Sunil Dwivedi Astrologer

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16/09/2023

राहु और मंगल बारहवें घर में

वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली के बारहवें घर को व्यय भाव भी कहा जाता है | पैर, बायां नेत्र, चुगलखोरी, सीक्रेट प्लान, हॉस्पिटल, एकांत, मोक्ष, एसाइलम, शयन सुख, गुप्त सम्बन्ध, जेल आदि का विचार इस भाव से किया जाता है। बारहवें घर के बारे में और विस्तार से बात करें तो ये घर दुश्मन और रोग की हानि का भी घर है | विदेश में बसना और आपकी छिपी हुई प्रतिभा और हुनर का घर भी है। अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि ये घर हाउस ऑफ़ मिस्ट्री के साथ हाउस ऑफ़ हिडन टैलेंट भी है । ये कल्पनाओं की उड़ान का घर है | ये सपनों का घर है इसलिए ये घर कलाकारों और लेखकों के लिए संजीवनी का काम करता है।

कुंडली के बारहवें घर में राहु और मंगल का योग व्यक्ति के आनंद और ज्ञान के द्वार खोल सकता है।इनकी ऊर्जा अगर मोक्ष की तरफ लग जाये तो व्यक्ति के विवेक को जगा सकती है उसे प्रबुद्ध बना सकती है। अगर कुंडली में दूसरे ग्रहों की स्थिति ठीक हो तो ऐसे लोगों में जबरदस्त हीलिंग पावर हो सकती है जिसके कारण इनसे बात करके इनकी संगत पाकर लोगों को अच्छा लगता है उनको शांति का एहसास हो सकता है।ऐसे लोगों को अपने अधिकारों का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए और अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स को बढ़ाना चाहिए साथ ही साथ अपनी प्राथमिकताएं तय करने और निर्णय लेने कि क्षमता को भी बढ़ाना चाहिए।

अगर दुसरे ग्रहों का साथ नहीं मिल रहा हो तो राहु और मंगल का योग व्यक्ति को किसी जल रोग से पीड़ित कर सकता है| बहुत अधिक व्यय करने वाला और कोई गुप्त पाप कर्म करने वाला हो सकता है । व्यक्ति को काले जादू और तंत्र का शिकार बना सकता है| ये स्थिति जातक को विदेश में स्थाई रूप से बसने के लिए प्रेरित करती है| ऐसा जातक एक अच्छा लेखक भी बन सकता है । ये स्थिति व्यक्ति को अनंत संघर्षों से गुजार सकती है| ऐसा व्यक्ति अंत में सफलता पा ही लेता है । ये स्थिति डॉक्टर्स और नर्सेज के लिए मददगार बन जाती है| ऐसे व्यक्ति अगर ध्यान आदि की प्रैक्टिस करते हैं तो बहुत फायदा मिल सकता है। आपके लिए सन्देश है कि आपको मतभेद होने के बावजूद भी दूसरों की मदद करनी चाहिए| करुणा को अपने जीवन में पहला स्थान देना चाहिए । क्योंकि इस जीवन में आपको बहुत कुछ सीखना पड़ेगा, चाहे आपको पसंद हो या न हो |आपको छोटे छोटे इश्यूज को छोड़कर अपने समय और ऊर्जा को बचाना होगा ।

मै गाइड करना चाहूंगा - आपको ऐसे काम करने चाहिए जिसमे आप परदे के पीछे रहकर काम करते हों| जैसे किसी इंस्टीटूशन की प्लानिंग , स्ट्रेटेजी बनाना या सिनेमा में निर्देशन आदि | मेरा मतलब जंहा आप सामने नज़र नहीं आते| लेकिन जिस काम में लगे हैं उसकी सफलता के पीछे आप एक मजबूत स्तम्भ की तरह खड़े हैं । ऐसे व्यक्ति अच्छी प्लानिंग करने वाले , व्यावहारिक और अनुशासित होते हैं | लेकिन समय समय पर बिमारियों से भी लड़ना पड़ता है । ऐसा व्यक्ति आलोचक और खामियां देखने वाला हो सकता है एवं दूसरों को अपने से नीचे समझ सकता है| इसके अलावा ऐसे व्यक्ति के लिए कार्यक्षेत्र एक समस्या बन सकता है और सहकर्मियों से जूझते रहना पड़ सकता
है ।

