प्रो. अनिल खिगवान

प्रो. अनिल खिगवान ��विद्या धनं सर्वधनप्रधानम्��

जयतु जय हनूमान् वीर्यवान् महाबलः।रामकार्ये समायुक्तः सदा भक्तिपरायणः॥१॥गिरिशिखरसमानः कायः वज्रसमो बलात्।लङ्काविनाशकर्ता ...
04/12/2025

जयतु जय हनूमान् वीर्यवान् महाबलः।
रामकार्ये समायुक्तः सदा भक्तिपरायणः॥१॥

गिरिशिखरसमानः कायः वज्रसमो बलात्।
लङ्काविनाशकर्ता त्वं भक्तानां सुरवरदात्॥२॥

अञ्जनासुत पूज्याय सीतान्वेषणतत्परः।
दुःखदग्धजनानां त्वं सुखसन्दानदायकः॥३॥

संजीवननिधिं नीत्वा लक्ष्मणं जीवनं ददौ।
रामनामस्मरणेन च महाशक्ति संपदौ॥४॥

त्वं ब्रह्मचारी शुद्धात्मा ज्ञानिनां गुरुरुत्तमः।
भवभीतहरं नित्यं नमामि त्वां हनूमतम्॥५॥

श्रीरामदूत नमस्ते ते कपिश्रेष्ठ महाबल।
मम चित्तं स्थिरं कुरु भक्तिं देहि च नित्यशः॥६॥

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
#दत्तात्रेय #भौंरा

🌼⚜️ वैदिक धर्म यज्ञ से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी⚜️🌼               #दत्तात्रेय
04/12/2025

🌼⚜️ वैदिक धर्म यज्ञ से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी⚜️🌼
#दत्तात्रेय

🌼⚜️ प्रेरणादायक दोहे ⚜️🌼
04/12/2025

🌼⚜️ प्रेरणादायक दोहे ⚜️🌼

🌼⚜️दत्तात्रेय भगवान के 24 गुरू⚜️🌼🌼⚜️भगवान दत्तात्रेय जन्मोत्सव विशेष⚜️🌼भगवान  #दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है, क्यों...
04/12/2025

