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02/06/2025

प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में अनेक जड़ी-बूटियों और नुस्खों का उल्लेख है, लेकिन कुछ संयोजन इतने प्रभावशाली हैं कि हज़ारों साल बीतने के बावजूद उनका महत्व कभी कम नहीं होता। त्रिफला (Triphala) उन्हीं में से एक है—एक ऐसा अनुपम योग जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना वेदों के समय था।

लेकिन क्या कारण है कि त्रिफला को आयुर्वेद का "सर्वश्रेष्ठ संयोजन" कहा जाता है?
आइए, इस चमत्कारी मिश्रण की शक्ति को गहराई से समझते हैं।

🔍 त्रिफला क्या है?
"त्रिफला" संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ है "तीन फलों का योग"। यह तीन औषधीय फलों से मिलकर बनता है:

आंवला (Amalaki - Emblica officinalis): विटामिन C से भरपूर, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

हरड़ (Haritaki - Terminalia chebula): वात नियंत्रण में सहायक, पाचन सुधारक और कायाकल्प में उपयोगी।

बहेड़ा (Bibhitaki - Terminalia bellirica): कफ का शमन करता है, श्वसन प्रणाली को बल देता है।

तीनों फल अपने-अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन जब इन्हें संतुलन में मिलाया जाता है, तो यह बनता है त्रिफला – एक त्रिदोष नाशक अमृत।

⚖️ त्रिफला: त्रिदोष संतुलन का मंत्र
आयुर्वेद का मूल सिद्धांत है – शरीर में वात, पित्त और कफ का संतुलन बनाए रखना। ज़्यादातर औषधियाँ एक या दो दोषों पर कार्य करती हैं, परंतु त्रिफला उन विरले औषध संयोजनों में से है जो तीनों दोषों को संतुलित करता है:

हरड़ वात को संतुलित करती है।

आंवला पित्त का शमन करती है।

बहेड़ा कफ को नियंत्रित करता है।

इसलिए त्रिफला को किसी भी प्रकृति (dosha type) के व्यक्ति द्वारा सेवन किया जा सकता है—यह सभी के लिए उपयुक्त और हितकारी है।

💫 पाचन और शुद्धिकरण में सर्वोत्तम
आज के समय में अपच, कब्ज, गैस, एसिडिटी जैसी समस्याएं आम हो गई हैं। त्रिफला, विशेषतः अपनी हल्के रेचक (mild laxative) गुणों के कारण, न केवल मल निष्कासन को आसान बनाता है, बल्कि आंतों को साफ करता है और जठराग्नि को बल देता है।

यह:

पुरानी कब्ज से राहत देता है

आंतों की परतों को स्वस्थ बनाता है

पाचन क्रिया को संतुलित करता है

शरीर में एकत्रित विष (toxins) को धीरे-धीरे निकालता है

यह सब कुछ बिना किसी निर्भरता या कमजोरी के। यही कारण है कि इसे "स्मूद डिटॉक्स" भी कहा जाता है।

🛡️ रोग प्रतिरोधक क्षमता में इज़ाफ़ा
आंवला, त्रिफला का सबसे शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट स्रोत है। इसके नियमित सेवन से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मज़बूत होती है, संक्रमणों से लड़ने की ताकत बढ़ती है और कोशिकाओं की क्षति से सुरक्षा मिलती है।

यह शरीर में:

फ्री रेडिकल्स को कम करता है

सूजन को घटाता है

त्वचा और बालों को अंदर से पोषण देता है

तनाव से लड़ने में सहायक होता है

⚖️ वजन नियंत्रण और मेटाबॉलिज्म में सुधार
त्रिफला चयापचय (metabolism) को बेहतर बनाकर वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह:

पाचन को तेज करता है

फैट मेटाबोलिज्म को बढ़ाता है

अतिरिक्त वसा को शरीर से निकालता है

शुगर लेवल को नियंत्रित करता है

हाल के शोध बताते हैं कि त्रिफला आंतों में अच्छे बैक्टीरिया की वृद्धि को भी प्रोत्साहित करता है, जिससे मोटापा, मूड और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

🧪 आधुनिक शोध भी करता है समर्थन
त्रिफला को लेकर हाल के वर्षों में कई वैज्ञानिक अध्ययन किए गए हैं, जो इसके पारंपरिक उपयोग को सही ठहराते हैं:

Journal of Alternative and Complementary Medicine में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि त्रिफला कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक है।

Phytotherapy Research के अनुसार, यह डायबिटीज के नियंत्रण में भी उपयोगी हो सकता है।

इसके एंटी-कैंसर और एंटी-बैक्टीरियल गुणों पर भी शोध चल रहे हैं।

इससे स्पष्ट है कि त्रिफला केवल एक परंपरागत औषधि नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी प्रमाणित बहुपयोगी संयोजन है।

✨ सौंदर्य के लिए भी लाभकारी
त्रिफला का उपयोग केवल शरीर के भीतर नहीं, बल्कि बाहरी सुंदरता के लिए भी किया जाता है:

चेहरे पर लगाने से यह मुंहासे, दाग-धब्बों को दूर करता है

त्वचा को क्लीन और टोन करता है

बालों में लगाने पर यह जड़ें मज़बूत करता है, रूसी हटाता है और घने बाल लाता है

इसलिए यह आजकल प्राकृतिक स्किनकेयर और हेयर केयर रूटीन का हिस्सा बन चुका है।

📅 सेवन विधि और सही समय
त्रिफला को कई रूपों में लिया जा सकता है:

चूर्ण (पाउडर): ½ या 1 चम्मच रात में गुनगुने पानी के साथ

टैबलेट/कैप्सूल: यात्रा या व्यस्त दिनचर्या में सुविधाजनक

काढ़ा / चाय: गर्म पानी में उबालकर सेवन करें

सर्वोत्तम समय:

रात को सोने से पहले या

सुबह खाली पेट

विशेष परिस्थितियों (जैसे गर्भावस्था, विशेष रोग) में वैद्य से परामर्श आवश्यक है।

⚠️ क्या हैं संभावित सावधानियाँ?
त्रिफला एक सुरक्षित औषधि है, लेकिन कुछ लोगों को शुरुआती दिनों में:

हल्का दस्त

गैस या अफारा

तीव्र प्रभाव महसूस हो सकता है

यह संकेत हैं कि शरीर में विष निकल रहे हैं। आमतौर पर यह प्रभाव कुछ दिनों में अपने आप समाप्त हो जाते हैं।

📜 त्रिफला: एक जीवनशैली, केवल औषधि नहीं
आयुर्वेद कहता है—"स्वास्थ्य वह नहीं जो केवल रोग से मुक्त हो, बल्कि वह जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन में हो।"
त्रिफला इसी संतुलन की ओर एक सरल, सुलभ और प्रभावी कदम है।

यह:

शरीर की गहराई से सफाई करता है

कोशिकाओं का पोषण करता है

रोगों से लड़ता है

मानसिक शांति और ऊर्जा देता है

इसलिए इसे केवल एक "उपचार" नहीं, बल्कि एक जीवनशैली सहयोगी माना जाता है।

🔚 निष्कर्ष: तीन फलों में छुपा संपूर्ण आरोग्य
त्रिफला केवल तीन फलों का मिश्रण नहीं—यह हज़ारों वर्षों की परंपरा, शोध, और अनुभव का परिणाम है।

यदि आप:

कब्ज से परेशान हैं

ऊर्जा की कमी महसूस करते हैं

प्राकृतिक डिटॉक्स की तलाश में हैं

वजन संतुलन और सुंदरता की चाह रखते हैं

तो त्रिफला आपके जीवन में शामिल होना चाहिए। यह सस्ता, सहज, और पूर्णतया प्राकृतिक है।

आज की दुनिया में जहां "फास्ट हेल्थ" का बोलबाला है, त्रिफला हमें धीरे, स्थायी और सच्चे आरोग्य की राह दिखाता है।

क्या आपने त्रिफला का अनुभव किया है? अपने अनुभव को #त्रिफला_का_चमत्कार हैशटैग के साथ साझा करें!

