18/06/2021
बीड के रियल हीरो,जिसकी खेल क्षमताओं को मूंदी और खंडवा में बहुत ही हसरत से देखा जाता था तथा जिसके कारण खेल जगत में आसपास के पूरे क्षेत्र में बीड को सम्मान मिलता रहा था।सिर्फ यही नहीं बीड में कई वॉलीबाल, क्रिकेट,कबड्डी,खोखो के अच्छे खिलाड़ी सिर्फ स्वर्गीय मोहनलाल अग्रवाल के मार्गदर्शन में पैदा हुए हैं।
कम से कम खेलों के मामले में अभी तक तो मोहन भैय्या(यही उनका निक नेम था) कोई व्यक्तित्व बीड में नहीं जन्मा है।
क्रिकेट,वॉलीबाल, कबड्डी,खो खो,केरम, चेस हो या बैडमिंटन ,100 मीटर दौड़ हो या लंबी कूद मोहन भैय्या हर खेल में बीड ही नहीं आसपास के क्षेत्रों में भी टॉप पर रहते थे।इस प्रकार अनेकों अलग प्रकार के खेलों में उच्च कोटि की प्रतीभा रखना उनको विशेष इंसान का दर्जा देता है।वे एक जन्मजात उच्च कोटि के एथलीट थे।शायद सही मार्गदर्शन और प्लेटफार्म मिल जाता तो वे राष्ट्रीय स्तर पर अवश्य नाम कमाते।
*गिर जाओ,पड़ जाओ या मर जाओ पर अपना पॉइंट मत जाने दो*,यह मोहन भैय्या का मूल मंत्र था।
मुझे गर्व है कि मैं वालीबाल,क्रिकेट,हॉकी,फुटबाल व कबड्डी आदि खेलों में उनके शिष्य के समान था और हम दोनों साथ में वॉलीबाल खेलने जाते थे और आते थे।हम दोनों इतना साथ रहते थे कि कुछ मित्रों ने उनके मोहन लाल के नाम के साथ हमारा नाम सोहनलाल कर दिया था।
क्रिकेट में बैट्समैन, फील्डिंग और फ़ास्ट बोलिंग में उनका मुकाबला नहीं।वॉलीबाल में सेंटर प्लेयर बनकर पूरा ग्राउंड इस तरह कवर करते थे कि मानो नेटर के अलावा बाकी चारों प्लेयर की आवश्यकता ही नहीं होती थी।जब वे वॉलीबाल खेलते थे तो रेफरी बने तिवारी सर इतना तन्मय होकर उनका गेम देखने लगते थे कि खुद सर रेफरी वाली सिटी बजाना भूल जाते थे।
ऐसा खिलाड़ी और खेल गुरु पाकर बीड धन्य हो गया था और बीड व बीड वासियों को ऐसा धरती पुत्र पाकर हमेशा गर्व होता रहेगा।
कम से कम बीड़ के दृष्टिकोण से तो मोहन भैय्या भूतो न भविष्यति की श्रेणी में आते है।
वास्तव में वे बीड की खेल जगत की आत्मा थे।जैसे जैसे उम्र व अन्य कारणों से मोहन भैय्या ने खेलना कम किया बीड में खेल कम होता चला गया।और शायद उनके खेलना बन्द करने के कारण बीड में खेलों की स्थिति दयनीय और मृतप्रायः सी है।
उन्होंने हम सभी को इतना अच्छा खेलना सिखाया था कि हम लोग स्कूल गेम्स की वॉलीबाल में सन 1975 व 1976 में जिला चेम्पियन थे तथा 1975 में तो संभाग में उपचेम्पियन याने सिल्वर मेडलिस्ट थे।कालेज आने पर पूरे पांचों साल हमारी टीम कालेज चेम्पियन रही ऐसा वॉलीबाल उन्होंने मुझे सिखाया था।बाद में उनकी प्रेरणा से जो मजबूत शरीर व स्टेमिना मैने बनाई थ