🌼⚜️दत्तात्रेय भगवान के 24 गुरू⚜️🌼
🌼⚜️भगवान दत्तात्रेय जन्मोत्सव विशेष⚜️🌼
भगवान #दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है, क्योंकि उन्होंने यह शिक्षा दी कि ज्ञान किसी भी स्रोत से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने अपने जीवन में 24 गुरु बनाए, जिनमें मनुष्य ही नहीं, बल्कि प्रकृति और विभिन्न जीव-जंतु भी शामिल थे। इन सभी से उन्होंने कुछ न कुछ महत्वपूर्ण सीखा। यह दर्शाता है कि सीखने की कोई सीमा नहीं होती और हर चीज में हमें गुरु तत्व दिख सकता है, बशर्ते हमारे पास विवेक और जिज्ञासा हो।
आइए जानते हैं भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु और उनसे मिली शिक्षाएँ:
दत्तात्रेय के 24 गुरु और उनसे प्राप्त शिक्षाएँ
* #पृथ्वी: पृथ्वी से दत्तात्रेय ने सहनशीलता, क्षमा और परोपकार की शिक्षा ली। पृथ्वी सभी जीवों का भार सहन करती है और बिना किसी भेदभाव के उन्हें आश्रय और पोषण देती है। इससे उन्होंने सीखा कि व्यक्ति को संसार के सुख-दुख को सहन करते हुए, अपनी प्रकृति में दृढ़ रहना चाहिए और दूसरों का भला करना चाहिए।
* #वायु: वायु हर जगह मौजूद होती है, लेकिन किसी से चिपकती नहीं। इससे उन्होंने निर्लिप्तता और अनासक्ति सीखी। जिस प्रकार वायु अच्छी-बुरी गंध से अप्रभावित रहती है, उसी प्रकार ज्ञानी को भी संसार के भोगों और दोषों से अप्रभावित रहना चाहिए।
* #आकाश: आकाश सर्वव्यापी है और किसी भी चीज से दूषित नहीं होता। इससे दत्तात्रेय ने असंगता और निराकारता का ज्ञान प्राप्त किया। आत्मा भी आकाश की तरह सर्वव्यापी, असंग और शुद्ध है।
* #जल: जल स्वाभाविक रूप से पवित्र और शुद्ध होता है, और दूसरों को भी पवित्र करता है। इससे उन्होंने सीखा कि व्यक्ति को स्वयं शुद्ध होकर दूसरों को भी पवित्रता की प्रेरणा देनी चाहिए।
* #अग्नि: अग्नि जिस भी वस्तु को ग्रहण करती है, उसे स्वयं में समाहित कर लेती है और पवित्र कर देती है। इससे उन्होंने प्रकाश, तेज और समदर्शिता की शिक्षा ली। जिस प्रकार अग्नि चाहे किसी भी वस्तु को जलाए, उसका मूल स्वरूप नहीं बदलता, वैसे ही ज्ञानी को भी सभी अवस्थाओं में एक समान रहना चाहिए।
* #चंद्रमा: चंद्रमा अपनी कलाओं को घटाता-बढ़ाता है, लेकिन उसका मूल स्वरूप कभी नहीं बदलता। इससे दत्तात्रेय ने सीखा कि शरीर का जन्म, विकास, क्षय और मृत्यु तो होती है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है।
* #सूर्य: सूर्य एक होते हुए भी विभिन्न पात्रों में अलग-अलग दिखाई देता है, और अपने प्रकाश से सभी को प्रकाशित करता है। इससे उन्होंने आत्मा की एकता और प्रकाश का ज्ञान प्राप्त किया।
* #कबूतर: एक कबूतर जोड़ा अपने बच्चों के अत्यधिक मोह में इतना अंधा हो जाता है कि वह शिकारी के जाल में फंस जाता है। इससे दत्तात्रेय ने अत्यधिक मोह और आसक्ति से होने वाले दुखों को सीखा।
* #अजगर: अजगर बिना किसी प्रयास के जो कुछ भी मिल जाए, उसी में संतोष करता है और बिना चले उसी स्थान पर रहता है। इससे उन्होंने संतोष, धैर्य और अपरिग्रह की शिक्षा ली।
* #समुद्र: समुद्र की नदियाँ हमेशा भरती रहती हैं, लेकिन वह कभी अपनी सीमा नहीं लांघता। इससे दत्तात्रेय ने शांत मन, स्थिरता और असीम गहराई का पाठ पढ़ा। ज्ञानी का मन भी समुद्र की तरह शांत और गहरा होना चाहिए।
* #पतंगा: पतंगा आग की लौ के प्रति इतना आकर्षित होता है कि स्वयं को जला लेता है। इससे दत्तात्रेय ने भौतिक इच्छाओं और इंद्रियों के वश में होने से होने वाले विनाश को समझा।
* #मधुमक्खी: मधुमक्खी विभिन्न फूलों से थोड़ा-थोड़ा रस इकट्ठा करती है, और भिक्षुक भी अलग-अलग घरों से थोड़ा-थोड़ा भोजन ग्रहण करता है। इससे उन्होंने थोड़ा-थोड़ा संग्रह करने और आवश्यकतानुसार ग्रहण करने की शिक्षा ली। (यह भी सीखा कि अधिक संचय विपत्ति का कारण बन सकता है, जैसे मधुमक्खी का शहद छीन लिया जाता है)।
* #हाथी: हाथी मादा हाथी के मोह में फंसकर बंदी बना लिया जाता है। इससे दत्तात्रेय ने इंद्रिय-भोग, विशेषकर कामवासना से होने वाले पतन को सीखा।
* #हिरण: हिरण मधुर संगीत पर मोहित होकर शिकारी का शिकार बन जाता है। इससे उन्होंने शब्द (श्रवण) इंद्रिय के प्रति अधिक आसक्ति से होने वाले खतरे को समझा।
* #मछली: मछली कांटे में फँस जाती है, क्योंकि वह स्वाद के लालच को नहीं छोड़ पाती। इससे उन्होंने जिह्वा (स्वाद) इंद्रिय के वश में होने से होने वाले बंधन को सीखा।
* #पिंगला वेश्या: एक वेश्या (पिंगला) रात भर एक धनी ग्राहक का इंतजार करती रही, लेकिन कोई नहीं आया। अंत में, उसने सभी आशाएँ त्याग दीं और ईश्वर में मन लगाया, जिससे उसे परम शांति मिली। इससे दत्तात्रेय ने निराशा से वैराग्य और सच्ची शांति की शिक्षा ली।
* #कुरर पक्षी: कुरर पक्षी अपनी चोंच में मांस का टुकड़ा लेकर उड़ रहा था, जिसे देखकर दूसरे पक्षी उसका पीछा कर रहे थे। जब उसने मांस का टुकड़ा छोड़ दिया, तो उसे शांति मिली। इससे उन्होंने अपरिग्रह (संग्रह न करना) और त्याग से मिलने वाली शांति का महत्व सीखा।
* #बालक (शिशु): एक बालक हमेशा आनंदमय, चिंतामुक्त और निरपेक्ष होता है। इससे दत्तात्रेय ने सीखा कि व्यक्ति को संसार की चिंताओं से मुक्त होकर सहज आनंद में रहना चाहिए।
* कुमारी #कन्या: एक अकेली कुमारी कन्या धान कूट रही थी। जब उसकी चूड़ियाँ बजने लगीं तो उसने एक-एक करके सारी चूड़ियाँ उतार दीं और केवल एक ही पहनी रखी, जिससे शोर न हो। इससे दत्तात्रेय ने सीखा कि एकान्त में रहकर ध्यान करना चाहिए और अत्यधिक संगति से बचना चाहिए, क्योंकि अधिक लोग होने पर अनावश्यक विवाद या शोर हो सकता है।
* बाण बनाने वाला (तीरंदाज): एक तीरंदाज बाण बनाने में इतना तल्लीन था कि उसे पास से गुजरती हुई एक बारात का भी आभास नहीं हुआ। इससे दत्तात्रेय ने एकाग्रता और लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की शिक्षा ली।
* #सर्प (साँप): साँप किसी एक घर में नहीं रहता, बल्कि बिना घर बनाए बिलों में रहता है और अपने लिए कुछ भी इकट्ठा नहीं करता। इससे उन्होंने अनासक्ति, अपरिग्रह और बिना किसी स्थायी निवास के विचरने की शिक्षा ली।
* #मकड़ी: मकड़ी अपने भीतर से ही जाल बुनती है और फिर उसी में स्वयं को बांध लेती है, या उसे तोड़कर बाहर निकल जाती है। इससे दत्तात्रेय ने ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना और संहार का रहस्य और योगियों द्वारा माया से मुक्ति का मार्ग समझा।
* भृंगी ( #भौंरा): भृंगी एक छोटे कीड़े (इल्ली) को अपने बिल में लाकर उसे बार-बार डंक मारता है, जिससे वह कीड़ा भी भृंगी जैसा बन जाता है। इससे उन्होंने ध्याता (ध्यान करने वाला) और ध्येय (जिसका ध्यान किया जा रहा है) के एक हो जाने के सिद्धांत को समझा (जैसा सोचोगे, वैसे बन जाओगे)।
* #शरीर: स्वयं अपने शरीर से दत्तात्रेय ने सीखा कि यह नाशवान है और इसे अत्यधिक महत्व नहीं देना चाहिए। यह केवल आत्मा का एक अस्थायी वाहन है और यह दुख का मूल भी हो सकता है। इससे उन्होंने वैराग्य और आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त होने की प्रेरणा ली।
दत्तात्रेय का यह अद्वितीय दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि ज्ञान का कोई निश्चित स्रोत नहीं है। एक सच्चा जिज्ञासु व्यक्ति हर छोटी-बड़ी घटना, हर प्राणी और प्रकृति के हर कण से जीवन के गूढ़ रहस्यों को सीख सकता है। यह उनकी अवधूत स्थिति को दर्शाता है, जिसमें वह सभी बंधनों से मुक्त होकर, हर अनुभव से सीखते हुए परम ज्ञान को प्राप्त करते हैं।

