
11/10/2025
जब मनुष्य प्रकृति के नियमों को पहचानकर उनके साथ सामंजस्य में जीवन जीता है, तब जीवन सहज, सफल और स्वतंत्र हो जाता है।
कठोपनिषद् में कहा गया है —
यदा सर्वे प्रभिद्यन्ते हृदयस्येह ग्रन्थयः ।
अथ मर्त्योऽमृतो भवत्येतावद्ध्यनुशासनम् ॥
(कठोपनिषद् 2.2.15)
भावार्थ:
जब मनुष्य के हृदय के सभी "गांठें" — अर्थात् भ्रम, अज्ञान और प्रकृति के विरोध के संस्कार — खुल जाते हैं, तब वह मृत्यु को जीतकर अमरत्व (सच्ची सफलता) प्राप्त करता है।।
(भावार्थ: जो प्रकृति के नियमों को जान लेता है, वही सच्चा विजयी होता है; उसे न बंधन रोकते हैं, न दुःख — और न जीवन अंधकारमय होता है।)
Pushkar Singh Dhami Prataprao Jadhav Anil Baluni Lt Gen Gurmit Singh Prahlad Meena IPS Yogasana Bharat Morarji Desai National Institute of Yoga Dr. Jaideep Arya CMO Delhi Shri Lal Bahadur Shastri National Sanskrit University Mridula Thakur Pradhan - Unofficial Ajay Tamta Rekha Gupta Ministry of Ayush, Government of India Acharya Dr. Lokesh Muni Ministry of Home Affairs, Government of India Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) @टॉप फ़ैन
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