प्रो. अनिल खिगवान

प्रो. अनिल खिगवान ��विद्या धनं सर्वधनप्रधानम्��
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*(1)* *सुन्दरकाण्ड का पाठ :~*ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी से जुड़ा कोई भी मंत्र या पाठ अन्य किसी भी मंत्र से अधिक शक्तिशाल...
25/07/2025

*(1)* *सुन्दरकाण्ड का पाठ :~*
ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी से जुड़ा कोई भी मंत्र या पाठ अन्य किसी भी मंत्र से अधिक शक्तिशाली होता है। हनुमान जी अपने भक्तों को उनकी उपासना के फल में बल और शक्ति प्रदान करते हैं।

*(2)* *सुन्दरकाण्ड के फायदे :~*
लेकिन आज हम विशेष रूप से सुंदरकांड पाठ के महत्व और उससे मिलने वाले लाभ पर बात करेंगे। भक्तों द्वारा हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए अमूमन हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है। हनुमान चालीसा बड़े-बूढ़ों से लेकर बच्चों तक को जल्दी याद हो जाता है।
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*(3)* *हनुमान चालीसा :~*
लेकिन हनुमान चालीसा के अलावा यदि आप सुंदरकांड पाठ के लाभ जान लेंगे तो इसे रोजाना करना पसंद करेंगे। हिन्दू धर्म की प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त की मनोकामना जल्द पूर्ण हो जाती है।
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*(4)* *सुंदरकांड अध्याय :~*
सुंदरकांड, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस के सात अध्यायों में से पांचवा अध्याय है। रामचरित मानस के सभी अध्याय भगवान की भक्ति के लिए हैं, लेकिन सुंदरकांड का महत्व अधिक बताया गया है।
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*(5)* *सुंदरकांड पाठ का महत्व :~*
जहां एक ओर पूर्ण रामचरितमानस में भगवान के गुणों को दर्शाया गया है, उनकी महिमा बताई गई है लेकिन दूसरी ओर रामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। इसमें भगवान राम के गुणों की नहीं बल्कि उनके भक्त के गुणों और उसकी विजय की बात बताई गई है।
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*(6)* *हनुमान पाठ के लाभ :~*
सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त को हनुमान जी बल प्रदान करते हैं। उसके आसपास भी नकारात्मक शक्ति भटक नहीं सकती, इस तरह की शक्ति प्राप्त करता है वह भक्त। यह भी माना जाता है कि जब भक्त का आत्मविश्वास कम हो जाए या जीवन में कोई काम ना बन रहा हो, तो सुंदरकांड का पाठ करने से सभी काम अपने आप ही बनने लगते हैं।
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*(7)* *शास्त्रीय मान्यताएं :~*
किंतु केवल शास्त्रीय मान्यताओं ने ही नहीं, विज्ञान ने भी सुंदरकांड के पाठ के महत्व को समझाया है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों की राय में सुंदरकांड का पाठ भक्त के आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति को बढ़ाता है।
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*(8)* *सुंदराकांड पाठ का अर्थ :~*
इस पाठ की एक-एक पंक्ति और उससे जुड़ा अर्थ, भक्त को जीवन में कभी ना हार मानने की सीख प्रदान करता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार किसी बड़ी परीक्षा में सफल होना हो तो परीक्षा से पहले सुंदरकांड का पाठ अवश्य करना चाहिए।
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*(9)* *सुंदराकांड पाठ का महत्व :~*
यदि संभव हो तो विद्यार्थियों को सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। यह पाठ उनके भीतर आत्मविश्वास को जगाएगा और उन्हें सफलता के और करीब ले जाएगा।
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*(10)* *सफलता के सूत्र :~*
आपको शायद मालूम ना हो, लेकिन यदि आप सुंदरकांड के पाठ की पंक्तियों के अर्थ जानेंगे तो आपको यह मालूम होगा कि इसमें जीवन की सफलता के सूत्र भी बताए गए हैं।
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*(11)* *सफल जीवन के मंत्र :~*
यह सूत्र यदि व्यक्ति अपने जीवन पर अमल कर ले तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। इसलिए यह राय दी जाती है कि यदि रामचरित्मानस का पूर्ण पाठ कोई ना कर पाए, तो कम से कम सुंदरकांड का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए।
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*(12)* *इस समय करें सुंदराकांड का पाठ :~*
यहां तक कि यह भी कहा जाता है कि जब घर पर रामायण पाठ रखा जाए तो उस पूर्ण पाठ में से सुंदरकांड का पाठ घर के किसी सदस्य को ही करना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक शक्तियों का प्रवाह होता है।