✨🌿तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी🌿✨
04/12/2025

✨🌿तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी🌿✨

रत्ती" यह शब्द लगभग हर जगह सुनने को मिलता है। जैसे - रत्ती भर भी परवाह नहीं, रत्ती भर भी शर्म नहीं, रत्ती भर भी अक्ल नही...
04/12/2025

रत्ती" यह शब्द लगभग हर जगह सुनने को मिलता है। जैसे - रत्ती भर भी परवाह नहीं, रत्ती भर भी शर्म नहीं, रत्ती भर भी अक्ल नहीं...!!

आपने भी इस शब्द को बोला होगा, बहुत लोगों से सुना भी होगा। आज जानते हैं 'रत्ती' की वास्तविकता, यह आम बोलचाल में आया कैसे?

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रत्ती एक प्रकार का पौधा होता है, जो प्रायः पहाड़ों पर पाया जाता है। इसके मटर जैसी फली में लाल-काले रंग के दाने (बीज) होते हैं, जिन्हें रत्ती कहा जाता है। प्राचीन काल में जब मापने का कोई सही पैमाना नहीं था तब सोना, जेवरात का वजन मापने के लिए इसी रत्ती के दाने का इस्तेमाल किया जाता था।

सबसे हैरानी की बात तो यह है कि इस फली की आयु कितनी भी क्यों न हो, लेकिन इसके अंदर स्थापित बीजों का वजन एक समान ही 121.5 मिलीग्राम (एक ग्राम का लगभग 8वां भाग) होता है।

तात्पर्य यह कि वजन में जरा सा एवं एक समान होने के विशिष्ट गुण की वजह से, कुछ मापने के लिए जैसे रत्ती प्रयोग में लाते हैं। उसी तरह किसी के जरा सा गुण, स्वभाव, कर्म मापने का एक स्थापित पैमाना बन गया यह "रत्ती" शब्द।

रत्ती भर मतलब जरा सा ।
साइटीका, नसों के ब्लॉकेज, वेरीकज वेन नसों का दबना, नसों में शून्यपन नसों में दर्द झंझनाहट ये तमाम शिकायत सिर्फ तीन से चार सप्ताह में ठीक कर देतें है ये गूंज (रत्ती)

इस्तेमाल के तरीका :-

1.गूंज(रत्ती) 250ग्राम
2.लोंग 5ग्राम
3. दालचीनी 10ग्राम
4.लहसुन 20 ग्राम
5.अजवाइन 20 ग्राम
सभी को कुचल कर 1 लीटर घानी सरसों तेल में कोयला के आंच में लोहे के बर्तन से चढ़ा दें रात भर पकाले जब तक चूल्हे की आंच ठंडे ना हो जाये।

तेल को बैगर छाने जले हुये समाग्री के साथ कांच के शीशी में सुरक्षित राख दें। उसी तेल से रोजाना दो बार मालिश करें।

अक्सर लोग दाल या सब्जी में ऊपर से नमक डालते रहते हैं । पुराने समय में माँग हुआ करती थी - - रत्ती भर नमक देना । रत्ती भर का मतलब जरा सा होता है । अब रत्ती भर कोई नहीं बोलता । सभी जरा सा हीं बोलते हैं , लेकिन रत्ती भर पर आज भी मुहावरे प्रचलित हैं । "रत्ती भर" का वाक्यों में प्रयोग के कुछ नमूने देखिए --

1)तुम्हें तो रत्ती भर भी शर्म नहीं है ।

2)रत्ती भर किया गया सत्कर्म एक मन पुण्य के बराबर होता है.

