03/03/2022
शरीर में दर्द या मन में दर्द (पीड़ा) का कारण वात .......
वात की चिकित्सा तेल (स्नेह)......
व्यवहार में रूखापन , क्रोध आदि का कारण वात ......
..........और TREATMENT / चिकित्सा – " स्नेह "
आयुर्वेद शास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जिसमे जीवन जीने की वास्तविक कला है l इसमे जीवन जीने के लिए पुरुषार्थ करने का निर्देश है , तो वहीँ कोई भी शारीरिक या मानसिक व्याधि का सम्यक उपचार भी इसी आयुर्वेद में संभव है | सार रूप में कहें तो अभ्युदय एवं निःश्रेयश दोनों की प्राप्ति आयुर्वेद शास्त्र के निर्देशों का पालन करने से संभव है |
तन और मन के दर्द के सन्दर्भ में हम कह सकते हैं की शरीर में पीड़ा , वेदना या दर्द का कारण वात है |चरक संहिता के सूत्र स्थान के वातकलाकलीय अध्याय में वात के सम्बन्ध में कहा गया है – वायुस्तंत्र यन्त्र धरः , प्राणोंदानसामानव्यानापानात्मा , नियन्ता प्रणेता च मनसः .........
इस श्लोक के अर्थ से स्पष्ट है की वात, मन का भी नियंत्रण करती है | यहाँ यह स्पष्ट करना होगा की प्राकृत वात ही मन का प्राकृत नियंत्रण करेगी और विकृत वात है तो मन भी विकृत होगा |
अब हम देखते हैं की किन कारणों से वात विकृत होता है जिसके फलस्वरूप तन (शरीर) व मन विकृत होते हैं |
आयुर्वेद शास्त्र में वात के गुणों का वर्णन है ये है – "रुक्षः शीतो लघु सुक्षमश्चलो विषदः खरः " इस सन्दर्भ से स्पष्ट है रुखा , ठंडा, लघु, सूक्ष्म , चल गुण , विषद एवं खर गुणों के आहार, विहार या व्यवहार से शरीर में वात बढेगी और रोग उत्पन्न होंगे |
अब यहाँ हम इस पुरे प्रसंग का सबसे महत्वपूर्ण विश्लेषण देखेंगे |यहाँ हम वात की विकृति अर्थात वात की पैथोलॉजी से तन (शरीर) व मन के विकारों के निर्माण का स्वरुप देखते हैं |
स्पष्ट है की -
1) रूखे गुणों का भोजन में उपयोग करेंगे तो वात बढ़ेगी और शरीर में दर्द होगा वहीँ व्यवहार में रूखापन रखेंगे तो मन में दर्द होगा |
2) शीत गुण का सेवन करेंगे तो वात बढ़ेगी तो शरीर में दर्द होगा वहीँ व्यवहार में ठंडापन होगा , warmness नहीं होगी तो मन में दर्द (दुख ) होगा |
३) आप लघु गुण का सेवन करेंगे तो वात प्रकुपित होगी और शरीर में दर्द होगा वहीं आप व्यवहार में हल्कापन (लघु) रखेंगे तो भी वात बढ़ेगी और मन में दर्द (दुख) होगा |
४) आप अपने भोजन में सूक्ष्म गुण का से