कृपया डाक्टर से सलाह अवश्य ले,

SHIMLADRUGS HEALTH CARE

23/02/2025

😱यह पौधा पेट की लटकती चर्बी, सड़े हुए दाँत, गठिया, आस्थमा, बवासीर, मोटापा, गंजापन, किडनी आदि 20 रोगों के लिए किसी वरदान से कम नही🙏

🇮🇳आज हम आपको ऐसे पौधे के बारे में बताएँगे जिसका तना, पत्ती, बीज, फूल, और जड़ पौधे का हर हिस्सा औषधि है, इस पौधे को अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree), लटजीरा कहते है। अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree) का पौधा भारत के सभी सूखे क्षेत्रों में उत्पन्न होता है यह गांवों में अधिक मिलता है खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पाया जाता है इसे बोलचाल की भाषा में आंधीझाड़ा या चिरचिटा (Chaff Tree) भी कहते हैं-अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं-सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग युक्त होते हैं इसके अलावा फल चपटे होते हैं जबकि लाल अपामार्ग (RedChaff Tree) का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर लाल-लाल रंग के दाग होते हैं।

इस पर बीज नुकीले कांटे के समान लगते है इसके फल चपटे और कुछ गोल होते हैं दोनों प्रकार के अपामार्ग के गुणों में समानता होती है फिर भी सफेद अपामार्ग(White chaff tree) श्रेष्ठ माना जाता है इनके पत्ते गोलाई लिए हुए 1 से 5 इंच लंबे होते हैं चौड़ाई आधे इंच से ढाई इंच तक होती है- पुष्प मंजरी की लंबाई लगभग एक फुट होती है, जिस पर फूल लगते हैं, फल शीतकाल में लगते हैं और गर्मी में पककर सूख जाते हैं इनमें से चावल के दानों के समान बीज निकलते हैं इसका पौधा वर्षा ऋतु में पैदा होकर गर्मी में सूख जाता है।

अपामार्ग तीखा, कडुवा तथा प्रकृति में गर्म होता है। यह पाचनशक्तिवर्द्धक, दस्तावर (दस्त लाने वाला), रुचिकारक, दर्द-निवारक, विष, कृमि व पथरी नाशक, रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला), बुखारनाशक, श्वास रोग नाशक, भूख को नियंत्रित करने वाला होता है तथा सुखपूर्वक प्रसव हेतु एवं गर्भधारण में उपयोगी है।
चिरचिटा या अपामार्ग (Chaff Tree) के 20 अद्भुत फ़ायदे :
1. गठिया रोग :

अपामार्ग (चिचड़ा) के पत्ते को पीसकर, गर्म करके गठिया में बांधने से दर्द व सूजन दूर होती है।

2. पित्त की पथरी :

पित्त की पथरी में चिरचिटा की जड़ आधा से 10 ग्राम कालीमिर्च के साथ या जड़ का काढ़ा कालीमिर्च के साथ 15 ग्राम से 50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से पूरा लाभ होता है। काढ़ा अगर गर्म-गर्म ही खायें तो लाभ होगा।

3. यकृत का बढ़ना :

अपामार्ग का क्षार मठ्ठे के साथ एक चुटकी की मात्रा से बच्चे को देने से बच्चे की यकृत रोग के मिट जाते हैं।

4. लकवा :

एक ग्राम कालीमिर्च के साथ चिरचिटा की जड़ को दूध में पीसकर नाक में टपकाने से लकवा या पक्षाघात ठीक हो जाता है।

5. पेट का बढ़ा होना या लटकना :

चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ 5 ग्राम से लेकर 10 ग्राम या जड़ का काढ़ा 15 ग्राम से 50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम कालीमिर्च के साथ खाना खाने से पहले पीने से आमाशय का ढीलापन में कमी आकर पेट का आकार कम हो जाता है।

6. बवासीर :

अपामार्ग की 6 पत्तियां, कालीमिर्च 5 पीस को जल के साथ पीस छानकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उसमें बहने वाला रक्त रुक जाता है।
खूनी बवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल के पानी के साथ पीस-छानकर 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी हैं।

7. मोटापा :

अधिक भोजन करने के कारण जिनका वजन बढ़ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के लिए अपामार्ग के बीजों को चावलों के समान भात या खीर बनाकर नियमित सेवन करना चाहिए। इसके प्रयोग से शरीर की चर्बी धीरे-धीरे घटने भी लगेगी।

8. कमजोरी :

अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पीस लें। 1 कप दूध के साथ 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।

9. सिर में दर्द :

अपामार्ग की जड़ को पानी में घिसकर बनाए लेप को मस्तक पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है।

10. संतान प्राप्ति :

अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित रूप से 21 दिन तक सेवन करने से गर्मधारण होता है। दूसरे प्रयोग के रूप में ताजे पत्तों के 2 चम्मच रस को 1 कप दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित सेवन से भी गर्भ स्थिति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

11. मलेरिया :

अपामार्ग के पत्ते और कालीमिर्च बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें, फिर इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का दो-चार दिन सेवन पर्याप्त होता है।

12. गंजापन :

सरसों के तेल में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम बना लें। इसे गंजे स्थानों पर नियमित रूप से लेप करते रहने से पुन: बाल उगने की संभावना होगी।

13. दांतों का दर्द और गुहा या खाँच (cavity) :

इसके 2-3 पत्तों के रस में रूई का फोया बनाकर दांतों में लगाने से दांतों के दर्द में लाभ पहुंचता है तथा पुरानी से पुरानी गुहा या खाँच को भरने में मदद करता है।

14. खुजली :

अपामार्ग के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें और इससे स्नान करें। नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों cavity में खुजली दूर जाएगी।

15. आधाशीशी या आधे सिर में दर्द :

इसके बीजों के चूर्ण को सूंघने मात्र से ही आधाशीशी, मस्तक की जड़ता में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाने से मस्तक के अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के द्वारा निकल जाता है और वहां पर पैदा हुए कीड़े भी झड़ जाते हैं।

16. ब्रोंकाइटिस :

जीर्ण कफ विकारों और वायु प्रणाली दोषों में अपामार्ग (चिरचिटा) की क्षार, पिप्पली, अतीस, कुपील, घी और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में पूर्ण लाभ मिलता है।

17. खांसी :