राहु और मंगल की युति के नकारात्मक परिणामों की बात करें तो परिवार के संस्कार और वातावरण बहुत ही संकुचित और कठोर हो सकते हैं| जिसके कारण ऐसे व्यक्ति अपना सेल्फ कॉन्फिडेंस खो सकते हैं | अपने आपको एक्सप्रेस करने में दिक्कत महसूस कर सकते हैं। एक अजीब सी घुटन महसूस कर सकते हैं , वो लोगों से मेलजोल बढ़ाने में दिक्कत महसूस कर सकते हैं। व्यक्ति को सपने देखने वाला तो बनाता है लेकिन उसे धरातल पर उतारने में उदासीन हो जाता है| या कह सकते हैं जब व्यक्ति कोई काम शुरू करता है तो पूरे उत्साह और उमंग से भरा हो सकता है, लेकिन धीरे धीरे उसका उत्साह कम होता चला जाता है।आप भाग्यवादी हो सकते हैं और कभी कभी आपके अंदर दृढ संकल्प की कमी भी नज़र आ सकती है । आप मूडी हो सकते हैं ,हीन भावना के शिकार हो सकते हैं या गहरे अवसाद में जा सकते हैं । आपकी सेहत आपकी मनःस्थिति पर ज्यादा निर्भर करती है । आपके दृष्टिकोण में पूरी दुनिया अनावश्यक और अराजक हो सकती है | ऐसा व्यक्ति अपनी प्राथमिकताएं तय नहीं कर पाता और अपनी ऊर्जा को व्यर्थ के कामों में लगा सकता है। अपनी भावनाएं प्रकट करने में नाकामी महसूस कर सकते हैं | इसी स्थिति के कारण आप अपनी भावनाओं (क्रोध , आक्रोश ) का दमन करते हुए अपने लिए मानसिक असंतुलन को बढ़ावा दे सकते हैं । व्यक्ति में एक अजीब सी हिचकिचाहट दे सकता है, और वो हिचक है लोगों के सामने बोलने की अपनी बात को सही तरीके से नहीं रख पाने की। अगर इसकी मनोवैज्ञानिक परतों की तह में जाएँ तो असल में इन लोगों को भय होता है अपने रिजेक्शन का। ये बड़ी ही अजीब और रहस्यमयी स्थिति बना देती है, ऐसे लोगों के चरित्र को समझना बहुत कठिन हो सकता है क्योंकि एक तरफ उनमे गजब की योजना बनाने की क्षमता होती है , गजब की संगठन क्षमता होती है और दूसरी तरफ उनकी अवचेतन की डरने वाली मनः स्थिति।व्यक्ति संयमहीन हो सकता है ,परस्त्री-गामी , व्यसन और नशों का आदि हो सकता है ऐसे व्यक्ति को जेल भी जाना पड़ सकता है। अक्सर ऐसे लोगों का वैवाहिक जीवन अस्त व्यस्त हो सकता है।

जीवन को खंड खंड करके देखने की बजाए उसकी पूरणता में देखने का प्रयास करें । मतभेदों का सम्मान करें और प्रतिक्रिया देने में संयम बरतें । बारहवां घर पारलौकिक अनुभव से जुड़ा है |आपको वो सब आसानी से मिल सकता है जो इस घर से सम्बन्ध रखता है |इसलिए आपके लिए मूल मंत्र है आत्म-अवलोकन और आत्म-ज्ञान । हालाँकि आप दुश्मनों को हराने की उत्कृष्ट क्षमता रखते हैं और मेटाफिजिकल हीलिंग जैसी तकनीक अपनाकर भी लोगों का भला कर सकते हैं । ऐसे व्यक्ति का विकास और सफलता लोगों की गहराई से सेवा करने के माध्यम से ही संभव है । वो सेवा मनोविज्ञान , धर्म दर्शन , ज्ञान , रहस्यवाद या लेखन से भी हो सकती है या किसी सेवा संस्थान के साथ जुड़कर भी । संक्षेप में आपको अपने अंतर्ज्ञान और भावनाओं को ध्यान में रखते हुए आध्यात्मिक जीवन में उतर जाना चाहिए और लोगों की सेवा करनी चाहिए| हालाँकि आपके अंदर कलात्मक पक्ष बहुत मजबूत होता है |आप उसके माध्यम से भी सेवा कर सकते हैं। मूल लक्ष्य है - अंतिम मुक्ति ।

अकेले राहु और मंगल की युति के आधार पर अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए उसके लिए पूरी कुंडली का विश्लेषण

09/06/2023

(समुदाय अष्टक वर्ग )

जो भी ज्योतिष में रुचि लेते है और अष्टक वर्ग के बारे में जानना चाहते है और आज तक इसको समझ नही पाए है उनको मेरी यह पोस्ट बहुत मदद करेगी

दोस्तो अष्टक वर्ग का मतलब होता है 8 वर्ग सभी ग्रह अपने भाव से किसी न किसी भाव को कोई न कोई शुभ बिंदु देते है जो कि किसी न किसी भाव मे भी अपनी ताकत को लगा देते है और उस भाव को अपना समर्थन देते है
राहु और केतु को छोड़कर यह 7 ग्रह सभी भावो को शुभ बिंदु देते है

सभी ग्रहों का अपना एक भिन्नाष्टक वर्ग भी होता है और सभी भावो में और सभी ग्रहों को लग्न से कोई न कोई ग्रह अपना समर्थन देता है या नही भी देता है

अब जहां पर उनका समर्थन है(,सपोर्ट)है और जिन भावो में वहां उनकी ऊर्जा शक्ति जो गई है वो आपके साथ अच्छा या बुरा कर सकती है

अब जिस भाव मे इनको 28 या 28 से ज्यादा शुभ बिंदु मिल जायँगे वो भाव पास हो जाएगा और जिस भाव मे 24 से 28 बिंदु होंगे वो भाव न कमजोर होगा न बहुत ताक़तवर माना जाएगा

किसी भी भाव को पास होने के लिए कम से कम 28 शुभ बिंदु का उस भाव मे होना बहुत जरूरी होता है अगर इतने शुभ बिंदु नही है तो उस घर मे बैठा ग्रह आपको अच्छा फल नही दे पाएगा

अब यहाँ 28 या 28 से ज्यादा शुभ बिंदु पर कोई ग्रह तभी आपको अच्छा फल दे पाएगा अगर वो 6.8.12 भाव नही है अगर वो इन भावो में ज्यादा शुभ बिंदु पर आ गया है तो आपको बुरा फल कर जायगा क्योकि यह भाव बली होना अच्छा नही माना जाता है

पर ज्योतिष के नियम अनुसार यह भाव भी पास होने चाहिए यह भाव अगर कमजोर होंगे तो भी आपको परेशानी हो सकती है 28 बिंदु तो कम से कम यहां भी होना जरूरी है