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*(13)* *ज्योतिष के लाभ :~*
ज्योतिष के नजरिये से यदि देखा जाए तो यह पाठ घर के सभी सदस्यों के ऊपर मंडरा रहे अशुभ ग्रहों छुटकारा दिलाता है। यदि स्वयं यह पाठ ना कर सकें, तो कम से कम घर के सभी सदस्यों को यह पाठ सुनना जरूर चाहिए। अशुभ ग्रहों का दोष दूर करने में लाभकारी है सुंदरकांड का पाठ।
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*(14)* *आत्मा की शुद्धि :~*
सुंदरकांड पाठ करने से आत्मिक लाभ मिलता है। आत्मा शुद्ध होती है। सुंदरकांड का पाठ करने से आत्मा परमात्मा से मिलने के लिए तैयार होती है। मनुष्य इस जीवन रूपी दुनिया में जो करना आया है वही करता है। और सुंदर कांड पाठ करने से आत्मा की शुद्धि होती है।
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*(15)* *रोगों को दूर भगाए :~*
सुंदरकांड का पाठ एक तीर से कई निशाने लगाने का नाम है। पाठ करने से रोग दूर रहते हैं। इससे आपकी दरिद्रता खत्म होती है।
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*(16)* *मानसिक सुख :~*
अगर कोई व्यक्ति लगातार सुंदरकांड का पाठ करता है तो उसे अनेक लाभ मिलते हैं। सुंदरकांड पाठ निरंतर करने से मानसिक सुख शांति प्राप्त होती है।
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*(17)*
*अनहोनी दूर करे :~*
अगर आप किसी ऐसी जगह पर रहते हैं जो सूनसान है। और आपको हमेशा किसी अनहोनी का डर रहता है। तो आप सुंदरकांड का पाठ करें। इससे आपके पास आने वाली हर समस्या दूर रहती है।
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*(18)*
*बच्चे आदर ना करें तो* *सुंदरकांड का पाठ :~*
अगर आपके बच्चे आपकी सुनते नहीं और बड़ों का आदर नहीं करते हैं तो आप अपने बच्चों को सुंदरकांड का पाठ करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। अगर वे अपने संस्कारों को भूल गए हैं तो आप बच्चों को सुंदरकांड का पाठ बच्चों से करवा सकते हैं।
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*(19)*
*कर्ज से छुटकारा :~*
अगर आप पर बहुत सारा कर्ज हो गया है तो आपको सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। सुंदरकांड का पाठ कर्ज से मुक्ति दिलाता है।
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*(20)*
*मन के भय से मुक्ति :~*
अगर आपको रात को डर लगता है और बुरे सपने आते हैं तो आपको सुंदरकांड पाठ करना चाहिए। जिस तरह से हनुमान चालिसा का पाठ करने से मन के भय से मुक्ति मिलती है। ठीक उसी तरह से सुंदरकांड का पाठ करने से मन के भय से मुक्ति मिलती है।
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*(21)*
*हनुमान की कृपा :~*
सुंदरकांड का पाठ करने से हनुमान की कृपा बनी रहती है। सिर्फ हनुमान ही नहीं भगवान राम की भी कृपा बनी रहती है। यदि आप दोनों भगवान की कृपा पाना चाहते हैं तो सुंदरकांड का पाठ करें।
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*(22)*
*गृह क्लेश से छुटकारा :~*
सुंदरकांड का पाठ करने से गृह क्लेश से छुटकारा मिलता है। इसका पाठ करने से सकारात्मक शक्ति घऱ में आती है। जिससे घऱ में पैदा होने वाली नकारात्मक शक्तियों को से छुटकारा मिलता है।
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*(23)*
*विद्यार्थियों के लिए लाभदायक :~*
यदि विद्यार्थी सुंदरकांड का पाठ करते हैं तो उन्हें उनके छात्र जीवन में सफलता मिलती है। उनका पढ़ाई में मन लगता है। और परीक्षा में अंक ठीक आते हैं। इसलिए विद्यार्थियों को सुंदरकांड का पाठ अवश्य करना चाहिए।
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*(24)*
*घऱ में सकारात्मक शक्तियों का वास :~*
ऐसा माना जाता है कि सुंदरकांड का पाठ करने से घर में माहौल सकारात्मक और प्रेम पूर्वक रहता है। यदि सुंदरकांड का पाठ घऱ के ही किसी सदस्य द्वारा किया जाता है तो और भी अधिक फायदेमंद होता है।
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*(25)*
*अशुभ ग्रहों को दूर करे :~*
सुंदरकांड का पाठ करने से अशुभ ग्रहों की स्थिति को शुभ बनाया जा सकता है। इसलिए नियमित सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए।
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*(26)*
*कभी हार ना मानना :~*
जीवन में ऐसे कई पड़ाव आता हैं जब हम अपना बल हार जाते हैं। मन दुखी हो जाता है। तो ऐसे में आपको हार नहीं मानना चाहिए। क्योंकि सुंदरकांड का पाठ आपको जीवन में कभी हार ना मानने की शक्ति देता है।
🙏🙏जय श्री सियाराम🙏🙏

