14/01/2023
टीथ स्केलिंग (Teeth Scaling)? दांतों के लिए क्यों है जरूरी
टीथ स्केलिंग (Teeth Scaling)? दांतों के लिए क्यों है जरूरी
दांतों की स्केलिंग (teeth scaling) आमतौर पर रूट प्लानिंग के साथ ही की जाती है। सरल शब्दों में इसे दांतों की सफाई के रूप में भी जाना जाता है। इसमें दांतों की समस्याओं जैसे- दांत की मैल (tartar), प्लाक (बैक्टीरिया से बनने वाली हल्के पीले रंग की परत) और दाग-धब्बे (stains) का इलाज किया जाता है। टीथ स्केलिंग और रूट प्लानिंग से पुरानी पीरियोडॉन्टल बीमारी (मसूड़ों की बीमारी) के इलाज में मदद मिलती है। तो आइए जानते हैं इस आर्टिकल में कि टीथ स्केलिंग के बारे में। यह कैसे होती है? इसके क्या फायदे हैं?
टीथ स्केलिंग (Teeth Scaling) क्यों जरूरी है?
यह प्रक्रिया आपके मुंह को हेल्दी रखती है। अगर आपके मुंह में गंभीर पीरियोडॉन्टल बीमारी के लक्षण हैं, तो डेंटिस्ट दांतों की स्केलिंग और रूट प्लानिंग की सलाह देते हैं। यूं तो हम अपने दांत ब्रश से साफ करते हैं पर टूथब्रश से दांत के हर कोने की सफाई नहीं हो पाती है। स्केलिंग की मदद से दांतों के चारों तरफ जमी हुई सख्त गंदगी को हटाया जाता है और यदि यह गंदगी समय के साथ साफ न की जाए, तो दांतों की अन्य बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है।
टीथ स्केलिंग (Teeth Scaling) कैसे की जाती है ?
दांतों में जमी जिद्दी गंदगी को बाहर निकालने का ‘स्केलिंग’ एक टेक्निकल और साइंटिफिक जरिया है। दांतों की स्केलिंग के लिए दो विधियां अपनाई जाती हैं। एक विधि में डॉक्टर हाथ से उपकरण के द्वारा प्लाक को साफ करता है, दूसरी विधि में डेंटिस्ट एक अल्ट्रासोनिक उपकरण (ultrasonic) के द्वारा दांतों की सफाई करता है। यह एकदम दर्दरहित प्रक्रिया है।
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टीथ स्केलिंग (Teeth Scaling) के फायदे
टीथ स्केलिंग से डेंटिस्ट आपके मुंह की अच्छे से जांच कर पाता है क्योंकि ज्यादातर शारीरिक बीमारियों के लक्षण मुंह में दिखाई देते हैं, इसीलिए उन बीमारियों को समय से पहले पता लगाने का मौका भी मिलता है। टीथ स्केलिंग से दांतों और मसूड़ों के बीच गैप भी कम किया जा सकता है। मसूड़े में सूजन और मसूड़ों की बीमारी इंसान के दिल तथा रक्त वाहिकाओं संबंधी (cardiovascular) हेल्थ पर सीधा प्रभाव डालती है। टीथ स्केलिंग की सहायता से दांतों के मैल को हटाकर स्ट्रोक (stroke), हाई बीपी High blood pressure), हार्ट डिजीज, डायबिटीज और कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के जोखिमों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।