अब जहां 28 या 28 से ज्यादा शुभ बिंदु है उस भाव मे अगर कोई नीच ग्रह है अस्त ग्रह है और उन पर पाप प्रभाव है तो आप यह मान लीजिए भाव पास होने के बाद भी वो ग्रह आपको अच्छा फल नही देगा क्योकि भाव तो ताक़तवर है पर देने वाले ग्रह में दम नही है अगर यहाँ पर ग्रह पाप कर्तरी योग में हुआ तो भी आपको अच्छे फल नही दे पाएगा
क्योकि भाव भावेश और कारक यह सूत्र हमे याद रखना चाहिए

अब दूसरा सूत्र इनके फल देने का

अगर 28 या 28 से ज्यादा शुभ बिंदु 6.8.12 में हो और इनके स्वामी ही यही पर बैठे हो तो आपको शुभ फल प्रदान करेंगे

केंद्र त्रिकोण में शुभ बिंदु ज्यादा हो और शुभ ग्रह और योगकारक ग्रह यहाँ हो आपको बहुत बढ़िया फल देंगे वो अपना पूर्ण फल आपको देने में समर्थ है

अब आप यह भी समझे मान लीजिए शनि ने गोचर किया कुंभ में जैसे कि वो अभी कर रहा है अगर किसी की कुंडली मे यहाँ 28 या 28 से अधिक शुभ बिंदु होंगे तो गोचर का ग्रह यहाँ बढ़िया फल करेगा और शनि के भिन्नाष्टक वर्ग में अगर 4 या 4 से अधिक पॉइंट मतलब बिंदु हुए तो शनि का यह गोचर आपके लिए शुभ फल प्रदान करेगा

यह मैंने एक उदहारण दिया है ग्रह कोई भी हो यह नियम सब पर लागू है
दोस्तो अब में भावो का बताता हूँ
अगर लगन में 28 या ज्यादा शुभ बिंदु हो तो इंसान का. शरीर बढ़िया होता है उसके सोचने समझने की शक्ति अच्छी होती है वो जल्दी बीमार नही पड़ता है और बीमार हो भी जाय वो जल्दी बाहर निकल आता है उसके शरीर मे रोगों से लड़ने की शक्ति बहुत बढ़िया होती है

अगर 2 भाव मे ऐसा हो इंसान धनी होता है उसके पास पैसा बढ़िया होता है वो अपना बैंक बैलेंस बना लेता है परिवार और कुटुंब में उसको मान सम्मान बहुत मिलता है वो परिवार को पालने वाला होता है

3 भाव मे अगर ज्यादा बिंदु होंगे इंसान लड़ने मरने में तेज होगा उसमे हिम्मत बहुत होगी वो जल्दी हार नही मानता है दुख सुख में मित्रो का सहयोग उसको मिलता है

4 भाव मे अगर अच्छे बिंदु हूँ इंसान को भूमि जायदाद का सुख वाहन सुख और माँ का अच्छा मिलता है उसको सुख और शांति मिलती है

5 भाव मे अगर अच्छे शुभ बिंदु हो इंसान के अच्छे कर्मों का फल मिलता है पढ़ाई लिखाई अच्छी होती है उसको संतान बहुत बढ़िया मिलती है

6 भाव मे अच्छे शुभ बिंदु हो तो इंसान में कॉम्पटीशन जितने की ताकत होती है वो इंसान अपने दुश्मनों से दबता नही है उसकी जल्दी कोई बीमारी नही लगती है लेकिन अगर यहाँ 28 से कम बिंदु होंगे इंसान बार बार बीमार पड़ेंगे उस मे सहनशक्ति कम हो जायेगी और वो अपने दुश्मनों के आगे घुटने टेक देगा

7 भाव मे अगर अच्छे शुभ बिंदु हो शादी शुदा जीवन बढ़िया होता है उसकी आमदनी बढ़िया होती है अगर कोई सांझेदारी में काम करता है वो भी उसको फल जाता है

8 भाव मे अगर 28 या 28 से अधिक शुभ बिंदु हो इंसान की आयु लंबी होती है आध्यात्मिक होता है बीमारी जल्दी नही पकड़ती उसको

पर इससे कम बिंदु होने में आयु को हानि होती है और बार बार चोट दुर्घटना का योग
बन जाता है लंबे समय तक बीमारी चलने का योग बन जाता है

9 भाव मे 28 या ज्यादा बिंदु होने पर इंसान का भाग्य अच्छा होता है उसको पिता का सुख मिलता है वो भाग्यवान होता है

10 भाव मे अगर बिंदु होंगे अच्छे इंसान मेहनती होता है वो जहा काम करता है या अपना व्यपार करता है उसको सफलता जल्दी मिल जाती है

11 भाव मे 28 या उससे अधिक बिंदु हो तो इनकम बढ़िया होती है उसको जीवन मे सभी सुख मिलता है

12 भाव मे ज्यादा शुभ बिंदु हो इंसान बहुत खर्चीला होता है वो घूमने फिरने का शौकीन होता है

दोस्तो अब एक चीज़ आप समझ लो किसी भी भाव मे 1 से लेकर 12 तक उसमे 28 से कम बिंदु नही होने चाहिए नही तो वो भाव आपका कमजोर भाव हो जाएगा

24 से 28 होने पर वो भाव मध्य फल करेगा जिस में उस भाव का फल न बहुत अच्छा आएगा न ही बहुत बुरा
किसी भी भाव में 28 बिंदु होने जरूरी है
दोस्तो आगे देखे जितने बिंदु लगन में है उससे कम बिंदु 6.8.12 भाव में होने बहुत जरूरी है
इसका मतलब यह नही की 28 से कम हो
जैसे मान लो आपके लगन में 35 बिंदु है
और अगर 6 भाव मे 29 है
7 भाव मे 28 है
12 भाव मे 28 है यह सही होगा क्योंकि लग्न सबसे बली ताकतवर है इन सबसे ज्यादा शुभ बिंदु होने से लग्न मेरा शरीर मेरी सोच 35 बिंदु पर पूरी बली