3) इस घर में हमारी रत्ती भर भी मूल्य नहीं है ।

कुछ लोग" रत्ती भर " भी झूठ नहीं बोलते ।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस रत्ती की बात यहाँ हो रही है , वह माप की एक ईकाई है । यह माप सुनार इस्तेमाल करते हैं । पुराने जमाने जो माप तौल पढ़े हैं , उनमें रत्ती का भी नाम शामिल है । विस्तृत वर्णन इस प्रकार है -

8 खसखस = 1 चावल,
8 चावल = 1 रत्ती
8 रत्ती = 1 माशा
4 माशा =1 टंक
12 माशा = 1 तोला
5 तोला= 1 छटाँक
16 छटाँक= 1 सेर
5 सेर= 1 पंसेरी
8 पंसेरी= एक मन

हाँलाकि उपरोक्त माप अब कालातीत हो गये हैं , पर आज भी रत्ती और तोला स्वर्णकारों के पास चल रहे हैं । 1 रत्ती का मतलब 0.125 ग्राम होता है । 11.66 ग्राम 1 तोले के बराबर होता है । आजकल एक तोला 10 ग्राम होता है ।

इन सभी माप में रत्ती अधिक प्रसिद्ध हुई, क्योंकि यह प्राकृतिक रुप से पायी जाती है। रत्ती को कृष्णला, और रक्तकाकचिंची के नाम से भी जानी जाता है। रत्ती का पौधा पहाड़ों में पाया जाता है । इसे स्थानीय भाषा में गुंजा कहते है ।

रत्ती के बीज लाल होते हैं , जिसका ऊपरी सिरा काला होता है । सफेद रंग के भी बीज होते हैं , जिनके ऊपरी सिरे भी काले होते हैं । यह बीज छोटा बड़ा नहीं होता , बल्कि एक माप व एक आकार का होता है । प्रत्येक बीज का वजन एकसमान होता है । इसे आप कुदरत का करिश्मा भी कह सकते हैं ।

रत्ती के इस प्राकृतिक गुण के कारण स्वर्णकार इसे माप के रुप में पहले इस्तेमाल करते थे , शायद आजकल भी करते होंगे ।

रत्ती का उपयोग पशुओं के घावों में उत्पन्न कीड़ों मारने के लिए किया जाता है । यह खुराक के रूप में प्रयोग किया जाता है। एक खुराक में अधिकतम दो बीज हीं दिए जाते हैं । दो खुराक दिए जाने पर घाव ठीक हो जाता है ।

रत्ती के बीज जहरीले होते हैं । इसलिए ये खाए नहीं जाते । इनकी माला बनाकर माएँ अपने बच्चों को पहनाती हैं । ऐसी मान्यता है कि इसकी माला बच्चों को बुरी नज़रों से बचाती है ।

🌼⚜️ अत्यंत महत्वपूर्ण स्तुति एवं स्तोत्रम् ⚜️🌼
04/12/2025

🌼⚜️ अत्यंत महत्वपूर्ण स्तुति एवं स्तोत्रम् ⚜️🌼

🙏मार्गशीर्ष पूर्णिमा का 32 गुना फल🙏
04/12/2025

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🌼🌿काकभुशुण्डी रामायण🌿🌼
04/12/2025

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🌼⚜️ तुलसी एक गुण अनेक ⚜️🌼〰️〰️⚜️〰️〰️⚜️〰️〰️⚜️〰️तुलसी के बारे में घर-घर में सभी जानते हैं। हिंदू धर्म में तुलसी को विशेष मह...
04/12/2025

🌼⚜️ तुलसी एक गुण अनेक ⚜️🌼
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तुलसी के बारे में घर-घर में सभी जानते हैं। हिंदू धर्म में तुलसी को विशेष महत्व दिया गया हैैं। कहा जाता हैं कि जहां तुसली फलती हैं, उस घर में रहने वालों को कोई संकट नहीं आते। स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद में तुलसी के अनेक गुण के बारे में बताया गया हैं। यह बात कम लोग जानते हैं कि तुलसी परिवार में आने वाले संकट के बारे में सुखकर पहले संकेत दे देती हैं। पेटलावद के ज्योतिषी आनंद त्रिवेदी बता रहे हैं कि तुलसी एक, लेकिन गुण अनेक किय तरह से हैं।

प्रकृति की अपनी एक अलग खासियत है। इसने अपनी हर एक रचना को बड़ी ही खूबी और विशिष्ट नेमत बख्शी है। इंसान तो वैसे भी प्रकृति की उम्दा रचनाओं में से एक है जो समझदारी और सूझबूझ से काम लेता है। इसके अलावा जानवरों की खूबी ये है कि वे आने वाले खतरे, मसलन भूकंपए सुनामी, पारलौकिक ताकतों आदि को पहले ही भांप सकने में सक्षम होते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग यह बात जानते हैं कि पौधों के भीतर भी ऐसी ही अलग विशेषता है, जिसे अगर समझ लिया जाए तो घर के सदस्यों पर आने वाले कष्टों को पहले ही टाला जा सकता है।

क्यों मुरझाता है तुलसी का पौधा
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शायद कभी किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि चाहे तुलसी के पौधे पर कितना ही पानी क्यों ना डाला जाए उसकी कितनी ही देखभाल क्यों ना की जाएए वह अचानक मुरझाने या सूखने क्यों लगता है।

क्या बताना चाहता है👇
आपको यकीन नहीं होगा लेकिन तुलसी का मुरझाया हुआ पौधा आपको यह बताने की कोशिश कर रहा होता है कि जल्द ही परिवार पर किसी विपत्ति का साया मंडरा सकता है। कहने का अर्थ यह है कि अगर परिवार के किसी भी सदस्य पर कोई मुश्किल आने वाली है तो उसकी सबसे पहली नजर घर में मौजूद तुलसी के पौधे पर पड़ती है।

