06/02/2025
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#प्रजापतिर्हि वैश्याय सृष्ट्वा परिददे पशून् ।
#ब्राह्मणाय च राज्ञे च सर्वः परिददे प्रजा: ।।
(मनु स्मृति ९/३२७)
🚩 #प्रजापति ने सृष्टि रचकर वैश्यों को पशु दिया, ब्राह्मण एवं राजा को सारी प्रजा दी , अतः राजा के अभाव में विद्वानों पर सर्वाधिक भार आता है ।
🚩 #विद्वान् , आस्तिक , सद्गृहस्थ एवं साधु-सत्पुरुषों के बिना राजनीति सर्वथा उच्छऋंखल लोगो के हाथ मे चली जाती है, #फिर तो गुंडागर्दी का ही शासन होने लगता है , अतः धार्मिक लोगो के प्रवेश से ही समस्या हल हो सकती है ।
🚩 #यह ठीक है कि 'सच्छिक्षा एवं सद्विद्या के प्रचार से सद्बुद्धि होती है, सद्बुद्धि से सदिच्छा एवं सदिच्छा से सतप्रयत्न होता है और सत्प्रयत्न ही सब प्रकार के सत्फलो का स्रोत होता है ।'
🚩 #परन्तु आज तो शिक्षा भी स्वतंत्र विद्वान् के हाथ मे नही है , जिस विचार के शासक है, उसी विचार का समर्थन करनेवाली आज की शिक्षा बनती जा रही है ।
🚩 #स्वतंत्र विद्वान् , स्वतंत्र विद्यालय एवं उनके छात्र भी सरकारी शिक्षा के प्रभाव से स्पष्ट ही प्रभावित है ।
कथावाचक ,महामंडलेश्वर आदि भी उसी ढंग से कथा कहने में लाभ अनुभव करते है ।
🚩 #घोर नास्तिक उच्छऋंखल मिनिस्टरों , सरकारी पदाधिकारियो की भी विद्वान् महंत , मंडलेश्वर प्रसंशा करते फिरते है , इस दृष्टि से नास्तिकों के हाथ से राजनीति का उद्धार करने योग्य , धार्मिक, सुशील लोगो के हाथ मे राजनीति लाने के लिए विद्वान् का प्रयत्न आवश्यक है ही ।
🚩 #महाभारत का स्पष्ट वचन है----
"क्षात्रो धर्मो ह्यादिदेवात प्रवृतः
पश्चादनये शेषभूताश्च धर्मा:।।"
(महा0 शां0 ६४/२१)
🚩 #परमेश्वर से सर्वप्रथम राजधर्म का ही आविर्भाव हुआ ।उसके पीछे राजधर्म के अंगभूत अन्य धर्मों का पारदुर्भव हुआ ।
🚩 #अतः राजधर्म-राजनीति के नष्ट होनेपर त्रयी धर्म के डूब जाने के बात आती है । अराजकता या उच्छऋंखल
🚩 #राजा के धर्म हीन अधार्मिक राज्य में कोई धर्म पनप ही नही सकता ।
🚩 #व्यक्ति, समाज,राष्ट्र तथा विश्व के लौकिक-पारलौकिक अभ्युदय एवं निःश्रेयस के सम्पादन में होने वाले सब प्रकार के विघ्नों को रोककर सब प्रकार के सुविधा उपस्थित करना भारतीय राजधर्म, राजनीति या क्षात्र धर्म का मूलमन्त्र है ।
🚩शासनारूढ़ शासक की भूल प्रमाद को रोकने के लिए परम निरपेक्ष विरक्त विद्वान् भी लोककल्याण कामना से राजनीति में हस्तक्षेप करते थे ।
🚩 #इतना ही नही ! कभी-कभी तो वेन जैसे अन्यायी राजा को , जो समझाने बुझाने से भी न माने, शासनाधिकार से च्युत करके नष्ट कर देते थे एवं उसके स्थान पर पृथु जैसे योग्य शासक को प्रतिष्ठित करते थे । यह भी लोककल्याणार्थ विद्वानों के राजनीति में हस्तक्षेप का उदाहरण है ।
🚩 #इतिहास कहता है कि संसार के प्रमुख राजनीतिज्ञ शासकों ने अपनी राजनीति की बागडोर तपः पूत, लोक-हितैषी, राग-द्वेषहीन ऋषियों के ही हाथों में दे रखी थी ।
🚩 #देवराज की राजनीति देवगुरु बृहस्पति के हाथ मे थी, दैत्यराज बलि की राजनीति महर्षि शुक्राचार्य के हाथ मे थी तथा रामचंद्र की वशिष्ठ के हाथ मे , धर्मराज युधिष्ठिर की राजनीति धौम्य, व्यास, कृष्ण, विदुर आदि के हाथ मे थी , चन्द्रगुप्त की राजनीति महर्षि चाणक्य के तथा शिवा जी की समर्थ रामदास के हाथ मे थी ।
🚩 #वस्तुतः जैसे बिना अंकुश के हाथी, बिना लगाम के घोड़ा आदि हानिकारक होते हैं वैसे ही बिना अंकुश एवं नियंत्रण के शासन भी हानिकारक होता है ।
🚩 #राज्यश्री सम्पन्न राजा पर भी अंकुश होना चाहिए , इसी अर्थ में राजपर धर्म मे नियंत्रण होना चाहिए ।
🚩 #धर्म , कर्म , संस्कृति, धर्मसंस्था की रक्षा तभी संभव है, जब धर्म नियंत्रित शासक हो , अन्यथा उच्छऋंखल शासक सबको ही चौपट कर देता है ।🌱
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