अब मान लो
लगन में 22 है
6 में 19 है
8 में 23 है
12 में 19 है

तो आपके तीनो भाव खराब है यह आप मानकर चलिए यह घर फेल हो गए है क्योकि बिंदु 28 से कम ही है भाव तो खराब ही है
जहा भी बिंदु हो 28 या उससे अधिक ही हो
पर लगन से कम होने जरूरी है 6.8.12 में
अगर कोई ग्रह गोचर में वहा गया है जहा आपकी कुंडली में कोई उच्च ग्रह हो या कोई भी ग्रह अपने ही घर में बैठा हो वहाँ 28 से ज्यादा शुभ बिंदु हो और कोई ग्रह उच्च का ही या अपने ही घर में वहा गोचर करता है आपको बहुत बढ़िया शुभ फल प्रदान करता है

अब यह भी देख लीजिए अगर किसी भाव मे 18 या 18 से कम बिंदु होंगे और वहा कोई ग्रह बेठा होगा वो कमजोर हो जायेगा क्योकि घर कमजोर है घर मे दम नही है ग्रह जिस घर मे चला गया है उस घर मे सुख सुविधा की कमी हो गई है ग्रह अच्छा महसूस नही कर रहा है बहुत से ग्रहों को उस घर को समर्थन नही मिला है इसलिए उस भाव का फल अधिकतर खराब ही आएगा

अब किसी भाव मे 28 से 32 बिंदु है वो भाव ताक़तवर होता है

32 से अधिक बिंदु वाला भाव बहुत ज्यादा ताक़तवर भाव होता है और अगर इस भाव को शुभ दृष्टि मिल जाय और यह कोई ग्रह अपनी राशि का हो उच्च का हो केंद्र या त्रिकोण का भाव हो बहुत बढ़िया हाइट उच्चाई आपको दे जाता है
अब यह भी देखो
9 भाव में ज्यादा बिंदु हो 10 में कम और 11 में ज्यादा

तो इंसान का भाग्य तेज होता है उसको मेहनत कम करनी पड़ती है और लाभ अच्छा मिलता है पर कैसे देखिए

भाग्य में ज्यादा होने की वजह से भाग्य मजबूत हो गया 10 में कम होने की वजह से मेहनत कम हो गई और लाभ में ज्यादा होने की वजह से इनकम बढ़ गई मेहनत कम और लाभ अधिक

पर एक चीज़ फिर याद रखना 28 से कम बिंदु नही होने चाहिए नही तो भाव खराब ही माना जाएगा

समझिए
9 में 30 हो
10 में 28
11 में 44

तो भाग्य मजबूत है
मेहनत कम
लाभ ज्यादा
28 तो चाहिए ही चाहिए जैसे कि पेपर में 100 नम्बर का पेपर होता है और 33 नम्बर लाने वाला पास माना जाता है
इस तरीके से 28 नम्बर वाला भाव पास माना जाता है
जिसकी कुंडली मे 2 भाव और 11 भाव मे 28 या उससे अधिक बिंदु होते है वो इंसान पैसा बना लेता है इनकम बढ़िया कर लेता है पैसा जोड़ लेता है और सभी सुख अपने पूरे कर लेता है
अब यह भी देखो अगर 11 से ज्यादा 12 भाव मे बिंदु होंगे तो इंसान आमदनी से ज्यादा पैसे को खर्च करेगा

लगन से नवम में ज्यादा शुभ बिंदु हो तो इंसान भाग्यवान माना जाता है उसका भाग्य उसका बहुत साथ देता है
जहा आपका लग्न है
जहा आपका चंद्रमा है
और जहा भी आपका सूर्य है
मेरा मतलब कहने का लग्न चंद्र लग्न और सूर्य लग्न
अगर यहां 28 या उससे अधिक शुभ बिंदु हो तो इंसान बेशक गरीब घर मे पैदा हो पर अपनी मेहनत से अपनी लगन से एक दिन जीवन में सब कुछ हासिल कर लेता है उसकी मेहनत उसको जीवन मे बहुत उच्चाई दे जाती है

मित्रो पोस्ट बहुत लंबी हो जाएगी और में लिखते लिखते थक भी गया
यह असल मे बहुत बड़ा विषय है जिसको समझने में लिए 10 से 12 पोस्ट लग जाएगी
क्योकि कोई भी ग्रह कैसे किस भाव को शुभ बिंदु देता है गोचर में कैसे देता है भिन्नष्ठकवर्ग} में कैसे मिलते है
यह सब लिखना मेरे लिए मुमकिन नही है
यहाँ अगर आप इतना ही समझ गए तो बहुत कुछ सीख जाओगे

26/04/2023
31/12/2022

《 मंगल और शुक्र की युति खराब कब किंतु क्यु 》
《 𝐌𝐀𝐑𝐒 𝐕𝐄𝐍𝐔𝐒 𝐂𝐎𝐍𝐉𝐔𝐍𝐂𝐓𝐈𝐎𝐍 》
《 𝐋𝐎𝐒𝐄~𝐏𝐑𝐎𝐅𝐈𝐓 𝐃𝐄𝐄𝐏 𝐀𝐍𝐀𝐋𝐒𝐘𝐒 》