खांसी बार-बार परेशान करती हो, कफ निकलने में कष्ट हो, कफ गाढ़ा व लेसदार हो गया हो, इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में आधा ग्राम अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शर्करा दोनों को 30 मिलीलीटर गर्म पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में बहुत ही लाभ होता है।

18. गुर्दे का दर्द :

अपामार्ग (चिरचिटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। गुर्दे के दर्द के लिए यह प्रधान औषधि है।

19. गुर्दे के रोग :

5 ग्राम से 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ का काढ़ा 1 से 50 ग्राम सुबह-शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से गुर्दे की पथरी खत्म हो जाती है । या 2 ग्राम अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पानी के साथ पीस लें। इसे प्रतिदिन पानी के साथ सुबह-शाम पीने से पथरी रोग ठीक होता है।

20. दमा या अस्थमा :

चिरचिटा की जड़ को किसी लकड़ी की सहायता से खोद लेना चाहिए। ध्यान रहे कि जड़ में लोहा नहीं छूना चाहिए। इसे सुखाकर पीस लेते हैं। यह चूर्ण लगभग एक ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ खाएं इससे श्वास रोग दूर हो जाता है।
अपामार्ग (चिरचिटा) का क्षार 0.24 ग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ छूटकर श्वास रोग नष्ट हो जाता है।

24/09/2024

हरड़ के चमत्कारी लाभ

हरड़ भी दो प्रकार की होती हैं- बड़ी हरड़ और छोटी हरड़।

हरड़ को हरीतकी नाम से भी जाना जाता है। हरड़ काले व पीले रंग में पाई जाती है। खाने में इसका स्वाद खट्टा,मीठा होता है। हरड़ का पेड़ सीधा और तना हुआ होता है, इसके पत्ते हल्के पीले या सफ़ेद रंग के होते है इसमें कई प्रकार के पदार्थ पाए जाते है। ग्लाइकोसाइड्स जैसा पदार्थ हमारे शरीर को कब्ज से छुटकारा दिलवाने में मदद करता है। वर्षा ऋतु में हरड़ का सेवन सेधा नमक के साथ करना चाहिए। हरड़ से बना चूर्ण और गोलियां बाजार से आसानी से उपलब्ध हो जाती है। आयुर्वेद के ऋषियों ने लिखा है –
जिसके घर मे माता नहीं है उसकी माता हरीतकी है,
कभी माता भी कुपित (गुस्सा) हो जाती है परंतु पेट मे गई हुई हरड़ कुपित नहीं होती। आयुर्वेद के सबसे पुराने व प्रतिष्ठित ग्रंथ चरक संहिता मे महर्षि पुनर्वसु आत्रेय जो औषधि लिखी है उसमे सबसे पहली औषधि हरितकी लिखी है। आचार्य भावमिश्र जी अपने भावप्रकाश का आरंभ हरीतकी से करते है।

ये सभी प्रयोग बार बार आजमाए गए हैं कभी असफल नहीं होते। संस्कृत मे हरीतकी, अभया, पथ्या, हिन्दी मे हरड़, हर्र, बांग्ला, मराठी, गुजराती, पंजाबी और तेलुगू मे भी हरीतकी या हरड़।
दवाई के लिए प्रायः बड़ी हरड़ का प्रयोग होता है। बाजार मे बड़ी हरड़ के टुकड़े मिलते हैं वह न ले। साबुत हरड़ ले जिसमे घुन न लगा हो। उसे तोड़ कर बीज निकाल दे। फिर इसे बारीक पीस ले। जो स्वयम नहीं पीस सकते वह बाजार से हरीतकी चूर्ण बना बनाया ले।

बच्चों के लिए सबसे ज्यादा लाभकारी :-

छोटे बच्चो के लिए इसके समान घुट्टी नहीं है । चित्र मे दिखाए अनुसार साबुत बड़ी हरड़ ले उनमे से वह हरड़ चुने जो पानी मे डालने पर पानी मे डूब जाए तैरे नहीं।
इसे पत्थर पर चन्दन की तरह घिस कर दे।
1- बच्चे का पेट फुला हुआ हो रात को रोता हो – घिसी हुई हरड़ मे गुड मिलाकर दे।
2- मुंह मे छले के कारण यदि बच्चा दूध ना पी पा रहा हो- घिसी हुई हरड़ मे मिश्री मिलाकर दे।
3- बच्चे को भूख ना लगे- घिसी हुई हरड़ मे सैंधा नमक मिलाकर दे।
4- दस्त मे- हरड़ व काली अतीस दोनों घिस कर मिलाकर दे।
5 जुखाम होने पर – सोंठ भी साथ मे घिस कर मिलाकर दे।

विभिन्न रोगों में हरड़ के औषधीय उपचार :-

1. मुंह के छाले: छोटी हरड़ को पानी में घिसकर छालों पर 3 बार प्रतिदिन लगाने से मुंह के छाले नष्ट हो जाते हैं।

•छोटी हरड़ को बारीक पीसकर छालों पर लगाने से मुंह व जीभ के छाले मिट जाते हैं।

•छोटी हरड़ को रात को भोजन करने के बाद चूसने से छाले खत्म होते हैं।

•पिसी हुई हरड़ 1 चम्मच रोज रात को सोते समय गर्म दूध या गर्म पानी के साथ फंकी लें। इससे छालों में आराम मिलता है।

2. गैस: छोटी हरड़ एक-एक की मात्रा में दिन में 3 बार पूरी तरह से चूसने से पेट की गैस नष्ट हो जाती है।

•छोटी हरड़ को पानी में डालकर भिगो दें। रात का खाना खाने के बाद चबाकर खाने से पेट साफ हो जाता और गैस कम हो जाती है।

•हरड़, निशोथ, जवाखार और पीलू को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चूर्ण सुबह और शाम खाना खाने के बाद खाने से लाभ मिलता है।

3. घाव: हरड़ को जलाकर उसे पीसे और उसमें वैसलीन डालकर घाव पर लगायें। इससे लाभ पहुंचेगा।

•3-5 हरड़ को खाकर ऊपर से गिलोय का काढ़ा पीने से घाव का दर्द व जलन दूर हो जाती है।

4. एक्जिमा: गौमूत्र में हरड़ को पीसकर तैयार लेप को रोजाना 2-3 बार लगाने से एक्जिमा का रोग ठीक हो जाता है।

5. बच्चों के पेट रोग (उदर): हर हफ्ते हरड़ को घिसकर एक चौथाई चम्मच की मात्रा में शहद के साथ सेवन कराते रहने से बच्चों के पेट के सारे रोग दूर हो जाते हैं।

6. बुद्धि के लिए: भोजन के दौरान सुबह-शाम आधा चम्मच की मात्रा में हरड़ का चूर्ण सेवन करते रहने से बुद्धि और शारीरिक बल में वृद्धि होती है।

7. भूख बढ़ाने के लिए: हरड़ के टुकड़ों को चबाकर खाने से भूख बढ़ती है।

8. पतले दस्त: कच्चे हरड़ के फलों को पीसकर बनाई चटनी एक चम्मच की मात्रा में 3 बार सेवन करने से पतले दस्त बंद हों जाएंगे।

9. गर्मी के फोड़े, व्रण: त्रिफला को लोहे की कड़ाही में जलाकर उसकी राख शहद मिलाकर लगाना चाहिए।