हिन्दू शास्त्र
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शास्त्रों में यह बात भली प्रकार से उल्लेख है कि अगर घर पर कोई संकट आने वाला है तो सबसे पहले उस घर से लक्ष्मी यानि तुलसी चली जाती है और वहां दरिद्रता का वास होने लगता है।

बुध ग्रह
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जहां दरिद्रता, अशांति व कलह का वातावरण होता है वहां कभी भी लक्ष्मी का वास नहीं होता। ज्योतिष के अनुसार ऐसा बुध ग्रह की वजह से होता है क्योंकि बुध का रंग हरा होता है और वह पेड़-पौधों का भी कारक माना जाता है।

लाल किताब
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ज्योतिष शास्त्र से संबंधित लाल किताब के अनुसार बुध को एक ऐसा ग्रह माना गया है जो अन्य ग्रहों के अच्छे-बुरे प्रभाव को व्यक्ति तक पहुंचाता है। अगर कोई ग्रह अशुभ-फल देने वाला है तो उसका असर बुध ग्रह से संबंधित वस्तुओं पर भी होगा और अगर कोई अच्छा फल मिलने वाला है तो उसका असर भी बुध ग्रह से जुड़ी चीजों पर दिखाई देगा।

अच्छा और बुरा प्रभाव
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अच्छे प्रभाव में पेड़-पौधे बढऩेे लगते हैं और बुरे प्रभाव में मुरझाकर अपनी दुर्दशा बयां कर देते हैं।

विभिन्न प्रकार की तुलसी
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शास्त्रानुसार तुलसी के विभिन्न प्रकार के पौधों का जिक्र मिलता है, जिनमें श्रीकृष्ण तुलसी, लक्ष्मी तुलसी, राम तुलसी, भू तुलसी, नील तुलसी, श्वेत तुलसी, रक्त तुलसी, वन तुलसी, ज्ञान तुलसी मुख्य रूप से हैं। इन सभी के गुण अलग-अलग और विशिष्ट हैं। तुलसी मानव शरीर में कान, वायु, कफ, ज्वर, खांसी और दिल की बीमारियों के लिए खासी उपयोगी है।

वास्तुशास्त्र में तुलसी
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वास्तुशास्त्र में भी तुलसी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वास्तु के अनुसार तुलसी को किसी भी प्रकार के दोष से मुक्त रखने के लिए उसे दक्षिण-पूर्व से लेकर उत्तर-पश्चिम के किसी भी स्थान तक लगा सकते हैं। अगर तुलसी के गमले को रसोई के पास रखा जाए तो किसी भी प्रकार की कलह से मुक्ति पाई जा सकती है। जिद्दी पुत्र का हठ दूर करने के लिए पूर्व दिशा में लगी खिड़की के सामने रखें।

संतान में सुधार
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नियंत्रण या मर्यादा से बाहर निकल चुकी संतान को पूर्व दिशा से रखी गई तुलसी के तीन पत्तों को किसी ना किसी रूप में खिलाने पर वह आपकी आज्ञा का पालन करने लगती है।

कारोबार में वृद्धि
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कारोबार की चिंता सताने लगी है, घर में आय के साधन कम होते जा रहे हैं तो दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखी तुलसी पर हर शुक्रवार कच्चा दूध और मिठाई का भोग लगाने के बाद उसे किसी सुहागिन स्त्री को दे दें। इससे व्यवसाय में सफलता मिलती है।

नौकरी पेशा
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अगर आप नौकरी पेशा हैं और ऑफि स में आपका कोई सीनियर परेशान कर रहा है तो ऑफि स की खाली जमीन पर या किसी गमले में सोमवार के दिन तुलसी के सोलह बीज किसी सफेद कपड़े में बांध कर ऑफि स जाते ही दबा दीजिए। इससे ऑफिस में आपका सम्मान बढ़ेगा।

शालिग्राम का अभिषेक
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घर की महिलाएं रोजाना पंचामृत बनाकर शालिग्राम का अभिषेक करती हैं तो घर में कभी भी वास्तुदोष की हालत नहीं आएगी।

शारीरिक फायदे
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ज्योतिष के अलावा शारीरिक तौर पर भी तुलसी के बड़े लाभ देखे गए हैं। सुबह के समय खाली पेट ग्रहण करने से डायबिटीज, रक्त की परेशानी, वात, पित्त आदि जैसे रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। प्रतिदिन अगर तुलसी के सामने कुछ समय के लिए बैठा जाए तो अस्थमा आदि जैसे श्वास के रोगों से जल्दी छुटकारा मिलता है।

वैद्य का दर्जा
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शास्त्रों में तुलसी को एक वैद्य का दर्जा भी दिया गया है, जिसका घर में रहना अत्यंत लाभकारी है। मनुष्य को अपने जीवन के प्रत्येक चरण में तुलसी की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही आधुनिक रसायन शास्त्र भी यह बात स्वीकारता है कि तुलसी का सेवन, इसका स्पर्श, दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। 

ध्यान रखें तुलसी की ये 10 बात
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पुरानी परंपरा है कि घर में तुलसी जरूर होना
चाहिए। शास्त्रों में तुलसी को पूजनीय, पवित्र और
देवी का स्वरूप बताया गया है। यदि आपके घर में भी
तुलसी हो तो यहां बताई जा रही 10 बातें हमेशा
ध्यान रखनी चाहिए। यदि ये बातें ध्यान रखी
जाती हैं तो सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा
हमारे घर पर बनी रहती है। घर में सकारात्मक और
सुखद वातावरण रहता है। पैसों की कमी नहीं आती
है और परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य लाभ भी
मिलता है। यहां जानिए शास्त्रों के अनुसार बताई
गई तुलसी की खास बातें...

