29/07/2025
यह देखकर अत्यंत खेद होता है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति के पैरोकार अक्सर आयुर्वेद और आयुर्वेदिक चिकित्सकों के योगदान को कम आंकते हैं। यह केवल अज्ञानता का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि एक समृद्ध और प्राचीन ज्ञान परंपरा के प्रति उपेक्षा भी है जिसने सहस्राब्दियों से मानव स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आयुर्वेद केवल जड़ी-बूटियों का संग्रह नहीं है, जैसा कि अक्सर गलत समझा जाता है। यह एक पूर्ण चिकित्सा प्रणाली है जो व्यक्ति को शरीर, मन और आत्मा के एकीकृत रूप में देखती है। आयुर्वेद में निदान और उपचार के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जाता है, जिसमें आहार, जीवनशैली, योग, ध्यान और विभिन्न प्राकृतिक चिकित्सा विधियों का उपयोग किया जाता है। आधुनिक विज्ञान अब धीरे-धीरे इस समग्र दृष्टिकोण के महत्व को समझ रहा है, जैसा कि तनाव, जीवनशैली संबंधी बीमारियों और मानसिक स्वास्थ्य के बढ़ते मामलों से स्पष्ट है।
कुछ लोग आयुर्वेद को "अवैज्ञानिक" कहकर खारिज करने का प्रयास करते हैं, लेकिन यह तर्क पूरी तरह से निराधार है। आयुर्वेद के सिद्धांत हजारों वर्षों के गहन अवलोकन, प्रयोग और अनुभव पर आधारित हैं। इसकी प्रभावकारिता को न केवल सदियों के अभ्यास से सिद्ध किया गया है, बल्कि आधुनिक शोध भी अब कई आयुर्वेदिक औषधियों और उपचारों के वैज्ञानिक आधार की पुष्टि कर रहा है। यह कहना कि "आधुनिक विज्ञान" ही एकमात्र सत्य है, विज्ञान के मूल सिद्धांतों के ही खिलाफ है, जो निरंतर खोज और नए ज्ञान को स्वीकार करने पर आधारित है।
आयुर्वेदिक चिकित्सक केवल पारंपरिक उपचारकर्ता नहीं हैं, बल्कि वे एक व्यापक ज्ञान प्रणाली के धारक हैं। वे रोगी के व्यक्तिगत प्रकृति (प्रकृति) को समझते हैं और उसी के अनुसार उपचार योजना तैयार करते हैं, जो आधुनिक चिकित्सा में अक्सर गायब होता है। आयुर्वेदिक चिकित्सक रोग के मूल कारण को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, न कि केवल लक्षणों को दबाने पर। यह दीर्घकालिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है।
यह आरोप लगाना कि आयुर्वेदिक चिकित्सकों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिलता है या वे एलोपैथिक डॉक्टरों के बराबर नहीं हैं, सरासर गलत है। भारत में, आयुर्वेदिक चिकित्सकों को कठोर शैक्षणिक पाठ्यक्रम और नैदानिक प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है, जो चिकित्सा शिक्षा के निर्धारित मानकों के अनुरूप होता है। उन्हें विभिन्न रोगों के निदान और उपचार के लिए व्यापक ज्ञान और कौशल प्राप्त होता है।
समय की मांग है कि आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के बीच एकीकरण हो। दोनों प्रणालियों के अपने-अपने फायदे और सीमाएं हैं। जहां आधुनिक चिकित्सा तीव्र और आपातकालीन स्थितियों में उत्कृष्ट है, वहीं आयुर्वेद पुरानी बीमारियों, जीवनशैली संबंधी विकारों और निवारक स्वास्थ्य देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। दोनों पद्धतियों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि प्रतिद्वंद्वी के रूप में।
आयुष मंत्रालय ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। आयुर्वेद को मुख्यधारा की स्वास्थ्य प्रणाली में और अधिक एकीकृत किया जाना चाहिए, और आयुर्वेदिक चिकित्सकों को उनके योग्य स्थान और सम्मान मिलना चाहिए। इस तरह, हम एक ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली का निर्माण कर सकते हैं जो सभी के लिए व्यापक और समग्र स्वास्थ्य सेवा प्रदान करती है।
आयुर्वेद और आयुर्वेदिक चिकित्सकों का योगदान भारतीय समाज और वैश्विक स्वास्थ्य के लिए अमूल्य है। उन्हें कम आंकने या खारिज करने के बजाय, हमें उनकी समृद्ध परंपरा और भविष्य की संभावनाओं को स्वीकार करना चाहिए। आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं है, बल्कि यह एक जीवन शैली है जो हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाना और स्वस्थ जीवन जीना सिखाती है। हमें इस अनमोल विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इसके लाभों से वंचित न रहें।
डॉ. हेमंत