10. शनैमेह पर: त्रिफला और गिलोय का काढ़ा पिलाना चाहिए।

11. अण्डवृद्धि: •सुबह के समय छोटी हरड़ का चूर्ण गाय के मूत्र के साथ या एरण्ड के तेल में मिलाकर देना चाहिए या त्रिफला दूध के साथ देना चाहिए।

•त्रिफला के काढ़े में गोमूत्र मिलाकर पिलाना चाहिए।

12. खांसी: हरड़ और बहेड़े का चूर्ण शहद के साथ लेना चाहिए।

•हरड़, पीपल, सोंठ, चाक, पत्रक, सफेद जीरा, तन्तरीक तथा कालीमिर्च का चूर्ण बनाकर गुड़ में मिलाकर खाने से कफयुक्त खांसी ठीक हो जाती है।

13. दर्द: हरड़ का चूर्ण घी और गुड़ के साथ देना चाहिए।

14. आंख के रोग: त्रिफला का चूर्ण 7-8 ग्राम रात को पानी में डालकर रखें। सुबह उठकर थोड़ा मसलकर कपड़े से छान लें और छाने हुए पानी से आंखों को धोएं। इससे कुछ ही दिनों के बाद आंखों के सभी तरह के रोग ठीक हो जाएंगे।

•त्रिफला चूर्ण के साथ आधा चम्मच हरड़ का चूर्ण घी के साथ लें। इससे नेत्रों के रोगों में लाभ मिलता है।

15. पेशाब की जलन: हरड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर चाटकर खाने से, पेशाब करते समय होने वाला जलन और दर्द खत्म हो जाता है।

•हरड़ के चूर्ण को मट्ठे के साथ रोज खाने से पेशाब के रोग ठीक हो जाते हैं।

16. गैस के कारण पेट में दर्द: हरड़ का चूर्ण 3 ग्राम गुड़ के साथ खाने से गैस के कारण पेट का दर्द दूर हो जाता है।

17. आन्त्रवृद्धि: हरड़ों के बारीक चूर्ण में कालानमक, अजवायन और हींग मिलाकर 5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ खाने या इस चूर्ण का काढ़ा बनाकर पीने से आन्त्रवृद्धि की विकृति खत्म होती है।

•हरड़, मुलहठी, सोंठ 1-1 ग्राम पाउडर रात को पानी के साथ खाने से लाभ होता है।

18. आंख आना: हरड़ को रात को पानी में डालकर रखें। सुबह उठकर उस पानी को कपड़े से छानकर आंखों को धोने से आंखों का लाल होना दूर होता है।

19. श्वास या दमा रोग: सोंठ और हरड़ के काढ़े को 1 या 2 ग्राम की मात्रा तक गर्म पानी के साथ लेने से श्वास रोग ठीक हो जाता है।

•हरड़, बहेड़ा, आमला और छोटी पीपल चारों को बराबर मात्रा में लेकर उसका चूर्ण तैयार कर लेते हैं। इसे एक ग्राम तक की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर चाटने से श्वासयुक्त खांसी खत्म हो जाती है।

•हरड़ को कूटकर चिलम में भरकर पीने से श्वास का तीव्र रोग थम जाता है।

20. मलेरिया का बुखार: हरड़ का चूर्ण 10 ग्राम को 100 मिलीलीटर पानी में पकाकर काढ़ा बना ले। यह काढ़ा दिन में 3 बार पीने से मलेरिया में फायदा होता है।

21. वात-पित्त का बुखार: हरड़, बहेड़ा, आंवला, अडूसा, पटोल (परवल) के पत्ते, कुटकी, बच और गिलोय को मिलाकर पीसकर काढ़ा बना लें, जब काढ़ा ठण्डा हो जाये तब उसमें शहद डालकर रोगी को पिलाने से वात-पित्त का बुखार समाप्त होता है।

22. भगन्दर: खदिर, हरड़, बहेड़ा और आंवला का काढ़ा बनाकर इसमें भैंस का घी और वायविडंग का चूर्ण मिल कर पीने से किसी भी प्रकार का भगन्दर ठीक होता है।

•हरड़, बहेड़ा, आंवला, शुद्ध भैंसा गूगल तथा वायविडंग इन सबका काढ़ा बनाकर पीने से तथा प्यास लगने पर खैर का रस मिला हुआ पानी पीने से भगन्दर नष्ट होता है।

23. दांतों का दर्द: दांतों में शीतादि रोग (ठण्डा लगना) होने पर हरड़, बहेड़ा, आंवला, सोंठ और सरसों का तेल इन सबका काढ़ा बनाकर प्रतिदिन दो से तीन बार कुल्ला करने से शीतादि रोग नष्ट होता है।

24. बुखार: हरड़ 20 ग्राम, कुटकी 20 ग्राम, अमलतास 20 ग्राम और रसौत 20 ग्राम को बराबर मात्रा में लेकर कूटकर, 500 मिलीलीटर गर्म पानी में उबाल लें। जब एक-चौथाई पानी बच जाने पर, छानकर शीशी में भर दें। इस काढ़े में 20 ग्राम शहद मिलाकर रख लें। इसे 2-2 घंटे के अन्तर से दिन में 2 से 3 बार पीने से बुखार मिट जाता है।

25. दांत साफ और चमकदार बनाना: हरड़ के चूर्ण से मंजन करने से दांत साफ होते हैं और चमकदार बनते हैं।

26. दांत मजबूत करना: हरड़ और कत्था को मिलाकर चूसें। इससे दांत मजबूत होते हैं।

27. आंखों की खुजली और ढलका: पीली हरड़ के बीज के दो भाग, बहेड़ा की मींगी के 3 भाग और आंवले के बीजों की गिरी के 4 भाग को लेकर इन सबको पीसकर और छानकर पानी के साथ गोलियां बना लें। इन गोलियों को पानी के साथ घिसकर आंखों में काजल की तरह लगाने से आंखों की खुजली और ढलका समाप्त हो जाता है।

28. गुदा चिरना: पीली हरड़ 35 ग्राम को सरसों के तेल में तल लें और भूरे रंग का होने पर पीसकर पाउडर बना लें। उस पाउडर को एरण्ड के 140 मिलीलीटर तेल में मिला लें। रात को सोते समय गुदा पर 10 से 20 मिलीग्राम की मात्रा में लगायें। इससे गुदा चिरने का विकार दूर होता है।

29. कांच निकलना (गुदाभ्रंश): छोटी हरड़ को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ लें। इसको पीने से कब्ज नष्ट होती है और मलद्वार से गुदा (कांच) बाहर नहीं आता।

30. जीभ और मुंख का सूखापन: हरड़ का काढ़ा बनाकर पीने से मुंह के सभी रोग ठीक होते हैं तथा मुंह का सूखापन दूर होता है।

31. गर्भाशय के कीडे़: गर्भाशय में कीडे़ पड़ गये हो तो हरड़, बहेड़ा और कायफल तीनों को साबुन के पानी के साथ सिल पर महीन पीस लेते हैं फिर उसमें रूई का फोहा भिगोकर तीन दिनों तक योनि में रखना चाहिए। इस प्रयोग से गर्भाशय के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।

32. पलकें और भौहें: हरड़ का छिलका, 10 ग्राम माजूफल को पानी में पीसकर पलकों के ऊपर लगाएं इससे पलकों को लाभ होता है।