1🌱तुलसी के पत्ते चबाना नहीं चाहिए
तुलसी का सेवन करते समय ध्यान रखें कि इन पत्तों
को चबाए नहीं, बल्कि निगल लेना चाहिए। इस तरह
तुलसी का सेवन करने से कई रोगों में लाभ मिलता है।
तुलसी के पत्तों में पारा धातु के तत्व होते हैं। पत्तों
को चबाते समय ये तत्व हमारे दांतों पर लग जाते हैं
जो कि दांतों के लिए फायदेमंद नहीं है। इसीलिए
तुलसी के पत्तों को बिना चबाए ही निगलना
चाहिए।

2🌱शिवलिंग पर तुलसी नहीं चढ़ाना चाहिए शिवपुराण के अनुसार, शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाना चाहिए। इस संबंध में एक कथा बताई गई है। कथा के अनुसार, पुराने समय दैत्यों के राजा
शंखचूड़ की पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति के कारण सभी देवता भी शंखचूड़ को हराने में असमर्थ थे। तब भगवान विष्णु ने
छल से तुलसी का पतिव्रत भंग कर दिया। इसके बादशिवजी ने शंखचूड़ का वध कर दिया।
जब ये बात तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। विष्णुजी ने तुलसी का श्राप स्वीकार कर लिया और कहा कि तुम धरती पर गंडकी नदी तथा तुलसी के पौधे के रूप में हमेशा रहोगी। इसके बाद से ही अधिकांश पूजन कर्म में तुलसी का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है, लेकिन शंखचूड़ की पत्नी होने के कारण तुलसी शिवलिंग पर नहीं चढ़ाई जाती है।

3🌱कब नहीं तोड़ना चाहिए तुलसी के पत्ते तुलसी के पत्ते कुछ खास दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए। ये दिन हैं एकादशी, रविवार और सूर्य या चंद्र ग्रहण समय। इन दिनों में और रात के समय तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। बिना वजह तुलसी केपत्ते कभी नहीं तोड़ना चाहिए। ऐसा करने पर दोष लगता है। अनावश्यक रूप से तुलसी के पत्ते तोड़ना, तुलसी को नष्ट करने के समान माना गया है।

4🌱रोज करें तुलसी का पूजन हर रोज तुलसी पूजन करना चाहिए। साथ ही, तुलसी के संबंध में यहां बताई गई सभी बातों का भी ध्यान रखना चाहिए। हर शाम तुलसी के पास दीपक जलाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि जो लोग शाम के समय तुलसी के पास दीपक जलाते हैं, उनके घर में महालक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है।

5🌱तुलसी से दूर होते हैं वास्तु दोष
घर-आंगन में तुलसी होने से कई प्रकार के वास्तु दोष भी समाप्त हो जाते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी इसका शुभ असर होता है।

6🌱तुलसी घर में हो तो नहीं लगती है बुरी नजर मान्यता है कि तुलसी से घर पर किसी की बुरी नजर नहीं लगती है। साथ ही, घर के आसपास की किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा पनप नहीं पाती
है। सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।

7🌱तुलसी से वातावरण होता है पवित्र
तुलसी से घर का वातावरण पूरी तरह पवित्र और
हानिकारक सूक्ष्म कीटाणुओं से मुक्त रहता है। इसी
पवित्रता के कारण घर में लक्ष्मी का वास होता है
और सुख-समृद्धि बनी रहती है।

8🌱तुलसी का सूखा पौधा नहीं रखना चाहिए घर में
यदि घर में लगा हुआ तुलसी का पौधा सूख जाता है
तो उसे किसी पवित्र नदी में, तालाब में या कुएं में
प्रवाहित कर देना चाहिए। तुलसी का सूखा पौधा
घर में रखना अशुभ माना जाता है। एक पौधा सूख
जाने के बाद तुरंत ही दूसरा पौधा लगा लेना
चाहिए। घर में हमेशा स्वस्थ तुलसी का पौधा ही
लगाना चाहिए।

9🌱तुलसी है औषधि भी
आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना
जाता है। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बहुत-सी
बीमारियों को दूर करने में और उनकी रोकथाम करने
में सहायक होते हैं। तुलसी का पौधा घर में रहने से
उसकी महक हवा में मौजूद बीमारी फैलाने वाले कई
सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट करती है।

10🌱रोज तुलसी की एक पत्ती सेवन करने से मिलते हैं ये
फायदे
तुलसी की महक से सांस से संबंधित कई रोगों में लाभ
मिलता है। साथ ही, तुलसी का एक पत्ता रोज सेवन
करने से हम सामान्य बुखार से बचे रहते हैं। मौसम
परिवर्तन के समय होने वाली बीमारियों से बचाव
हो जाता है। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ती है, लेकिन हमें नियमित रूप से तुलसी
का सेवन करते रहना चाहिए।

एक और बात तुलसी कृष्ण को बेहद प्यारी हैं,इसलिये प्रतिदिन कान्हा के चरणों में तुलसीदल यानि तुलसी का पत्ता ज़रूर अर्पण करना चाहिये..

