श्री कनिष्क ज्योतिष & कर्मकांड सेवा केंद्र डेगाना

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बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थ...
15/07/2025

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं।
क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?

आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई।

वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए।
यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं। आप इस श्लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं।
यह श्लोक इस प्रकार है –

अनायासेन मरणम्,
बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्,
देहि मे परमेश्वरम्।।

इस श्लोक का अर्थ है :
●अनायासेन मरणम्... अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।

● बिना देन्येन जीवनम्...
अर्थात् परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो। ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके।

●देहांते तव सानिध्यम...
अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।

●देहि में परमेशवरम्....
हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना।

यह प्रार्थना करें.....
गाड़ी, लाडी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन – यह नहीं माँगना है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं।
इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए।

यह प्रार्थना है, याचना नहीं है। याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो माँग की जाती है वह याचना है वह भीख है।

हम प्रार्थना करते हैं प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात् विशिष्ट, श्रेष्ठ। अर्थना अर्थात् निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है, यह श्लोक बोलना है।

े_जरूरी_बात –
जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आँखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए। उनके दर्शन करना चाहिए।
कुछ लोग वहाँ आँखें बंद करके खड़े रहते हैं। आँखें बंद क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं। भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, श्रृंगार का, संपूर्णानंद लें। आँखों में भर लें स्वरूप को। दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना। बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें। नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

यही शास्त्र है...
यही बड़े बुजुर्गो का कहना है!!

शास्त्री अनिल कुमार ईंदौरिया पालड़ी कलां डेगाना ।नागौर राजस्थान

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥👉गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो मह...
09/07/2025

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
👉गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परम्ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
🔴गुरुर्ब्रह्मा:
गुरु ब्रह्मा के समान हैं, जो सृष्टि के रचयिता हैं।
गुरुर्विष्णु:
गुरु विष्णु के समान हैं, जो सृष्टि का पालन करते हैं।
गुरुर्देवो महेश्वरः:
गुरु महादेव के समान हैं, जो सृष्टि का संहार करते हैं।
गुरुः साक्षात्परं ब्रह्म:
गुरु साक्षात परब्रह्म हैं, जो परम सत्य और ज्ञान का प्रतीक हैं।
तस्मै श्रीगुरवे नमः:
उन श्रीगुरु को मेरा नमस्कार है।
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।

जगत गुरु ब्राह्मण, ब्राह्मण गुरु सन्यासी, सन्यासी गुरु अविनाशी" यह वाक्य एक आध्यात्मिक क्रम को दर्शाता है। इसका अर्थ है कि ब्राह्मण जगत के गुरु हैं, ब्राह्मणों के गुरु संन्यासी हैं, और संन्यासियों के गुरु अविनाशी (ईश्वर) हैं.
यह एक प्रसिद्ध कहावत है जो हिंदू धर्म में गुरु-शिष्य परंपरा और आध्यात्मिक ज्ञान के विकास के क्रम को दर्शाती है.
जगत गुरु ब्राह्मण:
इस भाग का अर्थ है कि ब्राह्मणों को जगत का गुरु माना जाता है, क्योंकि वे ज्ञान और वेदों के ज्ञाता होते हैं, और लोगों को सही मार्ग दिखाते हैं.
ब्राह्मण गुरु सन्यासी:
इस भाग का अर्थ है कि ब्राह्मणों को भी एक गुरु की आवश्यकता होती है, जो संन्यासी होता है। संन्यासी वे होते हैं जिन्होंने सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया है और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में लगे हैं.
सन्यासी गुरु अविनाशी:
इस भाग का अर्थ है कि संन्यासियों का गुरु अविनाशी (ईश्वर) है। अविनाशी का अर्थ है जो कभी नष्ट नहीं होता, अर्थात ईश्वर.
यह क्रम बताता है कि ज्ञान का विकास एक क्रमिक प्रक्रिया है, और हर स्तर पर एक गुरु की आवश्यकता होती है, जो अंतिम गुरु, ईश्वर तक पहुंचने में मदद करता है.

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23/06/2025

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