33. योनि की जलन और खुजली: बड़ी हरड़ की मींगी (बीज, गुठली) और माजूफल दोनों को एक समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर शीशी में रख लें। इस चूर्ण को पानी में घोलकर योनि को धोने से योनि की जलन और खुजली नष्ट हो जाती होती है।

34. कब्ज (कोष्ठबद्वता): बड़ी हरड़ को पीस लें। 5 ग्राम चूर्ण को हल्के गर्म पानी के साथ सेवन करने से कब्ज़ (कोष्ठबद्वता) दूर होती है।

•बड़ी पीली हरड़ का छिलका 6 ग्राम को काला नमक या लाहौरी नमक आधा ग्राम में मिलाकर कूटकर रख लें। इसे सोने से पहले पानी के साथ लेने से पेट साफ होता है।

•काबुली हरड़ को रात में पानी में डालकर भिगों दे। सुबह इसी हरड़ को पानी में रगड़कर नमक मिलाकर एक महीने तक लगातार पीने से पुरानी से पुरानी कब्ज मिटती जाती है।

•हरड़, सनाय और गुलाब के गुलकन्द की गोलियां बनाकर खाने से मलबंद (कब्ज) दूर होती है।

•10 भाग हरड़, 20 ग्राम बहेड़ा और 40 भाग आंवला आदि को मिलाकर चूर्ण बना लें। रात को सोते 1 चम्मच चूर्ण दूध या पानी के साथ लेने से लाभ होता है।

•हरड़ की छाल 10 ग्राम, बहेड़ा 20 ग्राम, आंवला 30 ग्राम, सोनामक्खी 10 ग्राम, मजीठ 10 ग्राम और मिश्री 80 ग्राम को मिलाकर चूर्ण बनाकर रख लें। फिर 10 ग्राम मिश्रण को शाम को सोने से पहले सेवन करने कब्ज नष्ट होती है।

•छोटी हरड़ और 1 ग्राम दालचीनी मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें, इसमें 3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म पानी के साथ रात में सोने से पहले लेने से कब्ज (कोष्ठबद्वता) को समाप्त होती है।

•छोटी हरड़ 2 से 3 रोजाना चूसने से कब्ज मिटती है।

•छोटी हरड़ को घी में भून लें। फिर पीसकर चूर्ण बना लें। दो हरड़ों का चूर्ण रात को सोते समय पानी के सेवन करने से शौच खुलकर आता है।

•छोटी हरड़, सौंफ, मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इसमें से एक चम्मच चूर्ण रात को सोते समय पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

•छोटी हरड़ का आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम भोजन के बाद और सोते समय 1 चम्मच की मात्रा में जल के साथ सेवन से पेट साफ होगा।

•हरड़, बहेड़े और आंवले को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रखें। इस चूर्ण को त्रिफला चूर्ण कहते है। रात्रि को 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गर्म जल या दूध के साथ सेवन करने से कब्ज नष्ट होती है।

•हरड़ सुबह-शाम 3 ग्राम गर्म पानी के साथ खाने से पेट के कब्ज में फायदा मिलता है और बवासीर रोग में भी लाभ होता है।

35. मसूढ़ों की सूजन: हरड़, बहेड़ा व आंवला 10-10 ग्राम लेकर मोटा-मोटा कूट लें। इसके कूट को 800 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब 200 मिलीलीटर पानी बचे तो 30 से 60 मिलीलीटर पानी से दिन में 2 से 3 बार गरारे करें। इससे मसूढ़ों की सूजन ठीक होती है।

36. गर्भनिरोध: हरड़ की मींगी (बीज, गुठली) 40 ग्राम की मात्रा में लेकर उसमें मिश्री मिलाकर रख लें। इसे तीन दिनों तक सेवन करने से स्त्रियों को मासिक-धर्म नहीं आता है। इसके परिणामस्वरूप गर्भ ठहरने की संभावना बिल्कुल समाप्त हो जाती है।

37. वमन (उल्टी): हरड़ को पीसकर उसमें शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाती है।

38. काली (छोटी हरड़, बाल हरड़, जौ हरड़ जंग हरड़) हरड़ : काली हरड़ को पानी से धोकर किसी साफ कपड़े से पोंछकर साफ करके रख लें। सुबह और शाम खाना खाने के बाद एक हरड़ को मुंह में रखकर चूसने से यह कई रोगों में लाभ देती है-जैसे- पेट की गैस की शिकायत दूर करती है। भूख लगने लगती है। पाचन शक्ति को बढ़ाती है। जिगर (लीवर) और आंतड़ियों की गैस समाप्त करती है। खून को साफ करती है। त्वचा के रोगों को दूर करती है। दांत को मजबूत बनाती है और आंखों के चश्मे का नम्बर भी कम करने में सहायता करती है तथा इससे उपयोग से सिगरेट पीने की आदत भी छूट जाती है।

39. मलबंद: छोटी हरड़, मरोड़फली, जवाखार और निशोथ को मिलाकर बराबर मात्रा में लेकर बारीक मात्रा में पीसकर छान लें। इस बने चूर्ण को 3 से 6 ग्राम तक की मात्रा में देशी घी में मिलाकर चाटने से उदावर्त्त रोग दूर होते हैं।

40. दस्त: हरड़ का पिसा हुआ बारीक चूर्ण 50 ग्राम, सेंधानमक 10 ग्राम को लेकर पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, इस चूर्ण को 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह और शाम ताजे पानी के साथ पीने से लाभ मिलता है।

•रात को सोने से पहले हरड़ का मुरब्बा खाकर ऊपर से दूध पी लें, इससे सुबह उठने पर शौच साफ आती है।

41. हिचकी का रोग: हरड़ के चूर्ण को गर्म पानी के साथ खाने से हिचकी मिट जाती है।

42. कान से कम सुनाई देना: आधी कच्ची जोगी हरड़ के चूर्ण को सुबह और शाम फांकने से बहरेपन का रोग दूर हो जाता है।

43. संग्रहणी (पेचिश): हरड़, छोटी पीपल, सोंठ और चित्रक (चीता) इन सभी का चूर्ण बनाकर मट्ठे (लस्सी) के साथ पीने से संग्रहणी अतिसार दूर हो जाता है।

44. पेट का फूलना: हरड़ 10 ग्राम, छोटी पीपल 10 ग्राम और निशोथ़ 10 ग्राम को बराबर मात्रा में लेकर इसे थूहर के दूध में पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसे रोजाना सुबह 1 से लेकर 2 गोलियां खाने से आनाह (पेट का फूलना) और पेट में कब्ज की बीमारियां मिट जाती हैं।

45. बवासीर (अर्श): •काली हरड़ 200 ग्राम लेकर उसे 20 ग्राम घी में डालकर भून लें। उसमें थोड़े-सा आंवला का रस और गन्धक डालकर अच्छी तरह से मिला लें। रोजाना रात को सोते समय 6 ग्राम मिश्रण गर्म दूध के साथ पीयें।

•75 ग्राम हरड़ के छिलके को कूट-छानकर इसमें 3 ग्राम गुड़ मिलाकर रोज खाली पेट लें। 21 दिन लगातार खाने से बवासीर में आराम मिलता है।