रामस्य दासो हि सदा त्वमेव
सीताप्रियं कार्यसिद्धिप्रदं च।
भीतिं हरन्तं जनताजनेषु
नमामि त्वां हनुमन्तमीशम्॥४॥

🌼⚜️ योग कुण्डलिनी उपनिषद् ⚜️🌼
24/07/2025

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24/07/2025
.                          “क्रोधनाश का उपाय”          क्रोध की अधिकता के नाश का उपाय पूछा सो निम्नलिखित साधन को काम में...
24/07/2025

. “क्रोधनाश का उपाय”

क्रोध की अधिकता के नाश का उपाय पूछा सो निम्नलिखित साधन को काम में लाने से क्रोध का नाश हो जाता है।

(१) सब जगह एक वासुदेव भगवान् का ही दर्शन करे। जब भगवान् को छोड़कर दूसरी कोई वस्तु ही नहीं रहेगी तब क्रोध किस पर होगा ?

(२) यदि सब कुछ नारायण का है तब फिर नारायण पर क्रोध कैसे हो ! सबके नारायण-स्वरूप होने के कारण मैं सबका दास हूँ। उस नारायण की इच्छा के अनुसार ही सब कुछ होता है और वही प्रभु सब कुछ करता है, तब फिर क्रोध किस पर किया जाय ?

(३) नारायणकी शरण होना चाहिये, जो कुछ होता है सो उसी की आज्ञा से होता है। अपनी इच्छा से करने पर नारायण की शरणागति में दोष आता है। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पाने के लिये हमारे फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को फॉलो और लाईक करें तथा हमारा व्हाट्सएप चैनल ज्वॉइन करें। चैनल का लिंक हमारी फेसबुक पर देखें। मालिक अपने आप चाहे सो करें, मैं निश्चिन्त हैं। ऐसी भावना होनी चाहिये। चाहना करने से क्रोध होता है। इच्छा बिना क्रोध नहीं हो सकता।

(४) सब कुछ काल भगवान् के मुख में देखना चाहिये। थोड़े दिन के लिये मैं क्यों क्रोध करूँ ? संसार सब अनित्य है, समयानुसार सभी का नाश होने वाला है, जीवन बहुत थोड़ा है, किसी के मन को कष्ट पहुँचे ऐसा काम क्यों करना चाहिये ?