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मंगल और शुक्र की युति को अधिकतर लोग गलत नजरिए से देखते है जोकि गलत है। यह कुछ मामलों में खराब अवश्य हो सकती है किंतु मंगल आप स्वयं हो और शुक्र आपकी पत्नी है और दोनो की युति होना खराब कैसे हो सकता है? यह युति पति और पत्नी के प्रति प्रेम और आकर्षण बनाए रखती है। दोनो ग्रहों की डिग्री देखे और पति के लिए शुक्र की डिग्री अधिक और पत्नी के लिए मंगल की डिग्री अधिक होना अच्छा होता है। इन ग्रहों की युति को शिव पार्वती योग भी कहा जाता है। आइए हम जानने का प्रयास करते है की किस मामले में यह युति खराब हो सकती है ।

यदि इन दोनो की युति का संबंध राहु या चंद्रमा से हो ,या तो उसके त्रिकोण में,सप्तम में या युति में हो तो संदेहात्मक हो जाता है अर्थात राहु अलग कल्चर,भ्रम ,किसी बाहरी व्यक्ति और चंद्रमा इमोशन को दर्शाता है तो भावनाओ में आकर या भ्रम में आकर गलत कदम उठा सकते है। लेकिन यदि आपकी कुंडली में गुरु और शनि अच्छी स्थिति में है या गुरु की भी दृष्टि है या गुरु का प्रभाव है तो आप गलत कदम नहीं उठा पाएंगे। संबंध जरूर रह सकते है किंतु गलत कदम नहीं उठा सकते क्युकी आपके संस्कार ऐसा नहीं करने देंगे।

किसी भी जातक की कुंडली में मंगल और शुक्र की युति जातक को विषय वासना की ओर आकर्षित करती है लेकिन इनकी युति से जातक धनी मानी भी होता है जातक के पास भूमि भवन वाहन आदि भौतिक सुख सुविधा उपलब्ध होती है. इस युति वाले अपने वैवाहिक जीवन को ख़ुशहाल रखने के लिए बहुत प्रयास करते है और सुखद वैवाहिक जीवन इनका पहला लक्ष्य होता है दोनों ग्रहों मे से एक भी स्वग्रही ओर उच्च का हुआ तोब्रह्तेर परिणाम मिलेंगे । धन की इनको चिंता नही होती मुख्य लालसा एक सुखद जीवन जीने जीवनसाथी का पूर्ण सहयोग प्राप्त काना होता है जो अंततः इनको मिलता ही

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26/12/2022

राहु पर शोध Research On Rahu

जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव का कारक है राहु

आमतौर पर जीवन में राहु की महादशा जबरदस्त बदलाव को लेकर आती है राहु की महादशा में जीवन में ऐसी ऐसी घटना होती है जिसके बारे में जातक कभी सोच भी नहीं सकता

कभी अर्श तो कभी फर्श ...

कभी धूप तो कभी छांव ..

कभी चमकती हुई धूप.... तो कभी घटा काली अंधेरी रात.....

जीवन में सब कुछ सामान्य सा चल रहा है और अचानक जीवन में जबरदस्त मोड़ आ गई हो तो समझे की ये राहु की महादशा का कमाल है....

बिल्कुल सामान्य सा एक जातक जब अचानक ही बहुत बड़ी कामयाबी हासिल कर ले तो समझ ले यह राहु का कमाल है...

ऐसा असंभव लक्ष्य जो हासिल करने का सपने में भी ना सोचे वह कोई हासिल करके दिखा दे तो यह राहु का कमाल है...

जब तक आप किसी काम को करने का सोच रहे हो, कि ये काम करना चाहिए और तब तक अगर कोई उस काम को कर बैठे तो यही राहु है....

जीवन में वह घटना जो अचानक घटती है सब का कारक राहू है

पूरे राजनीतिक जगत पर राहु का प्रभाव है...

इसका मिसाल ऐसा समझे की कोई एक ही पद हो और उसमें 10 प्रबल दावेदार हो, और सभी योग्य हो और यहां अगर भाग्य का मामला हो तो उसमें जीतेगा वही जातक जिसका राहु प्रबल हो...

एक झटके में आसमान सी ऊंचाई और कभी जमीनदोज यही राहु है

स्वर्ग का नजारा भी राहु है... और जहन्नम का कष्ट भी राहु ही है

अगर स्वस्थ और दीर्घायु शरीर राहु है तो असाध्य रोग भी राहु ही है

डॉक्टरी शिक्षा का कारक भी राहू है

सफल ज्योतिष बनने की का योग भी राहु के ही कारण होता है

आपको पता होना चाहिए कि वायुयान की यात्रा का कारक भी राहु है

मिसाल आपको दिल्ली से मुंबई जाना हो अगर आप रेल की यात्रा करेंगे तो आपको 18 से 20 घंटे लगेंगे

वहीं अगर आप वायुयान की यात्रा करेंगे तो शॉर्टकट तरीका से वायुयान आपको महज 2 घंटे में दिल्ली से मुंबई पहुंचा देगा

जब आप वायुयान की यात्रा कर रहे होते हैं तो बादल के ऊपर अकेला जहाज आसमान को चीरता हुआ अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचता है पूरा वायुयान यात्रा का कांसेप्ट ही राहु है

अगर कोई व्यक्ति लखपति हो तो या अन्य ग्रह का आशीर्वाद है

पर अगर कोई व्यक्ति हजार करोड़ का मालिक हो तो केवल राहु के द्वारा ही संभव है

आपको पता होना चाहिए कि सेल्स टैक्स और इनकम टैक्स का कारक भी राहु ही है

कोई भी खिलाड़ी जो किसी विश्वकप को जीतता है और महान सफलता अर्जित करता है वह सफलता जो इतिहास के पन्नों में दर्ज है आप यकीन मानिए उस खिलाड़ी की महादशा राहु की महादशा चल रही होती है

राहु पहले असफलताओं से बुरी तरीका से तोड़ देता है

इतनी असफलता देता है जिससे इंसान थक कर आत्महत्या कर ले

पर जब इंसान लगे रहे.. डटे रहे..
तो यहीं राहू इतिहास को रच देने वाली सफलता दे देता है

वह सफलता जो अमर हो जाती है....