•छोटी हरड़, पीपल और सहजने की छाल का चूर्ण बनाकर उसी मात्रा में मिश्री मिलाकर खायें। इससे बादी बवासीर ठीक होती है।

46. चोट: हरड़, आमला, रसोत 50-50 ग्राम कूट छानकर 5-5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ लेने से खून का बहना बंद होता है और लाभ भी होता है।

47. आंव रक्त (पेचिश): काली हरड़, को गाय के घी में भूनकर पीस लें। फिर इसमें इसी के बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर खाने से दस्त के साथ आंव आना बंद हो जाता है।

48. अग्निमान्द्यता (अपच): छोटी हरड़ 2 दाने, मुनक्का 4 दाने, अंजीर के 2 दाने का काढ़ा बनाकर सोने से पहले पीने से लाभ मिलता है।

49. जिगर का रोग: बड़ी हरड़ को पीसकर चूर्ण बना लें और उसमें पुराना गुड़ और हरड़ का चूर्ण मिलाकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर सुखा लें। 1-1 गोली सुबह-शाम लें, इसे 30-40 दिनों तक लगातार सेवन से बढे़ हुए यकृत रोग से राहत मिलती है।

•2 ग्राम बड़ी हरड़ का चूर्ण गुड़ के साथ सेवन करने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।

50. श्वेतप्रदर: हरड़, आंवला और रसौत को बराबर मात्रा में लेकर इसका चूर्ण बना लें, इसे 3-6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वेतप्रदर मिट जाता है।

51. अल्सर: 2 छोटी हरड़ और 4 मुनक्का के दाने लेकर उनकी चटनी पीस लें और रोजाना सुबह के समय खाएं।

52. अम्लपित्त: •बड़ी हरड़ को पीसकर उसका चूर्ण बना लें। इसमें 180 मिलीग्राम जवाखार मिलाकर सुबह और शाम 3-3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है।

•हरड़ का चूर्ण 6 ग्राम में 6 ग्राम शहद, गुड़ या दाख (मुनक्का) को मिलाकर सेवन करने से तीन दिन में ही अम्लपित्त से छुटकारा पाया जा सकता है।

•हरड़ के 2 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर पिलाने से बच्चों के अम्लपित्त में लाभ होता है।

•हरड़, छोटी पीपल, दाख (मुनक्का), धनिया, जवासा और मिश्री या चीनी को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह कूट लें। इस बने चूर्ण को 3 से 4 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से `श्लेश्मपित्त´ और `अम्लपित्त´ समाप्त हो जाते हैं।

•हरड़, दाख (मुनक्का), छोटी पीपल, जवासा, धनिया और मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त में लाभ होता है।

•हरड़ एक चम्मच की मात्रा में 2 किशमिश के साथ लेने से अम्लपित्त ठीक हो जाता है।

53. गला बैठना: छोटी हरड़ का चूर्ण बनाकर 6 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध में मिलाकर सेवन करें। इसका प्रयोग 7 से 8 दिनों तक करने से गला बैठना व गले का दर्द तथा खुश्की आदि ठीक हो जाती है।

54. रक्तप्रदर की बीमारी: 10-10 ग्राम हरड़ आंवले और रसौत को लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें, इसके 5 ग्राम चूर्ण को पानी के साथ सेवन करने से रक्तप्रदर की बीमारी नष्ट जाती है।

55. जलोदर: हरड़, सोंठ, देवदारू, पुनर्नवा और गिलोय को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढे़ में शुद्ध गुग्गुल और गाय के पेशाब को मिलाकर पीने से जलोदर की बीमारी समाप्त हो जाती है।

56. मधुमेह का रोग: त्रिफला (हरड़ बहेड़ा, आंवला,) जामुन की गुठली, करेले के बीज, मेथी के दाने। सभी 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर 100 ग्राम गुड़मार में कूट-पीसकर मिला लें और सुबह नाश्ते के बाद 2 चम्मच पानी के साथ सेवन करें। इससे मधुमेह से आराम मिलता है।

57. मोटापा दूर करना: •हरड़ 500 ग्राम, 500 ग्राम सेंधानमक, 250 ग्राम कालानमक और 20 ग्राम ग्वारपाठे के रस को मिलाकर अच्छी तरह पीसें, जब रस सूख जाए तो इसे 3 ग्राम की मात्रा में रात को गर्म पानी के साथ सेवन करने से मोटापे के रोग में लाभ होता है।

•हरड़, बहेड़ा, आंवला, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, सरसों का तेल और सेंधानमक मिलाकर 6 महीने तक लगातार सेवन करने से मोटापा, कफ और वायु (गैस) की बीमारियां समाप्त होती जाती हैं।

58. गिल्टी (ट्यूमर): हरड़, रेण्डी के बीज, रेण्डी का तेल और सिरका-पीसकर एकत्र कर लें। इसके बाद गर्म करके गिल्टी पर बांधें। इससे नई गिल्टी जल्दी सही हो जाती है तथा पुरानी गिल्टी जल्दी पककर फूट जाती है। इससे शीघ्र आराम हो जाता है।

59. जुकाम: 6 ग्राम बड़ी हरड़ के छिलकों के चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटने से जुकाम ठीक हो जाता है।

60. पेट के कीड़े: हरड़, कबीला, सेंधानमक और बायविंडग को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर बारीक चूर्ण बना लें, फिर इस तीन ग्राम चूर्ण को छाछ के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े मिट जाते हैं।

•हरड़ और बायविंडग को बराबर मात्रा में पीसकर थोड़ी-सी मात्रा में गर्म पानी के साथ रोजाना सुबह और शाम फंकी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

•बड़ी हरड़ का छिलका 10 ग्राम, बायविंडग 10 ग्राम, कालानमक 10 ग्राम को बराबर मात्रा में बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें। 2 ग्राम चूर्ण को दिन में 2 बार सुबह और शाम गर्म पानी के साथ पीने से पेट के कीडे़ समाप्त हो जाते हैं।

•बड़ी हरड़ को पानी में घिसकर उसमें सुहागा का फूल मिलाकर खुराक के रूप में देने से बच्चों के अजीर्ण (पुरानी कब्ज) रोग में लाभ होता है और पेट के कीड़े मर जाते हैं।

61. सभी प्रकार के दर्द: हरड़, बहेड़ा, आंवला और राई को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें, फिर चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में लेकर देशी घी और शहद के साथ चाटने से `आमशूल´ और अन्य कई प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।

62. स्तनों की गांठे (रसूली): बड़ी हरड़, छोटी पीपल और रोहितक की छाल को लेकर पकाकर काढ़ा बना लें, फिर इसी काढ़े में यवाक्षार 120 मिलीग्राम से लेकर 240 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पीने से स्तनों में होने वाली रसूली मिट जाती है।

63. वायु का गोला (गुल्म): हरड़ के चूर्ण को गुड़ में मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से पित्त के कारण होने वाली गुल्म में लाभ होता है।

•बड़ी हरड़ का चूर्ण और अरण्डी के तेल को गाय के दूध में मिलाकर पीने से वात (वायु) गुल्म में लाभ होता है।

64. नाक के रोग: हरड़ का काढ़ा बनाकर नाक में डालने से पीनस (जुकाम) के रोग में आराम आ जाता है।