कृष्णसेवा के प्रत्येक भोग में तुलसी दल रखकर अर्पण करना चाहिये

“तुलसी कृष्ण प्रेयसी नमो: नमो:"
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🌼⚜️भगवान दत्तात्रेय जन्मोत्सव⚜️🌼भगवान  #दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है, क्योंकि उन्होंने यह शिक्षा दी कि ज्ञान किसी ...
04/12/2025

🌼⚜️भगवान दत्तात्रेय जन्मोत्सव⚜️🌼

भगवान #दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है, क्योंकि उन्होंने यह शिक्षा दी कि ज्ञान किसी भी स्रोत से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने अपने जीवन में 24 गुरु बनाए, जिनमें मनुष्य ही नहीं, बल्कि प्रकृति और विभिन्न जीव-जंतु भी शामिल थे। इन सभी से उन्होंने कुछ न कुछ महत्वपूर्ण सीखा। यह दर्शाता है कि सीखने की कोई सीमा नहीं होती और हर चीज में हमें गुरु तत्व दिख सकता है, बशर्ते हमारे पास विवेक और जिज्ञासा हो।
आइए जानते हैं भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु और उनसे मिली शिक्षाएँ:
दत्तात्रेय के 24 गुरु और उनसे प्राप्त शिक्षाएँ
* #पृथ्वी: पृथ्वी से दत्तात्रेय ने सहनशीलता, क्षमा और परोपकार की शिक्षा ली। पृथ्वी सभी जीवों का भार सहन करती है और बिना किसी भेदभाव के उन्हें आश्रय और पोषण देती है। इससे उन्होंने सीखा कि व्यक्ति को संसार के सुख-दुख को सहन करते हुए, अपनी प्रकृति में दृढ़ रहना चाहिए और दूसरों का भला करना चाहिए।
* #वायु: वायु हर जगह मौजूद होती है, लेकिन किसी से चिपकती नहीं। इससे उन्होंने निर्लिप्तता और अनासक्ति सीखी। जिस प्रकार वायु अच्छी-बुरी गंध से अप्रभावित रहती है, उसी प्रकार ज्ञानी को भी संसार के भोगों और दोषों से अप्रभावित रहना चाहिए।
* #आकाश: आकाश सर्वव्यापी है और किसी भी चीज से दूषित नहीं होता। इससे दत्तात्रेय ने असंगता और निराकारता का ज्ञान प्राप्त किया। आत्मा भी आकाश की तरह सर्वव्यापी, असंग और शुद्ध है।
* #जल: जल स्वाभाविक रूप से पवित्र और शुद्ध होता है, और दूसरों को भी पवित्र करता है। इससे उन्होंने सीखा कि व्यक्ति को स्वयं शुद्ध होकर दूसरों को भी पवित्रता की प्रेरणा देनी चाहिए।
* #अग्नि: अग्नि जिस भी वस्तु को ग्रहण करती है, उसे स्वयं में समाहित कर लेती है और पवित्र कर देती है। इससे उन्होंने प्रकाश, तेज और समदर्शिता की शिक्षा ली। जिस प्रकार अग्नि चाहे किसी भी वस्तु को जलाए, उसका मूल स्वरूप नहीं बदलता, वैसे ही ज्ञानी को भी सभी अवस्थाओं में एक समान रहना चाहिए।
* #चंद्रमा: चंद्रमा अपनी कलाओं को घटाता-बढ़ाता है, लेकिन उसका मूल स्वरूप कभी नहीं बदलता। इससे दत्तात्रेय ने सीखा कि शरीर का जन्म, विकास, क्षय और मृत्यु तो होती है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है।
* #सूर्य: सूर्य एक होते हुए भी विभिन्न पात्रों में अलग-अलग दिखाई देता है, और अपने प्रकाश से सभी को प्रकाशित करता है। इससे उन्होंने आत्मा की एकता और प्रकाश का ज्ञान प्राप्त किया।
* #कबूतर: एक कबूतर जोड़ा अपने बच्चों के अत्यधिक मोह में इतना अंधा हो जाता है कि वह शिकारी के जाल में फंस जाता है। इससे दत्तात्रेय ने अत्यधिक मोह और आसक्ति से होने वाले दुखों को सीखा।
* #अजगर: अजगर बिना किसी प्रयास के जो कुछ भी मिल जाए, उसी में संतोष करता है और बिना चले उसी स्थान पर रहता है। इससे उन्होंने संतोष, धैर्य और अपरिग्रह की शिक्षा ली।
* #समुद्र: समुद्र की नदियाँ हमेशा भरती रहती हैं, लेकिन वह कभी अपनी सीमा नहीं लांघता। इससे दत्तात्रेय ने शांत मन, स्थिरता और असीम गहराई का पाठ पढ़ा। ज्ञानी का मन भी समुद्र की तरह शांत और गहरा होना चाहिए।
* #पतंगा: पतंगा आग की लौ के प्रति इतना आकर्षित होता है कि स्वयं को जला लेता है। इससे दत्तात्रेय ने भौतिक इच्छाओं और इंद्रियों के वश में होने से होने वाले विनाश को समझा।