वह सफलता जो आपके जाने के बाद भी आपको याद रखी जाती है... यानी इंसान के मरने के बाद भी अमर बना देने वाली सफलता का कारक ही राहु है....

वह किताब जो उल्टी पढ़ी जाती है, वह भाषा जो उल्टी लिखी जाती है उर्दू अरबी भाषा पर राहु का प्रभाव है...

राहु कभी परिश्रम नहीं कराता.... अगर कुंडली में राहु शुभ है तो बगैर परिश्रम कराए ऐसी व्यवस्था बना देता है कि जातक बैठे-बैठे इतना धन कमाता है कि मेहनत करने वाले भी उतना नहीं कमा पाते...

राहु से बड़ा शिक्षित कोई नहीं..

राहु से बड़ा धनवान भी कोई नहीं...

राहु से बड़ा व्यापारी भी कोई नहीं है..

राहुल से बड़ा संगीतकार भी कोई नहीं....

राहुल से बड़ा तांत्रिक भी कोई नहीं..

यानी लक्ष्मी सरस्वती सभी राहु के पास है

कुंडली में राहु अगर पंचमेश के नक्षत्र में बैठा हो तो फिर राहु से बारा ज्ञानी कोई नहीं यानी ऐसा जातक आईआईटी का शिक्षा लेता है

कुंडली में अगर राहु धनेश या लाभेश के नक्षत्र में बैठा हो तो फिर इससे बड़ा धनवान कोई नहीं उच्च कोटि का व्यापारी बनाता है और अरबों खरबों का मालिक बना देता है

राहु का संबंध अगर भाग्येश से हो या राहु भाग्येश के नक्षत्र में हो तो फिर यह उच्च कोटि का खिलाड़ी बना देता है या सेलिब्रिटी बना देता है और देश-विदेश में नाम कमाता है

राहु का संबंध अगर दशमेश से हो या दशमेश के नक्षत्र में हो तो अपने महादशा में class-A ऑफिसर की सरकारी नौकरी भी दे देता है

राहु की महादशा में बुध की अंतर्दशा और राहु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा में जातक अपने क्षेत्र में रिकॉर्ड सफलता अर्जित करता है...

पर यही राहु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा और राहु की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा प्रचुर मानसिक तनाव का कारक भी होता है

सबसे ज्यादा मानसिक तनाव देने वाली राहु की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा होती है

कलयुग में राहु का ही प्रभाव है, पिज़्ज़ा बर्गर मैदा से बने सामान तले भुने समान एसिडिटी, इलेक्ट्रॉनिक सामान, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी , हाथ में रखने वाले Android Mobile सब का कारक राहू है

व्यर्थ का वार्तालाप जो सुबह से चलकर शाम तक चले और उस बात का कोई हल भी ना निकले इसका कारक राहु है

किसी धर्म का मुनाजरा जिसमें दोनों पक्ष अपने बातों को सही बोले पर अंततः उसका कोई हल ना निकले इसका कारक भी राहु है

इसके ठीक उल्टा कोई ऐसा बात जो किसी चीज का नीव रख दें और वह नींव जो इतिहास को रच दें इसका कारक भी राहु है

न्यूटन पेड़ के नीचे सोए थे एक सेव नीचे गिरा अब कोई पागल इंसान ही इस पर रिसर्च करेगा कि सेव नीचे क्यों गिरा और आसमान में क्यों नहीं गया...पर यही पागलपन ने Law Of Gravitation की खोज कर दी यही राहु है

पूरे के पूरे शेयर मार्केट पर राहु का प्रभाव है..

मिथुन राशि पर राहु सबसे ज्यादा बली होकर शुभ फल देता है

ग्राम का मुखिया.. जिला का मुखिया.. देश का मुखिया... सभी राहु के ही संचालन में है

अगर आप भी जीवन में कुछ अलग हटके करना चाहते हैं या जीवन में कुछ ऐसा इतिहास रचना चाहते हैं जो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा हो तो यकीनन इसके लिए आपकी कुंडली में राहु का बलवान होना परम आवश्यक है....

19/11/2022

कालभैरव :-

भैरव (शाब्दिक अर्थ- भयानक) एक देवता हैं जो शिव के रूप हैं। इनकी पूजा भारत और नेपाल में होती है। हिन्दू और जैन दोनों भैरव की पूजा करते हैं। भैरवों की संख्या ६४ है। ये ६४ भैरव भी ८ भागों में विभक्त हैं।

कोलतार से भी गहरा काला रंग, विशाल प्रलंब, स्थूल शरीर, अंगारकाय त्रिनेत्र, काले डरावने चोगेनुमा वस्त्र, रूद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड और काले कुत्ते की सवारी - यह है महाभैरव, अर्थात् मृत्यु-भय के भारतीय देवता का बाहरी स्वरूप।

उपासना की दृष्टि से भैरव तमस देवता हैं। उनको बलि दी जाती है और जहाँ कहीं यह प्रथा समाप्त हो गयी है वहाँ भी एक साथ बड़ी संख्या में नारियल फोड़ कर इस कृत्य को एक प्रतीक के रूप में सम्पन्न किया जाता है। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है।

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में एक राग का नाम इन्हीं के नाम पर भैरव रखा गया है।