65. पेट में दर्द होना:- हरड़ का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में गुनगुने पानी के साथ पीने से पेट की कब्ज के कारण होने वाले दर्द में लाभ होता है।

•छोटी हरड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर 1 चुटकी की मात्रा में गर्म पानी के साथ मिलाकर पीयें।

•हरड़ का बारीक पिसा हुआ चूर्ण 1 चम्मच गर्म पानी के साथ फंकी के रूप में लेने से पेट के दर्द में लाभ होता है।

•6 ग्राम हरड़, बहेड़ा 6 ग्राम और राई को पीसकर पानी के साथ पीने से कब्ज के कारण होने वाले पेट के दर्द में लाभ होता है।

•काली (छोटी) हरड़ के चूर्ण में आधा चम्मच गुड़ मिलाकर प्रतिदिन सुबह खायें। इसे खाने के आधे घंटे के बाद पानी के साथ पीने से बहुत लाभ पहुंचता है।

•पिसी हुई हरड़ 1 चुटकी, आधा चुटकी पीपल में सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।

•हरड़ को बारीक पीसकर बने चूर्ण को शहद के साथ चाटें।

66. गठिया रोग: •60 ग्राम हरड़ का छिलका, 40 ग्राम मीठी सुरंज और 20 ग्राम सौंठ को कूट-छानकर चूर्ण बना लें। इस 3 ग्राम चूर्ण को रोजाना सुबह-शाम गर्म पानी के साथ लेने से गठिया रोग ठीक होता है।

•हरड़ और सोंठ 3-3 ग्राम की मात्रा में जल के साथ लेने से घुटनों के तेज दर्द में लाभ होता है।

•20 से 40 ग्राम हरीतकी (हरड़) का चूर्ण घी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से ठण्ड के कारण उत्पन्न गठिया दूर होती है।

67. उपदंश: हरड़ का छिलका, आंवला 10-10 ग्राम सुहागा भुना 5 ग्राम पीसकर उपदंश के जख्मों पर छिड़कने से लाभ मिलेगा।

68. योनि संकोचन: बड़ी हरड़ का बीज और माजूफल को मिलाकर चूर्ण बनाकर योनि में रखें, फिर 20 मिनट के बाद संभोग करें। इससे योनि टाईट-सी लगती है।

•हरड़, धाय के फूल, बहेड़ा, आंवला, जामुन की छाल, लोहसार, घी और मुलहठी को एक साथ मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसे थोड़े दिनों तक योनि पर लेप लगाने से योनि काफी सख्त हो जाती है।

69. चक्कर आना: एक हरड़ का मुरब्बा इसमें लगभग 3 ग्राम धनिया और लगभग 1 ग्राम छोटी इलायची को पीसकर सुबह और शाम को खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है।

70. खाज-खुजली: चकबड़, हरड़ और कांजी को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को खुजली वाले स्थान पर लगाने से लाभ होता है।

•दूब, हरड़, सेंधानमक, चकबड़ और बनतुलसी को लेकर अच्छी तरह से पानी के साथ पीस लें। फिर इसे खुजली वाले स्थान पर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।

•दो चम्मच पिसी हुई हरड़ को 2 गिलास पानी में उबालकर छान लें। इस पानी के अन्दर रूमाल को भिगोकर शरीर में जहां पर भी खुजली हो वहां पर उस स्थान को साफ करने से खुजली चलना दूर हो जाती है।

71. त्वचा के रोग:

•हरड़, दूध, सेंधानमक, चकबड़ और बनतुलसी को बराबर मात्रा में लेकर कांजी में मिलाकर पीस लें। इसे दाद, खाज और खुजली पर लगाने से लाभ होता है।

•हरड़ और चकबड़ को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से दाद ठीक हो जाता है।

72. सिर चकराना: हरड़ को पीसकर इतनी ही मात्रा में गुड़ मिलाकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाकर रख लें और रोज़ाना सुबह गर्मी के मौसम में नाश्ते के बाद दो गोली खाकर पानी पीयें। ऐसा करने से गर्मी से होने वाले रोगों से बचा जा सकता है।

73. विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल बनना): हरड़, बहेड़ा, आंवला, पद्याख, खस, लाजवन्ती, कनेर की जड़ और अनन्त-मूल का लेप करने से कफज-विसर्प रोग ठीक हो जाता है।

74. हृदय रोग: हरीतकी फल मज्जा और वचा को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। इस 1 ग्राम चूर्ण को 4 से 6 ग्राम शहद के साथ दिन में दो बार सुबह-शाम सेवन करें।

•हरीतकी फल मज्जा, वचा प्रकन्द, रास्ना मूल, शटी, पुश्करमूल, पिप्पलीफल व शुंठी बराबर लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करें।

•हरीतकी फल मज्जा, त्रिवृत्, शटी, बला व पुश्कर मूल व शुंठी को एक समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसकी 2 ये 4 ग्राम की मात्रा 7 से 14 मिलीलीटर गौमूत्र या 50 मिलीलिटर गर्म पानी के साथ दिन में दो बार लेना चाहिए।

•50 ग्राम हरीतकी फल मज्जा, 100 ग्राम कृष्णलवण, 500 ग्राम घी, 2 किलो पानी में तब तक धीमी आंच पर उबालें जब तक 500 ग्राम की मात्रा में शेष न रह जाये। इसे 12 से 24 ग्राम की मात्रा में 50 ग्राम शर्करा के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।

75. गांठ (गिल्टी): हरड़, मुण्डी, कचनार की छाल और विजयसार का काढ़ा बराबर मात्रा में लेकर उसमें शहद मिलाकर पिलाने से गले की गांठों में लाभ होता है।

76. गुल्यवायु हिस्टीरिया: बड़ी हरड़ के चूर्ण और गुलकन्द को गर्म पानी के साथ देने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।

•बड़ी हरड़ और सनाय की पत्तियां लगभग 50-50 ग्राम और 15 ग्राम कालानमक को कूट-छानकर लगभग 10-12 ग्राम की मात्रा में इस चूर्ण को गर्म पानी के साथ रात को सोते समय देना चाहिए। इससे दस्त लग जाते हैं और गैस बनना बंद हो जाती है।

77. कुष्ठ: हरड़, बायविडंग सेंधानमक, बावची के बीज, सरसों, करंज और हल्दी को बराबर मात्रा में लेकर गाय के पेशाब के साथ मिलाकर पीस लें। इसको लगाने से कुष्ठ (कोढ़) रोग समाप्त हो जाता है।

78. नाखून के रोग: नाखून में खुजली उत्पन्न होने पर बड़ी हरड़ को सिरके में घिसकर प्रतिदिन 2 से 3 बार लेप करने से नाखूनों की खुजली दूर हो जाती है।

79. पीलिया रोग: •हरड़ को गाय के मूत्र में पकाकर खाने से पीलिया रोग और सूजन मिट जाती है।

•बड़ी हरड़ का छिलका 100 ग्राम और 100 ग्राम मिश्री को मिलाकर चूर्ण बना लें। यह 6-6 ग्राम दवा सुबह-शाम ताजे पानी के साथ खाने से पीलिया मिट जाता है।

•बड़ी हरड़ पांच ग्राम को करेले के पत्तों के रस में घिसकर पीने से पाण्डु (पीलिया) रोग मिट जाता है।