(५) जो अपने से बड़े पर क्रोध आवे तो उससे क्षमा माँगे और उसके चरणों में गिर जाय और जो वह अपने ऊपर क्रोध करे तो भी उसके चरणों में गिर जाय तथा हँसकर प्रसन्न मन से बातें करे या चुप हो जाय।

(६) अपने से छोटे पर क्रोध आवे तो उसके हित के लिये केवल दिखाने मात्र के लिये ही वह क्रोध होना चाहिये। अपने स्वार्थ का त्याग होना चाहिये, इच्छा ही क्रोध में हेतु है, इससे इच्छा का नाश हो, ऐसा उपाय करना चाहिये। भगवान् के स्वरूप और नाम का चिन्तन हुए बिना ऐसा होना कठिन है।
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24/07/2025

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*🚩दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌**श्रावण मास में प्रतिदिन भगवान शंकर जी का पूजन करके दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌ का पाठ करना चा...
24/07/2025

*🚩दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌*

*श्रावण मास में प्रतिदिन भगवान शंकर जी का पूजन करके दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌ का पाठ करना चाहिए। इससे शिव की कृपा प्राप्ति होकर दारिद्रय का नाश होता है, तथा धन -धान्य व संपत्ति की प्राप्ति होती है।*

*🚩विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय*
*कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।*
*कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय*
*दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥*

*गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय*
*भुजगाधिपकङ्कणाय।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय ॥दारिद्रय.॥2॥

भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय ॥ दारिद्रय॥3॥

चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय ॥ दारिद्रय॥4॥

पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय।
आनंतभूमिवरदाय तमोमयाय ॥दारिद्रय.॥5॥

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय ॥दारिद्रय.॥6॥

रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय ॥ दारिद्रय॥7॥

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।
मातङग्‌चर्मवसनाय महेश्वराय ॥ दारिद्रय॥8॥

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्‌।
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्‌।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्‌ ॥9॥

24/07/2025

बहुत समय पहले की बात है, दुर्गापुर में एक राजा राज्य करते थे। राजा का नाम अजय सिंह था। अजय सिंह बहुत ही धर्मात्मा और पराक्रमी राजा थे। उनके केवल एक लड़की थी, जिसका नाम सोनालिका था । राजकुमारी सोनालिका अभी मुश्किल से तेरह चौदह साल की थी।

लेकिन उसकी सुन्दरता की चर्चा दूर दूर तक फैली थी । राजा अजय सिह उसे अपने प्राणों से भी ज्यादा प्यार करते थे। राजकुमारी भी अपने पिता पर जान छिड़कती थी ।

एक दिन की बात है, राजा अपने सिपाहियों के साथ जंगल में शिकार खेलने गए । राजा के साथ उनके चार अंगरक्षक थे, जो सभी प्रकार के अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित थे।

राजा को शिकार के लिए भटकते भटकते दोपहर हो गई, लेकिन एक भी शिकार न मिला । थके हारे राजा अपने घोड़े से उतरकर एक बरगद के पेड़ की छाया में लेटकर विश्राम करने लगे। उन्होंने अपना घोड़ा वहीं पेड़ की जड़ से बांध दिया ।

"राजवीर - मुझे ठण्डा पानी चाहिए।" - राजा ने अपने एक अंगरक्षक को सम्बोधित करते हुए कहा ।

"अभी लीजिए महाराज।" - वह बोला और फिर पानी की खोज में अपना घोड़ा लेकर जंगल की ओर बढ़ गया ।

राजा अपने तीनों अनुचरों के साथ काफी समय तक राजवीर के आने की प्रतीक्षा करते रहे, लेकिन राजवीर नहीं आया। पता नहीं क्या बात थी, राजा और उनके सिपाही राजवीर के लिए चिन्तित हो उठे।

ज्यों ज्यों समय बीतता गया । यह चिंता त्यों त्यों बढ़ती ही चली गई। दूसरी ओर सूर्य की प्रखर किरणें जैसे कण कण जलाये दे रही थीं। प्यास के कारण राजा का गला सूखता ही जा रहा था। तीनों सिपाही राजा की ओर विवशता से ताक रहे थे।

तभी राजा बोला- "तुम तीनों यहां से तुरन्त चले जाओ और मेरे लिए पानी की खोज करो । साथ ही साथ राजबीर के बारे में भी पता करो कि अभी तक वह क्यों नहीं लौट सका ।"