* #मधुमक्खी: मधुमक्खी विभिन्न फूलों से थोड़ा-थोड़ा रस इकट्ठा करती है, और भिक्षुक भी अलग-अलग घरों से थोड़ा-थोड़ा भोजन ग्रहण करता है। इससे उन्होंने थोड़ा-थोड़ा संग्रह करने और आवश्यकतानुसार ग्रहण करने की शिक्षा ली। (यह भी सीखा कि अधिक संचय विपत्ति का कारण बन सकता है, जैसे मधुमक्खी का शहद छीन लिया जाता है)।
* #हाथी: हाथी मादा हाथी के मोह में फंसकर बंदी बना लिया जाता है। इससे दत्तात्रेय ने इंद्रिय-भोग, विशेषकर कामवासना से होने वाले पतन को सीखा।
* #हिरण: हिरण मधुर संगीत पर मोहित होकर शिकारी का शिकार बन जाता है। इससे उन्होंने शब्द (श्रवण) इंद्रिय के प्रति अधिक आसक्ति से होने वाले खतरे को समझा।
* #मछली: मछली कांटे में फँस जाती है, क्योंकि वह स्वाद के लालच को नहीं छोड़ पाती। इससे उन्होंने जिह्वा (स्वाद) इंद्रिय के वश में होने से होने वाले बंधन को सीखा।
* #पिंगला वेश्या: एक वेश्या (पिंगला) रात भर एक धनी ग्राहक का इंतजार करती रही, लेकिन कोई नहीं आया। अंत में, उसने सभी आशाएँ त्याग दीं और ईश्वर में मन लगाया, जिससे उसे परम शांति मिली। इससे दत्तात्रेय ने निराशा से वैराग्य और सच्ची शांति की शिक्षा ली।
* #कुरर पक्षी: कुरर पक्षी अपनी चोंच में मांस का टुकड़ा लेकर उड़ रहा था, जिसे देखकर दूसरे पक्षी उसका पीछा कर रहे थे। जब उसने मांस का टुकड़ा छोड़ दिया, तो उसे शांति मिली। इससे उन्होंने अपरिग्रह (संग्रह न करना) और त्याग से मिलने वाली शांति का महत्व सीखा।
* #बालक (शिशु): एक बालक हमेशा आनंदमय, चिंतामुक्त और निरपेक्ष होता है। इससे दत्तात्रेय ने सीखा कि व्यक्ति को संसार की चिंताओं से मुक्त होकर सहज आनंद में रहना चाहिए।
* कुमारी #कन्या: एक अकेली कुमारी कन्या धान कूट रही थी। जब उसकी चूड़ियाँ बजने लगीं तो उसने एक-एक करके सारी चूड़ियाँ उतार दीं और केवल एक ही पहनी रखी, जिससे शोर न हो। इससे दत्तात्रेय ने सीखा कि एकान्त में रहकर ध्यान करना चाहिए और अत्यधिक संगति से बचना चाहिए, क्योंकि अधिक लोग होने पर अनावश्यक विवाद या शोर हो सकता है।
* बाण बनाने वाला (तीरंदाज): एक तीरंदाज बाण बनाने में इतना तल्लीन था कि उसे पास से गुजरती हुई एक बारात का भी आभास नहीं हुआ। इससे दत्तात्रेय ने एकाग्रता और लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की शिक्षा ली।
* #सर्प (साँप): साँप किसी एक घर में नहीं रहता, बल्कि बिना घर बनाए बिलों में रहता है और अपने लिए कुछ भी इकट्ठा नहीं करता। इससे उन्होंने अनासक्ति, अपरिग्रह और बिना किसी स्थायी निवास के विचरने की शिक्षा ली।
* #मकड़ी: मकड़ी अपने भीतर से ही जाल बुनती है और फिर उसी में स्वयं को बांध लेती है, या उसे तोड़कर बाहर निकल जाती है। इससे दत्तात्रेय ने ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना और संहार का रहस्य और योगियों द्वारा माया से मुक्ति का मार्ग समझा।
* भृंगी ( #भौंरा): भृंगी एक छोटे कीड़े (इल्ली) को अपने बिल में लाकर उसे बार-बार डंक मारता है, जिससे वह कीड़ा भी भृंगी जैसा बन जाता है। इससे उन्होंने ध्याता (ध्यान करने वाला) और ध्येय (जिसका ध्यान किया जा रहा है) के एक हो जाने के सिद्धांत को समझा (जैसा सोचोगे, वैसे बन जाओगे)।
* #शरीर: स्वयं अपने शरीर से दत्तात्रेय ने सीखा कि यह नाशवान है और इसे अत्यधिक महत्व नहीं देना चाहिए। यह केवल आत्मा का एक अस्थायी वाहन है और यह दुख का मूल भी हो सकता है। इससे उन्होंने वैराग्य और आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त होने की प्रेरणा ली।
दत्तात्रेय का यह अद्वितीय दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि ज्ञान का कोई निश्चित स्रोत नहीं है। एक सच्चा जिज्ञासु व्यक्ति हर छोटी-बड़ी घटना, हर प्राणी और प्रकृति के हर कण से जीवन के गूढ़ रहस्यों को सीख सकता है। यह उनकी अवधूत स्थिति को दर्शाता है, जिसमें वह सभी बंधनों से मुक्त होकर, हर अनुभव से सीखते हुए परम ज्ञान को प्राप्त करते हैं।

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