•बड़ी हरड़ को गोमूत्र में भिगोकर फिर गोमूत्र में ही मिलाकर सेवन करने से कफज पाण्डु रोग दूर होता है।

•हरड़ की छाल, बहेड़े की छाल, आंवला, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, नागरमोथा, बायबिडंग, चित्रक। सब एक-एक चुटकी मात्रा में लेकर पीसकर मिला लें। इसकी चार खुराक बना लें। दिन भर में चारों खुराक शहद के साथ सेवन करें। इसी अनुपात में पन्द्रह दिन की दवा तैयार कर लें। यह प्रसिद्ध योग है।

•हरीतकी चूर्ण को गोमूत्र के साथ आधा चम्मच की मात्रा में लेना चाहिए।

80. दाद: चकबड़ और हरड़ को कांजी के साथ पीसकर दाद पर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

81. फीलपांव (गजचर्म): 5 ग्राम हरड़ के चूर्ण को घी में भूनकर गाय के पेशाब के साथ लेने से फीलपांव के रोगी को लाभ मिलता है।

82. कुष्ठ (कोढ़): छोटी हरड़ और समुद्रफेन खाने से कोढ़ का रोग समाप्त हो जाता है।

83. बच्चों का बुखार: 1 छोटी हरड़, 2 चुटकी आंवले का चूर्ण, 2 चुटकी हल्दी और नीम की 1 कली को एक साथ मिलाकर काढ़ा बना लें और बच्चे को पिला दें।

84. पसीने का अधिक आना: हरड़ को बारीक पीस लें। जहां पसीना अधिक आता हो, वहां पर इसकी मालिश करें। मालिश करने के बाद 10 मिनट बाद नहा लें। इससे ज्यादा पसीना आना बंद हो जाता है।

85. बालरोग (बच्चों के विभिन्न रोग): हरड़, बच और कूठ के चूर्ण को शहद में मिलाकर धुले हुए चावल या मां के दूध के साथ देने से तालुकंटक रोग शांत होता है।

•20 ग्राम अजवाइन, 20 ग्राम छोटी हरड़, 20 ग्राम सौंफ, 20 ग्राम पीपल, 20 ग्राम सोंठ, 20 ग्राम पांचों नमक, 20 ग्राम गोल मिर्च, 20 ग्राम नींबू का रस, 80 ग्राम आक (मदार) के फूलों की कली को लेकर पीस लें और कपड़े से छानकर बेर के बराबर गोली बनाकर सुबह और शाम को बच्चे को खिलाने से लाभ होता है।

•हरड़, बच तथा मीठा कूठ- इन्हें पानी में पीसकर लुगदी जैसा बना लें। फिर इसे शहद में मिलाकर मां के दूध के साथ मिलाकर पिलाने से `तालुकंटक´ रोग दूर हो जाता है। (इस रोग में बच्चे के मुंह का तालु नीचे की ओर लटक जाता है जिसके कारण बच्चा दूध नहीं पी पाता है)

•हरड़, बहेड़ा, आंवला, लोध्र, पुनर्नवा, अदरक, कटेरी, तथा कटाई को पीसकर पानी में मिलाकर गर्म करके हल्का-सा गर्म गर्म पलकों पर लेप करने से पलकों पर होने वाला दर्द, मवाद बहना और `कुकूणक´ रोग (बच्चों का अपनी आंखों को मसलते रहना) दूर हो जाता है।

•बच्चे को कब्ज हो तो बड़ी हरड़ (जो साधारण हरड़ से बहुत बड़ी होती है तथा जिसे लोग काबुली हरड़ भी कहते है) को जरा सा घिसकर उसके ऊपर कालानमक गर्म पानी में मिलाकर पिला दें।

86. सिर का दर्द: लगभग 10-10 ग्राम की बराबर मात्रा में हरड़, आंवला, बहेड़ा, सुगन्धवाला और सिर धोने की सज्जी को लेकर अलसी के तेल में मिलाकर गाढ़ा लेप बना लें। इस लेप को सिर में लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

•10 बड़ी हरड़ लेकर उसकी छाल को निकालकर 3 दिन तक पानी में भिगोकर धूप में रख दें। चौथे दिन उसमें 11 हरड़ की छाल कूटकर डाल दें और 3 दिन तक फिर धूप में रहने दें। अब इसमें 500 ग्राम शक्कर मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से सिर के दर्द के साथ ही साथ गर्मी के कारण होने वाली अन्य बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं।

87. आग से जलने पर: हरड़ को पानी में पीसकर उसमें क्षारोदक और अलसी का तेल मिलाकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से जख्म जल्दी भरकर ठीक हो जाता है।

88. शारीरिक सौन्दर्यता: खूबसूरत बनने के लिए हरड़ का हमारे जीवन में बहुत ही खास स्थान है। हरड़ की फंकी को गर्म पानी के साथ हर 3 दिन के बाद दो चम्मच रात को सोते समय लेने से शरीर के जहरीले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। हरड़ खुद ही रसायन वाला द्रव्य है जिससे शरीर में हर समय चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है।

89. जलन और घाव: हरड़ को जलाकर बारीक पीस लें और वैसलीन में मिलाकर शरीर के जले हुए भागों पर लगायें। इससे जलन कम होती है और जख्म भी भर जाते हैं।

90. दीर्घजीवी या लम्बी उम्र : 40 किलो की मात्रा में हरड़, 4 किलो की मात्रा में गोखरू का पंचांग और लगभग 10 किलो की मात्रा में पंवाड़ के बीजों को अच्छी तरह से बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। इसके बाद इसमें लगभग 40 लीटर की मात्रा में भांगरे के रस को मिलाकर घोंटे, जब भांगरे का रस अच्छी तरह से मिल जाए तो इसमें लगभग 11 किलो की मात्रा में गुड़ मिलाकर बारीक घोट लें। इसके बाद इसमें 10 किलो की मात्रा में शहद लेकर थोड़ा-थोड़ा कर मिलायें। इस तैयार मिश्रण में से बड़े आकार के लड्डू बना लें। इन लड्डुओं को रोजाना एक-एक कर सुबह खाली पेट खायें। इन लड्डुओं को खाने से चेहरा लाल, चेहरे और बदन की झुर्रियां नष्ट होती है, बाल और आंखों की नज़र तेज हो जाती है। इसका सेवन लगभग एक वर्ष तक करना चाहिए।

91. बलगम (कफ): हरीतकी चूर्ण सुबह-शाम काले नमक के साथ खाने से कफ खत्म हो जाता है।

92. नाड़ी का दर्द: नाड़ी में घाव होने पर निशोथ, काली निशोथ, त्रिफला, हल्दी तथा लोध्र बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में इससे चार गुना घी और घी में चार गुना पानी मिलाकर अच्छी तरह से आग पर पकायें, जब केवल घी शेष बचे तो उसे उतारकर छान लें। इस तैयार मिश्रण को दूध में मिलाकर पीने से `पित्तज´ के कारण उत्पन्न नाड़ी का घाव ठीक हो जाता है।

93. स्तनों की घुण्डी का फटना: हरीतकी (हरड़) को पानी में पीसकर शहद के साथ मिलाकर स्तन

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