"लेकिन कम से कम एक आदमी का तो आपके पास रहना जरूरी ही है महाराज -!" - उनमें से एक बोला ।

राजा ने दो टूक उत्तर दिया- "नही ,तुम लोग मेरी रक्षा के लिए हो और इस वक्त मेरी रक्षा के लिए पानी की सख्त जरूरत है । इसलिए जैसे भी हो, मेरे लिए अति शीघ्र पानी की व्यवस्था करो साथ ही साथ राजवीर की भी खोज करो।"

"जो आज्ञा महाराज ।" - राजा का आदेश पाकर वे तीनों एक स्वर में बोले और फिर अपने अपने घोड़ों पर बैठकर पानी एवं अपने साथी की खोज में निकल पड़े ।

लगभग दो घण्टे तक राजा अपने सिपाहियों के लौटने की प्रतीक्षा करते रहे, लेकिन जब उनमें से कोई नहीं लौटा तो राजा चिन्तित हो उठे । एक तो चिंता, दूसरे तपती हुई धूप , राजा का गला प्यास के कारण सूखता चला गया।

हारकर राजा भी उठ खड़े हुए । अब सबसे पहले उन्हें पानी की तलाश स्वयं ही करनी थी , इस तरह हाथ पर हाथ रखकर बैठने से कोई लाभ नही था ।

राजा ने उठकर पेड़ से बंधा अपना घोड़ा खोला और उस पर बैठकर एक ओर चल दिए। राजा काफी देर तक अपने घोड़े पर बैठे बैठे इधर उधर भटकते रहे, लेकिन उन्हें न तो पानी मिला और न ही अपने सिपाही ।

लेकिन फिर भी राजा ने हिम्मत नही हारी । बार बार निराशा हाथ लगने के बावजूद भी वे दुगुने जोश के साथ अपने काम में जुट गए । वे जिस ओर आगे बढ़ रहे थे, उस ओर जंगल ज्यादा ही घना था। कहीं कहीं तो उन्हें स्वयं घोड़े से नीचे उतरकर रास्ता बनाना पड़ता था ।

राजा आगे बढ़े ही जा रहे थे । सहसा उन्हें फिर घोड़े से उतरना पड़ा, क्योंकि आगे रास्ता वृक्षों की टहनियों ने रोक रखा था। राजा ने नीचे उतरकर अपनी तलवार निकाली और उन्हें काट काट कर रास्ता बनाने लगे ।

तभी उन्हीं झाड़ियों के नीचे राजा को एक गुफा दिखाई दी । गुफा का दरवाजा काफी बड़ा था। राजा की उत्सुकता जगी । वे जल्दी जल्दी गुफा के दरवाजे की ओर बढ़े। गुफा काफी लम्बी थी । राजा अपने घोड़े की रस्सी थामे बढ़ते ही चले गए ।

राजा ने देखा, गुफा के फर्श पर सीलन थी। शायद आगे पानी की बावड़ी होगी । राजा ने सोचा और वे जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगे । थोड़ी दूर चलने के बाद वह गुफा एक लम्बे चौड़े मैदान में बदल गई ।

उसी मैदान के बीचो बीच एक छोटा सा जलाशय था । राजा की आंखें चमक उठीं। उन्होंने अपने सूखते हुए होंठों पर जुबान फेरी और तेज तेज कदमों से जलाशय की ओर बढ़ गए ।

जलाशय की खूबसूरती देखकर राजा मोहित हो उठे, लेकिन एक बात राजा को खटक रही थी कि इतनी खूबसूरती होते हुए भी वहां एकदम सन्नाटा था। एक भी पक्षी उस जलाशय के आस पास दिखलाई नहीं दे रहा था ।

लेकिन राजा को इस बारे में सोचने की फुरसत नहीं थी। उनका तो गला प्यास की अधिकता के कारण सूखा जा रहा था। राजा जल्दी जल्दी जलाशय की सीढ़ियां उतरने लगे । पानी के पास पहुंचकर राजा ने हाथ मुंह धोया और पानी पीने लगे।

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