14/07/2024                                                                            
                                    
                                                                            
                                            वार्ट्स या मस्से होम्योपैथिक की मोनोपोली मानी जाती है और ये पूरी तरह सत्य भी है।मुश्किल तब होती है जब लोग थूजा नामक दवा को ही एकमात्र दवा मस्से के लिए समझ अपनी तरफ से किसी भी potency में लेना शुरू कर देते हैं।और फर्क न पडने पर होम्योपैथी के ही विरुद्ध फतवा जारी कर देते हैं।अरे भाई,जिसविधा का आप abcd नही जानते ,जिसकी philosophy आप नही समझते ,दवा के सिलेक्शन के सिद्धांत नही जानते फिर भी साधिकार उसे अवैज्ञानिक और pseudopathy सिद्ध करने में लग जाते हैं।
  निस्संदेह थूजा वार्ट्स की एक प्रभावशाली दवा है परंतु दवा के चुनाव के सिद्धांत पर खरे उतरने के बाद ही ।अन्यथा कॉस्टिकम,antimcrud,dulcamara, नेट्रम म्योर,इत्यादि अनेकों दवाओं से मस्से ठीक होते देखे ,सुने और किये हैं मैंने।
मजे की एक बात बताऊँ मुझे होम्योपैथी के रास्ते पर डालने वाली घटना भी एक मस्से से ही जुड़ी है।मेरे पिताजी उस समय देवरिया में पोस्टेड थे ,हम लोग जिन्होंने तत्कालीन प्रचलन के अनुसार अपनी शिक्षा सरकारी स्कूलों में पिताजी के ट्रांसफर के अनुसार जगह बदल बदल कर प्राप्त की तो मैंने वहां सरकारी बालिका विद्यालय कस्तूरबा GGIC से इंटर 2nd ईयर में एडमिशन लिया। वहीं से बाद में मेडिकल के लिए CPMT भी दिया जिसमें मुझे होम्योपैथी में एडमिशन मिला असंतुष्ट थी,दिमाग मे सपने थे सर्जन बनने के उम्र भी कुछ खास नही थी ।तो ये तय पाया कि अगले साल फिर इम्तिहान दिया जाएगा तब तक के लिए एडमिशन ले लेते हैं जो मिला है।इसी बीच मे मेरी दाहिनी पलक के ऊपर एक छोटा मास्सा निकल आया और धीरे धीरे बढ़ने लगा ।एक तो लड़की ऊपर से ससमने दिखता ये मस्सा सर्जरी का विकल्प भी इतना आसान नही समझ आ रहा था आखिर आंख का मामला था।उस समय राघव नगर जहां हमरहते थे एक होम्योपैथी के डॉ साहब रहते थे डॉ BNRay  sahb ये हुआ कि उनसे दवा ले ली जाए फिर सोचेंगे।दवा ली गयी एक खुराक ले ली रोज वाली दवा खाई तो खाई या नही खाई ये भी याद नही।परन्तु एक दिन अचानक एक हफ्ते के अंदर ही जहां मास्सा था उधर दिमाग गया,फिर हाथ भी परन्तु वो तो था ही नही।हम सब को बेहद हैरानी हुई और संतोष भी और उसके बाद मैंने भी संतुष्ट मन से होम्योपैथी को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाने का फैसला पूरे मन से लिया ।यही डॉ RAY गोरखपुर जिला अस्पताल में मेरी पोस्टिंग के दौरान मेरे जिला होम्यो अधिकारी भी रहे ।तब उनको मैंने इस घटना का जिक्र करते हुए धन्यवाद भी ज्ञापित किया।
 तो भाई होम्योपैथी है तो कुछ भी संभव है ये मेरा मानना है।