कालभैरव की पूजाप्राय: पूरे देश में होती है और अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग नामों से वह जाने-पहचाने जाते हैं। महाराष्ट्र में खण्डोबा उन्हीं का एक रूप है और खण्डोबा की पूजा-अर्चना वहाँ ग्राम-ग्राम में की जाती है। दक्षिण भारत में भैरव का नाम शास्ता है। वैसे हर जगह एक भयदायी और उग्र देवता के रूप में ही उनको मान्यता मिली हुई है और उनकी अनेक प्रकार की मनौतियां भी स्थान-स्थान पर प्रचलित हैं। भूत, प्रेत, पिशाच, पूतना, कोटरा और रेवती आदि की गणना भगवान शिव के अन्यतम गणों में की जाती है।

दूसरे शब्दों में कहें तो विविध रोगों और आपत्तियों विपत्तियों के वह अधिदेवता हैं। शिव प्रलय के देवता भी हैं, अत: विपत्ति, रोग एवं मृत्यु के समस्त दूत और देवता उनके अपने सैनिक हैं। इन सब गणों के अधिपति या सेनानायक हैं महाभैरव। सीधी भाषा में कहें तो भय वह सेनापति है जो बीमारी, विपत्ति और विनाश के पार्श्व में उनके संचालक के रूप में सर्वत्र ही उपस्थित दिखायी देता है।

‘शिवपुराण’ के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।

कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी।

रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी 'काल' का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग कालभैरव की उपासना करते हैं।

ऐसा भी कहा जाता है की ,ब्रह्मा जी के पांच मुख हुआ करते थे तथा ब्रह्मा जी पांचवे वेद की भी रचना करने जा रहे थे,सभी देवो के कहने पर महाकाल भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी से वार्तालाप की परन्तु ना समझने पर महाकाल से उग्र,प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए और उन्होंने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा जी की का पांचवा मुख काट दिया, इस पर भैरव को ब्रह्मा हत्या का पाप भी लगा।

कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।

तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है –

असितांग-भैरव,रुद्र-भैरव,चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव,भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव।

कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी,महाभैरव,,संहार भैरव,असितांग भैरव,रुद्र भैरव,कालभैरव,क्रोध भैरव ताम्रचूड़ भैरव तथा चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है।

इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है -

भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥

ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। किसी भी देवता के ध्यान में केवल निर्विकल्प-भाव की उपासना को ही ध्यान नहीं कहा जा सकता। ध्यान का अर्थ है - उस देवी-देवता का संपूर्ण आकार एक क्षण में मानस-पटल पर प्रतिबिम्बित होना। श्री बटुक भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है।

जहां सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें काशी का काल भैरव मंदिर सर्वप्रमुख माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है।

तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है।

इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। जयगढ़ के प्रसिद्ध किले में काल-भैरव का बड़ा प्राचीन मंदिर है जिसमें भूतपूर्व महाराजा जयपुर के ट्रस्ट की और से दैनिक पूजा-अर्चना के लिए पारंपरिक-पुजारी नियुक्त हैं। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के ग्राम अदेगाव में भी श्री काल भैरव का मंदिर है जो किले के अंदर है जिसे गढ़ी ऊपर के नाम से जाना जाता है।

कहते हैं औरंगजेब के शासन काल में जब काशी के भारत-विख्यात विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया गया, तब भी कालभैरव का मंदिर पूरी तरह अछूता बना रहा था। जनश्रुतियों के अनुसार कालभैरव का मंदिर तोड़ने के लिये जब औरंगज़ेब के सैनिक वहाँ पहुँचे तो अचानक पागल कुत्तों का एक पूरा समूह कहीं से निकल पड़ा था। उन कुत्तों ने जिन सैनिकों को काटा वे तुरंत पागल हो गये और फिर स्वयं अपने ही साथियों को उन्होंने काटना शुरू कर दिया।

बादशाह को भी अपनी जान बचा कर भागने के लिये विवश हो जाना पड़ा। उसने अपने अंगरक्षकों द्वारा अपने ही सैनिक सिर्फ इसलिये मरवा दिये किं पागल होते सैनिकों का सिलसिला कहीं खु़द उसके पास तक न पहुँच जाए।

भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही प्रतीकवादी रही है और यहाँ की परम्परा में प्रत्येक पदार्थ तथा भाव के प्रतीक उपलब्ध हैं। यह प्रतीक उभयात्मक हैं - अर्थात स्थूल भी हैं और सूक्ष्म भी। सूक्ष्म भावनात्मक प्रतीक को ही कहा जाता है -देवता। चूँकि भय भी एक भाव है, अत: उसका भी प्रतीक है - उसका भी एक देवता है और उसी भय का हमारा देवता हैं- महाभैरव।

कालभैरव जयन्ती बुधवार, नवम्बर 16, 2022

अष्टमी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 16, 2022 - 05:49 am

अष्टमी तिथि समाप्त - नवम्बर 17, 2022 - 07:57 am

।। आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो ।।

🙏 धन्यवाद 🙏

14/08/2022

🌹🌹🌹🌹🌹
जन्म कुंडली और नवमांश कुंडली में अगर दशम भाव का स्वामी चर राशि
अर्थात मेष राशि/कर्क राशि/तुला राशि/या मकर राशि
इन राशियों में बलवान होकर बैठा हो
तो ऐसे जातक विशेष सफलता पाने के लिए और उसी सफलता के साथ खुशहाली चाहता है
तो ऐसे जातकों को विदेश जाना चाहिए
अपने जन्म स्थान से दूर जाकर ही उसे सफलता प्राप्त होगी

