
22/10/2023

महामारी का रूप लेती बीमारियों डेंगू मलेरिया आदि से निपटने का तरीका बदलना होगा

भारत में अधिकांश बीमारियां जो महामारी का रूप ले लेती हैं। और जिनसे अपार धन-जन की हानि होती है। वह प्रायः सफाई की कमी से होती हैं।

जैसे मच्छर जनित बीमारियां डेंगू मलेरिया इंसेफेलाइटिस साथ में फाइलेरिया भी। इसके अलावा डायरिया टाइफाइड पीलिया यह सभी बीमारियां वाटरबॉर्न डिजीज कही जाती है। कहने का मतलब यह है कि अशुद्ध पानी से या feco oral रूट से। मतलब किसी भी माध्यम से मल के द्वारा दूषित पानी का या खाद्य पदार्थों का मुंह के अंदर पहुंचना।

जिले का स्वास्थ्य संबंधी मुखिया चीफ मेडिकल ऑफिसर या सीएमओ होता है
लेकिन जो बीमारियां हैं। उनके लिए उत्तरदाई हैं, दूषित जल, मल का सही निस्तारण न होना और जल भराव होना जिससे मच्छर पैदा होते हैं। इसलिए सीएमओ चाह कर भी कभी भी इन पर रोक नहीं लगा सकता क्योंकि दूषित जल पीने के लिए उपलब्ध होना, मल का सही निस्तारण न होना और मनुष्य के निवास स्थान के आसपास जल भराव होना। इसकी व्यवस्था नगर निकाय, जैसे नगर पालिका ,नगर पंचायत महानगरपालिका इत्यादि के पास होती है। ग्राम प्रधान को अपने गांव में साफ सफाई की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी है कि नहीं मालूम नहीं।

इन बीमारियों की भयावता को कम करने के लिए कुछ लोग पूरी तरह से सक्रिय रहते हैं जैसे सरकारी आंकड़े और अखबार। हजारों हजार मरीज अस्पतालों में भरती होते हैं और अखबार में निकलता है कि आज दो मरीजों को डेंगू निकला मलेरिया का कोई भी मरीज नहीं पाया गया । जबकि इसी तरह से कोरोना में आरटी पीसीआर टेस्ट पॉजिटिव होने पर ही कोरोना माना जाता था जबकि सैकड़ो हजारों लोग आरटी पीसीआर नेगेटिव होने पर भी सीटी स्कैन चेस्ट की जांच के द्वारा कोरोना से प्रभावित पाए गए और बहुत सारे मरीज मर भी गए बिना आरटी पीसीआर पॉजिटिव हुए।

इस तरह के उपाय जो बीमारियों की गंभीरता को कम करने के लिए काम में लाए जाते हैं लोकतंत्र का और पढ़े-लिखे लोगों का उपहास ही है।
बीमारियों के कारणों को देखते हुए जो कि जल भराव, मल का सही निस्तारण न होना, दूषित जल पीने के लिए उपलब्ध होना। यह सभी नगर निकाय के कर्तव्यों के अंतर्गत आते हैं अर्थात नगर पालिका नगर निगम और शायद ग्राम सभा भी इसके लिए जिम्मेदार है लेकिन इन पर कभी भी निकायों का उचित फोकस नहीं रहता है। इसके अलावा अनावश्यक खर्चे वाले कार्य जैसे जहां तहां सुंदरीकरण करना, अनावश्यक बिल्डिंगों का निर्माण करना और इसमें जनता की गाढ़ी कमाई के सरकारी पैसे को खर्च करना अक्सर दिखता रहता है। इन सब कामों में, किस पार्टी की सरकार है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

इन कारणों को देखते हुए या तो मुख्य चिकित्सा अधिकारी को ऐसी शक्तियां प्रदान की जानी चाहिए जो यह साफ सफाई पर विशेष ध्यान दें या फिर इन निकायों में कोई स्वास्थ्य अधिकारी नियुक्त हो जिसके पास ऐसी शक्तियां हों जो इसकी व्यवस्था कर सके और वे सारे स्वास्थ्य अधिकारी सीएमओ के अधीन हो।
या फिर सफाई , दूषित जल मल निस्तारण और मच्छरों के लिए जल भराव जैसी चीजों के लिए एक विशेषज्ञ अधिकारी नियुक्त किया जाय, कम से कम बड़े निकायो में। जैसे एक लाख से ऊपर की आबादी वाली नगरपालिकाओं में नियुक्त हो। लेकिन उसके पास इतने अधिकार भी हों कि वह अपने नीचे वाले लोगों से ठीक से काम करा सके और बजट भी उसके कंट्रोल में हो।

अन्यथा वर्तमान व्यवस्था में यह हास्यास्पद ही है कि अब डेंगू और मलेरिया फैला हुआ है तो सीएमओ गांव गांव दौड़ रहे हैं। गांव गांव में न तो कोई डॉक्टर होते हैं न कोई स्वास्थ्य केंद्र होता है।

हर मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट की बैठक होती है। अगर सरकार जनता के स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील है तो कम से कम स्थानीय निकाय, नगर पालिका, ग्राम सभा और महानगरपालिका के अधिकारियों और नेताओं की जिम्मेदारी सफाई से संबंधित फिक्स कर सकती है और इसके ऊपर लक्ष्य निर्धारित करके इसका बजट भी अलग किया जा सकता है। साथ ही संबंधित उत्तरदाई व्यक्तियों के ऊपर फेल होने पर किसी न किसी तरह की पेनल्टी लगाई जानी चाहिए। जो प्रभावी हो।

बीमारियां रोकने का दूसरा पहलू स्वास्थ्य शिक्षा है जो जो गंभीर बीमारियां बहुतायत में है उनके बारे में कक्षा 6 से कक्षा 12 तक के पाठ्यक्रम में जानकारी रोकथाम बचाव उपचार इत्यादि चीज शामिल कर देनी चाहिए इससे लंबे समय में 4-6-8-10 साल में काफी लोग जानकार हो जाएंगे और उसका भी बहुत फायदा मिलेगा।

बाकी पिछले 35 साल से मैं इसी तरह की कहानी हर साल दोहराए जाते देख रहा हूं।

कृपया आप लोग भी इस विषय में अपनी राय और अगर कोई और हल आपकी नजर में हो तो जाहिर करें, लिखे, एक दूसरे से साझा करें।

डॉ सोमशेखर दीक्षित
एम. डी. (मेडिसिन)

Address


Telephone

+917905645545

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Dr. Som Shekhar Dixit - Shekhar posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Shortcuts

  • Address
  • Telephone
  • Alerts
  • Claim ownership or report listing
  • Want your practice to be the top-listed Clinic?

Share