09/07/2022

सप्तम भाव के ग्रहों से जाने पत्नी का व्यवहार
सूर्य-चंद्रमा
सूर्य : स्त्री की कुंडली के सप्तम भाव में यदि सूर्य हो तो वह दुष्ट स्वभाव की होती है। उसका स्वर कर्कश होता है और हमेशा लड़ने के लिए तैयार रहती है। इस स्वभाव के कारण स्त्री पति के प्रेम से वंचित रह जाती है।
चंद्रमा: सप्तम भाव में चंद्रमा हो तो स्त्री का स्वभाव मधुर होता है। उसमें लाज-शर्म होती है। यदि सप्तम भाव का चंद्रमा वृषभ राशि में हो तो स्त्री को वस्त्र, आभूषण पहनने का शौक होता है और वह रूपवान होती है।
मंगल
सप्तम का मंगल स्त्री को सौभाग्यहीन बनाता है। ऐसी स्त्री बुरे लोगों की संगत में रहती है और बुरे कर्म करती है। सप्तम स्थान में कर्क या सिंह राशि हो तथा मंगल के साथ शनि भी हो तो स्त्री के कई पुरुषों के साथ संबंध होते हैं। हालांकि इसके पास धन प्रचुर मात्रा में होता है।
बुध
स्त्री की कुंडली में सप्तम स्थान में बुध हो तो उसके पास बड़ी मात्रा में आभूषण होते हैं। बोलचाल की भाषा मधुर होती है। मिलनसार होती है और पति की प्यारी होती है। इस स्थान में बुध यदि उच्च राशि का हो तो स्त्री लेखिका, धनी और अनेक प्रकार के ऐश्वर्य भोगने वाली होती है।
गुरु-शुक्र
गुरु: बृहस्पति के कारण स्त्री पतिव्रता, धनवान, गुणवान और सुखी होती है। सप्तम स्थान में गुरु हो और चंद्रमा कर्क राशि में हो तो नारी सौंदर्य से भरपूर होती है। पुरुष इनके आकर्षण में बंधा रहता है।
शुक्र: सप्तम स्थान में शुक्र हो तो स्त्री को श्रेष्ठ गुणों वाला सुंदर, धनवान और कामकला में निपुण पति मिलता है। ऐसी स्त्री भी स्वयं सुंदरता की मिसाल होती है। इसके बाल लंबे, गौर वर्ण और नेत्र तीखे होते हैं।
शनि, राहु-केतु
शनि: सप्तम स्थान का शनि स्त्री की कुंडली में हो तो उसका पति रोगी, दरिद्र, व्यसनी, निर्बल होता है। यदि शनि तुला राशि में हो तो वह उच्च का होता है। उच्च का शनि पति धनवान, गुणवान, शीलवान होता है।
राहु या केतु: कुंडली के सप्तम भाव में राहु या केतु हो तो ऐसी स्त्री अपने कुल पर दोष लगाने वाली होती है। सदा दुखी रहती है तथा पति के सुख से वंचित होती है। ऐसी स्त्री का स्वभाव कड़ा होता है। किसी से उसकी ठीक से नहीं बनती।

07/07/2022

सूर्य से बनने वाले योग
1 – वेशी योग
यदि सूर्य से द्वितीय भाव में इन पांच ग्रहों में से कोई एक या अधिक ग्रह ही तो वेशी योग बनता है।

फल – सैम दृष्ट, सत्यवक्ता, दीर्घ देह, अलसी, सुखी और धनि होता है ।

शुभ वेशी- देखने में सूंदर,सुखी,गुणवान, धीर, धार्मिक, अनेक व्यक्तिओं पर राज करने वाला (शुक्र,बुध,बृहस्पति)

अशुभ वेशी – अन्याय से दुसरो की निंदा करने वाला, कान्तिहीन, छोटो लोगो की संगती करने वाला, स्वयं दुर्बल हो ।



2 – वाशी योग


सूर्य से द्वादश भाव में इन पांच ग्रहों में से कोई एक या अधिक ग्रह हो तो वाशी बनेगा (मंगल,बुध,गुरु,शुक्र,शनि)

शुभ वाशी – कार्य में निपूर्ण, दानी, यश, विद्या, बल से युक्त, अतिसुन्दर, दाता, राजा का प्रिय, अच्छी position वाला, विख्यात,सभी का प्रिय (बृहस्पति,शुक्र,बुध पाप संग रहित बली)

अशुभ वाशी – जब सूर्य से द्वादश में अशुभ ग्रह होंगे तो अशुभ वाशी बनेगा (मंगल, शनि, राहु, केतु, बुध पाप संग सहित) दूसरोंकी निंदा करने वाला, मायावी, दुष्टों का मित्र, स्वयं बुरा आचरण करने वाला किन्तु शास्त्रों की दुहाई देने वाला ।

3 – उभयचारी


जब सूर्य से द्वितीय और द्वादश में इन पांच ग्रहों में से कोई ग्रह हो तो उभयचारी योग होता है । राजा या राजा तुल्य सुखी होता है।

शुभ उभयचारी – जातक अच्छा वक्ता, प्रिय वचन बोलने वाला, यशस्वी, धनी, सबको प्रसन्न करने वाला ।

अशुभ उभयचारी – जातक विद्याहीन, भाग्यहीन, धनहीन, चित सदैव दुखी रहता है,अपकीर्ति और निंदा प्राप्त होती है।

4 – बुधादित्य योग


सूर्य और बुद्धजाब एक ही भाव में स्थित हो तो बुधादित्य योग बनता है।

फल – इसमें उत्पन्न जातक बुद्धिमान, विद्वान, यशस्वी, शक्तिशाली, सदैव उन्नतिशील, सिद्धांत प्रिय होता है।

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